रांची : कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के सचिव और बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति अबूबकर सिद्दीकी ने कृषि वैज्ञानिकों का आह्वान किया है कि वे जलवायु के अनुकूल खेती पर अपना अनुसंधान प्रयास केंद्रित करें.

उन्होंने यह भी कहा कि अपनी खाद्यान्न जरूरतों के मामले में भारत सरप्लस है, लेकिन बायोसेफ्टी, पोषण सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए अब भी बहुत काम करने की जरूरत है.

वह भारतीय आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन सोसाइटी, नई दिल्ली के रांची चैप्टर द्वारा बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में ‘फसल सुधार के लिए पौधा विज्ञान की चुनौतियां, अवसर एवं रणनीतियां’ विषय पर आयोजित दोदिवसीय राष्ट्रीय सैमिनार को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि जो लोग अपने ज्ञान को साझा नहीं करते, उन के ज्ञान की कोई उपयोगिता नहीं रह जाती है, इसलिए वैज्ञानिकों को पढ़ना, सुनना, देखना, विश्लेषण करना और नवोन्मेष (इनोवेशन) करना सतत जारी रखना चाहिए. ज्ञानकौशल की गति और गुणवत्ता दुनिया के साथ मिला कर रखना होगा, तभी हम प्रतिस्पर्धा और रोजगार बाजार में टिक पाएंगे.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के सहायक महानिदेशक (खाद्य एवं चारा फसलें) डा. एसके प्रधान ने कहा कि देश में इस वर्ष 330 मिलियन टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ, जो वर्ष 2030 का लक्ष्य था यानी इस मोरचे पर हम 7 वर्ष आगे हैं, किंतु इस से हमें आत्मसंतुष्ट नहीं होना है. मक्का और मिलेट्स उत्पादन का वर्तमान स्तर 37 और 15 मिलियन टन है, जिसे वर्ष 2047 तक बढ़ा कर क्रमशः 100 मिलियन टन एवं 45 मिलियन टन करना है. बायोफ्यूल के लिए भी मक्का फसल की जरुरत है. उत्पादन वृद्धि का भावी लक्ष्य भी हमें कम पानी, कम उर्वरक, कम रसायन और कम भूमि का प्रयोग करते हुए हासिल करना होगा.

Surplus Foodसोसाइटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, मऊ (उत्तर प्रदेश) के निदेशक डा. संजय कुमार ने अपने औनलाइन संबोधन में कहा कि भारत में दुनिया की लगभग 18 फीसदी आबादी रहती है, किंतु इस के पास विश्व का केवल 2.4 फीसदी भूमि संसाधन और 4 फीसदी जल संसाधन उपलब्ध है, इसलिए भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें अपनी फसल प्रजनन और बीज प्रजनन नीतियों, योजनाओं और रणनीतियों में बदलाव लाना होगा.

शुरू में स्वागत भाषण करते हुए आयोजन सचिव और बीएयू के आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग की अध्यक्ष डा. मणिगोपा चक्रवर्ती ने सोसाइटी के रांची चैप्टर की गतिविधियों और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला.

आयोजन हाईब्रिड मोड में किया जा रहा है, जिस में देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों, शोध संस्थानों और कृषि उद्योगों से आनुवंशिकी, पौधा प्रजनन, पादप जैव प्रौद्योगिकी, फसल दैहिकी, बीज प्रौद्योगिकी, बागबानी एवं सब्जी विज्ञान से जुड़े डेढ़ सौ से अधिक कृषि वैज्ञानिक औफलाइन एवं औनलाइन मोड में भाग लिया. औनलाइन भाग लेने वालों में बीएयू के पूर्व कुलपति डा. एमपी पांडेय, डा. ओंकार नाथ सिंह और बीएचयू के स्कूल औफ बायोटैक्नोलौजी के पूर्व प्रोफैसर डा. बीडी सिंह शामिल हैं.

कृषि सचिव ने इस अवसर पर बीएयू के आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. जेडए हैदर एवं डा. वायलेट केरकेट्टा और पूर्व अनुसंधान निदेशक डा. ए. वदूद को उन के विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया. सोसाइटी की कोषाध्यक्ष डा. नूतन वर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया.

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