Horticultural : लाखों किसानों तक पहुंचा भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान 

Horticultural : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने कृषि और किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार के सहयोग से आईसीएआर संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों, केवीके और राज्य सरकार के विभागों को शामिल करते हुए 29 मई से 12 जून, 2025 तक ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के नाम से देश भर में बड़े पैमाने पर खरीफ पूर्व अभियान शुरू किया है. पिछले दस दिनों में 1,896 टीमों ने 8,188 गांवों में 8,95,944 किसानों के साथ बातचीत की है.

कर्नाटक में भी वैज्ञानिकों, कृषि और संबद्ध विभाग के अधिकारियों की 70 से अधिक टीम   किसानों के खेतों का दौरा कर रही हैं. दैनिक आधार पर किसानों के साथ बातचीत कर रही हैं और कृषि क्षेत्र के विकास के लिए मांग आधारित और समस्या उन्मुख अनुसंधान कार्यक्रम विकसित करने के लिए किसानों से फीडबैक ले रही हैं. अब तक 639 टीमों ने 2,495 गांवों का दौरा किया है और 2,77,264 किसानों के साथ बातचीत की है.

दिनांक 5 सितंबर, 1967 को स्थापित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भा.कृ.अ.प.)- भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान (भा.कृ.अ.प – भा.बा.अ.सं.), भा.कृ.अ.प. का शीर्ष रैंकिंग वाला संस्थान है. स्थायी बागबानी विकास को प्राप्त करने के मिशन के साथ, संस्थान ने सालों से कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, आजीविका सुरक्षा, आर्थिक विकास और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. बीते छह दशकों से, भा.कृ.अ.प – भा.बा.अ.सं. ने फलों, सब्जियों, सजावटी पौधों, औषधीय और सुगंधित पौधों और मशरूम पर व्यापक शोध किया है.

जिस का परिणाम 327 किस्में/संकर और 154 प्रौद्योगिकियां के रूप में हमारे सामने है. संस्थान में विकसित उन्नत और तनाव सहनशील किस्मों/संकरों में फल फसलें (38), सब्जी फसलें (149) और फूल और औषधीय फसलें (140) शामिल हैं, जो आज पूरे देश में फैल गई हैं. अब तक संस्थान ने 130 तकनीकें विकसित की हैं, 675 ग्राहकों को 1,550 लाइसेंस दिए गए हैं.

8 जून, 2025 को भा.कृ.अ.प – भा.बा.अ.सं., बेंगलुरु में आयोजित विकसित कृषि संकल्प अभियान कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कर्नाटक के लगभग 500 किसानों को संबोधित किया और उन से कर्नाटक से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर बातचीत भी की.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने संबोधन में किसानों के लिए समर्पित योजनाओं और कार्यक्रमों का जिक्र किया. इस के अलावा उन्होंने किसानों की प्रतिक्रिया जानने के लिए किसानों के खेतों का दौरा किया और कर्नाटक में स्थित आईसीएआर संस्थानों द्वारा प्रौद्योगिकी प्रदर्शन भी देखा.

विकसित कृषि संकल्प अभियान के तहत किसानों को मिले फ्री धान बीज

विकसित कृषि संकल्प अभियान: राष्ट्रीय बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कुश्मौर, कृषि विज्ञान केंद्र, पिलखी, मऊ और  कृषि विभाग, मऊ के संयुक्त तत्वाधान में विकसित कृषि संकल्प अभियान के 9 वें दिन कृषि विषेशज्ञों एवं कृषि विभाग के अधिकारियों की गठित तीनों टीमों ने 15 ब्लौक के तीन गांवों सलाहाबाद, हरपुर और पिजरा में किसानों से सीधा संवाद किया.

इस अभियान के माध्यम से अनुसूचित जाति उप योजना के अंतर्गत लगभग 1000 किसानों को धान (BPT 5204) के 5 – 5 किलोग्राम के  बीज मुफ्त में बांटे गए. भारतीय बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, कुश्मौर के प्रधान वैज्ञानिक डा. अंजनी कुमार सिंह ने गुणवत्ता युक्त बीज उत्पादन और प्रजातियों के बारे में बताया. जिला अपर कृषि अधिकारी डा. सौरभ सिंह ने कार्यक्रम में सरकारी योजनाओं जैसे पीएम किसान सम्मान निधि योजना, पीएम कुसुम योजना, पीएम फसल सुरक्षा बीमा योजना आदि के बारे में बताया.

कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि विशेषज्ञों डा. विनय कुमार सिंह, डा. आकांक्षा सिंह और डा. अंगद कुमार सिंह ने अपनेअपने विषयवस्तु से नवीनतम जानकारी किसानों के साथ साझा की. साथ ही, संबंधित अधिकारियों ने किसानों को फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना के बारे में बताया.

Conference : ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान’ के अतंर्गत किसान सम्मेलन

Conference : कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के निर्देशानुसार, 29 मई से 12 जून, 2025 तक देशभर में विकसित कृषि संकल्प अभियान-2025 चल रहा है. इस अभियान का मकसद देश भर के गांवों में अनेक कार्यक्रमों के जरीए कृषि की नवीनतम तकनीकों एवं सरकारी योजनाओं की जानकारी को किसानों तक सीधा पहुंचाना है. साथ ही, आधुनिक तकनीकों से खरीफ फसल प्रबंधन और उत्पादकता वृद्धि के बारे में जागरूकता बढ़ाना है. इस के साथ ही, खेती व किसानों को समृद्ध करने के लिए “लैब टू लैंड” विजन के साथ विज्ञान एवं वैज्ञानिक किसानों के खेत में पहुंच रहे हैं.

इस अभियान के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र, दिल्ली, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली एवं कृषि इकाई, विकास विभाग, दिल्ली सरकार भी दिल्ली देहात में 29 मई से 12 जून, 2025 तक विशेष अभियान का आयोजन कर रही है.

दिल्ली क्षेत्र में विकसित कृषि संकल्प अभियान

इस कड़ी में, 02 जून, 2025 को कृषि विज्ञान केंद्र, दिल्ली भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली एवं कृषि इकाई, विकास विभाग, दिल्ली सरकार ने नजफगढ ब्लौक के जाफरपुर कलां, सुरेरहा एवं खेरा डाबर गांव में किसान सम्मेलन का आयोजन किया, जिस में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली के प्रधान वैज्ञानिक डा. हर्षवर्धन ने दिल्ली के आसपास क्षेत्र के लिए सब्जियों की विभिन्न प्रजातियां, जो दिल्ली क्षेत्र में अच्छा उत्पादन दे सके, साथ ही साथ पोषण से संबंधित जितनी भी तकनीकियां है जैसे किचन गार्डन की स्थापना करना और उस में लगने वाले मौसम के अनुसार सब्जियां और मानव पोषण के लिए संतुलित आहार आदि के साथ संरक्षित खेती की विस्तृत जानकारी दी.

डा. रामस्वरूप बाना, प्रधान वैज्ञानिक ने जल संरक्षण की तकनीकियों पर विशेष ध्यान देते हुए जानकारी साझा की. साथ ही, उन्होंने बताया कि जिन क्षेत्रों में पानी की कमी है उन क्षेत्र में किसान अपने खेत में एक छोटा सा तालाब बना कर बारिश के पानी को संरक्षित कर उस का सही इस्तेमाल कर सकते हैं.

इस के अलावा उन्होंने मल्चिंग, ड्रिप सिंचाई पद्धति, कम समय में अधिक आय के साथसाथ बाजरा एवं दलहनी फसलों के बारे में विस्तार से जानकारी दी. इसी क्रम में डा. इंदु चोपड़ा ने फसल उत्पादन के लिए मिट्टी एवं पानी एवं उर्वरकों के प्रबंधन एवं महत्व को समझाया और उन्होंने यह भी बताया कि हर फसल लेने के बाद मिट्टी और पानी की जांच करें और उस के अनुसार ही मिट्टी के पोषण के लिए खाद का प्रबंध करें.

डा. हेमलता ने संरक्षित खेती पर विशेष जोर दिया और उन्होंने बताया कि छोटे से छोटे जगह में भी आप हाईटेक नर्सरी बना कर अच्छा उत्पादन कर सकते और युवा किसान इस में अच्छी आय प्राप्त सकते हैं.

इसी क्रम में कृषि विज्ञान केंद्र, दिल्ली के वैज्ञानिकों ने आगामी खरीफ फसलों से जुड़ी आधुनिक तकनीकों की जानकारी के साथ मृदा स्वास्थ्य कार्ड के अनुसार विभिन्न फसलों के चयन और संतुलित खादों के प्रयोग, पशुओं का रखरखाव, बागबानी एवं फलों की खेती मृदा स्वास्थ्य कार्ड, धान की सीधी बोआई, हरि खाद का प्रयोग, पशुपालन के लिए आहार एवं रोग प्रबंधन आदि की विस्तृत जानकारी दी.

इस अभियान के तहत कृषि इकाई, दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने दिल्ली में संचालित हो रही प्राकृतिक खेती, प्राकृतिक खेती के घटक, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की विस्तृत जानकारी किसानों के साथ साझा की. कार्यक्रम के शुरुआत में डा. डीके राणा, अध्यक्ष, कृषि विज्ञान केंद्र, दिल्ली ने बताया कि तकनीकों एवं अनुसंधान को किसानों के खेत में ले जाने में यह अभियान महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिस में दिल्ली के किसान उत्साहित हो कर भागीदारी कर रहे हैं.

“विकसित क़ृषि संकल्प अभियान” की शुरुआत

अविकानगर : केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर के द्वारा “विकसित क़ृषि संकल्प अभियान” की शुरुआत दिनांक 29 मई, 2025 को सुबह 9 से 11 बजे मालपुरा तहसील की लावा पंचायत में स्थानीय विधायक कन्हैयालाल चौधरी कैबिनेट मंत्री जलदाय विभाग, मुख्य अथिति एवं विशिष्ट अथिति के रूप मे जिला प्रमुख टोंक और मालपुरा तहसील के प्रधान सकराम चोपड़ा एवं अन्य जनप्रतिनिधि गणों की उपस्थिति मे कार्यक्रम की शुरुआत करेंगे.

लावा पंचायत में कार्यक्रम के बाद दोपहर 11 से 1 बजे तक अविकानगर संस्थान के सभागार में भी विकसित क़ृषि संकल्प अभियान के तहत आयोजित कार्यक्रम में भी मंत्री एवं अन्य अथिति भाग लेंगे. दिनांक 29 मई, 2025 के कार्यक्रम में अविकानगर संस्थान, कृषि विज्ञान केंद्र निवाई, मालपुरा तहसील के कृषि और पशुपालन विभाग के सारे कर्मचारी उपस्थित रह कर किसानों की खरीफ की फसल एवं पशुपालन से संबंधित सभी समस्याओं का निदान करेंगे और प्रगतिशील किसान के विचार भी सभा में साझा होंगे एवं किसान के फीडबैक का भी भविष्य के हिसाब से मूल्यांकन किया जाएगा.

राजस्थान राज्य के भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा नामित स्टेट कोऔर्डिनेटर एवं निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने बताया कि कल के दोनों कार्यक्रम में स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ कृषि और पशुपालन विभाग के कर्मचारी उपस्थित रह कर किसान से विस्तार से बातचीत करेंगे. अविकानगर से शुरू हो रहे इस कार्यक्रम में निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर ने अधिक से अधिक भाग लेने के लिये टोंक जिले के सभी किसान से अपील की.

Conference : “बागबानी में तेजी से कैसे हो विकास” पर राष्ट्रीय सम्मेलन

Conference : कृषि क्षेत्र में आजीविका सुधार के लिए “बागबानी के तीव्र विकास” विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन 28 से 31 मई, 2025 तक बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में किया जा रहा है. इस सम्मेलन में देशभर से प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों, नीतिनिर्माताओं और शिक्षाविदों ने भाग लिया. इस का उद्देश्य भारत में बागबानी क्षेत्र की वृद्धि के लिए नवाचार पूर्ण रणनीतियों और कार्य योजना पर विचार करना था.

इस कार्यक्रम में डा. संजय कुमार, अध्यक्ष, एएसआरबी, नई दिल्ली (मुख्य अतिथि), डा. एचपी सिंह, पूर्व उप महानिदेशक (बागबानी), नई दिल्ली, डा. एआर पाठक, पूर्व कुलपति, जूनागढ़ कृषि विश्वविद्यालय, डा. एसएन झा, उप महानिदेशक, कृषि अभियांत्रिकी, आईसीएआर, नई दिल्ली, डा. आलोक के सिक्का, भारत प्रतिनिधि, आईडब्लूएमआई, नई दिल्ली, डा. बबिता सिंह, न्यासी, एएसएम फाउंडेशन, डा. फिजा अहमद, निदेशक, बीज एवं फार्म, बीएयू सबौर एवं आयोजन सचिव मौजूद थे.

इस कार्यक्रम में डा. संजय कुमार ने कहा कि बागबानी राष्ट्र निर्माण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है. उन्होंने बताया कि बागबानी क्षेत्र प्रति इकाई क्षेत्रफल पर सब से अधिक लाभ देता है, और यह स्वागत योग्य परिवर्तन है कि किसान पारंपरिक खाद्यान्न फसलों से हट कर उच्च मूल्य वाली बागबानी फसलों की ओर बढ़ रहे हैं.

डा. संजय कुमार ने पारंपरिक पद्धतियों से आगे बढ़ कर विपणन, ब्रांडिंग और प्रसंस्करण के बाद की प्रक्रिया पर जोर दिया. उन्होंने क्षेत्रीय विशेषताओं को बढ़ावा देने और उपज के नुकसान को कम करने के लिए जीआई विशिष्ट मौल और खुदरा स्टोर स्थापित करने का सुझाव दिया. कुपोषण की समस्या पर भी उन्होंने बागबानी के विविधीकृत उपायों के माध्यम से एकीकृत समाधान की आवश्यकता पर बल दिया.

मौके पर मौजूद

डा. एचपी सिंह ने ‘विकसित भारत’ पहल के अंतर्गत सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता बताई और लचीली, अधिक उपज देने वाली, संसाधन कुशल तकनीकों को अपनाने की बात कही. डा. एआर पाठक ने एएसएम फाउंडेशन के सदस्यों के योगदान की सराहना की और उन के देशभक्ति भाव को इस पावन अवसर पर याद किया. साथ ही, उत्कृष्ट योगदान के लिए उन को सम्मान भी प्रदान किए गए.

डा. एसएन झा ने मखाना और लीची जैसी फसलों पर केंद्रित अनुसंधान की आवश्यकता को रेखांकित किया और विश्वविद्यालय आधारित अनुसंधान को अधिक प्रभावी बनाने के लिए कार्यात्मक प्रजनन की सिफारिश की.

डा. आलोक के सिक्का ने 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक परिवर्तनकारी दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया. उन्होंने आर्थिक विकास और पर्यावरणीय स्थिरता के संतुलन की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि बागबानी कृषि जीडीपी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. डा. फिजा अहमद, आयोजन सचिव ने विश्वविद्यालय की प्रमुख उपलब्धियों को साझा किया, जिन में 19 पेटेंट, 1 ट्रेडमार्क, 56 किसान किस्मों का पंजीकरण और जीआई डाक टिकटों का जारी होना शामिल है.

वैज्ञानिकों को किया सम्मानित :

इस सम्मेलन के दौरान महत्वपूर्ण शोध पत्रिकाओं एवं प्रकाशनों का विमोचन किया गया और बागबानी क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया. इस कार्यकम के उद्घाटन सत्र का समापन इस सामूहिक संकल्प के साथ हुआ कि बागबानी के क्षेत्र में नवाचार, सततता एवं समावेशिता को बढ़ावा दे कर ग्रामीण आजीविका को मजबूत किया जाएगा.

Placement Drive : पशुपालकों के लिए प्लेसमेंट ड्राइव

Placement Drive : कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव का आयोजन सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. केके सिंह के दिशानिर्देशन में किया गया. इस अवसर पर माई एनिमल कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट संदीप दत्ता ने कहा कि भारत में माई एनिमल कंपनी द्वारा कुत्तों, ऊंटों, घोड़ों और अन्य जानवरों के लिए स्वास्थ्यवर्धक एवं गुणकारी प्रोडक्ट बनाया जा रहा है, जिस से भारत के पशुपालक लाभान्वित हो सकें.

माई एनिमल कंपनी जूनियर के वाइस प्रेसिडेंट आदित्य पांडे ने कहा कि आज राष्ट्रीय स्तर पर कई कंपनियां हैं, जो अपने विभिन्न उत्पादों को बना कर मार्केटिंग कर रही हैं, लेकिन पशुपालन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए पहली कंपनी माई एनिमल है, जो पशुपालन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रही है.

उन्होंने कहा कि उन का प्रयास है कि गुणवत्तायुक्त उत्पादों से हर गांव के पशुपालक परिचित हों और पशुओं की सुरक्षा को ध्यान में रख कर पशुपालन का एक अच्छा व्यवसाय कर सकें, इस के लिए कंपनी पेरावेट और वेटरनरी डाक्टर के सहयोग से भारत के ग्रामीण इलाकों तक पहुंच कर पशुपालकों का सहयोग कर रही है. इसी को विस्तार देने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्रछात्राओं का इंटरव्यू लिया गया. इस के बाद  उन को प्लेसमेंट दे कर कंपनी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन को विभिन्न जिलों में पोस्टिंग दी जाएगी, जिस से पशुपालक नए उत्पाद और तकनीक की सहायता से अपने पशुओं की जिंदगी को एक नई दिशा दे सकें.

इस अवसर पर 38 छात्रछात्राओं ने कंपनी के प्लेसमेंट ड्राइव में हिस्सा लिया और इन में से कंपनी ने 15 छात्रों का चयन किया. कंपनी इन छात्रों को देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी काम करने का मौका देगी, क्योंकि यह कंपनी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार बढ़ती जा रही है.

इस कार्यक्रम में निदेशक ट्रेनिंग औफ प्लेसमेंट प्रो. आरएस सेंगर ने कहा कि कुलपति प्रो. केके सिंह के मार्गदर्शन में कृषि विश्वविद्यालय के छात्रों का प्लेसमेंट सौ फीसदी हो सके, इस के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि आने वाले दिनों में कृषि विश्वविद्यालय में रोजगार मेला भी लगाया जाएगा, जिस से छात्र रोजगार पा सकें. इस कार्यक्रम का संचालन जौइंट डायरेक्टर प्रो. सत्य प्रकाश ने किया.

Lac Insect : ‘राष्ट्रीय लाख कीट दिवस’ का आयोजन

Lac Insect : राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के कीट विज्ञान विभाग में लाख कीट आनुवंशिक संरक्षण पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा प्रायोजित नेटवर्क परियोजना के तहत चौथा ‘राष्ट्रीय लाख कीट दिवस’ मनाया गया. इस मौके पर लाख संसाधन उत्पादन पर ‘एकदिवसीय छात्र संवाद सहप्रशिक्षण कार्यशाला’ का आयोजन किया गया और इस में कृषि संकाय के स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी के 125 से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया.

इस मौके पर परियोजना अधिकारी डा. हेमंत स्वामी ने लाख कीट के जीवनचक्र एवं उन के पोषक वृक्ष लाख की खेती कैसे की जाए व किसान अपनी आय को कैसे बढ़ा सकते हैं, के बारे में जानकारी दी.

इस कार्यशाला में डा.एमके महला, प्रोफैसर, कीट विज्ञान ने सौंदर्य प्रसाधन, भोजन, फार्मास्यूटिकल्स, इत्र, वार्निश, पेंट, पौलिश, आभूषण और कपड़ा रंगाई जैसे उद्योगों में लाख और इस के उपउत्पादों यानी राल, मोम और डाई के उपयोग के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने विभिन्न मेजबान पौधों पर लाख कीट की वैज्ञानिक खेती के लिए उन्नत तकनीकों के बारे में भी जानकारी दी.

16 मई से 22 मई तक ‘उत्पादक कीट संरक्षण सप्ताह’ और ‘राष्ट्रीय लाख कीट दिवस’ के अवसर पर डा. अमित त्रिवेदी, क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान, डा. वीरेंद्र सिंह, प्रोफैसर, उद्यान विभाग और डा. रमेश बाबू, विभागाध्यक्ष, कीट विज्ञान विभाग ने इन उत्पादक कीड़ों के संरक्षण, परागणकों, भौतिक डीकंपोजर, जैव नियंत्रण एजेंटों आदि के रूप में प्राकृतिक जैव विविधता की सुरक्षा में उन की भूमिका पर प्रकाश डाला. साथ ही, यह भी बताया कि कैसे स्थानीय किसानों के बीच लाख की खेती को लोकप्रिय बनाना है और प्रोत्साहित करना है, क्योंकि जहां लाख की खेती छोड़ दी गई है, वहां निवास स्थान नष्ट हो गए हैं, वहां लाख के कीट और संबंधित जीवजंतु लुप्त हो गए हैं.

इस आयोजन के दौरान कीट पर निबंध प्रतियोगिता व प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया व विजेताओं को प्रमाणपत्र वितरित किए गए.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान राष्ट्रीय विस्तार कार्यक्रम कार्यशाला

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा खरीफ 2024 की ट्रांसफर औफ टैक्नोलौजी (ToT) गतिविधियों की समीक्षा कार्यशाला का सफल आयोजन 16, मई 2025 को वर्चुअल माध्यम से किया गया.

इस कार्यशाला की अध्यक्षता आईएआरआई के निदेशक डा. सीएच श्रीनिवास राव ने की. इस अवसर पर आईसीएआर संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों, झांसी स्थित केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय और 16 स्वयंसेवी संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों ने हिस्सा लिया.

यह पहल आईएआरआई का प्रमुख साझेदारी कार्यक्रम है, जिस का उद्देश्य प्रगतिशील कृषि अनुसंधान और जमीनी स्तर पर उस के कार्यान्वयन के बीच की खाई को पाटना है. उल्लेखनीय है कि इस साल 3 नए स्वयंसेवी संगठनों को कार्यक्रम में शामिल किया गया, जो विभिन्न जलवायु क्षेत्रों और सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस से कार्यक्रम की पहुंच और समावेशिता को और अधिक बल मिला है.

इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए डा. सीएच श्रीनिवास राव ने कहा कि तकनीकी जानकारी के प्रसार के जरीए भारत के किसानों को मजबूत बनाया जा सकता है, जिस से कृषि का सतत विकास संभव है. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अनुसंधान संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों और स्वयंसेवी संगठनों की यह अनोखी साझेदारी ही किसानों तक सही समय पर सही तकनीक पहुंचाने का मूलमंत्र है.

उन्होंने सभी सहभागियों की सक्रिय भागीदारी और योगदान की सराहना की और बताया कि कार्यशाला में 28 विस्तृत प्रस्तुतियां दी गईं, जिन में पूर्व सीजन की उपलब्धियां और आगामी सीजन की योजनाएं शामिल थीं. डा. सीएच श्रीनिवास राव ने सभी हितधारकों से इस गति को बनाए रखने और आईएआरआई की नवीनतम किस्मों एवं तकनीकों के प्रभावी हस्तांतरण को सुनिश्चित करने का आग्रह किया.

उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार तकनीकों को ढालने के लिए मजबूत फीडबैक तंत्र और सहभागी दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है. उन्होंने आगे कहा कि भारतीय कृषि का भविष्य साझेदारी आधारित नवाचार और खेतस्तर की सहभागिता में शामिल है. आईएआरआई इस आंदोलन का नेतृत्व वैज्ञानिक उत्कृष्टता और जमीनी भागीदारी के साथ करता रहेगा.

इस कार्यक्रम की शुरुआत में डा. एके सिंह, प्रभारी, कैटैट, आईएआरआई ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और डा. आरएन पडारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार), आईएआरआई ने कार्यक्रम की रूपरेखा एवं रणनीतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया.

इस कार्यशाला के अंतर्गत एक विशेष संवाद सत्र भी आयोजित किया गया, जिस में प्रतिभागियों ने अपने अनुभव और सुझाव साझा किए. कार्यशाला का समापन तकनीकी हस्तांतरण में कार्यक्षमता, समावेशिता और नवाचार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी, के साथ हुआ, जिस से आईएआरआई की कृषि विकास और विस्तार क्षेत्र में लीडरशिप की भूमिका और मजबूत होगी.

Biological Technology : जैविक तकनीक को मिला वैश्विक पुरस्कार

Biological Technology : ब्राजील की अग्रणी कृषि वैज्ञानिक डा. मारियांगेला हुंग्रिया दा कुन्हा को साल 2025 का प्रतिष्ठित ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ दिए जाने की घोषणा वैश्विक जैविक कृषि जगत के लिए एक प्रेरणास्पद क्षण है. इस अवार्ड को “कृषि का नोबेल पुरस्कार” भी कहा जाता है.

जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण पर उन के काम ने ब्राजील को हर साल तकरीबन 25 अरब अमेरिकी डालर की रासायनिक उर्वरक लागत से छुटकारा दिलाया है.

इस अवसर पर जहां हम ब्राजील की इस वैज्ञानिक को हार्दिक बधाई देते हैं, वहीं यह तथ्य भी सामने लाना जरूरी है कि भारत में इस दिशा में व्यावहारिक और पूरी तरह से सफल मौडल पिछले 3 दशकों से विकसित किया जा चुका है.

मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर, कोंडागांव, छत्तीसगढ़ में हम ने सालों की मेहनत और शोध से एक ऐसी तकनीक को मूर्त रूप दिया है, जिस में बहुवर्षीय पेड़ विशेष रूप से आस्ट्रेलियाई मूल के “अकेशिया” प्रजाति के पौधों को विशेष पद्धति से विकसित कर के उस की जड़ों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को प्राकृतिक रूप से स्थिर कर मिट्टी में लगाया जाता है. इस की पत्तियों से बनने वाला ग्रीन कंपोस्ट अतिरिक्त लाभ प्रदान करता है, जिस से कि स्पीडो के साथ लगाए जाने वाली तकरीबन सभी प्रकार की अंतर्वत्ति फसलों को कुछ समय बाद पचासों साल तक किसी भी प्रकार की रासायनिक अथवा प्राकृतिक खाद अलग से देने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

“नेचुरल ग्रीनहाउस मौडल” के नाम से चर्चित यह तकनीक आज देश के 16 से अधिक राज्यों के प्रगतिशील किसान अपने खेतों में अपना चुके हैं. इस से न केवल रासायनिक नाइट्रोजन खाद पर निर्भरता खत्म हो रही है, बल्कि भारत सरकार द्वारा हर साल दी जाने वाली 45 से 50 हजार करोड़ की नाइट्रोजन उर्वरक सब्सिडी पर भी बड़ी बचत संभव हो रही है. भारत जैसे देश, जो रासायनिक उर्वरकों के लिए कच्चा माल आयात करता है, के लिए यह विदेशी मुद्रा की सीधी बचत करता है.

हमारा मानना है कि जिस तकनीक पर अब वैश्विक स्तर पर पुरस्कार मिल रहा है, उस पर भारत पहले ही काम कर चुका है और एक प्रमाणित, व्यावहारिक मौडल अपने देश में ही उपलब्ध है. भारत सरकार यदि समय रहते इस तकनीक को समर्थन देती, तो आज यह पुरस्कार भारत को भी मिल सकता था.

हमें यह पुरस्कार न मिलने का कोई अफसोस नहीं है, किंतु अब जबकि इस तकनीक को वैश्विक मान्यता मिल चुकी है, भारत सरकार और नीति बनाने वालों से हमारी अपेक्षा है कि वे इस देशज तकनीक को प्राथमिकता दें, इस का प्रसार करें और किसानों को रासायनिक उर्वरकों के जाल से नजात दिलाएं. यह न केवल किसानों की आत्मनिर्भरता, बल्कि राष्ट्र की आर्थिक सुरक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण के लिए भी जरूरी है.

Brinjal : बैगन की खेती

Brinjal : मजाक में अकसर लोग बैगन को बेगुन कह देते हैं, मगर हकीकत में ऐसा नहीं है. तमाम तरकारियों की तरह बैगन की भी अपनी खूबियां हैं.

यह स्वादिष्ठ सब्जी सेहत के लिहाज से भी खासी कारगर होती है. महिलाएं अपनी रसोई में बैगन को पूरीपूरी अहमियत देती हैं.

वे इस की सूखी व रसेदार तरकारी बनाने के साथसाथ इस का भरता भी बनाती हैं. भरवां बैगन व बैगनी यानी बैगन के पकौड़ों की भी भारतीय घरों में खूब मांग रहती है. कुल मिला कर हर उम्र के लोग हमेशा बैगन के पकवानों को चाव से खाते हैं, इसी वजह से बाजार में हमेशा बैगन की मांग बनी रहती है.

सब्जी के व्यापारी बैगन की बिक्री से खूब कमाई करते हैं, लिहाजा बैगन की खेती करना हमेशा फायदे का सौदा रहता है. इस लेख में संकर बैगन उगाने के बारे में जानकारी दी जा रही है.

आबोहवा:  संकर बैगन की खेती करने के लिए औसत तापमान 22 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड के बीच होना मुनासिब होता है. इस तापमान में बैगन की फसल की बढ़वार सही तरीके से होती है और फल भी भरपूर तादाद में हासिल होते हैं.

बैगन की फसल ज्यादा गरम और सूखा मौसम नहीं सह पाती है. ज्यादा गरम आबोहवा में फलों की तादाद घट जाती है. जमीन बैगन की खेती के लिहाज से दोमट मिट्टी ज्यादा मुनासिब होती है.

अलबत्ता मिट्टी पानी की सही निकासी वाली होनी चाहिए. जमीन का पीएच मान 5.5 से 6.0 होना चाहिए. मिट्टी सही किस्म की होने से पैदावार पर बहुत ज्यादा माकूल असर पड़ता है. बीज की मात्रा बैगन की खेती के लिए 125 से 150 ग्राम बीजों की प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दरकार रहती है.

बहुत ज्यादा या कम मात्रा में बीजों का इस्तेमाल करना ठीक नहीं रहता है. पौधे उगाना बैगन के पौधे उगाने के लिए 3 मीटर लंबी, 1 मीटर चौड़ी और 0.15 मीटर ऊंची क्यारियां बनानी चाहिए. इस साइज की 20-25 क्यारियों में इतने पौध तैयार हो जाते हैं, जो 1 हेक्टेयर खेत के लिहाज से काफी होते हैं. हर क्यारी में 25 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद मिलाएं.

इस के अलावा 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 10 ग्राम फुराडान डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं. तैयार क्यारी में बीजों को 5 सेंटीमीटर गहराई में बोएं. बोआई के बाद बीजों को आधी मिट्टी और आधी सड़ी गोबर की खाद के मिश्रण से ढक दें.

इस के बाद क्यारी को घास से ढकें. जब अंकुरण होने लगे तो घास हटा दें.

शुरुआत में फुहारे से पानी दें और कुछ दिनों बाद सामान्य तरीके से सिंचाई करें.

बोआई के 2 दिनों बाद से हर 5 दिनों के अंतराल पर 3 मिलीलीटर एकोमिन या 2 ग्राम केपटाफ 50 डब्ल्यू पाउडर का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर क्यारियों को भिगोएं. बोआई के 15 दिनों बाद और पौधे उखाड़ने से 3-4 दिनों पहले 1 मिलीलीटर थायोडान का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें.

खाद व उर्वरक खेत तैयार करते वक्त 25-30 टन अच्छी तरह से सड़ीगली गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में मिलाएं. इस के अलावा 7.50 क्विंटल नीम की खली भी प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं. इन के अलावा 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश का भी प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. खेत की तैयारी के वक्त नाइट्रोजन की आधी मात्रा और पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा जमीन में मिलाएं. नाइट्रोजन की बची मात्रा का आधा भाग रोपाई के 25 दिनों बाद और बाकी भाग रोपाई के 50 दिनों बाद खेत में इस्तेमाल करें.

रोपाई बोआई के 4 से 6 हफ्तों के दौरान पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जब रोपाई के लिए पौधे उखाड़ने हों, उस से 2-3 घंटे पहले क्यारियों में भरपूर पानी डालें ताकि वे आसानी से निकल सकें. पौधों को 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेंड़ों के बाजू में 60 सेंटीमीटर के फासले पर लगाएं. रोपाई के बाद फौरन हलकी सिंचाई करें.

खयाल रखें कि पौधों की रोपाई का काम शाम के वक्त करना बेहतर रहता है.

खास बीमारियां व बचाव

फाइटोपथोरा फलसड़न रोग : इस से बचाव के लिए रिडोमिल एमजेड या इंडोफिल एम 45 की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. जरूरत के मुताबिक 10 दिनों बाद दोबारा छिड़काव करें.

फायोप्सिस सड़न और ब्लाइट : इस से बचाव के लिए इंडोफिल एम 45 की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 7-8 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

डैंपिंग आफ (पौधविगलन) : इस से बचाव के लिए सेरेसान दवा की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें. पौधों को 3 फीसदी फाइटोलान या डाइथेन एम 45 द्वारा अच्छी तरह भिगोएं. नर्सरी में ज्यादा पासपास पौधे न रखें और बहुत ज्यादा सिंचाई भी न करें.

लिटिल लीफ रोग : इस रोग की चपेट में आने वाले पौधों को उखाड़ कर जला दें. इस के अलावा रोगोर 0.03 फीसदी का 10 से 15 दिनों के अंतराल पर फल आने तक छिड़काव करें. रोपाई के वक्त पौधों की जड़ों को टैट्रासाइक्लिन 1000 पीपीएम में भिगोने के बाद रोपाई करें.

खास कीट व बचाव

तनाछेदक व फलछेदक : कीड़े लगे भागों को सूंडि़यों सहित पौधों से अलग कर के जला दें. फसल की छोटी अवस्था में दानेदार सिस्टेमिक कीटनाशक का इस्तेमाल करें. इंडोसल्फान या मेटासिस्टाक्स की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

हरा मच्छर (जैसिड) : 10 ग्राम थायमेट का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. मेटासिस्टाक्स या मोनोक्रोटोफास की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

माहू (एफिड) : इस से बचाव के लिए इंडोसल्फान या मोनोक्रोटोफास के 0.05 फीसदी घोल का छिड़काव करें. लाल मकड़ी : लाल मकड़ी से बचाव के लिए मैलाथियान के 0.02 फीसदी घोल का छिड़काव करें. इस के अलावा फसल पर सल्फर धूल का बुरकाव करें या बैटेवल सल्फर के 0.05 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

इस प्रकार कीड़ों व रोगों से बैगन की फसल की हिफाजत करते हुए भरपूर पैदावार हासिल की जा सकती है. उम्दा नस्ल के बैगनों की मांग हमेशा बनी रहती है, लिहाजा इस की खेती करना बेहद फायदे का सौदा होता है.

कीटों व रोगों की रोकथाम के लिए दवाओं का इस्तेमाल करते वक्त दवाओं में चिपटाक या सेंडोविट जैसे चिपकने वाले पदार्थ जरूर मिलाएं. दवाओं का छिड़काव करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि पूरा पौधा दवा से भीग जाना चाहिए.