प्रमाणिक शोधपत्र ही प्रासंगिक – डा. मीनू श्रीवास्तव

उदयपुर : 5 अगस्त 2023. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संघटक, सामुदायिक एवं व्यावहारिक विज्ञान महाविद्यालय के प्लेसमेंट सेल एवं इनफार्मेशन ब्यूरो और होम साइंस एसोसिएशन औफ इंडिया, उदयपुर चैप्टर के संयुक्त तत्वावधान में स्नातकोत्तर छात्रछात्राओं हेतु “रिसर्च पेपर लेखन विधा” विषयक व्याख्यान आयोजित किए गए.

महाविद्यालय की डीन प्रो. मीनू श्रीवास्तव ने स्वागत उद्बोधन में कहा कि विगत कई वर्षों से शोधपत्रों की गुणवत्ता में गिरावट आई है. इस की मुख्य वजह शोधरतियों की ज्ञानपिपासा में कमी के साथसाथ उचित मार्गदर्शन की कमी भी है. हालांकि प्लेगरिज्म की सुविधा के चलते मौलिकता की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता. सामाजिक परिदृश्य को देखते हुए प्रमाणिक शोधपत्र की प्रासंगिकता और भी बढ़ गई है. साथ ही, उन्होंने आयोजन की प्रशंसा करते हुए भविष्य में भी ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल दिया.

होम साइंस एसोसिएशन औफ इंडिया, उदयपुर चैप्टर की उपाध्यक्ष, संयोजिका डा. सुमन सिंह, प्रोफैसर एमरिटसने कहा कि ख्यातिनाम और अनुभवी विशेषज्ञों के ज्ञान का प्रत्यक्ष लाभ डिजिटल ज्ञान से कहीं ज्यादा असरकारक होता है. वर्तमान शोधार्थियों के लिए ऐसे आयोजन प्रासंगिक हैं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि एसोसिएशन का उद्देश्य शिक्षा शोध और प्रसार के माध्यम से सामुदायिक विकास को गति प्रदान करना है, जिस से सामाजिक कल्याण सुनिश्चित किया जा सके.

आयोजन सचिव डा. गायत्री तिवारी, प्रोफैसर एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक, इंचार्ज – प्लेसमेंट सेल एवं इनफार्मेशन ब्यूरो ने बताया कि अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य कार्यवाही को सूचित करना, सिद्धांतों के लिए साक्ष्य इकट्ठा करना और अध्ययन के क्षेत्र में ज्ञान विकसित करने में योगदान देना है.

उन्होंने कहा कि कोई भी शोध तब तक पूरा नहीं माना जाता, जब तक कि अधिकाधिक लोगों तक इस की जानकारी न पहुंचे. अकादमिक व्यक्तियों के लिए जर्नल इत्यादि में प्रकाशित शोधपत्र सशक्त माध्यम हैं, वहीं आम लोगों के लिए निष्कर्षों को पौपुलर आर्टिकल या लेखों के माध्यम तक पहुंचना चाहिए. शोधार्थियों द्वारा किए जा रहे प्रयासों को उचित और समीचीन दिशा देने के लक्ष्य से ही इन सत्रों का आयोजन किया.

प्रथम सत्र में एसएनडीटी यूनिवर्सिटी की रिटायर्ड प्रो. सुमन मुंडकर द्वारा “नेविगेटिंग द वर्ल्ड औफ पब्लिशिंग रिव्यु एंड रिसर्च पेपर्स” शीर्षक पर सारगर्भित जानकारी दी गई. उन्होंने बताया कि एक समीक्षा लेख में आप के क्षेत्र में वर्तमान अत्याधुनिक की व्यापक आलोचनात्मक समीक्षा प्रदान की जानी चाहिए और एक शोध लेख में आप के शोध उत्पादित नए निष्कर्ष प्रस्तुत होने चाहिए.

उन्होंने शोधपत्र लेखन के सभी चरणों के बारे में तकनीकी बारीकियों से संबंधित पक्षों को उदाहरण सहित समझाया.

दूसरे सत्र में सैंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, तूरा, मेघालय की डीन प्रो. ज्योति वस्त्राद ने “टुवर्ड्स सस्टेनेबल रिसर्च : फोकस औन टैक्सटाइल्स” पर महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए कहा कि सतत विकास और अनुसंधान प्राकृतिक संसाधनों को प्रदान करने के लिए प्राकृतिक प्रणालियों की क्षमता को बनाए रखते हुए लक्ष्यों को पूरा करना है. टिकाऊ वस्त्र सामग्री से तात्पर्य उस कपड़े से है, जो पर्यावरण अनुकूल संसाधनों से आता है, जैसे टिकाऊ रूप से उगाई गई फाइबर फसलें या पुनर्नवीनीकरण सामग्री. कपड़ों का निर्माण कैसे किया जाता है, यह भी निर्धारित करता है कि वे कितने टिकाऊ हैं.

सत्रों में विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और प्रश्नोत्तरी द्वारा उन का समाधान किया गया.

फसल अवशेष जलाने के प्रबंधन के मुद्दों पर बैठक

नई दिल्ली : पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्यों की तैयारियों की समीक्षा के लिए कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव की सहअध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय अंतरमंत्रालयी बैठक आयोजित की गई, जिस में मौजूदा मौसम में धान की पराली जलाने से रोकने के बारे में विचारविमर्श हुआ.

इस बैठक में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही, पंजाब के कृषि मंत्री गुरुमीत सिंह खुडियन, हरियाणा के कृषि मंत्री जय प्रकाश दलाल और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय उपस्थित रहे.

इस बैठक में कृषि मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय और पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और आईसीएआर राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया.

बैठक के दौरान राज्यों ने मौजूदा मौसम में पराली जलाने से रोकने के लिए अपनी कार्य योजना और रणनीतियां प्रस्तुत की.

राज्यों को किसानों के बीच धान की पराली जलाने से रोकने के बारे में जागरूकता लाने के लिए फसल अवशेष प्रबंधन के लिए प्रदान की गई धनराशि का उपयोग करने, फसल अवशेष प्रबंधन (सीआरएम) मशीनरी को कटाई के मौसम से पहले ही उपलब्ध कराने, आईसीएआर और अन्य हितधारकों के सहयोग से सूचना, शिक्षा और संचार (आईईसी) गतिविधियां करने की सलाह दी गई.

Paraliइस अवसर पर पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि पिछले 5 वर्षों से धान की पराली जलाने से रोकने के प्रयासों के अच्छे परिणाम मिल रहे हैं. वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग जैसी एजेंसियों के ठोस प्रयासों के कारण पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में पराली जलने की घटनाओं में कमी आई है. धान के भूसे के समुचित प्रबंधन को प्रोत्साहन देने की जरूरत है, जो बिजली, बायोमास आदि जैसे उपयोगकर्ता उद्योगों को कच्चा माल मुहैया करेगा.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने धान की पराली जलाने के मुद्दे के समाधान में दिखाई गई गंभीरता के लिए सभी हितधारकों को बधाई दी. उन्होंने कहा कि सभी हितधारकों के प्रयासों से धान की पराली जलाने की घटनाओं में लगातार कमी देखी जा रही है. हालांकि, धान की पराली जलाने का संबंध केवल दिल्ली और उस के आसपास के इलाकों के प्रदूषण से नहीं है, बल्कि यह मिट्टी के स्वास्थ्य और उस की उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल कर कृषि भूमि पर भी हानिकारक प्रभाव डाल रहा है. इसलिए, हमारे प्रयास दिल्ली में वायु प्रदूषण से लड़ने और मिट्टी के स्वास्थ्य की रक्षा करने के लिए होने चाहिए, जिस से हमारे किसानों के हितों की रक्षा हो सके.

उन्होंने आगे कहा कि मौजूदा मौसम में पराली जलाने के मामलों को शून्य के स्तर पर लाने की दिशा में काम करना इस का उद्देश्य है. भारत सरकार 4 राज्यों को सीआरएम योजना के अंतर्गत पर्याप्त धनराशि प्रदान कर रही है और इन राज्यों को समय पर किसानों को मशीन प्रदान कर के उस का समुचित इस्तेमाल सुनिश्चित करना चाहिए. मशीनों के समुचित उपयोग और बायोडीकंपोजर का इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिए राज्य स्तर पर उचित निगरानी की जरूरत है. समुचित प्रबंधन के माध्यम से व्यावसायिक उद्देश्य हासिल करने के लिए धान के भूसे का इस्तेमाल करने पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.

विभिन्न निकायों के माध्यम से पराली जलाने से रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है. कृषि प्रौद्योगिकी प्रबंधन एजेंसियों (एटीएमए) जैसी एजेंसियों को उन की पूरी क्षमता से उपयोग करने की जरूरत है.

ग्राम पंचायत स्तरीय गोष्ठी व किसान पाठशाला की वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरीए शुरुआत

बस्ती : खरीफ 2023 में ग्राम पंचायत स्तरीय गोष्ठी व किसान पाठशाला का आयोजन जनपद के समस्त न्याय पंचायतों के 3-4 ग्राम सभाओं में 7 से 25 अगस्त तक वृहद रूप से होगा, जिस में फसलों के बारे में किसानों को जागरूक करने के साथ उन के क्षमता निर्माण सहित खेतीबारी से जुड़े अन्य विषयों जैसे दलहन, तिलहन, मिलेट्स, प्राकृतिक खेती, पराली प्रबंधन आदि विषयों पर जागरूक किया जाएगा.

उक्त आयोजन ग्राम पंचायत स्तरीय गोष्ठी व किसान पाठशाला का शुभारंभ अपर मुख्य सचिव, कृषि की अध्यक्षता में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरीए एनआईसी योजना भवन, लखनऊ से 7 जुलाई को दोपहर ढाई बजे से किया जाएगा. यह आयोजन 25 अगस्त, 2023 तक होगा.

इस कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही मुख्य अतिथि के रूप में प्रतिभाग करेंगे. इस की लाइव स्टीमिंग को दोपहर ढाई बजे से https://webcast.gov.in/up/agriculture लिंक के जरीए दिखाया जाएगा.

इस बारे में जानकारी देते हुए बस्ती जिले के उपनिदेशक, कृषि, अनिल कुमार ने किसानों से अनुरोध किया कि अधिक से अधिक किसान उक्त वैब लिंक के माध्यम से जुड़ते हुए कार्यक्रम देख कर जानकारी प्राप्त कर लाभान्वित हो सकते हैं.

नाबार्ड के अध्यक्ष ने भाकृअनुप-नार्म में 113वें फाउंडेशन कोर्स का किया उद्घाटन

हैदराबाद: 18 जुलाई, 2023. नाबार्ड के अध्यक्ष शाजी केवी ने भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी, हैदराबाद में कृषि अनुसंधान सेवा के लिए 113वें फाउंडेशन कोर्स का उद्घाटन किया. फाउंडेशन कोर्स में 21 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से कृषि और संबद्ध विज्ञान विषयों के 32 एआरएस विषयों का प्रतिनिधित्व करने वाले 69 वैज्ञानिक परिवीक्षार्थियों का नामांकन हुआ.

परिवीक्षाधीनों को अगले 3 महीनों के लिए 3 चरणों में फाउंडेशन प्रशिक्षण से गुजरना होगा. इस में 27 महिला और 42 पुरुष परिवीक्षाधीन थे.

शाजी केवी ने अपने उद्घाटन संबोधन में जलवायु परिवर्तन से संबंधित मुद्दों पर काबू पाने के लिए स्थायी दृष्टिकोण की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने अनुसंधान और विकास में अधिक व्यय करने के महत्व पर भी जोर दिया और वैश्विक स्थिरता के प्रति हमारे देश की प्रतिबद्धता पर भी प्रकाश डाला.

उन्होंने आगे कहा कि हमारे देश को उत्पादन और उत्पादकता के मौजूदा स्तर को बनाए रखना चाहिए और फसल कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने की दिशा में काम करना चाहिए.

सम्मानित अतिथि प्रो. अप्पा राव पोडिले, पूर्व कुलपति, हैदराबाद विश्वविद्यालय ने युवा परिवीक्षार्थियों से वन हेल्थ अवधारणा पर काम करने का आग्रह किया यानी मिट्टी, पौधे और पशु स्वास्थ्य को बनाए रखना.

उन्होंने बताया कि 30-40 फीसदी फसल जैविक रूप से सूक्ष्मजीवों से प्रभावित होती है और जीन संपादन सामान्य रूप से फसल उत्पादन और विशेष रूप से उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक तंत्र है.

सभी वैज्ञानिक प्रशिक्षुओं ने देश के साथसाथ भारत के संविधान की सेवा के प्रति निष्ठा की शपथ ली.

भाकृअनुप-एनएएआरएम के निदेशक, डा. चिरुकमल्ली श्रीनिवास राव ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में युवा वैज्ञानिकों की बदलती जरूरतों के अनुसार नवाचारों, जैसे- युवा वैज्ञानिकों के साथ इंटरैक्टिव सत्र, महिला निदेशकों की बातचीत और अकादमी उद्योग इंटरफेस एवं 113वें एफओसीएआरएस में वैज्ञानिक परिवीक्षार्थियों के साथ स्टार्टअप बातचीत का उल्लेख किया.

उन्होंने एफओसीएआरएस प्रशिक्षण कार्यक्रम के 3 चरणों का भी उल्लेख किया. पहला चरण अभिविन्यास एवं क्षमता निर्माण पर केंद्रित है, जबकि दूसरा और तीसरा चरण क्रमशः फील्ड अनुभवात्मक प्रशिक्षण (एफईटी) एवं बहुविषयक परिप्रेक्ष्य पर केंद्रित है.

नार्म के संयुक्त निदेशक डा. जी. वेंकटेश्वरलू ने नाबार्ड और नार्म के बीच संस्थागत सहयोग पर प्रकाश डाला.

डा. एनए विजय अविनाशिलिंगम, डा. बीएस यशवंत और डा. बीएस सोंतक्के पाठ्यक्रम निदेशक थे.

छोटे पैमाने पर मछली चारा मिल स्थापित करने के लिए पहल

चेन्नई : 19 जुलाई, 2023. भाकृअनुप-केंद्रीय खारा जल जीवपालन संस्थान (सीबा), चेन्नई ने लघु कृषि आधारित चारा मिल स्थापित करने के लिए महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के एक उद्यमी राजू भोगिल के साथ एक रणनीतिक साझेदारी की. जलीय कृषि का विविधीकरण सामान्य रूप से भारत में और विशेष रूप से महाराष्ट्र में काफी गति पकड़ रहा है. महाराष्ट्र में अंतर्देशीय और खारे पानी में फिन फिश की विभिन्न प्रजातियों को पालने का प्रयास किया जा रहा है. जलीय कृषि के बड़े पैमाने पर प्रसार के लिए प्रमुख बाधा, लागत प्रभावी और गुणवत्ता वाले फीड की उपलब्धता है, क्योंकि तैयार फीड पूरी तरह से पूर्वी तट से ले जाया जाता है. देश में जलीय कृषि को बढ़ावा देने के प्रयास में सीबा ने विभिन्न प्रजातियों के लिए स्वदेशी रूप से विकसित तैयार फीड के उत्पादन के लिए राज्य सरकार/निजी उद्यमियों के साथ समझौता ज्ञापनों की एक श्रृंखला में प्रवेश किया है. इस संदर्भ में वर्तमान पहल भाकृअनुप-सीबा, मुख्यालय, चेन्नई में एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर के उस राज्य में खेती की गई प्रजातियों के लिए उपयोग किए जाने वाले स्वदेशी तैयार किए गए. कार्यात्मक और ग्रोआउट फीड को संसाधित करने के लिए एक फार्म आधारित लघुस्तरीय फीड मिल स्थापित करना है.

Fish Food
Fish Food

 

 

 

 

 

डा. केके लाल, निदेशक, भाकृअनुप-सीबा ने उत्पादन की लागत के साथसाथ फीड की गुणवत्ता के बारे में जानकारी दी. इस के अलावा उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह कृषि आधारित फीड मिल पहल महाराष्ट्र राज्य में अपनी तरह की पहली पहल है और इस क्षेत्र में जलजीव पालने वाले किसानों के लिए एक वरदान होगी.स्टार्टअप उद्यमी भोगिल ने कहा कि राज्य में जलीय कृषि में उपयोग के लिए गुणवत्तापूर्ण फीड की काफी मांग है और इस पहल से छोटे और मध्यम किसानों को मदद मिलेगी.

गिर गोवंश में नस्ल सुधार के लिए कृत्रिम गर्भाधान शुरू

अविकानगर : 21 जुलाई, 2023.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थान, केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में गिर गोवंश के नस्ल सुधार के लिए कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम मालपुरा तहसील के विभिन्न गांव के किसानों के लिए शुरुआत की गई. संस्थान के फार्मर फर्स्ट प्रोजैक्ट एवं अनुसूचित जाति परियोजना द्वारा प्रायोजित एकदिवसीय कार्यक्रम में मालपुरा तहसील के 500 से ज्यादा किसानों ने भाग लिया.

आयोजन में भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में गिर गोवंश में नस्ल सुधार के लिए कृत्रिम गर्भाधान का शुभारंभ एवं कृषि उपयोगी सामग्री वितरण भी हुआ.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि बद्रीनारायण चौधरी, अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ एवं सदस्य, भाकृअनुप गवर्निंग बौडी ने बताया कि हमें गौमाता आधारित कृषि अर्थव्यवस्था बनानी है, क्योंकि गाय जैविक खेती के लिए सब से उत्तम पशु है. इस के पालन से हमारी विभिन्न ग्रामीण जरूरत की आवश्यकता पूरी होती है.

अविकानगर संस्थान के निदेशक ने उत्तम नस्ल के गाय के कृत्रिम गर्भाधान के लिए जो सीमन उपलब्ध कराया है, वह आने वाले समय में मालपुरा तहसील के किसानों के लिए दूध की पैदावार बढ़ाने में निश्चित ही सहायक सिद्ध होगा.

वे संस्थान के वैज्ञानिकों से यह भी निवेदन करते हैं कि यह जो गाय और अन्य आवारा जानवर हैं, इन का भी कुछ वैज्ञानिक तरीके से ऐसा उपाय किया जाए कि यह देश की अर्थव्यवस्था में काम आए.

भारतीय किसान संघ के संगठन मंत्री दिनेश कुलकर्णी ने संस्थान के निदेशक को धन्यवाद देते हुए बताया कि आप भेड़, बकरी व खरगोश पर काम कर रहे हैं. साथ ही, गांव की आवश्यकताओं को देखते हुए आप ने भैंस एवं गाय पर भी काम किया. इस प्रयास से गोवंशपालन भविष्य में लोगों को रोजगार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा.

उन्होंने उम्मीद जताई कि पशुधन के माध्यम से निश्चित ही गांव की अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में संस्थान अपना बेहतर योगदान देगा.

उन्होंने आगे कहा कि खेती व पशुपालन से संबंधित जो भी वर्तमान समस्याएं हैं, उन को कम करने के लिए हमें दोबारा से जैविक खेती अपनानी पड़ेगी, जिस के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से होने वाले विभिन्न दुष्परिणामों से बचा जा सकेगा.

डा. अरुण कुमार तोमर, निदेशक, भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर, डा. सत्यवीर सिंह डांगी, प्रधान अन्वेषक, फार्मर फर्स्ट परियोजना, डा. पीपी रोहिल्ला, प्रधान वैज्ञानिक, अटारी, जोधपुर, डा. एनवी पाटिल, पूर्व निदेशक, केंद्रीय गोवंश संस्थान, मेरठ, टोडाराय सिंह, मालपुरा के विधायक, कन्हैया लाल चौधरी, सकराम चोपड़ा, प्रधान मालपुरा और गोपाल गुर्जर, पूर्व प्रधान, मालपुरा ने कार्यक्रम में भाग ले कर यहां उपस्थित किसानों को संबोधित किया.

अविशान भेड़पालन इकाई को गांव में स्थापित करने के लिए 2 प्रगतिशील किसान सुरेंद्र सिंह अवाना, बैरानाबिचुन, तहसील मोजमाबाद, जिला जयपुर एवं सतपाल सिंह चुंडावत, राजसमंद के साथ संस्थान ने एमओयू पर हस्ताक्षर किए. इस के माध्यम से अविशान भेड़पालन इकाई संस्थान द्वारा उपलब्ध कराई जाएगी, साथ ही संस्थान के वैज्ञानिकों की देखरेख में वैज्ञानिक तरीके से अविशान भेड़ को देश के किसानों तक पहुंचाया जाएगा.

मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए कल्चरल प्रोग्राम

मेरठ : श्री अन्न अर्थात मोटे अनाज का महत्व बहुत अधिक है. इसे हमें अपने भोजन में शामिल करना चाहिए, क्योंकि पौष्टिक गुणों के कारण आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस को सुपरफूड या न्यूट्री सीरियल्स के नाम से जाना जाता है. मोटे अनाज की फसलों को कम उपजाऊ भूमि पर कम मात्रा में जल उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग कर के उगाया जा सकता है.

कुलपति डा. केके सिंह ने कहा कि मोटे अनाज की खेती किसानों को कम लागत में बेहतर आमदनी प्राप्त करने का एक अच्छा स्रोत भी प्रदान करती है. मोटे अनाज पोषक और आर्थिक सुरक्षा देने के साथसाथ जलवायु सुरक्षा के लिए भी अनुकूल हैं, क्योंकि यह कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में मदद करता है. इस में ग्लूटेनमुक्त और कम होने के कारण इस को मधुमेह से पीड़ित लोग व मोटापे की रोकथाम के लिए बेहतर विकल्प के रूप में उपयोग में लाते हैं.

उन्होंने अपने संबोधन में बताया कि विश्व में मोटे अनाजों का सब से बड़ा उत्पादक हमारा देश भारत ही है. देश में मोटे अनाजों की कुल पैदावार में सब से बड़ा हिस्सा बाजरा, ज्वार और रागी का है. इन में से बाजरा और ज्वार की विश्व में कुल पैदावार का लगभग 19 फीसदी हिस्सा भारत में पैदा किया जाता है. भारत के मोटे अनाज की पैदावार वाले प्रमुख राज्यों देखा जाए, तो लगातार मोटे अनाजों की मांग बढ़ती जा रही है.

सहायक महानिदेशक बीज भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली डा. डीके यादव ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा कि मोटे अनाज की खेती कब और कैसे की जाए और इस से किस प्रकार से अच्छा गुणवत्तायुक्त उत्पादन लिया जा सकता है विषय पर अपने विचार रखे.

कार्यक्रम अधिकारी शिवनंदन लाल ने अपने संबोधन में कहा कि पूरे देश में मोटे अनाजों की खेती और जी-20 की उपयोगिता को देखते हुए इस तरह के कार्यक्रमों का आकाशवाणी द्वारा आयोजन किया जा रहा है. इस आयोजन में लोक नृत्य एवं लोक संगीत को जनमानस तक पहुंचाने का काम किया जा रहा है, जिस से लोग अपने लोकसंगीत को भी ना भूलें और मोटे अनाज की खेती कर के अपने स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखें.

इस कार्यक्रम के संयोजक और कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक ट्रेनिंग और प्लेसमेंट प्रो. आरएस सेंगर ने सभी आगंतुकों का स्वागत किया और अपने संबोधन में कहा कि इस विश्वविद्यालय को एक समृद्धि और अभिवृद्धि के क्षेत्र में अनुसंधान, नई प्रौद्योगिकियों और ज्ञान के प्रसार के लिए एक प्रकाश स्तंभ के रूप में खड़ा किया गया है. हम एक ऐसे भविष्य की कल्पना करते हैं कि हमारे किसान नवीनतम प्रौद्योगिकी से समर्थ होंगे. हमारी प्रथाएं विकसित और जलवायु परिवर्तन के साथ समर्थ होंगी और हमारी ग्रामीण समुदाय व किसान समृद्धि से जीवनयापन जी सकेंगे. इस के लिए जरूरी है कि वह नईनई तकनीकों का समावेश करें, जिस से उन को कम क्षेत्रफल में अधिक से अधिक उत्पादन मिल सके और उन की आर्थिक स्थिति अच्छी हो सके.

आकाशवाणी के कार्यक्रम प्रमुख मनोहर सिंह रावत ने विशिष्ट अतिथि के रूप में बोलते हुए बताया कि आकाशवाणी कार्यक्रम युवाओं के बीच में जी-20 देशों की भागीदारी के साथ मोटे अनाज के उत्पादन और उस के प्रसंस्करण एवं विस्तार के लिए कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं और आगामी समय में आकाशवाणी द्वारा विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथसाथ सीमाओं पर जा कर भी इस तरह के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिस से उस क्षेत्र के किसान एवं विद्यार्थी ज्यादा से ज्यादा मोटे अनाज की खेती कर के प्रसंस्करण, भंडारण और वित्तीय उत्पाद को बना कर बेचने की व्यवस्था करेंगे, जिस से लोगों के बीच मोटे अनाज की उपयोगिता और बढ़ सके और वह स्वस्थ रह सके.

डा. देश दीप, डा. नीलेश कपूर, डा. पंकज चौहान, डा. पुरुषोत्तम और विभिन्न महाविद्यालयों के लगभग 360 छात्रछात्राएं कार्यक्रम में मौजूद रहे.

इस अवसर पर आकाशवाणी केंद्र के कार्यक्रम अधिकारी प्रमोद कुमार, कृषि विश्वविद्यालय के कुलसचिव प्रो. रामजी सिंह, निदेशक शोध प्रो. अनिल सिरोही, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान से आए हुए प्रो. संजय राठौर, अधिष्ठाता कृषि डा. विवेक धामा, डा. रविंद्र कुमार, डा. विजेंद्र सिंह, डा. डीके सिंह, डा. कमल खिलाड़ी, डा. विपिन कुमार, डा. शैलजा कटोच, डा. शालिनी गुप्ता, डा. वैशाली, डा. देश दीप, डा. नीलेश कपूर, डा. पंकज चौहान, डा. पुरुषोत्तम और विभिन्न महाविद्यालयों के लगभग 360 छात्रछात्राएं कार्यक्रम में मौजूद रहे.

कृषि विश्वविद्यालय में मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए और उस के उत्पादन को बढ़ाने के लिए रागिनी का आयोजन किया गया. लोक कलाकारों ने लोकसंगीत के माध्यम से मोटे अनाज के उत्पादन उस की उत्पादकता और आय बढ़ाने का संदेश दिया. रागिनी के द्वारा लोगों को समझाया कि किस का उत्पादन बढ़ाएं, जिस से सभी की आय बढ़ सकेगी.

इस कार्यक्रम में आकाशवाणी की 2 रागिनी पार्टियों ने हिस्सा लिया, जिस में कंपटीशन किया गया. प्रथम पार्टी अमित तेवतिया और पूजा शर्मा के द्वारा रागिनी प्रस्तुत की गई और दूसरी पार्टी प्रीति चौधरी की थी, जिस ने अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए.

Millets

इस एकदिवसीय कार्यशाला के दौरान छात्रों द्वारा मोटे अनाज के माध्यम से रंगोली बनाई गई और मोटे अनाज के द्वारा पोस्टों को बनाया गया.

इस प्रतियोगिता में छात्रछात्राओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और उन की टीमों ने मोटे अनाज के माध्यम से विभिन्न प्रकार की रंगोली और पोस्टों को तैयार किया.

इकोफ्रेंडली तकनीकी और पर्यावरण मित्रता को बढ़ावा देने के लिए मंच पर मौजूद देश के विभिन्न जगहों से आए हुए आगंतुकों का स्वागत तुलसी का पौधा भेंट कर के किया गया.

किसान श्रीधर पांडेय की पहल से काला नमक धान को मिली वैश्विक पहचान

सुगंधित धान काला नमक अपने न्यूट्रेशन वैल्यू और एरोमा के चलते पूरी दुनिया में अहम पहचान रखता है. वैसे तो काला नमक धान की खेती देश के अलगअलग हिस्सों में व्यावसायिक लेवल पर किए जाने के प्रयास जारी हैं, लेकिन इस की मूल पहचान उत्तर प्रदेश के नेपाल बार्डर से सटे जिले सिद्धार्थ नगर से है, क्योंकि यहां के बर्डपुर ब्लौक से ले कर जनपद के कई ब्लौकों की विशेष जलवायु के चलते काला नमक चावल की गुणवत्ता, स्वाद और महक दूसरे जिलों से कई गुना बेहतर है. इसलिए सिद्धार्थ नगर जिले के काला नमक चावल की मांग देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी खूब है.

कुछ साल पहले तक सिद्धार्थ नगर जिले के काला नमक धान की खूबी को देखते हुए बाहर के व्यापारी फसल कटने से पहले जिले में डेरा जमाए बैठे रहते थे और किसानों से औनेपौने दामों पर खरीदारी कर काला नमक चावल को औनलाइन और औफलाइन लगभग 300 रुपए प्रति किलोग्राम तक तक बेचते थे, जबकि यही व्यापारी किसानों से 70 से 100 रुपए प्रति किलोग्राम के मामूली रेट में खरीद रहे थे.

‘एक जिला एक उत्पाद’ के तहत काला नमक धान को मिली पहचान

सिद्धार्थ नगर जिले में ऐसे हजारों किसान थे, जिन के काला नमक चावल की खूबी के हिसाब से किसानों को वाजिब रेट नहीं मिल पा रहे थे. उन्हीं में से एक उस्का बाजार निवासी श्रीधर पांडेय भी काला नमक चावल के उचित रेट न मिलने से परेशान थे. वे अकसर जिले के आला अधिकारियों की बैठकों में काला नमक धान को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए अपनी आवाज मुखर करते रहे. आखिर जिले के आला अधिकारियों ने किसान श्रीधर पांडेय की बात को गंभीरता से लिया और सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘एक जिला एक उत्पाद’ के तहत काला नमक धान को शामिल करने की संस्तुति भेजी. सरकार ने जिले की विशेष पहचान काला नमक चावल को आखिर अपनी मुहर लगा दी.

किसान श्रीधर पांडेय की इस मांग के पूरा होने से जिले की माटी में उपजी काला नमक चावल की ख्याति दिनप्रतिदिन बढ़ती गई और क्योंकि ‘एक जिला एक उत्पाद’ में चयन होने के बाद अब इसे वैश्विक स्तर पर भी पहचान मिलने लगी.

एक किसान की पहल ने आढ़तियों से दिलाया छुटकारा

काला नमक धान के ‘एक जिला एक उत्पाद’ में शामिल कराए जाने के बाद अब किसान श्रीधर पांडेय जिले के काला नमक धान उत्पादक किसानों को वाजिब रेट दिलाने की मुहिम में जुट चुके थे. इस के लिए उन्होंने सब से पहले काला नमक धान की खेती करने वाले किसानों को एकजुट करना शुरू किया और इस के बाजार में वाजिब रेट और उस की खूबी को बताया, तो जनपद के किसानों ने श्रीधर पांडेय को अपना अगुआ बनाते हुए काला नमक चावल की वाजिब कीमत दिलाए जाने के लिए पहल करने का अनुरोध किया.

इस के बाद श्रीधर पांडेय ने किसानों को एकजुट कर किसानों की अगुआई वाली एक फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी बनाने का निर्णय लिया और किसानों की सहमति से काला नमक धान को ले कर कपिलवस्तु फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड बना डाली.

किसानों की इस कंपनी के बन जाने से काला नमक धान की खेती करने वाले किसान सीधे अपने चावल की बिक्री कंपनी को करने लगे, जिस से उन का मुनाफा दोगुना से भी ज्यादा बढ़ गया.

जो किसान पहले अपने देशी काला नमक चावल को मुश्किल से 90 रुपया प्रति किलोग्राम तक बेच पाते थे, वही अब श्रीधर पांडेय की कंपनी से जुड़ने पर 160 रुपया प्रति किलोग्राम तक अपने चावल बेचने में कामयाब हो रहे हैं. इस से जो आढ़ती किसानों से जिस दाम पर चावल खरीद रहे थे, उन का वर्चस्व टूट गया.

औनलाइन ईकौमर्स कंपनियों से सप्लाई

श्रीधर पांडेय काला नमक चावल के वाजिब रेट दिलाने के अपने संकल्प पर आगे बढ़ते हुए औनलाइन ईकामर्स कंपनी फ्लिपकार्ट से भी गठजोड़ करने में कामयाब रहे. उन्होंने बीते 2 साल अपर मुख्य सचिव रहे नवनीत सहगल के साथ वर्चुअल कार्यक्रम में उस समय के जिलाधिकारी दीपक मीणा की मौजूदगी में 250 किलोग्राम की पहली खेप को हरी झंडी दिखा कर भेजा था. इस के बाद किसानों के काला नमक चावल की मांग में जबरदस्त उछाल देखा गया.

श्रीधर पांडेय का कहना है कि जो किसान अपने काला नमक चावल को औनेपौने दाम में बेचने को मजबूर थे, उन्हीं के चावल अब फ्लिपकार्ट के जरीए दुनियाभर में पहुंच रहा है.

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3 बार मुख्यमंत्री से मिल चुका सम्मान

जनपद सिद्धार्थ नगर के ‘एक जिला एक उत्पाद’ में शामिल काला नमक चावल को वैश्विक पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान के लिए मुख्ययमंत्री योगी आदित्यनाथ के हाथों 3 बार सम्मानित होने का मौका मिल चुका है.

जनपद के इस प्रगतिशील किसान की पहल मेहनत, लगन और जुनून के चलते काला नमक चावल आज पूरी दुनिया में अपनी खुशबू बिखेर रहा है.

श्रीधर पांडेय ने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत में उन के जन्मस्थान उस्का बाजार से जलमार्ग (कूड़ा नदी) से नाव द्वारा विदेशों को चावल निर्यात किया जाता था. लेकिन आजादी के 5 दशक बाद भी काला नमक चावल एक दायरे में सिमट कर रह गया था. इस को फिर से उस की असल पहचान दिलाने के लिए श्रीधर पांडेय ने जिले से ले कर प्रदेश और देश स्तर पर इस की वकालत शुरू की. साथ ही, उन्होंने काला नमक धान के बीज की आनुवांशिक शुद्धता को बनाए रखने के लिए बीज संरक्षण एवं उत्पादन के लिए किसानों के साथ सघन प्रयास शुरू किया है, जिस के चलते वर्ष 2018 में काला नमक चावल फिर से पुनः केंद्र और राज्य सरकार के प्रमुख ध्यानाकर्षण का केंद्र बन गया और ‘एक जिला एक उत्पाद’ जैसी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना का अंग बन कर सिद्धार्थ नगर जनपद के मुख्य उत्पाद के रूप में चुना गया है.

इस सफलता के बाद 2 मई, 2018 को सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान, लखनऊ में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान युवा समाजसेवी श्रीधर पांडेय को पहली बार सम्मानित होने मौका मिला था. इस के बाद काला नमक धान के लिए किए जा रहे उन के प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री के हाथों 3 बार पुरस्कृत होने का अवसर मिल चुका है.

जीआई टैगिंग से मिली विशेष पहचान

श्रीधर पांडेय ने बताया कि काला नमक धान में प्रोटीन, आयरन और जिंक जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इस में जहां जिंक चार गुना, आयरन तिगुना और प्रोटीन दोगुना अन्य किस्मों की तुलना में अधिक पाया जाता है. यही वजह है कि काला नमक चावल को कुपोषण दूर करने के लिए भी खाया जाता है.

जनपद के किसानों द्वारा बनाए गए एफपीओ द्वारा लगातार काला नमक धान की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, जिस से उन की आमदनी को बढ़ाया जा सके, क्योंकि काला नमक चावल की ऊंची कीमत आम चावल के मुकाबले चार गुना तक अधिक मिलती है और चावल बेचने के लिए भी किसानों को परेशान नहीं होना पड़ता है.

किसान श्रीधर पांडेय ने बताया कि काला नमक धान के लिए 11 जिलों को जीआई टैग मिला था. लेकिन इस बार यह जीआई टैग किसानों के नाम से स्वयं होगा. इस से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में काला नमक चावल की कीमत और मांग बढ़ जाएगी.

उन्होंने बताया कि भौगोलिक संकेत यानी जीआई टैग एक प्रतीक है, जो मुख्य रूप से किसी उत्पाद को उस के मूल क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है.

उन्होंने जानकारी दी कि जीआई टैग बताता है कि विशेष उत्पाद किस जगह पैदा होता है. जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है, जो अपने क्षेत्र की विशेषता रखते हैं. काला नमक धान भी उन्हीं में से एक है.

उन्होंने बताया कि भारत द्वारा संसद में वर्ष 1999 में रजिस्ट्रेशन एंड प्रोटेक्शन एक्ट के तहत ‘जियोग्राफिकल इंडिकेशंस औफ गुड्स’ लागू किया था, जिस के तहत ही जीआई टैगिंग की जाती है.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में एप व पोर्टल लांच

नई दिल्ली : 21 जुलाई 2023. केंद्र की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) में किसानों को और अधिक सहूलियत देते हुए सटीक उपज अनुमान एवं पंजीकरण प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने के लिए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने तीन महत्वपूर्ण पहलों – येस्टैक (प्रौद्योगिकी पर आधारित उपज अनुमान प्रणाली), विंड्स (मौसम सूचना डेटा प्रणाली) और एआईडीई (मध्यस्थ नामांकन के लिए एप) को किसानों को समर्पित किया. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू विशेष रूप से उपस्थित थे.

इस मौके पर केंद्र सरकार ने महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय के तहत राज्यांश लंबित होने से किसानों को क्लेम मिलने में होने वाली कठिनाइयों से राहत देते हुए 8 राज्यों के लगभग 5.60 लाख लाभार्थी किसानों को अपने स्तर पर 258 करोड़ रुपए बतौर क्लेम जारी किए. इन में गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, असम, ओडिशा व आंध्र प्रदेश के किसान शामिल हैं.

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कार्यक्रम में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि कृषि का जीवन व देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है. कृषि के समक्ष कितनी भी अनुकूलता हो, इस के बाद भी किसान को प्रकृति पर निर्भर करना पड़ता है. अगर प्रकृति नाराज हो जाए तो किसान अपने श्रम से इस की भरपाई नहीं कर पाता है. इसलिए यह जरूरी समझा गया कि प्राकृतिक प्रकोप से होने वाले नुकसान की भरपाई की व्यवस्था होनी चाहिए, इसीलिए सरकार द्वारा फसल बीमा योजना लागू करते हुए व इसे किसान हितैषी बनाते हुए इस के जरीए किसानों के नुकसान की भरपाई की जा रही है.

उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार कृषि विकास के लिए प्रतिबद्ध है, इसलिए बजट में कमी नहीं आती है, लेकिन कभी राज्य सरकारों के हिस्से का प्रीमियम जमा नहीं होता है, तो ऐसे में किसानों को दिक्कत नहीं होने देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा समय पर जमा कराई जाने वाली अपनी प्रीमियम से ही किसानों को मुआवजा देने का केंद्र ने फैसला लिया है, फिर भले ही तब तक राज्य सरकार द्वारा प्रीमियम जमा हो या नहीं.

इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कामकाज संभालते ही गांव, गरीब और किसान तीनों पर फोकस किया और अनेक योजनाओं के माध्यम से प्रयत्न किया गया है कि गांवों के जीवन में बदलाव आए, गरीबों का जीवन बदले और किसान समृद्ध हों. इस दिशा में कृषि मंत्रालय के जरीए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जैसी अनेक योजनाएं बनाई गईं. कृषि क्षेत्र में तकनीक के प्रयोग पर बल दिया गया. अच्छे खादबीज की समय पर उपलब्धता सुनिश्चित की गई.

कृषि के बजट को देखें, तो वर्ष 2013 की तुलना में लगभग पांच गुना की वृद्धि की गई. इन का अच्छा नतीजा भी दिख रहा है. हम खाद्यान्न, बागबानी, दुग्ध उत्पादन में दुनिया में अच्छी अवस्था में हैं. इस में तकनीक एवं कृषि वैज्ञानिकों के अनुसंधान का भी महत्वपूर्ण योगदान है.

मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आगे कहा कि आज तकनीक का उपयोग कर के हर किसान तक हर योजना की पहुंच हो सकती है व आम किसान लाभ ले सकते हैं, इसलिए कृषि मंत्रालय ने बहुतेरे काम करते हुए इंश्योरेंस मौड्यूल भी बनाएं, राज्य सरकारों को जोड़ा गया व फसल बीमा योजना को और कारगर बनाने की दृष्टि से मैनुअल, पोर्टल व एप लांच किया गया है.

उन्होंने कहा कि हम सोचते थे कि मौसम की सही सूचना क्यों नहीं आ पाती है. अगर सूचना मिल भी जाए, तो नीचे तक पहुंचाने का साधन नहीं होता था, इसलिए कोशिश की गई कि तकनीक का प्रयोग कर के इस की पहुंच गांवगांव तक बनाई जाए. हर गांव में रेन वाच टावर हो, विकासखंड स्तर पर वेदर स्टेशन आ सकें, ताकि मौसम की जानकारी विभाग व सरकार को मिल सके. जलवायु परिवर्तन के दौर में यह जरूरी भी है. इसी तरह यह भी सुनिश्चित हुआ है कि एक व्यक्ति इंश्योरेंस के लिए मोबाइल के माध्यम से गांवगांव व घरघर जा सकता है. ये सुविधाएं सिर्फ प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में ही नहीं, बल्कि कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने वाली हैं. आने वाले कल में भी ऐसे ही नवाचार होते रहे, नई पीढ़ी कृषि क्षेत्र की तरफ आकर्षित हो, कृषि का क्षेत्र रोजगार के अवसरों का बड़ा स्रोत बने, इस दिशा में और नवाचार करने की जरूरत है.

पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि किसानों के जीवन में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की इन सुविधाओं से बहुत बड़ा बदलाव आएगा. हरित क्रांति के बाद, पिछले 9 साल में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में हर क्षेत्र में अद्भुत काम हुआ है और हम एक लीडिंग नेशन के रूप में उभरे हैं. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से कृषि क्षेत्र में किए जा रहे परिवर्तन बहुत महत्वपूर्ण हैं. जलवायु परिवर्तन के दौर में इन सब की महत्ता और भी ज्यादा है. भविष्य की चुनौतियों के मद्देनजर हमें साइंटिफिक मैकेनिज्म तैयार करना होगा.

उन्होंने उम्मीद जताई कि कृषि मंत्रालय के साथ मिल कर उन का मंत्रालय जलवायु परिवर्तन से उपजने वाली चुनौतियों के समाधान के लिए बेहतर कार्य कर सकेगा.

उन्होंने आगे कहा कि हमारे वैज्ञानिक बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. देश में सभी क्षेत्रों में उन के अनुसंधान की शतप्रतिशत उपयोगिता कैसे हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए.

केंद्रीय कृषि सचिव मनोज आहूजा, मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक डा. मृत्युंजय महापात्र व पीएमएफबीवाई के सीईओ और कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव रितेश चौहान ने भी संबोधित किया.

कार्यक्रम में महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र के निदेशक डा. सीएस मूर्ति और कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, पृथ्वी, विज्ञान मंत्रालय एवं बीमा कंपनियों के अधिकारी और अन्य गणमान्य उपस्थित थे.

नवाचारों से लाभ-

येस्टैक उन्नत तकनीकी प्रणाली है, जो सटीक उपज गणना में राज्यों की मदद करेगी. राज्यों में फसल उपज विवादों व उस के बाद पात्र किसानों को मुआवजा देने में होने वाली देरी से जुड़ी समस्याओं का समाधान करने के लिए केंद्र ने इस प्रणाली को लागू करने का निर्णय लिया है. येस्टैक प्रणाली के अंतर्गत रिमोट सेंसिंग जैसी आधुनिक तकनीकों के जरीए सटीक फसल अनुमान लगाने, पारदर्शी सटीक उपज आकलन सुनिश्चित करने पर काम किया जाना है.

यह प्रणाली उपज संबंधी विवाद प्रभावी रूप से हल करने व त्वरित दावा भुगतान सुविधा प्रदान करने में सक्षम होगी. विंड्स के माध्यम से किसानों के लिए मौसम संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी व आंकड़े उपलब्ध हो पाएंगे. इस से योजना के सभी हितधारकों को लाभ होगा, विशेषतः किसान सूचित निर्णय लेने में सक्षम होंगे. अपर्याप्त बुनियादी ढांचे से सटीक मौसम संबंधी डेटा प्राप्त करने संबंधी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए विंड्स पहल के अंतर्गत मौसम केंद्रों के सशक्त नेटवर्क की स्थापना पर जोर दिया जा रहा है. इस पहल द्वारा लक्ष्य ब्लौक व ग्राम पंचायत स्तर पर मौसम केंद्रों का व्यापक नेटवर्क स्थापित करना है.

यह रणनीतिक दृष्टिकोण सटीक व समय पर मौसम डेटा तक व्यापक पहुंच सुनिश्चित करेगा. लक्ष्य, मौसम की जानकारी की उपलब्धता में अंतर कम करना व जमीनी स्तर पर निर्णयकर्ताओं, किसानों व हितधारकों को सशक्त बनाना है.

मौसम केंद्रों का यह व्यापक नेटवर्क मौसम के पैटर्न की सटीक निगरानी करने, प्रभावी योजना बनाने, जोखिम मूल्यांकन व मौसम संबंधी चुनौतियों का समय पर जवाब देने में सक्षम बनाएगा.

एआईडीई एप से किसानों की नामांकन प्रक्रिया में क्रांतिकारी बदलाव आएगा, जिस से किसान घर बैठे या खेत से भी, बीमा कंपनियों के प्रतिनिधियों के जरीए पंजीकरण आसानी से पूरा कर सकेंगे.

लंबी कतारों, कागजी खानापूर्ति खत्म कर के यह निर्णय सभी किसानों के लिए नामांकन को सुलभ बनाता है, जिस से सुनिश्चित होता है कि वे आसानी से बीमा कवरेज प्राप्त कर सकें. उपयोगकर्ता के अनुकूल एप कृषि क्षेत्र में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देते हुए अनुरूप कवरेज विकल्प प्रदान करता है. ये पहल किसानों को समर्थन देने व किसानों की आजीविका प्रभावी ढंग से सुरक्षित करने के लिए बीमा नामांकन में क्रांतिकारी बदलाव लाने की सरकार की प्रतिबद्धता रेखांकित करती है. इन सभी पहलों से कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा सुनिश्चित किया है कि किसानों को उन के घर पर फसल बीमा लेने, पोलिसी विवरण प्राप्त करने की सुविधा मिले, किसान मोबाइल एप से ही फसल नुकसान की सूचना दे सकें, उपज, दावा आंकलन की प्रक्रिया सटीक व पारदर्शी हो व किसानों को समय पर क्लेम पेमेंट मिले.

इंग्लैंड के होटल में मिलेगा उत्तराखंड का श्रीअन्न

नई दिल्ली : 18 जुलाई, 2023. उत्तराखंड के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्री गणेश जोशी ने नई दिल्ली में ललित सूरी हास्पिटैलिटी ग्रुप द्वारा होटल ललित में आयोजित ‘श्रीअन्न-द हेल्थी मिलेट’ कार्यक्रम का शुभारंभ किया. इस के साथ ही 12 अन्य प्रदेशों में भी इस कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया, जिस में मुख्य रूप से कर्नाटक, श्रीनगर, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, गोवा, चंडीगढ़, महाराष्ट्र सम्मिलित हैं.

अपने संबोधन में उत्तराखंड के कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि श्रीअन्न यानी मोटा अनाज उत्तराखंड की परंपरागत खेती में है और स्वास्थ्य की दृष्टि से श्रीअन्न बेहद लाभदायक है.

उन्होंने आगे कहा कि उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में मिलेट्स के प्रसारप्रसार और श्रीअन्न की उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के लिए प्रदेश में मिलेट मिशन का संचालन किया गया है. इस के लिए सरकार ने बजट में 73 करोड़ रुपए की व्यवस्था की गई है.

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कृषि मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि आज उत्तराखंड का मिलेट एक ब्रांड के रूप में स्थापित हो चुका है. मिलेट मिशन के माध्यम से श्रीअन्न को सार्वजनिक वितरण प्रणाली में वितरित किया जाएगा और मिड डे मील में भी इस का उपयोग किया जाएगा. साथ ही, स्वयंसहायता समूहों की बहनों द्वारा किसानों से मोटा अनाज खरीदा जाएगा, जिस के लिए उन्हें 1.50 रुपए प्रति किलोग्राम इंसेंटिव दिया जाएगा.

उन्होंने बताया कि इस के दो फायदे होंगे, जहां एक ओर हमारी स्वयंसहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को लखपति दीदी बनाने के संकल्प को मजबूती मिलेगी, वहीं उत्तराखंड के मिलेट्स की देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी ख्याति प्राप्त करेगा.

कृषि मंत्री गणेश जोशी ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रदेश के मिलेट्स के वृहद प्रचारप्रसार के लिए उत्तराखंड में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में राज्य सरकार ने देहरादून में श्रीअन्न महोत्सव और मसूरी, दिल्ली व गोवा में कार्यक्रमों का आयोजन किया.

मंत्री गणेश ने यह भी कहा कि श्रीअन्न को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार निरंतर प्रयास कर रही है. निश्चित ही इस प्रकार के आयोजनों से उत्तराखंड के मिलेट को आने वाले समय में अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिलेगी, जो किसानों की आय दोगुनी करने के संकल्प को भी मजबूती मिलेगी.

इस अवसर पर उत्तराखंड सरकार और ललित सूरी हास्पिटैलिटी ग्रुप के मध्य श्रीअन्न के प्रचारप्रसार और विपणन हेतु सैद्धांतिक सहमति भी बनी.

गौरतलब है कि नई दिल्ली स्थित ललित सूरी हास्पिटैलिटी ग्रुप द्वारा अगले एक माह तक मिलेट्स श्रीअन्न के प्रचारप्रसार हेतु देश के 12 राज्यों में और एक इंगलैंड में स्थापित अपने होटल के मीनू में उत्तराखंड के श्रीअन्न को शामिल किया गया है.

इस कार्यक्रम में उत्तराखंड जैविक बोर्ड और मंडी द्वारा उत्तराखंड के स्थानीय उत्पाद के आउटलेट भी लगाए गए, जिस में उत्तराखंड के कई किसानों ने भी कार्यक्रम में प्रतिभाग किया.