औषधीय एवं सगंध पौधों की उन्नत प्रौद्योगिकी पर ट्रेनिंग के लिए करें आवेदन

लखनऊ : सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान, लखनऊ द्वारा “आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण औषधीय एवं सगंध पौधों की उन्नत प्रौद्योगिकी” विषय पर भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक के सहयोग से 23-25 अगस्त, 2023 के मध्य एक प्रशिक्षण-सह-प्रदर्शन कार्यक्रम आयोजित कर रहा है.

इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से सगंध घास, खस, नीबूघास, रोशाघास, मिंट, तुलसी, जिरेनियम, अश्वगंधा, कालमेघ, पचौली एवं कैमोमिल इत्यादि फसलों की कृषि प्रौद्योगिकियों एवं आसवन विधियों की विस्तृत जानकारी दी जाएगी.

इस कार्यक्रम में व्याख्यान के साथ ही साथ उन के रोपण विधियों पर प्रदर्शन भी किया जाएगा.

प्रशिक्षण कार्यक्रम में औषधीय एवं सगंध पौधों की गुणवत्ता की जांच और उन के बाजार की भी जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी.

इस कार्यक्रम में कोई भी किसान, प्रसार कार्यकर्ता, उद्यमी एवं अन्य, जो भी इन विषयों की जानकारी प्राप्त करने का इच्छुक हो, भाग ले सकते हैं. इस ट्रेनिंl में भाग लेने के लिए 3,000 रुपए का शुल्क Director, CIMAP, Lucknow को भारतीय स्टेट बैंक, लखनऊ की मुख्य शाखा में खाता संख्या 30267691783, IFSC कोड SBIN0000125, MICR Code 226002002 में 19 जुलाई, 2023 तक भेज कर अपना पंजीकरण सुनिश्चित करा सकते हैं और इस का विस्तृत प्रमाण, आवेदनपत्र एवं एक पहचानपत्र के साथ training@cimap.res.in पर भेजा जा सकता है. इस शुल्क में पंजीकरण सामग्री एवं दोपहर का शाकाहारी भोजन शामिल है. प्रतिभागी को अपने रहने की व्यवस्था स्वयं करनी होगी. पंजीकरण प्रथम आगत- प्रथम स्वागत के आधार पर किया जाएगा.

अधिक जानकारी के लिए 0822-2718694,606, 598, 637, 699, 596 पर संपर्क कर सकते हैं. इस ट्रेनिंग के लिए सीटों की कुल संख्या 60 प्रतिभागी तक सीमित है. प्रतिभागियों की संख्या के आधार पर पंजीकरण अंतिम तिथि से पहले भी बंद किए जा सकते हैं.

‘रिपोर्ट फिश डिजीज’ एप लौंच

नई दिल्ली : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरषोत्तम रूपाला ने नई दिल्ली में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन की उपस्थिति में ‘रिपोर्ट फिश डिजीज’ नाम से एक एंड्रायड आधारित मोबाइल एप लौंच किया.

इस दौरान जेएन स्वैन, सचिव, मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, डा. अभिलक्ष लिखी, ओएसडी, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और डा. हिमांशु पाठक, सचिव, डीएआरई एवं महानिदेशक, आईसीएआर, नई दिल्ली भी मौजूद थे.

“डिजिटल इंडिया” के दृष्टिकोण में योगदान करते हुए, ‘रिपोर्ट फिश डिजीज’ को आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो औफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीएफजीआर), लखनऊ द्वारा विकसित किया गया है, इसीलिए जलीय पशु रोगों के लिए राष्ट्रीय निगरानी कार्यक्रम के तहत लौंच किया गया है.

मत्स्यपालन विभाग ने पीएमएमएसवाई योजना के तहत एनएसपीएएडी के दूसरे चरण के कार्यान्वयन के लिए 3 साल की अवधि के लिए 33.78 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं. इस एप के लौंच के साथ एनएसपीएएडी पारदर्शी रिपोर्टिंग के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने में सक्षम हो गया. एप कनेक्ट करने के लिए एक सेंट्रल मंच होगा और मछली किसानों, क्षेत्रस्तरीय अधिकारियों और मछली स्वास्थ्य विशेषज्ञों को निर्बाध रूप से एकीकृत करेगा. किसानों के सामने आने वाली बीमारी की समस्या, जिस पर पहले ध्यान नहीं दिया जाता था या रिपोर्ट नहीं की जाती थी, वह विशेषज्ञों तक पहुंच जाएगी और कम समय में समस्या का समाधान कुशल तरीके से किया जाएगा.

यह होगा लाभ

इस एप का उपयोग करने वाले किसान सीधे जिला मत्स्य अधिकारियों और वैज्ञानिकों से जुड़ सकेंगे. किसान और हितधारक इस एप के माध्यम से अपने खेतों पर फिनफिश, झींगा और मोलस्क की बीमारियों की स्वयं रिपोर्टिंग कर सकते हैं, जिस के लिए हमारे वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों द्वारा किसानों को उसी एप के माध्यम से वैज्ञानिक तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी.

किसानों को प्रदान की जा रही प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और वैज्ञानिक सलाह से बीमारियों के कारण होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी और देश में मछली किसानों द्वारा बीमारी की रिपोर्टिंग को और मजबूत किया जाएगा.

वर्षा जल संरक्षण इकाइयों का उद्घाटन , होगा 1 करोड़ लीटर पानी रिचार्ज

जयपुर: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना द्वारा गोदित गांव गुडली में 10 वर्षा जल संरक्षण इकाई का उद्घाटन डॉ मृदुला देवी, निदेशक, केंद्रीय कृषिरत  महिला संस्थान द्वारा किया गया. यह वर्षा जल संरक्षण इकाइयाँ स्थानीय गांव में प्रदूषित हुए जल को शुद्ध करने के उद्देश्य से परियोजना द्वारा स्थापित की  गई है. इसके साथ ही गांव में बेरोजगार महिलाओं को रोजगार हेतु मुर्गी पालन को बढ़ावा देने के लिए 50 महिलाओं को चूजे वितरित किए गए, जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बने.

प्रत्येक वर्षा जल संरक्षण इकाई से 100000 लीटर वर्षा जल भू जल में रिचार्ज होगा जिसका बाजार मूल्य 20 लाख रूपये होता है . इस तरह इन सभी इकाइयों से होने वाले वर्षा जल जो रिचार्ज होगा उसका बाजार मूल्य एक करोड़ होता है. इससे सभी इकाइयों का भू जल शुद्ध भी होगा जिसकी यह नितांत आवश्यकता है.

यह जानकारी तकनीकी सहायक, नगर के वाटर हीरो डॉ पी सी जैन ने दी है. निदेशक ने महिलाओं को घर पर उद्यम शुरू कर आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित किया व उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए संभावित उद्यम के य द्वारा गत पांच वर्षों में स्थानीय गांव में हुए कार्यों का ब्यौरा प्रस्तुत किया एवं वर्षा जल संरक्षण इकाई स्थापित करने के उद्देश्य को बताया. साथ ही महिलाओं को मुर्गी पालन के लिए प्रेरित किया. डॉ गायत्री तिवारी ने अंत में धन्यवाद ज्ञापित किया. कार्यक्रम में डॉ सुधा बाबेल, डॉ हेमू राठौड़, डॉ विशाखा सिंह, डॉ स्नेहा जैन, डॉ सीमा डांगी चारु नागर व प्रियंका भाटी का सफल योगदान रहा.  कार्यक्रम में कुल 50 महिलाओं व 20 बच्चों ने भाग लिया.

कम लागत और जल संरक्षण के लिए सीधी बोआई है उपयोगी

सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय में पिछले दिनों अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलीपींस मनिला के 2 सदस्य दल डाक्टर अमिलिया हेनरी और डाक्टर जसवंत विश्वविद्यालय पहुंचे. इन्होंने फसल अनुसंधान केंद्र पर पहुंच कर परियोजना के अंतर्गत लगाए गए परीक्षणों की जांच की और वहां पर मृदा के परीक्षण और फील्ड की जांच की.

फिलीपींस से आए प्रतिनिधिमंडल ने कुलपति प्रो. केके सिंह से मुलाकात की और भविष्य में दोनों देशों के सहयोग से किए जाने वाले शोध कार्यों के बारे में चर्चा की.

कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफैसर केके सिंह ने कहा कि चावल उत्पादन के लिए सही विधि का चयन करना चाहे सीधी बीजारोपण विधि हो या नर्सरी विधि एक महत्वपूर्ण निर्णय है, जो कई कारकों पर निर्भर करता है. सीधी बीजारोपण विधि में लागत की बचत होती है और ट्रांसप्लांटिंग और अंकुर प्रबंधन के लिए कम श्रम प्रविष्टियां आवश्यक होती हैं.

कृषि विश्वविद्यालय ने फिलीपींस के बीच एक अनुबंध किया है, जिस में धान उत्पादन की तकनीकी एवं उस के विकास के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य किए जाएंगे.

परियोजना की मुख्य अन्वेषण डाक्टर शालिनी गुप्ता ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति के प्रयास से अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलीपींस के बीच इस बार एक अनुबंध हुआ है, जिस में शिक्षा शोध एवं प्रसार के कार्यों को बढ़ावा दिया जाएगा.

इस अंतर्राष्ट्रीय परियोजना की प्रधान अन्वेषक डाक्टर शालिनी गुप्ता ने यह भी बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए यह पहली परियोजना है, जिस के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान संस्थान फिलिपींस मनिला और यह कृषि विश्वविद्यालय मिल कर धान की स्क्रीनिंग और उन की उपयोगिता की जांच के लिए कार्य किया जाएगा. इस से यह पता चलाया जा सकेगा कि कौन से जर्म प्लाज्म पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए लाभकारी है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि कृषि विश्वविद्यालय में किए जा रहे इस प्रकार के अनुसंधान से सीधी बोआई की उपयोगिता का पता आसानी से लगाया जा सकेगा. उस के उपरांत उपयुक्त विधि का चयन करने से उत्पादन की संभावना को अधिकतम किया जा सकेगा.

उन्होंने कहा कि किसी दवाई से खरपतवार नियंत्रण में दिक्कतें आती हैं. खरपतवार खेत में अधिक हो जाता है. उस के नियंत्रण के लिए भी तकनीक विकसित करने पर विचार किया जाएगा. साथ ही साथ इस विधि से बोआई करने पर जल संरक्षण हो सकेगा.

उन्होंने आगे कहा कि इस प्रकार के अनुसंधान से चावल की उत्पादकता और उत्पादन को और भी अधिक बढ़ाया जा सकेगा.

डाक्टर शालिनी गुप्ता ने बताया कि इस परियोजना के अंतर्गत प्राप्त विभिन्न जर्म प्लाज्म की खेत में सीधी बोआई की गई है. इस परियोजना के अंतर्गत लगभग आधा एकड़ क्षेत्रफल में धान की विभिन्न प्रजातियों की सीधी बोआई की गई है. यहां पर जो जर्म प्लाज्म लगाया गया है, उस की गुणवत्ता की जांच की जाएगी. साथ ही, देखा जाएगा कि पश्चिम उत्तर प्रदेश के वातावरण में कौन सा जर्म प्लाज्म अच्छा उत्पादन देता है.

इस दौरान विश्वविद्यालय के निदेशक शोध प्रोफैसर अनिल सिरोही, निदेशक, ट्रेनिंग और प्लेसमेंट और विभागाध्यक्ष प्रोफैसर आरएस सेंगर, परियोजना के सहअन्वेषक डाक्टर आदेश कुमार और एमएससी और पीएचडी के शोध छात्र भी मौजूद रहे.

संभागीय किसान महोत्सव में एमपीयूएटी :  किसानों के महाकुंभ में बही एमपीयूएटी की ज्ञानगंगा

उदयपुर : 26 जून 2023. उदयपुर के बलीचा स्थित कृषि उपज मंडी सबयार्ड में आयोजित 2 दिवसीय संभाग स्तरीय किसान महोत्सव का आगाज धूमधाम से हुआ. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस किसान महोत्सव का उद्घाटन किया. संभाग स्तरीय किसानों के महाकुंभ में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय की 20 से अधिक स्टाल लगाई गई, जिन पर विश्वविद्यालय में विकसित नवीनतम कृषि तकनीकों से संभाग भर से आए किसानों को रूबरू करवाया गया.

मेला स्थल पर उपस्थित कृषि विश्वविद्यालय एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि विश्वविद्यालय की विभिन्न इकाइयों में संचालित कृषि अनुसंधान परियोजनाओं मुख्यतः भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रायोजित अखिल भारतीय समन्वित कृषि अनुसंधान परियोजनाओं, जिन में मुख्यतः मशरूम उत्पादन एवं अनुसंघान, खरपतवार नियंत्रण, जैविक खाद, जैविक खेती, जैविक कीटनाशक, मोटे अनाजों पर संचालित परियोजना, विभिन्न प्रकार की कंदीय फसलों, गेहूं, जो, मूंगफली, ज्वार, मक्का, बीजीय फसलों, उद्यानिकी फसलों, फूलों की खेती, कृषि अभियांत्रिकी, मृदा एवं जल संरक्षण अभियांत्रिक, रोबोटिक्स, आभासी तकनीकी, इंटरनेट औफ थिंग्स, सेंसर आधारित खेती, समन्वित खेती पद्धति, कृषि यांत्रिकी विभाग एवं परियोजना में विकसित अनेक कृषि यंत्रों का प्रर्दशन, सामुदायिक विज्ञान और कृषक महिला विकास से संबंधित परियोजनाओं, कटाई के उपरांत खाद्य प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी, नवीकरणीय ऊर्जा, सोलर ऊर्जा चालित विभिन्न यंत्रों, सोलर चालित पंप, साइकिल, सोलर ड्रायर इत्यादि तकनीकों का विस्तृत प्रर्दशन किया गया.

इस अवसर पर एमपीयूएटी में विकसित विभिन्न पशु नस्लों प्रतापधन मुरगी, बकरी की नस्लें, खरगोश, बटेर व मछलीपालन स्टाल में मछली की विभिन्न खाने योग्य और रंगीन मछलियां की पालन योग्य प्रजातियों का प्रदर्शन किया गया, जिस में विभिन्न उम्र के किसानों ने विशेष रुचि दिखाई.

प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरए कौशिक ने बताया कि किसानों ने विश्वविद्यालय द्वारा विकसित विभिन्न फसलों के बीज की किस्में लगाने के लिए अपनी रुचि दिखाई है. अनुसंधान निदेशक अरविंद वर्मा ने बताया कि एमपीयूएटी की विभिन्न अनुसंधान तकनीकों को जानने एवं अपनाने में किसानों की रुचि देखी गई. दिनभर इन स्टालों पर किसानों का रेला लगा रहा. किसानों के विभिन्न सवालों के जवाब कृषि वैज्ञानिकों ने मौके पर ही दिए और इस अवसर पर सवालजवाब के लिए विशेष रुप से आयोजित जाजम चौपाल में विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने कृषि, पशुपालन, मछलीपालन, बीज उत्पादन, फसल संरक्षण, जैविक खेती, फसल संरक्षण कीट व्याधि नियंत्रण और उद्यानिकी फसलों से संबंधित विभिन्न सवालों के जवाब दे कर किसानों को संतुष्ट किया.

नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया के साथ मिल कर नवाचारों पर काम करेगी एमपीयूएटी

उदयपुर : महाराणा प्रताप यूनिवर्सिटी औफ एग्रीकल्चर एंड टैक्नोलौजी और नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया (एनआईएफ) ने एक समझौता ज्ञापन में प्रवेश किया है. एनआईएफ विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय है, जिस का कार्यालय गांधीनगर, गुजरात में है.

यह जमीनी तकनीकी नवाचारों और उत्कृष्ट पारंपरिक ज्ञान को मजबूत करने के लिए भारत की राष्ट्रीय पहल है. इस का मिशन जमीनी तकनीकी नवप्रवर्तकों के लिए नीति और संस्थागत स्थान का विस्तार कर के भारत को एक रचनात्मक और ज्ञान आधारित समाज बनने में मदद करना है.

एमपीयूएटी कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बताया कि इस समझौता ज्ञापन के माध्यम से दोनों संस्थान शैक्षणिक और अनुसंधान सहयोग के माध्यम से एक समावेशी नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने के लिए सहयोग करने पर सहमत हुए हैं. इस समझोते से छात्रों और विश्वविद्यालय की फैकल्टी को समाज के लिए उपयोगी नवीन परियोजनाओं पर काम करने (मूल्यवर्धन और सत्यापन) का अवसर मिलेगा.

एमपीयूएटी की फैकल्टी और छात्र अपने नवाचारों को विपणन योग्य समाधानों में बदलने के लिए जमीनी स्तर और छात्र नवप्रवर्तकों को अपना परामर्श व समर्थन प्रदान करेंगे. एनआईएफ में अनुसंधान कार्य करने के लिए छात्रों/शोधकर्ताओं का आदानप्रदान जमीनी स्तर के उत्पादों के सत्यापन और मूल्यवर्धन से संबंधित अनुसंधान और/या समाज की अपूर्ण जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए किया जा सकता है.

डा. अरविंद सी. रानाडे, निदेशक, एनआईएफ और सुधांशु सिंह, रजिस्ट्रार, एमपीयूएटी, उदयपुर ने कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक, प्रो. महेश कोठारी, निदेशक योजना और विस्तार, प्रो. पीके सिंह, अधिष्ठाता सीटीएई, डा. सांवल सिंह मीना, विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ संकाय सदस्य की उपस्थिति में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए.

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक, डा. अरविंद सी. रानाडे और सुधांशु सिंह ने उल्लेख किया कि समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए सहयोग को सर्वोत्तम स्तर तक पहुंचाने के लिए प्रत्येक संस्थान का पूर्ण सहयोग दिया जाएगा.

किसानों की मेहनत, वैज्ञानिकों की कुशलता व सरकार की नीतियों से रिकौर्ड उत्पादन

नई दिल्ली : 26 जून 2023. कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय/विभाग, राज्यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों एवं अन्य सरकारी स्रोत एजेंसियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर संकलित, बागबानी फसलों के क्षेत्र व उत्पादन के संबंध में वर्ष 2021-22 के अंतिम आंकड़े और वर्ष 2022-23 के प्रथम अग्रिम अनुमान जारी किए गए हैं. वर्ष 2021-22 में कुल बागबानी उत्पादन रिकौर्ड 347.18 मिलियन टन हुआ है, जो वर्ष 2020-21 के उत्पादन से 12.58 मिलियन टन (3.76 फीसदी) अधिक है. वर्ष 2022-23 में कुल बागबानी उत्पादन रिकौर्ड 350.87 मिलियन टन होने का (प्रथम अग्रिम) अनुमान है, जो वर्ष 2021-22 (अंतिम) की तुलना में 3.69 मिलियन टन की वृद्धि (1.06 फीसदी से अधिक) है.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन में हमारे किसान भाईबहनों की अथक मेहनत, वैज्ञानिकों की कुशलता और केंद्र सरकार की किसान हितैषी नीतियों व राज्य सरकारों के सहयोग से देश में रिकौर्ड उत्पादन संभव हो रहा है.

बागबानी फसलों के क्षेत्र व उत्पादन के संबंध में वर्ष 2021-22 (अंतिम आंकड़े) की मुख्य बातें:

वर्ष 2021-22 में कुल बागबानी उत्पादन रिकौर्ड 347.18 मिलियन टन हुआ, जो वर्ष 2020-21 के उत्पादन से लगभग 12.58 मिलियन टन (3.76 फीसदी) अधिक है. वहीं वर्ष 2021-22 में फलों का उत्पादन 107.51 मिलियन टन हुआ, जबकि वर्ष 2020-21 में 102.48 मिलियन टन का उत्पादन हुआ था.

सब्जियों का उत्पादन पिछले वर्ष के 200.45 मिलियन टन की तुलना में 4.34 फीसदी की वृद्धि के साथ वर्ष 2021-22 में 209.14 मिलियन टन हुआ.

वर्ष 2021-22 में प्याज का उत्पादन 31.69 मिलियन टन हुआ, जबकि वर्ष 2020-21 में 26.64 मिलियन टन का उत्पादन हुआ था.

वर्ष 2021-22 में आलू का उत्पादन 56.18 मिलियन टन हुआ, जो इस के गत वर्ष करीब इतना ही था.

वर्ष 2022-23 (प्रथम अग्रिम अनुमान) की मुख्य बातें :

वर्ष 2022-23 में कुल बागबानी उत्पादन 350.87 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो वर्ष 2021-22 (अंतिम) की तुलना में लगभग 3.69 मिलियन टन (1.06 फीसदी अधिक) की वृद्धि है.

फलों, सब्जियों, मसालों, फूलों, सुगंधित और औषधीय पौधों और वृक्षारोपण फसलों के उत्पादन में पिछले वर्ष की तुलना में वृद्धि का अनुमान है.

फलों का उत्पादन वर्ष 2021-22 में 107.51 मिलियन टन की तुलना में 107.75 मिलियन टन होने का अनुमान है.

सब्जियों का उत्पादन 212.53 मिलियन टन होने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2021-22 में 209.14 मिलियन टन था.

प्याज का उत्पादन पिछले वर्ष के 31.69 मिलियन टन की तुलना में 31.01 मिलियन टन होने का अनुमान है.

आलू का उत्पादन 59.74 मिलियन टन होने का अनुमान है, जबकि वर्ष 2021-22 में यह 56.18 मिलियन टन था.

टमाटर का उत्पादन वर्ष 2021-22 में 20.69 मिलियन टन की तुलना में 20.62 मिलियन टन होने का अनुमान है.

सुगंधित व औषधीय पौधों का उत्पादन वर्ष 2021-22 में 664 हजार टन की तुलना में 680 हजार टन होने का अनुमान है.

कुल बागबानी
2020-21 (अंतिम)
2021-22(अंतिम)
2022-2023 (प्रथम अग्रिम अनुमान)

क्षेत्रफल (मिलियन हेक्टेयर में)
27.48
28.04
28.28

उत्पादन (मिलियन टन में)
334.60
347.18
350.87

तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार-2022 के लिए नामांकन आमंत्रित, 14 जुलाई, 2023 तक कर सकते हैं आवेदन

नई दिल्ली : भारत सरकार युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय ने तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार 2022 (नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड्स) के लिए नामांकन आमंत्रित किया है. भारत सरकार का युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय साहसिक क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों की उपलब्धियों को पहचानने और युवाओं में सहनशक्ति, जोखिम लेने, सहयोगात्मक टीम वर्क की भावना विकसित करने और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में त्वरित, तैयार और प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए प्रोत्साहित करने के लिए “तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार” (टीएनएनएए) नामक राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार प्रदान करती है.

मंत्रालय ने टीएनएनएए 2022 के लिए नामांकन 15 जून, 2023 से 14 जुलाई, 2023 तक पोर्टल https://awards.gov.in के माध्यम से आमंत्रित किया है. पुरस्कार के लिए दिशानिर्देश युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय की वैबसाइट पर निम्नलिखित URL https://yas.nic.in/youth-affairs/inviting-nonations-tenzing-norgay-national-adventure-award-2022-15th-june-2023-14th पर उपलब्ध है.

कोई भी व्यक्ति जिस ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है और जिस में नेतृत्व के उत्कृष्ट गुण हैं, साहसिक अनुशासन की भावना है और साहसिक कार्य के एक विशेष क्षेत्र जैसे भूमि, वायु या जल (समुद्र) में निरंतर उपलब्धि हासिल की हो, उपरोक्त पोर्टल के माध्यम से अंतिम तिथि यानी 14 जुलाई, 2023 से पहले पुरस्कार के लिए आवेदन कर सकते हैं.

पुरस्कार में एक कांस्य प्रतिमा, एक प्रमाणपत्र, एक रेशमी टाई/एक साड़ी के साथ एक ब्लेजर और 15 लाख रुपए की पुरस्कार राशि शामिल है. भारत सरकार द्वारा अर्जुन पुरस्कारों के साथ विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं. आमतौर पर यह पुरस्कार लैंड एडवेंचर, वाटर (समुद्र) एडवेंचर, एयर एडवेंचर और लाइफ टाइम अचीवमेंट नामक चार श्रेणियों में दिया जाता है.

पिछले 3 वर्षों की उपलब्धियों को 3 श्रेणियों में अर्थात लैंड एडवेंचर, वाटर (समुद्र) एडवेंचर, एयर एडवेंचर के लिए माना जाता है और लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार के लिए पूरे कैरियर की उपलब्धि पर विचार किया जाता है.

नई दवा और टीकाकरण के लिए नंदी नाम से नए पोर्टल की शुरुआत

नई दिल्ली : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरषोत्तम रूपाला ने कृषि भवन, नई दिल्ली में नई दवा और टीकाकरण प्रणाली के लिए एनओसी मंजूरी पोर्टल ‘नंदी’ की शुरुआत की. इस पोर्टल से डीएएचडी केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के सुगम पोर्टल के साथ बिना किसी रोकटोक के, अधिक सुव्‍यवस्थित तरीके से पशु चिकित्सा उत्पाद प्रस्तावों का मूल्यांकन और जांच करने के लिए पारदर्शिता के साथ नियामक अनुमोदन प्रक्रिया को सरल बनाएगा.

मंत्री पुरषोत्तम रूपाला ने पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) के उत्कृष्ट कार्य की सराहना की और इस पहल को डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाने और पशुधन एवं पशुधन उद्योग के कल्‍याण को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया.

नंदी पोर्टल की शुरुआत पशु टीकाकरण कवरेज पहल और मोबाइल पशु चिकित्सा इकाइयों (एमवीयू) के बाद एक और उल्लेखनीय कार्य है. यह पहल व्यावसायिक दृष्टिकोण से भी शोधकर्ताओं और उद्योगों को मूल्यवान सहायता प्रदान करेगी.

यह पहल पशुपालकों में जागरूकता बढ़ाने और लौजिस्टिकल सुविधाओं में सुधार से दवाओं की खपत में वृद्धि होगी.

केंद्रीय मंत्री पुरषोत्तम रूपाला ने एक मजबूत प्रणाली स्थापित करने के लिए कुछ महीनों तक पोर्टल के कार्यों की बारीकी से निगरानी करने के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने नंदी पोर्टल के विकास में सीडीएसी सहित सभी हितधारकों के योगदान की सराहना की.

मत्स्यपालन राज्य मंत्री डा. संजीव बालियान बोले

इस अवसर पर पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन राज्य मंत्री डा. संजीव बालियान ने डिजिटल इंडिया मिशन के साथ तालमेल के लिए विभाग के प्रयासों की सराहना की और कहा कि पशु चिकित्सा टीकों का न केवल पशु स्वास्थ्य और उत्पादन पर, बल्कि सुरक्षित खाद्य आपूर्ति बढ़ाने और पशु से मानव में संक्रामक रोगों के संचरण को रोकने से मानव स्वास्थ्य पर भी बड़ा प्रभाव पड़ा है और पड़ रहा है. यह हमारे पूरे इकोसिस्‍टम का एक हिस्सा है. पशुओं को स्वस्थ रखना और टीकों व दवाओं की नियमित आपूर्ति बनाए रखना महत्वपूर्ण है.

डीएएचडी नियामक अनुमोदन प्रक्रिया को समयबद्ध तरीके से सुविधाजनक बनाने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है, जो देश में पशु चिकित्सा दवाओं और टीकों की उपलब्धता के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

डीएएचडी पीएसए (भारत सरकार) की अध्यक्षता में पशु स्वास्थ्य के लिए अधिकार प्राप्त समिति (ईसीएएच) जैसी अधिकार प्राप्त समितियों की स्थापना के माध्यम से नियामक प्रक्रिया में सुधार करने की दिशा में काम कर रहा है, जो भारत में लचीली, किसान केंद्रित पशु स्वास्थ्य प्रणाली बनाने और भारत के पशुधन क्षेत्र की दीर्घकालिक सफलता सुनिश्चित करने के लिए परिवर्तन करने की दिशा में काम कर रही है. ईसीएएच के तहत, नियामक उपसमिति, जिस में उद्योग और शिक्षा जगत के विभिन्न पशु चिकित्सा विशेषज्ञ शामिल हैं, का गठन व्यापक रूप से विचारविमर्श करने, कुशलतापूर्वक कार्यवाही करने और विभाग में पशु चिकित्सा वैक्सीन/जैविक/दवाओं की प्रस्तुति पर सिफारिश/नीति इनपुट प्रदान करने के लक्ष्य के साथ किया गया है.

पशु दवाओं और टीकों की मंजूरी के लिए नियामक प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए नंदी (नई दवा और टीकाकरण प्रणाली के लिए एनओसी मंजूरी) विभाग ने डिजिटल की भावना को आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) के साथ समन्वय कर के प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई डिजिटल इंडिया की भावना के अनुरूप सीडीएसी के जरीए नंदी पोर्टल विकसित किया और आईटी प्रणालियों का लाभ उठा कर न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन का सार ग्रहण किया.

नंदी विनियामक प्रक्रिया में तेजी लाने और मजबूत करने के लिए डिजाइन की गई एक निर्बाध इंटरकनैक्टेड प्रणाली के माध्यम से विभिन्न सरकारी विभागों, संस्थानों और उद्योग के बीच त्वरित एवं आसान समन्वय को सक्षम कर के विकास और नवाचार लाएगा.

पोर्टल में विभागों, समितियों/उपसमिति और आवेदकों के बीच शुरू से अंत तक समन्वय के लिए अंतर्निहित विशेषताएं हैं.

नंदी (नई दवा और टीकाकरण प्रणाली के लिए एनओसी मंजूरी) की शुरुआत के साथ डीएएचडी अपनी पशु महामारी तैयारी पहल (एपीपीआई) के हिस्से के रूप में निर्धारित हस्तक्षेपों को प्राप्त करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.

बीआईएस ने एग्री बाय-प्रोडक्‍ट के लिए जारी किया मानक, कृषि उत्पादों और पत्तियों से बनेंगे बरतन

नई दिल्ली : भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने और सस्‍टेनेबिलिटी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एग्री बाय-प्रोडक्‍ट से बने भोजन परोसने वाले खास बरतनों के लिए मानक आईएस 18267: 2023 को जारी किया है. यह मानक निर्माताओं और उपभोक्ताओं को व्यापक दिशानिर्देश प्रदान करता है, ताकि देशभर में गुणवत्ता आवश्यकताओं में एकरूपता सुनिश्चित हो सके.

इस मानक के लागू होने के व्यापक फायदे हैं, क्योंकि बायोडिग्रेडेबल एग्री बाय-प्रोडक्‍ट बरतनों के उपयोग से पर्यावरण सुरक्षा, प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है. इन बरतनों में किसी नुकसानदेह पदार्थ का उपयोग नहीं किया गया है, और इसलिए इन से उपभोक्ताओं का कल्याण सुनिश्चित होगा.

यह मानक किसानों के लिए आर्थिक अवसर सृजित करता है और सस्‍टेनेबल कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देते हुए ग्रामीण विकास में योगदान करता है.

दुनियाभर में डिस्पोजेबल टेबलवेयर का उपयोग बढ़ रहा है. इस से डिस्पोजेबल टेबलवेयर के वैश्विक बाजार का भी विस्‍तार हो रहा है. डिस्पोजेबल प्लेट का बाजार वर्ष 2020 में 4.26 अरब डालर था, जो बढ़ कर वर्ष 2028 तक 6.73 अरब डालर तक पहुंचने का अनुमान है.

इसी प्रकार वर्ष 2021 से 2028 के बीच इस में 5.94 फीसदी की चक्रवृद्धि वार्षिक दर (सीएजीआर) से विस्‍तार होगा.

भारत में कई लार्ज स्‍केल और सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यम (एमएसएमई) स्तर के विनिर्माता बायोडिग्रेडेबल कटलरी के उत्पादन में सक्रिय योगदान कर रहे हैं. उन्हें इस मानक के लागू होने से काफी फायदा होगा. इन उत्पादों की मांग लगातार बढ़ रही है और इसलिए इन के उत्पादन से जुड़े विनिर्माताओं की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है.

इस मानक में बायोडिग्रेडेबल बरतनों के उत्पादन के लिए कच्चे माल, विनिर्माण तकनीक, प्रदर्शन और स्वच्छता आवश्यकताओं सहित विभिन्न पहलुओं को शामिल किया गया है. इस में प्लेट, कप, कटोरे आदि बरतन बनाने के लिए पसंदीदा सामग्री के तौर पर खास पत्तियों और आवरण जैसे कृषि बाय-प्रोडक्‍ट्स के उपयोग को निर्दिष्ट किया गया है.

यह मानक पौधों और पेड़ों के उपयुक्त हिस्सों का उपयोग करने का सुझाव देता है. साथ ही, यह हाट प्रैसिंग, कोल्‍ड प्रैसिंग, मोल्डिंग और सिलाई जैसी विनिर्माण तकनीक प्रदान करता है. यह चिकनी सतहों, बिना धारदार किनारों के उपयोग पर भी जोर देता है और रसायनों, रेजिन और चिपकने वाले पदार्थों के उपयोग को प्रतिबंधित करता है.