पशुधन स्वास्थ (Livestock Health) और उन के विकास के लिए संगोष्ठी

हिसार: लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय में कुलपति, डा. राजा शेखर वुंडरू, आईएएस, अतिरिक्त मुख्य सचिव, हरियाणा सरकार के दिशानिर्देशानुसार लुवास के 15वें स्थापना दिवस के उपलक्ष में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

लुवास की स्थापना वर्ष 2010 में शेर-ए-पंजाब, लाला लाजपत राय की स्मृति में की गई थी, जिस का उद्देश्य पशुधन, मुर्गी और पालतू पशुओं की महत्वपूर्ण बीमारियों के निदान, रोकथाम और नियंत्रण पर गहन शोध के माध्यम से पशुओं की पीड़ा को कम करना एवं पशुधन के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत रहना हैं.

यह दिन लुवास के लिए हर साल बहुत खास होता है क्योंकि आज के दिन लुवास विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी और यह लुवास में शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार में उत्कृष्टता की यात्रा की याद दिलाता है. इस अवसर पर पशु चिकित्सा महाविद्यालय हिसार के वर्ष 1969 के पास आउट बैच के पूर्व छात्रों ने भी अपने परिवार के साथ लुवास परिसर में पुनर्मिलन समारोह मनाया. इस कार्यक्रम का आयोजन पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता द्वारा संस्थागत नवाचार परिषद, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय के सहयोग से किया गया था.

पशुधन स्वास्थ संगोष्ठी (Livestock Health)
पशुधन स्वास्थ (Livestock Health seminar)

डा. नरेश जिंदल, ने कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में समारोह की अध्यक्षता की और डा. राजेश खुराना, निदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन और अध्यक्ष, संस्थागत नवाचार परिषद, लुवास ने सह-अध्यक्ष के रूप में भाग लिया. इस अवसर पर उपस्थित पशु चिकित्सा महाविद्यालय के वर्ष 1969 पासआउट बैच के पूर्व छात्रों ने लुवास स्थापना समारोह की सराहना करते हुए लुवास द्वारा पशु चिकित्सा, पशु विज्ञान शिक्षा तथा अनुसंधान के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए किये जा रहे कार्यो की तारीफ़ करी. पूर्व छात्रों ने अपने विचार साझा किए तथा छात्रों और विभाग के  सदस्यों को पशुधन एवं डेयरी उद्योग की वर्तमान जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान करने की सलाह दी, जिस से नवाचारों को बढ़ावा मिले.

स्थापना दिवस के अवसर पर कुलसचिव डा. एस. एस. ढाका ने लुवास में चल रही विभिन्न शैक्षिक, अनुसंधान एवं विस्तार कार्यक्रमों के बारे में अवगत कराया तथा लुवास की उपलब्धियों और विश्वविद्यालय के विभागीय सदस्यों और विद्यार्थियों द्वारा की जा रही विभिन्न गतिविधियों के साथ-साथ भविष्य के प्रयासों के बारे में भी विचार विमर्श किया.

कार्यक्रम के अंत लुवास के अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल ने पशुपालकों के लाभ के लिए विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे अनुसंधान पहलुओं पर भी विस्तार से चर्चा करी.

कृषि विश्वविद्यालय के लोगों को मिला ट्रेडमार्क (Trademark)

सबौर: बिहार कृषि विश्विद्यालय ने अपने लोगों और स्लोगन “Work is Worship, Work with Smile” पर पहला ट्रेडमार्क प्राप्त किया है, जो कुलपति प्रो. डी.आर. सिंह की परिकल्पना थी. कुलपति ने जनवरी 2023 में कार्य भार संभालने के बाद विश्वविद्यालय की शैक्षणिक, शोध, विस्तार और प्रशिक्षण गतिविधियों के विकास के लिए यह स्लोगन दिया था . यह ट्रेडमार्क भारत सरकार के ट्रेड मार्क्स रजिस्ट्र्री, ट्रेड मार्क्स अधिनियम, 1999 के अंतर्गत, ट्रेड मार्क पंजीकरण प्रमाणपत्र, धारा 23 (2), नियम 56 (1) के तहत 6 जून 2023 से प्रदान किया गया है.

यह विश्वविद्यालय के लिए ट्रेडमार्क के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ी मान्यता है. कुलपति के गतिशील नेतृत्व में विश्वविद्यालय शैक्षणिक, शोध, विस्तार और प्रशिक्षण के क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन कर रहा है. कुलपति ने इस उपलब्धि के लिए अनुसंधान निदेशक, डा. अनिल कुमार सिंह और आईटीएमयू प्रभारी अधिकारी, डा. नींटू मंडल को बधाई दी. उन्होंने आगे यह आशा व्यक्त की, कि विश्वविद्यालय भविष्य में और अधिक पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क प्राप्त करेगा.

Employment Opportunities: कृषि क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में राष्ट्रीय युवा पेशेवर विकास कार्यक्रमकृषि विस्तार में नई दक्षता, करियर के अवसर और अनुसंधान विषय पर 5 दिवसीय कार्यक्रम हुआ. कृषि महाविद्यालय के विस्तार शिक्षा विभाग तथा राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की जब कि राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद के निदेशक (कृषि विस्तार) डा. श्रवणन राज विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहे. कार्यक्रम में राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश पूसा संस्थान दिल्ली सहित विभिन्न प्रदेशों के 65 शोधकर्ताओं ने भाग लिया.

कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम कृषि विस्तार के क्षेत्र में नवाचार कौशल विकास और अनुसंधान उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है. विश्व में हो रहे तकनीकी विकास,अनुसंधान और सूचना प्रौद्योगिकी के प्रचारप्रसार के कारण कृषि विस्तार की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है जो अनुसंधान संस्थानों और कृषक समुदाय के बीच पुल का काम कर रही है.

उन्होंने बताया कि कृषि में रोजगार की बहुत संभावनाएं हैं. युवाओं को आधुनिक तरीकों से कृषि के विस्तार से जुडऩा होगा. सूचना प्रौद्योगिकी तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआई) को इस्तेमाल करके विस्तार शिक्षा को बढ़ावा देना होगा, जो वर्तमान समय की मांग है. उन्होंने कहा कि आज हमें कृषि विस्तार और कृषि क्षेत्र में नवीनतम तकनीक के प्रचारप्रसार करने में कृषक उत्पादक समूह (एफपीओ) के सहयोग की भी आवश्यकता है.

युवा पेशेवरों ,शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाकर उन्हें सीखने और नवाचार के लिए प्रेरित करना होगा. प्रतिभागियों को कृषि विस्तार के मार्गदर्शक बताते हुए उन्होंने कहा कि कृषि परिदृश्य में एक ठोस बदलाव लाने के लिए और अधिक बेहतर ढंग से कार्य करने की आवश्यकता है ताकि इस क्षेत्र को लाभकारी एवं आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद के संस्थान निदेशक एवं विशिष्ट अतिथि डा. श्रवणन राज ने कृषि क्षेत्र में युवाओं के लिए रोजगार की अपार संभावनाओं के संदर्भ में कहा कि कहा कि कृषि के क्षेत्र में युवाओं को आगे लाने के लिए प्रेरित एवं प्रशिक्षित करने के साथसाथ आधुनिक तरीकों से कृषि के विस्तार की भी आवश्यकता है.

विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षणों (Vocational Trainings) के लिए करें तुरंत आवेदन

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय स्थित सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में हरियाणा के अनुसूचित जाति /जनजाति के उम्मीदवारों को विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक प्रशिक्षण दिए जाएंगे. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि संस्थान में समय-समय पर अनुसूचित जाति/जनजाति के बेरोजगार और जरूरतमंद विशेष कर ग्रामीण युवक एवं युवतियों को प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे स्वयं का रोजगार स्थापित कर आत्मनिर्भर बन सके.

इसी कड़ी में अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्तियों के लिए 5 दिवसीय व्यवसायिक प्रशिक्षण का आयोजन भी किया जाएगा. जिस के अंतर्गत दूध से मूल्य संवर्धित उत्पाद तैयार करना, आचार और परिरक्षित पदार्थ बनाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण, बेकरी में मिलेट्स के उपयोग पर प्रशिक्षण दिया जाएगा. अनुसूचित जाति/ जनजाति के बेरोजगार और जरूरतमंद विशेष कर ग्रामीण युवक एवं युवतियां जो यह प्रशिक्षण लेना चाहते हैं वो गेट नंबर 3, लुद्दास रोड़ के नजदीक सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय हिसार मे आकर आवेदन कर सकते हैं. इन प्रशिक्षणों के लिए आवेदक की उम्र प्रमाणपत्र के अनुसार 18 से कम नहीं होनी चाहिए और वो किसी स्कूल मे अध्ययनरत नहीं होना चाहिए .विकलांग, विधवा, तलाकशुदा इत्यादि उम्मीदवारों को चयनित कमेटी द्वारा वरीयता दी जाएगी.

संस्थान के सहनिदेशक डा. अशोक गोदारा ने बताया कि आवेदन फौर्म 16 दिसम्बर 2024 तक किसी भी कार्य दिवस को सुबह 9 बजे से शाम 4.30 तक जमा करवा सकते है. चयनित प्रतिभागियों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद स्कीम के तहत खुद का रोजगार शुरू करने के लिए सहायता सामग्री देने का भी प्रावधान है.

फौर्म में सही विवरण न भरने या अधूरा छोड़ने या कोई आवश्यक दस्तावेज न लगाने की अवस्था में आवेदन रद्द कर दिया जाएगा. आवेदन फौर्म के साथ स्वयं सत्यापित दस्तावेजों की कौपी को संलग्न करना अति आवश्यक है जैसे शैक्षणिक योग्यता के प्रमाणपत्र, आयु के लिए कोई भी हरियाणा सरकार द्वारा प्रमाणित प्रमाणपत्र, हरियाणा सरकार द्वारा जारी अनुसूचित-जाति/जनजाति प्रमाणपत्र, आधारकार्ड, स्वयं सत्यापित नवीनतम रंगीन फोटो, सक्रिय बैंक अकाउंट की कौपी के पहले पृष्ठ की प्रति जिस पर खाताधारक और बैंक का विवरण दिया हो इत्यादि.

फौर्म भरने से पहले ध्यान दिया जाए कि परिवार पहचान पत्र के अनुसार किसी भी सदस्य ने इस से पहले इस विश्वविद्यालय या इस के संबंधित हरियाणा के किसी भी कृषि विज्ञान केन्द्रों/संस्थानों से अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों के लिए सहायता प्राप्त स्कीम के तहत किसी भी तरह का प्रशिक्षण न लिया हुआ हो और इस संबंध में उम्मीदवार को एक अंडरटेकिंग इस संस्थान में देनी होगी. आवेदक को निर्धारित फौर्म भर कर ही खुद के हस्ताक्षर करने होंगे वरना उम्मीदवार का फौर्म रद्द कर दिया जाएगा.

मृदा स्वास्थ्य (Soil Health) अच्छा तो खेती से पैदावार अच्छी

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग द्वारा विश्व मृदा दिवस पर सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में मिट्टी की देखभाल: माप, निगरानी व प्रबंधन पर विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी.आर. काम्बोज ने कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी. आर. काम्बोज ने कहा कि भूमि की उर्वरक क्षमता बनाएं रखने के लिए मिट्टी की जांच, फसल चक्र में बदलाव, जैविक प्रबंधन और कम भूजल दोहन वाली फ़सलें व तकनीकें अपनाना बहुत जरुरी है. उन्होंने कहा कि मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो पैदावार भी बढ़ेगी. इस लिए किसान नियमित रुप से मिट्टी की जांच करवाते रहें और उस के अनुसार ही फसलों का चयन करें. क्योंकि अधिक रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से किसान की लागत भी बढ़ती है और मिट्टी के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचता है.

विश्व मृदा दिवस का उद्देश्य मिट्टी के संरक्षण, महत्व और उस के टिकाऊ उपयोग के प्रति जागरूकता को बढ़ाना है. मिट्टी पृथ्वी पर जीवन का आधार है क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन में मुख्य भूमिका निभाती है. विश्व में लगभग 95 फीसदी  खाद्य पदार्थ मिट्टी पर निर्भर है. उन्होंने कहा कि मृदा की उपजाऊ क्षमता को बनाए रखना खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए बहुत जरूरी है.

उन्होंने कहा कि किसानों को अपने खेत की मिट्टी की जांच बिलकुल करवानी चाहिए. इससे किसान कम मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करके अधिक पैदावार ले सकते हैं. किसानों की मिट्टी की जांच के लिए विश्वविद्यालय द्वारा उचित प्रबंध किए गए हैं. किसानों को परंपरागत फसलों के स्थान पर दलहनी एवं तिलहनी फसलों की खेती करने के लिए आगे आने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि इस से उनकी आर्थिक स्थिति और अधिक मजबूत होगी. किसान फसल अवशेष ना जलाएं क्योंकि इस से भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले जीवाणु खत्म हो जाते हैं.

मृदा के क्षेत्र में वैज्ञानिकों की बहुत बड़ी भूमिका रही है. वैज्ञानिकों के द्वारा किए जा रहे शोध कार्यों, सरकार द्वारा प्रदत्त कि जा रही सुविधाओं तथा किसानों के द्वारा की जा रही मेहनत राष्ट्र की प्रगति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने विभाग की शोध संबंधी प्राथमिकताओं के बारे में बताते हुए मृदा उर्वरता के जिला स्तरीय मानचित्र बनाने पर भी सुझाव दिया. कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने बताया कि विभाग द्वारा साल 2024 में मिट्टी के 3000 तथा पानी के 2800 नमूनों की जांच की गई. उन्होंने कुलपति द्वारा 5 कृषि विज्ञान केंद्रों में नई मिट्टी प्रयोगशाला बनाने के लिए दिए गए बजट पर उनका धन्यवाद किया.

बीएयू मेँ विश्व मृदा दिवस (World Soil Day) 2024 का हुआ आयोजन

बीएयू , सबौर ने 5 दिसंबर 2024 को विश्व मृदा दिवस 2024 बड़े जोश के साथ मनाया. इस वर्ष का विषय, ‘ मिट्टी का खयाल: मापें, निगरानी करें, प्रबंधित करें’ , स्थायी प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने, वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और पर्यावरणीय स्थिरता को मजबूत करने के लिए सटीक मृदा डेटा की आवश्यकता को रेखांकित करता है.

इस अवसर पर, बीएयू सबौर के कुलपति, डा. डी. आर. सिंह ने अपने संदेश में आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के महत्त्व पर जोर दिया. उन्होंने मृदा संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की जागरूकता पहलों के आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला.

भागलपुर के छात्रों ने विश्वविद्यालय परिसर में मृदा स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए उत्साहपूर्वक भाग लिया. इस अवसर पर भारतीय मृदा विज्ञान सोसाइटी, सबौर चैप्टर द्वारा ई-न्यूजलैटर के चौथे अंक का विमोचन भी किया गया.

इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण प्रोफैसर गौतम कुमार घोष (विश्वभारती, श्रीनिकेतन, पश्चिम बंगाल) का आमंत्रित व्याख्यान था. उन के विचार “समेकित पोषक प्रबंधन (INM)” के माध्यम से फसल उत्पादकता और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने की रणनीतियों पर केंद्रित थे.

छात्रकेंद्रित गतिविधियों, जैसे “KNOW YOUR SOIL” क्विज़ और जस्ट-ए-मिनट (JAM) प्रतियोगिता ने प्रतिभागियों की भागीदारी और मृदा संरक्षण की गहरी समझ को प्रोत्साहित किया. विजेताओं को भारतीय मृदा संरक्षण सोसाइटी, सबौर चैप्टर द्वारा पुरस्कार प्रदान किए गए.

हाथोंहाथ सीखने के अनुभव को जोड़ते हुए, मृदा परीक्षण किट पर एक प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया गया, जिस में स्कूल के छात्रों को मृदा स्वास्थ्य मूल्यांकन की व्यावहारिक जानकारी दी गई.  पूरे दिन, पीजी लैब-1 के पास पौधारोपण क्षेत्र में मृदा संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करने वाले शैक्षिक पोस्टर प्रदर्शित किए गए.
विभागाध्यक्ष डा. अंशुमान कोहली ने भी भविष्य में इस तरह के आयोजन के लिए संकाय सदस्यों और छात्रों को प्रोत्साहित किया. नवोदय विद्यालय, नगरपारा, भागलपुर के 100 छात्रों और विभाग के 60 स्नातकोत्तर छात्रों ने कार्यक्रम में भाग लिया.

कार्यक्रम का समापन इस संदेश के साथ हुआ कि मिट्टी के सेहत को बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है, जो स्थायी कृषि और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राप्त करने में इस की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है.

कृषि के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure)

नई दिल्ली: भारत सरकार ने 2 सितंबर, 2024 को घोषित डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की है. गुजरात राज्य 5 दिसंबर, 2024 को किसानों की लक्षित संख्या का 25 फीसदी किसान आईडी बनाने वाला देश का पहला राज्य बन चुका है. यह सफलता भारत सरकार की ‘एग्री स्टैक पहल’ के एक भाग के रूप में एक व्यापक मानकसंचालित डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रदर्शन करता है.

किसान आईडी, आधारकार्ड पर आधारित किसानों की एक अनूठी डिजिटल पहचान है, जो राज्य की भूमि रिकौर्ड प्रणाली से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई है, जिस का मतलब है कि किसान आईडी एक व्यक्तिगत किसान के भूमि रिकौर्ड विवरण में बदलाव के साथसाथ स्वचालित रूप से अपडेट होती है. डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल रूप से प्राप्त फसल आंकड़े प्राप्त करने के साथ किसान आईडी का उद्देश्य केंद्रित लाभ प्रदान करना है

डिजिटल पहचान, कार्यवाही योग्य अंतर्दृष्टि एवं सूचित नीतिनिर्माण के लिए एक परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में भी कार्य करेगा, जिससे अभिनव किसानकेंद्रित समाधान विकसित किए जा सके, कुशल कृषि सेवा वितरण सुनिश्चित किया जा सके और कृषि परिवर्तन के लिए एक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सके, जिस का लक्ष्य चिरस्थायी कृषि पर ध्यान केंद्रित करते हुए किसानों की आय में बढ़ोतरी करना है.

किसान आईडी निर्माण के लिए व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्यों के लिए एक बहु-आयामी रणनीति विकसित की है.

ये मोड किसान पहचान पत्र तैयार करने वाले चैनल हैं जैसे कि सेल्फ मोड (मोबाइल का उपयोग कर के किसानों द्वारा स्वपंजीकरण), सहायक मोड (प्रशिक्षित जमीनी कार्यकर्ता/स्वयंसेवकों द्वारा सहायता प्राप्त पंजीकरण), कैंप मोड (ग्रामीण क्षेत्रों में समर्पित पंजीकरण शिविर), सीएससी मोड (सामान्य सेवा केंद्रों के माध्यम से पंजीकरण) आदि.

डिजिटल कृषि मिशन ने किसान रजिस्ट्री बनाने के लिए प्रोत्साहन के रूप में कृषि के लिए डीपीआई एवं पूंजीगत परियोजनाओं हेतु विशेष केंद्रीय सहायता पर समझौता ज्ञापन के माध्यम से कृषि क्षेत्र के लिए डीपीआई निर्माण के लिए राज्यों और केंद्र सरकार के बीच एक सहयोगी प्रयास को सक्षम बनाया है.

इस के अलावा, डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत, केंद्र सरकार तकनीकी दिशानिर्देश, संदर्भ अनुप्रयोग एवं कंप्यूटिंग क्षमता प्रदान कर, क्षमता बढ़ाकर एवं प्रशिक्षण प्रदान कर राज्यों को सक्षम बना रही है. भारत सरकार पंजीकरण शिविरों का आयोजन करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन एवं किसान आईडी तैयार करने में शामिल राज्य के कार्यकर्ताओं को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन भी प्रदान करती है.

राज्य स्तर पर, पहल के मुख्य आकर्षणों में अंतर्विभागिय समन्वय एवं सहयोग, विशेष रूप से राजस्व और कृषि विभागों के बीच सहयोग शामिल हैं. राज्यों ने कृषि क्षेत्र में डीपीआई विकसित करने के लिए प्रक्रिया सुधारों सहित प्रशासनिक एवं तकनीकी परिवर्तनों को सक्षम बनाया है. राज्यों ने प्रगति की निगरानी करने, स्थानीय सहायता प्रदान करने और उत्पन्न डेटा की गुणवत्ता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिए परियोजना प्रबंधन इकाइयों (पीएमयू) और समन्वय टीमों का भी गठन किया है.

गुजरात 25 फीसदी किसान आईडी (पीएम किसान में राज्य के कुल किसानों के बीच) के साथ अग्रणी है जब कि दुसरे राज्य भी अच्छी प्रगति कर रहे हैं. मध्य प्रदेश ने कम समय में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, जो 9 फीसदी तक पहुंच गया है जब कि महाराष्ट्र 2 फीसदी  पर है और उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान जैसे दुसरे राज्यों ने भी किसान आईडी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इस परिवर्तनकारी यात्रा में राज्यों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक किसान डिजिटल कृषि क्रांति से लाभान्वित हों.

पशुपालकों (Cattle Farmers) को भेड़ की उन्नत नस्लों का वितरण

डूंगरपुर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर की अनुसूचित जनजाति उपयोजना मे डूंगरपुर जिले के भटनाड़ा ग्राम पंचायत भवन में किसानवैज्ञानिक संगोष्ठी एवं भेड़पालन के लिए 100 पशुओं के वितरण का आयोजन किया गया. इस मौके पर अविकानगर संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर के मार्गदर्शन में टीएसपी उपयोजना के नोडल अधिकारी डा. जी. गणेश सोनवाणे द्वारा संगोष्ठी में उपस्थित आदिवासी किसानों को वैज्ञानिक ढंग से भेड़पालन, टीकाकरण एवं साल भर किए जाने वाली गतिविधियों पर विस्तार से संवाद किया गया. इस मौके पर टीएसपी उपयोजना के माध्यम से डूंगरपुर जिले में किए जा रहे काम के बारे में अतिथियों को अवगत कराया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उमेश मीणा विधायक आसपुर विधानसभा ने भी उपस्थित किसानों को वर्तमान समय के हिसाब से वैज्ञानिक तरीके से पशुपालन एवं खेती करने पर जोर दिया और सभी आदिवासी किसानो को स्वरोजगार अपनाकर अपने परिवार की आर्थिक उन्नति के लिए नई पीढ़ी को कौशल विकास की ओर बढ़ने का आह्वाहन किया.

कार्यक्रम का संचालन डा. अमर सिंह मीणा द्वारा किया गया. संगोष्ठी के अवसर पर 11 आर्थिक रूप से कमजोर आदिवासी परिवारों को 5 भेड़ (4 मादा एवं 1 नर) की इकाई एवम 45 भेड़पालक आदिवासी किसानों को उन्नत नस्ल का एक मेढ़ा के साथ फीडिंग ट्रौप, पैलेट फीड, तसला, बालटी, खोडी, खुरपी, दंराती आदि का वितरण कार्यक्रम में उपस्थित अथितियों द्वारा किया गया. इस कार्यक्रम में सोहन लाल अहारी एवं रमनलाल कलसुवा द्वारा भेड़पालक आदिवासी किसानों का सर्वे कर के कार्यक्रम आयोजन में सहयोग किया गया. अविकानगर से पशुओं का परिवहन रामखिलाडी मीणा व राजेश चंदेल द्वारा किया गया. संगोष्ठी एवं वितरण कार्यक्रम में अविकानगर संस्थान के वित्त अधिकारी भूपेंद्र कुमार गुर्जर, सरपंच देवशंकर नेनोमा एवं भटनाड़ा पंचायत के गांववासियों के साथ लाभान्वित आदिवासी किसान उपस्थित रहे.

पशुपालकों को भेड़ की उन्नत नस्लों के संदर्भ आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम

डूंगरपुर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर में चल रही अनुसूचित जाति उपयोजना के अन्तर्गत पांच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान डा. अरूण कुमार तोमर निदेशक के निर्देशन में आयोजित किया गया. जिसके समापन कार्यक्रम मे संस्थान द्वारा चयनित अनुसूचित जाति की 25 महिलओं एवं पुरूष बीपीएल किसानों ने भाग लिया.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में किसानों को भेड़-बकरीयों में प्रजनन, स्वास्थ्य, पशु पोषण, अधिक उत्पादन के लिए कृत्रिम गर्भाधान, ऊन एवं ऊन के उत्पादों की नवीन तकनीकी जानकारियां दी गईं. कार्यक्रम के समापन समारोह में अनुसूचित जाति उपयोजना के नोडल अधिकारी डा. अजय कुमार ने किसानों को संम्बोधित करते हुए कहा कि वे भेड़-बकरी पालन कर अपनी आजीविका में सुधार कर सकते हैं और कहा कि वे संस्थान से 5 दिन में मिली जानकरी को क्षेत्र के दुसरे  किसानों से भी साझा कर उन की भी जानकारी को बढ़ाएं. जिस से अन्य किसान भी इस का फायद ले सकें.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक डा. एल.आर. गुर्जर, प्रभारी, तकनीकी स्थानांतरण एवं सामाजिक विज्ञान विभाग एवं डा. रंगलाल मीणा, वैज्ञानिक रहे. कार्यक्रम में गौतम चौपड़ा, डी.के. यादव एवं अन्शुल शर्मा ने भी सहयोग प्रदान किया.

Awards: मिट्टी से सुपरफूड्स तक अनंत पोद्दार (Anant Poddar) की कहानी

दिल्ली विश्वविद्यालय से बीकौम औनर्स की डिगरी और सीमेंस में बिजनैस कंट्रोलर के रूप में अनुभव के साथ अनंत पोद्दार ने गुरुग्राम, गोवा, मुंबई और बैंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में अपना कैरियर बनाया, लेकिन कारपोरेट जीवन में सफल होते हुए भी उन के मन में कृषि क्षेत्र में कुछ अलग करने की चाहत थी. इस चाहत को पूरा करने के लिए अनंत पोद्दार ने उच्च तनख्वाह वाली नौकरी छोड़ दी और खुद को आधुनिक कृषि क्षेत्र में उतार दिया.

 

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हाइड्रोपोनिक्स खेती से की शुरुआत

अनंत पोद्दार ने बैंगलुरु में हाइड्रोपोनिक्स के क्षेत्र में फार्म मैनेजर के रूप में काम किया और अनुभव हासिल करने के बाद अपने गृहनगर खुर्जा में साल 2020 में कोरोना महामारी के दौरान हाइड्रोपोनिक्स खेती के जरीए पोद्दार फार्म्स की स्थापना की. बुलंदशहर जिले में स्थित खुर्जा शहर शिल्पकला और चीनी मिट्टी की क्रोकरी के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन अनंत पोद्दार का फोकस मिट्टी के बरतनों पर नहीं, बल्कि मिट्टी से जुड़े उन खाद्य उत्पादों पर था, जो सेहत के लिए लाभकारी हों.

किए अनेक नवाचार

अग्रवाल मारवाड़ी व्यापारी परिवार से आने वाले अनंत पोद्दार ने एक ऐसे भविष्य की कल्पना की थी, जहां हमारा भोजन शुद्ध, सेहतमंद और हानिकारक रसायनों से मुक्त हो. चाहे वे ताजा रसायनमुक्त सब्जियां हों, विदेशी जड़ीबूटियां हों, लकड़ी घानी से निकला हुआ तेल हो, पौष्टिक स्नैक्स हो, प्राकृतिक शहद हो या मल्टीग्रेन आटा. अनंत पोद्दार ने इन सभी क्षेत्रों में नवाचार किया और सफल भी रहे. इन्हीं खूबियों के चलते अनंत पोद्दार को दिल्ली प्रैस की पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ द्वारा ‘राज्य स्तरीय बेस्ट फार्मर अवार्ड इन मार्केटिंग’ से सम्मानित किया गया.

अनंत पोद्दार (Anant Poddar)

उत्कृष्टता के लिए सम्मानित

कृषि क्षेत्र में अपने योगदान के लिए पोद्दार फार्म्स को व्यापक रूप से सराहा गया है विशेष रूप से उन्हें “फार्म एन फूड कृषि अवार्ड्स 2024” में “बेस्ट फार्मर अवार्ड इन मार्केटिंग” का पुरस्कार मिला, जिस में उन की प्रसंस्करण, पैकेजिंग और ब्रांडिंग में नवाचारी रणनीतियों को सम्मानित किया गया.

इस वर्ष की शुरुआत में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने राज्यपाल भवन, लखनऊ में आयोजित उत्तर प्रदेश क्षेत्रीय फल, सब्जी और पुष्प प्रदर्शनी में पोद्दार फार्म्स को सम्मानित किया. इस के अतिरिक्त अनंत पोद्दार को उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री और उद्यान विभाग द्वारा बागबानी, खाद्य प्रसंस्करण और वैज्ञानिक खेती की तकनीकों के प्रति किसानों को शिक्षित करने के लिए कई बार सम्मानित किया गया है.

अनंत पोद्दार के पोद्दार फार्म्स ने उत्तर प्रदेश राज्य उद्यान विभाग का प्रतिनिधित्व करते हुए वर्ल्ड फूड इंडिया और उत्तर प्रदेश अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले जैसे प्रमुख राष्ट्रीय आयोजनों में भी हिस्सा लिया है, जहां उन्होंने नवाचार और स्थिरता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित की.

परंपरा और नवाचार का संगम: लकड़ी घानी तेल और जैविक हलदी

भारतीय आहार के आवश्यक तत्व, जैसे तेल और मसाले में भी सुधार की आवश्यकता है. कोई भी भारतीय भोजन इन के बिना अधूरा है. स्वास्थ्य और परंपरा के बीच संतुलन स्थापित करते हुए उन्होंने पारंपरिक लकड़ी घानी को पुनर्जीवित किया और दोगुनी पोषण क्षमता वाले लकड़ी घानी तेल का उत्पादन शुरू किया.

यह तेल न केवल पुरानी भारतीय संस्कृति को बताते हैं, बल्कि उपभोक्ताओं को सेहतमंद उत्पाद भी देते हैं. बाजार में हलदी में मिलावट की व्यापकता को देखते हुए पोद्दार फार्म्स ने नवाचार करने का निर्णय लिया. उन्होंने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के साथ मिल कर ‘केसरी’ नामक जैविक हलदी की खेती की. बाजार में लगभग एक साल के भीतर ‘केसरी’ अपनी शुद्धता और गुणवत्ता के कारण हलदीप्रेमियों की पसंदीदा हलदी बन चुकी है.