भेड़बकरी व खरगोशपालन की ली जानकारी

अविकानगरः केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में एसएस जैन सुबोध पीजी कालेज, रामबाग सर्किल, जयपुर के 42 स्नातकोत्तर एवं स्नातक के छात्रों का एकदिवसीय शैक्षणिक भ्रमण कार्यक्रम अपनी फैकल्टी के डा. अनुराग जैन एवं डा. अनुरूपा गुप्ता के साथ आयोजित किया गया. छात्रों ने भ्रमण के दौरान संस्थान के दुंबा भेड़पालन के साथ खरगोशपालन इकाई का दौरा किया और बायोटैक्नोलौजी लैब में जा कर वहां के वैज्ञानिको के साथ संस्थान मे चल रहे शोध कार्यों को जाना.

इस दौरान छात्रों नें जानकारी ली कि कैसे वे संस्थान की सहायता से अपने पीजी रिसर्च प्रोजैक्ट पर काम कर सकते हैं.

एटिक सैंटर के तकनीकी कर्मचारी पिल्लू मीना द्वारा छात्रों को संस्थान का एकदिवसीय भ्रमण के तहत विभिन्न जगह जैसे वूल प्लांट, सैक्टर्स, फिजिलौजी आदि का भी भ्रमण कराया गया.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने सभी छात्रों को संबोधित किया कि आने वाले समय में आप के द्वारा देश के विभिन्न क्षेत्र में जा कर नए शोध को कर के देश को रिसर्च मे नई ऊंचाई देनी है.

उन्होंने छात्रों से आगे कहा कि आप संस्थान से अपने विषय की प्रैक्टिकल जानकारी सीख कर जाएं कि कैसे आप अपने कालेज की तालीम से देशहित में योगदान दे सकते हैं. सुबोध कालेज की फैकल्टी डा. अनुरूपा गुप्ता द्वारा भी भविष्य मे संस्थान के साथ जुड़ कर छात्रों के शोध कार्य में अवसर के बारे मंे विस्तार से निदेशक के साथ डिस्कशन किया गया.

फसल को पाले से बचाएं

सर्दियों में पाले का असर पौधों पर सब से ज्यादा होता है. यही वजह है कि सर्दी में उगाई जाने वाली फसलों को आमतौर पर 80 फीसदी तक का नुकसान हो जाता है, इसलिए समय रहते फसलों का पाले से बचाव करना बेहद जरूरी हो जाता है.

सर्दियों में जब तापमान 0 डिगरी सैल्सियस से नीचे गिर जाता है और हवा रुक जाती है तो रात में पाला पड़ने की आशंका ज्यादा रहती है. वैसे, आमतौर पर पाला पड़ने का अनुमान वातावरण से लगाया जा सकता है.

सर्दियों में जिस रोज दोपहर से पहले ठंडी हवा चलती रहे, हवा का तापमान जमाव बिंदु से नीचे गिर जाए, दोपहर बाद अचानक ठंडी हवा चलनी बंद हो जाए और आसमान साफ रहे या उस दिन आधी रात से हवा रुक जाए तो पाला पड़ सकता है. रात को खासकर तीसरेचौथे पहर में पाला पड़ने की आशंका ज्यादा रहती है.

अध्ययनों से पता चला है कि साधारण तापमान चाहे कितना भी गिर जाए, लेकिन शीत लहर चलती रहे तो फसलों को कोई नुकसान नहीं होता है. पर अगर हवा चलना बंद हो जाए और आसमान साफ हो तो पाला जरूर पड़ेगा जो रबी सीजन की फसलों के लिए ज्यादा नुकसानदायक है.

खेतों में पाला पड़ने से होने वाले बुरे नतीजे जो इस तरह है :

* पौधे की पत्तियों और फूलों का झुलसना.

* पौधे की बंध्यता.

* फलियों और बालियों में दानों का बनना.

* बने हुए दानों के आकार में कमी.

* पराग कोष के विकास का ठहराव.

* प्लाज्मा झिल्ली की संरचना में यांत्रिक नुकसान.

* पौधों का मरना या गंभीर नुकसान.

* उपज और उत्पाद की क्वालिटी में कमी.

पाले से संरक्षण के कारगर उपाय

आमतौर पर पाले से नुकसान हुए पौधों का संरक्षण प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों माध्यमों से किया जा सकता है. जब अंकुरण की परिस्थिति हो तब सक्रिय विधियों का उपयोग पाले के अंकुरण की परिस्थिति पैदा होने से पहले किया जाता है जिस के लिए निष्क्रय व सक्रिय विधियों का उपयोग किया जा सकता है.

निष्क्रय विधियां

जगह का चुनना : पाले के प्रति संवेदनशील फसलें उगाने के लिए ऐसी जगह चुनी जानी चाहिए जो पाले के लिए जमाव मुक्त हो. बडे़ जलाशयों के पास की जगह आमतौर पर पाले से कम प्रभावित होती है, क्योंकि पानी के ऊपर की हवा जमीन के ऊपर की हवा की तुलना में तेजी से ठंडी होती है.

ठीक से लगे वायुरोधी पेड़ जलवायु को पौधों के अनुकूल बना देते हैं. इन के चलते फसल समय से पहले ही पक जाती है और पाले का जोखिम कम हो जाता है.

Winter Farmingफसल प्रबंधन : फसलों की ऐसी प्रजातियों और किस्मों को चुना जाना चाहिए जो कि पाले से पहले ही पक कर तैयार हो जाए. जैसे, जब संकर मक्का बोया जाता है तो वह पाला पड़ने से पहले ही पक कर तैयार हो जाता है.

मिट्टी प्रबंधन : मिट्टी की अवस्था फसल के ऊपरी और निचले भागों को पाले से बचाने के लिए एक उत्तरदायी कारक है. ढीली मिट्टी की सतह ताप के चालन में कमी करती है, इसलिए रात के समय ढीली मिट्टी की सतह का तापमान जमी हुई मिट्टी की अपेक्षा कम होता है.

यही वजह है कि  पाले से बचाव के लिए मिट्टी को जोतना नहीं चाहिए. जरूरत से ज्यादा गीली मिट्टी होने पर सूरज की ऊर्जा का अधिकतम भाग नमी वाष्पन में चला जाता है. ऐसी स्थिति में रात में फसल के लिए गरमी कम मिल पाती है.

दूसरी ओर जरूरत से ज्यादा सूखी मिट्टी भी ताप की कम चालक होती है. इस की वजह से ऊर्जा की कम मात्रा को ही संचित कर पाती है. ऐसी स्थिति में सर्दियों की फसलों को पाले का बुरा नतीजा भुगतना पड़ सकता है.

फसल बोआई और कटाई : पाला संवेदनशील फसलों को पाले की जमाव मुक्त अवधि में ही बोना चाहिए ताकि फसल को पाले से होने वाले नुकसान से बचाया जा सके. इस प्रक्रिया को अपनाने से फसल अपेक्षाकृत कम जोखिम अवधि के दौरान अपना जीवनकाल पूरा करती है.

सक्रिय विधियां

फसल के नीचे आवरण : इस विधि का प्रमुख मकसद सतह से ताप की क्षति को कम करना होता है. इस विधि में उपयोग किए जाने वाले आवरण कई तरह के हो सकते हैं. जैसे, भूसे का आवरण, प्लास्टिक का आवरण, काला सफेद चूर्ण का आवरण वगैरह.

* भूसे का आवरण रात में गरमी को जमीन से बाहर जाने से रोकता है, जिस की वजह से फसल के तापमान में कमी आ जाती है.

* पारदर्शी प्लास्टिक 85-95 फीसदी तक सूरज की विकिरणों को संचित कर उन्हें जमीन तक पहुंचा सकती है. उन्हें वापस वातावरण में जाने नहीं देती और इस तरह जमीन के तापमान में बढ़वार होती है. यह पाले से सुरक्षा के नजरिए से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. इस के उलट काली प्लास्टिक सूरज की विकिरणों को अवशोषित करती है. इस वजह से जमीन के कारण तापमान में बढ़ोतरी हो जाती है.

* काला चूर्ण सूरज की विकिरणों को दिन के समय अवशोषित करता है और रात में उत्सर्जित. नतीजतन, रात के समय जमीन के तापमान में बढ़ोतरी होती है जो पाले से पाले की सुरक्षा की नजर से बेहद महत्त्वपूर्ण है. इस के उलट सफेद चूर्ण सूरज की विकिरणों को परावर्तित कर देता है और उन्हें जमीन तक पहुंचने ही नहीं देता.

छिड़काव द्वारा सिंचाई

जब पाला पड़ने की आशंका हो तब खेत की सिंचाई करनी चाहिए क्योंकि नमी वाली जमीन में काफी देर तक गरमी सुरक्षित रहती है क्योंकि जब पानी बर्फ में जम जाता है तो प्रक्रिया में ऊर्जा का उत्सर्जन होता है जो 80 कैलोरी प्रति ग्राम के बराबर होता है. इस वजह से मिट्टी के तापमान में बढ़वार होती है.

इस तरह पर्याप्त नमी होने पर शीत लहर व पाले से नुकसान की आशंका कम रहती है. सर्दी में फसल की सिंचाई करने से 0.5-2.0 डिगरी सैल्सियस तक तापमान बढ़ाया जा सकता है.

पवन मशीन : पवन मशीन का उपयोग फसल की सतह पर उपस्थित ठंडी हवा को गरम हवा की परत में बदलने के लिए किया जाता है. यह विधि तभी कारगर हो सकती है, जब सतह के पास की हवा के मध्यम तापमान अंतर अधिक हो. इस विधि से 1-4 डिगरी सैल्सियस तक तापमान बढ़ाया जा सकता है.

गंधक का छिड़काव : जिन दिनों पाला पड़ने की आशंका हो, उन दिनों फसल पर 0.1 फीसदी गंधक के घोल का छिड़काव करना चाहिए. इस के लिए 1 लिटर गंधक के तेजाब को 1,000 लिटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर प्लास्टिक के स्प्रेयर से छिड़काव करना चाहिए.

इस छिड़काव का असर 2 हफ्ते तक रहता है. अगर इस अवधि के बाद भी शीत लहर व पाले की आशंका बनी रहे तो गंधक के तेजाब को 15 दिन के अंतर पर दोहराते रहें.

गेहूं, चना, सरसों, मटर जैसी फसलों को पाले से बचाने में गंधक के तेजाब का छिड़काव करने से न केवल पाले से बचाव होगा, बल्कि पौधों में लोह तत्त्व की जैविक व रासायनिक सक्रियता में बढ़ोतरी हो जाती है. यह पौधों में रोग रोधिता बढ़ाने और फसलों को जल्दी पकाने में भी मददगार होती है.

अगर हमें मौसम के पूर्वानुमान से न्यूनतम तापमान, हवा की गति, बादलों की स्थिति की जानकारी मिल जाए तो उचित समय पर फसलों में उपयुक्त प्रबंधन कर के हम फसल को पाले से होने वाले नुकसान से आसानी से बचा सकते हैं.

इस के अलावा हम उपयुक्त प्रबंधन द्वारा समयसमय पर फसल को अनुकूल वातावरण दे कर फसल की पैदावार और गुणवत्ता दोनों को बढ़ाने में कामयाब हो सकते हैं. इस तरह से समय पर पाले के बुरे असर से सर्दियों में फसलों को बचा कर किसानों की माली हालत को मजबूत बनाया जा सकता है.

पीएम किसान सम्मान निधि योजना में करोडों का घोटाला, ये हैं असली जिम्मेदार

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में पीएम किसान सम्मान निधि योजना में करोड़ों का फर्जीवाड़ा हुआ है. देश के एक राज्य के एक जिले में कुछ लोगों ने सरकार को 18 करोड़ की चपत लगा दी, अब सोचिए कि इस तरह के फर्जीवाड़े देशभर के लैवल पर कितने होते होंगे.

ऐसे मामलों में कुछ लोगों को पकड़ कर उन से रकम की उगाही कर ली जाती है, पर फिर लीपापोती कर के ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है. मुजफ्फरपुर के फर्जीवाड़े में 11,600 अपात्र लोगों ने इस कांड को अंजाम दिया. नोटिस मिलने के बाद अब तक सिर्फ 22 लाख रुपया ही वापस हुआ है.

दिक्कत यह है कि आम जनता और सरकारी लोगों में भ्रष्टाचार इस कदर जड़ें जमाए हुए है कि वे तिकड़म लगा कर ऐसी करतूतों को आसानी से अंजाम दे कर सरकारी पैसा डकार जाते हैं.

बिहार के ही जहानाबाद जिले के 1,321 फर्जी किसान पीएम किसान योजना का 1.87 करोड़ रुपया डकार गए थे.

आईटीआर दाखिल करने वाले किसान भी इस योजना का लाभ उठा रहे थे. इन के अलावा, पति के साथ पत्नी व बच्चे भी किसान बन कर योजना का लाभ ले रहे थे, जबकि नियम के मुताबिक किसान परिवार में एक घर से एक ही सदस्य को इस योजना का लाभ दिया जाना है.

यह फर्जीवाड़ा कैसे होता है, इस के लिए सतना का उदाहरण लें, तो वहां की सूची में उन भूमिहीन फर्जी किसानों की संख्या ज्यादा है, जिन्होंने स्वपंजीयन किया है, लेकिन स्वपंजीयन के बाद उन की पहचान को तहसीलदार ने सत्यापित किया है, इस के बाद उन के खातों में किसान सम्मान निधि की राशि मिलने लगी.

सवाल यह है कि इतना बड़ा घोटाला तहसीलदार, पटवारी की जानकारी या उन के शामिल हुए बिना संभव है क्या? सरकार फर्जी किसानों से तो पैसा वापस ले लेती है, पर अगर कोई सरकारी मुलाजिम इस कांड में फंसा हुआ है, तो उस पर क्या सख्त कार्यवाही की गई, इस पर गोलमोल जवाब दे देती है या फिर ऐसे भ्रष्टाचारी लोग कानून में खामियां देख कर घपला करते हैं कि जांच की आंच उन तक नहीं पहुंच पाती है, जबकि सजा के तो वे भी बराबर के हकदार हैं.

उन्नत खेती में कारगर होगी ड्रोन दीदी

नई दिल्ली: 30 नवंबर, 2023. विकसित भारत संकल्प यात्रा के अंतर्गत प्रधानमंत्री महिला किसान ड्रोन केंद्र का शुभारंभ किया गया. साथ ही एम्स, देवघर में ऐतिहासिक 10,000वें जन औषधि केंद्र का लोकार्पण किया एवं देश में जन औषधि केंद्रों की संख्या बढ़ा कर 25,000 करने का कार्यक्रम भी लौंच किया.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने स्वागत भाषण दिया. भारत सरकार के विकसित भारत संकल्प यात्रा के इस कार्यक्रम से देशभर में लाखों युवा, महिलाएं, किसानों सहित विभिन्न वर्गों के लोग जुड़े. विभिन्न स्थानों पर राज्यपाल, उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री, केंद्र व राज्यों के मंत्री, सांसदविधायक व अन्य जनप्रतिनिधि भी शामिल हुए.

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि विकसित भारत संकल्प यात्रा को 15 दिन पूरे हो रहे हैं, अब इस ने गति पकड़ ली है. लोगों के स्नेह व भागीदारी को देखते हुए इस का नाम ‘विकास रथ‘ से बदल कर ‘मोदी की गारंटी वाली गाड़ी‘ कर दिया गया. ‘मोदी की गारंटी गाड़ी‘ अब तक 12,000 से अधिक ग्राम पंचायतों तक पहुंच चुकी है, जहां लगभग 30 लाख नागरिक इस से जुड़ चुके हैं. उन्होंने इस में महिलाओं की भागीदारी की भी सराहना की.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह भी कहा कि विकसित भारत का संकल्प मोदी या किसी सरकार का नहीं है, यह सभी को विकास के पथ पर साथ ले कर चलने का संकल्प है. विकसित भारत संकल्प यात्रा का उद्देश्य सरकारी योजनाओं और लाभ को उन लोगों तक पहुंचाना है, जो पीछे रह गए हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि वह नमो एप पर विकास की बारीकी से निगरानी कर रहे हैं. उन्होंने युवाओं से मेरा भारत स्वयंसेवक के रूप में पंजीकरण करने व मेरा भारत अभियान में शामिल होने का भी आग्रह किया. साथ ही, उन्होंने कहा कि यह यात्रा विकसित भारत के लिए 4 जातियों पर आधारित है, ये हैं- नारी शक्ति, युवा शक्ति, किसान और गरीब परिवार. इन चारों जातियों की प्रगति होगी, जिस से भारत विकसित देश बनेगा.

सरकार गरीबों का जीवन स्तर सुधारने, गरीबी दूर करने, युवाओं के लिए रोजगारस्वरोजगार के अवसर पैदा करने, महिलाओं को सशक्त बनाने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए सतत काम कर रही है. स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए चल रहे अभियान को ड्रोन दीदी से मजबूती मिलेगी, आय के अतिरिक्त साधन उपलब्ध होंगे. इस से किसानों को बहुत कम कीमत पर ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीक मिल सकेगी, जिस से समय, दवा, उर्वरक की बचत होगी.

Narendra Modiमोदी की दवा की दुकान:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10,000वें जन औषधि केंद्र के उद्घाटन का जिक्र करते हुए कहा कि यह गरीबों और मध्यम तबके के लिए सस्ती दरों पर दवाएं खरीदने का केंद्र बन गया है. जन औषधि केंद्रों को अब ‘मोदी की दवा की दुकान‘ कहा जा रहा है. उन्होंने नागरिकों को उन के स्नेह के लिए धन्यवाद देते हुए बताया कि ऐसे केंद्रों पर तकरीबन 2,000 प्रकार की दवाएं 80 से 90 फीसदी छूट पर बेची जाती हैं.

उन्होंने खुशी जताई कि पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना को 5 साल के लिए बढ़ा दिया गया है. प्रधानमंत्री ने इस पूरे अभियान को शुरू करने में पूरी सरकारी मशीनरी व कर्मचारियों के महत्व पर प्रकाश डाला. साथ ही, ग्राम स्वराज अभियान की सफलता को भी याद किया, जो देश के लगभग 60,000 गांवों में 2 चरणों में चलाया गया था और 7 योजनाओं को लाभार्थियों तक पहुंचाया गया था.

योजनाओं को गरीबों तक पहुंचाने के लिए 3,000 वाहन रथ:

गाजियाबाद के एक कार्यक्रम में उपस्थित केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी की कल्पना है कि साल 2047 तक देश विकसित भारत के रूप में तबदील हो. यह एक बड़ा व व्यापक अभियान है. इस अभियान से देश का हर आदमी, सभी तबके के लोग जुड़ कर आगे बढ़ने का प्रयास करेंगे, तो आने वाले कल में हमारा देश वैश्विक मानचित्र में श्रेष्ठ भारत के रूप में स्थापित हो सकेगा.

विकसित भारत संकल्प यात्रा को संचालित करने के लिए तकरीबन 3,000 वाहन रथ के रूप में उपलब्ध कराए गए हैं, जो प्रतिदिन 6,000 गांवों में पहुंचेंगे. नवंबर में शुरू हुई यह यात्रा 26 जनवरी तक चलेगी.

गरीबों के जीवनस्तर में बदलाव लाने के लिए बनी योजनाएं आम जनता तक पहुंचे व पात्र लोगों को इन का लाभ मिले. प्रधानमंत्री ने विकास की दौड़ में पिछड़े जिलों का चयन कर आकांक्षी जिले नाम दिया, ताकि वे अन्य की बराबरी पर आ सकें.

महिलाओं को 15 हजार ड्रोन

आदिवासियों को न्याय व मौलिक सुविधाएं उन तक पहुंचाने के लिए योजनाएं शुरू कीं. महिलाओं को 15,000 ड्रोन उपलब्ध कराएंगे. इन ड्रोन दीदी के माध्यम से महिलाओं का सशक्तीकरण होगा, वे आत्मनिर्भर बनेंगी, रोजगार सृजन से उन की आजीविका बेहतर होगी. साथ ही, खेती में ड्रोन का उपयोग बढ़ने से खेती भी उन्नत होगी.

कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि देशभर में तकरीबन 90 लाख स्वयं सहायता समूहों से लगभग 10 करोड़ बहनें जुड़ी हुई हैं, जो न सिर्फ अपने जीवन में बदलाव ला रही हैं, बल्कि समाज सेवा और गांवों के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं.

उन की क्षमता बढ़ाने व आजीविका बेहतर करने के लिए ड्रोन दीदी कार्यक्रम की कल्पना अद्भुत है. यूरिया, डीएपी व पेस्टीसाइड का जब खेतों में छिड़काव होता है, तो शरीर पर भी इस का बुरा प्रभाव पड़ता है. साथ ही, कहीं ज्यादा तो कहीं कम छिड़काव जैसा असंतुलन भी बना रहता है, लेकिन जब ड्रोन का उपयोग बढ़ जाएगा तो शरीर पर दुष्प्रभाव कम होगा और उर्वरक की खपत भी कम होगी. विकल्प के रूप में नैनो यूरिया, नैनो डीएपी का उपयोग भी बढ़ेगा.

करोड़ों लोगों तक पहुंची अनेक योजनाएं

केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में किसान सम्मान निधि के माध्यम से 2.80 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा राशि 15 किस्तों में देश के तकरीबन 11 करोड़ किसानों के खातों में दी जा चुकी हैं. उज्जवला योजना के माध्यम से 9 करोड़ से अधिक बहनों को मुफ्त में रसोई गैस सिलेंडर देने का काम हुआ है. पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना के माध्यम से देश के 80 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त खाद्यान्न देने का काम किया जा रहा है, जो दुनिया का सब से बड़ा कार्यक्रम है.

खेती में काम आने वाली खास मशीनें

फसल की कटाई का ज्यादातर काम हंसिए से किया जाता है. एक हेक्टेयर फसल की एक दिन में कटाई के लिए 20-25 मजदूरों की जरूरत पड़ती है. फसल पकने के बाद के कामों में लगने वाले कुल मजदूरों का 65-75 फीसदी, फसलों की कटाई और बाकी उन्हें इकट्ठा करने, बंडल बनाने, ट्रांसपोर्ट व स्टोर वगैरह में खर्च होता है. इन सभी कामों को पूरा करने में फसल को कई तरह के नुकसान भी होते हैं.

अगर फसल की कटाई समय पर न की जाए तो नुकसान और भी बढ़ सकता है. कटाई से जुड़ी मशीनों के इस्तेमाल से मजदूरों की कमी को पूरा किया जा सकता है और इस से होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है. फसल कटाई की एक खास मशीन वर्टिकल कनवेयर रीपर है.

फसल कटाई यंत्र रीपर

फसलों की कटाई करने के लिए वर्टिकल कनवेयर रीपर बहुत ही कारगर मशीन है. इस के द्वारा कम समय में ज्यादा फसल कम खर्च पर काटी जा सकती है. मजदूरों की बढ़ती परेशानी के चलते यह वर्टिकल कनवेयर रीपर और भी कारगर साबित हो रहा है.

ट्रैक्टर से चलने वाले इस रीपर की अपनी कुछ खासीयतों के चलते यह दूसरी कटाई मशीनों से अलग है.

इस मशीन से फसलों की बाली मशीन के संपर्क में नहीं आती. इस से फसल के टूटने से होने वाला नुकसान कम होता है. यह रीपर कटाई के बाद फसलों को एक दिशा में लाइन में रखता है, जिस से फसलों को इकट्ठा करना व बंडल बनाना आसान हो जाता है.

इस मशीन को ट्रैक्टर के द्वारा जरूरत के मुताबिक ऊपरनीचे किया जा सकता है. खड़ी फसल को एक सीध में पंक्ति बना कर रखा  जाता है और स्टार ह्वील फसलों को कटरबार की तरफ ढकेलता है. उस के बाद कटरबार खड़ी फसल की कटाई कर देता है.

रीपर का इस्तेमाल उन्हीं फसलों की कटाई के लिए किया जाता है, जिन के बीच में कोई दूसरी फसल न बोई गई हो. कटाई के बाद बैल्ट कनवेयर की मदद से कटी फसल को मशीन की दाहिनी दिशा में ले जाया जाता है. उसे लाइन से मशीन की दिशा में जमीन पर रखता जाता है.

आमतौर पर एक हेक्टेयर गेहूं की फसल की एक घंटे की कटाई व मढ़ाई के लिए 48 मजदूरों की जरूरत होती है, जबकि वर्टिकल कनवेयर रीपर द्वारा इस काम के लिए 3-4 मजदूरों की ही जरूरत होती है. इस के इस्तेमाल से किसान फसलों से भूसा भी हासिल कर सकते हैं, जबकि कंबाइन से कटाई के बाद भूसा नहीं मिलता है. किसान इसे अपना कर समय, पैसा और ऊर्जा की बचत कर सकते हैं.

Reaperरीपर का रखरखाव

अगर रीपर चलाने में परेशानी हो तो रीपर के कटरबार पर लंबाई के मुताबिक वजन कम होना चाहिए. छुरी पैनी न हो, तो उन्हें पैना करवाना चाहिए या बदल कर नया लगाना चाहिए. अगर रीपर से कटाई एकजैसी नहीं हो रही हो तो यह देखना चाहिए कि लेजर प्लेट कहीं से टूटी तो नहीं है. और अगर ऐसा है तो प्लेट बदल देनी चाहिए. मशीन को चलाते समय सभी नटबोल्ट अच्छी तरह से कसे होने चाहिए व दोनों कनवेयर बैल्ट और स्टार ह्वील आसानी के साथ बिना रुकावट के चलना चाहिए.

मशीन के सभी घूमने वाले भागों में अच्छी तरह से ग्रीस या तेल डालते रहना चाहिए. छुरों के धार को समयसमय पर तेज करते रहना चाहिए. खेत में काम पूरा करने के बाद कटरबार की सफाई करना बहुत जरूरी होता है. मशीन के काम करते समय इस के नजदीक किसी भी इनसान को नहीं होना चाहिए, वरना दुर्घटना घट सकती है.

कल्टीवेटर

कल्टीवेटर खेती की बहुत ही कारगर मशीन है. नर्सरी की तैयारी के बाद या खेत में फसल बोने से ले कर कटाई के समय तक के सभी काम जल्दी और आसानी से कल्टीवेटर करता है.

कल्टीवेटर का इस्तेमाल लाइन में बोई गई फसलों के लिए ही होता है. यह निराई करने की खास मशीन है. पावर के आधार पर कल्टीवेटर हाथ से चलाने वाला, पशु चलित व ट्रैक्टर  से चलने वाले होते हैं.

बनावट के आधार पर खुरपादार, तवेदार और सतही कल्टीवेटर इस्तेमाल में लाए जाते हैं.

ट्रैक्टर से चलने वाले कल्टीवेटर कमानीदार, डिस्क व खूंटीदार होते हैं. इस की लंबाई व चौड़ाई घटाईबढ़ाई जा सकती है. इस मशीन में एक लोहे के फ्रेम में छोटेछोटे नुकीले खुरपे लगे होते हैं, जो कि निराई का काम करते हैं. निराई के अलावा कल्टीवेटर जुताई व बोआई के लिए तभी किया जाता है, जब खेत अच्छी तरह जुता हुआ हो. कल्टीवेटर से निराई का काम करने के लिए फसलों को लाइन में बोना जरूरी होता है.

लाइनों की चौड़ाई के मुताबिक कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा किया जा सकता है. कल्टीवेटर से काम करने के लिए 2 आदमियों की जरूरत पड़ती है, फिर भी इस के इस्तेमाल से समय, पैसा व मजदूरी की बचत होती है.

Cultivatorकल्टीवेटर का काम

खेत में छिटकवां विधि से बीज बोने के बाद कल्टीवेटर से हलकी जुताई कर दी जाती है, जिस से बीज कम समय में मिट्टी में मिल जाते हैं. जो फसल लाइनों में तय दूरी पर बोई जाती है, उन की निराईगुड़ाई करने के लिए कल्टीवेटर बड़े काम का है.

गन्ना, कपास, मक्का वगैरह की निराईगुड़ाई कल्टीवेटर के खुरपों की दूरी को कम या ज्यादा कर के या 1-2 खुरपों को निकाल कर की जाती है.

जुते हुए खेतों में कल्टीवेटर का इस्तेमाल करने से खेत की घास खत्म होती है. मिट्टी भुरभुरी हो जाती है व मिट्टी में नीचे दबे हुए ढेले ऊपर आ कर टूट जाते हैं.

कल्टीवेटर पर बीज बोने का इंतजाम कर के गेहूं जैसी फसलों को लाइन में बोया जा सकता है. इस में 3 या 5 कूंड़े एकसाथ बोए जाते हैं और देशी हल के मुकाबले कई गुना ज्यादा काम होता है.

खेत में गोबर या कंपोस्ट वगैरह खाद बिखेर कर कल्टीवेटर की मदद से उसे मिट्टी में अच्छी तरह से मिलाया जा सकता है.

मेंड़ों पर मिट्टी चढ़ाने के लिए कल्टीवेटर की बाहर की 2 शावल निकाल कर उन की जगह पर हिलर्स यानी रिजर के फाल का आधा भाग लगा दिए जाते हैं.

शावल अलग कर के हिलर जोड़ने से कल्टीवेटर पीछे की ओर एक मेंड़ बनाता हुआ चलता है. मेंड़ की मोटाई कल्टीवेटर की चौड़ाई घटानेबढ़ाने से कम या ज्यादा की जा सकती है. आलू व शकरकंद जैसी फसलों की मेंड़ इस की मदद से बनाई जा सकती है.

फसल बोने के बाद ही बारिश हो जाती है तो 3 से 5 सैंटीमीटर की गहराई तक कल्टीवेटर की मदद से पपड़ी तोड़ी जा सकती है.

इस्तेमाल का तरीका

कल्टीवेटर टाइनों के बीच की दूरी छेदों पर टाइन कैरियर की बोल्ट को कस कर हासिल की जाती है. ये छेद मुख्य फ्रेम में एक इंच के अंतर पर होते हैं. हर टाइन में एक बदलने के लिए खुरपा लगा होता है, जो टाइन में 2 बोल्ट से कसा होता है. जब खुरपा बिलकुल घिस जाए, तो खुरपे को पलट दें या नया लगाना चाहिए.

कल्टीवेटर का रखरखाव

कल्टीवेटर के सभी नटबोल्टों की जांच करते रहना चाहिए, जिस से वे हमेशा कसे रहें. रोज काम खत्म करने के बाद मशीन की सतहों पर ग्रीस लगाना चाहिए, जिस से कल्टीवेटर में जंग न लगने पाए. जो पार्ट काम के दौरान घिस  गए हैं या खराब हो गए हैं, उन को बदल देना चाहिए. पार्ट हमेशा भरोसेमंद कंपनी व दुकानदार से जांचपरख के बाद ही लेना चाहिए.

इस्तेमाल के दौरान एहतियात

बोआई करते समय फालों के बीच एक तय दूरी होनी चाहिए और फालों की गहराई भी बराबर होनी चाहिए. बीज बोने वाला इनसान होशियार होना चाहिए. खेत की तैयारी करते समय लाइनों के बीच की दूरी इतनी ज्यादा नहीं होनी चाहिए कि खेत बिना जुता हुआ रहे.

खाद डालते समय यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि खाद सूखी व भुरभुरी है या नहीं. अगर भुरभुरी न हो तो उसे सुखा लेना चाहिए. खाद डालने के लिए मशीन में लगने वाले भाग में प्लास्टिक का इस्तेमाल करना चाहिए. मशीन में निराईगुड़ाई करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि लाइनों में बोए हुए पौधे खराब न हों.

थ्रेशर यंत्र और उसकी देखभाल

अकसर देखा गया है कि गेहूं की दौनी करने के बाद थ्रेशर को खुली जगह पर रख देते हैं. थ्रेशर को भी देखभाल की जरूरत होती है. इस से थ्रेशर के काम करने की उम्र बढ़ जाती है. फसल की दौनी हो जाने के बाद किसानों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए :

*           जब थ्रेशर का काम पूरी तरह से खत्म हो जाए, तो उसे 10-15 मिनट तक खाली चलाना चाहिए, ताकि उस में बचीखुची बालियां या भूसा बाहर निकल जाए. थ्रेशर को बंद करने के बाद उस की कपड़े वगैरह से भी सफाई कर दें.

*           थ्रेशर से ट्रैक्टर, मोटर, इंजन वगैरह को अलग कर देना चाहिए.

*           सभी बैल्ट को निकाल कर उन्हें साफ कर महफूज रखें. थ्रेशर को अच्छी तरह से साफ पानी से धोएं और उसे धूप में सुखा लें.

*           जहांजहां जरूरत हो, वहां रंगाई करें या ग्रीस की पतली परत थ्रेशर पर चढ़ा दें. ग्रीस की जगह काम में लाया हुआ इंजन का तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस से थ्रेशर में जंग कम लगती है.

*           ग्रीस कप व बेयरिंग को डीजल या केरोसीन से धो कर साफ करें और उन में नया ग्रीस और तेल डालें.

*           थ्रेशर को ऐसी जगह रखें, जहां धूप और बारिश से उस का बचाव हो सके. थ्रेशर के पायदानों को लकड़ी के टुकड़े या ईंट के ऊपर रखें.

*           थ्रेशर का इस्तेमाल साल में कुछ समय के लिए ही होता है. 8-10 महीने तक यह बिलकुल भी काम में नहीं आता, इसलिए यह जरूरी है कि इस की देखभाल ठीक से की जाए, ताकि समय आने पर किसान जल्द से जल्द इस का इस्तेमाल कर पाएं.

गाजरघास की बनाएं खाद

गाजरघास, जिसे कांग्रेस घास, चटक चांदनी, कड़वी घास वगैरह नामों से भी जाना जाता है, न केवल किसानों के लिए, बल्कि इनसानों, पशुओं, आबोहवा व जैव विविधता के लिए एक बड़ा खतरा बनती जा रही है. इस को वैज्ञानिक भाषा में पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस कहते हैं.

ज्यादा फसल लेने के चक्कर में कैमिकल खादों का ज्यादा इस्तेमाल करने से इनसान की सेहत व आबोहवा पर होने वाला असर किसी से छिपा नहीं है. उस से मिट्टी की उर्वरा कूवत में भी लगातार गिरावट आती जा रही है. कैमिकल खादों का आबोहवा व इनसान पर होने वाला असर देखते हुए जैविक खादों का महत्त्व बढ़ रहा है. ऐसे में गाजरघास से जैविक खाद बना कर हम आबोहवा को महफूज करते हुए इसे आमदनी का जरीया भी बना सकते हैं, लेकिन किसान ऐसा करने से डरते हैं.

क्यों डरते हैं किसान? : सर्वे में पाया गया है कि किसान गाजरघास से कंपोस्ट खाद बनाने में इसलिए डरते हैं कि अगर गाजरघास कंपोस्ट का इस्तेमाल करेंगे तो खेतों में और ज्यादा गाजरघास हो जाएगी.

दरअसल हुआ यह कि कुछ किसानों से जब गाजरघास से अवैज्ञानिक तरीके से कंपोस्ट खाद बना कर इस्तेमाल की गई, तो उन के खेतों में ज्यादा गाजरघास हो गई. इस में हुआ यह कि इन किसानों ने फूलों सहित गाजरघास से नाडेप तकनीक द्वारा कंपोस्ट खाद बना कर इस्तेमाल की. इस से उन के खेतों में ज्यादा गाजरघास हो गई.

इस के अलावा उन गांवों में, जहां गोबर से खाद खुले हुए टांकों यानी गड्ढों में बनाते हैं, जब फूलों सहित गाजरघास को खुले गड्ढों में गोबर के साथ डाला गया तो भी इस खाद का इस्तेमाल करने पर खेतों में ज्यादा गाजरघास हो गई.

कृषि वैज्ञानिकों ने अपने तजरबों में पाया कि नाडेप तकनीक द्वारा खुले गड्ढों में फूलों सहित गाजरघास से खाद बनाने पर इस के छोटे बीज खत्म नहीं हो पाते हैं. एक तजरबे में नाडेप तकनीक द्वारा गाजरघास से बनी हुई केवल 300 ग्राम खाद में ही 350-500 गाजरघास के पौधे अंकुरित होते हुए पाए गए. यही वजह है कि किसान गाजर घास से कंपोस्ट बनाने में डरते हैं. पर, अगर वैज्ञानिक तकनीक से गाजरघास से कंपोस्ट बनाई जाए तो यह एक महफूज कंपोस्ट खाद है.

खाद बनाने का तरीका : वैज्ञानिकों द्वारा हमेशा यही सलाह दी जाती है कि कंपोस्ट बनाने के लिए गाजरघास को फूल आने से पहले उखाड़ लेना चाहिए. बिना फूल वाली गाजरघास का कंपोस्ट खाद बनाने में इस्तेमाल बिना किसी डर के नाडेप तकनीक या खुला गड्ढा तकनीक द्वारा किया जा सकता है.

गाजरघास के सर्दीगरमी के प्रति असंवेदनशील बीजों में सुषुप्तावस्था न होने की वजह से एक ही समय में फूल वाले और बिना फूल के गाजरघास के पौधे खेतों में पैदा होते हैं.

निराईगुड़ाई करते समय फूल वाले पौधों को उखाड़ना भी जरूरी हो जाता है. फिर भी किसानों को गाजरघास को कंपोस्ट बनाने में इस्तेमाल करने के लिए यह कोशिश करनी चाहिए कि वे उसे ऐसे समय उखाड़ें, जब फूलों की मात्रा कम हो. जितनी छोटी अवस्था में गाजरघास को उखाड़ेंगे, उतनी ही ज्यादा अच्छी कंपोस्ट खाद बनेगी और उतनी ही फसल की उत्पादकता बढ़ेगी.

Compostऐसे बनाएं खाद : अपने खेत में थोड़ी ऊंचाई वाली जगह पर, जहां पानी जमा न हो,  3×6×10 फुट (गहराई × चौड़ाई × लंबाई) आकार का गड्ढा बना लें. अपनी सहूलियत और खेत में गाजरघास की मात्रा के मुताबिक लंबाईचौड़ाई कम कर सकते हैं, लेकिन गहराई 3 फुट से कम नहीं होनी पाएंगे.

*           अगर मुमकिन हो सके तो गड्ढे की सतह और साइड की दीवारों पर पत्थर की चीपें इस तरह लगाएं कि कच्ची जमीन का गड्ढा एक पक्का टांका बन जाए. इस का फायदा यह होगा कि कंपोस्ट के पोषक तत्त्व गड्ढे की जमीन नहीं सोख पाएगी.

*           अगर चीपों का इंतजाम न हो पाए, तो गड्ढे के फर्श और दीवार की सतह को मुगदर से अच्छी तरह पीट कर समतल कर लें.

*           खेतों की फसलों के बीच से, मेंड़ों और आसपास की जगहों से गाजरघास को जड़ के साथ उखाड़ कर गड्ढे के पास इकट्ठा कर लें.

*           गड्ढे के पास ही 75 से 100 किलोग्राम कच्चा गोबर, 5-10 किलोग्राम यूरिया या रौक फास्फेट की बोरी, 1 या 2 क्विंटल भुरभुरी मिट्टी और एक पानी के ड्रम का इंतजाम कर लें.

*           तकरीबन 50 किलोग्राम गाजरघास को गड्ढे की पूरी लंबाईचौड़ाई में सतह पर फैला लें.

*           5-7 किलोग्राम गोबर को 20 लिटर पानी में घोल बना कर उस का गाजरघास की परत पर छिड़काव करें.

*           इस के ऊपर 500 ग्राम यूरिया या 3 किलोग्राम रौक फास्फेट का छिड़काव करें.

*           ट्राइकोडर्मा विरिडि या ट्राइकोडर्मा हार्जीनिया नामक कवक के कल्चर पाउडर को 50 ग्राम प्रति परत के हिसाब से डाल दें. इस कवक कल्चर को डालने से गाजरघास के बड़े पौधों का अपघटन भी तेजी से हो जाता है और कंपोस्ट जल्दी बनती है.

*           इन सब मिलाए हुए अवयवों को एक परत या लेयर मान लें.

*           इसी तरह एक परत के ऊपर दूसरी, तीसरी और अन्य परत तब तक बनाते जाएं, जब तक गड्ढा ऊपरी सतह से एक फुट ऊपर तक न भर जाए. ऊपरी सतह की परत इस तरह दबाएं कि सतह गुंबद के आकार की हो जाए. परत जमाते समय गाजरघास को अच्छी तरह दबाते रहना चाहिए.

*           यहां पर गाजरघास को जड़ से उखाड़ कर परत बनाने को कहा गया है. जड़ से उखाड़ते समय जड़ों के साथ ही काफी मिट्टी आ जाती है. अगर आप महसूस करते हैं कि जड़ों में मिट्टी ज्यादा है, तो 10-12 किलोग्राम भुरभुरी मिट्टी प्रति परत की दर से डालनी चाहिए.

*           अब इस तरह भरे गड्ढे को गोबर, मिट्टी, भूसा वगैरह के मिश्रण से अच्छी तरह बंद कर दें. 5-6 महीने बाद गड्ढा खोलने पर अच्छी खाद हासिल होती है.

*           यहां बताए गए गड्ढे में 37 से 42 क्विंटल ताजा उखाड़ी गाजरघास आ जाती है, जिस से 37 से 45 फीसदी तक कंपोस्ट हासिल हो जाती है.

कंपोस्ट की छनाई : 5-6 महीने बाद भी गड्ढे से कंपोस्ट निकालने पर आप को महसूस हो सकता है कि बड़े व मोटे तनों वाली गाजरघास अच्छी तरह से गली नहीं है, पर वास्तव में वह गल चुकी होती है. इस कंपोस्ट को गड्ढे से बाहर निकाल कर छायादार जगह में फैला कर सुखा लें.

हवा लगते ही नम व गीली कंपोस्ट जल्दी सूखने लगती है. थोड़ा सूख जाने पर इस का ढेर बना लें. अगर अभी भी गाजरघास के रेशे वाले तने मिलते हैं, तो इस के ढेर को लाठी या मुगदर से पीट दें. जिन किसानों के पास बैल या ट्रैक्टर हैं, वे उन्हें इस के ढेर पर थोड़ी देर चला दें. ऐसा करने पर घास के मोटे रेशे व तने टूट कर बारीक हो जाएंगे, जिस से और ज्यादा कंपोस्ट हासिल होगी.

इस कंपोस्ट को 2-2 सैंटीमीटर छेद वाली जाली से छान लेना चाहिए. जाली के ऊपर बचे ठूंठों के कचरे को अलग कर देना चाहिए. खुद के इस्तेमाल के लिए बनाए कंपोस्ट को बिना छाने भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह हासिल हुई कंपोस्ट को छाया में सुखा कर प्लास्टिक, जूट के बड़े या छोटे थैलों में भर कर पैकिंग कर दें.

पोषक तत्त्व : कृषि वैज्ञानिकों ने अपने तजरबों में यह पाया है कि गाजरघास से बनी कंपोस्ट में पोषक तत्त्वों की मात्रा गोबर खाद से दोगुनी और केंचुआ खाद के बराबर होती है. इसलिए गाजरघास से कंपोस्ट बनाना उन का एक अच्छा विकल्प है.

इन बातों पर दें खास ध्यान

*           गड्ढा छायादार, ऊंची और खुली हवा वाली जगह में, जहां पानी का भी इंतजाम हो, बनाएं.

*           गाजरघास को हर हाल में फूल आने से पहले ही उखाड़ना चाहिए. उस समय पत्तियां ज्यादा होती हैं और तने कम रेशे वाले होते हैं. खाद का उत्पादन ज्यादा होता है और खाद जल्दी बन जाती है.

*           गड्ढे को अच्छी तरह से मिट्टी, गोबर व भूसे के मिश्रण के लेप से बंद करें. अच्छी तरह बंद न होने पर ऊपरी परतों में गाजरघास के बीज मर नहीं पाएंगे.

*           एक महीने बाद जरूरत के मुताबिक गड्ढे पर पानी का छिड़काव करते रहें. ज्यादा सूखा महसूस होने पर ऊपरी परत पर सब्बल वगैरह की मदद से छेद कर पानी अंदर भी डाल दें. पानी डालने के बाद छेदों को बंद कर देना चाहिए.

उदयपुर में बनेगी ड्रोन लेब

उदयपुर: 28 नवंबर, 2023. ’’कृषि क्षेत्र में भविष्य की संभावनाएं व चुनौतियां’’ विषय पर कृषि वैज्ञानिकों ने गहन विचारविमर्श किया. साथ ही, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय एवं धानुका एग्रीटैक लिमिटेड के बीच समझौता ज्ञापन यानी एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए. आगामी 5 साल के लिए हुए इस करार के तहत कृषि शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार गतिविधियों के साथ कृषि में नवाचार व रोजगारोन्मुखी बनाने पर जोर दिया जाएगा. समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर धानुका ग्रुप के अध्यक्ष आरजी अग्रवाल एवं कुलपति, एमपीयूएटी, डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने हस्ताक्षर किए.

एमओयू का प्रमुख मकसद शिक्षाविदों, एमएससी में उत्कृष्टता के लिए बीएससी (कृषि) के दौरान एमपीयूएटी के छात्रों को फैलोशिप प्रदान करना है. साथ ही, पीएचडी, अनुसंधान और विकास गतिविधियों को प्रोन्नत करने के लिए फसलों में कीटनाशकों के छिड़काव और क्षेत्र के अध्ययन में ड्रोन के उपयोग के विभिन्न विकल्पों का पता लगाया जाएगा.

एमओयू के मुताबिक, धानुका द्वारा प्रायोजित ड्रोन अनुप्रयोगों के माध्यम से जैव प्रभावकारिता और फाइटोटौक्सिीसिटी परीक्षणों का संचालन का जिम्मा एमपीयूएटी का रहेगा. परीक्षणों में धानुका विशेषज्ञों की भागीदारी भी सुनिश्चित रहेगी.

खास बात यह भी है कि ड्रोन लैब की स्थापना के लिए मप्रकृप्रौविवि स्थान और विशेषज्ञता धानुका को उपलब्ध कराएगा. कृषि रसायनों के डिजाइन विकास और प्रभावी उपयोग पर अनुसंधान किया जाएगा. इस के अलावा सहयोगात्मक शोध के परिणाम वाले शोधपत्रों को संयुक्त व समान अधिकार प्राप्त होंगे, ताकि शोध पत्रिकाओं में प्रकाशन कर के ज्यादा से ज्यादा लोगों को लाभ मिल सके.

समझौते के अनुसार, विश्वविद्यालय के अधीन कृषि विज्ञान केंद्रों के जरीए किसानों के खेतों पर प्रदर्शन के अनुकूल परीक्षण आयोजित किए जाएंगे, जहां प्रगतिशील किसानों का दौरा भी कराया जाएगा.

समझौते के तहत धानुका बिना किसी शुल्क के कृषि छात्रों को उत्पाद प्रबंधन प्रशिक्षण और प्रमाणन देेगा. फसल सुरक्षा उत्पादों के सुरक्षित उपयोग के लिए छात्रों को व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण बांटे जाएंगे. इस के अलावा विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित किसान मेला, संगोष्ठी, सम्मेलन को प्रायोजित करेगा. प्लेसमेंट उद्देश्य से कैंपस साक्षात्कार में धानुका भाग लेगा, ताकि उच्च शिक्षित छात्रों को रोजगार मिल सके. नई प्रौद्योगिकियों के साथ परियोजनाएं शुरू करने पर भी विचार किया जाएगा.

उल्लेखनीय है कि धानुका एग्रीटैक लिमिटेड की स्थापना 13 फरवरी, 1985 को हुई. कंपनी तरल, धूल, पाउडर और कणिकाओं में जड़ीबूटियों, कीटनाशकों, कवकनाशी और पौधों के विकास नियामकों जैसे कृषि रसायनों की एक विस्तृत श्रंृखला के निर्माण और व्यापार में संलग्न है. गुजरात के साणंद, राजस्थान के केशवाना और जम्मूकश्मीर के ऊधमपुर में कंपनी की औद्योगिक इकाइयां हैं. स्थानीय नौजवानों, सामुदायिक विकास के मद्देनजर धानुका शिक्षा प्रदान करने हेतु प्रशिक्षण और रोजगार प्रदान करने के लिए सदैव प्रयासरत है.

बीज उत्पादन के लिए राजस्थान की भूमि सर्वोतम:

संस्थागत विकास योजना व राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना के सौजन्य से आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि उद्योगपति एवं धानुका एग्रीटैक लिमिटेड के अध्यक्ष आरजी अग्रवाल ने कहा कि वे स्वयं राजस्थान के हैं और ऐसे में राज्य के कृषि छात्रों के भविष्य एवं किसानों की खुशहाली के लिए हर संभव मदद को तत्पर रहेंगे. 80 के दशक में उर्वरक एवं कृषि रसायन के क्षेत्र में कदम रखने वाली धानुका एग्रीटैक कंपनी कृषि के माध्यम से भारत को अग्रणी देशों में देखने को न केवल आतुर है, बल्कि निरंतर प्रयासरत है.

महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय सभागार में आयोजित कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि व पूर्व निदेशक भारतीय बाजरा अनुसंधान संस्थान व मेज (मक्का) मैन के नाम से प्रख्यात वैज्ञानिक डा. साईं दास ने कहा कि राजस्थान की माटी, जलवायु हर प्रकार के बीज उत्पादन के लिए मुफीद है. दक्षिणी राजस्थान में सिंगल क्रास हाईब्रिड मक्का की खेती डा. साईं दास की ही देन है.

विश्वविद्यालय के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि डा. साईं दास ने बदलते जलवायु परिदृश्य में मक्का किस्म का परिचय कराया. साथ ही, विश्वविद्यालय की विभिन्न उपलब्धियां गिनाईं.

उन्होंने  कृषि विज्ञान केंद्रों को मंदिर की संज्ञा देते हुए कहा कि केवीके इतने सुदृढ़ होने चाहिए कि किसानों की हर जरूरत की भरपाई वहां हो सके और विगत एक वर्ष में इस के लिए विशेष प्रयास हुए हैं, जो सराहनीय है.

कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक, भूरालाल पाटीदार ने बताया कि दक्षिणी राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा कृषि जोन-चतुर्थ ए एवं बी में आता है. यहां की प्रमुख खरीफ फसल मक्का है. कृषि विज्ञानी डा. साईं दास ने बांसवाड़ा एवं डूंगरपुर में सीड रिप्लेसमेंट की दिशा में बेहतर काम किया है. इस के लिये उन्हें सदैव याद किया जाएगा.

भूरालाल पाटीदार ने आगे कहा कि दक्षिणी राजस्थान में मक्का प्रोसैसिंग यूनिट की सख्त आवश्यकता है, ताकि इलाके के किसानों को मक्का उत्पादन का समुचित प्रतिफल मिल सके.

दिसंबर महीने के जरूरी काम

अब तक उत्तर भारत में सर्दियां हद पर होती हैं. वहां के खेतों में गेहूं उगा दिए गए होते हैं. अगर गेहूं की बोआई किए हुए 20-25 दिन हो गए हैं, तो पहली सिंचाई कर दें.

फसल के साथ उगे खरपतवारों को खत्म करें. चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को काबू में करने के लिए 2-4 डी सोडियम साल्ट और गेहूंसा खरपतवार को रोकने के लिए आईसोप्रोट्यूरोन खरपतवारनाशी का इस्तेमाल करें. इन कैमिकलों का बोआई के 30-35 दिन बाद इस्तेमाल करें.

अगर गेहूं की बोआई नहीं की गई है, तो बोआई का काम 15 दिसंबर तक पूरा कर लें.  इस समय बोआई के लिए पछेती किस्मों का चुनाव करें. बीज की मात्रा 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें. साथ ही, कूंड़ों के बीच का फासला कम करें यानी 15-18 सैंटीमीटर तक रखें.

* इस महीने में गन्ने की सभी किस्में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. अपनी सुविधानुसार कटाई करें. शरदकालीन गन्ने में पिछले महीने सिंचाई नहीं की है, तो सिंचाई करें. गन्ने के साथ दूसरी फसलें यानी तोरिया, राई वगैरह की बोआई की गई है, तो निराईगुड़ाई करने से गन्ने की फसल के साथसाथ इन फसलों को भी बहुत फायदा पहुंचता है.

* वसंतकालीन गन्ने की बोआई के लिए खाली खेतों की अच्छी तरह तैयारी करें. अच्छी तरह सड़ी गोबर की खाद, कंपोस्ट खाद, केंचुआ खाद वगैरह जरूरत के मुताबिक इस्तेमाल करें.

दीमक का प्रकोप खेतों में है, तो दीमक के घरों को ढूंढ़ कर खत्म करें. साथ ही, पड़ोसी किसानों को भी ऐसा करने की सलाह दें.

* जौ की बोआई अगर अभी तक नहीं की है, तो फौरन बोआई करें. एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए 100-110 किलोग्राम बीज डालें. पिछले महीने बोई गई फसल 30-35 दिन की हो गई है, तो सिंचाई करें. खरपतवार की रोकथाम करें.

* सरसों की फसल में जरूरत से ज्यादा पौधे हों, तो उन्हें उखाड़ कर चारे के तौर पर इस्तेमाल करें. खरपतवार की रोकथाम करें. कीटबीमारी का हमला दिखाई दे, तो फौरन कारगर दवाओं का इस्तेमाल करें.

Farming* मटर की समय पर बोई गई फसल में फूल आने से पहले हलकी सिंचाई करें. मटर में तना छेदक कीट की रोकथाम के लिए डाईमिथोएट 30 ईसी दवा की एक लिटर मात्रा व फली छेदक कीट की रोकथाम के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी दवा की एक लिटर मात्रा या मोनोक्रोटोफास 36 ईसी कीटनाशी की 750 मिलीलिटर मात्रा 600 से 800 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करें. मटर की रतुआ बीमारी की रोकथाम के लिए मैंकोजेब दवा की 2 किलोग्राम मात्रा 600 से 800 लिटर पानी में घोल कर खड़ी फसल पर छिड़काव करें.

* आलू की फसल में हलकी सिंचाई करें और मिट्टी चढ़ाने का काम करें. साथ ही, खरपतवारों को खत्म करते रहें. फसल को अगेती झुलसा बीमारी से बचाएं.

* बरसीम चारे की कटाई 30 से 35 दिन के अंतर पर करते रहें. कटाई करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि कटाई 5-8 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर हो. पाले से बचाने के लिए हर कटाई के बाद सिंचाई करें.

* पिछले महीने अगर मसूर की बोआई नहीं की है, तो बोआई इस महीने कर सकते हैं. अच्छी उन्नतशीत किस्मों का चुनाव करें. बीज को उपचारित कर के ही बोएं. एक हेक्टेयर खेत की बोआई के लिए 50-60 किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करें.

* मिर्च की फसल पर डाईबैक बीमारी का प्रकोप दिखाई दे, तो इस पर डाइथेन एम-45 या डाइकोफाल 18 ईसी दवा के 0.25 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

* धनिया की फसल को चूर्णिल आसिता बीमारी से बचाने के लिए 0.20 फीसदी सल्फैक्स दवा का छिड़काव करें.

Farming* लहसुन की फसल में सिंचाई की जरूरत महसूस हो रही है, तो सिंचाई करें. खरपतवारों को काबू में करने के लिए निराईगुड़ाई करें.

* प्याज की पौध तैयार हो गई है, तो रोपाई इस महीने के आखिरी हफ्ते में शुरू करें.

* गाजर, शलजम, मूली व दूसरी जड़ वाली फसलों की हलकी सिंचाई करें. साथ ही, खरपतवार की रोकथाम के लिए निराईगुड़ाई करते रहें. जरूरत के मुताबिक नाइट्रोजनयुक्त खाद का इस्तेमाल करें.

* आम के बागों की साफसफाई करें.

10 साल या इस से ज्यादा उम्र के पेड़ों में प्रति पेड़ 750 ग्राम फास्फोरस, 1 किलोग्राम पोटाश से तने से एक मीटर की दूरी छोड़ कर पेड़ के थालों में दें. मिली बग कीड़े की रोकथाम के लिए तने के चारों तरफ 2 फुट की ऊंचाई पर 400 गेज वाली 30 सैंटीमीटर पौलीथिन की शीट की पट्टी बांधें. इस बांधी गई पट्टी के नीचे की तरफ वाले किनारे पर ग्रीस का लेप कर दें.

* अगर मिली बग तने पर दिखाई दे, तो पेड़ के थालों की मिट्टी में क्लोरोपाइरीफास पाउडर की 250 ग्राम मात्रा प्रति पेड़ के हिसाब से तने व उस के आसपास छिड़क दें व मिट्टी में मिला दें. नए लगाए बागों के छोटे पेड़ों को पाले से बचाने के लिए फूस के छप्पर का इंतजाम करें व सिंचाई करें.

* लीची के छोटे पेड़ों को भी पाले से बचाने के लिए पौधों को छप्पर से तीनों तरफ से ढकें. उसे पूर्वदक्षिण दिशा में खुला रहने दें. बड़े पेड़ों यानी फलदार पेड़ों में प्रति पेड़ के हिसाब से 50 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद व 600 ग्राम फास्फोरस दें. बीमारी से ग्रसित टहनियों को काट कर जला दें.

देशदुनिया में श्रीअन्न को बढ़ावा देगा ये शोध केंद्र

नई दिल्ली: 29 नवंबर 2023. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विशेष पहल पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय श्रीअन्न अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद में स्थापित किया जा रहा ‘‘श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र’’ सर्वसुविधायुक्त रहेगा, जिस के जरीए देशदुनिया में श्रीअन्न को बढ़ावा मिलेगा.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मार्गदर्शन में इस केंद्र के लिए कार्यवाही चल रही है. उन्होंने संबंधित अधिकारियों से कहा कि हमारे किसानों को इस केंद्र का अधिकाधिक लाभ मिलना सुनिश्चित किया जाना चाहिए, खासकर छोटे व सीमांत किसानों को लाभ पहुंचाने के मकसद से श्रीअन्न को बढ़ावा देने के लिए भारत की पहल पर अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023 मनाया जा रहा है.

18 मार्च, 2023 को पूसा परिसर, नई दिल्ली में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय श्रीअन्न सम्मेलन में ‘‘श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र” की उद्घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा की गई थी, जिस का मुख्य उद्देश्य श्रीअन्न अनुसंधान एवं विकास के लिए अत्याधुनिक सुविधाओं व उपकरणों से सुसज्जित बुनियादी ढांचे की स्थापना करना है, जिस में मूल्य श्रृंखला, मानव संसाधन विकास, श्रीअन्न के पौष्टिक गुणों के बारे में आम लोगों में जागरूकता फैलाना एवं वैश्विक स्तर पर पहुंच एवं पहचान बनाना है, ताकि किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ मिल सके.

इन उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इस केंद्र में जीन बैंक, प्रौद्योगिकी नवाचार केंद्र, श्रीअन्न मूल्य श्रृंखला एवं व्यापार सुविधा केंद्र, अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान, कौशल व क्षमता विकास केंद्र और वैश्विक स्तर की अनुसंधान सुविधाओं की स्थापना का प्रावधान किया गया है.

केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा “श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र” की प्रगति की समीक्षा के लिए आयोजित बैठक में बताया गया कि यहां अनुसंधान से संबंधित विभिन्न सुविधाओं में जीनोम अनुक्रमण, जीन संपादन, पोषक जीनोमिक्स, आणविक जीव विज्ञान, मूल्य संवर्धन और जीनोम सहायता प्रजनन के लिए उन्नत अनुसंधान उपकरणों से सुसज्जित प्रयोगशालाओं की स्थापना के साथसाथ स्पीड ब्रीडिंग, फाइटोट्रौन, जलवायु नियंत्रित कक्ष, ग्रीनहाउस व ग्लासहाउस एवं रैपिड फेनोमिक्स सुविधा की भी स्थापना की जा रही है.

इसी क्रम में संस्थान के नवस्थापित बाड़मेर, राजस्थान एवं सोलापुर, महाराष्ट्र स्थित 2 क्षेत्रीय केंद्रों को भी सुदृढ़ बनाया जा रहा है. केंद्र को वैश्विक स्तर का अनुसंधान और प्रशिक्षण परिसर बनाने के लिए उन्नत अनुसंधान प्रयोगशालाओं के साथ आधुनिक प्रशिक्षण सुविधाओं, सम्मेलन कक्षों और अंतर्राष्ट्रीय अतिथिगृह की स्थापना का भी प्रावधान किया गया है. केंद्र की गतिविधियों को समयसीमा में पूरा करने व पूरे देश में लागू करने के लिए आईसीएआर के 15 संस्थान सहयोग करेंगे.

बैठक में कृषि सचिव मनोज आहूजा, डेयर के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक के साथ अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे. श्रीअन्न वैश्विक उत्कृष्ट शोध केंद्र की स्थापना के लिए केंद्रीय बजट में 250 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है. इस संबंध में केंद्र सरकार के स्तर पर कार्यवाही तेजी से प्रगति पर है, साथ ही नियमित बैठकें भी हो रही हैं.

मेहंदी की खेती

भारत में पुराने जमाने से मेहंदी का इस्तेमाल प्रसाधन के रूप में होता आया है. मेहंदी का प्रयोग शादीविवाह, दीवाली, ईद, क्रिसमस औैर दूसरे तीजत्योहार वगैरह पर लड़कियां और सुहागिन औरतें करती हैं.

ऐसा माना जाता है कि मेहंदी का प्रयोग तो प्राचीन मिस्र के लोग भी जानते थे. यह  समझा जाता है कि मेहंदी का प्रयोग शीतकारक पदार्थ के रूप में शुरू हुआ. प्राचीन काल से मेहंदी की पत्तियां तेज बुखार को कम करने और लू व गरमी के असर को दूर करने में इस्तेमाल होती रही है.

यह पौधा छोटीछोटी पत्तियों वाला बहुशाखीय और झाड़ीनुमा होता है और इस का उत्पादन पर्सिया, मेडागास्कर, पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया में भी होता है.

भारत में मेहंदी की खेती आमतौर पर पंजाब, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होती है. इस के उत्पादन के महत्त्वपूर्ण केंद्र गुड़गांव, हरियाणा में फरीदाबाद व गुजरात के सूरत जिले में बारदोलीर व माधी है, जहां मेहंदी की पत्तियों के कुल उत्पादन का 87 फीसदी हासिल होता है.

राजस्थान में मेहंदी का उत्पादन पाली जिले की सोजत और मारवाड़ जंक्शन तहसीलों में होता है और सोजत कसबे में मेहंदी पाउडर और पैस्ट बनाने का काम होता है. सोजत की मेहंदी देशविदेश में काफी मशहूर है. इस की खेती रंजक प्रदान करने वाली पत्तियों की वजह से ही की जाती है.

कृषि : मेहंदी का पौधा अकसर सभी तरह की मिट्टियों में रोपा जा सकता है, लेकिन आर्द्रताग्राही भारी मिट्टी में यह अच्छी तरह पनपता है. इस की खेती क्षारीय मिट्टी में नहीं की जा सकती है, पर यह जमीन में मौजूद थोड़़ी क्षारीयता सह लेता है. इस का प्रवर्धन बीजों या कलमों द्वारा किया जाता है.

बीजों को नर्सरी में क्यारियों में बोआई करने से पहले कुछ दिन तक पानी से भर कर रखा जाता है. बीजों को 20-25 दिन तक जल्दीजल्दी पानी बदलते हुए भिगोया जाता है. उस के बाद मार्चअपै्रल माह में बोआई करते हैं. एक हेक्टेयर में 7-12 किलोग्राम तक बीजों की जरूरत होती है. पौधों  की ऊंचाई 45-60 सैंटीमीटर हो जाने पर उन्हें जुलाईअगस्त माह में खेतों में प्रतिरोपित कर देते हैं. खेतों में 2 पौधों के मध्य 3 फुट की दूरी रखी जाती है.

बारिश के पानी से इस की पैदावार अच्छी होती है, पर बारिश न होने पर हर दिन सिंचाई करना जरूरी है. ज्यादा बारिश से फसल में कीड़े लग सकते हैं जो मेहंदी की पत्तियों को खा जाते हैं और तेज धूप में यह कीड़ा अपनेआप ही खत्म हो जाता है.

पहले 2-3 सालों में मेहंदी का उत्पादन कम होता है, पर उस के बाद फसल की कटाई साल में 2 बार अपै्रलमई और अक्तूबरनवंबर माह में की जाती है. अक्तूबरनवंबर माह के दौरान गरमी की फसल कटाई करने पर अच्छी और उत्तम किस्म की फसल हासिल होती है, जबकि अपै्रलमई माह में हासिल दूसरी फसल रंग कम देती है.

Hennaमेहंदी की फसल की कटाई आमतौर पर ट्रेंड मजदूरों द्वारा की जाती है. अक्तूबरनवंबर माह की कटाई में मजदूरों की मांग अधिक होने के चलते फसल की कटाई महंगी पड़ती है, जबकि दूसरी कटाई में औफ सीजन होने से मजदूरी अपेक्षाकृत कम लगती है. एक बार लग जाने पर पौधे कई सालों तक लगातार पनपे रह सकते हैं.

फसल में गुड़ाई यानी निदान करने के बाद फसलों में बारिश का पानी अधिक पहुंचाने के लिए गड्ढे बनाए जाते हैं. फसल की कटाई के बाद उस की कुटाई की जाती है और इस के बाद पत्तियों को बडे़बडे़ बोरों में भर देते हैं.

मेहंदी का औसतन भाव प्रति 40 किलोग्राम 800-1,000 रुपए तक होता है. मेहंदी की परंपरागत घुटाई खरल में करने पर बहुत तेज रंग आता है, पर बढ़ते व्यावसायीकरण के चलते इस की क्वालिटी में कमी आई है.

आजकल पत्तियों से पाउडर बनाने के लिए थ्रेशर मशीन में चरणबद्व तरीके से पिराई कर के फिर प्लोवाइजर नाम की मशीन से इस की बारीक पिसाई की जाती है. इस मशीन में पत्तियों का चूरा डालने से पहले प्रति 40 किलोग्राम मेहंदी में 3 किलोग्राम तेल, 300 ग्राम डायमंड व 100 ग्राम मीठा सोडा मिलाते हैं जिस से मेहंदी के रंग को उड़ने से रोका जा सकता है. इसी वजह से इसे रंग तेल प्रक्रिया भी कहते हैं. इस विधि से तैयार मेहंदी को पैक कर सप्लाई की जाती है.

मेहंदी की किस्में

व्यापार में मेहंदी की 3 किस्में हैं, जिन्हें दिल्ली, गुजराती और मालवा मेहंदी कहते हैं. दिल्ली किस्म चूर्ण के रूप में मिलती है, जबकि गुजराती मेहंदी पत्तियों के रूप में मिलती है. मालवा मेहंदी राजस्थान का उत्पाद है. मेहंदी के प्रमुख खरीदार अल्जीरिया, फ्रांस, बहरीन, सऊदी अरब, सिंगापुर व सीरिया हैं. फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम मेहंदी के प्रमुख आयातक देश हैं.

राजस्थान के पाली जिले की सोजत तहसील के बागावास, सोजत, देवली, खोखरा, रूपावास, साडिया वगैरह गांवों में इस की खेती होती है. हर साल एक बड़ी विदेशी मुद्रा इस के निर्यात से हासिल होती है. अगर इस की  शुरुआती मजदूरी कटाई मजदूरी को कम किया जा सकता हो, तो मेहंदी की फसल से करोड़ों रुपए कमाए जा सकते हैं. सोजत की मेहंदी ने देशविदेश में कारोबार के नए आयाम बनाए हैं.