Fertilizer Retailer : डा. अजीत कुमार कर्नाटक प्रसार शिक्षा निदेशालय, उदयपुर द्वारा आयोजित 15 दिवसीय खुदरा उर्वरक विक्रेता प्राधिकार पत्र प्रशिक्षण के समापन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.
जहां उन्होंने कहा “वर्तमान में जमीन धीरेधीरे घट रही है और आबादी बढ़तेबढ़ते आज 140 करोड़ हो चुकी है. ऐसे में फसल उत्पादन बढ़ाने की गति को बनाए रखना बहुत जरूरी है. अब समय आ गया है कि शोध का शिक्षण हो. वैज्ञानिकों को किसान के खेत पर जा कर कार्य करना होगा ताकि, तकनीक को किसान हाथोंहाथ सीख सकें.” इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और सलूंबर के 51 खुदरा उर्वरक विक्रेताओं ने भाग लिया जिन में 7 महिलाएं भी शामिल थी.
उन्होंने आगे कहा कि एक अच्छा खाद उर्वरक विक्रेता बनने के लिए कृषि उत्पादों के बारे में संपूर्ण जानकारी का होना बहुत जरूरी है और जानकारी सुनियोजित और स्तरीय प्रशिक्षण से ही संभव है, जो एमपीयूएटी की नियमित गतिविधि है. आज भी दुख इस बात का है कि आम आदमी खाद के नाम पर केवल यूरिया को जानता है जबकि, ऐसा नहीं है. उर्वरक के प्रमुख घटक, नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक उर्वरक आजकल चलन में हैं. डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने सलाह दी कि खुदरा उर्वरक विक्रेताओं को प्राकृतिक खेती से जुड़ी सामाग्री भी अपने स्टोर में रखनी चाहिए ताकि, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिल सके.
प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने कहा कि एक सफल खुदरा उर्वरक विक्रेता के लिए व्यापार में फाइव ‘आर’ की काफी महत्ता है. ये पांच आर हैं – रिस्क, रिलेशन, रेग्यूलेटरी, रेप्युटेशन और रेट. इन्हें आत्मसात कर व्यापार किया जाए तो सफलता पक्की है.
उन्होंने आगे कहा कि उर्वरक विक्रेताओं को किसानों से सीधा संपर्क स्थापित कर विभिन्न प्रकार की नवीनतम एवं आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करना चाहिए और उन की आमदनी को बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए. डा.आरएल सोनी ने उर्वरकों के संतुलित उपयोग एवं मृदा परीक्षण के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पोषक तत्व प्रबंधन , समन्वित पोषक तत्व के लाभ, जैविक खेती और उस के लाभ, कार्बनिक खेती आदि के बारे में भी चर्चा की.
इस कार्यक्रम के विशिष्ठ अतिथि छात्र कल्याण अध्यक्ष डा. मनोज महला ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक उपयोग दक्षता बढ़ाने के उपाय सुझाए. टिकाऊ खेती, समन्वित कृषि पद्धति की फसल विविधीकरण आदि विषयों पर जानकारी दे कर उन का ज्ञानवर्धन किया.
प्रशिक्षण समन्वयक एवं कार्यक्रम संचालक डा. लतिका व्यास, प्राध्यापक ने बताया कि इस प्रशिक्षण में 15 दिन तक विश्वविद्यालय के विभिन्न कृषि वैज्ञानिकों एवं राज्य सरकार के कृषि अधिकारियों ने प्रशिक्षणार्थियों को उर्वरक प्राधिकार पत्र की महत्ता एवं इस से जुड़ी सभी तरह की जानकारियां प्रदान की. सभी ने प्रशिक्षण का लाभ किसानों तक पहुंचाने की अपील की.
इस समारोह में खुदरा उर्वरक विक्रेता प्रशिक्षण में भाग लेने वाले सभी प्रशिक्षणार्थियों को कार्यक्रम के मुख्य अतिथि द्वारा प्रमाणपत्र एवं प्रशिक्षण संबंधी साहित्य प्रदान किए गए. साथ ही, प्रशिक्षणार्थियों ने प्रशिक्षण के अनुभव भी साझा किए.