उदयपुर : 29 अगस्त,2023. गेहूं की मानिंद जौ भी फसलोत्पादन में अपनी अलहदा गुण व पहचान रखता है. एल्कोहल इंडस्ट्री व अन्य खाद्य पदार्थों में इस्तेमाल के कारण जौ की काफी मांग रहती है. न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एसएसपी बढ़ाने से किसान इसे उगाने में ज्यादा रुचि लेगें खासकर राजस्थान में जौ की खेती की असीम संभावनाएं हैं.

उदयपुर में आयोजित 62वीं अखिल भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान कार्यशाला के दूसरे दिन तकनीकी सत्र में यह बातें मुखर हो कर आईं.

डा. जेएस संधु, भूतपूर्व उपमहानिदेशक, फसल विज्ञान ने जौ के क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित किया.

राजस्थान कृषि महाविद्यालय सभागार में डा. ओमवीर सिंह, डा. आरपीएस वर्मा, डा. लक्ष्मीकांत ने जौ की उपादेयता, पहाड़ी क्षेत्रों में जौ की स्थिति व संभावनाएं, नई किस्मों पर काम करने पर जोर दिया.

इस मौके पर विभिन्न शहरों से प्रगतिशील किसानों ने जौ की खेती पर अपने अनुभव साझा किए.

Farmingकृषि वैज्ञानिक डा. आलोक के. श्रीवास्तव ने ’अनाज फसलों में तनाव को कम करने के लिए माइक्रोबियल फार्मूलेशन’ विषय पर शोध पत्र पढ़ा. वहीं डा. ओपी अहलावत ने फसल सुधार, डा. एससी त्रिपाठी ने संसाधन प्रबंधन, डा. पूनम जसतोरिया ने फसल सुरक्षा जैसे विषयों पर विस्तृत व्याख्यान दिया.

इस से पूर्व डा. अनिल खिप्पाल, प्रधान वैज्ञानिक भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल ने प्राकृतिक खेती पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि बढ़ते वायु, मृदा व जल प्रदूषण, मानव स्वास्थ्य आदि समस्याओं के समाधान में प्राकृतिक खेती का अपना अहम योगदान है. उन्होंने प्राकृतिक खेती के सिद्धांतों व घटकों के बारे मेें विस्तार से बताया.

प्राकृतिक खेती के लिए भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल मेें किए जा रहे विभिन्न शोध कार्यों जैसे पोषण प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, मृदा की भौतिक व रासायनिक संरचना में बदलाव और विभिन्न सूक्ष्म जीवों के योगदान व बदलाव के बारे में बताया.

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