Crop Disease : सूत्रकृमि की जानकारी जरूरी, नुकसान से बचेगी फसल

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना ‘कृषि में सूत्रकृमियों का महत्व’, विषय पर दोदिवसीय वार्षिक समीक्षा बैठक का शुभारंभ हुआ. मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय में आयोजित इस बैठक में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज मुख्य अतिथि थे, जबकि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की अतिरिक्त महानिदेशक डा. पूनम जसरोटिया विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित रहीं.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि नेमाटोलौजी विभाग ने अपनी स्थापना के पश्चात नई ऊंचाइयों को छुआ है और शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया है. विभाग ने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर सूत्रकृमि प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा कर कृषि के क्षेत्र में उत्पादकता बढ़ाने में अहम योगदान दिया है.

उन्होंने आगे बताया कि संरक्षित कृषि प्रणाली, अमरूद व नीबू के बागों, सब्जी की फसलों, चावलगेहूं व अन्य फसलों में भी जड़गांठ व सूत्रकृमि की समस्या बढ़ती जा रही है. उन्होंने बताया कि किसान जानकारी की कमी में नर्सरी से रोगग्रस्त पौधों को अपने खेत या बाग में लगा देते हैं, जिस से बाद में उन्हें माली नुकसान उठाना पड़ता है.

उन्होंने यह भी कहा कि बागबानी फसलों को लगाने से पहले किसान को अपने खेत की मिट्टी जांच अवश्य करवानी चाहिए, ताकि समय रहते बीमारी का पता लगाया जा सके. उन्होंने बताया कि सूत्रकृमि की जानकारी से ही इस के नुकसान से फसल को बचाया जा सकता है. हरियाणा की कृषि उत्पादकता पर इन सूत्रकृमि के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए प्रतिरोधी फसल किस्मों, फसल चक्र और प्रभावी जैव कीटनाशकों के उपयोग के बारे में किसानों को जागरूक किया जा रहा है.

विभाग के अनुसंधान कार्य के आधार पर चावल, गेहूं, पौलीहाउस (टमाटर, खीरा और शिमला मिर्च), मशरूम, फल फसलों, सब्जियों आदि में पादप परजीवी निमेटोड के प्रबंधन के लिए प्रौद्योगिकियां विकसित की गई हैं. निमेटोड समस्या के निदान के लिए सर्वे और मिट्टी के नमूने के माध्यम से खेतों की नियमित निगरानी की जा रही है. कार्यक्रम में फसलों पर सूत्रकृमि प्रबंधन विषय पर पुस्तिका का विमोचन भी किया गया.
विशिष्ट अतिथि डा. पूनम जसरोटिया ने नैनो टैक्नोलौजी, आरएनएआई से सूत्रकृमि प्रबंधन और लाभदायक सूत्रकृमियों से कीड़ों की रोकथाम के महत्व पर प्रकाश डाला.

उन्होंने बताया कि इस समीक्षा बैठक में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अधिकारियों और विशेषज्ञों की मौजूदगी में प्रयोगात्मक नतीजों और महत्वपूर्ण उपलब्धियों को प्रस्तुत किया जाएगा. इस बैठक में विभिन्न केंद्रों के सूत्रकृमि वैज्ञानिक पिछले साल के कामों के आधार पर अपने अनुभव सांझा करेंगे. साथ ही, अगले वर्ष की कार्ययोजनाओं का निर्धारण भी करेंगे.

प्रोजैक्ट कोऔर्डिनेटर डा. गौतम चावला ने कृषि में सूत्रकृमियों द्वारा नई उभरती समस्याओं, उन के प्रबंधन और किसानों द्वारा सूत्रकृमियों के सफल प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

उन्होंने गत वर्ष के दौरान किए गए कार्यों एवं उपलब्धिों के बारे में विस्तृत रिर्पोट भी प्रस्तुत की. उन्होंने प्राकृतिक खेती, विभिन्न फसलों, दालों, सब्जियों एवं किसानों को विभिन्न प्रकार की जानकारी देने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रमों के बारे में भी बताया.

विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने सभी का स्वागत किया, जबकि सूत्रकृमि विभाग के विभागाध्यक्ष डा. अनिल कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया. मंच का संचालन डा. चेत्रा भट्ट ने किया. इस अवसर पर विश्वविद्यालय के सूत्रकृमि विभाग के अधिकारी सहित देश के 24 केंद्रों से आए वैज्ञानिकों एवं शोधार्थियों ने भाग लिया.

किसान नरवाई जलाने से बचें, करें फसल अवशेष प्रबंधन

मैहर : कलक्टर अनुराग वर्मा और मैहर कलक्टर रानी बाटड ने अपनेअपने जिले के किसानों से अपील की है कि खेतों की फसल काटने के बाद किसान बचे फसल अवशेष को नष्ट करने व खेत में नरवाई न जलाएं. खेत में नरवाई जलाने से मिट्टी एवं भूउर्वरता, लाभदायक सूक्ष्म जीव के साथसाथ संचित नमी के वाष्पीकरण से अत्यधिक नुकसान होता है. मिट्टी के लाभदायक कीट एवं जीवांश नष्ट हो जाते है एवं अगली फसल का उत्पादन प्रभावित होता है.

ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देश के क्रम में Air (Prevention & control of Pollution) Act 1981 के अंतर्गत प्रदेश में फसलों विशेषतः धान एवं गेहूं की कटाई के उपरांत फसल अवशेषों को खेतों में जलाए जाने को प्रतिबंधित किया गया है एवं उल्लंघन किए जाने पर व्यक्ति/निकाय को प्रावधान के अनुसार पर्यावरण क्षतिपूर्ति देय होगी. 2 एकड़ से कम भूमिधारक किसानों द्वारा राशि 2,500 रुपए प्रति घटना, 2 एकड़ से अधिक और 5 एकड़ से कम भूमिधारक किसानों द्वारा राशि 5,000 रुपए प्रति घटना और 5 एकड़ से अधिक भूमिधारकों द्वारा राशि 15,000 रुपए प्रति घटना पर्यावरण क्षतिपूर्ति देय होगी.

खेत में फसल अवशेष/नरवाई जलाने से मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्मजीव एवं जैविक कार्बन जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिस से मिट्टी सख्त एवं कठोर हो कर बंजर हो जाती है एवं फसल अवशेष जलाने से पर्यावरण पर भी प्रतिकूल प्रभाव देखा जा रहा है.

किसान फसल अवशेष/नरवाई न जलाएं, बल्कि इस का उपयोग आच्छादन यानी मल्चिंग एवं स्ट्रा रीपर से भूसा बना कर पशुओं के भोजन या भूसे के विपणन से अतिरिक्त लाभ प्राप्त कर सकते हैं. इस के अतिरिक्त गेहूं एवं चना की बोनी के लिए अधिक से अधिक हैप्पी सीडर/सुपर सीडर का उपयोग करें. किसानों को सलाह दी जाती है कि वे नरवाई जलाने से बचें.

किसान अपने खेतों की मिट्टी का करा सकेंगे परीक्षण

छतरपुर :मध्य प्रदेश शासन किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग मंत्रालय भोपाल के 22 अगस्त, 2024 से प्राप्त निर्देशानुसार जिले में नवीन निर्मित विकासखंड स्तरीय मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं को युवा उद्यमियों एवं संस्थाओं के माध्यम से प्रारंभ और संचालित किया जाना है. इस के लिए चयन के लिए इच्छुक उम्मीदवारों द्वारा आवेदन किए गए, जिस में जिले में कुल 17 संस्थाओं एवं 85 युवा उद्यमियों के आवेदन प्राप्त हुए.

इस के लिए छतरपुर कलक्टर पार्थ जैसवाल के निर्देश पर संस्थाओं एवं युवा उद्यमियों का चयन के लिए प्राप्त आवेदनों के परीक्षण के लिए जिला स्तर पर एक समिति बनाई गई, जिस के निर्देशन में संस्थाओं एवं युवा उद्यमियों द्वारा प्रस्तुत औनलाइन आवेदनों का परीक्षण किया गया और शासन के निर्देशानुसार उन का विकासखंडों में चयन किया गया.

विकासखंडवार चयनित संस्था एवं युवा उद्यमी

विकासखंडवार चयनित संस्था एवं युवा उद्यमी में बड़ामलहरा से एसआरएच फूड इंडस्ट्रीज प्रा. लि., छतरपुर से आरकेसीटी लेबोरेटरी प्रा. लि., बारीगढ़ से अपूर्वा फूड प्रा. लि., राजनगर से एसएमएजी एजुकेशन एंड सर्विस प्रा. लि., लवकुशनगर से वीरेंद्र कुमार पटेल, बिजावर से सर्वेश गुप्ता, बक्सवाहा से चतुर्भुज पाल का चयन किया गया है.

उपसंचालक, कृषि, डा. केके वैद्य ने कहा कि जिले में विकासखंड स्तर पर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं का संचालन होने से जिले के किसानों को मिट्टी परीक्षण के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उन्हें शीघ्र ही मिट्टी परीक्षण की रिपोर्ट और रिपोर्ट के अनुसार अनुशंसित पोषक तत्वों की पूर्ति की जानकारी प्राप्त होगी, जिस से कि वे अधिक उत्पादन के लिए सिफारिश की गई उर्वरकों की मात्रा का उपयोग कर सकेंगे. इस के लिए किसान अपने खेतों की मिट्टी जांच अवश्य कराएं.

परंपरागत खेती के साथ उद्यानिकी फसल लेने से बढ़ी आमदनी

जबलपुर : जिले के पाटन विकासखंड के ग्राम मुर्रई के किसान बृजराज सिंह राजपूत पारंपरिक गेहूं और धान की फसल के साथ प्राकृतिक खेती को अपना कर आसपास के किसानों के लिए कम लागत में अधिक उत्पादन प्राप्त करने की मिसाल पेश कर रहे हैं.

कृषि अधिकारियों ने पिछले दिनों बृजराज सिंह के खेत में पहुंच कर उद्यानिकी फसल का अवलोकन किया. बृजराज सिंह अपने 10 एकड़ खेत में फसल विविधीकरण को अपना कर शिमला मिर्च, हरी मिर्च, मूंगफली, अदरक, टमाटर जैसी उद्यानिकी फसलें ले रहे हैं. साथ ही, उन्होंने उद्यानिकी फसलों के किनारे गेंदा भी लगाया है. इस से कीट नियंत्रण में मदद मिलने के साथ ही उन्हें अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त हो रही है.

किसान बृजराज सिंह  ने बताया कि उन्होंने उद्यानिकी फसलों को खेत के उत्तरदक्षिण दिशा में लगाया है. इस से फसल को सूरज की रोशनी सुबह और शाम पर्याप्त मात्रा में मिलती है. प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया अच्छी होने के परिणामस्वरूप पौधों का विकास भी अच्छा होता है.

किसान बृजराज सिंह ने आगे बताया कि उन के खेत के चारों ओर नीम के पेड़ भी लगे हुए हैं, जिस से कीटों का नियंत्रण होता है. बृजराज सिंह द्वारा विभिन्न प्रकार के प्राकृतिक कीटनाशक बनाया जा रहा है. वे इन का उपयोग उद्यानिकी फसलों में कर रहे हैं, जिस से कीटों पर प्रभावी नियंत्रण के साथ उत्पादन लागत में कमी भी आ रही है.

कृषि अधिकारियों के अनुसार, बृजराज सिंह पहले उद्यानिकी फसलों में रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का प्रयोग करते थे, किंतु उन्हें प्रोत्साहित कर प्राकृतिक खेती में रुचि बढ़ाई गई. बृजराज सिंह अब जीवामृत, पांच पर्णी अर्क, नीम कड़ा आदि बना कर उपयोग कर रहे हैं.

इस किसान के खेत में मिनी औटोमैटिक वेदर स्टेशन भी लगाया गया है. इस से मौसम के पूर्वानुमान के साथ आने वाली बीमारी, कीडों का आगमन, मिट्टी में उपलब्ध नमी आदि की पूर्व जानकारी मोबाइल पर उपलब्ध हो जाती है. औटोमैटिक वेदर स्टेशन से मिली पूर्व जानकारी के आधार पर बृजराज सिंह को कृषि कार्य परिवर्तित करने में सहायता मिल रही है.

अनुविभागीय कृषि अधिकारी पाटन डा. इंदिरा त्रिपाठी ने बताया कि किसान बृजराज सिंह द्वारा प्राकृतिक खेती करना प्रारंभ कर दिया गया है और इन के खेत पर अन्य किसानों को भ्रमण कराया जा रहा है, जिस से वे भी प्रोत्साहित हो कर प्राकृतिक खेती के साथसाथ फसल विविधीकरण की ओर अग्रसर हों.

जिला स्तरीय ‘कृषि स्थायी समिति’ की बैठक हुई संपन्न

बालाघाट : जिला स्तरीय “कृषि स्थायी समिति” की बैठक जिला पंचायत सभाकक्ष में पिछले दिनों सभापति टामेश्वर पटले की अध्यक्षता में संपन्न की गई. बैठक में सहकारिता विभाग, कृषि विभाग, उद्यानिकी विभाग, “आत्मा समिति”, जिला सहकारी बैंक, कृषि उपज मंडी समिति, मत्स्य विभाग, पशुपालन विभाग, कृषि अभियांत्रिकी विभाग एवं कृषि से संबंधित अन्य विभागों की योजनाओं की जानकारी, लक्ष्य पूर्ति एवं विभागीय कार्यों की गतिविधियों की समीक्षा की गई.

बैठक में सभापति पटले द्वारा आत्मा परियोजना के अंतर्गत विकासखंड परसवाडा, बालाघाट, लालबर्रा, बिरसा, बैहर, खैरलांजी में स्टाफ के खाली पद को पूरा करने के लिए वरिष्ठालय को पत्र लिखने के निर्देश दिए गए, वहीं उद्यानिकी विभाग द्वारा विभागीय योजनाओं की जानकारी दी गई, जिस में पटले द्वारा पुष्प क्षेत्र विस्तार से संबंधित किसानों की सूची उपलब्ध कराने के लिए निर्देशित किया गया. साथ ही, मसाला क्षेत्र विस्तार एवं सब्जी विस्तार से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी ली गई.

इस दौरान सदस्य केसर बिसेन द्वारा केले की फसल के संबंध में जानकारी ली गई, जिस में सहायक संचालक उद्यानिकी द्वारा जानकारी दी गई कि विभाग ‌द्वारा बेरोजगार नौजवानों/युवतियों के लिए लघु उघोग खोलने के लिए विभाग से सब्सिडी प्रदान की जाती है. इच्छुक नौजवान या युवती विभाग के माध्यम से योजना का लाभ प्राप्त कर सकते हैं.

बैठक में सभापति पटले द्वारा सर्राठी जलासय ग्राम तेकाडी (लालबर्रा) के अंतर्गत मत्याखेट के लिए चल रहे समितियों के विवाद के संबंध में 7 दिसंबर के बाद कृषि फार्म मुरझड़ में बैठक आयोजित करने के निर्देश दिए गए.

उपसंचालक, पशु चिकित्सा द्वारा मुर्रा भैंस योजना, नंदीशाला योजना, बकरीपालन योजना, आचार्य विद्यासागर योजना के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई. लंपी बीमारी की रोकथाम के लिए किए जा रहे कार्य के संबंध में विस्तृत चर्चा की गई. साथ ही, पटले द्वारा आगामी बैठक में जिला विपणन अधिकारी को बैठक में आवश्यक रूप से उपस्थित रहने के लिए निर्देशित किया गया.

बैठक में रबी – 2024 के लिए बीज की उपलब्धता की समीक्षा की गई, जिस में सदस्य केशर बिसेन द्वारा फसल चक्रीकरण के संबंध में चर्चा की गई. कृषि विभाग द्वारा सचालित योजनाओं जैसे राखासुमि. औन ईडिबल औयल (तिलहन), राखासुमि (टरफा), राखासुमि (दलहन), राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के स्वाइल हैल्थ एंड फर्टिलिटी योजना, परंपरागत कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के स्वाइल हैल्थ एंड फर्टिलिटी योजना के अंतर्गत नमूना एकत्रीकरण, राखासुमि (खरीफ) वर्ष 2024-25 के विकासखंडवार, मदवार, घटकवार भौतिक एवं वित्तीय लक्ष्यों का अनुमोदन लिया गया.

जिले में कृषि उपज मंडी समिति द्वारा निर्मित भवनों की नीलामी की कार्यवाही जल्द से जल्द किए जाने की कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए. सचिव कृषि उपज मंडी द्वारा जानकारी दी गई कि कार्यवाही प्रक्रियाधीन है. जल्द ही नीलामी की कार्यवाही की जाने वाली है.

उपसंचालक, कृषि द्वारा सुपर सीडर का उपयोग एवं महत्व के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई, वहीं बालाघाट में स्थित बीज निगम का कार्यालय बालाघाट से हटा कर सिवनी में शिफ्ट किया जा रहा है एवं उपस्थित कर्मचारी का स्थानांतरण किया जा रहा है, जिस पर सभापति पटले द्वारा वरिष्ठालय को कलक्टर के माध्यम से पत्र प्रेषित करने के लिए निर्देशित किया गया.

बैठक में सदस्य झाम सिंह नागेश्वर, डुलेंद्र ठाकरे, सदस्य मंशाराम मडावी, उपसंचालक, कृषि, राजेश खोबरागड़े, डा. एनडी पुरी (पशुपालन विभाग), पूजा रोडगे (मतस्य विभाग), क्षितिज करहाडे (सहायक संचालक उद्यान), पामेश भगत (सहायक कृषि यंत्री), अर्चना डोंगरे (परि. संचालक आत्मा), सुनील कुमार सोने, पुरुषोत्तम बिसेन (बीज निगम), मनीष मडावी (सचिव, कृषि उपज मंडी) आदि उपस्थित रहे.

एक भी गांव, खेत नहीं बचेगा, सभी जगह पहुंचेगा पानी

दमोह : ब्यारमा नदी पर 14 हजार करोड़ रुपए का प्रोजैक्ट है, जिस का पानी दमोह जिले के पूरे गांवों में पहुंचेगा. जिले का एक भी गांव, खेत नहीं बचेगा, सभी के खेतों पर पानी पहुंचेगा. आने वाले समय में दमोह जिले में पानी की कोई दिक्कत नहीं होगी. डेम बनना बहुत बड़ा काम है. डेम से पूरे जिले में पानी फैलाना और ढाई लाख हेक्टेयर की सिंचाई होना है, बहुत बड़ी बात है.

जिले में सिर्फ 2 लाख हेक्टेयर में सिंचाई होने के लिए बची है, बाकी में पहले से ही सिंचाई हो रही है, 4 डेम बने हुए हैं. इस आशय की बात प्रदेश के पशुपालन एवं डेयरी विभाग राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) लखन पटेल ने ग्राम नंदरई में प्रथम आगमन पर एक सभा को संबोधित करते हुए कही.

राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि 3 महीने पहले मुख्यमंत्री आए थे, हम ने उन से जब बात की कि ब्यारमा नदी पर एक डेम बनाया जाए, तो उन्होंने कहा कि इस की मंजूरी कर देंगे. बताते हुए खुशी है कि उस का टेंडर भी लग गया है, 30 करोड रुपए का सर्वे का टेंडर लग गया है, जिस में आप सभी की जिम्मेदारी है कि जब एजेंसी के लोग आएं तो कोई भी खेत न छूटे, एक बार पूरा एस्टीमेट या पूरी योजना बन गई. फिर कोई छूट गया, तो बहुत दिक्कत होती है.

राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि यहां के तालाबों में पानी की आवक नहीं हैं, जो कि सब से बड़ी दिक्कत है, खेतों से पाइपलाइन डल रही है, यह प्रयास किया जा रहा हैं कि साजली नदी से 2-3 किलोमीटर की पाइपलाइन मंजूर हो जाए. नंदरई और बांसा की सब से बडी सिंचाई की समस्या हल हो जाएगी.

उन्होंने कहा कि टंकी का काम शुरू हो जाएगा, इस में भी सालडेढ़ साल लगेगा, लेकिन हर घर तक टोंटी से पानी पहुंचेगा. छूटे हुए गांवों का फिर से सर्वे करा कर उन को जोड़ने का काम किया जा रहा है. खासतौर से नंदरई और बांसा जैसे गांव जो पूरे क्षेत्र में फैले हुए हैं, वहां सब से ज्यादा इस की आवश्यकता है, पानी गांव में तो आ गया है, लेकिन वहां नहीं पहुंचा.

राज्यमंत्री लखन पटेल ने कहा कि 40 फीसदी आबादी गांव में रह रही है, बाकी 60 फीसदी बाहर रह रहे हैं, यही स्थिति है, उस के लिए सर्वे किया जा रहा हैं. सर्वे के बाद आप सभी के घर पानी पहुंचाने का काम होगा.

इस अवसर पर उपाध्यक्ष जिला पंचायत मंजू धर्मेंद्र कटारे, गौरव पटैल, खरगराम पटेल, ललित पटेल, खिलान अहिरवार, नरेश सराफ, सुखई दाऊ, अशोक सिंह सहित अन्य गणमान्य नागरिक, पंचायत प्रतिनिधि, जनप्रतिनिधि मौजूद थे.

पालतू पशुओं की होगी गिनती – जिले में 21वीं पशु संगणना का काम शुरू

नीमच : उपसंचालक, पशु चिकित्सा सेवाएं ने बताया कि जिले में 21वीं पशु संगणना 2024 का काम प्रारंभ किया जा चुका है. पशु संगणना का यह काम भारत सरकार का राष्ट्रीय कार्यकम है. यह कार्य प्रत्येक 5 साल में किया जाता है.

जिले में 21वीं पशु गणना का काम ग्रामीण क्षेत्रों में 48 प्रगणकों एवं शहरी क्षेत्रों में 17 प्रगणकों और 7 सुपरवाइजरों द्वारा किया जा रहा है. नीमच जिले के तीनों विकासखंडों में पशुगणना का काम 4 माह में पूरा किया जावेगा.

पशु गणना का काम औनलाइन एप के माध्यम से किया जा रहा है. पशु गणना में सभी 16 प्रकार के पालतू पशुओं की गणना घरघर जा कर की जाएगी, जिस में एप पर पशु के प्रकार को दर्ज करने के लिए विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्‍त की जाएगी. साथ ही, क्षेत्र के अंतर्गत पाए जाने वाले सभी प्रकार के पशुओं के नस्लों की जानकारी भी ली जाएगी.

पशु चिकित्‍सा विभाग द्वारा जिले के नागरिकों से अपील की है कि वे अपने पशुओं की सहीसही जानकारी विभागीय अमले को अवगत कराएं, जिस से कि भविष्य में शासन द्वारा पशुपालन विकास की योजनाओं को मूर्त रूप दिया जा सके.

नवाचार देखने टीम के साथ पहुंचे कलक्टर

पांढुरना : कलक्टर अजय देव शर्मा द्वारा एपीसी बैठक के परिप्रेक्ष्य में 6 नवंबर, 2024 को विभाग द्वारा किए जा रहे कामों की समीक्षा की गई. उपसंचालक, कृषि, जितेंद्र कुमार सिंह द्वारा पांढुरना जिले में खरीफ फसल कपास का क्षेत्र विस्तार एवं कपास के साथ अंतरवर्तीय फसल के रूप में अरहर फसल अंतरवर्तीय पद्धति से कपास की खेती, ग्रीष्मकालीन ज्वार, मूंगफली, मक्का फसल को बढावा देने की बात कही गई.

पांढुरना कलक्टर अजय देव शर्मा द्वारा सभी कृषि संबंध विभाग उपसंचालक, पशुपालन, उपसंचालक, उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण एवं मैदानी अधिकारियों के साथ हिवरासेनाडवार के प्रगतिशील किसान नामदेव रबड़े के खेत में पहुंच कर उन के द्वारा किए जा रहे नवाचार पपीते की खेती, टमाटर, फूलगोभी, केले की खेती का निरीक्षण किया गया.

किसान नामदेव रबड़े द्वारा किए जा रहे नवाचार की सराहना की गई एवं जिले के सभी किसानों को इस तरह की पारंपरिक खेती के साथ ही नवाचार के रूप में अन्य फसलों को अपनाने की अपील की गई, जिस से किसानों को प्रति इकाई क्षेत्रफल से अच्छा लाभ प्राप्त हो सकेगा.

निरीक्षण के क्रम में प्रगतिशील किसान पूरन सिंह खानवे के खेत में पहुंच कर संतरे, पिंक ताइवान अमरूद की फसल का निरीक्षण किया गया.

निरीक्षण के दौरान उपसंचालक, पशुपालन एवं डेयरी विभाग डा. एचजीएस पक्षवार, सहायक संचालक, कृषि, दीपक चौरसिया, वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी सुनील गजभिये, विनोद लोखंडे, नितिन डेहरिया, राहुल सरयाम, साक्षी खरात, उद्यानिकी विभाग के सिध्दार्थ दुपारे, पशु चिकित्सा विभाग के केतन पांडे एवं व्यापारी संघ के निकेश खानवे, आलोक नाहर, संजय, रूपेश कसलीकर, किशोर डाले, रूपेश राजगुरू एवं प्रगतिशील किसान उपस्थित थे.

‘अनुदान’ पोर्टल पर कृषि यंत्र खरीदने के लिए तुरंत करें आवेदन

सतना : संचालनालय कृषि अभियांत्रिकी मध्य प्रदेश भोपाल द्वारा ई-कृषि यंत्र अनुदान पोर्टल पर कृषि यंत्रों के लक्ष्य निर्धारित कर दिए गए हैं. सहायक कृषि यंत्री एचपी गौतम ने बताया कि किसान ड्रोन के आवेदन औन डिमांड श्रेणी के अंतर्गत जिले के इच्छुक आवेदक ड्रोन संचालित करने के लिए 25 नवंबर, 2024 से ड्रोन पायलट लाइसैंस के प्रशिक्षण के लिए कौशल विकास इंदौर में आवेदन कर सकते हैं. प्रशिक्षणार्थियों का चयन ‘पहले आओ पहले पाओ’ के आधार पर किया जाएगा.

आवेदन के लिए ड्रोन पायलट प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यालय कृषि यंत्री इंदौर के अंतर्गत कौशल विकास केंद्र में प्रारंभ किया जा रहा है. इच्छुक आवेदक पोर्टल के माध्यम से आवेदन कर सकते हैं. आवेदन करने के उपरांत दिशानिर्देशों के अनुरूप कार्यालय कृषि यंत्री इंदौर में दस्तावेज सत्यापन एवं डिमांड ड्राफ्ट जमा करना होगा. इस के लिए आवेदक की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता 10वीं पास एवं आयु 18 से 65 वर्ष होनी चाहिए.

आवेदक को ड्रोन पायलट करने के लिए 17,000 रुपए का डिमांड ड्राफ्ट सहायक कृषि यंत्री इंदौर के नाम पर कार्यालय कृषि यंत्री इंदौर में जमा करना होगा.

आवेदक के पास सरकार द्वारा जारी पहचान प्रमाणपत्र होना चाहिए. किसान ड्रोन प्रशिक्षण कार्यक्रम के अंतर्गत दस्तावेज सत्यापन के समय आवेदक को स्वयं की मैडिकल फिटनेंस प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य है. मैडिकल फिटनेस प्रमाणपत्र का प्रारूप डाउनलोड करने के लिए मोबाइल फोन नंबर 9926920636 पर संपर्क कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.

नरवाई न जलाएं, बनाएं जैविक खाद

रीवा : कृषि विभाग द्वारा जिले के किसानों को धान और अन्य फसलों को काटने के बाद बचे हुए अवशेष (नरवाई) नहीं जलाने की सलाह दी गई है. इस संबंध में उपसंचालक, कृषि, यूपी बागरी ने कहा है कि नरवाई जलाने से एक ओर जहां खेतों में अग्नि दुर्घटना की आशंका रहती है, वहीं मिट्टी की उर्वरता पर भी विपरीत असर होता है. इस के साथ ही धुएं से कार्बनडाईऔक्साइड की मात्रा वातावरण में जाती है, जिस से वायु प्रदूषण होता है. मिट्टी की उर्वराशक्ति लगभग 6 इंच की ऊपरी सतह पर ही होती है. इस में खेती के लिए लाभदायक मित्र जीवाणु उपस्थित रहते हैं. नरवाई जलाने से यह नष्ट हो जाते हैं, जिस से भूमि की उर्वराशक्ति को नुकसान होता है.

नरवाई जलाने के बजाए यदि फसल अवशेषों को एकत्रित कर के जैविक खाद बनाने में उपयोग किया जाए, तो यह बहुत लाभदायक होगा. नाडेप और वर्मी विधि से नरवाई से जैविक खाद आसानी से बनाई जा सकती है. इस खाद में फसलों के लिए पर्याप्त पोषक तत्व रहते हैं. इस के आलावा खेत में रोटावेटर अथवा डिस्क हैरो चला कर भी फसल के बचे हुए भाग को मिट्टी में मिला देने से मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार होता है.

उपसंचालक, कृषि, यूपी बागरी ने बताया कि धान की फसल के बाद नरवाई को खाद में बदलने और बिना जुताई किए बिना गेहूं, चना और सरसों की बोनी के लिए सुपर सीडर और हैप्पी सीडर का उपयोग बहुत लाभकारी है. इस से नरवाई नष्ट होने के साथ जुताई और बोआई का खर्च और समय दोनों बचेगा. साथ ही, नरवाई से खाद भी बन जाएगी.

उपसंचालक ने बताया कि नरवाई जलाने से होने वाले नुकसान की जानकारी देने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के माध्यम से 60,000  से अधिक किसानों को एसएमएस भेज कर जानकारी दी गई है. इन्हें सुपर सीडर के उपयोग के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है. इस साल जिले में किसानों द्वारा 30 सुपर सीडर खरीदे गए हैं, जिन के उपयोग से नरवाई प्रबंधन किया जा रहा है और आग लगने की घटनाओं में कमी आई है.