Rice Maize : चावल और मक्का की बढ़ी पैदावार

Rice Maize : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने नई दिल्ली के पूसा कैंपस स्थित अग्निहाल में पत्रकारों से पिछले दिनों बातचीत की. इस दौरान उन्होंने राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन खरीफ 2025 अभियान में हुई चर्चा के साथसाथ खरीफ की बोआई से पहले कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की तैयारियों व रणनीतियों के बारे में जानकारी दी. प्रैस कौन्फ्रेंस में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर सहित विभिन्न राज्यों से आए कृषि मंत्री भी उपस्थित रहे.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि आज राज्यों के कृषि मंत्रियों, केंद्र और राज्य सरकार और आईसीएआर एवं अन्य संबंधित केंद्रीय मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारियों व वर्चुअल तौर पर जुड़े सभी पदाधिकारियों के साथ चर्चा हुई.

राज्यों के बेहतर प्रदर्शन, किसानों की कड़ी मेहनत के चलते खरीफ के रकबे में वृद्धि हुई है, वहीं खरीफ 2023-24 के दौरान चावल का क्षेत्रफल 40.73 मिलियन हेक्टेयर था, जो खरीफ 2024-25 में 43.42 मिलियन हेक्टेयर हो गया है. वहीं चावल का उत्पादन खरीफ 2023-24 में 113.26 मिलियन टन था, जो खरीफ 2024-25 में 120.68 मिलियन टन हो गया है.

इसी तरह से खरीफ में साल 2023-24 के दौरान मक्के का क्षेत्रफल 8.33 मिलियन हेक्टेयर था, जो खरीफ 2024-25 में 8.44 मिलियन हेक्टेयर हो गया और मक्के का उत्पादन खरीफ 2023-24 में 22.25 मिलियन टन था, जो खरीफ 2024-25 में 24.81 मिलियन टन हो गया है.

उन्होंने बताया कि पिछले साल की तुलना में कुल खाद्यान्न क्षेत्र में 3.8 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिस में चावल और मक्का में वृद्धि देखी गई है. समान रूप से खरीफ 2024 में कुल खाद्यान्न उत्पादन में पिछले साल 2023 खरीफ उत्पादन की तुलना में 6.81 फीसदी की वृद्धि हुई है, जिस में चावल, मक्का और ज्वार आदि फसलों में उच्च उत्पादन देखा गया है.

उन्होंने आगे कहा कि विपरीत जलवायु परिस्थितियों के बावजूद हमारे खाद्यान्न का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. रबी सीजन का भी अनुमान बेहद आशाजनक है. आईसीएआर के हमारे वैज्ञानिकों द्वारा कई नई जलवायु अनुकूल किस्मों के विकास के कारण यह लक्ष्य हासिल हुआ है. साथ ही, राज्यों ने भी बेहतर ढंग से खेती में उत्पादन बढ़ाने का प्रयास किया है. उत्पादन वृद्धि में योगदान के लिए उन्होंने सभी को बधाई दी और कहा कि हमारे किसानों की मेहनत को मैं प्रणाम करता हूं.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आगे आने वाले खरीफ के मौसम में हम नई किस्मों के बीज ठीक ढंग से किसानों के पास पहुंचा पाएं, इस के लिए प्रयास जारी है. बड़े स्तर पर अच्छे बीज किसानों तक पहुंचे, इस के लिए काफी चर्चा हुई है.

उन्होंने कहा कि लैब टू लैंड की नीति के तहत वैज्ञानिक और किसान साथ मिल कर काम करें, इस की बड़ी आवश्यकता है. यह खुशी की बात है कि हमारे पास आईसीएआर, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि विश्वविद्यालय को मिला कर 16,000  वैज्ञानिक हैं, जिन के योगदान को शामिल करते हुए किसानों तक शोध की सही जानकारी पहुंचाने के लिए एक प्रभावी व्यवस्था बनाई गई है.

इस बार खरीफ फसल के लिए जो आमतौर पर 15 जून के बाद शुरू होती है, उसी के मद्देनजर 4-4 वैज्ञानिकों की टीम बनाई जाएगी, इन के साथ राज्यों का कृषि विभाग जुड़ेगा, केंद्र सरकार के कृषि विभाग के साथी भी जुड़ेंगे, प्रगतिशील किसान जुड़ेंगे और यह 15 दिन खरीफ फसल के उत्पादन में वृद्धि के लिए अच्छे बीज, बेहतरीन तकनीक का लाभ दिलाने के लिए बातचीत होगी.

एक दिन में 3 जगहों पर एक टीम जाएगी और किसानों से बात करेगी, जिस में अच्छे बीज के बारे में, कृषि पद्धितियों के बारे में, जलवायु अनुकूल बोआई के बारे में, उचित फसल के निर्णय के लिए विस्तार से चर्चा कर के ये टीम किसानों को दिशा देने का काम करेगी.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि जहां तक खरीफ में बीज का सवाल है, बीज की आवश्यकता है, 164.254 लाख क्विंटल की और हमारे पास पर्याप्त बीज 178.48 लाख क्विंटल उपलब्ध है. हम सभी राज्यों की मांग के अनुसार उन्न्त बीज उपलब्ध करा पाएंगे.

खुशी की बात ये है कि सीड रिपलेसमेंट की दर बढ़ रही है. पहले किसान परंपरागत बीज बोते रहते थे, लेकिन 10 साल से पहले ही सीड बदल देना चाहिए. 10 साल हो जाने पर बीज की गुणवत्ता अच्छी नहीं रहती. बीज बदलने की प्रवृत्ति में तेजी आ रही है, जिस के लिए मैं राज्यों को बधाई देता हूं. उन्होंने कहा कि गुणवत्ता वाले बीजों की उपलब्धता के लिए काम किया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि देश के किसानों के लिए यूरिया, डीएपी, एनपीके की पर्याप्त व्यवस्था की गई है. विदेश में बढ़ रही कीमत के बावजूद सब्सिडी किसानों को मिल रही है. हम ने खाद को स्टोर करना शुरू कर दिया है.

उन्होंने आगे फसलों के संदर्भ में कहा कि गेहूँ, चावल हमारे यहाँ पर्याप्त मात्रा में होता है लेकिन दलहन और तिलहन का हमें आयात करना पड़ता है. भारत सरकार ने जो दलहन मिशन शुरू किया है, उसे इम्प्लीमेंट करने की बात सम्मेलन में हुई. उत्पादन कैसे बढ़े, इस पर भी चर्चा हुई और औयल सीड के उत्पाद को बढ़ाने पर भी विचार किया गया है.

इस के साथ ही एक और प्रमुख विषय है, ‘अत्यधिक उर्वरकों का इस्तेमाल’. रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए प्राकृतिक कृषि मिशन भारत सरकार ने बनाया है. किसानों को समझा कर किसान की जमीन के टुकड़े पर प्राकृतिक खेती की जाएगी. 33 राज्यों का एनुअल एक्शन प्लान आ गया है. 7.78 लाख हेक्टेयर में 15,560 क्लस्टर बनाए जाएंगे और 10,000 बायोरिसोर्स सैंटर बनाए जाएंगे. 16 प्राकृतिक खेती के केंद्रों की पहचान की गई है और 3,100 वैज्ञानिकों को किसान को मास्टर ट्रेनिंग के रूप में ट्रेन किया गया है. कम से कम 18 लाख किसान प्राकृतिक खेती की शुरुआत करें, 1 करोड़ किसानों को हम सैंसीटाइज करें, इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है.

मंत्री शिवराज सिंह ने कहा कि ये बैठक बहुत गंभीरता से हुई है. हम ने तय किया है कि रबी की बैठक एक दिन के लिए नहीं, बल्कि 2 दिन की होगी. हम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया है कि जो भेदभावपूर्ण सिंधु जल समझौता किया गया था, जिस में 80 फीसदी पानी पाकिस्तान के हिस्से में और केवल 20 फीसदी हिस्सा पानी का भारत के हिस्से में है, उसे रद्द किया गया है.

अब इस का लाभ किसानों को मिलेगा. विशेषकर पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, जम्मू कश्मीर. अधिक पानी के कारण उत्पादकता बढ़ेगी, बाढ़ नियंत्रण जैसे काम भी बेहतर होंगे. किसानों को बिजली भी मिलेगी, जिस से उत्पादन भी बढ़ेगा.

Conference : राष्ट्रीय कृषि खरीफ सम्मेलन 2025 का हुआ आयोजन

Conference :  केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान की अगुआई में पिछले दिनों नई दिल्ली स्थित पूसा कैंपस के भारत रत्न सी. सुब्रह्मण्यम औडिटोरियम में कृषि खरीफ अभियान 2025 पर राष्ट्रीय सम्मेलन का सफल आयोजन हुआ. इस सम्मेलन में 10 से ज्यादा राज्यों के कृषि मंत्रियों ने पूसा कैंपस पहुंच कर और अन्य कृषि मंत्रियों ने वर्चुअल माध्यम से जुड़ कर अपने विचार साझा किए व कृषि की उन्नति की दिशा में केंद्र के साथ मिल कर काम करने पर सहमति जताई.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्यों से आए कृषि मंत्रियों, अधिकारियों का स्वागत करते हुए कहा कि भारत की 145 करोड़ जनता के लिए पर्याप्त खाद्यान्न, फल और सब्जियों की उपलब्धता सुनिश्चित कराने की बड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हमारे कंधों पर है. यह एक असाधारण काम है, जिसे हमें मिल कर पूरा करना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि आज हम ने किसानों की मेहनत से अनाज के भंडार भर दिए हैं. उत्पादन लगातार बढ़ रहा है. अभी हम ने चावल की 2 किस्में विकसित की हैं, जिस से उत्पादन बढ़ेगा, 20 दिन पहले फसल तैयार हो जाएगी, पानी बचेगा, मीथेन गैस का उत्सर्जन कम होगा, जल्द ही ये किस्में किसानों को उपलब्ध कराई जाएंगी. साल 2014 के बाद 2,900 नई किस्मों का विकास हमारे वैज्ञानिकों ने किया है.

उन्होंने यह भी कहा कि ये खरीफ कौन्फ्रेंस कोई औपचारिकता नहीं है. आगे रबी कॉन्फ्रेंस 2 दिन के लिए होगी. हमारा काम है उत्पादन बढ़ाना, उत्पादन की लागत घटाना, उत्पाद के ठीक दाम देना, आपदा में सहायता करना, फलों और फूलों की खेती को बढ़ावा देना है.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि यह धरती केवल हमारे लिए नहीं है. इस धरती को आने वाली पीढ़ियों के लिए भी स्वस्थ रखना है. अत्यधिक उर्वरकों के इस्तेमाल से धरती की सेहत बिगड़ रही है.

इस सम्मेलन में उन्होंने कहा कि मैं कृषि मंत्री हूं, तो 24 घंटे मुझे यही सोचना चाहिए कि किसानों की बेहतरी कैसे हो. हमें मेहनत के साथ कृषि के लिए उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग सुनिश्चित करते हुए खेती की बेहतरी के लिए काम करना होगा. हमें लैब से लैंड तक टैक्नोलौजी और रिसर्च को पहुंचाना ही होगा. इस कड़ी में उन्होंने ‘विकसित भारत संकल्प अभियान’ के जरीए वैज्ञानिकों की टीम बनाने और किसानों तक पहुंच बनाने की रूपरेखा भी रखी और बताया कि किस प्रकार से ये टीमें गांवगांव पहुंच कर किसानों के बीच जागरूकता के लिए काम करेंगी.

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि हमारे पास 16,000 वैज्ञानिक हैं, जिन में से 4-4 वैज्ञानिकों की टीमें बना कर जमीनी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जाएगा. इन टीमों का उपयोग किसानों की सेवा के लिए होगा. ये टीमें साल में 2 बार निकलेंगी. रबी फसल के लिए अक्तूबर में अभियान चलेगा. साथ ही, उन्होंने राज्यों के कृषि मंत्रियों से इस अभियान से सक्रिय रूप से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि जब तक हम सब मिल कर एक दिशा में नहीं चलेंगे, तब तक खेतीकिसानी के हित में वांछित नतीजे नहीं मिलेंगे.

इस सम्मेलन में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्यमंत्री रामनाथ ठाकुर भी शामिल हुए. राज्यों से आए मुख्य सचिवों, अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, कृषि आयुक्त, अन्य वरिष्ठ अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने भी शिरकत की.

कृषि सचिव देवेश चतुर्वेदी ने सम्मेलन की रूपरेखा रखी और राज्यों के साथ समन्वय और तालमेल के साथ काम करने की बात कही. सचिव (उर्वरक) रजत कुमार मिश्रा ने भी प्रस्तुति दी.

आईसीएआर के महानिदेशक डा. एमएल जाट ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि भारतीय कृषि धीरेधीरे जलवायु अनुकूल होती जा रही है, जो बड़ी उपलब्धि है. कम हेक्टेयर में ज्यादा उपज के लिए भी काम चल रहा है.

आईसीएआर के डीडीजी (कृषि प्रसार) डा. राजबीर सिंह ने विकसित कृषि संकल्प अभियान के बारे में विस्तारपूर्वक बताया. डीडीजी (फसल विज्ञान) डा. डीके यादव ने भी प्रस्तुति दी. मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिक राहुल सक्सेना ने मौसम के संबंध में जानकारी दी. संयुक्त सचिव अजीत कुमार साहू, संयुक्त सचिव सैमुअल प्रवीण कुमार और संयुक्त सचिव पूर्णचंद्र किशन ने भी प्रस्तुति दी. कृषि मंत्रालय के संयुक्त सचिव पेरिन देवी ने सम्मेलन में आए सभी का आभार व्यक्त किया.

एकसाथ 3 औषधीय फसलों (Medicinal Crops) में बनाया कीर्तमान 

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) ने एक बड़ा कीर्तिमान रचते हुए औषधीय फसलों की 3 किस्मों प्रताप अश्वगंधा-1, प्रताप इसबगोल-1 और प्रताप असालिया (आलिया)-1 को राजस्थान राज्य के लिए अधिसूचित कर हैट्रिक बनाने में कामयाबी हासिल की है.

आज देश में किसी भी कृषि विश्वविद्यालय में अनुसंधान परियोजना का यह पहला अवसर है, जब एकसाथ 3 किस्मों को अधिसूचित किया गया है. इस से राज्य के किसान अब सुनियोजित तरीके से इन फसलों की बड़े स्तर पर खेती कर सकेंगे.

एमपीयूएटी के अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा ने बताया कि राज्य के किसान सदियों से औषधीय महत्व से परिपूर्ण इसबगोल, अश्वगंधा और असालिया की खेती करते रहे हैं, लेकिन लंबे अनुसंधान के बाद इन की किस्मों के अधिसूचित होने से किसानों को भरपूर फायदा होगा.

नई दिल्ली में हाल ही आईसीएआर के उपमहानिदेशक (बागबानी विज्ञान) डा. संजय कुमार सिंह की अध्यक्षता में बागबानी फसल मानकों, अधिसूचना और किस्मों के विमोचन संबंधी केंद्रीय उपसमिति की 32वीं बैठक में उपरोक्त तीनों किस्मों को अधिसूचित करने पर मुहर लगाई गई और इन्हें राजस्थान राज्य के लिए मुफीद माना गया.

किस्मों की खूबियां एवं औषधीय गुण

एमपीयूएटी में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा संचालित अखिल भारतीय समन्वित औषधीय एवं सुगंधित पादप अनुसंधान परियोजना के प्रभारी एवं प्रजनक डा. अमित दाधीच ने प्रताप के नाम पर विकसित इसबगोल, अश्वगंधा और असालिया (आलिया) किस्मों के गुण एवं विशेषता के बारे में जानकारी दी.

प्रताप इसबगोल –1

इस किस्म का औसत बीज उपज 1207 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म के पकने की अवधि 115 दिन है, जो दूसरी किस्मों की तुलना में काफी पहले हो जाती है. यह प्रमुख रोगों के विरुद्ध बहु रोग प्रतिरोधक क्षमता दर्शाती है.

इसबगोल में कई औषधीय गुण होते हैं, जो विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं में राहत देते हैं. यह कब्ज, दस्त, पेचिश, मोटापा, डायबिटीज और डिहाइड्रेशन जैसी समस्याओं में फायदेमंद होता है.

इसबगोल एक आहार फाइबर है, जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने और आंतों की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करता है.

प्रताप अश्वगंधा –1

राजस्थान राज्य से विकसित और अधिसूचित यह पहली किस्म है. प्रताप अश्वगंधा-1 की औसत शुष्क जड़ उपज 421 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. यह प्रमुख रोगों के विरुद्ध बहु रोग प्रतिरोधक क्षमता दर्शाती है.

यह एक प्राचीन भारतीय जड़ीबूटी है, जिसे आयुर्वेद में विशेष स्थान प्राप्त है. इस की जड़ें और पत्तियां औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं और इन्हें विभिन्न रूपों में इस्तेमाल किया जाता है.

यह शरीर को तनाव, थकान और पर्यावरणीय बदलावों से लड़ने की ताकत देता है. यह नींद, ताकत, और मानसिक शांति के लिए प्रसिद्ध है.

प्रताप असालिया (आलिया) –1

इस का औसत बीज उपज 2028 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. इस किस्म के पकने की अवधि 111 दिन है, जो अन्य किस्मों की तुलना में काफी पहले हो जाती है. यह प्रमुख रोगों के विरुद्ध बहु रोग प्रतिरोधक क्षमता दर्शाती है.

चंद्रशूर (असालिया) फसल की खेती कम लागत, कम सिंचाई और कम संसाधनों में रबी के मौसम में की जा सकती है. इस का वानस्पतिक नाम ‘लेपिडियम सैटाइवम’ है, यह सरसों कुल (ब्रैसिकेसी) की सदस्य है. यह ज्यादातर खून की कमी एवं त्वचा संबंधी रोग के उपचार में उपयोगी है. पाचन संबंधी रोग के अलावा वात, गैस, नेत्रपीड़ा, कमजोरी व उंचाई बढ़ाने से संबंधित अनेक औषधियां बनाई जाती हैं.

हर रोज नए कीर्तिमान – डा. अजीत कुमार कर्नाटक

कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि एकसाथ औषधीय गुणों से परिपूर्ण 3 किस्मों प्रताप अश्वगंधा -1, प्रताप इसबगोल -1 और प्रताप असालिया -1 (आलिया) का अधिसूचित होना मप्रकृप्रौ विश्वविद्यालय के लिए अत्यंत गौरव की बात है. विश्वविद्यालय प्रसार शिक्षा एवं अनुसंधान के अलावा उद्यमिता विकास के आकाश में हर रोज नए कीर्तिमान हासिल कर रहा है. विश्वविद्यालय ने पिछले कुछ सालों में विभिन्न प्रौद्योगिकी पर 54 पेटेंट प्राप्त किए हैं. साथ ही, राष्ट्रीय स्तर पर बकरी की 3 नस्लें सिरोही, गुजरी एवं करौली को रजिस्टर्ड कराया है.

उन्होंने आगे बताया कि इस साल अफीम की चेतक किस्म, मक्का की पीएचएम-6 किस्म के साथ मूंगफली (प्रताप मूंगफली-4) की किस्में विकसित की हैं. राज्य के किसानों के फायदे के लिए विश्वविद्यालय पूरे मन से काम कर रहा है.

Natural Farming: 1,500 क्लस्टर में लाखों किसानों तक प्राकृतिक खेती

Natural Farming : प्राकृतिक खेती के संदर्भ में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि हम कई क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. मुझे यह कहते हुए गर्व है कि एक समय था, जब हम अपनी जनता का पेट भरने के लिए अमेरिका से निम्न स्तर का गेहूं लेने के लिए मजबूर थे, लेकिन आज देश में अन्न के भंडार भरे हुए हैं.

हमारा शरबती गेहूं आज दुनिया में धूम मचा रहा है. हमारे खाद्यान्न का उत्पादन लगातार बढ़ता जा रहा है. जलवायु परिवर्तन के खतरों के बावजूद बढ़ते हुए तापमान और अनिश्चित मौसम के बावजूद भी हम ने देश के खाद्यान्न को ही नहीं बढ़ाया है, बल्कि अपनी जनता का पेट भी भरा है, साथ ही कई देशों को अन्न का निर्यात भी किया है.

हम गेहूं के साथसाथ दलहन और तिलहन का उत्पादन भी बढ़ा रहे हैं. कृषि के लिए हमारी 6 सूत्रीय रणनीति है, पहला उत्पादन बढ़ाना और उत्पादन बढ़ाने के लिए अच्छे बीज, कृषि पद्धतियां आदि, दूसरा उत्पादन की लागत घटाना, तीसरा फसलों के ठीक दाम, चौथा नुकसान की भरपाई, पांचवां खेती का विविधीकरण और छठा प्राकृतिक खेती.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि एक करोड़ किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. हमारा लक्ष्य है कि हम लगभग 15 सौ क्लस्टर में साढ़े 7 लाख किसानों तक प्राकृतिक खेती को ले जाना है, ताकि ये किसान अपने खेत के एक हिस्से में प्राकृतिक खेती को शुरू कर सकें. हम सभी को धरती भी कीटनाशकों से बचानी होगी. आज कीटनाशकों के कारण कई पक्षियों का नामोनिशान ही मिट गया है और नदियां भी प्रदूषित हो रही हैं.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आगे कहा कि शहरों के विकास से ही काम नहीं चलेगा, स्वावलंबी व विकसित गांव कैसे बने, सड़कों का नैटवर्क, गांव में बुनियादी सुविधाएं, पक्का मकान, साफ पीने का पानी, पंचायत भवन, सामुदायिक भवन, स्थानीय बाजार और गांव के लिए जरूरी चीजें गांव में ही कैसे उत्पादित कर पाएं, उस पर काम करने का प्रयास किया जाए.

उन्होंने आगे कहा कि यह सब हमें करना पड़ेगा, तभी गांव विकसित होगा. गांव का हर परिवार किसी न किसी रोजगार से जुड़ा हो, उस दृष्टि से भी प्रयास करने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि मानवीय गुणों के साथ ही सब का विकास हो. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि पर्यावरण की भी चिंता की जाए. प्रकृति का दोहन करें, न कि शोषण करें.

उन्होंने कहा कि आज भारत विकसित देशों की तुलना में केवल 7 फीसदी कार्बन उर्त्सजन करता है. हमें प्रकृति का संरक्षण करते हुए ही विकास करना है. भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की 5वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था है और तीसरी जल्दी ही बनने वाली है. हम अपना विकास भी करेंगे और दुनिया को भी राह दिखाएंगे.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने संबोधन के अंत में कहा कि जिस दिशा में हम बढ़ रहे हैं, विश्व शांति का कोई दर्शन अगर कराएगा तो वह भारत ही कराएगा. ऐसे भारत के निर्माण में हम सब सहयोगी बनें.

Aqua Insurance : मछुआरों को पहली बार मिलेगा एक्वा बीमा

मुंबई : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय एवं पंचायती राज मंत्री राजीव रंजन सिंह की अध्यक्षता में पिछले दिनों 28 अप्रैल, 2025 को मुंबई में “तटीय राज्य मत्स्यपालन बैठक: 2025” का आयोजन किया गया.

इस कार्यक्रम में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और पंचायती राज राज्य मंत्री प्रोफैसर एसपी सिंह बघेल, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी और अल्पसंख्यक मामलों के राज्य मंत्री जौर्ज कुरियन के साथसाथ कई तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राज्यपालों और मत्स्यपालन मंत्रियों की भी उपस्थिति रही.

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 255 करोड़ रुपए के कुल खर्च के साथ 7 तटीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए प्रमुख परियोजनाओं का उद्घाटन किया. तटीय राज्य मत्स्य सम्मेलन में 5वीं समुद्री मत्स्यपालन गणना अभियान, कछुआ बहिष्करण डिवाइस पर पीएमएमएसवाई दिशानिर्देश और पोत संचार एवं सहायता प्रणाली के लिए मानक संचालन प्रक्रिया लागू किए जाने जैसी प्रमुख पहलों का भी शुभारंभ किया गया.

इस अवसर पर केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह ने डिजिटल एप्लीकेशन व्यास-एनएवी युक्त टैबलेट भी बांटे और प्रधानमंत्री मत्स्य किसान समृद्धि सहयोजना (पीएम-एमकेएसएसवाई) के तहत लाभार्थियों को पहली बार एक्वा बीमा (एकमुश्त प्रोत्साहन स्वीकृति-सह-रिलीज आदेश) प्रदान किया. साथ ही, 5वीं समुद्री जनगणना अभियान की भी शुरुआत हुई. इस में पर्यवेक्षकों का प्रशिक्षण गांव स्तर पर डेटा गणनाकर्ताओं की भरती और प्रशिक्षण भी शामिल है. इस के पूरा होने के बाद 3 महीने तक चलने वाली वास्तविक गणना गतिविधि होगी. यह अभियान दिसंबर 2025 तक पूरा हो जाएगा.

5वीं समुद्री मत्स्यपालन जनगणना डिजिटल हुई: व्यास-एनएवी एप

भारत की 5वीं समुद्री मत्स्य गणना (एमएफसी 2025) की तैयारी के एक बड़े कदम के रूप में, पारदर्शिता और दक्षता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से डिजिटल रूप से डेटा संग्रह के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन व्यास-एनएवी लौंच किया गया है. पारंपरिक पद्धति से भूसंदर्भित, एप आधारित डिजिटल प्रणाली को प्रयोग में लाते हुए एमएफसी 2025 देशभर में 12 लाख मछुआरों के परिवारों को कवर करेगा और वास्तविक समय में जांच संभव हो सकेगी.

यह बड़ा अभियान प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग (डीओएफ) द्वारा समन्वित किया जाता है. व्यास-एनएवी को आईसीएआर केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किया गया था.

यह गणना फ्रेम की बड़े स्तर पर कवरेज और सटीकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम है. इस एप में प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों के आधार पर गांवों की सारांश तसवीर रिकौर्ड करने की सुविधा है. यह पर्यवेक्षक केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान भारतीय मत्स्य सर्वे और तटीय राज्यों के मत्स्य विभागों के कर्मचारी हैं.

समुद्री मत्स्यपालन गणना – 2025 के बारे में

समुद्री मत्स्य गणना (एमएफसी)-2025 का ध्यान समुद्र में मछली पकड़ने वाले मछुआरों के प्रत्येक परिवार, उन के गांव, मछली पकड़ने के कौशल और साजोसामान के साथसाथ देशभर में मछली पकड़ने के बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों से जुड़ी बुनियादी सुविधाओं के संपूर्ण, सटीक और समय पर दस्तावेजीकरण पर है.

व्यवसाय को नया रूप देते हुए केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान द्वारा बनाए गए अनुकूलित मोबाइल और टैबलेट आधारित एप्लिकेशन का उपयोग डेटा संग्रह के लिए किया जाएगा, ताकि हाथ से किए जाने वाले काम में होने वाली गलतियों को कम किया जा सके और नीति स्तरीय उपयोग के लिए डेटा संकलन में तेजी लाई जा सके.

यह समुद्री मत्स्य गणना एक प्रक्रिया है, जो फील्ड औपरेशन के सिग्नलिंग से शुरू होती है और रिपोर्टिंग के साथ खत्म होती है. जहां घरेलू गणना होती है, वहां संदर्भ अवधि मुख्य गतिविधि है. इस मामले में यह संदर्भ अवधि नवंबरदिसंबर, 2025 है.

इस प्रक्रिया के विभिन्न घटकों को गणना संचालन कहा जाता है. अब तक प्री कोर गणना चरण में ऐसी कई गतिविधियों की योजना बनाई गई है. मोटेतौर पर 3,500 गांवों और 12 लाख परिवारों को इस अभ्यास में अलगअलग समय पर कवर किया जाएगा. गांव की गणना को मईजून तक अंतिम रूप दिया जाएगा, जबकि परिवार स्तर के डेटा और अन्य सुविधाओं को नवंबरदिसंबर माह के दौरान कवर किया जाएगा, जो कि गांव और मछली पकड़ने वाले समुदाय के गणनाकारों द्वारा किया जाएगा.

यह औपरेशन अप्रैल से दिसंबर तक चलेगा. गांव की सूची को अंतिम रूप देने और लैंडिंग केंद्रों के डेटा को केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान, भारतीय मत्स्य सर्वेक्षण और डेयरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग के कर्मचारियों द्वारा कवर किया जाएगा.

नवंबरदिसंबर 2025 के लिए निर्धारित मुख्य गतिविधि में स्थानीय समुदाय से प्रशिक्षित गणनाकार शामिल हैं, जो स्मार्ट उपकरणों के साथ प्रत्येक समुद्री मछुआरे के घर का दौरा करेंगे. इस से पहले इस के लिए अच्छे से तैयारी की जाती है. मछुआरों की जनसांख्यिकीय और सामाजिकआर्थिक स्थिति, वैकल्पिक आजीविका के विकल्प और कैसे और कहां सरकारी योजनाएं उन की स्थिति को बेहतर करती हैं, इन पहलुओं की बारीकियां रिकौर्ड करने पर जोर दिया जाएगा. इस के लिए अधिकारी डिजिटल डेटा संग्रहण में काम कर रहे लोगों को प्रशिक्षित करेंगे और व्यास-एनएवी का उपयोग कर के गांव और बुनियादी ढांचे के डाटा की जांच करेंगे.

Seeds : अच्छी किस्म के बीजों को छोटे किसानों तक जल्दी पहुंचाएं

Seeds: कृषि अनुसंधान देश के कृषि क्षेत्र का प्रमुख आधार है. इसे और अधिक सशक्त करने और कृषि शोध के क्षेत्र में नवाचार करने के साथ ही वर्तमान योजनाओं और कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन के उद्देश्य से केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के उपमहानिदेशकों के साथ 29 अप्रैल, 2025 को मैराथन बैठक की.

नई दिल्ली के एनएएससी कौम्प्लेक्स स्थित बोर्ड रूम में यह अहम बैठक हुई. इस बैठक में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह ने आईसीएआर के विभिन्न प्रभागों द्वारा किए जा रहे शोध प्रयोगों की जानकारी लेने के साथ ही भावी रणनीतियों के बारे में विस्तार से मार्गदर्शन दिया.

किसानों की खुशहाली के लक्ष्य को फोकस रखते हुए केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बैठक की शुरुआत में कहा कि जब अंतिम पंक्ति का किसान समृद्ध बनेगा, तभी सही माने में विकसित भारत का संकल्प पूरा होगा.

इस चर्चा के दौरान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्र सरकार की बजट घोषणा (2025-26) की प्रमुख 4 घोषणाओं, जिस में दलहन में आत्मनिर्भरता, उच्च उपज वाले बीजों पर राष्ट्रीय मिशन, कपास उत्पादकता के लिए मिशन, फसलों के जर्म प्लाज्म के लिए जीन बैंक में तेजी से प्रगति के साथ काम करने को कहा.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अच्छी किस्म के बीज विकसित करने की दिशा में पूरी प्राथमिकता और समर्पण से काम करने का निर्देश दिया. दलहन में मेंड़ वाली किस्म विकसित करने पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि दलहन को बढ़ावा देने के लिए क्या वैज्ञानिक अप्रोच हो सकती है, इस दिशा में काम होना चाहिए.

सोयाबीन की खेती को बढ़ावा देने पर विशेष जोर देते हुए कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस दिशा में विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों और कृषि मंत्रियों के साथ बात की. उन्होंने सोयाबीन की खेती को खरीफ फसल की बोआई के दौरान बढ़ावा देने के लिए भरपूर प्रयास करने के लिए कहा और किसानों में सोयाबीन की पैदावार के प्रति रुचि बढ़ाने के लिए बड़े स्तर पर जन जागरूकता अभियान चलाने की बात भी कही.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि बीजों की नई किस्मों का विकास हो और ये किसानों तक जल्दी पहुंचे, इस बात की कोशिश होनी चाहिए. देशभर के बीज केंद्र प्रभावी भूमिका निभाते हुए काम करें. विशेषकर यह सुनिश्चित हो कि छोटे और सीमांत किसानों तक प्रौद्योगिकी का फायदा ज्यादा से ज्यादा और जल्दी पहुंचे.

मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि गेहूं और चावल के साथ दलहन, तिलहन व मोटे अनाजों की उपज पर भी जोर देने की जरूरत है. उन्होंने कीटनाशकों के सही उपयोग पर भी बल दिया. उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के संबंध में और अधिक अनुसंधान और शोध की जरूरत है. इस के साथ ही मिट्टी की जांच किसानों के अपने खेतों में ही करने के प्रयास होने चाहिए, ऐसा करने से किसानों में रुचिपूर्वक खेती करने की पहल में मदद मिलेगी.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ग्राम स्तर पर खेत से बाजार तक की श्रृंखला को व्यवस्थित करने की कोशिश पर भी बात की और कृषि समितियों की सक्रिय भूमिका को भी रेखांकित किया.

इस बैठक में फसल विज्ञान प्रभाग के बाद एनआरएम डिवीजन और कृषि विस्तार प्रभाग की प्रस्तुती भी हुई, जिस में विभिन्न विषयों पर विचारविमर्श किया गया. इस दौरान कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जलवायु परिवर्तन के अनुकूल खेती, छोटे किसानों के लिए मौडल फार्म विकसित करने, प्राकृतिक खेती के उत्पादों को राज्य सरकारों के साथ मिल कर प्रमाणित करने की व्यवस्था, छोटे किसानों को खेती के साथ ही पशुपालन, मत्स्यपालन, मधुमक्खीपालन से जोड़ने के प्रयास, चारा उत्पादन में वृद्धि के लिए संभावनाओं की तलाश, प्राकृतिक खेती के लिए विशेष किस्म के बीजों के उत्पादन पर भी जोर दिया.

इस के साथ ही शुष्क, बारानी कृषि प्रबंधन में ग्रामीण विकास मंत्रालय के समन्वय के साथ काम करने, मृदा स्वास्थ्य कार्ड और किसानों की आवश्यकताओं में जोड़ते हुए काम करने, बांस की खेती और जलवायु संरक्षण की दिशा में पेड़ उगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने, मृदा टैस्टिंग किट (मृदा परीक्षण), प्रौद्योगिकी के प्रभाव का प्रमाणिक मूल्यांकन, किसानों के उचित प्रशिक्षण व कौशल विकास, गैरसरकारी संगठनों की सहभागिता सहित केवीके की भूमिका को प्रभावशाली बनाने जैसे विषयों पर विस्तार से विचार व्यक्त किए और जरूरी निर्देश दिए.

Agriculture : खेतीकिसानी की उन्नति में केवीके की खास भूमिका

नई दिल्ली : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान बीते दिनों 28 अप्रैल को नई दिल्ली में देशभर के सभी 731 कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) से वर्चुअल संवाद किया. केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर आयोजित इस अभिनव संवाद कार्यक्रम में सभी केवीके के चल रहे प्रयासों, उन की भूमिका और भावी कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को ले कर चर्चा हुई. इस दौरान केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सभी केवीके से किसान उन्मुख प्रयासों में तेजी लाने की बात कही, साथ ही कहा कि खेतीकिसानी की उन्नति में केवीके सशक्त माध्यम के रूप में भूमिका निभाए.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि केवीके कृषि में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकते हैं. साथ ही, उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि खरीफ बोआई से पहले सभी केवीके और आईसीएआर, राज्य सरकारों के साथ मिल कर किसान जागरूकता अभियान चलाएं.

उन्होंने आगे प्राकृतिक खेती, जल संरक्षण और किसानों के हितों के मद्देनजर उत्पादकता बढ़ाने पर भी जोर दिया. साथ ही, उत्कृष्ट कार्य करने वाले केवीके को पुरस्कृत किए जाने के प्रस्ताव पर भी विचार हुआ.

इस चर्चा में देशभर के विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के प्रमुखों के साथ ही कृषि वैज्ञानिक शामिल हुए, जिन में से कुछ ने केवीके की उपलब्धियां बताईं, वहीं अपने सुझाव भी दिए. आईसीएआर कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, अटारी, जोधपुर (राजस्थान), अटारी, हैदराबाद (आंध्र प्रदेश), अटारी, पटना (बिहार), अटारी, जबलपुर (मध्य प्रदेश) के अलावा मंडी (हिमाचल प्रदेश), नंदूरबार (महाराष्ट्र), खुर्दा (ओडिशा), मोरीगांव (असम) और लक्षद्वीप के केवीके प्रमुखों ने अपनेअपने क्षेत्र विशेष के अनुसार अपने कामकाज, उपलब्धियों और भावी कार्य योजनाओं के बारे में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान को जानकारी दी. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के महानिदेशक डा. एमएल जाट और उपमहानिदेशक (प्रसार) डा. राजबीर सिंह ने प्रारंभ में केवीके के संबंध में रूपरेखा बताई.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि कृषि क्षेत्र के विकास के लिए अभियान स्वरूप कार्य करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि कृषि व्यापक क्षेत्र है. प्रत्यक्ष रूप से लगभग 45 फीसदी आबादी कृषि से जुड़ी है और हमारी जीडीपी का लगभग 18 फीसदी हिस्सा कृषि क्षेत्र से ही आता है, इसलिए इस व्यापक भूमिका को और अधिक मजबूत करने के लिए हमें लगातार प्रभावशाली प्रयास करने होंगे.

केवीके प्रमुखों को संबोधित करते हुए उन्होंने किसानों के क्षमता निर्माण प्रशिक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कृषि से जुड़े अच्छे प्रशिक्षण और जागरुकता के माध्यम से हम किसानों को आत्मनिर्भर और सशक्त बना सकते हैं. साथ ही, उन्होंने मृदा स्वास्थ्य कार्ड और किसान जागरूकता को जोड़ते हुए काम करने की नई पहल करने संबंधी विचार भी साझा किए और किसानों को मिट्टी गुणवत्ता बनाए रखने के लिए उवर्रक के संतुलित इस्तेमाल की मात्रा के अनुसार उचित सलाह देते हुए खेती करने की दिशा में आगे काम करने के लिए भी कहा.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि के लिए 6 सूत्रीय रणनीति, जिस में उत्पादन बढ़ाना, लागत घटाना, फसलों के ठीक दाम, नुकसान की भरपाई, खेती का विविधीकरण और प्राकृतिक खेती पर भी मार्गदर्शन दिया. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती में हमें उच्च मापदंड स्थापित कर के दिखाना है.

उन्होंने आगे कहा कि खाद्यान उत्पादन के लिए बेहतर बीजों, नए शोध, नई तकनीकों के प्रयोग पर बल दिया और इसी क्रम में और अधिक मौडल फार्म बनाने और नए किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) के माध्यम से भी किसानों को फायदा पहुंचाने के लिए प्रयास करने को कहा.

केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जल संरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ के लिए और अधिक प्रभावशाली रूप से भूमिका निभाने की जरूरत है. कम से कम पानी में अधिक से अधिक खेती की कोशिश होनी चाहिए.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि कृषि विज्ञान केंद्रों पर महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है और सभी को कार्य प्रदर्शन के पायदान पर ऊपर बने रहने के लक्ष्य के साथ काम करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अच्छा काम करने वाले केवीके को अगले साल से पुरस्कृत करने की व्यवस्था पर भी विचार की आवश्यकता है.

इस बैठक के अंत में केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केवीके प्रमुखों से काम को पूजा के रूप में स्वीकारते हुए परिणाम उन्मुख हो कर काम करने की बात कही. एक अभिनव पहल के रूप में इस साल 15 जून, 2025 को खरीफ फसल की बोआई से पहले किसानों की जागरुकता के लिए व्यापक जन अभियान चलाए जाने संबंधी प्रस्ताव पर भी विचार किया गया और विभिन्न कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से खरीफ बोआई संबंधित जानकारी देने के लिए सूचना प्रवाह माध्यम से अधिक से अधिक किसानों को जोड़ने संबंधी रूपरेखा पर चर्चा हुई.

कम पानी और कम लागत वाली प्रजातियां हों विकसित

मेरठ : सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डा. केके सिंह और द जिनोमिक फाउंडेशन, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. एनके सिंह ने शोध के क्षेत्र में काम करने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए. इस अवसर पर कुलपति प्रो. केके सिंह ने कहा कि जलवायु परिवर्तन को ध्यान में रखते हुए विज्ञान को शोध के काम करने होंगे.

उन्होंने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि नईनई प्रजातियों को विकसित किया जाए, जिस से कम पानी और कम लागत में किसानों को अच्छी उपज प्राप्त हो सके. हमारा प्रयास है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों को जल्द से जल्द नई प्रजातियां एवं तकनीकियां विकसित कर के दी जाएं, जिस से किसानों को लाभ हो सके.

द जिनोमिक फाउंडेशन के अध्यक्ष डा. एनके सिंह ने कहा कि जिनोम एडिटिंग के द्वारा नई प्रजातियों में जल्द से जल्द सुधार किया जा सकता है. इस क्षेत्र में वह विश्वविद्यालय के साथ मिल कर काम करेंगे, जिस से प्रजातियों को सुधारने और विकसित करने में कम समय लगेगा. वहीं प्रो. आरएस सेंगर ने बताया कि जिनोमिक फाउंडेशन के अध्यक्ष डा. एनके सिंह का धान अनुसंधान के क्षेत्र में और अरहर, आम डालनी फसलों आदि प्रजातियों के सीक्वेंस करने में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर योगदान दिया है.

अब इस का लाभ विश्वविद्यालय को भी मिल सकेगा, जिस का सीधा फायदा पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसानों का होगा. कुलपति प्रो. केके सिंह द्वारा उठाए गए इन कदमों से आने वाले समय में कृषि उत्पादन और अनुसंधान के क्षेत्र में एक नई दिशा मिल सकेगी. इस दौरान कुल सचिव डा. रामजी सिंह निदेशक शोध डा. कमल खिलाड़ी मौजूद रहे.

विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025: भारत के पशु चिकित्सकों को किया गया सम्मानित

नई दिल्ली :  मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग ने पिछले दिनों 26 अप्रैल, 2025 को नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय कार्यशाला के साथ विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025 मनाया गया. इस कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन व डेयरी और पंचायती राज मंत्री एसपी सिंह बघेल ने किया, जिन्होंने पशु चिकित्सा समुदाय को “ग्रामीण अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय जैव सुरक्षा की रीढ़” बताया.

उन्होंने आगे कहा, कि भारत में 536 मिलियन से अधिक पशुधन हैं, जो दुनिया में सब से अधिक हैं. लगभग 70  फीसदी  ग्रामीण परिवार आय, भोजन और सुरक्षा के लिए पशुओं पर निर्भर हैं. फिर भी, जो लोग सुनिश्चित करते हैं कि ये जानवर स्वस्थ रहें, वे शायद ही कभी सुर्खियों में आते हैं.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने आगे कहा, “स्वस्थ पशुओं के बिना स्वस्थ भारत नहीं है”. पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण, कौशल विकास को बढ़ाने और भारत की पशु स्वास्थ्य प्रणालियों को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

इस साल की थीम “पशु स्वास्थ्य के लिए एक टीम की आवश्यकता होती है” पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि एकीकृत पशु, मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए पशु चिकित्सकों, पैरापशु चिकित्सा कर्मचारियों, वैज्ञानिकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों के बीच सहयोगी प्रयासों को बढ़ाना होगा.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम जैसी प्रमुख पहलों पर प्रकाश डाला, जिस का उद्देश्य 2030 तक खुरपका और मुंहपका (एफएमडी) रोग को खत्म करना है.

उन्होंने आगे बताया कि देश में अब तक 114.56 करोड़ से अधिक एफएमडी टीके और 4.57 करोड़ ब्रुसेलोसिस टीके लगाए जा चुके हैं. राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम का लक्ष्य 2025 तक एफएमडी को नियंत्रित करना और टीकाकरण के माध्यम से 2030 तक इसे खत्म करना है.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने देश के पशुपालन क्षेत्र को मजबूत करने में पशुधन की देशी नस्लों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दे कर कहा कि ये नस्लें न केवल स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं, बल्कि टिकाऊ और लचीली पशुधन उत्पादन प्रणाली सुनिश्चित करने में भी अहम भूमिका निभाती हैं. इस के साथ ही, उन्होंने उन्नत प्रजनन तकनीकों को अपनाने के महत्व पर बल दिया, विशेष रूप से सैक्स सौर्टेड वीर्य का उपयोग, उत्पादकता और नस्ल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के सौ फीसदी  उपयोग को प्राप्त करने का लक्ष्य.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने ट्रैसबिलिटी और रोग निगरानी के लिए राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन (भारत पशुधन) जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों के उपयोग की तारीफ की. जूनोटिक रोगों के बढ़ते खतरे को संबोधित करते हुए उन्होंने भारत के वन हेल्थ दृष्टिकोण को अपनाने पर जोर दिया.

राष्ट्रीय कार्यशाला में वर्चुअली शामिल होते हुए पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) की सचिव अलका उपाध्याय ने भारत के पशु चिकित्सा पारिस्थितिकी तंत्र के व्यापक सुधार का आह्वान किया. विश्व पशु चिकित्सा दिवस, 2025 के कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पशु चिकित्सकों ने पशुधन उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिस से भारत विश्व स्तर पर सब से बड़ा डेयरी उत्पादक, टेबल अंडा उत्पादन में दूसरा और चौथा सब से बड़ा मांस उत्पादक बन गया है. साथ ही, भारत आईवीएफ, सैक्स सौर्टेड वीर्य, ​​​​मवेशी टीकाकरण और डेयरी उपकरण निर्माण जैसी उन्नत तकनीकों में आत्मनिर्भर बन गया है.

पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय ने देशभर में पशु चिकित्सा पेशेवरों की कमी पर भी ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने पशु चिकित्सा शिक्षा सीटों में वृद्धि, पशु चिकित्सा कालेजों में अत्याधुनिक सुविधाओं की स्थापना और छात्रों को सर्जरी और पशुधन चिकित्सा देखभाल में व्यावहारिक विशेषज्ञता प्रदान करने वाले पाठ्यक्रम का आग्रह किया और जूनोटिक बीमारियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए अलका उपाध्याय ने राज्यों में एक मजबूत निगरानी प्रणाली, समन्वित टीकाकरण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “पशु चिकित्सक राष्ट्रीय जैव सुरक्षा सुनिश्चित करने में रक्षा की पहली पंक्ति है.”

रोम से वर्चुअल माध्यम से शामिल होते हुए खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के सहायक महानिदेशक और मुख्य पशुचिकित्सक डा. थानावत तिएनसिन ने वैश्विक वन हेल्थ प्रयासों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना की और पशु स्वास्थ्य तैयारी के लिए महामारी कोष के तहत देश को हाल ही में मिली मान्यता की प्रशंसा की.

पशुपालन आयुक्त और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष डा. अभिजीत मित्रा ने सामूहिक टीकाकरण अभियान, बीमारी का जल्द पता लगाने और पशु स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम के उपयोग में भारत की प्रगति पर प्रकाश डाला.

उन्होंने खाद्य प्रणालियों के अदृश्य रक्षक और भविष्य की महामारियों के खिलाफ महत्वपूर्ण रक्षक के रूप में पशु चिकित्सकों की भूमिका पर जोर दिया. उन्होंने पशु कल्याण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच महत्वपूर्ण संबंध की ओर ध्यान आकर्षित किया और जोर दे कर कहा कि पशु कल्याण केवल करुणा का कार्य नहीं है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और स्वस्थ पशुधन सुनिश्चित करने के लिए एक बुनियादी स्तंभ है.

विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025 का इस साल का वैश्विक विषय “पशु स्वास्थ्य एक टीम लेता है” है, जो इस विचार को रेखांकित करता है कि पशु स्वास्थ्य एक एकल मिशन नहीं है, बल्कि यह पशु चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और किसानों को शामिल करने वाला एक सामूहिक राष्ट्रीय प्रयास है. इस कार्यक्रम ने पशु स्वास्थ्य की रक्षा में सहयोग की शक्ति पर प्रकाश डाला, यह पहचानते हुए कि पशु चिकित्सक, वैज्ञानिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और किसान एक मजबूत नेटवर्क बनाते हैं, जो न केवल पशुधन, बल्कि राष्ट्र के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था की सुरक्षा करता है.

इस कार्यशाला में पशुपालन में जेनेरिक दवाओं के उपयोग से पहुंच और सामर्थ्य में सुधार, एवियन इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों के जूनोटिक संचरण को रोकने में पशु चिकित्सक की भूमिका, एकीकृत रोग निगरानी को मजबूत करना और मानव और पशु स्वास्थ्य क्षेत्रों के बीच डेटा साझाकरण के साथसाथ एक आकर्षक औनलाइन राष्ट्रीय प्रश्नोत्तरी पर उच्च प्रभाव वाले तकनीकी सत्र शामिल थे.

इस कार्यक्रम में पशुपालन और डेयरी विभाग की अतिरिक्त सचिव वर्षा जोशी व अतिरिक्त सचिव डा. रमाशंकर सिन्हा के साथसाथ आईसीएआर, राष्ट्रीय पशु चिकित्सा परिषदों, एफएओ, डब्ल्यूओएएच, डब्ल्यूएचओ के अन्य वरिष्ठ अधिकारी और राष्ट्रीय शोध संस्थानों के निदेशक और कई पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों के कुलपतियों सहित कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों और हितधारकों ने भाग लिया.

इस कार्यक्रम में 250 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और पूरे भारत में इस का सीधा प्रसारण किया गया.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लिए प्राकृतिक बीज

Natural Farming: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय में ‘प्राकृतिक खेती’ (Natural Farming) विषय पर पिछले दिनों एक प्रशिक्षण आयोजित किया गया. इस प्रशिक्षण में भारतीय बीज निगम के चंडीगढ़, अहमदाबाद, जैतसर और सूरतगढ़ के अधिकारियों ने भाग लिया.

प्रशिक्षण के दौरान कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि किसी भी खेती का आधार बीज होता है, ऐसे में प्राकृतिक खेती के लिए प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए बीजों की उपलब्धता बहुत जरूरी है. इसीलिए यह विशेष प्रशिक्षण बीज उत्पादन करने वाली संस्थाओं के लिए आयोजित किया गया है.

उन्होंने आगे बताया कि हरित क्रांति से हम ने उत्पादन तो बढ़ाया, पर कैमिकलों के अंधाधुंध उपयोग के चलते प्रकृति एवं इनसानी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव का सामना भी किया है. अब समय है कि हम प्रकृति एवं इनसानी खाने पर कैमिकलों के प्रभाव को जितना हो सके उतना कम या फिर पूरी तरह से खत्म कर सकें.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि प्रकृति के अनुकूल कार्य करना ही हमारी संस्कृति है और  प्रकृति के प्रतिकूल काम करना ही विकृति है. प्राकृतिक खेती में कई नए आयाम को जोड़ कर इसे स्वीकार्य रूप प्रदान कर किसान भाइयों के लिए एक आसान पद्धति तैयार कर सकते हैं.

इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. शांति कुमार शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन, नई दिल्ली ने बताया कि प्राकृतिक खेती के प्रति लोगों के मन में कई भ्रांतियां रहती हैं, जिस का अनुसंधान के आधार पर हल करना बहुत जरूरी है.

Natural Farmingउन्होंने आगे बताया कि प्राकृतिक खेती के विचार का उद्भव बहुत समय पहले ही हो चुका है. अब इस को समाज में प्रभावी रूप से प्रचारित करने एवं अपनाने का वक्त है. यदि अब भी रसायनमुक्त खेती के प्रयास नहीं किए गए, तो यह प्रकृति के लिए बहुत ही नुकसानदायक हो सकता है. साथ ही, डा. शांति कुमार शर्मा ने राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक खेती के लिए किए गए प्रयासों की विस्तृत जानकारी दी.

अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा ने प्रशिक्षण की जानकारी देते हुए कहा कि उदयपुर केंद्र पर जैविक एवं प्राकृतिक खेती पर किए गए वृहद अनुसंधान कार्य का ही परिणाम है कि उदयपुर केंद्र राष्ट्र में इस प्रकार के प्रशिक्षण के लिए प्रथम स्थान पर चुना गया है.

डा. अरविंद वर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रशिक्षण में प्राकृतिक खेती पर व्याख्यान एवं प्रायोगिक रूप से प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिस से प्राकृतिक बीज उत्पादन श्रृंखला को बल मिलेगा.

प्रशिक्षण प्रभारी डा. रविकांत शर्मा ने प्रशिक्षण का प्रारूप रखा और वहां पधारे अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया.