विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025: भारत के पशु चिकित्सकों को किया गया सम्मानित

नई दिल्ली :  मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के तहत पशुपालन और डेयरी विभाग ने पिछले दिनों 26 अप्रैल, 2025 को नई दिल्ली में एक राष्ट्रीय कार्यशाला के साथ विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025 मनाया गया. इस कार्यक्रम का उद्घाटन केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन व डेयरी और पंचायती राज मंत्री एसपी सिंह बघेल ने किया, जिन्होंने पशु चिकित्सा समुदाय को “ग्रामीण अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय जैव सुरक्षा की रीढ़” बताया.

उन्होंने आगे कहा, कि भारत में 536 मिलियन से अधिक पशुधन हैं, जो दुनिया में सब से अधिक हैं. लगभग 70  फीसदी  ग्रामीण परिवार आय, भोजन और सुरक्षा के लिए पशुओं पर निर्भर हैं. फिर भी, जो लोग सुनिश्चित करते हैं कि ये जानवर स्वस्थ रहें, वे शायद ही कभी सुर्खियों में आते हैं.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने आगे कहा, “स्वस्थ पशुओं के बिना स्वस्थ भारत नहीं है”. पशु चिकित्सा बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण, कौशल विकास को बढ़ाने और भारत की पशु स्वास्थ्य प्रणालियों को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता पर जोर दिया.

इस साल की थीम “पशु स्वास्थ्य के लिए एक टीम की आवश्यकता होती है” पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि एकीकृत पशु, मानव और पर्यावरणीय स्वास्थ्य सुनिश्चित करने के लिए पशु चिकित्सकों, पैरापशु चिकित्सा कर्मचारियों, वैज्ञानिकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य पेशेवरों के बीच सहयोगी प्रयासों को बढ़ाना होगा.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम के तहत राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम जैसी प्रमुख पहलों पर प्रकाश डाला, जिस का उद्देश्य 2030 तक खुरपका और मुंहपका (एफएमडी) रोग को खत्म करना है.

उन्होंने आगे बताया कि देश में अब तक 114.56 करोड़ से अधिक एफएमडी टीके और 4.57 करोड़ ब्रुसेलोसिस टीके लगाए जा चुके हैं. राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम का लक्ष्य 2025 तक एफएमडी को नियंत्रित करना और टीकाकरण के माध्यम से 2030 तक इसे खत्म करना है.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने देश के पशुपालन क्षेत्र को मजबूत करने में पशुधन की देशी नस्लों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दे कर कहा कि ये नस्लें न केवल स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल हैं, बल्कि टिकाऊ और लचीली पशुधन उत्पादन प्रणाली सुनिश्चित करने में भी अहम भूमिका निभाती हैं. इस के साथ ही, उन्होंने उन्नत प्रजनन तकनीकों को अपनाने के महत्व पर बल दिया, विशेष रूप से सैक्स सौर्टेड वीर्य का उपयोग, उत्पादकता और नस्ल की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) के सौ फीसदी  उपयोग को प्राप्त करने का लक्ष्य.

मंत्री एसपी सिंह बघेल ने ट्रैसबिलिटी और रोग निगरानी के लिए राष्ट्रीय डिजिटल पशुधन मिशन (भारत पशुधन) जैसे डिजिटल प्लेटफार्मों के उपयोग की तारीफ की. जूनोटिक रोगों के बढ़ते खतरे को संबोधित करते हुए उन्होंने भारत के वन हेल्थ दृष्टिकोण को अपनाने पर जोर दिया.

राष्ट्रीय कार्यशाला में वर्चुअली शामिल होते हुए पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) की सचिव अलका उपाध्याय ने भारत के पशु चिकित्सा पारिस्थितिकी तंत्र के व्यापक सुधार का आह्वान किया. विश्व पशु चिकित्सा दिवस, 2025 के कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पशु चिकित्सकों ने पशुधन उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिस से भारत विश्व स्तर पर सब से बड़ा डेयरी उत्पादक, टेबल अंडा उत्पादन में दूसरा और चौथा सब से बड़ा मांस उत्पादक बन गया है. साथ ही, भारत आईवीएफ, सैक्स सौर्टेड वीर्य, ​​​​मवेशी टीकाकरण और डेयरी उपकरण निर्माण जैसी उन्नत तकनीकों में आत्मनिर्भर बन गया है.

पशुपालन और डेयरी विभाग की सचिव अलका उपाध्याय ने देशभर में पशु चिकित्सा पेशेवरों की कमी पर भी ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने पशु चिकित्सा शिक्षा सीटों में वृद्धि, पशु चिकित्सा कालेजों में अत्याधुनिक सुविधाओं की स्थापना और छात्रों को सर्जरी और पशुधन चिकित्सा देखभाल में व्यावहारिक विशेषज्ञता प्रदान करने वाले पाठ्यक्रम का आग्रह किया और जूनोटिक बीमारियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए अलका उपाध्याय ने राज्यों में एक मजबूत निगरानी प्रणाली, समन्वित टीकाकरण कार्यक्रमों की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने निष्कर्ष निकाला, “पशु चिकित्सक राष्ट्रीय जैव सुरक्षा सुनिश्चित करने में रक्षा की पहली पंक्ति है.”

रोम से वर्चुअल माध्यम से शामिल होते हुए खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के सहायक महानिदेशक और मुख्य पशुचिकित्सक डा. थानावत तिएनसिन ने वैश्विक वन हेल्थ प्रयासों में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका की सराहना की और पशु स्वास्थ्य तैयारी के लिए महामारी कोष के तहत देश को हाल ही में मिली मान्यता की प्रशंसा की.

पशुपालन आयुक्त और भारतीय पशु कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष डा. अभिजीत मित्रा ने सामूहिक टीकाकरण अभियान, बीमारी का जल्द पता लगाने और पशु स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने के लिए डिजिटल ट्रैकिंग सिस्टम के उपयोग में भारत की प्रगति पर प्रकाश डाला.

उन्होंने खाद्य प्रणालियों के अदृश्य रक्षक और भविष्य की महामारियों के खिलाफ महत्वपूर्ण रक्षक के रूप में पशु चिकित्सकों की भूमिका पर जोर दिया. उन्होंने पशु कल्याण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के बीच महत्वपूर्ण संबंध की ओर ध्यान आकर्षित किया और जोर दे कर कहा कि पशु कल्याण केवल करुणा का कार्य नहीं है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और स्वस्थ पशुधन सुनिश्चित करने के लिए एक बुनियादी स्तंभ है.

विश्व पशु चिकित्सा दिवस 2025 का इस साल का वैश्विक विषय “पशु स्वास्थ्य एक टीम लेता है” है, जो इस विचार को रेखांकित करता है कि पशु स्वास्थ्य एक एकल मिशन नहीं है, बल्कि यह पशु चिकित्सकों, वैज्ञानिकों, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों और किसानों को शामिल करने वाला एक सामूहिक राष्ट्रीय प्रयास है. इस कार्यक्रम ने पशु स्वास्थ्य की रक्षा में सहयोग की शक्ति पर प्रकाश डाला, यह पहचानते हुए कि पशु चिकित्सक, वैज्ञानिक, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ और किसान एक मजबूत नेटवर्क बनाते हैं, जो न केवल पशुधन, बल्कि राष्ट्र के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था की सुरक्षा करता है.

इस कार्यशाला में पशुपालन में जेनेरिक दवाओं के उपयोग से पहुंच और सामर्थ्य में सुधार, एवियन इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों के जूनोटिक संचरण को रोकने में पशु चिकित्सक की भूमिका, एकीकृत रोग निगरानी को मजबूत करना और मानव और पशु स्वास्थ्य क्षेत्रों के बीच डेटा साझाकरण के साथसाथ एक आकर्षक औनलाइन राष्ट्रीय प्रश्नोत्तरी पर उच्च प्रभाव वाले तकनीकी सत्र शामिल थे.

इस कार्यक्रम में पशुपालन और डेयरी विभाग की अतिरिक्त सचिव वर्षा जोशी व अतिरिक्त सचिव डा. रमाशंकर सिन्हा के साथसाथ आईसीएआर, राष्ट्रीय पशु चिकित्सा परिषदों, एफएओ, डब्ल्यूओएएच, डब्ल्यूएचओ के अन्य वरिष्ठ अधिकारी और राष्ट्रीय शोध संस्थानों के निदेशक और कई पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों के कुलपतियों सहित कई प्रतिष्ठित व्यक्तियों और हितधारकों ने भाग लिया.

इस कार्यक्रम में 250 से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया और पूरे भारत में इस का सीधा प्रसारण किया गया.

प्राकृतिक खेती और जरूरी संसाधनों को सहजने पर रहेगा केवीके का फोकस

Natural Farming :  अनुसंधान निदेशक महाराणा प्रताप कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमपीयूएटी) डा. अरविंद वर्मा ने कहा कि आज भारत खाद्यान्न उत्पादन में 6.5 गुणा वृद्धि के साथ आत्मनिर्भर की श्रेणी में खड़ा है, लेकिन हमें  यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जनसंख्या के मामले में भी हम विश्व में अव्वल हैं. खाद्यान्न के साथसाथ दुधत्पादन , तिलहनदलहन उत्पादन में भी हम ने काफी वृद्धि की है, लेकिन यह काफी नहीं है. अब समय आ गया है कि हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को सहेजते हुए प्राकृतिक खेती की जड़ों को मजबूत करें.

डा. अरविंद वर्मा पिछले दिनों मंगलवार को एमपीयूएटी में प्रसार शिक्षा निदेशालय सभागार में कृषि विज्ञान केंद्रों की सालाना कार्य योजना 2025-26 की समीक्षा के लिए आयोजित कार्यशाला को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित किया. डा. अरविंद वर्मा का कहना था कि प्राकृतिक खेती भारत सरकार की 2,481 करोड़ रुपए की एक महत्त्वपूर्ण परियोजना है. जिसे साल 2025-26 तक एक करोड़ किसानों तक पहुंचाने का लक्ष्य है. मिट्टी को जीवंत बनाए रखने के लिए कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ानी होगी. हमारे देश की भूमि पर आज 52 हजार 500 मैट्रिक टन रसायनों की खपत हो रही है, जो कि काफी चिंता की बात है. आज आलम यह है कि कई जीवजंतु विलुप्त हो चुके हैं, जो प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने के लिए बहुत आवश्यक है.

इस कार्यक्रम के अध्यक्ष अटारी जोधपुर के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने कहा कि प्रकृति ने हमें हवा, पानी, मिट्टी, पेड़पौधे, जीवजंतु की अनूठी सौगात दी है. हमारे पास जल काफी सीमित मात्रा में है. धरती माता को दुबारा वास्तविक स्वरूप में लाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों को यह साल प्राकृतिक खेती को समर्पित करना होगा. साथ ही किसानों को भी प्रेरित करना होगा कि वे प्राकृतिक खेती को अपनाएं. रासायन मुक्त खेती या बहुत ही कम रासायन युक्त खेती ही आगे का लक्ष्य होना चाहिए. केवीके को मौका मिल रहा हैं तो वे लीक से हट कर सर्वोत्तम लक्ष्य का चयन करे और कड़ी मेहनत से काम करें तभी किसानों और इस देश का भला होगा. उन्होंने नेचर पौजिटिव, मार्केट पौजिटिव और जेंडर पौजिटिव एग्रीकल्चर पर जोर दिया.

इस कार्यक्रम के आरंभ में प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने अतिथियों का स्वागत करते हुए बताया कि साल 2025-26 केवीके के लिए चुनौतीपूर्ण है, लेकिन वरिष्ठ वैज्ञानिक व प्रभारी हर चुनौती पर खरे उतरेंगे. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद – कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान जोनद्वितीय जोधपुर (अटारी) एवं महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला में संभाग में कार्य कर रहे 9 कृषि विज्ञान केंद्रों के वरिष्ठ वैज्ञानिकों व प्रभारियों ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से किसानों के लिए चलाई जा रही गतिविधियों पर प्रकाश डाला. इस के साथ ही, साल 2025-26 में केवीके की क्या तैयारी है और  किसानों के लिए क्या नए कार्यक्रम व अनुसंधान शुरू किए जाएंगे, इस पर पूरा रोडमैप सामने रखा.

इस कार्यशाला में राजूवास बीकानेर में पशुपालन विभाग में प्रो. डा. आरके नागदा ने कहा कि कृषि और पशुपालन विकास की बैलगाड़ी के दो पहिए हैं. कृषि विज्ञान केंद्रों को पशुपालन से जुड़ी योजनाओं को भी बढ़ावा देना होगा तभी कृषि में हम बेहतर परिणाम दे पाएंगे.

Natural Farmingइस कार्यक्रम के तकनीकी सत्र में केवीके बांसवाड़ा के वैज्ञानिक व प्रभारी डा. बीएस भाटी, भीलवाड़ा प्रथम व द्वितीय- डा. सीएम यादव, केवीके चित्तौड़गढ़- डा. आरएल सौलंकी, डूंगरपुर- डा. सीएम बलाई, प्रतापगढ़- डा. योगेश कनोजिया, केवीके राजसमंद- डा. पीसी रेगर, केवीके उदयपुर डा. मणीराम ने साल 2025-26 की सालाना कार्य योजना प्रस्तुत की.

इस के बाद अटारी जोधपुर के निदेशक डा. जेपी मिश्रा ने प्रेजेंटेशन के माध्यम से आगामी साल 2025-26 में विभिन्न क्षेत्रो में अनुसंधान की आवश्यकता के बारे में बताते हुए कहा कि सभी कृषि विज्ञान केंद्रों को एकजुट हो कर कार्य करना होगा.

इस कार्यक्रम में अटारी जोघपुर के डा. पीपी रोहिला, डा. डीएल जांगिड़, डा. एमएस मीणा, डा. एचएच मीणा, प्रो. एसके इंटोदिया, डा. एसएस लखावत और डा. रमेश बाबू ने भी अपने विचार रखे. डा. राजीव बैराठी ने धन्यवाद ज्ञापित किया व कार्यक्रम का संचालन डा. लतिका व्यास ने किया.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) के लिए प्राकृतिक बीज

Natural Farming: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशालय में ‘प्राकृतिक खेती’ (Natural Farming) विषय पर पिछले दिनों एक प्रशिक्षण आयोजित किया गया. इस प्रशिक्षण में भारतीय बीज निगम के चंडीगढ़, अहमदाबाद, जैतसर और सूरतगढ़ के अधिकारियों ने भाग लिया.

प्रशिक्षण के दौरान कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि किसी भी खेती का आधार बीज होता है, ऐसे में प्राकृतिक खेती के लिए प्राकृतिक रूप से तैयार किए गए बीजों की उपलब्धता बहुत जरूरी है. इसीलिए यह विशेष प्रशिक्षण बीज उत्पादन करने वाली संस्थाओं के लिए आयोजित किया गया है.

उन्होंने आगे बताया कि हरित क्रांति से हम ने उत्पादन तो बढ़ाया, पर कैमिकलों के अंधाधुंध उपयोग के चलते प्रकृति एवं इनसानी सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव का सामना भी किया है. अब समय है कि हम प्रकृति एवं इनसानी खाने पर कैमिकलों के प्रभाव को जितना हो सके उतना कम या फिर पूरी तरह से खत्म कर सकें.

डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि प्रकृति के अनुकूल कार्य करना ही हमारी संस्कृति है और  प्रकृति के प्रतिकूल काम करना ही विकृति है. प्राकृतिक खेती में कई नए आयाम को जोड़ कर इसे स्वीकार्य रूप प्रदान कर किसान भाइयों के लिए एक आसान पद्धति तैयार कर सकते हैं.

इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डा. शांति कुमार शर्मा, सहायक महानिदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन, नई दिल्ली ने बताया कि प्राकृतिक खेती के प्रति लोगों के मन में कई भ्रांतियां रहती हैं, जिस का अनुसंधान के आधार पर हल करना बहुत जरूरी है.

Natural Farmingउन्होंने आगे बताया कि प्राकृतिक खेती के विचार का उद्भव बहुत समय पहले ही हो चुका है. अब इस को समाज में प्रभावी रूप से प्रचारित करने एवं अपनाने का वक्त है. यदि अब भी रसायनमुक्त खेती के प्रयास नहीं किए गए, तो यह प्रकृति के लिए बहुत ही नुकसानदायक हो सकता है. साथ ही, डा. शांति कुमार शर्मा ने राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक खेती के लिए किए गए प्रयासों की विस्तृत जानकारी दी.

अनुसंधान निदेशक डा. अरविंद वर्मा ने प्रशिक्षण की जानकारी देते हुए कहा कि उदयपुर केंद्र पर जैविक एवं प्राकृतिक खेती पर किए गए वृहद अनुसंधान कार्य का ही परिणाम है कि उदयपुर केंद्र राष्ट्र में इस प्रकार के प्रशिक्षण के लिए प्रथम स्थान पर चुना गया है.

डा. अरविंद वर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रशिक्षण में प्राकृतिक खेती पर व्याख्यान एवं प्रायोगिक रूप से प्रशिक्षण दिया जाएगा, जिस से प्राकृतिक बीज उत्पादन श्रृंखला को बल मिलेगा.

प्रशिक्षण प्रभारी डा. रविकांत शर्मा ने प्रशिक्षण का प्रारूप रखा और वहां पधारे अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया.

Agriculture Sector : कृषि क्षेत्र को बनाएं रोजगार, मौके हैं हजार

Agriculture Sector: 12वीं की परीक्षा का रिजल्ट जल्दी ही घोषित होने वाला है. छात्र और अभिभावक 12वीं के रिजल्ट आ जाने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए  सोचते हैं. तब तक अच्छे संस्थान में प्रवेश की प्रक्रिया पूरी हो चुकी होती है. इसी को ध्यान में रखते हुए बाबा राघव दास कृषक इंटर कालेज भाटपार रानी के सभा  कक्ष में 12वीं के छात्रों एवं अध्यापकों के साथ एक कैरियर काउंसिल किया गया.

इस कैरियर काउंसिल में आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, अयोध्या की प्रोफैसर डा. सुमन प्रसाद मौर्य, अध्यक्ष, मानव विकास एवं परिवार अध्ययन ने  छात्रों से उन के भविष्य  की पढ़ाई के बारे में  बताया कि छात्र आगे की पढ़ाई कृषि विश्वविद्यालयों  में कर सकते हैं. आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या, उत्तर प्रदेश के 5 कृषि विश्वविद्यालयों में से एक है, जिस को  A++ मिला है.

इस विश्वविद्यालय का  कार्यक्षेत्र पूर्वांचल है, जहां कृषि, उद्यान एवं वानिकी,  मत्स्यपालन, पशुपालन एवं पशु चिकित्सा, कृषि अभियंत्रण   के अलावा सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय भी है. इस महाविद्यालय में स्नातक, परास्नातक एवं पीएचडी की उपाधि के लिए विभिन्न पाठ्यक्रम चलाए जाते हैं.

Agriculture Sector

हर साल इस डिगरी कोर्स में नामांकन के लिए यूपी कैटेट (UP CATET) की संयुक्त परीक्षा होती है. इस के लिए मार्च महीने से ही औनलाइन आवेदन शुरू हो जाते हैं.  आवेदन की अंतिम तारीख 7 मई, 2025 है. यह आवेदन https//updated.net  पर किए जा सकते हैं.

प्रो. सुमन प्रसाद मौर्य ने छात्रछात्राओं को समझाया कि सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय में बीएससी आनर्स के  2 पाठ्यक्रम चलते हैं, जिन की अवधि 4 साल की है. पहला पाठ्यक्रम सामुदायिक विज्ञान (गृह विज्ञान) का है, जिस में गृह विज्ञान के 5 प्रमुख विषयों के विभागों द्वारा वैज्ञानिक एवं कलात्मक ज्ञान एवं कौशल सिखाए जाते हैं.

दूसरा फूड एवं  डाइटिशियन का कोर्स है. इस कोर्स में आहार विज्ञान में रोगियों के उपचार  के बारे में बताया जाता है. यह 4 वर्षीय डिगरी कार्यक्रम व्यावसायिक उपाधि है. इस में वे अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं.

शोध में इच्छुक छात्राएं आगे अपने पसंद के विषय पढ़ सकती  हैं. प्रवेश परीक्षा  आवेदन की प्रक्रिया के बारे में संपूर्ण जानकारी  गूगल पर यूपी कैटेट 2025 सर्च कर आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय की साइट पर जा कर इस की विवरण पत्रिका को डाउनलोड कर सकते हैं.

यह विवरणिका चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर, उत्तर प्रदेश द्वारा निकाला गया है, क्योंकि इस बार की  संयुक्त परीक्षा वे संचालित कर रहे हैं. इस विवरणिका में प्रवेश परीक्षा, विश्वविद्यालय के संबंध में, औनलाइन आवेदन की पद्धति, परीक्षा की पद्धति, पाठ्यक्रमवार सीटों की संख्या एवं काउंसलिंग की पद्धति के बारे में विस्तार से दिया गया है.

इस के साथ ही प्रो. सुमन प्रसाद मौर्य ने तैयारी के टिप्स भी दिए. प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी  के निदेशक प्रोफैसर रवि प्रकाश मौर्य ने एडमिशन कैरियर के साथसाथ जैविक खेती, पोषण वाटिका पर प्रकाश डाला.

कालेज के प्रधानाचार्य भानु प्रताप सिंह ने छात्रों के साथसाथ  अध्यापकों को भी कहा कि आप सभी कृषि क्षेत्र में बच्चों को अच्छे संस्थानों में नामांकन के लिए प्रोत्साहित करें, जिस से बच्चे अच्छे विश्वविद्यालय से पढ़ कर एक अच्छा नागरिक बनने के साथसाथ  रोजगार भी पा सकें.

DAP Bags : किसानों को डीएपी की बोरी 1350 रूपए में मिलेगी

DAP Bags : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फास्फेटिक और पोटासिक उर्वरकों पर खरीफ सीजन, 2025 (01.04.2025 से 30.09.2025 तक) के लिए पोषक तत्व आधारित सब्सिडी  दरें तय करने के लिए उर्वरक विभाग के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. खरीफ सीजन 2025 के लिए बजटीय आवश्यकता लगभग 37,216.15 करोड़ रुपए होगी. यह रबी सीजन 2024-25 के लिए बजटीय आवश्यकता से लगभग 13,000 करोड़ रुपए अधिक है.

कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के इस  फैसले पर कहा कि मोदी सरकार निरंतर किसानों की आय बढ़ाने के प्रयास में लगी है. किसानों की आय बढ़ाने के साथ उत्पादन बढ़ाना भी ज़रूरी है और उत्पादन बढ़ाने के लिए फर्टिलाइजर या खाद की आवश्यकता पर भी ध्यान देना होगा.

उन्होंने आगे कहा कि उत्पादन बढ़ने के साथ ही फर्टिलाइजर की कीमतें भी नियंत्रित रहे, यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता रही है. किसानों पर फर्टिलाइजर विशेषकर डीएपी की बढ़ी हुई लागत का बोझ न आए इसलिए सरकार बढ़ी हुई कीमतों का भार उठाने के लिए विशेष पैकेज देती है.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार किसान हितैषी सरकार है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने 1350 रूपए प्रति बोरी कीमत तय की है, ताकि किसानों को अधिक कीमत न देनी पड़े इस के लिए भारी सब्सिडी किसानों को दी जा रही है.

उन्होंने बताया कि इस साल भी लगभग 1लाख 75 हजार करोड़ रूपए की सब्सिडी किसानों को सस्ती खाद उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने दी है. अब किसानों को डीएपी की बोरी 1350 रूपए में ही मिलेगी. खरीफ के सीजन में ही सस्ती डीएपी देने के लिए 37 हजार 216 करोड़ रूपए विशेष रूप से सब्सिडी दी जाएगी.

इस के साथ ही किसानों के पक्ष में आयातनिर्यात नीति में परिवर्तन किया गया है, चना उत्पादक किसानों के लिए चने पर 10  फीसदी आयात शुल्क लागू करने के फैसले की अधिसूचना कल केंद्र सरकार ने जारी कर दी है, जिस से चना  उत्पादक किसानों को लाभ होगा.

केंद्र सरकार के इस निर्णय पर कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि 10 फीसदी आयात शुल्क लगाने के कारण सस्ता चना विदेश से नहीं आएगा. इस से हमारे किसानों को उन की उपज का बाजार में सही दाम मिलेगा.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बताया कि इस साल चने का भी बंपर उत्पादन हुआ है. कृषि के 2024-25 के अग्रिम अनुमान के अनुसार चने का उत्पादन 115 लाख मीट्रिक टन से अधिक होगा जबकि पिछले साल 110 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था.

सरकार ने ऐसे अनेकों किसान हितैषी फैसले किए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मंत्र है, कि किसानों को उस के उत्पादन के ठीक दाम दें, इसलिए न केवल उत्पादन की लागत पर 50 फीसदी लाभ दे कर न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी घोषित की जाती है बल्कि, खरीदने की भी उचित व्यवस्था की जाती है.

किसान के उत्पाद की कीमत घटने पर हम आयातनिर्यात नीति को भी किसान हितैषी बनाते हैं. उन्होंने बताया कि पिछले दिनों आयतित मसूर आई थी. जिस पर जीरो फीसदी आयात शुल्क था. जिस से कीमतें कम होती और किसान को घाटा होता. इसलिए, सरकार ने फैसला किया कि आयतित मसूर पर आयात शुल्क 11 फीसदी वसूली जाएगी.

Group Working : समूह बना कर करेंगे काम, कमाएंगे दाम

उदयपुर : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी राजेंद्र नगर, हैदराबाद, तेलंगाना की ओर से महाराणा प्रताप कृषि एंव प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रसार शिक्षा निदेशालय में ‘श्रीअन्न का प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन एवं निर्यात’ विषय पर पांचदिवसीय महिला प्रशिक्षण कार्यक्रम पिछले दिनों संपन्न हुआ. प्रशिक्षण में बांसवाड़ा, राजसमंद व उदयपुर जिले की 30 महिलाओं ने हिस्सा लिया.

अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत कौशल विकास प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल महिलाओं को पिछले दिनों 25 से 29 मार्च तक विशेषज्ञों ने ‘श्रीअन्न’ के विभिन्न बेकरी आइटम जैसे रागी केक, ज्वार डोनट्स, ओट्स कुकीज, ज्वार ब्रेड, बाजरा लड्डू, ज्वार पापड़, कांगणी नमकीन, बाजरा लच्छा परांठा, ज्वार नान, कांगणी के लड्डू व सावां के फ्राइम, ब्राउनी, कप केक आदि लगभग दो दर्जन खाद्य वस्तुओं को न केवल बनाना सीखा, बल्कि समूह बना कर इन चीजों से कमाई करने का संकल्प लिया.

प्रशिक्षणार्थियों को विशेषज्ञ वेलेंटीना ने केक, कुकीज, ब्राउनी, कप केक बनाना सिखाया, वहीं विजयलक्ष्मी ने पापड़, पापड़ी, लड्डू बनाना सिखाया. हजारी लाल ने नान, बाजरा नान, ज्वार नान व नूडल्स बनाना सिखाया.

एमपीयूएटी में पादप अनुवांशिकी विभाग की हेड प्रो. हेमलता शर्मा ने प्रशिक्षणार्थियों को ‘श्रीअन्न’ यानी मोटे अनाज में मौजूद पोषक तत्वों के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने आह्वान किया कि वे मोटे अनाज को नियमित आहार के काम में लें.

निदेशालय सभागार में आयोजित समापन समारोह में मुख्य अतिथि पूर्व निदेशक प्रसार शिक्षा निदेशालय डा. आईजे माथुर ने कहा कि प्रशिक्षण के दौरान जो भी बेकरी उत्पाद बनाना सीखे हैं, इसे अब व्यवसायिक स्तर पर बनाएं. महिला समूह बना कर अपने उत्पाद बेकरी संस्थानों को दे और मुनाफा कमाएं.

Group Work

कभी मोटे अनाज (श्रीअन्न) यानी बाजरा, ज्वार, रागी, कांगणी, सावां, चीना आदि को ‘गरीबों का भोजन’ माना जाता था, लेकिन आज अमीर आदमी मोटे अनाज के पीछे भाग रहा है. मोटे अनाज में तमाम रोगों को रोकने संबंधी पोषक तत्वों की भरमार है, इसलिए लोग ‘श्रीअन्न’ को अपने भोजन में शामिल करने लगे हैं.

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रबंधन अकादमी, राजेंद्र नगर, हैदराबाद के संयुक्त निदेशक डा. गोपाल लाल ने कहा कि लोगों को मोटे अनाज का महत्व समझ में आने लगा है और ‘श्रीअन्न’ की मांग भी बढ़ी है. प्रशिक्षण का ध्येय भी यही है कि सुदूर गांवों के समाज के कमजोर तबके की युवा महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़े और वे अपने क्षेत्र में नया र्स्टाटअप शुरू कर सकें.

कार्यकम के आरंभ में निदेशक प्रसार शिक्षा निदेशालय, एमपीयूएटी डा. आरएल सोनी ने प्रतिभागी महिलाओं से आह्वान किया कि अपनेअपने गांव पंहुच कर सब से पहले ‘श्रीअन्न’ के विविध उत्पाद बना कर खुद तो खाएं ही, साथ ही पड़ोसियों व मेहमानों को खिलाएं.

इस के बाद समूह बना कर बड़े पैमाने पर उत्पादन कर स्वरोजगार से जुड़ें. खाद्यान्न उत्पादन में हमारा देश आत्मनिर्भर है, वहीं फलसब्जी व दूध उत्पादन में भी देश शीर्ष पर है. कमी केवल प्रसंस्करण यानी प्रोसैसिंग की है. प्रोसैसिंग की उचित व्यवस्था न होने से बड़ी मात्रा में फलसब्जी बेकार हो जाती है.

हैदराबाद से आए प्रमुख वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष एससीएसपी योजना डा. एम. बालाकृष्णन ने कहा कि बाजरा उत्पादन में राजस्थान का नाम देश में अव्वल है. बाजरा डायबिटीज को नियंत्रण में करने का अच्छा माध्यम है. महिलाएं बाजरा व्यंजन बना कर नया धंधा शुरू कर सकती है.

प्रशिक्षण प्रभारी व कार्यक्रम संचालक डा. लतिका व्यास ने बताया कि प्रतिभागी महिलाओं को एक मुफ्त किट, जिस में 3 जार मिक्सर, आलू चिप्स मेकर प्रदान किए गए. साथ ही, मिलेट्स रेसिपी की बुकलेट भी दी गई.

Agricultural training : पारंपरिक कलाओं के साथ महिलाओं को कृषि प्रशिक्षण

Agricultural training : राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, कृषि विभाग, जयपुर एवं अखिल भारतीय कृषिरत महिला अनुसंधान परियोजना, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में झाड़ोल व फलासिया के 10 स्वयं सहायता समूह की लगभग 150 महिला सदस्यों एवं गुडली व लोयरा की 75 महिला सदस्यों ने गत एक माह में राजस्थान की पारंपरिक कला के साथ कृषि के विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण जैसे मशरूम की खेती, वर्मी कंपोस्ट, बकरी पालन व मुर्गी पालन पर पूर्णतया प्रायोगिक प्रशिक्षण प्राप्त किए.

परियोजना प्रभारी डा. विशाखा बंसल ने बताया कि राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत उन का लक्ष्य साल 2025 से 2027 तक झाड़ोल व फलासिया की 150 महिलाओं को स्वयं सहायता समूह में गठित कर विभिन्न रोजगारों के प्रशिक्षण उपलब्ध करवा कर स्वरोजगार के लिए प्रेरित करना व स्वयं का रोजगार स्थापित करने में सहायता करना है.

योजना के अंतर्गत अब तक 10 स्वयं सहायता समूहों का गठन कर उन को बैंक से जोड़ दिया गया है और सभी सदस्यों को 5 विधाओं में दो दिवसीय प्राथमिक प्रशिक्षणों के माध्यम से प्रशिक्षित किया जा चुका है.

साल 2026 में इन सभी सदस्यों को स्वरोजगार करने के लिए निरंतर फालोअप प्रशिक्षणों एवं तकनीकी मार्गदर्शन द्वारा प्रेरित किया जाएगा. साथ ही, रोजगार प्रारंभ करने के लिए प्रतापधन किस्म के मुर्गी के चूजों की 20 यूनिट, सिरोही नस्ल के तीन बकरे, मशरूम की 30 यूनिट एवं वर्मी कंपोस्ट की 30 यूनिट प्रोत्साहन स्वरूप दिए जाएंगे. जिस से कि यह महिलाएं सीधे ही स्वरोजगार से जुड़ पाएंगी.

राजस्थान की बांधनी कला के बढ़ते आकर्षण के कारण इस कला का दो दिवसीय प्रायोगिक प्रशिक्षण पिछले दिनों 24 और 25 मार्च, 2025 को अनुसंधान निदेशालय में आयोजित किया गया. यह प्रशिक्षण ख्याति प्राप्त याकूब मोहम्मद मुल्तानी व अंजुम आरा, केंद्रीय सरकार से मान्यता प्राप्त (सीसीआरटी) द्वारा प्रदान किया गया.

प्रशिक्षण में अनुसूचित जनजाति बाहुल्य क्षेत्र झाड़ोल की 30 महिला सदस्यों ने बहुत ही उत्साहपूर्वक भाग लिया. प्रशिक्षण कार्यक्रम में कार्तिक सालवी, प्रमोद कुमार, डा. वंदना जोशी, डा. कुसुम शर्मा व अनुष्का तिवारी का विशेष सहयोग रहा.

Seed Technology : उन्नत बीज तकनीकों का प्रदर्शन

Seed Technology |  भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संभाग द्वारा “बीज गुणवत्ता नियंत्रण के लिए उन्नत प्रौद्योगिकियां” विषय पर एकदिवसीय प्रक्षेत्र दिवस का आयोजन पिछले दिनों 25, मार्च 2025 को भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की अनुसूचित जाति उपयोजना के तहत आयोजित किया गया.

इस का मुख्य उद्देश्य अनुसूचित जाति के किसानों सहित अन्य किसानों को बीज नवाचारों से अवगत कराना और बीज गुणवत्ता प्रबंधन को मजबूत बनाना था. इस कार्यक्रम में गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) के भौपुर और गालंद गांवों के लगभग 100 किसान और संस्थान के वैज्ञानिक, संकाय सदस्य और छात्रछात्राओं ने भाग लिया.

प्रक्षेत्र दिवस में संस्थान द्वारा विकसित उच्च उपज देने वाली फसल किस्मों और बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी प्रभाग द्वारा विकसित उन्नत बीज प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया गया. इन में रबी फसलों के बीज उत्पादन तकनीक, बीज गुणवत्ता परीक्षण प्रोटोकौल, भंडारण समाधान, और बीज उन्नयन विधियों का प्रदर्शन शामिल था. इंटरएक्टिव प्रदर्शन के माध्यम से किसानों को फसल उत्पादकता और लाभप्रदता बढ़ाने के लिए व्यावहारिक जानकारी दी गई.

कार्यक्रम का उद्घाटन डा. रवींद्र नाथ पडारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार) ने किया. उन्होंने फसल उत्पादकता और आय वृद्धि में उच्च गुणवत्ता वाले बीजों की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया. डा. संदीप कुमार लाल, नोडल अधिकारी, ने इस योजना के अंतर्गत किसानों को दी जा रही सुविधाओं की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत अनुसूचित जाति के किसानों को पूसा संस्थान द्वारा विकसित उच्च उपज वाले बीज, कृषि उपकरण (जैसे फावड़ा, खुर्पी, पावर स्प्रेयर आदि) मुफ्त में उपलब्ध कराए जाते हैं, जिस से उन की आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके.

डा. ज्ञानपी मिश्रा, प्रमुख, बीज विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संभाग ने किसानों को वैज्ञानिकों के साथ संवाद स्थापित करने और बीज संबंधी वास्तविक समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय भागीदारी का आह्वान किया.

किसानों ने कार्यक्रम के अंतर्गत संरक्षित खेती प्रौद्योगिकी केंद्र  का दौरा भी किया, जहां उन्होंने टमाटर, शिमला मिर्च और खीरा जैसी सब्जियों की संरक्षित वातावरण में खेती की उन्नत तकनीकों का अवलोकन किया. इस से उन्हें आधुनिक कृषि पद्धतियों की नई जानकारी मिली.

कार्यक्रम का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिस में पूसा संस्थान की किसानों के लिए नवीनतम कृषि तकनीकों को उपलब्ध कराने और समावेशी कृषि विकास को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता दोहराई गई.

Convocation : पूसा में हुआ 63वां दीक्षांत समारोह

Convocation: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली का 63वां दीक्षांत समारोह पिछले दिनों 17 मार्च से 22 मार्च, 2025 को राष्ट्रीय कृषि विज्ञान परिसर (NASC) के भारत रत्न सी. सुब्रमण्यम हौल में आयोजित किया गया. इस दीक्षांत समारोह के मुख्य अतिथि भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री, शिवराज सिंह चौहान रहे.

इस कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि केंद्रीय राज्य मंत्री (कृषि एवं किसान कल्याण) भगीरथ चौधरी और राम नाथ ठाकुर थे. इस अवसर पर कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक देवेश चतुर्वेदी, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के कुलपति एवं निदेशक डा. सीएच श्रीनिवास राव, डीन एवं संयुक्त निदेशक (शिक्षा) डा. अनुपमा सिंह, संयुक्त निदेशक (अनुसंधान), संयुक्त निदेशक (प्रसार), परियोजना निदेशक डब्ल्यूटीसी, संयुक्त निदेशक (प्रशासन), आईसीएआर के पूर्व महानिदेशक और पूसा संस्थान के पूर्व निदेशक एवं डीन भी उपस्थित थे.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) – भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) कृषि अनुसंधान, शिक्षा और प्रसार में नवाचार और उत्कृष्टता को प्रोत्साहित करने के लिए प्रसिद्ध है. हमारी पहल, रणनीतियां और नीतियां न केवल राष्ट्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सावधानीपूर्वक तैयार की गई हैं, बल्कि वैश्विक अवसरों का लाभ उठाने के लिए भी केंद्रित हैं.

हम उन्नत तकनीकों और उच्च स्तरीय मानव संसाधन के माध्यम से विज्ञान और समाज में प्रगति को प्राथमिकता देते हैं. आईएआरआई ने 12 से अधिक दशकों में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में अनुसंधान और शिक्षा के लिए उत्कृष्टता के एक प्रतिष्ठित केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाई है. पूसा संस्थान के शैक्षणिक कार्यक्रम की यात्रा साल 1923 में शुरू हुई थी और पिछले एक सदी से इस ने अपनी गौरवशाली परंपरा को बनाए रखा है.

पिछले साल स्नातकोत्तर विद्यालय का नाम बदल कर स्नातक विद्यालय किया गया था. अब तक, इस संस्थान ने कुल 11,731 छात्रों को डिग्रियां प्रदान की हैं, जिन में एसोसिएटशिप, एम.एससी., एम.टेक., और पीएच.डी. डिग्रियां शामिल हैं, साथ ही विभिन्न देशों के 512 अंतरराष्ट्रीय छात्रों को भी उपाधियां प्रदान की गई हैं. इस 63वें दीक्षांत समारोह के दौरान, कुल 399 छात्रों को उन की कड़ी मेहनत और सफलता के उपलक्ष्य में डिग्रियां प्रदान की गईं, जिन में 233 एम.एससी, 166 पीएच.डी, और 5 विदेशी छात्र शामिल हैं.

अनुसंधान की उपलब्धियां:

साल 2024 के दौरान, 10 विभिन्न फसलों में कुल 27 फसल किस्मों को विकसित और जारी किया गया. इन में 16 प्रजातियां और 11 संकर किस्में शामिल हैं.

आईसीएआर – आईएआरआई के द्वारा विकसित 10 जलवायु सहिष्णु और बायोफोर्टिफाइड फसल किस्मों को राष्ट्र को समर्पित किया गया. इन में 7 अनाज एवं मोटे अनाज, 2 दलहनी फसलें और 1 चारे की किस्म शामिल हैं.

Convocationआईएआरआई ने बासमती धान के उत्पादन और व्यापार में उत्कृष्ट योगदान दिया है, जिस में उन्नत किस्मों के विकास की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. पूसा बासमती किस्में, जैसे पूसा बासमती 1718, पूसा बासमती 1692, पूसा बासमती 1509 और जीवाणु झुलसा  व ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी उन्नत बासमती किस्में पीबी 1847, पीबी 1885 और पीबी 1886, भारत से 5.2 मिलियन टन बासमती धान निर्यात में लगभग 90 फीसदी योगदान देती हैं. वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत को बासमती धान निर्यात से 48,389 करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई है. वहीं, अप्रैल, 2024 से नवंबर, 2024 के दौरान बासमती धान निर्यात से 31,488 करोड़ रुपए की आय हुई है.

बासमती धान की खेती के कारण भूजल स्तर पर पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में रखते हुए, आईएआरआई ने दो शाकनाशी सहिष्णु बासमती धान किस्में, पीबी 1979 और पीबी 1985, विकसित और जारी की हैं. ये किस्में प्रत्यक्ष बीजाई के लिए उपयुक्त हैं, जिस से गिरते भूजल स्तर की समस्या और रोपाई में किए गए धान से उत्पन्न ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी.

इस के अलावा दो अल्पावधि गैरबासमती धान किस्में, पूसा 1824 और पूसा 2090 विकसित और जारी की गई हैं. ये किस्में फसल कटाई के बाद की कृषि गतिविधियों के लिए पर्याप्त समय प्रदान करेगी. इस से खेतों की समय पर सफाई में सहायता मिलेगी, जिस से पर्यावरण प्रदूषण कम होगा और सिंधु गंगा के मैदान में गेहूं की अगली फसल की समय पर बोआई सुनिश्चित हो सकेगी. वर्तमान में आईएआरआई के अनुसार गेहूं किस्मों की खेती लगभग 9 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में की जा रही है, जिस से देश के अन्न भंडार में लगभग 40 मिलियन टन गेहूं का योगदान हो रहा है.

हमारे अनुसंधान कार्यक्रम ने पोषण सुरक्षा पर भी ध्यान केंद्रित किया है और 8 बायोफोर्टिफाइड फसल किस्में विकसित की हैं. एक ब्रेड गेहूं (एच आई 1665) और एक ड्यूरम गेहूं एच आई-8840  अधिक आयरन और जिंक युक्त जो केंद्रीय क्षेत्र के लिए, दो ब्रेड गेहूं किस्में उच्च प्रोटीन (एच डी 3390 उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्र के लिए और एच डी 3410 दिल्लीएनसीआर क्षेत्रों के लिए ), 2 बायोफोर्टिफाइड मक्का संकर, जिन में एक बहुपोषक संकर, पूसा बायोफोर्टिफाइड मक्का संकर 5 शामिल है, जिस में α-टोकोफेरौल (21.60 पीपीएम), विटामिन ए (6.22 पीपीएम), हाई लाइसिन ( 4.93 फीसदी )  और ट्रिप्टोफैन ( 1.01फीसदी ) की उच्च मात्रा है, 2 डबल जीरो (शून्य इरूसिक एसिड और ग्लूकोसिनोलेट) सरसों किस्में – पूसा सरसों 35 और पूसा सरसों 36, 1 सोयाबीन किस्म (पूसा 21), जो कि कुनीट्ज कुन्तिज ट्रिप्सिन इन्हिबीटर (KTI) की कम मात्रा वाली किस्म है.

येलो वेन मोजेक वायरस प्रतिरोधी और एनेशन लीफ कर्ल वायरस प्रतिरोधक भिंडी की दो किस्में पूसा भिंडी-5 और डीओएच-1 विकसित किस्में और जारी की गई हैं. ये किस्में कीटनाशकों के उपयोग को कम करने और खेती की लागत को घटाने में मदद करेगी.

संरक्षित खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न सब्जी फसलों की उन्नत किस्में खीरा सीवी, पूसा पार्थेनोकार्पिक खीरा-6, पूसा पार्थेनोकार्पिक खीरा संकर-1, खरबूजा सीवी, पूसा सुनहरी और पूसा शारदा, टमाटर संकर पूसा रक्षित, पूसा चेरी टमाटर-1, करेला सीवी, पूसा संरक्षित करेला-2 और समर स्क्वैश सीवी, पूसा श्रेयस विकसित किस्में और जारी की गई हैं.

सब्जी फसलों की उन्नत गुणवत्ता वाली बीज उपलब्ध कराने के लिए, ब्रीडर बीज नियमित रूप से राष्ट्रीय बीज निगम और राष्ट्रीय बागबानी अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान को सप्लाई किए जा रहे हैं. वर्ष 2024-25 के दौरान, विभिन्न सब्जी किस्मों और संकरों के लिए 17 समझौता ज्ञापन निजी बीज कंपनियों के साथ हस्ताक्षरित किए गए हैं.

गेंदा की एक नई किस्म पूसा बहार और ग्लेडियोलस की मध्यम मौसम वाली किस्म पूसा सिंदूरी को केंद्रीय किस्म विमोचन समिति द्वारा जारी करने की सिफारिश की गई है. इस के साथ ही, देश में पहली बार, आम के दो बौने जड़वृक्ष पूसा मूलव्रंत-1 और पूसा मूलव्रंत-2 जारी किए गए हैं. ये जड़वृक्ष कलमी आम के पौधों की ऊंचाई को कम करने में सहायक होंगे और बागों के बेहतर प्रबंधन में मदद करेंगे.

आईसीएआर – आईएआरआई द्वारा छोटे किसानों के लिए 1.0  हेक्टेयर क्षेत्र का एकीकृत कृषि प्रणाली मौडल विकसित किया गया है, जिस में फसल उत्पादन, डेयरी, मछली पालन, बतख पालन, बायोगैस संयंत्र, फलदार वृक्ष और कृषि वानिकी को शामिल किया गया है. यह मौडल प्रति हेक्टेयर हर साल लगभग 3.8 लाख रुपए तक का शुद्ध लाभ उत्पन्न करने और 628 मानव दिवस का रोजगार सृजित करने की क्षमता रखता है.

यह प्रणाली अपशिष्ट पुनर्चक्रण और उत्पादकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, क्योंकि इस में एक इकाई के उपउत्पादों को दूसरी इकाई के इनपुट के रूप में उपयोग किया जाता है, जिस से संसाधनों की दक्षता बढ़ती है.

इसी प्रकार से, आईसीएआर – आईएआरआई द्वारा सीमांत किसानों के लिए 0.4 हेक्टेयर क्षेत्र का एकीकृत कृषि प्रणाली मौडल विकसित किया गया है. इस मौडल में पौलीहाउस खेती, मशरूम उत्पादन, फसल उत्पादन और बागबानी एंटरप्राइज को शामिल किया गया है. यह मौडल 1.76 लाख रुपए प्रति एकड़ प्रति वर्ष तक का शुद्ध लाभ उत्पन्न करने की क्षमता रखता है.

आईसीएआर – आईएआरआई द्वारा विकसित पूसा एसटीएफआर मीटर एक कम लागत वाला, उपयोगकर्ता के अनुकूल, डिजिटल एंबेडेड सिस्टम और प्रोग्रामेबल उपकरण है. इस एक ही उपकरण के माध्यम से द्वितीयक और सूक्ष्म पोषक तत्वों सहित कुल 14 महत्वपूर्ण मृदा पैरामीटर का परीक्षण किया जा सकता है.

संस्थान द्वारा विकसित पूसा डिकंपोजर एक पर्यावरण अनुकूल और किफायती माइक्रोबियल समाधान है, जो फसल अवशेषों के इनसीटू और एक्ससीटू प्रबंधन के लिए प्रभावी है. यह खेत में ही फसल अवशेषों, विशेष रूप से पराली के तेजी से अपघटन को बढ़ावा देने के लिए विकसित किया गया है. कृषि अपशिष्ट को पौधों के पोषक तत्वों और ह्यूमस से भरपूर जैविक खाद में बदला जा सकता है. पूसा डिकंपोजर अब एक रेडी-टू-यूज पाउडर फार्मूलेशन में भी विकसित किया गया है, जो पूरी तरह से पानी में घुलनशील है और मशीन स्प्रेयर की मदद से आसानी से उपयोग किया जा सकता है.

आईसीएआर – आईएआरआई कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वाली तकनीकों और इनपुट उपयोग दक्षता बढ़ाने वाली तकनीकों के विकास व पहचान पर कार्य कर रहा है, जिस से नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्त किया जा सके. नीम तेल लेपित यूरिया के उपयोग से नाइट्रस औक्साइड (N₂O) उत्सर्जन में लगभग 9 फीसदी की कमी लाई जा सकती है.

इसी तरह, ओलियोरेसिन लेपित यूरिया के उपयोग से धान में मीथेन उत्सर्जन 8.4 फीसदी और नाइट्रस औक्साइड (N₂O) उत्सर्जन 11.3 फीसदी तक कम हुआ है. गेहूं में नाइट्रस औक्साइड (N₂O) उत्सर्जन में 10.6 फीसदी की कमी देखी गई है. डायरेक्ट सीडेड राइस न केवल कम ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन वाली तकनीक है, बल्कि इस में पानी उपयोग दक्षता भी अधिक होती है.

आईएआरआई उत्तर-पश्चिम भारत में धान और गेहूं की पराली जलाने की निगरानी और भारत में फसल अवशेष जलाने की स्थिति का रोजाना थर्मल सैटेलाइट रिमोट सैंसिंग के माध्यम से विश्लेषण करता है. धान और गेहूं जलाने की घटनाओं पर दैनिक बुलेटिन तैयार कर केंद्र एवं राज्य सरकार के हितधारकों को भेजे जाते हैं, ताकि वे आवश्यक नीतिगत और प्रशासनिक कदम उठा सकें.

पूसा फार्म सन फ्रिज, जिसे आईएआरआई द्वारा विकसित किया गया है, एक औफ ग्रिड, बिना बैटरी वाला सौर ऊर्जा चालित प्रशीतित एवं वाष्पीकरणीय शीतलन संरचना है. इस तकनीक का उद्देश्य कृषि क्षेत्रों में सौर ऊर्जा आधारित कोल्ड स्टोरेज प्रदान करना है, जिस से नाशवंत कृषि उत्पादों का भंडारण किया जा सके.

“पूसा मीफ्लाई किट” और “पूसा क्यूफ्लाई किट” तैयार उपयोग किट है, जो क्रमशः फलों और कुकुरबिट सब्जियों में फल मक्खी के प्रकोप को नियंत्रित करने के लिए विकसित की गई है. यह किट पराफेरोमोन इम्प्रेग्नेशन तकनीक का उपयोग कर के बैक्ट्रोसेरा प्रजाति की नर फल मक्खियों को आकर्षित और समाप्त करने में सक्षम है. एक बार लगाने पर, यह किट पूरे मौसम तक प्रभावी रहती है, जिस से फसल की गुणवत्ता एवं उत्पादन में वृद्धि होती है और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग को रोका जा सकता है.

“पूसा व्हाइटफ्लाई अट्रैक्टेंट” एक नवीन प्रलोभक (ल्यूर) है, जिसे खेतों और बागवानी फसलों में सफेद मक्खियों को आकर्षित करने के लिए विकसित और व्यावसायिक रूप से उपलब्ध कराया गया है. इसे पीले स्टिकी ट्रैप्स के साथ उपयोग किया जा सकता है और यह समेकित कीट प्रबंधन और जैविक कृषि का एक महत्वपूर्ण घटक है.

Convocation

संस्थान का पूसा समाचार है खास, 6 भाषाओं में मिलती है जानकारी:

संस्थान ने वीडियो आधारित विस्तार मौडल “पूसा समाचार” विकसित किया है, जिस का उद्देश्य दूरदराज के किसानों तक कृषि सलाह पहुंचाना है. यह एक साप्ताहिक कार्यक्रम है, जो हिंदी, तेलुगु, कन्नड़, तमिल, बांग्ला और उड़िया सहित छह भाषाओं में उपलब्ध है और हर शनिवार शाम 7 बजे यूट्यूब चैनल पर प्रसारित किया जाता है. इस की कुल दर्शक संख्या लगभग 1.3 मिलियन है.

पूसा व्हाट्सएप पर घर बैठे मिलती है सलाह:

‘पूसा व्हाट्सएप सलाह (9560297502) सेवा भी शुरू की गई है, जिस से किसान अपने प्रश्न पूछ सकते हैं और विशेषज्ञों से समाधान प्राप्त कर सकते हैं.

कृषि मेले में मिली ढेरों जानकारी :

संस्थान ने नवीनतम तकनीकों के प्रदर्शन और हितधारकों के बीच परस्पर सीखने को बढ़ावा देने के लिए वार्षिक पूसा कृषि विज्ञान मेला आयोजित किया. इस वर्ष, यह मेला दिनांक 22 फरवरी से 24 फरवरी, 2025 के दौरान आयोजित किया गया था. इस का मुख्य विषय “उन्नत कृषि – विकसित भारत” था. इस मेले में एक लाख से अधिक किसानों और अन्य हितधारकों ने भाग लिया था.

किसानों को मिला सम्मान:
संस्थान ने 41 किसानों को उन के नवाचारों के लिए “आईएआरआई फैलो” और “आईएआरआई इनोवेटिव फार्मर्स” के रूप में सम्मानित किया.

Water Management : विकसित भारत के लिए सतत जल प्रबंधन

Water Management: भारत की प्राथमिक क्षेत्र ‘कृषि’ को रीढ़’ कहा जाता है, क्योंकि यह खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करता है और किसानों व कृषि मजदूरों के रूप में लगभग 54 फीसदी कार्यबल प्रदान करता है. यह जान कर खुशी होती है कि भारतीय कृषि ने अपनी स्वतंत्रता के बाद से पिछले 78 सालों के दौरान पोषक तत्वों, जल उपयोग दक्षता व फसल उत्पादकता के बारे में महत्वपूर्ण परिवर्तन किया है, जिस का श्रेय भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित वैज्ञानिक उन्नत प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को दिया जा सकता है.

यद्यपि, इस क्षेत्र को जलवायु संबंधित प्राकृतिक आपदाओं, मृदा और जल संसाधनों के घटते आधार, छोटी भूमि क्षेत्रों, मृदा और जल प्रदूषण आदि के रूप में अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. इसलिए हमें अमृत काल 1947 तक विकसित भारत के लिए प्रस्तावित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जलवायु अनुकूल और सतत जल प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है.

इस अवधि के दौरान भारत 550 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन हासिल करने का लक्ष्य ले कर चल रहा है. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए हमें कुशल जल संसाधन प्रबंधन और जल उपयोग दक्षता बढ़ाने के दोहरे उद्देश्यों के साथ बहुआयामी प्रबंधन योजना पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है.

‘ग्लेशियर संरक्षण : विश्व जल दिवस-2025 का विषय जैसा कि हम 22 मार्च, 2025 को ‘विश्व जल दिवस’ मना रहे हैं, हम अपना ध्यान इस के केंद्रीय विषय यानी ग्लेशियर संरक्षण पर केंद्रित करेंगे.

भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वे की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय हिमालय में लगभग 9,575 ग्लेशियर मौजूद हैं. ग्लेशियर काफी मात्रा में मीठे पानी का भंडारण करते हैं और उन्हें धीरेधीरे छोड़ते हैं, जो मानव जाति के लिए बहुपयोगी है. वे पृथ्वी की जलवायु को संतुलित और विनियमित करने, जैव विविधता को बनाए रखने, कृषि, पीने के लिए साफ पानी और बिजली उत्पादन के लिए जल संसाधन प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

यद्यपि, इन ग्लेशियरों को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के रूप में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. परिणामस्वरूप, भारत के हिमालयी क्षेत्र सहित पूरे विश्व में इन के गलने की उच्च दर देखी जा रही है. इस से हिमनद झीलों का विस्तार होगा, जिस से नीचे की ओर विनाशकारी बाढ़ आ सकती है.

इस के अलावा ग्लेशियर की मात्रा में कमी के चलते कृषि क्षेत्र को जल संसाधनों में गिरावट का सामना करना पड़ेगा. इसलिए, हमें इस मूल्यवान प्राकृतिक संसाधन को संरक्षित करने की जरूरत है.

सतत जल प्रबंधन एक उपाय

फसल उत्पादन के लिए जल जरूरी है. सिंचाई के लिए बढ़ते जल संसाधनों ने खाद्यान्न उत्पादन में तेजी लाने में काफी योगदान दिया है. देश में शुद्ध बोआई क्षेत्र के 141 मिलियन हेक्टेयर में से शुद्ध सिंचित क्षेत्र लगभग 78 मिलियन हेक्टेयर (55 फीसदी) है और शेष 63 मिलियन हेक्टेयर (45 फीसदी ) वर्षा सिंचित क्षेत्र के अंतर्गत है.

वर्तमान में भारत में 112.2 मिलियन हेक्टेयर सकल सिंचित क्षेत्र है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (साल 2015) के विजन 2050 दस्तावेज के अनुसार, 1498 (बीसीएम) की अनुमानित कुल जल मांग की तुलना में उपलब्ध आपूर्ति केवल 1121 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है.

ग्लेशियर पिघलने के कारण कृषि के लिए पानी की उपलब्धता में कमी की पृष्ठभूमि में एकीकृत जल प्रबंधन कार्य योजना पर ध्यान देने की जरूरत है. घरेलू, औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्रों में अतिरिक्त जल की मांग के लिए साल 2050 तक अतिरिक्त 222 बीसीएम पानी की जरूरत होगी. नतीजतन, भारत में कृषि में सिंचाई क्षेत्र में उपयोग किए जाने वाला पानी वर्तमान में 80 फीसदी से घट कर साल 2050 तक 74 फीसदी होने की उम्मीद है.

उभरते परिदृश्यों को देखते हुए अब चुनौती जल की प्रति इकाई मात्रा में अधिक फसल का उत्पादन करना है. भाकृअनुप-राष्ट्रीय कृषि अर्थशास्त्र और नीति अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2050 तक कृषि के लिए संसाधनों की उपलब्धता, खाद्य मांग में वृद्धि की तुलना में धीमी दर से बढ़ेगी और इसलिए कृषि उत्पादों की भविष्य की मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बनाने के लिए हमें साल 2050 तक जल उत्पादकता में दोगुना वृद्धि करने की जरूरत है.

साल 2047 तक विकसित भारत के उद्देश्य को पूरा करने की दिशा में कम होते जल संसाधनों से 550 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन के परिदृश्य के तहत हमें अमृत काल (2047) तक कृषि में अपनी सिंचाई दक्षता को 38 फीसदी से 65 फीसदी तक सुधारने के लिए सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन कार्ययोजना निष्पादित करनी होगी.

जल निकायों के पुनरुद्धार के माध्यम से प्रति व्यक्ति जल भंडारण में वृद्धि 2050 तक भारत की आबादी 1.67 बिलियन होने की संभावना है, जिस के परिणामस्वरूप जल, भोजन और ऊर्जा की मांग में वृद्धि होगी. व्यापक बांध निर्माण गतिविधियों के रूप में भारत सरकार द्वारा की गई पहलों के कारण, भारत में बड़े बांधों (जलाशयों) की कुल संख्या 5264 के आंकड़े को पार कर चुकी है. इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 171.1 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का लगभग 66.36 फीसदी यानी 257.8 बीसीएम है. यद्यपि, भारत के प्रति व्यक्ति भंडारण को 190 क्यूबिक मीटर प्रति व्यक्ति के वर्तमान स्तर से सुधारने की आवश्यकता है.

एक प्रमुख चिंता जलाशयों में अवसादन है, जो भंडारण क्षमता को काफी कम कर देता है. भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए, अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों क्षेत्रों की आवश्यकताओं पर विचार करते हुए जलाशय नियंत्रण प्रणाली को मजबूत किया जाना चाहिए. वर्षा जल संचयन संरचनाओं के माध्यम से जल भंडारण बुनियादी ढांचे का निर्माण महत्वपूर्ण है और भारत सरकार का अमृत सरोवर मिशन जिसे वर्ष 2022 में शुरू किया गया था, उस के द्वारा 68,000 से अधिक जल निकायों का निर्माण या नवीनीकरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

हमें उच्च जल उपयोग दक्षता प्राप्त करने के लिए उपलब्ध जल संसाधनों से मेल खाते हुए उपयुक्त फसल पैटर्न तैयार करने की आवश्यकता है. चावल और गन्ने जैसी जल गहन फसलों से दलहन और तिलहन जैसी कम जल मांग वाली फसलों को चरणबद्ध तरीके से फसल विविधीकरण कर बड़े क्षेत्र में फसलों की खेती करने की आवश्यकता है, जिस से कि अधिक से अधिक संख्या में छोटे और सीमांत किसान लाभान्वित होंगे.

हालांकि, फसल विविधीकरण योजना वर्षा, मिट्टी के प्रकार, जल के अंतर, मौजूदा फसल उत्पादकता और किसानों की शुद्ध आय पर विचार करते हुए एक सूचकांक पर आधारित होनी चाहिए.

सूक्ष्म सिंचाई और सुनियोजित जल प्रबंधन की जरूरत

भारत में सूक्ष्म सिंचाई के तहत 3.1 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र (साल 1992) से बढ़ कर 16.7 मिलियन हेक्टेयर (साल 2023) हो गया है. यद्यपि, सूक्ष्म सिंचाई की सांद्रता कुछ ही राज्यों में है और हमें इसे अन्य राज्यों में भी बढ़ावा देने की आवश्यकता है, जहां संभावनाएं मौजूद हैं. भारत के 5 राज्य कर्नाटक (2.42 मिलियन हेक्टेयर), राजस्थान (2.09 मिलियन हेक्टेयर), महाराष्ट्र (2.03 मिलियन हेक्टेयर), आंध्र प्रदेश (1.92 मिलियन हेक्टेयर) और गुजरात (1.70 मिलियन हेक्टेयर) मिल कर सूक्ष्म सिंचाई में लगभग 70 फीसदी  (10.16 मिलियन हेक्टेयर) का योगदान करते हैं. अमृत काल 2047 तक सूक्ष्म सिंचाई के तहत इष्टतम क्षेत्र प्राप्त करने के लिए, विभिन्न समितियों द्वारा सुझाए गए सभी संभावित राज्यों में सिंचाई के बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के प्रयास किए जाने चाहिए.

हमें सुनियोजित/सटीक सिंचाई प्रणाली पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है, जो सही समय पर और सही तरीके से पौधे को इष्टतम मात्रा में जल आपूर्ति को सुनिश्चित करता है. यह परिवर्तनीय दर सिंचाई के माध्यम से जल तनाव के संदर्भ में भूमि के विषमता कारक को भी संबोधित करता है. सूचना प्रौद्योगिकी, मशीन लर्निंग, भौगोलिक स्थिति प्रणाली (जीपीएस), भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस), ड्रोन आधारित निगरानी और स्वचालन में आधुनिक विकास के आगमन के साथ, आईओटी सक्षम सटीक सिंचाई प्रणाली अब और अधिक मजबूत हो गई है.

हाल की प्रगति ने सतह और भूजल सिंचाई दोनों में स्वचालन के अनुप्रयोग की सुविधा प्रदान की है, जो अधिकतम जल उपयोग दक्षता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करता है. जल प्रौद्योगिकी केंद्र, भाकृअनुप-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित मृदा नमी सैंसर आधारित स्वचालित बेसिन सिंचाई प्रणाली में 3 मुख्य इकाइयां शामिल हैं : एक संवेदन इकाई, एक संचार इकाई और एक नियंत्रण इकाई है और यह गेहूं में पारंपरिक मैन्युअल रूप से नियंत्रित प्रणाली की तुलना में 25 फीसदी पानी की बचत में मदद करता है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रदान की गई तकनीकी सहायता से राष्ट्रीय जल मिशन द्वारा विकसित राज्य विशिष्ट जल प्रबंधन कार्ययोजनाओं को भारतीय कृषि की जीत सुनिश्चित करने के लिए कार्यान्वित किए जाने की आवश्यकता है. ये योजनाएं संबंधित राज्यों में कृषि पारिस्थितिक स्थितियों और जल संसाधन उपलब्धता और फसल जल की मांग को देखते हुए तैयार की गई हैं.

कुलमिला कर, सभी हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ सतत और जलवायु अनुकूल जल प्रबंधन को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है. समय की मांग है कि संस्थागत और तकनीकी दोनों हस्तक्षेपों को एकीकृत किया जाए और जल और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए किसानों के खेतों में अच्छी तरह से सिद्ध औन फार्म जल प्रबंधन प्रौद्योगिकियों को बढ़ाया जाए, जिस से अमृत काल 2047 तक विकसित भारत के उद्देश्य को पूरा किया जा सके.