बजट घोषणाओं (Budget Announcements) को समय पर पूरा करें

जयपुर : डेयरी एवं पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत ने कहा कि बजट घोषणा में लिए गए निर्णयों की क्रियान्विति समय पर सुनिश्चित की जाए. वह राजस्थान कोआपरेटिव डेयरी फेडरेशन के साथ डेयरी की बजट घोषणाओं की समीक्षा बैठक को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि डेयरी उत्पादों में मिलावटखोरी और अनियमितता को किसी भी सूरत में बरदाश्त नहीं किया जाएगा और जो कोई भी उस में लिप्त पाया जाता है, उस के खिलाफ सख्त से सख्त कार्यवाही सुनिश्चित की जाए.

उन्होंने डेयरी उत्पादों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्रत्येक जिले में गुणवत्ता नियंत्रण वाहन शुरू करने के निर्देश दिए. उन्होंने दुग्ध उत्पादक संबल योजना के तहत शेष रहे अनुदान की राशि का भी जल्द से जल्द हस्तांतरित करने के निर्देश दिए.

उल्लेखनीय है कि बजट घोषणा के अनुसार राज्य में 2,000 डेयरी बूथ और 1,500 दुग्ध सहकारी समितियां खोली जानी हैं. इस के अलावा 1,000 सरस मित्र बनाने का निर्णय भी बजट घोषणा में लिया गया है. उन्होंने इन सभी घोषणाओं को जल्द से जल्द क्रियान्विति में बदलने के निर्देश अधिकारियों को दिए.

मंत्री जोराराम कुमावत ने बताया कि चित्तौड़, कोट और रानीवाड़ा सहित कुछ डेयरी प्लांट्स अपग्रेड किए जाने हैं, वहीं पाली में 95 करोड़ का पाउडर प्लांट खोला जाना है. पाली में पाउडर प्लांट खोलने के लिए जमीन की पहचान कर ली गई है. जल्द ही इस पर काम भी शुरू हो जाएगा.

बैठक में आरसीडीएफ की प्रबंध संचालक श्रुति भारद्वाज, जयपुर डेयरी के प्रबंध निदेशक दिव्यम कपूरिया, आरसीडीएफ के वित्तीय सलाहकार ललित वर्मा और प्रबंधक संतोष कुमार सहित अन्य अधिकारियों ने भाग लिया.

कृषि वैज्ञानिक किसानों को दें खेती की तकनीकी जानकारी

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्याल में तीनदिवसीय वार्षिक समीक्षा कार्यशाला का शुभारंभ हुआ. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने बतौर मुख्य अतिथि कार्यशाला का उद्घाटन किया, जबकि आईसीएआर (कृषि विस्तार शिक्षा) के एडीजी डा. आरके सिंह व पूर्व एडीजी डा. रामचंद विशिष्ट अतिथि के रूप में और एमएचयू करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा व बीसीकेवी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. एमएम अधिकारी अति विशिष्ट अतिथि के रूप में मौजूद रहे.

कार्यशाला में हरियाणा, राजस्थान व दिल्ली में आईसीएआर के 66 कृषि विज्ञान केंद्रों की गत वर्ष किए गए कार्य प्रगति की समीक्षा की गई. कार्यशाला में आईसीएआर अटारी जोन-2 के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने सभी का स्वागत किया व कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि फील्ड वर्क कृषि की आत्मा है, इसलिए केवीके के वैज्ञानिकों को फील्ड वर्क के कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए.

किसान को कृषि वैज्ञानिकों का सच्चा हितैषी बताते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें फील्ड में जा कर किसानों की समस्याओं का समाधान सुनिश्चित करने के लिए हर संभव प्रयास करने चाहिए. साथ ही, शोध कार्यों के साथसाथ विस्तार प्रणाली को गति देने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को और अधिक बेहतर ढंग से काम करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि तकनीकी के इस युग में किसानों के लिए समयसमय पर एडवाइजरी जारी की जाए, ताकि कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान के साथसाथ फसल उत्पादन में बढ़ोतरी हो सके. किसानों का कृषि विज्ञान केंद्रों पर अटूट विश्वास है. इस के माध्यम से किसान समयसमय पर मौसम संबंधी जानकारी, फसल उत्पादन की एडवाइजरी, विभिन्न फसलों के बीज, मिट्टीपानी की जांच सहित अन्य सुविधाओं का लाभ प्राप्त कर रहे हैं.

उन्होंने किसानों को प्राकृतिक खेती एवं सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के बारे में जागरूक करने पर भी जोर दिया. किसानों को नई तकनीकों की जानकारी देने के लिए देश के 731 जिलों में कृषि विज्ञान केंद्र संचालित हैं. उन्होंने केवीके द्वारा किसानों को प्रदत्त की जाने वाली सुविधाओं के बारे में भी विस्तार से बताया.

कार्यशाला में केवीके द्वारा कृषि महाविद्यालय परिसर में लगाई गई प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया. इस अवसर पर विभिन्न केवीके द्वारा प्रकाशित तकनीकी बुलेटन का भी विमोचन किया गया.
कार्यशाला में आईसीएआर के एडीजी डा. आरके सिंह ने युवाओं को कृषि से जोड़े रखने के लिए कृषि को एक लाभदायक व्यवसाय बनाने, फसल उत्पादन बढ़ाने व कृषि उत्पाद का प्रसंस्करण कर मूल्य संवर्धन करने व नवीनतम तकनीकों को जल्द से जल्द किसानों तक पहुंचाने के लिए केवीके वैज्ञानिकों को प्रेरित किया.

एमएचयू, करनाल के कुलपति डा. एसके मल्होत्रा ने कहा कि सरकार द्वारा किसानों के कल्याणार्थ की जाने वाली योजनाओं एवं कार्यक्रमों को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करने में केवीके अहम भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने कृषि सिंचाई योजना, दलहनी एवं तिलहनी फसलों के अतिरिक्त कृषि क्षेत्र से संबंधित विभिन्न विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला.

धानुका के चेयरमैन डा. आरजी अग्रवाल व आईसीएआर, नई दिल्ली के पूर्व एडीजी डा. रामचंद ने भी अपने विचार रखे. विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कार्यशाला में सभी का धन्यवाद किया. मंच का संचालन डा. संदीप रावल ने किया. इस अवसर पर सभी महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, अधिकारी एवं वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

कोल्ड स्टोरेज लगाने के लिए 1 करोड़ 40 लाख रूपये तक काअनुदान

जयपुर : कृषि एवं उद्यानिकी विभाग के प्रमुख शासन सचिव वैभव गालरिया ने बताया कि राज्य सरकार द्वारा कृषक उद्यमी या कृषक समूह को कोल्ड स्टोरेज बनाने पर अधिकतम 1 करोड़, 40 लाख रुपए तक का अनुदान दिए जाने का प्रावधान है.

उन्होंने बताया कि आवेदनकर्ता 4 अक्तूबर तक संबंधित जिले के उद्यानिकी विभाग कार्यालय में आवेदन कर अनुदान का लाभ ले सकते हैं.

उन्होंने पिछले दिनों पंत कृषि भवन के सभा कक्ष में राजस्थान हौर्टिकल्चर डवलपमेंट सोसायटी की बैठक की अध्यक्षता करते हुए यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कोल्ड स्टोरेज पर राष्ट्रीय हौर्टिकल्चर मिशन योजना के अंतर्गत 250 मीट्रिक टन से ले कर अधिकतम 5 हजार मीट्रिक टन का कोल्ड स्टोरेज बनाने पर अनुदान दिए जाने का प्रावधान है.

कोल्ड स्टोरेज बनाने पर इकाई लागत का 8 हजार रुपए प्रति मीट्रिक टन से गणना कर अधिकतम 5 हजार मीट्रिक टन पर इकाई लागत का 35 फीसदी या अधिकतम 1 करोड़, 40 लाख रुपए का अनुदान दिया जाता है.

बैठक में कोल्ड स्टोरेज व हाईटैक नर्सरी स्थापना के परियोजना प्रस्तावों का पीपीटी के माध्यम से प्रस्तुतीकरण भी किया गया. आयुक्त कृषि चिन्मयी गोपाल, आयुक्त उद्यानिकी सुरेश कुमार ओला, प्रबंध निदेशक राजस्थान राज्य बीज निगम निमिषा गुप्ता, अतिरिक्त निदेशक उद्यान केसी मीना, सहायक निदेशक रामचंद्र जीतरवाल सहित विभागीय अधिकारी मौजूद रहे.

जीरा और सौंफ की गुणवत्ता पर प्रशिक्षण

जयपुर : जीरा व सौंफ की खेती में गुणवत्ता संवर्धन के लिए पिछले दिनों प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस दौरान किसानों को उन्नत खेती की तकनीकों और गुणवत्ता प्रबंधन के बारे में जानकारी दी गई.

भारत सरकार के क्षेत्रीय कार्यालय मसाला बोर्ड, जोधपुर और एफपीओ, बिलाड़ा एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के सहयोग से यह प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. मसाला बोर्ड, जोधपुर के उपनिदेशक जुगलदास ने मसाला किसानों को समर्थन देने के लिए मसाला बोर्ड द्वारा दी गई पहले की रूपरेखा प्रस्तुत की. उन्होंने किसानों और बाजारों के बीच खाई को पाटने और मसाला उत्पादन की समग्र गुणवत्ता को बढ़ाने में एफपीओ की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया.

मसाला बोर्ड, जोधपुर के डा. श्रीशैल कुल्लोली ने जीरा और सौंफ के लिए उन्नत खेती की तकनीक प्रस्तुत की. मुख्य वक्ता, कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर के सेवानिवृत्त प्रो. डा. तखतसिंह राजपुरोहित ने जीरा और सौंफ की खेती की विस्तार से चर्चा की. इस में मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन, फसल चक्र, उन्नत किस्म के बीज, बोआई का सही समय, सिंचाई प्रबंधन और फसलों में लगने वाले कीट एवं रोगों के लक्षण, पहचान व निदान के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

डा. तखतसिंह राजपुरोहित ने गुणवत्ता बनाए रखने के लिए जीरा और सौंफ की साफसफाई व रखरखाव पर भी विस्तार से बताया. उन्होंने बीज मसालों में कीटनाशकों एवं रसायनों के अवशेष न रहे, इसलिए मसाला फसलों में जैविक विधियां, जैव उर्वरक, बायोएजेंट, प्लांट प्रोडक्शन एवं आइपीएस (समन्वित कीट प्रबंधन) पर जानकारी दी. भूमि मसाला फसलों के उत्पादन में कीटनाशकों का अवशेष कम होगा, तो अधिक आय होगी. स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी होगा, जिस की मांग है.

कार्यक्रम में किसानों की शंका का समाधान एवं प्रश्नों के उत्तर दिए. बिलाड़ा एग्रो प्रोड्यूसर कंपनी के कार्यकारी अधिकारी सलीम अहमद ने बाजार पहुंच व गुणवत्ता सुधार में एफपीओ की भूमिका के बारे में जानकारी दी.

एडीएस, जयपुर के भूराराम चौधरी ने गुणवत्ता संवर्धन प्रथाओं को लागू करने वाले सफल मसाला किसानों की केस स्टडी प्रस्तुत की. गोपाराम, कालूराम, पूसाराम पैनलिस्ट के रूप में पैनल चर्चा आयोजित की गई. इस में तमाम प्रगतिशील किसान मौजूद रहे. एफपीओ के चेयरपर्सन कुन्नाराम काग ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया.

प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान को मंजूरी

नई दिल्ली : केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जनजातीय बहुल गांवों और आकांक्षी जिलों में जनजातीय परिवारों के लिए परिपूर्णता लक्ष्य को अपना कर जनजातीय समुदायों की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए 79,156 करोड़ रुपए (केंद्रीय हिस्सा: 56,333 करोड़ रुपए और राज्य हिस्सा : 22,823 करोड़ रुपए) के कुल परिव्यय के साथ प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान को मंजूरी दी.

बजट भाषण 2024-25 की घोषणा के अनुरूप इस में लगभग 63,000 गांव शामिल होंगे, जिस से 5 करोड़ से अधिक जनजातीय लोगों को लाभ होगा. इस में 30 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के जनजातीय बहुल 549 जिले और 2,740 ब्लौक के गांव शामिल होंगे.

साल 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में अनुसूचित जनजातियों की आबादी 10.45 करोड़ है और देशभर में 705 से अधिक जनजातीय समुदाय हैं, जो दूरदराज और पहुंच से दूर क्षेत्रों में रहते हैं. प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान का उद्देश्य भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से सामाजिक बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका में महत्वपूर्ण अंतराल को भरना और पीएम जनमन (प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाभियान) की सीख और सफलता के आधार पर जनजातीय क्षेत्रों एवं समुदायों का समग्र और सतत विकास सुनिश्चित करना है.

इस मिशन में 25 कार्यक्रम शामिल हैं, जिन्हें 17 मंत्रालयों द्वारा कार्यान्वित किया जाएगा. प्रत्येक मंत्रालय/विभाग अनुसूचित जनजातियों के लिए विकास कार्य योजना (डीएपीएसटी) के तहत उन्हें आवंटित धनराशि के माध्यम से अगले 5 सालों में समयबद्ध तरीके से इस से संबंधित योजना के कार्यान्वयन के लिए उत्तरदायी होगा, ताकि निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके :

लक्ष्य- 1 : सक्षम बुनियादी ढांचे का विकास

पात्र परिवारों के लिए पक्का घर और अन्य सुविधाएं : पात्र अनुसूचित जनजाति (एसटी) परिवारों को पीएमएवाई (ग्रामीण) के तहत नल के पानी (जल जीवन मिशन) और बिजली आपूर्ति (आरडीएसएस) की उपलब्धता के साथ पक्के घर मिलेंगे. पात्र एसटी परिवारों की आयुष्मान भारत कार्ड (पीएमजेएवाई) तक भी पहुंच होगी.

गांव के बुनियादी ढांचे में सुधार : एसटी बहुल गांवों (पीएमजीएसवाई) के लिए सभी मौसम में बेहतर सड़क संपर्क, मोबाइल कनेक्टिविटी (भारत नैट) और इंटरनैट तक पहुंच प्रदान करना, स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा में सुधार के लिए बुनियादी ढांचा (एनएचएम, समग्र शिक्षा और पोषण) सुनिश्चित करना.

लक्ष्य- 2 : आर्थिक सशक्तीकरण को बढ़ावा देना
कौशल विकास उद्यमिता को बढ़ावा देना और आजीविका (स्वरोजगार) में सुधार करना : प्रशिक्षण (कौशल भारत मिशन/जेएसएस) तक पहुंच प्रदान करना और यह सुनिश्चित करना कि एसटी समुदाय के छात्र/छात्राएं हर साल 10वीं/12वीं कक्षा के बाद दीर्घकालिक कौशल पाठ्यक्रमों तक पहुंच प्राप्त करें. इस के अलावा, जनजातीय बहुद्देशीय विपणन केंद्र (टीएमएमसी) के माध्यम से विपणन सहायता, पर्यटक गृह प्रवास, कृषि, पशुपालन और मत्स्यपालन के माध्यम से एफआरए पट्टाधारकों को सहायता प्रदान करना.

लक्ष्य- 3 : सभी की अच्छी शिक्षा तक पहुंच
शिक्षा : स्कूल और उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) को राष्ट्रीय स्तर तक बढ़ाना और जिला/ब्लौक स्तर पर स्कूलों में जनजातीय छात्रावासों की स्थापना कर के एसटी छात्रों (समग्र शिक्षा अभियान) के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सस्ती और सुलभ बनाना.

लक्ष्य- 4 : स्वस्थ जीवन और सम्मानजनक वृद्धावस्था

एसटी परिवारों की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाओं तक बेहतर पहुंच सुनिश्चित करना, शिशु मृत्युदर (आईएमआर), मातृत्व मृत्युदर (एमएमआर) में राष्ट्रीय मानकों को हासिल करना और उन स्थानों, जहां स्वास्थ्य उपकेंद्र मैदानी क्षेत्रों में 10 किलोमीटर से अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों में 5 किलोमीटर से अधिक हैं, वहां मोबाइल मैडिकल यूनिट के माध्यम से टीकाकरण का कवरेज (राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन).

इस अभियान के तहत शामिल जनजातीय गांवों को पीएम गति शक्ति पोर्टल पर मैप किया जाएगा और संबंधित विभाग अपनी योजनानुसार आवश्यकताओं के अंतरों का पता लगाएंगे.. पीएम गति शक्ति प्लेटफार्म पर भौतिक और वित्तीय प्रगति की निगरानी की जाएगी और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले जिलों को पुरस्कृत किया जाएगा.

अन्य कार्यक्रमों को शामिल करके जनजातीय विकास/ पीएमएएजीवाई के लिए एससीए का दायरा बढ़ाना

100 जनजातीय बहुद्देशीय विपणन केंद्र, आश्रम विद्यालयों, छात्रावासों, सरकारी/राज्य जनजातीय आवासीय विद्यालयों की अवसंरचना में सुधार, सिकल सेल रोग (एससीडी) के लिए सक्षमता केंद्र और परामर्श सहायता, एफआरए और सीएफआर प्रबंधन संबंधी उपायों के लिए सहायता, एफआरए प्रकोष्ठों की स्थापना और सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले जनजातीय जिलों के लिए प्रोत्साहन के साथ परियोजना प्रबंधन का बुनियादी ढांचा.

जनजातीय क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं और अपेक्षाओं के आधार पर और राज्यों व अन्य हितधारकों के साथ विचारविमर्श के बाद अभियान ने जनजातीय और वनवासी समुदायों के बीच आजीविका को बढ़ावा देने एवं आय अर्जित करने के लिए कुछ नवीन योजनाएं बनाई हैं.

जनजातीय गृह प्रवास

जनजातीय क्षेत्रों की पर्यटन क्षमता का दोहन करने और जनजातीय समुदाय को वैकल्पिक आजीविका प्रदान करने के लिए पर्यटन मंत्रालय के माध्यम से स्वदेश दर्शन के अंतर्गत 1,000 गृह प्रवासों को बढ़ावा दिया जाएगा. जिन गांवों में पर्यटन की संभावना है, वहां जनजातीय परिवारों और गांव को एक गांव में 5-10 गृह प्रवासों के निर्माण के लिए वित्त पोषण प्रदान किया जाएगा. प्रत्येक परिवार 2 नए कमरों के बनाने के लिए 5 लाख रुपए और मौजूदा कमरों के पुनर्निर्माण के लिए 3 लाख रुपए तक व ग्राम समुदाय आवश्यकता के लिए 5 लाख रुपए का पात्र होगा.

स्थायी आजीविका वन अधिकार धारक (एफआरए)
इस मिशन का विशेष ध्यान वन क्षेत्रों में रहने वाले 22 लाख एफआरए पट्टाधारकों पर है. जनजातीय कार्य मंत्रालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (एमओएएफडब्ल्यू), पशुपालन विभाग, मत्स्यपालन विभाग और पंचायती राज मंत्रालय के साथ मिल कर उन्हें विभिन्न योजनाओं का लाभ प्रदान किया जाएगा. इन का उद्देश्य वन अधिकारों को मान्यता देने और उन्हें सुरक्षित करने की प्रक्रिया में तेजी लाना, जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाना, ताकि वे वनों के रखरखाव और संरक्षण के लिए सक्षम हो सकें और सरकारी योजनाओं के समर्थन के माध्यम से उन्हें स्थायी आजीविका प्रदान कर सकें.

अभियान यह भी सुनिश्चित करेगा कि लंबित एफआरए के दावों में तेजी लाई जाए और जनजातीय कार्य मंत्रालय और पंचायती राज मंत्रालय द्वारा ब्लौक, जिला और राज्य स्तर पर सभी हितधारकों एवं अधिकारियों को प्रशिक्षण दिया जाएगा.

सरकारी आवासीय विद्यालयों और छात्रावासों के बुनियादी ढांचे में सुधार

जनजातीय आवासीय विद्यालय और छात्रावास दूरदराज के जनजातीय क्षेत्रों को लक्षित करते हैं और स्थानीय शैक्षिक संसाधनों को विकसित करने एवं नामांकन और छात्रों की संख्या को बरकरार रखने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखते हैं.

अभियान का उद्देश्य पीएम-श्री स्कूलों की तर्ज पर उन्नयन के लिए आश्रम स्कूलों/छात्रावासों/जनजातीय स्कूलों/सरकारी आवासीय विद्यालयों के बुनियादी ढांचे में सुधार करना है.

सिकल सेल रोग के निदान के लिए उन्नत सुविधाएं

प्रसव पूर्व निदान पर विशेष जोर देने के साथ सस्ती और सुलभ नैदानिक एवं एससीडी प्रबंधन सुविधाएं प्रदान करने और भविष्य में इस रोग की व्यापकता को कम करने के लिए एम्स और उन राज्यों के प्रमुख संस्थानों में सक्षमता केंद्र (सीओसी) स्थापित किए जाएंगे, जहां सिकल रोग अधिक हैं और ऐसी प्रक्रियाओं की विशेषज्ञता उपलब्ध है.

सक्षमता केंद्र (सीओसी) स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार प्रसव पूर्व निदान के लिए सुविधाओं, प्रौद्योगिकी, कर्मियों और अनुसंधान क्षमताओं से लैस होगा और इस में 6 करोड़ रुपए/सीओसी की लागत से प्रसव पूर्व निदान के लिए नवीनतम सुविधाएं, प्रौद्योगिकी, कर्मियों और अनुसंधान क्षमताएं होंगी.

जनजातीय बहुद्देशीय विपणन केंद्र

जनजातीय उत्पादों के प्रभावी विपणन और विपणन बुनियादी ढांचे, जागरूकता, ब्रांडिंग, पैकेजिंग एवं परिवहन सुविधाओं में सुधार के लिए 100 टीएमएमसी स्थापित किए जाएंगे, ताकि जनजातीय तबके के उत्पादकों को उन के उत्पाद/उत्पादों का उचित मूल्य मिल सके और उपभोक्ताओं को जनजातियों से सीधे उचित मूल्य पर उत्पाद खरीदने में सुविधा हो. इस के अलावा इन टीएमएमसी को एकत्रीकरण और मूल्यवर्धन मंच के रूप में डिजाइन करने से उत्पादों की पैदावार के बाद नुकसान को कम करने और उत्पाद मूल्य को बनाए रखने में भी मदद मिलेगी.

यह अभियान प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महाभियान (पीएम-जनमन) की योजना और सफलता के आधार पर बनाया गया है, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने15 नवंबर, 2023 को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ पर पीवीटीजी आबादी पर ध्यान केंद्रित करते हुए 24,104 करोड़ रुपए  के बजट के साथ शुरू किया था.

प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम सहकारी संघवाद का अनूठा उदाहरण है, जहां सरकार पूरी तरह से जनकल्याण के लिए मिल कर काम करती है और इस प्रयास में समन्वय और पहुंच को प्राथमिकता दी जाती है.

एमपीयूएटी विश्वविद्यालय नवाचार और शोध पर कार्य कर रहा काम

उदयपुर : 23 सितंबर, 2024. क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रसार सलाहकार समिति संभाग चतुर्थ-अ की बैठक अनुसंधान निदेशालय के सभागार में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति की अध्यक्षता में 23 सितंबर, 2024 को कृषि अनुसंधान केंद्र, अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर में आयोजित की गई.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय ने गत वर्षों में विभिन्न प्रौद्योगिकी पर 54 पेटेंट प्राप्त किए, जिस में से 25 पेटेंट वर्ष 2024 में प्राप्त किए.

उन्होंने आगे कहा कि औषधीय एवं सुगंधी फसलों एवं जैविक खेती इकाई ने पिछले वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई. विश्वविद्यालय अध्यापन, अनुसंधान, प्रसार एवं उद्यमिता पर काम कर रहा है. साथ ही, यह विश्वविद्यालय नवाचारयुक्त आधुनिक शोध पर काम कर रहा है. अपनी तकनीकियों का वाणिज्यकरण की दिशा में काम करते हुए मक्का की उन्नत किस्म प्रताप मक्का-6 का देश की 7 कंपनियों के साथ समझौता किया.

उन्होंने यह भी बताया कि मक्का की इस किस्म से इथेनोल तैयार हो सकता है, जो कि ग्रीनफ्यूल में उपयोग किया जाएगा. उन्होंने सभी वैज्ञानिकों को आह्वान किया कि सभी फसलों की जलवायु अनुकूलित नई किस्में विकसित की जाएं, ताकि किसानों को अधिक से अधिक लाभ मिल सके.

कुलपति अजीत कुमार कर्नाटक ने अपने संबोधन में कहा कि जैविक खेती के साथ प्राकृतिक खेती पर जोर देना चाहिए, जिस से गुणवत्तायुक्त उत्पाद कम लागत में तैयार हो सके, जिस से कि किसान की जीविका में बढ़ोतरी होगी.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि इस विश्वविद्यालय के 2 वैज्ञानिक देशभर के 2 फीसदी वैज्ञानिकों में शामिल हैं. इस विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किसानों की जरूरतों के लिए छोटेछोटे कृषि उपकरण, बायोचार उपचार के लिए छोटी इकाई का निर्माण आदि किया.

पिछले वर्ष अफीम की चेतक किस्म, मक्का की पीएचएम-6 किस्म के साथ असालिया एवं मूंगफली की किस्में विकसित की. आज कृषि में स्थायित्व लाने के लिए कीट व बीमारी प्रबंधन एवं जल प्रबंधन पर काम करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि विश्वविद्यालय ने जैविक/प्राकृतिक खेती में राष्ट्रीय पहचान बनाई है. उन्होंने बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के महानिदेशक ने विश्वविद्यालय से कहा कि भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान के साथ मिल कर अपने भाषण के दौरान उन्होंने कृत्रिम बुद्धिमत्ता, डिजिटल इंजीनियरिंग एवं यंत्र अधिगम पर उत्कृष्टता केंद्र पर बल दिया. साथ ही, उन्होंने सभी वैज्ञानिकों से कहा कि विश्वविद्यालय की आय विभिन्न तकनीकियों द्वारा बढ़ाई जाए.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के निदेशक अनुसंधान डा. अरविंद वर्मा ने बैठक की शुरुआत में सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि क्षेत्रीय अनुसंधान एवं प्रसार सलाहकार समिति की बैठक विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई तकनीकों का कृषि विभाग के आधिकारियों के साथ मिल कर पैकेज औफ प्रैक्टिस में सम्मिलित की जाती है. विश्वविद्यालय में तकनीकी विकसित करने के लिए 27 अखिल भारतीय समन्वित परियोजना एवं 3 नैटवर्क परियोजनाएं चल रही हैं. साथ ही, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत 2 परियोजनाएं चल रही हैं.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने गत वर्ष विभिन्न फसलों की 4 किस्में विकसित की गईं. मक्का परियोजना द्वारा विकसित प्रताप संकर मक्का- 6 देश के 4 राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं गुजरात के लिए उपयुक्त है. यह किस्म जल्दी पकने वाली (82-85), फूल आने के बाद डंठल का सड़ना रोग मुक्त एवं 65-70 क्विंटल उपज देती है.

डा. आरबी दुबे, राजस्थान कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता ने बीज की समस्या पर कहा कि देश में 51 हजार टन बीज की आवश्यकता है, जिस में से 40 हजार टन बीज ही उपलब्ध है और इस में भी 80-90 फीसदी हिस्सा निजी संस्था उपलब्ध कराती है.

उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि कम उपयोग में आने वाली फसलों विशेषकर किकोडा, बालम काकडी, टिंडोरी आदि पर अनुसंधान की आवश्यकता है. विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मक्का की किस्म प्रताप संकर मक्का-6 में एक टन से 380 लिटर इथेनोल प्राप्त किया जा सकता है, जिस की कीमत 55-65 लिटर होती है. प्रताप संकर मक्का चरी- 6 से 300-400 क्विंटल हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है. साथ ही, बेबीकार्न मक्का भी प्राप्त किया जा सकता है.

डा. आरए कौशिक, निदेशक, प्रसार शिक्षा निदेशालय ने अपने उद्बोधन में कहा कि अनुसंधान निदेशालय द्वारा विकसित तकनीकों को कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों के खेतों पर पहुंचाया जाता है. विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मूंगफली छीलने वाली मशीन एवं सौर ऊर्जा आधारित मक्का छीलने की मशीन किसानों के यहां बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं. उन्होंने जनजाति क्षेत्र में गुणवत्तायुक्त बीज एवं पौध के वितरण पर जोर दिया.

इस बैठक में अतिरिक्त निदेशक कृषि विभाग, भीलवाड़ा डा. राम अवतार शर्मा और संयुक्त निदेशक, उद्यान, भीलवाड़ा एवं संयुक्त निदेशक कृषि, भीलवाड़ा, संयुक्त निदेशक, कृषि, चित्तौडगढ़, राजसमंद एवं अन्य अधिकारी एवं एमपीयूएटी के वैज्ञानिकों ने भाग लिया.

बैठक के प्रारंभ में डा. राम अवतार शर्मा, अतिरिक्त निदेशक कृषि विभाग, भीलवाड़ा ने गत रबी में वर्षा का वितरण, बोई गई विभिन्न फसलों के क्षेत्र एवं उन की उत्पादकता के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने संभाग में विभिन्न फसलों में रबी 2023 के दौरान आई समस्याओं को बताया और अनुरोध किया कि वैज्ञानिक इन के समाधान के लिए उपाय सुझावें. साथ ही, किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए उन्नत बीज, वैज्ञानिक एवं प्रसार अधिकारियों द्वारा तकनीकियों का प्रसार, फसल विविधीकरण एवं मूल्य संवर्धित उत्पाद के बारे में बताया.

क्षेत्रीय अनुसंधान निदेशक डा. अमित त्रिवेदी ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए बैठक को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय में चल रही विभिन्न परियोजनाओं की जानकारी दी और कृषि संभाग चतुर्थ अ की कृषि जलवायु परिस्थितियों व नई अनुसंधान तकनीकों के बारे में प्रकाश डाला.

डा. अमित त्रिवेदी ने संभाग की विभिन्न फसलों में आ रही समस्याओं के निराकरण के लिए प्रतिवेदन प्रस्तुत किया.

बैठक में डा. मनोज कुमार महला, निदेशक, छात्र कल्याण अधिकारी, डा. बीएल बाहेती, निदेशक, आवासीय एवं निर्देशन एवं गोपाल लाल कुमावत, संयुक्त निदेशक कृषि, भीलवाड़ा, महेश चेजारा, संयुक्त निदेशक उद्यान, भीलवाड़ा, दिनेश कुमार जागा, संयुक्त निदेशक कृषि, चित्तौड़गढ, ग्राह्य अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र, चित्तौड़गढ़, डा. शंकर सिंह राठौड़, पीडी, आत्मा, भीलवाड़ा, रमेश आमेटा, संयुक्त निदेशक, शाहपुरा, रविंद्र वर्मा, संयुक्त निदेशक उद्यानिकी एवं डा. रविकांत शर्मा, उपनिदेशक, अनुसंधान निदेशालय, उदयपुर उपस्थित थे.

इस बैठक में विभिन्न वैज्ञानिकों व अधिकारियों द्वारा गत रबी में किए गए अनुसंधान एवं विस्तार कार्यों का प्रस्तुतीकरण किया गया और किसानों को अपनाने के लिए सिफारिशें जारी की गईं. कार्यक्रम के अंत में अनुसंधान निदेशालय के सहायक आचार्य डा. बृज गोपाल छीपा ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया.

खाद्य तेल (Edible Oil) के दामों पर लगाम, एमआरपी से अधिक न हों दाम

नई दिल्ली : केंद्र सरकार के खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (डीएफपीडी) के सचिव ने मूल्य निर्धारण रणनीति पर चर्चा करने के लिए पिछले दिनों भारतीय सौल्वेंट एक्सट्रैक्शन एसोसिएशन (एसईएआई), भारतीय वनस्पति तेल उत्पादक संघ (आईवीपीए) और सोयाबीन तेल उत्पादक संघ (सोपा) के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की अध्यक्षता की. अग्रणी खाद्य तेल संघों को सलाह दी गई थी कि वे यह सुनिश्चित करें कि प्रत्येक तेल का एमआरपी तब तक बनाए रखा जाए, जब तक कि आयातित खाद्य तेल स्टाक शून्य फीसदी और 12.5 फीसदी मूल सीमा शुल्क (बीसीडी) उपलब्ध न हो. इस मुद्दे पर अपने सदस्यों के साथ अविलंब विचारविमर्श करने की सलाह दी गई.

अग्रणी खाद्य तेल संघों के साथ विभाग की बैठकों में इस से पहले भी सूरजमुखी, सोयाबीन और सरसों के तेल जैसे खाद्य तेलों की एमआरपी उद्योग द्वारा कम की गई थी. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में दाम घटने और खाद्य तेलों पर आयात शुल्क घटने से तेल की कीमतों में कमी आई है. समयसमय पर उद्योग के घरेलू मूल्यों को अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों के अनुकूल बनाने की सलाह दी गई है, ताकि उपभोक्ताओं पर अधिक बोझ न पड़े.

केंद्र सरकार ने घरेलू तिलहन मूल्यों का समर्थन करने के लिए विभिन्न खाद्य तेलों पर मूल सीमा शुल्क में वृद्धि लागू की है. 14 सितंबर, 2024 से कच्चे सोयाबीन तेल, कच्चे पाम तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर मूल सीमा शुल्क शून्य फीसदी से बढ़ा कर 20 फीसदी कर दिया गया है, जिस से कच्चे तेल पर प्रभावी शुल्क 27.5 फीसदी हो गया है. इस के अतिरिक्त, रिफाइंड पाम तेल, रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड सोयाबीन तेल पर मूल सीमा शुल्क 12.5 फीसदी से बढ़ा कर 32.5 फीसदी कर दिया गया है, जिस से रिफाइंड तेलों पर प्रभावी शुल्क 35.75 फीसदी हो गया है.

ये समायोजन घरेलू तिलहन किसानों को सहायता देने के लिए सरकार के चल रहे प्रयासों का हिस्सा हैं. अक्तूबर, 2024 से बाजारों में नई सोयाबीन और मूंगफली की फसलों के आने की उम्मीद है.

यह निर्णय व्यापक विचारविमर्श का पालन करता है. यह कई कारकों से प्रभावित होता है, जैसे सोयाबीन, तेल ताड़ और अन्य तिलहनों के वैश्विक उत्पादन में वृद्धि; पिछले वर्ष की तुलना में खाद्य तेलों के वैश्विक स्तर पर अधिक स्टाक और अधिक उत्पादन के कारण वैश्विक कीमतों में गिरावट. इस स्थिति के कारण सस्ते तेलों के आयात में वृद्धि हुई है.

आयातित खाद्य तेलों की लागत बढ़ा कर इन उपायों का उद्देश्य घरेलू तिलहन की कीमतों में वृद्धि करना, उत्पादन में वृद्धि का समर्थन करना और यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को उन की उपज का उचित मुआवजा मिले.

केंद्र सरकार को पता है कि कम शुल्क पर आयात किए गए खाद्य तेलों का लगभग 30 एलएमटी स्टाक है, जो 45 से 50 दिनों की घरेलू खपत के लिए पर्याप्त है.

फैरोमौन डिस्पेंसर से कम लागत में होगा कीटनियंत्रण

नई दिल्ली : फैरोमौन डिस्पेंसर नियंत्रित रिलीज दर के साथ कीट नियंत्रण और प्रबंधन की लागत को कम कर सकता है. कीट नियंत्रण कृषि का एक अनिवार्य हिस्सा है, क्योंकि कीट और अन्य परजीवी अनियंत्रित हो जाते हैं और अच्छी फसल को जल्द ही नष्ट कर सकते हैं.

हाल ही में एक सहयोगी अनुसंधान परियोजना में जवाहरलाल नेहरू उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (जेएनसीएएसआर), बेंगलुरु, (विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्थान) और आईसीएआर-राष्ट्रीय कृषि कीट संसाधन ब्यूरो (आईसीएआर-एनबीएआईआर) के वैज्ञानिकों ने नियंत्रित रिलीज दर के साथ एक स्थायी फैरोमौन डिस्पेंसर विकसित किया है, जो कीट नियंत्रण और प्रबंधन की लागत को बहुत हद तक कम करने के लिए एक अभिनव समाधान बन सकता है.

अब वे प्रयोगशाला में अपनी सफलता को औद्योगिक उत्पादन में परिवर्तित करने की योजना बना रहे हैं, जिस से इस के माध्यम से बड़े पैमाने पर किसानों को सीधा लाभ प्राप्त हो सके. इस के लिए जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर ने हाल ही में कृषि विकास सहकारी समिति लिमिटेड (केवीएसएसएल), हरियाणा के साथ एक तकनीकी लाइसैंस समझौता किया है. प्रो. एम. ईश्वरमूर्ति ने जेएनसीएएसआर की ओर से हस्ताक्षर किया, जबकि डा. केशवन सुबेहरन ने आईसीएआर-एनबीएआईआर का प्रतिनिधित्व किया.

इस आयोजन के महत्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. एम. ईश्वरमूर्ति ने कहा, “यह अभ्यास पूरे देश में और वैश्विक स्तर पर भी प्रौद्योगिकी के प्रसार को सक्षम बनाएगा. कीट प्रबंधन के लिए किसान समुदाय को लाभ पहुंचाने के लिए अनुसंधान का लाभ प्रयोगशाला से खेत तक पहुंचाया जाएगा.”

डा. केशवन सुबेहरन ने कहा, “वर्तमान में स्वच्छ और हरित प्रौद्योगिकियों के विकास पर बल दिया जा रहा है. इसी तर्ज पर, अर्धरसायनों (फैरोमौन जैसे संकेत देने वाले पदार्थ) के नियंत्रित रिलीज पर विकसित तकनीक का हस्तांतरण फर्मों में करने से एक बड़े क्षेत्र को कवर करते हुए उत्पादन वृद्धि को सक्षम बनाया जाएगा.”

स्थायी जैविक फैरोमौन डिस्पेंसर कोई नई अवधारणा नहीं है. वास्तव में फैरोमौन रिलीज करने वाले पौलिमर मेम्ब्रेन या पौलीप्रोपाइलीन ट्यूब डिस्पेंसर पहले से ही बाजार में हावी हैं. रिलीज किए गए फैरोमौन लक्षित कीट प्रजातियों का व्यवहार बदल देते हैं और उन्हें चिपचिपे जाल की ओर आकर्षित करते हैं. हालांकि उन का मुख्य दोष यह है कि जिस दर पर फैरोमौन हवा में छोड़े जाते हैं, वह स्थिर नहीं होता है.

दूसरे शब्दों में, इन जालों को बारबार जांचने और बदलने की आवश्यकता होती है, जिस से लागत बढ़ जाती है और आवश्यक शारीरिक मेहनत भी बढ़ जाती है.

जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर के वैज्ञानिकों ने अपने डिस्पेंसर में मेसोपोरस सिलिका मैट्रिक्स का उपयोग कर के इस मुद्दे का समाधान किया है. इस सामग्री में कई छोटे छिद्रों के साथ एक क्रमबद्ध संरचना होती है, जो फैरोमौन अणुओं को आसानी से सोखने और समान रूप से बनाए रखने में मदद करती है. मेसोपोरस सिलिका न केवल अन्य वाणिज्यिक सामग्रियों की तुलना में अधिक धारण क्षमता प्रदान करता है, बल्कि यह संग्रहीत फैरोमौन को ज्यादा स्थिर तरीके से रिलीज करता है, जो बाहरी स्थितियों, जैसे कि क्षेत्र के तापमान से स्वतंत्र होता है.

प्रस्तावित फैरोमौन डिस्पेंसरयुक्त ल्यूर का उपयोग करने से कई फायदे होते हैं. सब से पहले लोड किए गए फैरोमौन की कम और ज्यादा स्थिर रिलीज दर के कारण प्रतिस्थापन के बीच का अंतराल लंबा होता है, जिस से किसानों का कार्यभार कम हो जाता है. इस के शीर्ष पर डिस्पेंसर को फैरोमौन की अधिक अपरिवर्तनवादी मात्रा के साथ लोड किया जा सकता है, क्योंकि स्थिति स्वतंत्र रिलीज दर यह सुनिश्चित करती है कि वे समय से पहले रिलीज न हों.

इस तरह प्रस्तावित डिजाइन प्रति डिस्पेंसर आवश्यक फैरोमौन की मात्रा को कम करता है, जिस से लागत में कमी आती है और सुलभ व स्थायी कृषि प्रथाओं में योगदान प्राप्त होता है.

डा. केशवन सुबेहरन ने कहा, “विकसित उत्पाद मौजूदा डिस्पेंसर पर बढ़त प्राप्त करेंगे, क्योंकि वे ल्यूर की विस्तारित क्षेत्र प्रभावकारिता और फैरोमौन उपयोग की मात्रा कम होने के कारण लागत को कम करने में मदद करते हैं.”

व्यापक प्रयोगों और क्षेत्र परीक्षणों ने प्रस्तावित डिजाइन की कीट पकड़ने की प्रभावकारिता का प्रदर्शन किया, जो वाणिज्यिक डिस्पेंसर के बराबर पाया गया, लेकिन कम आवश्यक फैरोमौन रिलीज के साथ.

प्रो. एम. ईश्वरमूर्ति ने निष्कर्ष निकाला, “तकनीकी लाइसैंस समझौते के निष्पादन होने से, फर्म उत्पादन बढ़ेगी और किसानों को क्षेत्र में उपयोग के लिए गुणवत्ता प्रदान करेगी, ताकि कीटों का प्रभावी रूप से प्रबंधन किया जा सके.”

जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर के बीच एक सक्रिय सहयोग के रूप में, जिसे भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और डीबीटी द्वारा वित्त पोषित किया जाता है, यह प्रयास स्थायी कृषि प्रथाओं के माध्यम से सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 2, जीरो हंगर की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

जेएनसीएएसआर के प्रो. ईश्वरमूर्ति (आविष्कारक) और प्रो केआर श्रीनिवास; डा. दीपा बेनीवाल, सहायक प्रबंधक, केवीएसएसएल; प्रो. जीयू कुलकर्णी, अध्यक्ष, जेएनसीएएसआर; डा. एसएन सुशील, निदेशक, आईसीएआर-एनबीएआईआर; जौयदीप देब, प्रशासनिक अधिकारी, जेएनसीएएसआर; डा. केशवन सुबेहरन, सीएसआईआर-एनबीएआईआर के आविष्कारक; डा. याशिका, एसआईआर-एनबीएआईआर; और डा. के. पन्नीर सेल्वम, समन्वयक, अनुसंधान एवं विकास, जेएनसीएएसआर और आईसीएआर-एनबीएआईआर के वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए फैरोमौन डिस्पेंसरयुक्त एक नव विकसित स्थायी और लागत प्रभावी कीट ल्यूर विकसित किया है, जो उन के पौधों को खतरे में डालने वाले कीटों को नियंत्रित करता है.

बागबानी फसलों के उत्पादन का अग्रिम अनुमान जारी

नई दिल्ली : कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने विभिन्न राज्यों/ केंद्र शासित प्रदेशों और अन्य सरकारी स्रोत एजेंसियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर संकलित विभिन्न बागबानी फसलों के क्षेत्रफल और उत्पादन का साल 2023-24 का तीसरा अग्रिम अनुमान जारी किया है, जिस के अनुसार देश में 2023-24 (तीसरा अग्रिम अनुमान) में बागबानी फसलों का उत्पादन लगभग 353.19 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो साल 2022-23 (अंतिम अनुमान) की तुलना में लगभग 22.94 लाख टन (0.65 फीसदी) कम है.

साल 2023-24 (अंतिम अनुमान) में फलों, शहद, फूलों, बागानी फसलों, मसालों और सुगंधित एवं औषधीय पौधों के उत्पादन में वृद्धि देखी गई है. साल 2023-24 में फलों का उत्पादन मुख्य रूप से आम, केला, नीबू/नीबू, अंगूर, कस्टर्ड सेब और अन्य फलों के उत्पादन में वृद्धि के कारण साल 2022-23 की तुलना में 2.29 फीसदी बढ़ कर यानी 112.73 मिलियन टन होने की उम्मीद है, वहीं सेब, मीठा संतरा, मैंडरिन, अमरूद, लीची, अनार, अनानास का उत्पादन साल 2022-23 की तुलना में घटने का अनुमान है.

सब्जियों का उत्पादन लगभग 205.80 मिलियन टन होने की उम्मीद की गई है. टमाटर, पत्तागोभी, फूलगोभी, टैपिओका, लौकी, कद्दू, गाजर, ककड़ी, करेला, परवल और भिंडी के उत्पादन में वृद्धि की उम्मीद है, जबकि आलू, प्याज, बैगन, जिमीकंद, शिमला मिर्च और अन्य सब्जियों के उत्पादन में कमी की उम्मीद की गई है.

साल 2023-24 (तीसरा अग्रिम अनुमान) में प्याज का उत्पादन 242.44 लाख टन होने की उम्मीद है. देश में आलू का उत्पादन 2023-24 (तीसरा अग्रिम अनुमान) में लगभग 570.49 लाख टन होने की उम्मीद है, जिस का मुख्य कारण बिहार और पश्चिम बंगाल में उत्पादन में कमी दर्ज होना है. टमाटर का उत्पादन 2023-24 (तीसरा अग्रिम अनुमान) में 213.20 लाख टन होने की उम्मीद है, जो पिछले साल लगभग 204.25 लाख टन था यानी उत्पादन में 4.38 फीसदी की वृद्धि होने की उम्मीद है.

“वस्त्र से वजूद तक” प्रशिक्षण का आयोजन

उदयपुर : बड़गांव पंचायत समिति के थूर गांव में 21 सितंबर, 2024 को “वस्त्र से वजूद तक” (वीमेंस टेलर) उद्यमिता कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन समारोह बड़े उत्साह के साथ संपन्न हुआ. इस कार्यक्रम का आयोजन 29 जुलाई से 21 सितंबर, 2024 तक 41 कार्यदिवसों में किया गया था, जिस में 28 ग्रामीण महिलाओं और युवतियों ने भाग लिया.

यह प्रशिक्षण अखिल भारतीय समन्वित कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना (AICRP), अनुसंधान निदेशालय, मप्रकृ एवं प्रौविवि, उदयपुर और आईसीसीआई, ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (RSETI), उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया.

इस प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य उद्यमिता कौशल विकास के माध्यम से महिलाओं का सशक्तीकरण करना है, जिस से वे आत्मनिर्भर हों एवं समाज के विकास में महत्वपूर्ण योगदान देने में सक्षम बनें. यह प्रशिक्षण मास्टर ट्रेनर शबनम बानो के कुशल निर्देशन में कराया गया, जिस में प्रतिभागियों को सिलाई मशीनों के संचालन, वस्त्रों की ड्राफ्टिंग और विभिन्न प्रकार के परिधानों जैसे स्कर्ट, ब्लाउज, सलवार सूट, गाउन, फ्राक, बाबा सूट,पेटीकोट, बैग, लहंगा, डिजाइनर ड्रेस इत्यादि की सिलाई में कुशल बनाया गया.

साथ ही, उन्हें विपणन, ग्राहक सेवा, टीम निर्माण, उद्यमी व्यवहार और आजीविका संवर्धन के बारे में एवं वित्तीय साक्षरता की कक्षाएं भी ली गईं. इन प्रशिक्षुओं को उदयपुर में संचालित विभिन्न परिधान विक्रताओं एवं बुटीक इत्यादि से संपर्क कर के आजीविका से जोड़ने का प्रयास किया गया.

समापन समारोह में डा. अरविंद वर्मा, निदेशक, अनुसंधान निदेशालय, मप्रकृ एवं प्रौविवि, उदयपुर ने महिलाओं को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं दीं और उन्हें अपने काम को और आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया.

कार्यक्रम के दौरान प्रशिक्षण लेने वालों ने प्रशिक्षण संबंधी अपने अनुभव एवं इस के द्वारा स्वयं में आए हुए बदलाव के बारे में जानकारी दी. उन्होंने आश्वासन दिया कि वे प्रशिक्षण से प्राप्त कौशल और व्यावहारिक जानकारी का उपयोग कर के जल्द ही सफल उद्यमी बनेंगे और अपने परिवार व समाज के लिए आत्मनिर्भरता का उदाहरण पेश करेंगे.

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इस अवसर पर प्रशंसा प्रमाणपत्र और सिलाई उपकरणों की टूल किट सभी प्रशिक्षुओं को वितरित की गई, जिस से वे अपने स्वरोजगार को सफलतापूर्वक प्रारंभ कर सकें. प्रशिक्षण के आयोजक दल के सदस्य वरिष्ठ वैज्ञानिक, डा. विशाखा, कनिष्ठ वैज्ञानिक डा. सुमित्रा मीणा, आईसीआईसीआई आरसेटी संस्थान से ट्रेनिंग कोऔर्डिनेटर वैभव गुप्ता, शरद माथुर एवं प्रकाश कुमावत की भागीदारी रही.