Vegetables : बरसात में उगाई जाने वाली खास सब्जियां

Vegetables : बरसात के मौसम में बाजार में सब्जियां अक्सर महंगी हो जाती हैं. क्योंकि बरसात में अनेक बेल वाली सब्जियां बरसात के कारण सड़ने लगती हैं, जिस कारण पैदावार कम हो जाती है. इस के अलावा सब्जियों में अनेक तरह की कीट बीमारियां भी बढ़ जाती हैं. पत्तेवाली सब्जियों की इन दिनों बहुआहत होती है, लेकिन कीड़ों के चलते इन्हें लोग कम खरीदते हैं. ख़पतवार भी अधिक पनपते हैं, जो पैदावार में कमी लाते हैं.

ऐसे में जरूरी है कि बरसात में कुछ खास सब्जियों पर फोकस कर उन्हें आप घर में भी उगा सकते हैं.

सेम की फली सब्जी की खेती

सेम बहुत पसंद की जाने वाली पौष्टिक सब्जी है. इसे बीज के जरीए सीधा उगाया जाता है. उत्तर भारत के क्षेत्र में इसे उगाने का सब से अच्छा समय जून से ले कर अगस्त का महीना है. सेम की फली में बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन होता है. सब से ध्यान रखने योग्य बात ये है कि इसे लगाते समय बीज का ध्यान रखना बहुत जरूरी है. अपने क्षेत्र के अनुसार इस की बीज की प्रजाति को लगाएं.

बैगन की खेती

बैगन एक सदाबहार सब्जी है और इस से सालोंसाल फल उत्पादन लिया जा सकता है. गर्मियों में इसे मार्चअप्रैल के महीनो में उगाया जाता है. तो सर्दियों के लिए बरसात का मौसम शुरू होते ही लगा दिया जाता है. इस की अच्छी उपज के लिए अच्छी प्रजाति का चयन करें.

करेला की खेती

करेले की खेती अब एक औषधीय फसल भी हो चुकी है, क्योंकि शुगर के पीड़ित लोगों के लिए यह बहुत स्वास्थ्यवर्धक सब्जी मानी जाती है और लोग इस के जूस का सेवन भी सालोंसाल करते हैं. इसलिए निश्चित तौर पर यह मुनाफा देने वाली फसल है. इन दिनों बरसात का मौसम आने वाला है और देश के कई इलाकों में मानसून आ भी चुका है.

ऐसे में बरसात के मौसम में करेले की खेती भी एक अच्छी सब्जी है. लेकिन बरसात के लिए करेले के अलग तरीके के बीज आते हैं. अक्सर लोग गर्मी के मौसम के ही बीजों को उपयोग कर लेते हैं, जिस कारण करेला का उत्पादन अच्छा नहीं मिल पाता. इसलिए आप इस बात का जरूर ध्यान रखें, कि अगर आप बरसाती मौसम का करेला लगाने जा रहे हैं, तो उसी के अनुसार करेले का बीज खरीदें. अगर किसी अन्य मौसम में करेला लगाना है, तो उस के अनुसार ही करेले की प्रजाति का चयन करें.

टमाटर की खेती

टमाटर अब सालों साल मिलता है और इस के बिना अब हर सब्जी का स्वाद भी अधूरा है. साल भर में टमाटर बाजार में अपने कई रंग भी दिखाता है. कभी किसान के वारेन्यारे करता है तो कभी उस के लिए घाटे का सौदा भी बनता है. इसलिए जरूरी है कि समय के अनुसार अच्छी उपज देनेवाली प्रजाति का चयन करें.

टमाटर की खेती आमतौर पर तीन मौसमों में की जाती है:

– खरीफ मौसम में इस की खेती जूनजुलाई में की जाती है. इस समय बारिश का मौसम होता है.

– रबी की खेती में अक्टूबरनवंबर के मौसम में तापमान कम होता है, जो टमाटर की खेती के लिए अनुकूल होता है. इस समय में फसल की वृद्धि अच्छी होती है.

– जायद के समय टमाटर की खेती फरवरीमार्च के समय की जाती है. इस समय तापमान सामान्य होता है.

टमाटर की खेती के लिए उपयुक्त किस्में

भारत में टमाटर की अनेक किस्में होती हैं, जो अलगअलग मौसम और क्षेत्रों में उगाई जाती हैं. कुछ प्रमुख किस्में हैं:

पूसा रूबी, पूसा अर्ली ड्वार्फ, पूसा 120, आर्का विकास, आर्का अभिजीत

इनमें से किसी भी किस्म का चयन करने से पहले कृषि जानकर से यह जानकारी भी लें, कि आप के क्षेत्र के अनुसार कौन से किस्म अच्छी रहेगी.

बीज की तैयारी और बोआई

बोआई से पहले बीजों को फफूंदनाशक से उपचारित कर लेना चाहिए. ताकि रोगों से बचाव हो सके. फिर बीज उपचार के बाद टमाटर की नर्सरी तैयार करें.

पौधों को खेत में रोपने से पहले मिट्टी को अच्छी तरह जोत कर तैयार कर लेना चाहिए. पौधों के बीच 60-75 सैंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए.

टमाटर की खेती के लिए उचित मात्रा में खाद और सिंचाई की आवश्यकता होती है.

सिंचाई

टमाटर के पौधों को नियमित रूप से सिंचाई की आवश्यकता होती है. गरमी के मौसम में हर 4 से 5 दिन और सर्दी में 10 से 15 दिन के अंतराल पर सिंचाई करें.

टमाटर के पौधे की देखभाल का सही तरीका

कीटों और बीमारियों से बचाव

कीट नियंत्रण: सफेद मक्खी, चेपा, और फल छेदक कीट टमाटर के प्रमुख दुश्मन हैं. इन से बचाव के लिए जैविक कीटनाशकों का प्रयोग करें.

रोग नियंत्रण: टमाटर में पत्तियों का पीला पड़ना, तना गलन, और फल सड़न जैसी बीमारियां हो सकती हैं. इन से बचने के लिए रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें और समयसमय पर फफूंदनाशकों का छिड़काव करें.

Pro Tray Technology : प्रो ट्रे तकनीक से उगाएं फलसब्जियां

Pro Tray Technology : आमतौर पर खेती जमीन, घर आंगन के बगीचे या गमलों में लोग करते आए हैं. बड़े पैमाने पर खेती करने के लिए बड़े रकबे यानी खेती की जमीन की जरूरत होती ही है. लेकिन घर की सामान्य जरूरत लायक सब्जी की खेती हम घर के आसपास खाली पड़ी जमीन या गमलों में या घर के छज्जे या छत पर भी कर सकते हैं. क्योंकि कुछ फलसब्जियां बिना कृषि रसायनों के घर में भी उगाई जा सकती हैं, जो गुणकारी होने के साथ पौष्टिक भी होती हैं.

इस तकनीक से अलग हट कर कुछ और तरीकों से भी फलसब्जी की खेती की जा सकती है.

प्रो ट्रे तकनीक से फलसब्जियां

हाइड्रोपोनिक और वर्टिकल फार्मिंग की तरह ही प्रो ट्रे तकनीक भी चलन में है और किसानों द्वारा अपनाई जा रही है. इस खास तकनीक के जरीए किसान कम खर्च और कम जगह में सब्जियों की अच्छी पैदावार ले सकते हैं.

प्रो ट्रे में करें नर्सरी तैयार

नर्सरी तैयार करने के लिए प्रो ट्रे तकनीक एक आधुनिक तकनीक है. प्रो ट्रे में फल या सब्जी की नर्सरी तैयार करने के लिए सब से पहले प्रो ट्रे लें , जो आप को खादबीज, नर्सरी या खेती के सामान बेचने वालों के यहां आसानी से मिल जाएगी. वहां से आप ये ट्रे खरीद लें. फिर कंपोस्ट सीओ और कोकोपीट नारियल तेल का बेस तैयार कर लें. इस के लिए सब से पहले कोकोपीट ब्लौक की जरूरत होगी. यह नारियल के बुरादे से बनती है. इस ब्लौक को 5 घंटे तक पानी में भिगो कर रखना है और फिर कोकोपीट ब्लौक की अच्छी तरह से सफाई करनी है, ताकि इस में मौजूद सब गंदगी बाहर निकल जाएं और पौधों को किसी तरह का नुकसान न पहुंचे और पौध अच्छी गुणवत्ता वाली तैयार हो सके. उस के बाद कोकोपीट ब्लौक को अच्छी तरह सुखा लें.

जब ब्लौक सूख जाए तो 50 फीसदी वर्मी कंपोस्ट और 50 फीसदी कोकोपीट को अच्छी तरह मिक्स कर मिश्रण तैयार करें. अब इस तैयार मिश्रण को प्रो ट्रे में भर लें.

प्रो ट्रे में बीजों की बोआई

प्रो ट्रे के हर खाने में उंगली या किसी लकड़ी की मदद से छेद कर गड्ढा बना लें और अब इस में धीरेधीरे बीज डाल दें. फिर उन्हें हल्के हाथ से ढक दें. हमें यह ध्यान रखना है कि बीजों की बोआई के तुरंत बाद सिंचाई नहीं करनी है. क्योंकि तैयार मिश्रण में नमी होती है, जो बीज अंकुरण के लिए काफी होती है. इस के बाद इन ट्रे को अंधेरे में रख दें.

जब पौधे उग जाएं, तो प्रो ट्रे को निकाल कर बाहर रख देना है और इस के बाद पौधों की पहली सिंचाई करनी है. इन पौधों को सूखने ना दें. इस तरीके से 10 से 15 दिन में एक बेहतरीन नर्सरी तैयार हो जाएगी और सभी पौधे रोपने के लिए तैयार हो चुके होंगे. अब आप इन को अपनी सुविधानुसार बड़े पौट या किसी बोरी या जमीन ,बगीचे में रोप सकते हैं.

इन की करें खेती

प्रो ट्रे तकनीक अपना कर कई तरह के देशी और विदेशी फलों और सब्जियों की खेती की जा सकती है. सब से खास बात यह है कि इस की मदद से किसी भी मौसम में सब्जियों और फल की खेती कर सकते हैं.  आजकल खेती में यह तकनीक बहुत चलन में है और किसान इस में बिना मौसम के भी बहुत सी सब्जियां उगा सकते हैं.

MSP : किसानों को मिली सौगात, खरीफ की 14 फसलों की बढ़ी एमएसपी

MSP: केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में किसानों को बड़ी सौगात दी गई. खरीफ की 14 फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाया गया है, जिस से किसानों को अब उन की उपज के अधिक दाम मिलेंगे. साल 2025- 26 खरीफ फसलों के समर्थन बढ़ने से किसानों का मुनाफा बढ़ेगा और उन की आर्थिक स्थिति में भी सुधार होगा. पिछले कुछ सालों से किसान और अनेक किसान संगठन एमएसपी बढ़ाने को ले कर सरकार पर दबाव बना रहे थे. ऐसे में सरकार का यह कदम किसानों के लिए लाभकारी है.

सोयाबीन एवं धान सहित अन्य खरीफ फसलों की बोआई से पहले केंद्र सरकार ने किसानों के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया है. दरअसल, 28 मई को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में धान, कपास, सोयाबीन, अरहर समेत खरीफ की 14 फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में इजाफा किया गया है.

इस के अलावा सरकार ने किसान क्रेडिट कार्ड की ब्याज सब्सिडी योजना को भी आगे बढ़ाया है.

अब किसान क्रेडिट कार्ड पर कम ब्याज में लोन भी दिया जाएगा. इस बात की जानकारी केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दी. नई एमएसपी से सरकार पर 2 लाख 7 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा. यह पिछले फसल सीजन की तुलना में 7 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है.

केंद्रीय मंत्री ने बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) फसल की लागत से कम से कम 50 फीसदी ज्यादा हो, इस बात का खास ध्यान रखा गया है. सोयाबीन, धान एवं कपास सहित कई खरीफ फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में कितनी बढ़ोतरी की गई है, इस की जानकारी यहां दी गई है.

खरीफ फसलों की नई एमएसपी

धान की नई एमएसपी 2,369 रुपए तय की गई है, जो पिछली एमएसपी से 69 रुपए ज्यादा है. कपास की नई एमएसपी 7,710 रुपए तय की गई है. इस की एक दूसरी किस्म की नई एमएसपी  8,110 रुपए कर दी गई है, जो पहले से 589 रुपए ज्यादा है. सब से ज्यादा रामतिल की एमएसपी में 820 रूपए की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

एमएसपी          एमएसपी       एमएसपी  वृद्धि

फसल             2024-25(रुपए में)   2025-26(रुपए में)   (रुपए में)

धान (सामान्य)       2,300             2,369              69

धान (A ग्रेड)         2,320             2,389              69

ज्वार (हाइब्रिड)       3,371             3,699              328

ज्वार (मालदंडी)      3,421             3,749              328

बाजरा              2,625             2,775              150

रागी               4,290             4,886              596

मक्का              2,225             2,400              175

तुवर/अरहर          7,550              8,000              450

मूंग                8,682             8,768               86

उड़द               7,400              7,800              400

मूंगफली            6,783              7,263              480

सूरजमुखी           7,280             7,721              441

सोयाबीन            4,892             5,328              436

तिल                9,267             9,846              579

रामतिल             8,717             9,537              820

कपास (मिडिल स्टेपल) 7,121             7,710              589

कपास (लांग)               7,521             8,110              589

मिनिमम सर्पोट प्राइस यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य वो गारंटीड मूल्य है, जो सरकार द्वारा तय किया जाता है. जिस के तहत किसानों को उन की फसल पर नई एमएसपी पर उपज की कीमत मिलती है. भले ही बाजार में उस फसल की कीमतें कम हो.

इस के पीछे सरकार का तर्क यह है कि बाजार में फसलों की कीमतों में होने वाले उतारचढ़ाव का असर किसानों पर न पड़े. उन्हें अपनी फसल की न्यूनतम कीमत मिलती रहे.

सरकार हर फसल सीजन से पहले सीएसीपी (CACP) यानी ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ की सिफारिश पर  एमएसपी तय करती है. यदि किसी फसल की बंपर पैदावार हुई है तो उस की बाजार में कीमतें कम होती हैं, तब एमएसपी उन के लिए फिक्स एश्योर्ड प्राइस का काम करती है. यह एक तरह से कीमतें गिरने पर किसानों को बचाने वाली बीमा पौलिसी की तरह काम करती है.

किसान क्रेडिट कार्ड की ब्याज सब्सिडी योजना को आगे बढ़ाया

केंद्र सरकार ने 2025-26 के लिए किसान क्रेडिट कार्ड की ब्याज सब्सिडी योजना (खरीफ फसल एमएसपी सूची) को जारी रखने का फैसला किया है. ब्याज सब्सिडी योजना को अगले वित्त वर्ष 2025-26 के लिए जारी रखने को मंजूरी दे दी गई है.

इस के लिए जरूरी फंड भी तय कर लिया गया है. ये योजना किसान क्रेडिट कार्ड के द्वारा किसानों को कम ब्याज पर लोन देने के लिए है. किसान, किसान क्रेडिट कार्ड  से 3 लाख रुपए तक का लोन 7 फीसदी ब्याज पर ले सकते हैं, जिस में बैंकों को 1.5 फीसदी ब्याज सब्सिडी मिलती है.

जो किसान समय पर लोन चुका देते हैं, उन्हें 3 फीसदी तक का प्रोत्साहन मिलता है, यानी उन का ब्याज सिर्फ 4 फीसदी रह जाता है. इस के अलावा कृषि के सहायक काम जैसे पशुपालन या मछलीपालन के लिए भी लोन पर 2 लाख रुपए तक की सीमा पर ये लाभ मिलता है.

कुल मिला कर देखा जाए तो खेती और उस से जुड़े काम करने वाले अनेक लोगों समेत सरकार ने सब का ध्यान रखा है .

“विकसित क़ृषि संकल्प अभियान” की शुरुआत

अविकानगर : केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर के द्वारा “विकसित क़ृषि संकल्प अभियान” की शुरुआत दिनांक 29 मई, 2025 को सुबह 9 से 11 बजे मालपुरा तहसील की लावा पंचायत में स्थानीय विधायक कन्हैयालाल चौधरी कैबिनेट मंत्री जलदाय विभाग, मुख्य अथिति एवं विशिष्ट अथिति के रूप मे जिला प्रमुख टोंक और मालपुरा तहसील के प्रधान सकराम चोपड़ा एवं अन्य जनप्रतिनिधि गणों की उपस्थिति मे कार्यक्रम की शुरुआत करेंगे.

लावा पंचायत में कार्यक्रम के बाद दोपहर 11 से 1 बजे तक अविकानगर संस्थान के सभागार में भी विकसित क़ृषि संकल्प अभियान के तहत आयोजित कार्यक्रम में भी मंत्री एवं अन्य अथिति भाग लेंगे. दिनांक 29 मई, 2025 के कार्यक्रम में अविकानगर संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र निवाई, मालपुरा तहसील के कृषि और पशुपालन विभाग के सारे कर्मचारी उपस्थित रह कर किसानों की खरीफ की फसल एवं पशुपालन से संबंधित सभी समस्याओं का निदान करेंगे और प्रगतिशील किसान के विचार भी सभा में साझा होंगे एवं किसान के फीडबैक का भी भविष्य के हिसाब से मूल्यांकन किया जाएगा.

राजस्थान राज्य के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा नामित स्टेट कोऔर्डिनेटर एवं निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने बताया कि कल के दोनों कार्यक्रम में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ कृषि और पशुपालन विभाग के कर्मचारी उपस्थित रह कर किसान से विस्तार से बातचीत करेंगे. अविकानगर से शुरू हो रहे इस कार्यक्रम में निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने अधिक से अधिक भाग लेने के लिये टोंक जिले के सभी किसान से अपील की.

Conference : “बागबानी में तेजी से कैसे हो विकास” पर राष्ट्रीय सम्मेलन

Conference : कृषि क्षेत्र में आजीविका सुधार के लिए “बागबानी के तीव्र विकास” विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन 28 से 31 मई, 2025 तक बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में किया जा रहा है. इस सम्मेलन में देशभर से प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, नीतिनिर्माताओं और शिक्षाविदों ने भाग लिया. इस का उद्देश्य भारत में बागबानी क्षेत्र की वृद्धि के लिए नवाचार पूर्ण रणनीतियों और कार्य योजना पर विचार करना था.

इस कार्यक्रम में डा. संजय कुमार, अध्यक्ष, एएसआरबी, नई दिल्ली (मुख्य अतिथि), डा. एचपी सिंह, पूर्व उप महानिदेशक (बागबानी), नई दिल्ली, डा. एआर पाठक, पूर्व कुलपति, जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय, डा. एसएन झा, उप महानिदेशक, कृषि अभियांत्रिकी, आईसीएआर, नई दिल्ली, डा. आलोक के सिक्का, भारत प्रतिनिधि, आईडब्लूएमआई, नई दिल्ली, डा. बबिता सिंह, न्यासी, एएसएम फाउंडेशन, डा. फिजा अहमद, निदेशक, बीज एवं फार्म, बीएयू सबौर एवं आयोजन सचिव मौजूद थे.

इस कार्यक्रम में डा. संजय कुमार ने कहा कि बागबानी राष्ट्र निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. उन्होंने बताया कि बागबानी क्षेत्र प्रति इकाई क्षेत्रफल पर सब से अधिक लाभ देता है, और यह स्वागत योग्य परिवर्तन है कि किसान पारंपरिक खाद्यान्न फसलों से हट कर उच्च मूल्य वाली बागबानी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं.

डा. संजय कुमार ने पारंपरिक पद्धतियों से आगे बढ़ कर विपणन, ब्रांडिंग और प्रसंस्करण के बाद की प्रक्रिया पर जोर दिया. उन्होंने क्षेत्रीय विशेषताओं को बढ़ावा देने और उपज के नुकसान को कम करने के लिए जीआई विशिष्ट मौल और खुदरा स्टोर स्थापित करने का सुझाव दिया. कुपोषण की समस्या पर भी उन्होंने बागबानी के विविधीकृत उपायों के माध्यम से एकीकृत समाधान की आवश्यकता पर बल दिया.

मौके पर मौजूद

डा. एचपी सिंह ने ‘विकसित भारत’ पहल के अंतर्गत सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता बताई और लचीली, अधिक उपज देने वाली, संसाधन कुशल तकनीकों को अपनाने की बात कही. डा. एआर पाठक ने एएसएम फाउंडेशन के सदस्यों के योगदान की सराहना की और उन के देशभक्ति भाव को इस पावन अवसर पर याद किया. साथ ही, उत्कृष्ट योगदान के लिए उन को सम्मान भी प्रदान किए गए.

डा. एसएन झा ने मखाना और लीची जैसी फसलों पर केंद्रित अनुसंधान की आवश्यकता को रेखांकित किया और विश्वविद्यालय आधारित अनुसंधान को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कार्यात्मक प्रजनन की सिफारिश की.

डा. आलोक के सिक्का ने 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया. उन्होंने आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के संतुलन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि बागबानी कृषि जीडीपी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. डा. फिजा अहमद, आयोजन सचिव ने विश्वविद्यालय की प्रमुख उपलब्धियों को साझा किया, जिन में 19 पेटेंट, 1 ट्रेडमार्क, 56 किसान किस्मों का पंजीकरण और जीआई डाक टिकटों का जारी होना शामिल है.

वैज्ञानिकों को किया सम्मानित :

इस सम्मेलन के दौरान महत्वपूर्ण शोध पत्रिकाओं एवं प्रकाशनों का विमोचन किया गया और बागबानी क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया. इस कार्यकम के उद्घाटन सत्र का समापन इस सामूहिक संकल्प के साथ हुआ कि बागबानी के क्षेत्र में नवाचार, सततता एवं समावेशिता को बढ़ावा दे कर ग्रामीण आजीविका को मजबूत किया जाएगा.

Training : भेड़बकरी और खरगोश पालन पर ट्रेनिंग

Training : केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में “व्यावसायिक भेड़बकरी एवं खरगोश पालन पर 7 दिवसीय उद्यमिता विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम” का सफलतापूर्वक समापन हुआ. यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 21 से 27 मई, 2025 तक संस्थान के एग्री बिजनेस इंक्यूबेशन सेंटर एवं केड फाउंडेशन उदयपुर की देखरेख में आयोजित किया गया.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में 5 राज्यों बिहार, हरियाणा, मध्यप्रदेश, हिमाचल प्रदेश एवं राजस्थान से आए कुल 45 प्रतिभागियों ने भाग लिया. इस कार्यक्रम की अध्यक्षता डा. अरुण कुमार तोमर निदेशक, केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर ने प्रशिक्षण कार्यक्रम की. इस कार्यक्रम की सफलता पर खुशी जताते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे कार्यक्रम पशुपालकों और नव उद्यमियों के लिए अधिक लाभकारी होते हैं. उन्होंने प्रतिभागियों को पशुपालन के क्षेत्र में नवाचार तकनीकी उन्नयन और सतत विकास को अपनाने की दिशा में भी प्रेरित किया.

इस समारोह के समापन के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में डा. अनिल कुमार पूनिया निदेशक भारतीय ऊंट अनुसंधान केंद्र, बीकानेर एवं विशिष्ट अतिथि जीएस भाटी कार्यकारी निदेशक केंद्रीय ऊन विकास बोर्ड जोधपुर ने अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने प्रतिभागियों को पशुपालन के क्षेत्र में नवीनतम तकनीकों का लाभ उठाते हुए व्यवसाय को एक नए आयाम तक पहुंचाने के लिए प्रोत्साहित किया.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का समन्वयक डा. अजित सिंह महला ने किया, जबकि सहसमन्वयक के रूप में डा. अमरसिंह मीना एवं गौतम चोपड़ा ने कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इस अवसर पर डा. एसएस डांगी, डा. एसएस मिश्रा, डा. अजय कुमार, डा. अरविंद सोनी, नरेश बिश्नोई, प्रकाश बिश्नोई एवं केड फाउंडेशन टीम की उपस्थिति रही.

एक सप्ताह भर चले इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में पशुपालन के विभिन्न पहलुओं जैसे- स्वास्थ्य प्रबंधन, प्रजनन प्रबंधन, पोषण प्रबंधन, विपणन रणनीति एवं व्यवसाय योजना निर्माण पर विशेषज्ञ सलाह एवं संवाद सत्र आयोजित किए गए. साथ ही, प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण के दौरान प्राप्त ज्ञान को अधिक लाभकारी बताते हुए अपने अनुभव भी साझा किए.

Machine : किसान ने बनाई खूबियों वाली सस्ती कंबाइन मशीन

Machine : भारत की कृषिजोत छोटी है और खेतों तक जाने वाले रास्ते संकरे व पेड़ों से घिरे होते हैं. ऐसे में इन खेतों तक बड़े कृषि यंत्रों को ले जाना मुश्किल होता है. खेती में काम आने वाले जुताई, बोआई, मड़ाई वगैरह के कृषि यंत्र अलगअलग फसलों के लिए अलगअलग तरह के होते हैं.

मड़ाई के कृषि यंत्र फसल के अनुसार अलगअलग तरह के बने होते हैं, जिन के द्वारा गेहूं, धान, राई वगैरह  की मड़ाई की जाती है. छोटे किसानों के लिए अपनी फसल की मड़ाई के लिए महंगे व बड़े यंत्र खरीदना मुश्किल होता है. ऐसे में कभीकभी मड़ाई में देरी हो जाती है और देरी की वजह से कई बार बारिश या अन्य वजहों से फसल खराब भी हो जाती है.

किसानों की इन्हीं परेशानियों को देखते हुए उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के विकास खंड कप्तानगंज के गांव खरकादेवरी के रहने वाले 12वीं तक पढ़े नवाचारी किसान आज्ञाराम वर्मा ने एक ऐसी कंबाइन मशीन (Machine)  ईजाद की है, जो कई खूबियों के साथ कम लागत से तैयार की जा सकती है. यह विचार उन के दिमाग में तब आया जब साल 2015 में उन की तैयार गेहूं की फसल बरसात की वजह से कई बार भीग गई और वह अपने गेहूं की फसल की मड़ाई नहीं कर पाए. उन्होंने सोचा क्यों न एक ऐसी गेहूं कटाईमड़ाई की मशीन (Machine) तैयार की जाए जो कटाई व मड़ाई करने के साथसाथ भूसा भी तैयार कर सके.

आज्ञाराम वर्मा ने इन्हीं परेशानियों को ध्यान में रख कर एक ऐसी कंबाइन मशीन (Machine) का खाका तैयार किया, जो गेहूं की मड़ाई करने के साथसाथ भूसा भी तैयार कर सकती थी. इस के बाद वे इस मशीन (Machine) को बनाने में जुट गए. इस के लिए उन्होंने लोहे के तमाम पुर्जे व जरूरी सामान खुले बाजार से खरीद कर अपनी एक वर्कशाप तैयार कर के मशीन (Machine) बनानी शुरू कर दी. 11 नवंबर 2015 को उन्होंने एक ऐसी कंबाइन मशीन (Machine) बना कर तैयार की, जो छोटी होने के साथसाथ किसी भी संकरे रास्ते से खेतों में पहुंचाई जा सकती थी.

उन के द्वारा तैयार की गई इस कंबाइन मशीन (Machine) को बनाने में बहुत ही कम खर्च आया. करीब 2 लाख 75 हजार रुपए में बनी इस कंबाइन मशीन (Machine) का वजन 18 क्विंटल है. यह अन्य कंबाइन मशीनों से करीब 5 गुना सस्ती है. साथ ही इस की खूबियां इसे और भी बेहतर बनाती हैं. इस मशीन को चलाने के लिए किसी तरह की ट्रेनिंग की जरूरत नहीं होती है और मशीन में आने वाली खराबी को किसान खुद ठीक कर सकता है. इस के लिए अधिक पावर के ट्रैक्टर की भी आवश्यकता नहीं होती है. यह कंबाइन मशीन गेहूं की फसल को जड़ के साथ काटती है.

Machine

खूबियां बनाती हैं बेहतर : इस कंबाइन मशीन की खूबियां इसे बेहतर साबित करती हैं. इस मशीन द्वारा 1 घंटे में करीब 1 एकड़ खेत की कटाई की जा सकती है. 7 फुट चौड़े कटर वाली इस मशीन में 9 बेल्टों का प्रयोग किया गया है. इस में इस्तेमाल किए गए सभी कलपुर्जे बाजार में आसानी से मिल जाते हैं और मशीन में किसी तरह की खराबी आ जाने से इस को आसानी से ठीक किया जा सकता है. इस मशीन से एकसाथ गेहूं की कटाई व भूसा बनाने का काम किया जा सकता है. इस के लिए मशीन में अलगअलग 2 भंडारण टैंक लगाए गए हैं. मशीन के बगल में मड़ाई के दौरान गेहूं का भंडारण हो जाता है व मड़ाई से निकलने वाला भूसा मशीन के ऊपर लगे टैंक में चला जाता है.

इस मशीन को ट्रैक्टर के आगे या पीछे जोड़ कर चलाया जा सकता है. ट्रैक्टर के पीछे जोड़ने के लिए 20 हजार रुपए खर्च होते हैं व 20 मिनट का समय लगता है व आगे जोड़ने में 20 हजार रुपए खर्च आता है व 1 घंटे का समय लगता है. फसल की मड़ाई के बाद इस कंबाइन मशीन को ट्रैक्टर से अलग कर के ट्रैक्टर को दूसरे इस्तेमाल में भी लाया जा सकता है.

किसान आज्ञाराम वर्मा द्वारा तैयार की गई मशीन को देखने के लिए दूरदूर से लोग आ रहे हैं और उन के द्वारा तैयार की गई इस मशीन की भारी मांग बनी हुई है. बस्ती जिले के सांसद हरीश द्विवेदी ने किसान आज्ञाराम वर्मा के खेतों में जा कर खुद इस मशीन से गेहूं की मड़ाई कर के इस की खूबियों को जांचापरखा. उन का कहना है कि यह मशीन छोटे किसानों के लिए फायदेमंद साबित होगी.

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती में कृषि अभियंत्रण के वैज्ञानिक इंजीनियर वरुण कुमार का कहना है कि आज भी खेतीकिसानी में काम में आने वाली मशीनें महंगी हैं, जिस की वजह से सभी किसान उन का फायदा नहीं ले पाते हैं. ऐसे में किसान आज्ञाराम वर्मा द्वारा तैयार की गई कंबाइन मशीन छोटे किसानों को आसानी से मिल सकेगी.

इस के पहले भी किसान आज्ञाराम वर्मा ने खेती से जुड़ी कई खोजों की हैं. उन्होंने जहां अधिक चीनी की परते वाली गन्ने की नई प्रजाति कैप्टन बस्ती के नाम से विकसित की है, वहीं गेहूं की नई किस्म एआर 64 भी विकसित की है. वे वर्तमान में खुशबूदार धान की नई किस्म को तैयार करने पर काम कर रहे हैं. आज्ञाराम वर्मा को उन की खोजों की वजह से राष्ट्रीय नव प्रवर्तन संस्थान द्वारा मार्च में 1 हफ्ते के लिए राष्ट्रपति भवन में अपने गन्ने की नई प्रजाति को प्रदर्शित करने का मौका भी दिया गया था. इसी के साथ ही केंद्रीय कृषि मंत्री द्वारा उन्हें नवाचारी किसान के रूप में सम्मानित भी किया गया है.

आज्ञाराम वर्मा का कहना है कि कोई भी किसान चाहे तो खेती में काम आने वाले नए कृषि यंत्रों व बीज वगैरह को ईजाद कर सकता है, क्योंकि वह खेती के दौरान आने वाली तमाम समस्याओं को महसूस करता है. उस दौरान उस के दिमाग में परेशानियों को दूर करने के लिए तमाम ऐसे खयाल आते हैं, जो किसी भी नई मशीन या बीजों को जन्म दे सकते हैं.

आज्ञाराम वर्मा द्वारा तैयार यह मशीन छोटे किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है. आज्ञाराम ने अपनी इस कंबाइन मशीन का नाम कैप्टन बस्ती रखा है. इस मशीन के बारे में अधिक जानकारी के लिए आज्ञाराम वर्मा के मोबाइल नंबरों 7398349644 व 9721885878 पर संपर्क किया जा सकता है.

Agricultural Exhibition : नरसिंहपुर में हुआ कृषि प्रदर्शनी का आयोजन

Agricultural Exhibition : भारत के उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़, मध्यप्रदेश के राज्यपाल मंगुभाई पटेल एवं मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव ने नरसिंहपुर, मध्यप्रदेश में कृषि उद्योग समागम-2025 में पिछले दिनों कृषि प्रदर्शनी का आयोजन किया.

इस कृषि प्रदर्शनी में आधुनिक कृषि तकनीकों, यंत्रों और नवाचारों का प्रदर्शन किया गया. प्रदर्शनी में ड्रोन आधारित कृषि तकनीक, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से लैस उपकरण, पावर स्प्रेयर, सूक्ष्म सिंचाई संयंत्र, जैविक एवं नैनो फर्टिलाइजर सहित विविध नवीनतम संसाधनों को प्रदर्शित किया गया.

उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सभी स्टालों का अवलोकन कर विकसित की गई तकनीकों की तारीफ की. उन्होंने प्रदर्शनी में किसानों से बात कर उत्पादों की क्वालिटी, तकनीक एवं विपणन के विषय में जानकारी ली और उन के नवाचारों की सराहना की. साथ ही, उन्होंने ग्रामीण महिलाओं के प्रयासों की सराहना की एवं उन्हें आत्मनिर्भर भारत अभियान के लिए मजबूत कड़ी बताया.

इस के साथ ही, पशुपालन विभाग द्वारा गोवंश संवर्धन योजना के अंतर्गत प्रदर्शनी में भारतीय उन्नत नस्ल की दुधारू गायों का प्रदर्शन भी किया गया. इस में गिर नस्ल की उस गाय को विशेष रूप से प्रस्तुत किया गया, जो हाल ही में आयोजित भारतीय उन्नत नस्ल की दुधारू गाय प्रतियोगिता, 2025 में प्रथम स्थान प्राप्त किया था.

Awards : उन्नत खेती करने वालों को मिला ‘फार्म एन फूड अवार्ड’

Awards : उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर जिले के बांसी में 25 जून 2024 को किसान सम्मान समारोह का आयोजन किया गया, जिस में उन्नत खेती करने वाले किसानों को ‘फार्म एन फूड अवार्ड’ से सम्मानित किया गया.

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला परियोजना निदेशक प्रदीप पांडेय व विशिष्ठ अतिथि उप कृषि निदेशक डा. राजीव कुमार थे.

समारोह के मुख्य अतिथि प्रदीप पांडेय ने कहा कि जिले में किसानों के प्रति ऐसा कार्यक्रम सुखद अनुभूति पैदा कर रहा है. आने वाले समय में इस तरह के आयोजन समयसमय पर होते रहने चाहिए. इन से किसानों में नया जोश और नई क्रांति का संचार होगा.

विशिष्ठ अतिथि डा. राजीव कुमार ने कहा कि किसान देश की सवा अरब आबादी के पेट भरने का जिम्मा अपने कंधे पर ले कर चल रहे हैं. ऐसे में उन का सम्मान करना बहुत जरूरी है. उन्होंने कृषि से संबंधित अनेक जानकारियां भी किसानों को दीं.

Awards

कार्यक्रम में कृषि वैज्ञानिक डा. एसके तोमर, डा. एके पांडेय, एसके मिश्रा और कार्यक्रम संयोजक मंगेश दुबे के अलावा पूर्व विधायक ईश्वर चंद्र शुक्ला, श्रीधर मिश्र, मृत्युंजय मिश्र व सचिंद्र शुक्ला आदि भी मौजूद थे.

दिल्ली प्रेस पत्र प्रकाशन समूह की नामीगिरामी कृषि पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ एक लंबे अरसे से किसानों के हितों के लिए काम कर रही है. इस पत्रिका के जरीए देश के मशूहर कृषि वैज्ञानिक किसानों को खेती की नई से नई जानकारियां मुहैया कराते रहते हैं.

अपने जानकारी भरे लेखों के जरीए कृषि वैज्ञानिक किसानों की कदमकदम पर मदद करते हैं. इस के अलावा वे किसानों के तमाम सवालों के जवाब भी ‘फार्म एन फूड’ के जरीए देते हैं. पत्रिका द्वारा किसानों को दिए जाने वाले अवार्ड काफी मशहूर हो रहे हैं.

Fish Transportation: मछलियों की आवाजाही के लिए होगा ड्रोन का इस्तेमाल

Fish Transportation : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत मत्स्यपालन विभाग ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना, मत्स्यपालन और जलीय कृषि की प्रगति की समीक्षा करने के लिए 23 मई, 2025 को नई दिल्ली में “मत्स्य पालन सचिव सम्मेलन 2025” और जलीय कृषि में प्रौद्योगिकी और नवाचार के दोहन पर राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया. इस दौरान इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड और प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सहयोजना  के कार्यान्वयन पर चर्चा की गई, जिस में योजनाओं की उपलब्धियों और प्रमुख उपलब्धियों पर ध्यान केंद्रित किया गया.

यह बैठक मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी की अध्यक्षता में हुई. इस बैठक में राज्य मत्स्य विभागों, भारतीय रिजर्व बैंक, राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक, ओपन नेटवर्क फौर डिजिटल कौमर्स, लघु कृषक कृषि व्यवसाय संघ, राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम और आईसीएआर के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी भाग लिया.

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने राज्यों से नवाचार, बुनियादी ढांचे और संस्थागत तालमेल के माध्यम से मत्स्यपालन क्षेत्र को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से सहयोगात्मक प्रयासों को मजबूत करने का आग्रह किया.

मछुआरों की सुरक्षा और परिचालन दक्षता बढ़ाने के लिए उपग्रह प्रौद्योगिकी के उपयोग पर जोर दिया गया, जिस में संसाधन मानचित्रण, बायोमेट्रिक पहचान और चेहरे की पहचान जैसे पहलू शामिल हैं. हरित और नीले स्थिरता सिद्धांतों के साथ संरेखित स्मार्ट, एकीकृत मछली पकड़ने के बंदरगाहों और आधुनिक मछली बाजारों के विकास को भविष्य की प्रमुख प्राथमिकता के रूप में पहचाना गया.

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय में सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने जीवित मछली परिवहन के लिए ड्रोन तकनीक पर पायलट परियोजना की जानकारी दी. इस का लक्ष्य 70 किलोग्राम पेलोड वाला ड्रोन विकसित करना है, जो कठिन इलाकों में एग्रीगेटर से वितरण बिंदु तक जीवित मछली ले जा सके. उन्होंने मानक संचालन प्रक्रियाओं और सहायक सब्सिडी संरचना के माध्यम से ड्रोन पहल को मजबूत करने पर भी जोर दिया.

आईसीएआर संस्थानों के समर्थन से उन्नत मत्स्यपालन प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के साथसाथ प्रसंस्करण, विपणन और पैकेजिंग पर विशेष रूप से क्लस्टर विकास और एक स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से विशेष ध्यान देने को प्रोत्साहित किया गया. मत्स्यपालन को बढ़ावा देने के लिए अमृत सरोवर का लाभ उठाने पर जोर दिया गया और राज्यों से सहयोग मांगा गया. मत्स्यपालन सचिव ने सजावटी मत्स्यपालन को बढ़ावा देने और समुद्री शैवाल की खेती और कृत्रिम चट्टानों के विकास का आह्वान किया और इन उभरते क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया.

मत्स्य विभाग में संयुक्त सचिव सागर मेहरा ने अंतर्देशीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अंतर्देशीय मत्स्यपालन से संबंधित प्रमुख मुद्दों की जानकारी दी. उन्होंने राज्यों से राष्ट्रीय मत्स्य विकास पोर्टल पर पंजीकरण के लिए आवेदन जुटाने में तेजी लाने और विभिन्न केंद्रीय क्षेत्र की योजनाओं के तहत लाभों तक पहुंच बढ़ाने की सुविधा प्रदान करने का आग्रह किया ताकि, विभिन्न मत्स्यपालन पहलों के कार्यान्वयन को मजबूत किया जा सके.

मत्स्य विभाग में संयुक्त सचिव नीतू कुमारी प्रसाद ने मजबूत बुनियादी ढांचे, स्मार्ट बंदरगाहों और प्रजातियों के विविधीकरण के विकास के महत्व पर जोर दिया. तटीय राज्यों से समुद्री कृषि क्षेत्रीकरण को आगे बढ़ा कर, अत्याधुनिक तकनीक को अपना कर, जहाज की निगरानी के लिए इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक और एफएओ की ब्लू पोर्ट पहल और राष्ट्रीय स्थिरता उद्देश्यों के साथ स्मार्ट बंदरगाह परियोजनाओं को तेजी से आगे बढ़ाकर स्मार्ट और टिकाऊ मत्स्यपालन की ओर आगे बढ़ने का आग्रह किया गया.

इस कार्यक्रम की समीक्षा के दौरान, यह नोट किया गया कि राज्य और केंद्र शासित प्रदेश प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना और संबद्ध पहलों के तहत मत्स्य विकास को आगे बढ़ाने में उल्लेखनीय प्रगति कर रहे हैं, लेकिन कुछ चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं, जिन पर केंद्रित ध्यान और समर्थन की आवश्यकता है. साथ ही, किसान क्रेडिट कार्ड योजना के तहत मछली किसानों के लिए संस्थागत लोन तक पहुंच अभी भी एक चिंता का विषय बनी हुई है. इसलिए इस बात पर जोर दिया गया कि समावेशी और प्रभावी लोन देने में सक्षम बनाने के लिए आधुनिक मत्स्यपालन प्रथाओं और प्रौद्योगिकी संचालित मौडल पर वित्तीय संस्थानों और बैंकों को और अधिक ध्यान देने की जरूरत है.

इस के साथ ही, बढ़ते मछली उत्पादन के साथ, कई राज्यों ने मूल्य श्रृंखला दक्षता बढ़ाने के लिए स्वच्छ मछली कियोस्क और आधुनिक मछली बाजारों सहित कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर दिया है. इस के अलावा, बाजार संपर्कों में सुधार भौतिक और डिजिटल दोनों, मछुआरों और किसानों के लिए उचित मूल्य और स्थिर आय देने में मदद करेगी. इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फंड जैसी योजनाओं के लिए समर्पित पंजीकरण अभियान और राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड पोर्टल पर नामांकन के माध्यम से आउटरीच में तेजी लाने की आवश्यकता पर भी चर्चा की गई.

इस कार्यशाला के अंत में इस बैठक ने सहयोग को बढ़ावा देने, क्षमता निर्माण पहलों को बढ़ाने और हितधारकों के बीच संचार अंतराल को पाटने का महत्वपूर्ण कार्य भी किया.