भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के साथ मिल कर अरहर की अर्द्धबौनी और जल्दी पकने वाली पूसा अरहर 16 किस्म विकसित की है. बहुफसलीय प्रणाली में अतिरिक्त फसल जैसे सरसों, गेहूं, आलू के लिए भी यह मुफीद किस्म है.

जून के पहले हफ्ते में यह किस्म बोने पर इस के पौधे की लंबाई 120-125 सैंटीमीटर और जुलाई के पहले हफ्ते में बोने पर इस के पौधे की लंबाई 95-100 सैंटीमीटर होती है. इस किस्म के पकने की औसत अवधि 115-120 दिन है.

यह किस्म पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए अच्छी है. औसत उपज तकरीबन 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. दानों में प्रोटीन की मात्रा 23.5 फीसदी और रंग भूरा होता है.

जमीन का चुनाव : इस किस्म के लिए बलुई दोमट मिट्टी मुफीद होती है. सही जल निकास और हलके ढलान वाले खेत अरहर के लिए सर्वोत्तम होते हैं क्योंकि खेत में पानी जमा होने पर अरहर फसल खराब हो जाती है. लवणीय और क्षारीय जमीन में इस की खेती से अच्छे नतीजे नहीं मिलते.

बोआई का सही समय : यह जल्दी पकने वाली प्रजाति है. इस की बोआई जून के पहले पखवाड़े या जुलाई के पहले पखवाड़े में करनी चाहिए.

बोआई लाइन में करें. इस के लिए सीड ड्रिल या हल के पीछे चोंगा बांध कर लाइन में बोआई कर सकते हैं.

खेत की तैयारी : एक गहरी जुताई के बाद 2-3 जुताई हल या हैरो से करना सही रहता है. हर जुताई के बाद सिंचाई और जल निकास की सही व्यवस्था के लिए पाटा देना जरूरी है.

बीज की मात्रा और बीजोपचार : इस किस्म की बोआई के लिए 10-12 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ लगता है. बीजोपचार के बाद ही बीज बोएं. ट्रायकोडर्मा विरिडी 10 ग्राम प्रति किलोग्राम या 2 ग्राम थाइरम प्रति एक ग्राम बेबीस्टोन (2:1) में मिला कर 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करने से फफूंद नष्ट हो जाती है.

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