आगरा का पेठा न केवल भारत में, बल्कि दुनियाभर में मशहूर है, इसलिए इस की मांग भारत के दूसरे प्रदेशों के अलावा दुनिया के तमाम देशों में बनी हुई है.

यह मिठाई कई स्वाद और खुशबुओं में उपलब्ध है. इसे अंगूरी पेठा, नारियल पेठा, सूखा पेठा, काजू पेठा इत्यादि के नाम से भी जाना जाता है. ये सभी मिठाइयां इस कद्दूवर्गीय प्रजाति के फल से बनी होती हैं, इसलिए इस का नाम भी कद्दू पेठे के नाम से मशहूर है.

यह हलके रंग का होता है, जो लंबे व गोल आकार में पाया जाता है. इस का उपयोग सब्जियों के अलावा सर्वाधिक पेठा नाम की मिठाई बनाने में किया जाता है. इस फल के ऊपर हलके सफेद रंग के पाउडर की तरह परत चढ़ी होती है. इस की कुछ प्रजातियां 1-2 मीटर लंबे फल भी देती हैं.

इस पेठा कद्दू प्रजाति की मांग सब्जियों के लिए बहुत कम है, लेकिन पेठा मिठाई बनाने के लिए जितनी मांग है, उतने का उत्पादन आज भी नहीं हो पा रहा है.

कद्दू पेठे की खेती सर्वाधिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में की जाती है. इस के अलावा पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान सहित पूरे भारत में इस की खेती बहुतायत मात्रा में होती है.

कद्दू की इस प्रजाति को अलगअलग जनपदों में अलगअलग नाम से जाना जाता है. पूर्वी उत्तर प्रदेश में भतुआ कोहड़ा, भूरा कद्दू, कुष्मान या कुष्मांड फल के नाम से भी जाना जाता है. यह पकने के बाद एकदम सफेद हो जाता है. इस प्रजाति के कुछ फल पकने के बाद पीलापन भी लिए होते हैं.

चूंकि पेठा कद्दू की मांग पेठा मिठाई बनाने के लिए है, ऐसे में इस की खेती का किया जाना किसानों के लिए माली आमदनी का अच्छा जरीया बन सकता है. कद्दू की इस प्रजाति की मार्केटिंग में किसानों को किसी तरह की परेशानी से नहीं जूझना पड़ता है, क्योंकि पेठा मिठाई के कारोबारी इस की तैयार फसल को खेतों से ही खरीद लेते हैं. इस की खेती सर्दी व गरमी दोनों मौसम में की जाती है, लेकिन अधिक पैदावार के लिए यह कोशिश करनी चाहिए कि फसल पर पाले का असर न होने पाए.

पेठा कद्दू की कुछ उन्नत प्रजातियां

पेठा कद्दू की खेती के लिए तमाम उन्नत प्रजातियां उपलब्ध हैं, जो न केवल अधिक उत्पादन देने वाली हैं, बल्कि इस पर कीट, बीमारियां व विपरीत मौसम का असर भी कम होता है.

पेठा की उन्नतशील प्रजातियों में पूसा हाईब्रिड 1, काशी उज्ज्वल, काशी सुरभि, काशी धवली, पूसा विश्वास, पूसा विकास, सीएस 14, सीओ 1 व 2, हरका चंदन, नरेंद्र अमृत, अर्का सूर्यमुखी, कल्याणपुर पंपकिंग 1, अंबली, पैटी पान, येलो स्टेटनेप, गोल्डन कस्टर्ड इत्यादि प्रजातियां प्रमुख हैं.

इस की बोआई का प्रमुख समय जूनजुलाई, सितंबर से अक्तूबर व फरवरी से मार्च महीने में होता है. इस के अलावा पर्वतीय इलाकों में इस की बोआई मार्चअप्रैल माह में की जाती है, जबकि नदियों के किनारों पर यह नवंबरदिसंबर माह में बोया जाता है. एक हेक्टेयर खेत के लिए 7-8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है.

मिट्टी व खेत की तैयारी

पेठा कद्दू की खेती के लिए दोमट व बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम मानी गई है. इस के अलावा यह मध्यम अम्लीय मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है. जीवांशयुक्त मिट्टी इस की खेती के लिए सब से अच्छी होती है. इस को बोने के पहले खेतों की अच्छी तरह से जुताई कर के मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए और

2-3 बार कल्टीवेटर से जुताई कर पाटा लगाना चाहिए. खेत में बीज की बोआई के पहले एक हेक्टेयर भूमि में लगभग 40-50 क्विंटल सड़ी हुई गोबर की खाद व 20 किलोग्राम नीम की खली के साथ 30 किलोग्राम अरंडी की खली अच्छी तरह से मिला देना चाहिए.

उपरोक्त चीजों को मिट्टी में मिलाने के लिए पहले पाटा लगाए गए खेत में इस का बुरकाव कर दें. उस के बाद एक जुताई कर के दोबारा पाटा लगा दें.

खाद व उर्वरक

कद्दू पेठे की बोआई के समय एक हेक्टेयर खेत के लिए 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस व 40 किलोग्राम पोटाश की मात्रा की जरूरत पड़ती है. नाइट्रोजन की आधी मात्रा व फास्फोरस, पोटाश की पूरी मात्रा बोआई के समय ही खेत में मिला देना चाहिए. नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा को फसल में 3-4 पत्तियां आने के दौरान व दूसरा, फूल आने के दौरान 20 किलोग्राम के हिसाब से फसल में प्रयोग करना चाहिए.

कद्दू पेठे की जायज सीजन की फसल के लिए प्रत्येक 15 दिन पर सिंचाई की जरूरत पड़ती है, लेकिन खरीफ सीजन में अच्छी बारिश की अवस्था में सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है. गरमियों में ली जाने वाली फसल में प्रत्येक

8-10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहना चाहिए. फसल की अच्छी बढ़वार व उत्पादन के लिए फसल को खरपतवार से मुक्त बनाए रखना चाहिए.

कीट व बीमारियां

कद्दू पेठा की फसल में जिन कीटों का प्रकोप पाया गया है, उस में फल मक्खी का अधिक प्रकोप देखा जाता है. यह मक्खी पेठा फल के अंदर प्रवेश कर के वहीं अंडे देती है और इन अंडों से निकलने वाली सूंडि़यां फल को अंदर से खा कर उसे बेकार कर देती हैं. इस के लिए कार्बेनिल, 10 फीसदी धूल का छिड़काव फसल में कीट का प्रकोप दिखाए जाने के समय ही कर देना चाहिए.

इस के अलावा जिन कीटों का प्रकोप देखा गया है, उस में सफेद ग्रब व लालरी प्रमुख है. लालरी कीट का प्रकोप पौध में पत्तियां व फूल आने के समय देखा गया है. यह कीट पत्तियों व फूल के साथ जमीन के अंदर पौध की जड़ों को काट कर नष्ट कर देती है. वहीं सफेद ग्रब कीट भी जमीन के अंदर पौध की जड़ों का खा कर नष्ट कर देता है, जिस से फसल सूख जाती है. इस की रोकथाम के लिए क्लोरोपायरीफास 20 ईसी या प्रोफेनोफास 50 ईसी का छिड़काव करना चाहिए.

कद्दू पेठा में जिन रोगों का प्रकोप देखा गया है, उस में चूर्णी फफूंदी, मृदु रोमिल फफूंदी, मोजैक, एंथ्रेक्नोज नाम की बीमारियां पाई जाती हैं.

चूर्णी फफूंदी व मृदु रोमिल फफूंदी की वजह से पत्तियों व तनों पर सफेद व गोलाकार जलने जैसा निशान बन जाता है, जिस की वजह से पत्तियां कत्थई हो जाती हैं और पीली पड़ कर सूख जाती हैं.

मोजैक बीमारी की वजह एक विषाणु है, जिस से पत्तियां मुड़ जाती हैं और पौध की बढ़वार रुक जाती है. इस की वजह से पौधों में लगने वाले फल का आकार एकदम छोटा हो जाता है.

एंथ्रेक्नोज बीमारी की वजह से पत्तियों और फलों पर लाल व काले धब्बे पड़ जाते हैं, जो कि बीज के उपचारित न किए जाने की वजह से होता है. ऐसे में इस बीमारी से बचने के लिए थीरम से बीजों को शोधित करना चाहिए, वहीं मोजैक व फफूंदी वाली बीमारियों की रोकथाम के लिए कार्बंडाजिम, मैंकोजेब, थीरम, मेटालेक्जिल, डीनोकेप दवाओं का प्रयेग करना चाहिए.

फलों की तुड़ाई व लाभ

पेठा कद्दू की फसल बोआई के तकरीबन 3-4 माह में तुड़ाई के योग्य तैयार हो जाती है. फसल की तुड़ाई से पहले यह देखना चाहिए कि फलों पर सफेद रंग के चूर्ण की परत चढ़ चुकी हो. वैसे, फलों की तुड़ाई से पहले पेठा कारोबारियों से संपर्क कर लेना ज्यादा उचित होता है, जो तैयार फसल को खेतों से ही खरीद लेते हैं. फलों की तुड़ाई के लिए किसी तेज धारदार चाकू से अलग करना चाहिए.

एक हेक्टेयर खेत से तकरीबन

500-550 क्विंटल की उपज प्राप्त होती है, जिस का थोक बाजार मूल्य सीजन के हिसाब से 800-1,000 रुपए प्रति क्विंटल तक प्राप्त हो सकता है.

एक हेक्टेयर खेत में जुताई, बीज, उर्वरक व सिंचाई को ले कर तकरीबन 35,000 रुपए की लागत आती है. ऐसे में अच्छा उत्पादन होने की दशा में किसान लागत को छोड़ कर 4-5 लाख रुपए की आमदनी प्राप्त कर सकता है.

इस तरह कम समय, कम लागत व कम देखभाल के साथसाथ कम जोखिम की अवस्था में किसानों को पेठे की खेती से अच्छी आमदनी हो सकती है.

अगर किसान पेठे की तैयार फसल से पेठा मिठाई बनाने की जानकारी हासिल कर अच्छी क्वालिटी का पेठा बना कर सीधेतौर पर उसे बाजार मे बेचें, तो यह मुनाफा कई गुना तक बढ़ जाता है.

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