खरीफ में सब्जी,धान व दलहनी फसलों की उन्नत किस्में लगाएं

हर वर्ष की तरह भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने खरीफ फसलों की बुआई को लेकर जरूरी सलाह व दिशानिर्देश जारी किए हैं. कृषि संस्थान ने किसानों को धान की नर्सरी तैयार करने की सलाह दी है, इसके साथ ही, अधिक उपज देने वाली किस्मों के चयन और बीजों के उपचार के लिए भी सलाह दी है

अगेती फसल से अधिक मुनाफा

कृषि वैज्ञानिकों की सलाह के अनुसार, यह समय अगेती फूलगोभी, टमाटर, हरी मिर्च और बैंगन की पौधशाला तैयार करने का उचित समय है.

मिट्टी जाँच कराने से फायदा

फसल लगाने से पहले अपने खेत की मिट्टी जांच करवाने का भी काम किसानों को कर लेना चाहिए. खेत की मिट्टी की जांच किसी प्रमाणित स्रोत से करवाएं. मिट्टी जांच के बाद मिले नतीजों के आधार पर खेत में खादबीजऔर उचित पोषक तत्वों वाले उर्वरक जमीन में डालें.

इसके अलावा अगर आप के खेत एकसार नहीं हैं तो लेजर लैंड लेबलर की मदद से खेत को समतल भी करा सकते हैं.

ऐसा करने से खेत में कहीं जलभराव भी नहीं होता और फसल से अधिक पैदावार भी मिलती है.

अपने क्षेत्र के अनुसार उन्नत प्रजाति का चयन

इस समय धान की फसल का भी समय है. धान की अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों का चयन करे .अपने क्षेत्र के लिए धान की अधिक पैदावार देने वाली उन्नत किस्मों का चयन करें. इस की जानकारी के लिए नजदीकी कृषि संस्थान से भी जानकारी ले सकते हैं.

खास किस्में : धान की खास किस्मों में पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1509,
पूसा बासमती 1885, पूसा बासमती 1886,
पूसा बासमती 1847, पूसा बासमती 1637,
पूसा 44, पूसा 1718, पूसा बासमती 1401,
पूसा सुगंध 5, पूसा सुगंध 4 (पूसा 1121),
पंत धान 4, पंत धान 10 जैसी किस्में शामिल हैं.

ये सभी प्रजातियां किसानों को अच्छी पैदावार देने वाली हैं.

धान की नर्सरी

धान की नर्सरी तैयार करने के लिए नर्सरी की क्यारियों को लगभग 1.25 से 1.5 मीटर की लंबाई चौडाई के अनुसार बनाएं.

करें बीज उपचार

पौधशाला में पौध तैयार करते समय बुवाई से पहले, बीजों को उपचारित करें. इसके बाद, बीजों को बाहर निकालकर किसी छायादार स्थान में 24-36 घंटे तक टाट, बोरी आदि से ढककर रखें और हल्के-हल्के पानी की छिड़काव करते रहें. ताकि नमीं बनी रहे और बीजों का अंकुरण अच्छा हो सके.

अरहर की खेती के लिए

अरहर की अधिक उपज वाली किस्मों का चयन करें. इन दिनों अरहर की बुवाई कर सकते हैं. ध्यान रहे, जिस खेत अरहर की खेती करनी है उसमें पानी का ठहराव न हो. पानी निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए.
बीज से अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई के समय खेत में पर्याप्त नमी का ध्यान रखना आवश्यक होता है.

अरहर की अधिक उपज देने वाली किस्में:

पूसा अरहर-16, पूसा 2001, पूसा 2002, पूसा 991, पूसा 992 आदि.

बीजोपचार करें

बीजों को बोने से पहले अरहर के लिए राईजोबियम और फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणुओं (पीएसबी) के टीकों से उपचार करें .इस उपचार से फसल के उत्पादन में वृद्धि होती है.

मूंग उड़द की खेती

मूंग और उड़द की भी बोआई भी इस समय कर सकते हैं.

मूंग की उन्नत किस्में
मूंग की उन्नत किस्मों में
पूसा-1431, पूसा-1641,
पूसा विशाल,
पूसा-5931, एस एम एल-668.

उड़द की उन्नत और नई किस्में

उड़द की उन्नत किस्मों में टाईप-9, टी-31, टी-39 आदि की बुवाई कर सकते हैं.
सभी दलहनी फसलों को बोने से पहले उपचारित जरूर करें.

जरूरी सावधानियाँ

किसानों को फसल से अच्छी उपज लेने के लिए चाहिए कि वह समय से फसल बोयें. साथ ही खेत में जलभराव न होने दें. खेत में खरपतवार न पनपने दें. समय से निराईगुड़ाई करते रहें. साथ ही कीटबीमारी का भी ध्यान रखें.

प्रदेश के सभी कृषि विश्वविद्यालयों में टेस्टिंग लैब स्थापित की जाए

लखनऊ : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में उन के सरकारी आवास पर राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद के संचालक मंडल की 168वीं बैठक आयोजित की गई.

इस मौके पर मुख्यमंत्री द्वारा किसानों के हितों के संरक्षण के लिए विभिन्न दिशानिर्देश दिए गए.
बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद द्वारा किसानों के हितों का ध्यान रखते हुए किए जा रहे प्रयास सराहनीय है. मंडी शुल्क को न्यूनतम करने के बाद भी राजस्व संग्रह में मंडियों का अच्छा योगदान है. वित्तीय वर्ष 2021-22 में जहां 614 करोड़ रुपए की आय हुई थी, वहीं वर्ष 2022-23 में 1520.95 करोड़ रुपए की आय हुई है. वर्तमान वित्तीय वर्ष के पहले 2 माह में अब तक 251.61 करोड़ रुपए का राजस्व संग्रहित हो चुका है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि फसलों को विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री, बागबानी फसलों के गुणवत्तापूर्ण रोपण एवं रोगमुक्त बनाने के लिए आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय किसानों की सुविधा के दृष्टिगत राज्य सरकार ने बड़ी संख्या में ग्रामीण हाटपैठ और आधुनिक किसान मंडियों का निर्माण कराया है, क्षेत्रीय जरूरतों के अनुसार नए हाटपैठ और किसान मंडियों का निर्माण कराया जाना चाहिए. इन का अच्छा मेंटीनेंस रखें. पटरी व्यवसायियों को यहां समायोजित किया जाना चाहिए. मंडियों में रोशनी की समुचित व्यवस्था हो, जलभराव की स्थिति न हो, किसानों की सुविधा का पूरा ध्यान रखा जाए और कृषि फसल की सुरक्षा के अच्छे इंतजाम किए जाएं. शौचालय और पेयजल के पर्याप्त इंतजाम रखें.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि यह सुखद है कि मंडी परिषद की सहायता से कृषि विश्वविद्यालयों में छात्रावासों का निर्माण कराया जा रहा है. इन छात्रावासों का निर्माण कार्य गुणवत्ता का पूरा ध्यान रखते हुए समयबद्ध ढंग से कराया जाए. कृषि मंत्री द्वारा इन निर्माणाधीन छात्रावासों का निरीक्षण किया जाए. विभिन्न जनपदों में कृषि उत्पादन मंडी परिषद की भूमि/भवन निष्प्रयोज्य हैं. इस भूमि/ भवन के व्यवस्थित इस्तेमाल के लिए ठोस कार्ययोजना बनाई जाए. इन के माध्यम से परिषद अपनी आय का एक नवीन विकल्प भी सृजित कर सकता है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा कि कृषि एवं खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा अनेक नीतिगत प्रयास किए जा रहे हैं. प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित करने के लिए भी योजनाबद्ध रीति से काम किया जा रहा है. किसानों को उन की उपज की वाजिब कीमत मिले, उत्पाद की ब्रांडिंग हो, सही बाजार मिले, इस के लिए राजधानी लखनऊ में ‘एग्री मौल’ स्थापित किया जा रहा है. इस बारे में कार्यवाही तेजी से आगे बढाएं. एग्री मौल में किसान सीधे अपने फलसब्जियों की बिक्री कर सकेंगे. मंडी परिषद द्वारा नवी मुंबई में निर्यात प्रोत्साहन के लिए वर्ष 2006 में स्थापित किए गए औफिस ब्लौक को और उपयोगी बनाने के लिए इसे एमएसएमई विभाग से जोड़ा जाना चाहिए.

इस अवसर पर कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही और राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद के संचालक मंडल के सदस्यगण उपस्थित थे.

लेजर लैंड लैवलर: खेत करे एकसार

फसल से बेहतर पैदावार लेने के लिए खेत का समतल होना जरूरी है. अगर खेत कहीं से ऊंचा या नीचा नहीं है तो उस खेत की पैदावार दूसरे असमतल खेतों से कहीं ज्यादा होगी. साथ ही, लागत भी कम होगी.

ऊंचेनीचे खेत में सिंचाई करते समय पानी पूरी तरह से समान रूप से नहीं फैल पाता है. इस वजह से खेत में कुछ जगहों पर खरपतवार पनपने लगते हैं और सभी पौधों व बीजों को सही अनुपात में पानी नहीं मिल पाता है, जिस से पैदावार पर बुरा असर पड़ता है. लेजर लैंड लैवलर मशीन का इस्तेमाल कर के किसान इस समस्या को दूर कर सकते हैं.

लेजर लैंड लैवलर

यह लैवलर 4 उपकरणों से मिल कर बनता है, जिन्हें लेजर ट्रांसमीटर, लेजर रिसीवर, कंट्रोल बौक्स व लैवलर कहते हैं.

लेजर ट्रांसमीटर : लेजर ट्रांसमीटर एक तिपाई स्टैंड पर लगा होता है, जो लेजर यानी तरंगों को ट्रैक्टर पर तेजी से भेजता है. इन तरंगों की मदद से खेत के ऊंचेनीचे हिस्सों का पता लगता है. यह औजार खेत के किसी भी हिस्से में रखा जा सकता है.

लेजर रिसीवर : यह औजार लैवलर के ऊपर लगा होता है. ट्रांसमीटर द्वारा भेजी गई तरंगों को यह लगातार पकड़ता रहता है और इस की सूचना कंट्रोल बौक्स को भेजता रहता है.

कंट्रोल बौक्स : यह औजार ट्रैक्टर के ऊपर लगाया जाता है. लेजर रिसीवर द्वारा हासिल तरंगों के मुताबिक ट्रैक्टर के हाइड्रोलिक सिस्टम की मदद से लैवलर को ऊपरनीचे करता रहता है.

लैवलर : यह औजार ट्रैक्टर के हाइड्रोलिक सिस्टम से जोड़ा जाता है, जो तीनों औजारों की मदद से खेत को एकसमान रूप से समतल करता है.

काम करने का तरीका

जब ट्रांसमीटर से तरंगें निकल कर रिसीवर से टकराती हैं, जो बकेट के ऊपर लगे स्टैंड पर बंधा होता है, तो रिसीवर किरणों के मध्य में रहते हुए चेन द्वारा जुड़े हुए कंट्रोल बौक्स को ऊपर या नीचे जाने के लिए सिग्नल भेजता है. कंट्रोल बौक्स में से उसी समय करंट हाइड्रोलिक सिस्टम को जाता है, जिस से हाइड्रोलिक तेल की सप्लाई बकेट के पीछे टायरों के बीच में लगे हाइड्रोलिक सिलैंडर को मिलती है. यह सिलैंडर टायरों को ऊपरनीचे करता है, जिस के विपरीत बकेट ऊपरनीचे होती रहती है.

बकेट आगेपीछे दोनों तरफ पिनों के साथ जुड़ी होती है, इसलिए उस पर जमीन के ऊंचानीचा होने का कोई असर नहीं पड़ता. बकेट को एक सीमित ऊंचाई पर बंधे होने से उस के आगे आने वाली मिट्टी कट कर आगे खिंची चली जाती है और जहां पर गड्ढा मिलता है, मिट्टी खुद ही बकेट के नीचे से निकल कर फैलती रहती है. इस तरह खेत समतल हो जाता है. ट्रैक्टर को ऊंचाई की तरफ से निचाई की दिशा में चलाना होता है, बाकी काम लेजर लैवलर द्वारा अपनेआप किया जाता है.

लेजर लैंड लैवलर के फायदे

* खेत में पानी, खाद और कीटनाशक दवाओं का एकसमान फैलाव होने से पैदावार बढ़ती है और मिट्टी समतल करने से समय की बचत होती है.

* पानी का पूरापूरा इस्तेमाल होता है और पानी की 30-40 फीसदी तक बचत होती है.

* फसल की पैदावार में बढ़ोतरी होती है.

* खरपतवारों में कमी आती है और खरपतवार काबू करने में काफी मदद मिलती है.

*  फसल एकसमान पकती है.

यंत्र की खरीद पर सरकार द्वारा सब्सिडी

लेजर लैंड लैवलर एक महंगा कृषि यंत्र है. इस यंत्र को इस्तेमाल करने के लिए ट्रैक्टर की भी जरूरत होती है.

इस यंत्र की खरीद पर सरकार द्वारा किसानों को सब्सिडी भी दी जाती है, जो अलगअलग राज्यों में कम या ज्यादा हो सकती है. आमतौर पर छोटे, सीमांतक महिला किसानों के लिए सरकार द्वारा 50 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है. बडे़ किसानों को यह सब्सिडी 40 फीसदी तक भी हो सकती है.

इस के अलावा कुछ शर्तें भी हैं, जिन का पालन करना भी जरूरी है. जैसे, किसानों को पोर्टल पर आवेदन करते समय यह निश्चित करना होगा कि वह अपने खेत में फसल अवशेष नहीं जलाएंगे.

ट्रैक्टरचालित यंत्रों के लिए यदि आवेदन किया है तो किसान के पास ट्रैक्टर भी होना चाहिए, जो उसी के नाम रजिस्टर्ड हो.

आवेदक के नाम या उस की पत्नी/पति/पिता/माता/पुत्र/पुत्री के नाम पर कृषि जमीन होनी चाहिए.

संबंधित वैबसाइट पर कृषि यंत्र निर्माताओं व यंत्र बेचने वालों की सूची भी होती है. अपनी सुविधानुसार मनपसंद डीलर से यंत्र लिया जा सकता है.

आम के फलों पर कीट नियंत्रण के उपायों को ले कर कार्यशाला का आयोजन

मुंबई : एशिया पैसिफिक प्लांट प्रोटेक्शन कमीशन ने भारत को नवंबर, 2022 के दौरान बैंकौक में आयोजित एशिया और पैसिफिक प्लांट प्रोटेक्शन कमीशन (एपीपीपीसी) के 32वें सत्र के दौरान 2023-24 के लिए कीट नियंत्रण उपायों को ले कर (आईपीएम) सर्वसम्मति से स्थायी समिति के द्विवार्षिक अध्यक्ष के रूप में चुना गया था. आम के फलों पर कीट नियंत्रण उपायों के प्रबंधन के लिए सिस्टम दृष्टिकोण पर कार्यशाला का आयोजन एपीपीपीसी और कृषि मंत्रालय द्वारा संयुक्त रूप से 19 जून से 23 जून, 2023 तक वाशी, नवी मुंबई में किया जा रहा है.

भारत सरकार की कृषि और किसान कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने आशीष कुमार श्रीवास्तव, संयुक्त सचिव (पीपी), कृषि और किसान कल्याण विभाग, डा. युबकधोज जीसी, कार्यकारी सचिव, एपीपीपीसी सचिवालय, डा. एसएन सुशील, निदेशक, आईसीएआर-एनबीएआईआर, एमओए एंड एफडब्ल्यू और डा. जेपी सिंह, पीपीए, डीपीपीक्यूएस की उपस्थिति में कार्यशाला का उद्घाटन किया.

उद्घाटन भाषण में शोभा करंदलाजे ने विश्वभर में बाजार उपलब्ध कराने के लिए कीटनाशक और अवशेषमुक्त फलों और सब्जियों के उत्पादन पर जोर दिया है, ताकि किसानों की आय में वृद्धि की जा सके.

उन्होंने कामना की कि कार्यशाला से मिलने वाले लाभ वसुधैव कुटुंबकम के भारत के आदर्श वाक्य का प्रसार करेंगे.

उन्होंने आगे कृषि निर्यात/व्यापार, किए जाने वाले उपायों और निर्यात प्रोत्साहन के लिए मिल कर काम करने की आवश्यकता पर बल दिया.

संयुक्त सचिव (पीपी) आशीष कुमार श्रीवास्तव ने अंतर्राष्ट्रीय पादप संरक्षण सम्मेलन (आईपीपीसी), एपीपीपीसी और जिंसों के सुरक्षित ट्रांसबाउंड्री मूवमेंट के लिए फाइटोसैनेटरी मिटिगेशन में उन की भूमिका के बारे में जानकारी दी है.

इतना ही नहीं, उन्होंने भारत में आम के लिए सिस्टम के कार्यान्वयन पर अपने अनुभव साझा किए. इस सिलसिले में उन्होंने कृषि पंजीकरण/राज्य कृषि विभाग के साथ बाग पंजीकरण, किसान स्तर पर एकीकृत कीट प्रबंधन के आवेदन, कीट की नियमित निगरानी और कीट के समय पर प्रबंधन द्वारा सभी महत्वपूर्ण कृषि वस्तुओं के लिए सिस्टम दृष्टिकोण के विकास पर जोर दिया, जिस से सभी किसान यहां तक कि छोटे और सीमांत किसान भी निर्यात गुणवत्ता वाली उपज का उत्पादन कर सकें और कड़े उपचार से बचा जा सके.

आईसीएआर-एनबीएआईआर के निदेशक डा. एसएन सुशील ने पादप स्वच्छता उपायों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप भारत में सिस्टम दृष्टिकोण के सफल कार्यान्वयन की जानकारी दी और विशेष रूप से ग्रेपनेट के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यताप्राप्त सिस्टम दृष्टिकोण को याद किया.

डीपीपीक्यू एंड एस के पौध संरक्षण सलाहकार और एपीपीपीसी-आईपीएम की स्थायी समिति के अध्यक्ष डा. जेपी सिंह ने अपने स्वागत भाषण में किसानों के पंजीकरण, किसानों द्वारा अच्छी कृषि पद्धतियों को अपनाने, कीट निगरानी और फाइटोसैनेटरी के माध्यम से भारत में सिस्टम और कीटनाशकमुक्त वैश्विक व्यापार के लिए उपचार के कार्यान्वयन की यात्रा साझा की.

एपीपीपीसी सचिवालय के कार्यकारी सचिव डा. युबकधोज ने कहा कि यह क्षमता विकास कार्यक्रम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कृषि उत्पाद के सीमापारीय आवागमन के दौरान फ्रूटफ्लाई के प्रबंधन के लिए व्यावहारिक उपाय प्रदान करेगा.

एपीडा के निदेशक तरुण बजाज, कृषि के निर्यात में एपीडा (एपीईडीए) की भूमिका और भारत द्वारा लगभग 60 मिलियन डालर के ताजा आम का निर्यात करने की व्याख्या की.

बंगलादेश, इंडोनेशिया, लाओ, मलेशिया, नेपाल, फिलीपींस, समोआ, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम, भूटान के प्रतिभागियों ने कार्यशाला में प्रत्यक्ष रूप से और शेष देशों ने वर्चुअल रूप से भाग लिया. इस के अलावा, डीपीपीक्यूएस, फरीदाबाद, एपीईडीए, एमएसएएमबी के अधिकारियों और गुजरात, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश के राज्य के बागबानी विभाग के अधिकारियों ने कार्यशाला में हिस्सा लिया.

5 दिनों की कार्यशाला के दौरान आम के फलों पर कीट नियंत्रण उपायों के लिए सिस्टम के दृष्टिकोण पर विचारविमर्श, सभी प्रासंगिक आईएसपीएम की समीक्षा, आम कीट के लिए प्रीहार्वेस्ट इंटीग्रेटेड प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट और एनपीपीओ केस स्टडी पर चर्चा की जाएगी और उक्त कार्यशाला में उपचार सुविधा और आम के बगीचे का दौरा भी किया जाएगा.

उत्तर प्रदेश कृषि विभाग में कस्टम हायरिंग सेंटर

लखनऊ. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि पिछले कुछ साल में देश की तसवीर बदलने और देश के हर नागरिक के मन में एक नया विश्वास पैदा करने का काम हुआ है. यह हमारे लिए गौरव की बात है. वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी है. भारत की भीतरी व बाहरी सुरक्षा मजबूत हुई है. देश में हाईवे, रेलवे, एयरपोर्ट और वाटरवे के बनने से इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमैंट की नई परियोजनाओं को आगे बढ़ाने का काम हुआ है. हर गरीब के जीवन में बदलाव के लिए बिना भेदभाव के ईमानदारी के साथ उन्हें कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिया गया है.

योगी आदित्यनाथ ने कृषि विभाग के अंतर्गत कस्टम हायरिंग सैंटर की स्थापना हेतु ट्रैक्टर व कृषि यंत्र को हरी झंडी दिखा कर रवाना किया और कार्यक्रम स्थल पर विभिन्न विभागों द्वारा लगाए गए स्टौलों को भी देखा.

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि आज जिन परियोजनाओं का लोकार्पण और शिलान्यास हुआ है, इन में सड़क, पंचायती राज से जुड़े हुए ग्राम सचिवालय के निर्माण, हर घर नल आदि से जुड़ी परियोजनाएं शामिल हैं. केंद्रीय कृषि मंत्री के हाथों से यहां के किसानों को ट्रैक्टर भी उपलब्ध कराए गए हैं. हर घर नल की योजना के माध्यम से शुद्ध पेयजल का लाभ नागरिकों को प्रदान किया जा रहा है. अगले एक साल में जनपद अंबेडकरनगर में भी हर घर नल की योजना हकीकत बन जाएगी. हर घर तक शुद्ध आरओ का पानी पहुंचाया जाएगा. अंबेडकरनगर में भी उद्योग लग रहे हैं.

इस कार्यक्रम को केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी संबोधित किया.

इस अवसर पर खेल एवं युवा कल्याण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) गिरीश चंद्र यादव सहित अन्य जनप्रतिनिधिगण तथा शासनप्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.

गन्ना रस का कारोबार किसानों को मिले फायदा

आजकल हर गलीमहल्ले के चौकचौराहों और सड़कों के किनारे गन्ने के रस की दुकानें और ठेले दिख जाते हैं, जिन पर काफी भीड़ देखी जा सकती है.

गन्ने के रस को बेच कर इस कारोबार को करने वाले अच्छाखासा मुनाफा कमा रहे हैं. गन्ने के रस का कारोबार गरमियों में काफी मुनाफा देने वाला होता है क्योंकि गरमी से बेहाल व्यक्ति गन्ने के रस से न केवल अपनी प्यास बुझाना चाहता है, बल्कि यह सेहत के लिहाज से भी काफी अच्छा होता है.

ऐसे करें शुरुआत

अगर आप गन्ना किसान हैं और चीनी मिलों द्वारा भुगतान न किए जाने से परेशान हैं तो गन्ने के रस का कारोबार आप के लिए फायदेमंद साबित होगा. साथ ही, चीनी मिलों की अपेक्षा आप को ज्यादा मुनाफा भी मिलेगा.

अगर आप के पास खेती की जमीन नहीं है या आप गन्ने की खेती नहीं करते हैं तब भी इस कारोबार को अपना सकते हैं. इस के लिए या तो आप किराए की जमीन ले कर गन्ने की खेती कर सकते हैं या गन्ना किसानों से सीधे गन्ना खरीद कर गन्ने के रस का कामधंधा शुरू कर सकते हैं.

गन्ने के रस का काम शुरू करने के लिए जिन चीजों की जरूरत होती है, उन में छोटा इंजन, गन्ना पेराई के लिए छोटी गन्ना पेराई मशीन, कुछ बरतन, चाकू सहित अन्य छोटेमोटे सामान शामिल हैं.

बस्ती जिले के गांव सबदेईया कला के बाशिंदे सुक्खू ने बताया कि गन्ने रस का कारोबार शुरू करने के लिए 50,000 रुपए से ले कर 1 लाख रुपए तक में सभी जरूरी चीजें आ जाती हैं. लखनऊ और बाराबंकी जैसे शहरों में जुगाड़ वाहन सहित पूरी तरह से तैयार गन्ने का रस तैयार करने वाली मशीनें मिलती हैं.

इसे हम दूसरे वाहनों की तरह चला कर एक जगह से दूसरी जगह तक न केवल आसानी से ले जा सकते हैं, बल्कि मशीन को भी बारबार फिट करने की परेशानी से नजात मिल जाती है. गन्ने से रस निकालने वाली ये मशीनें औनलाइन भी खरीदी जा सकती हैं.

सुक्खू ने आगे बताया कि गन्ने की मशीन के अलावा जिन चीजों की हमें रोज जरूरत होती है, उन में गन्ने के रस की मांग के मुताबिक गन्ना, काला नमक, नीबू, पुदीना, बर्फ के टुकड़े, कांच, प्लास्टिक व कागज के गिलास शामिल हैं.

गन्ने के रस को मशीन से निकालते समय नीबू और पुदीना की पेराई भी कर ली जाती है, जिस से रस का स्वाद बढ़ जाता है.

क्वालिटी का रखेंगे खयाल तो हो सकते हैं मालामाल

खानेपीने की किसी भी चीज की साफसफाई व बेहतर क्वालिटी न केवल मांग बढ़ाती है, बल्कि ग्राहक अच्छी कीमत देने से भी नहीं हिचकता है इसलिए गन्ने का रस निकालते समय उस की क्वालिटी का खयाल जरूर रखें.

इस के लिए सब से पहले गन्ने से शुरुआत करनी होगी, जब आप खेत से गन्ने की कटाई कर लें तो गन्ने के ऊपरी हिस्से को खूब अच्छी तरह से छील दें और साफ पानी में अच्छी तरह से धो लें.

यह भी कोशिश करें कि गन्ना खेत से ताजा काटा गया हो या जितनी मात्रा में गन्ने की जरूरत हो उतनी ही गन्ने की कटाई करें, क्योंकि कई दिनों के कटे गए गन्ने का स्वाद खराब होने लगता है.

जहां पर आप अपने गन्ने की दुकान या ठेला लगाते हैं, वहां की साफसफाई का भी खयाल रखें. गन्ने की पेराई के दौरान मीठे की वजह से अकसर मक्खियां जमा होने लगती हैं ऐसे में इन की रोकथाम के लिए धूपबत्ती वगैरह का धुआं भी कर सकते हैं.

जब आप गन्ने का रस निकाल रहे हों तो आप अपने हाथों को साफसुथरा रखें. अगर हो सके तो प्लास्टिक की पन्नी के दस्ताने पहन लें. आप जिन गिलासों का इस्तेमाल कर रहे हैं, उन्हें हमेशा साफ रखें, क्योंकि गंदगी देख कर ग्राहक दूर भागने लगते हैं.

गन्ने के रस को पैक करने की सामग्री भी हमेशा अपनी ठेली में साथ रखें. आप की यह सावधानी ग्राहकों को आप की दुकान की ओर आकर्षित करने में बेहद मददगार साबित हो सकती है जिस से आप को रोज का मुनाफा भी ज्यादा हो सकता है. आप के गन्ने की रस की क्वालिटी आप के नियमित ग्राहकों की तादाद में इजाफा करने के लिए काफी है.

चीनी मिलों के बंद होने पर किसानों को मिला सहारा

वैसे भी लोगों की जिंदगी में मिठास घोलने वाले देश में कई हिस्सों के गन्ना किसानों की हालत किसी से छिपी नहीं है. किसान चीनी मिलों को अपना गन्ना बेच कर खुद के फसल के भुगतान के लिए धरनाप्रदर्शन कर रहे हैं, पुलिस की लाठियां खा रहे हैं और सरकार किसानों की सुनने के बजाय मिल मालिकों को संरक्षण देने में लगी है. ऐसे में किसान या तो गन्ने की खेती छोड़ दूसरी फसलों की तरफ मुड़ रहे हैं या गन्ने से जुड़े व्यवसाय का दूसरा विकल्प खोज रहे हैं.

चूंकि गन्ने की फसल नकदी फसलों में गिनी जाती है, ऐसे में जो किसान गन्ने की फसल लेते रहे हैं, उन्हीं में से कुछ किसानों ने चीनी मीलों के ऊपर निर्भरता को कम कर खुद का काम शुरू करने की ठानी है, जो बेहद कामयाब रहे हैं.

उत्तर प्रदेश का बस्ती जिला गन्ने की खेती का मुख्य केंद्र है. यहां पर कुल 5 चीनी मिलें थीं, जिस में से एकएक कर 3 मिलें बंद होती गईं. इस से यहां के किसानों के बेचे गए गन्ने का भुगतान भी फंस गया.

ऐसे में कई किसानों ने तो गन्ने की खेती से तोबा कर ली. लेकिन कुछ किसान ऐसे भी थे, जिन्होंने हार नहीं मानी और न ही गन्ने की खेती से मुंह मोड़ा बल्कि इन किसानों ने बोए गए गन्ने से खुद के व्यवसाय शुरू किए जाने का निर्णय लिया और हाटबाजारों के साथ मुख्य रास्तों पर फार्म उद्योगलगाना शुरू किया. इस का नतीजा यह रहा कि इन किसानों को चीनी मिलों की अपेक्षा तिगुनाचौगुना ज्यादा मुनाफा मिलने लगा.

ऐसे ही किसानों में शुमार बस्ती जिले के बाशिंदे गणेश बाहर रह कर नौकरी करते थे. लेकिन चीनी मिलों के बंद होने पर उन के परिवार में गन्ने की फसल नष्ट किए जाने की नौबत आ गई. ऐसे में वे बाहर से अपने गांव पापस आ गए और उन्होंने मजदूरी से बचाए गए पैसे से गन्ने का रस निकालने वाली एक ठेली और मशीन खरीदी. यह ठेली उन्हें लखनऊ से मिली जो जुगाड़ वाहन पर सैट थी. इसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाना भी आसान हो गया.

गणेश ने पहली बार बस्तीगोरखपुर राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे पेड़ों के नीचे अपनी ठेली लगानी शुरू की. देखते ही देखते दुकान चल निकली और उन्हें एक दिन में 1,500 से 2,000 रुपए की आमदनी होने लगी.

गणेश पिछले 3 सालों से ठेली लगा रहे हैं. अब उन की 4 दुकानें एक ही जगह पर लगती हैं जिस में उन के परिवार के बाकी सदस्यों के साथ ही दूसरे लोगों को भी रोजगार मिला है.

गांव सबदेईया कला के सुक्खू अपने बेटे भीम के साथ मिल कर गन्ना रस का कारोबार कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि वे ठेली पर गन्ना पेरने की मशीन को छोटे इंजन के साथ फिट करा कर यह काम कर रहे हैं. इस पर तकरीबन 50,000 रुपए का खर्चा आया था. एक दिन में वे बड़ी आसानी से 1,000 रुपए तक मुनाफा कमा लेते हैं.

बस्ती जिले के महसिन गांव के बृजभूषण मौर्या ने बताया कि वह पिछले 2 सालों से गन्ने के रस की ठेली लगा रहे हैं. मशीनें उन्होंने लखनऊ से खरीदी थीं जो उन्हें जुगाड़ वाहन पर सैट कर के मिली थीं.

सुक्खू ने बताया कि वे खुद खेतों के अलावा किराए पर भी खेत ले कर गन्ने की खेती करते हैं जिस से उन्हें हर समय ताजा गन्ना मिलता है. साथ ही, लागत में भी कमी आ जाती है.

कई लोग गन्ने का रस कोल्ड ड्रिंक की अपेक्षा ज्यादा पसंद करने लगे हैं. लेकिन साल के कुछ ही महीने यानी सर्दियों में इस व्यवसाय को बंद रखना पड़ता है. इस दौरान वे अपने गन्ने के खेत की देखभाल करते हैं, जिस से उत्पादन अच्छा मिले.

बस्ती जिले के दसैती गांव के राम अधीन पिछले 4 साल से गन्ने के रस का कारोबार कर रहे हैं. जब चीनी मिलों ने किसानों से मुंह मोड़ लिया, ऐसे में उन्होंने गन्ने की खेती छोड़ने के बजाय गन्ने के रस की ठेली लगाना शुरू कर दिया. उन्होंने तब 80,000 रुपए से इस व्यवसाय को शुरू किया था.

राम अधीन ने बताया कि आप जब भी गन्ने के रस का व्यवसाय शुरू करें, तो इस के लिए सब से पहले ऐसी जगह को चुनें जहां ज्यादा भीड़ होती हो या जिन रास्तों से लोगों का आनाजाना ज्यादा होता हो. आप इस के लिए स्कूल, कालेज, सरकारी दफ्तरों के नजदीक भी अपनी दुकान लगा सकते हैं क्योंकि ऐसी जगहों पर आप को ग्राहक अच्छी तादाद में मिल जाते हैं.

गन्ने के रस के व्यवसाय का ही कमाल था कि किसानों के परिवारों के जो नौजवान खेती से मुंह मोड़ कर रोजगार की तलाश में दूसरे शहरों में जा चुके थे, वही नौजवान वर्तमान में अपने परिवार के साथ गन्ने की खेती के साथसाथ गन्ने के रस के व्यवसाय में हाथ बंटा रहे हैं. इन में भीम, बृजभूषण मौर्या, गणेश कोल्हुआ, चंद्रेश जैसे तमाम नाम शामिल हैं.

रोजगार देने में मददगार

अगर आप गन्ने के रस का व्यवसाय करते हैं तो इस से आप को ही नहीं, बल्कि दूसरे लोगों के लिए भी रोजगार का रास्ता खोल सकता है क्योंकि गन्ने की कटाई, सफाई के साथ ही अगर आप ठेली या दुकान लगाते हैं तो वहां भी आप को किसी मददगार की जरूरत पड़ती है.

ये लोग आप के परिवार के लोग भी हो सकते हैं या गांव के बेरोजगार या अन्य कोई. अगर आप के पास गन्ने के रस का व्यवसाय शुरू करने के लिए शुरुआती पूंजी नहीं है तो आप किराए पर भी ठेली ले सकते हैं. ऐसे तमाम लोग हैं जो गन्ने का रस निकालने वाली मशीनों को किराए पर उठाते हैं. इन मशीनों का आप को हर रोज का बंधा किराया देना होता है.

गेहूं की इन किस्मों पर नहीं पड़ेगी मौसम की मार

देश के कई राज्यों में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि के कारण किसानों को भारी नुकसान हुआ है. इस से गेहूं का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है. पीड़ित किसान भी सरकार से मुआवजे की आस लगाए बैठे हैं.

जानकारी के लिए बता दें कि गेहूं की कुछ किस्में ऐसी भी हैं, जिन पर मौसम का कोई प्रभाव नहीं पड़ता और वे किस्में विपरीत परिस्थिति में भी भरपूर पैदावार देती हैं.

भारतीय गेहूं एवं जौ अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में गेहूं की नई प्रजातियों की बोआई के चलते उत्पादन में गिरावट नहीं आएगी, क्योंकि इन प्रजातियों में डीडब्ल्यू 327, 332, 372, 371 और 370 शामिल हैं. गेहूं की ये किस्में मौसम के प्रति सहनशील हैं.

इन विभिन्न प्रजातियों का विकास वातावरण के प्रति सहनशील है, जो इसे मौसम की विपरीत परिस्थितियों से बचाता है और फसल पैदावार पर कोई फर्क नहीं पड़ता.

संस्थान की इन गेहूं प्रजातियों के उपयोग से पैदावार में गिरावट नहीं आएगी और उत्पादन रिकौर्ड स्तर तक जारी रहेगा.

प्रति एकड़ 30 से 35 क्विंटल तक मिलती है पैदावार

भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान केंद्र के निदेशक डा. ज्ञानेंद्र सिंह का कहना है कि बदलते मौसम के कारण हम सभी आशंकित थे कि पैदावार में गिरावट देखी जा सकती है, परंतु प्रति एकड़ 30 से 35 क्विंटल की पैदावार किसानों को मिली.

इस बात से साफ है कि बदलते मौसम के बावजूद गेहूं की पैदावार पर कोई असर नहीं हुआ है. इस तरह से गेहूं की इन विभिन्न किस्मों में बड़ी उत्पादकता की संभावना है.

गेहूं उत्पादन का रिकौर्ड टूटने की संभावना

गेहूं की इस साल की पैदावार ने भारत सरकार के निर्धारित उत्पादन लक्ष्य को पार कर दिया है, जो कि 112 मिलियन टन निर्धारित किया था.

यह उत्पादन वर्ष 2020-21 के गेहूं उत्पादन 109 मिलियन टन की तुलना में अधिक होगा, जबकि वर्ष 2021-22 में गेहूं का उत्पादन 107 मिलियन टन ही हुआ था.

बकरीपालन के फायदे

सवाल : क्या बकरीपालन फायदे का काम है? इस बारे में खासखास बातें बताएं?

-शीना मंजरी, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश

जवाब : बकरी सभी तरह की जलवायु में रह सकती है. बकरीपालन पर ज्यादा खर्च नहीं आता, इसलिए यह एक बेहतर व्यवसाय है. हमारे देश में बकरीपालन कुटीर धंधे के रूप में किया जा रहा है.

व्यावसायिक तौर पर बकरीपालन करने के लिए हमें उन की उन्नत नस्लों के बारे में पता होना जरूरी है. बकरी के चारे, प्रजनन, इलाज व रखरखाव वगैरह के बारे में आप अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से पूरी जानकारी ले सकती हैं. जब से डेंगू के मरीजों को बकरी का दूध दिया जाने लगा है, तब से बकरी पालने का फायदा बढ़ गया है.


सवाल : मेरे बगीचे में संतरे के 20 पेड़ हैं, जो 6-7 साल के हो चुके हैं. इन में पहली बार तकरीबन सौ फल लगे हैं, जो नीबू से भी ज्यादा खट्टे हैं. ऐसा क्यों हुआ? क्या ये खट्टे से मीठे हो सकते हैं?

-अभिषेक राज, विदिशा, मध्य प्रदेश

जवाब : आप ने यह नहीं बताया कि किस मौसम में फल आए थे. आमतौर पर सर्दी के मौसम के फलों में खटास कुछ ज्यादा ही होती है, पर गरमी वाले फल मीठे होते हैं. वैसे, यह प्रजाति भी ऐसी हो सकती है, जो खट्टी हो.


सवाल : मैं अपने बाग में अंगूर लगाना चाहती हूं. कृपया जानकारी दें?

-मोनिका, मेरठ, उत्तर प्रदेश

जवाब : आप ने यह नहीं बताया कि आप का किस फल का बाग है, जिस में आप अंगूर लगाना चाहती हैं. आम, लीची, अमरूद व जामुन वगैरह के बाग में अंगूर नहीं लगाया जा सकता.


सवाल : मैं भिंडी की खेती करना चाहता हूं. इस बारे में जानकारी दें?

-दिनेश कुमार, मुरादनगर, उत्तर प्रदेश

जवाब : पूसा ए 4, परभनी क्रांति, पूसा मखमली, पूसा सावनी, अर्का अनामिका व हिसार उन्नत वगैरह भिंडी की उन्नतशील किस्में हैं. भिंडी की बोआई का समय फरवरीमार्च होता है.

बोआई के लिए खरीफ मौसम में 8-10 किलोग्राम व जायद मौसम में 18-20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. जायद में 80-100 क्विंटल व खरीफ में 150-180 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज हासिल होती है. ज्यादा जानकारी हेतु अपने जिले के कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करें.


खेतीकिसानी से जुड़े सवाल आप हमें अपने नाम, पते और मोबाइल नंबर के साथ ईमेल farmnfood@delhipress.in  पर भेज सकते हैं.   

लेजर लैंड लैवलर से करें खेत को समतल, पाएं ज्यादा पैदावार

 भूमि समतलीकरण फसल, मिट्टी एवं जल के उचित प्रबंधन की पहली जरूरत है. अगर भूमि के समतलीकरण पर ध्यान दिया जाए, तो उन्नत कृषि तकनीकें और ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकती हैं. इसलिए किसान अपने खेतों को समतल करने के लिए उपलब्ध साधनों का पर्याप्त रूप से उपयोग
करते हैं.

इतना ही नहीं, भूमि के समतलीकरण की पारंपरिक विधियां बहुत ही कठिन और अधिक समय लेने वाली हैं. धान की खेती करने वाले किसान अपने खेतों में पानी भर कर समतल करते हैं. लगभग 20-25 फीसदी पानी का नुकसान खेतों के असमतल होने के चलते ही होता है.

असमतल होने की वजह से धान के खेतों में इस वजह से भी ज्यादा नुकसान होता है. असमतलीकरण से सिंचाई जल के नुकसान के अलावा जुताई और अन्य फसल उत्पादन प्रक्रियाओं में देरी होती है.

असमतल खेतों में फसल एकसमान नहीं होती है. उन का फसल घनत्व अलगअलग होता है. फसल एक समय में नहीं पकती है. इन सभी वजहों से फसल की उपज पर काफी बुरा असर पड़ता है और उन की क्वीलिटी भी गिर जाती है. साथ ही साथ किसानों को अपनी फसल के दाम भी बहुत कम मिलते हैं.
भूमि समतलीकरण के काम समतल भूमि में फसल प्रबंधन का काम कम हो जाता है. साथ ही, पानी की बचत होती है. फसल के उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि होती है. भूमि समतलीकरण के निम्न फायदे हैं :

 अधिक फसल उत्पादन

भूमि समतलीकरण से 20 फीसदी तक उपज में बढ़ोतरी संभव है. भूमि जितनी अधिक समतल होगी, उतनी ही उत्पादन में अधिक वृद्धि होगी.

खरपतवार पर नियंत्रण

समतल भूमि में खरपतवार का नियंत्रण अच्छी तरह से किया जा सकता है. धान के खेतों में अधिक भूमि क्षेत्रों में पानी भरा होने से खरपतवार 40 फीसदी तक कम हो जाते हैं. साथ ही साथ निराई में कम मजदूर लगते हैं और लागत भी कम हो जाती है.

उत्पादन में वृद्धि

अच्छी तरह समतल भूमि में पानी का समान वितरण होता है, जिस से पोषक तत्त्वों का नुकसान नहीं होता है. जड़ सड़न और तना सड़न जैसे रोग कम लगते हैं और लगभग 10 से
15 फीसदी तक उत्पादन बढ़ जाता है.

समय और पैसों की बचत

समतल भूमि में सिंचाई करने में कम समय लगता है और क्यारियां और बरहें 50 से 60 फीसदी कम बनाने पड़ते है, जिस से समय व पैसों की बचत होती है

सिंचाई में पानी की बचत

समतल भूमि में 10 से 15 फीसदी पानी की बचत होती है, जिस से जल संरक्षण में मदद मिलती है और मिट्टी की सेहत में सुधार होता है.

भूमि समतलीकरण की विधियां

भूमि समतलीकरण पशुचालित, ट्रैक्टरचालित और बुलडोजर के द्वारा भिन्नभिन्न समतलन (लैवलर) यंत्रों के उपयोग के द्वारा किया जा सकता है. पहले हल व हैरो द्वारा जुताई और फिर पटेला चला कर समतल किया जाता है. समतल किए खेतों में पूरी तरह से पानी भर कर (5 सैंटीमीटर या उस से अधिक) भी किया जाता है.

ट्रैक्टर द्वारा लैवलिंग ब्लेड या डग बकेट यंत्रों का उपयोग कर के भूमि को समतल किया जाता है. इस काम में 4 से 8 घंटे लगते हैं, जो ट्रैक्टर यंत्र व हटाए जाने वाले भूमि के आयतन और भरने वाले स्थान की दूरी पर निर्भर करता है. लेजर पद्धति में ट्रैक्टर द्वारा बकेट या लैवलर ब्लेड का उपयोग कर के भूमि को समतल किया जाता है. इस में भूमि का तल बिलकुल समतल या एकजैसी ढाल देने के लिए लेजर किरण का उपयोग किया जाता है. लेजर पद्धति द्वारा भूमि 50 फीसदी तक अधिक समतल होती है.

लेजर पद्धति द्वारा भूमि समतलीकरण से लाभ

लेजर पद्धति का उपयाग उन्नत देशों जैसे जापान, अमेरिका, आस्ट्रेलिया आदि में भूमि समतलीकरण के लिए किया जाता है. हमारे देश में इस पद्धति का उपयोग सीमित तौर पर शुरू हो रहा है. इस का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो, इस के लिए किसानों को इस का महत्त्व समझाना जरूरी है. इस के मुख्य लाभ निम्न हैं :
* अधिक समतल एवं चिकनी भूमि सतह.
* खेतों की सिंचाई में लगने वाले पानी की मात्रा एवं समय में कमी.
* सिंचाई में पानी का समान वितरण.
* भूमि में नमी का समान वितरण.
* अधिक अच्छा अंकुरण व फसल की बढ़वार.
* बीज, खाद, रसायन व डीजल और बिजली की बचत.
* यंत्रों सहित खेतों में चलनाफिरना आसान.

लेजर लैवलर की कार्य प्रणाली

लेजर लैवलर समतलीकरण की एक ऐसी मशीन है, जो ट्रैक्टर की मदद से ऊंचेनीचे खेतों को एक समतल सतह में बराबर करने के लिए इस्तेमाल की जाती है. इस मशीन के द्वारा किरणों के निर्देशन से चलने वाली स्वचालित धातु का बग ब्लेड होता है, जो हाइड्रोलिक पंप के दबाव से काम करता है और ऊंचे स्थानों से खुद मिट्टी काट कर निचले स्थान पर गिरा देता है, जिस से खेत बराबर हो जाता है.

लेजर संप्रेषण
लेजर संप्रेषण बैटरी से चलने वाला एक किरण निकालने वाला छोटा यंत्र होता है, जिस को खेत के बाहर एक स्थान पर निर्धारित कर रख दिया जाता है, जो चालू करने पर एक सीधी रेखा में चारों तरफ किरणें निकालता है. किरणों के स्तर पर खेत समतल होता है.

लेजर ग्राही
लेजर ग्राही ब्लेड के ऊपर लगाया जाता है, जो लेजर संप्रेषण द्वारा भेजी गई किरणों को प्राप्त कर नियंत्रण बौक्स को सूचना देता है, जिस से नियंत्रण बौक्स काम करता है.

नियंत्रण बौक्स
नियंत्रण बौक्स एक छोटे से डब्बे जैसा यंत्र है जिस से छोटेछोटे बल्ब लगे होते हैं. ट्रैक्टर ड्राइवर के पास इस को लगाया जाता है, जिस से ड्राइवर की नजर उस पर पड़ती रहे. यह पूरी तरह से स्वसंचालित होता है. खेत को जिस सतह पर समतल करना होता है, उस की सूचना नियंत्रण बौक्स में निर्धारित कर दी जाती है. यह हाइड्रोलिक यूनिट को चलाता है.

हाइड्रोलिक यूनिट
हाइड्रोलिक यूनिट ट्रैक्टर के हाइड्रोलिक से जुड़ी रहती है, जो नियंत्रण बौक्स के सूचना देने पर ब्लेड को ऊपरनीचे करने में सहयोग करते हुए संचालित करती है, जिस से मिट्टी काटी या गिराई जाती है और खेत समतल होता है.

लेजर लैवलर का संचालन

इस मशीन को संचालित करने के लिए कम से कम 50-60 हौर्सपावर के ट्रैक्टर की जरूरत पड़ती है. इस मशीन से खेत को समतल करने के लिए सब से पहले उसे किस लैवल पर समतल करना है, इस के लिए इस मशीन के विशेष फोल्डिंग मीटर एवं लेजर संप्रेषक की मदद से खेत में सर्वे कर लैवलिंग सतह का निर्धारण कर लिया जाता है.

यही निर्धारण सतह लेजर लैवलर नियंत्रण बौक्स में निर्धारण कर देते हैं और इस मशीन को ट्रैक्टर से जोड़ कर खेत में एक तरफ से चलना शुरू कर देते हैं, जो लेजर संप्रेषक द्वारा भेजी जा रही किरण को प्राप्त कर नियंत्रण बौक्स के माध्यम से हाइड्रोलिक यूनिट द्वारा दबाव से चलने वाले ब्लेड के द्वारा मिट्टी काट कर या गिरा कर खेत को समतल कर देता है.

खर्सू के पेड़ पर रेशम

रेशम प्राकृतिक प्रोटीन से बना रेशा है. रेशम का इस्तेमाल कपड़ा बनाने के लिए किया जाता है. इस की बनावट के कारण यह बाजार में बहुत महंगी कीमतों में बिकता है. इन प्रोटीन रेशों में मुख्यत: फिब्रोइन होता?है. ये रेशे कीड़ों के लार्वा द्वारा बनते हैं.

रेशम की खेती मुख्यत: 3 प्रकार से होती है, मलबेरी रेशम, टसर रेशम व एरी रेशम के रूप में. सब से उत्तम रेशम शहतूत है, जो कि अर्जुन के पत्तों पर पलने वाले कीड़ों के लार्वा द्वारा बनाया जाता है. लेकिन मुनस्यारी में खर्सू जैसे सामान्य पेड़ पर भी इस का उत्पादन हो रहा है. दशकों से जानवरों के चारे और शीतकाल में सेंकने के लिए कोयला देने वाला खर्सू से रेशम भी बन सकता है.

इस पर कृषि विभाग कार्यशाला भी आयोजित करता है, ताकि किसान उत्साह से इस की जानकारी ले कर रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर बन सकें.

अब तक नगण्य समझे जाने वाले कालामुनि, बिटलीधार के खर्सू के पेड़ों से रेशम तैयार होने लगा है. आने वाले सालों में खर्सू स्थानीय ग्रामीणों की आजीविका का प्रमुख माध्यम बनने जा रहा है.

खर्सू चारा प्रजाति का पेड़ है. इस की चौड़ी पत्तियां जानवरों को खूब भाती हैं. जानवरों के लिए इन पत्तियों का चारा सब से पौष्टिक माना जाता है.

पशुपालकों के मुताबिक, खर्सू की पत्तियों का चारा खिलाने से दुधारू जानवरों का दूध बढ़ जाता?है. जंगलों में काफी अधिक संख्या में पाए जाने वाले इस वृक्ष की लकड़ी जलाने के काम आती है. इस के कोयले भी बनाए जाते हैं, जिन का प्रयोग ऊंचाई पर रहने वाले लोग शीतकाल में आग सेंकने में लाते हैं. इस वजह से इन का कटान भी काफी होता है.

इस खर्सू के दिन अब फिर गए हैं. पहाड़ी इलाके में शहतूत और बांज की पत्तियों में रेशम पैदा किया जाता है, पर अब खर्सू से रेशम पैदा करने की कवायद शुरू हो चुकी?है.

सब से पहले तो खर्सू जंगलों में काफी अधिक होता है. इस के लिए अलग से जंगल तैयार करने की आवश्यकता नहीं है. मुनस्यारी के ऊंचाई वाले कालामुनि, बिटलीधार से ले कर मुनस्यारी के आसपास के जंगलों में यह बहुतायत में है.

अब तक जानवरों के लिए पौष्टिक आहार मानी जाने वाली पत्तियों को रेशम के कीट भी अपना आहार बनाने जा रहे हैं. आने वाले दिनों में स्थानीय लोगों के लिए खर्सू आमदनी का प्रमुख जरीया बनने जा रहा है. खर्सू की पत्तियां खा कर कीट टसर बनाएगा. किसान खर्सू के पेड़ की सहज उपलब्धता से काफी उत्साहित है और एक विशेष बात यह है कि रेशम की फसल सब से कम समय में तैयार होती है. इस फसल को तैयार होने में 40 से 50 दिन लगते हैं, जिस को किसान खर्सू के पेड़ों का टसर रेशम का उत्पादन कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं.

इस काम को करने से लोगों के रोजगार के रास्ते भी खुल रहे हैं. खरीदार खुद आ कर माल ले जाते हैं. यह काम काफी सुविधाजनक है और कम तामझाम वाला है. खर्सू के एक पेड़ पर कुछ हजार कीट लाखों रुपयों का रेशम दे रहे हैं. इस का लाभ यह दिख रहा है कि पहाड़ों से शहर की तरफ पलायन भी रुक रहा है.

खर्सू का बीज तो नि:शुल्क मिलता है और यहां के लोगों द्वारा खर्सू के पेड़ और उगाए जा रहे हैं. रेशम उद्योग के साथसाथ पर्यावरण संरक्षण भी हो रहा है.