Attention: …तो नहीं मिलेगी पी. एम. सम्मान. निधि

बस्ती: शासन ने एग्री स्टैक (डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रचर फौर एग्रीकल्चर) के अंतर्गत फार्मर रजिस्ट्री तैयार करने का निर्देष दे दिया है. इसके लिए दिसम्बर माह तक विशेष अभियान चलाया जा रहा है. फार्मर रजिस्ट्री के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर शिविर का आयोजन किया जा रहा है. फार्मर रजिस्ट्री के लिए चलाये जा रहे अभियान के क्रम में मुख्य विकास अधिकारी बस्ती द्वारा ग्रामपंचायत स्तर पर संचालित फार्मर रजिस्ट्री कैम्प तिलकपुर, विकास खंडकप्तानगंज, तहसील हर्रेया का निरीक्षण किया गया.

निरीक्षण के समय मुख्य विकास अधिकारी के साथ में अशोक कुमार गौतम, उप कृशि निदेशक, बस्ती, नायब तहसीलदार, हर्रैया एवं राजस्व, कृशि एवं पंचायत विभाग के क्षेत्रीय कर्मचारीगण उपस्थित रहे. मुख्य विकास अधिकारी द्वारा स्वयं भी फार्मर रजिस्ट्री कैम्प में उपस्थित कृषकों में से एक कृषक का एग्री स्टैक ऐप के माध्यम से फार्मर रजिस्ट्री किया गया.

उप कृषि निदेशक, बस्ती द्वारा कैम्प में उपस्थित कृषकों को फार्मर रजिस्ट्री कराये जाने के सम्बन्ध में पूरी जानकारी दी गयी एवं कृषक भाइयों से आह्वान किया गया कि वह कृषि विभाग के प्राविधिक सहायक ग्रुप-सी, बी.टी.एम, ए.टी.एम, पंचायत सहायक एवं लेखपाल अथवा कौमन सर्विस सेंटर से अथवा किसान भाई खुद भी सेल्फ मोड में एग्री स्टैक ऐप पर फार्मर रजिस्ट्री कर सकते है.

किसान भाईयों से अपील की गयी कि वह भी अपने अपने क्षेत्र में दुसरे किसान भाईयों को अधिक से अधिक फार्मर रजिस्ट्री कराने के बारे में बतायें क्योंकि जो किसान भाई फार्मर रजिस्ट्री नहीं करायेंगे उन्हें पी.एम. किसान की अगली किस्त प्राप्त नहीं होगी. इस लिए सभी किसान भाई अति शीघ्र फार्मर रजिस्ट्री करा लें.

मुख्य विकास अधिकारी द्वारा भी किसान भाईयों से फार्मर रजिस्ट्री कराने की अपील की गयी तथा क्षेत्रीय कर्मचारियों को भी निर्देशित किया गया कि वह अपने-अपने कार्य क्षेत्र में अधिक से अधिक फार्मर रजिस्ट्री कराना सुनिश्चित करें. निरीक्षण के समय लेखपाल द्वारा यह अवगत कराया गया कि एग्री स्टैक ऐप में तकनीकी खामियों की वजह से सहखातेदारों को फार्मर रजिस्ट्री कराने में समस्या आ रही है. उप कृषि निदेशक को निर्देशित किया गया है कि वह मुख्यालय से संम्पर्क कर तकनीकी खामियों से उनको अवगत कराकर, समस्या का समाधान करायें.

अनाज भंडारण (Grain Storage) में दुनियाभर में सब से आगे होगा भारत

नई दिल्ली : सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सब से बड़ी अनाज भंडारण योजना की पायलट परियोजना के अंतर्गत राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) और नाबार्ड कंसल्टेंसी सर्विसेज (नैबकौंस) के सहयोग से 11 राज्यों महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, असम, तेलंगाना, त्रिपुरा और राजस्थान में प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पैक्स) स्तर पर इन की 11 पैक्स में गोदामों को बनाया गया है. इन बने 11 भंडारणों में से 3 को महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना राज्य में पैक्स ने स्वयं के उपयोग के लिए रखा है. इस के अलावा 3 भंडारण को उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और गुजरात राज्य में राज्य/केंद्रीय एजेंसियों द्वारा किराए पर लिया गया है.

इस पायलट परियोजना को आगे बढ़ा दिया गया है और सहकारी क्षेत्र में दुनिया की सब से बड़ी अनाज भंडारण योजना के तहत गोदामों के बनाने के लिए 21 नवंबर, 2024 तक देशभर में 500 से अधिक अतिरिक्त पैक्स की पहचान की गई है.

इस योजना के तहत कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ), कृषि विपणन अवसंरचना योजना (एएमआई) आदि जैसी भारत सरकार की विभिन्न मौजूदा योजनाओं के सम्मिलन के जरीए पैक्स को सब्सिडी और ब्याज सहायता दी जाती है. एआईएफ योजना के तहत 2 करोड़ रुपए तक की परियोजना के लिए 3 फीसदी ब्याज सहायता प्रदान की जाती है, जिस में ऋण चुकाने की अवधि 2+5 साल होती है. इस के अलावा एएमआई योजना के तहत भंडारण इकाइयों के बनाने के लिए पैक्स को 33.33 फीसदी सब्सिडी दी जाती है.

इस के अलावा, एएमआई योजना के तहत पैक्स के लिए उत्पाद की उत्पादन लागत और उस के विक्रय मूल्य के बीच के अंतर की धनराशि (मार्जिन मनी) की आवश्यकता 20 फीसदी से घटा कर 10 फीसदी कर दी गई है. पूंजीगत लागत पर भंडारण अवसंरचना, जिस में बाउंड्री वाल, ड्रेनेज जैसी सहायक चीजें शामिल हैं) के लिए सहायता के अलावा अब पैक्स को सहायक चीजों पर अतिरिक्त सब्सिडी दी जाती है, जो गोदाम घटक की कुल स्वीकार्य सब्सिडी के अधिकतम 1/3 या वास्तविक जो भी कम हो, तक सीमित है.

पायलट परियोजना के अंतर्गत 11 राज्यों की 11 प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों में कुल 9,750 मीट्रिक टन भंडारण क्षमता वाले 11 भंडारण गोदामों को बनाने का काम पूरा हो चुका है.

Artificial Intelligence: कृषि सुधार में उपयोगी तकनीक

नई दिल्ली: सरकार ने किसानों के हित में कृषि क्षेत्र में विभिन्न चुनौतियों का समाधान करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) विधियों को नियोजित किया है.:

किसान ईमित्र

यह एक एआई संचालित चैटबौट है जो किसानों को पीएम किसान सम्मान निधि योजना के बारे में जानकारी प्राप्त करने में सहायता करता है. यह कई भाषाओं में समाधान उपलब्ध कराता है और अन्य सरकारी कार्यक्रमों में सहायता के लिए विकसित हो रहा है.

जलवायु परिवर्तन के कारण उपज के नुकसान से निपटने के लिए राष्ट्रीय कीट निगरानी प्रणाली

यह प्रणाली फसल की समस्याओं का पता लगाने के लिए एआई और मशीन लर्निंग का उपयोग करती है. इस से स्वस्थ फसलों के लिए समय पर उपाय करना संभव होता है.

चावल और गेहूं की फसल के लिए सैटेलाइट, मौसम और मिट्टी की नमी डेटासेट का उपयोग करके फसल स्वास्थ्य आंकलन और फसल स्वास्थ्य निगरानी के लिए फ़ील्ड फ़ोटो का उपयोग करके एआई आधारित विश्लेषण कर समाधान करती है.

इस के अलावा, सरकार देश में प्रति बूंद अधिक फसल (पीडीएमसी) की एक केंद्र प्रायोजित योजना लागू कर रही है. पीडीएमसी ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों जैसे सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से खेत स्तर पर जल उपयोग दक्षता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती है. सूक्ष्म सिंचाई से पानी की बचत के साथ-साथ उर्वरक के उपयोग में कमी, श्रम व्यय, अन्य इनपुट लागत और किसानों की समग्र आय में वृद्धि में भी मदद मिलती है.

सरकार पीडीएमसी के तहत ड्रिप और स्प्रिंकलर सिस्टम लगाने के लिए छोटे और सीमांत किसानों को 55 फीसदी और अन्य किसानों को 45 फीसदी की दर से वित्तीय सहायता प्रदान करती है. इस के अलावा, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने भी आईओटी आधारित सिंचाई प्रणाली विकसित की है और चयनित फसलों के लिए खेत में इसका परीक्षण किया है.

ग्रामीण महिलाएं (Rural Women): सहकारिता क्षेत्र में कितनी हिस्सेदारी और क्या हैं योजनाएं

नई दिल्ली : राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के अनुसार, 28 नवंबर, 2024 तक देश में 25,385 महिला कल्याण सहकारी समितियां पंजीकृत हैं. इस के अलावा देश में 1,44,396 डेयरी सहकारी समितियां हैं, जहां काफी तादाद में ग्रामीण महिलाएं इस क्षेत्र में कार्यरत हैं.

सरकार ने सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल की हैं, जिस में बहुराज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 को एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के माध्यम से संशोधित किया गया, जिस में एमएससीएस के बोर्ड में महिलाओं के लिए 2 सीटों के आरक्षण के लिए एक विशिष्ट प्रावधान किया गया, जिसे अनिवार्य कर दिया गया है. इस से सहकारी क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने का रास्ता साफ होगा.

वहीँ सहकारिता मंत्रालय द्वारा पैक्स के लिए मौडल उपनियम तैयार किए गए हैं और देशभर के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाए गए हैं. इस में पैक्स के बोर्ड में महिला निदेशकों की जरूरत को अनिवार्य किया गया है. इस से 1 लाख से अधिक पैक्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और उन के द्वारा निर्णय लेना सुनिश्चित हो रहा है.

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), सहकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक सांविधिक निगम है, जो पिछले कई सालों से महिला सहकारी समितियों की सामाजिकआर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिस से उन्हें व्यवसाय मौडल आधारित गतिविधियां अपनाने में सक्षम बनाया जा सके.

एनसीडीसी विशेष रूप से महिला सहकारी समितियों के लिए निम्नलिखित योजनाओं को लागू कर रहा है :

स्वयंशक्ति सहकारी योजना : इस योजना के अंतर्गत महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को सामान्य/सामूहिक सामाजिकआर्थिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त बैंक ऋण की सुविधा के लिए 3 साल तक के लिए कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान किया जाता है.

नंदिनी सहकार : इस योजना के तहत महिला सहकारी समितियों को 5-8 साल तक की अवधि के लिए सावधि ऋण प्रदान किया जाता है, जिस में सावधि ऋण पर 2 फीसदी तक की ब्याज छूट दी जाती है. इस योजना के तहत वित्तीय सहायता एनसीडीसी को सौंपे गए व्यवसाय योजना आधारित गतिविधि/सेवा के लिए प्रदान की जाती है.

इस के अलावा सहकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, एनडीडीबी, एनएफडीबी और राज्य सरकारों के साथ मिल कर भारत में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. इस में सभी पंचायतों/गांवों में नई बहुद्देशीय पैक्स, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना करना शामिल है. प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) शुरू की गई है. एनडीडीबी को 1,03,000 से अधिक डेयरी सहकारी समितियों के गठन/मजबूतीकरण का काम सौंपा गया है.

इस के अतिरिक्त गुजरात में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” पायलट परियोजना का उद्देश्य प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बना कर और सदस्यों को रुपे केसीसी प्रदान कर के उन्हें सशक्त बनाना है. इस पहल का उद्देश्य डेयरी सहकारी समितियों में काफी संख्या में ग्रामीण महिलाओं को शामिल कर के उन की बाजार तक पहुंच को बढ़ाना और उन के वित्तीय व सामाजिक सशक्तीकरण में योगदान देना है.

एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत सहकारी चुनाव प्राधिकरण की स्थापना की गई है और इस ने बहुराज्य सहकारी समितियों के 70 चुनाव आयोजित किए हैं और बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की है.

एनसीडीसी ने 31 मार्च, 2024 तक विशेष रूप से महिलाओं द्वारा प्रवर्तित सहकारी समितियों के विकास के लिए क्रमशः 7,708.09 करोड़ रुपए और 6,426.36 करोड़ रुपए की संचयी वित्तीय सहायता स्वीकृत और वितरित की है.

भारत सरकार ने गुजरात राज्य के पंचमहल और बनासकांठा जिलों में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” नामक एक पायलट परियोजना लागू की है, जिस के तहत प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) का बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बनाया गया है और सदस्यों को माइक्रोएटीएम प्रदान किए गए हैं.

इस के अलावा डेयरी सहकारी समितियों के सदस्यों (विशेष रूप से महिला सदस्यों) को उन की तत्काल वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए डीसीसीबी द्वारा रुपे केसीसी प्रदान किया जा रहा है. पायलट प्रोजैक्ट के दौरान दोनों जिलों में डीसीसीबी ने अपने सदस्यों को 22,344 रुपे केसीसी जारी किए हैं, जिन में 6,382 पशुपालन केसीसी शामिल हैं, जिस का लाभ ज्यादातर महिलाओं को मिला है. मंत्रालय ने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण पर इन पहलों के प्रभाव के लिए कोई विशेष अध्ययन नहीं किया है.

Marketing and Branding: क्या है किसानों की आय बढ़ाने का तरीका

सबौर: बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर में सेंटर औफ़ एकसीलेन्स मिलेट्स वैल्यू चैन परियोजना के अंतर्गत बिहार राज्य में पोषक अनाज की मार्केटिंग और ब्राडंगि (Branding) रणनीतियों पर ब्रेनस्ट्रोमिंग सेशन का आयोजन 6 दिशम्बर 2024 को किया गया. इस कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में बि० ए० यु० के निदेशक अनुसंधान, डा. श्रीनिवास राय, प्राचार्य बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर, प्रधान अन्वेषक डा.महेश कुमार सिंह, उप अन्वेषक डा. बीरेंद्र सिंह, एवं डा. धर्मेंदर वर्मा, मौजूद थे. डा. नेहा पाण्डेय सहायक प्रध्यापक सह कैनिय वैज्ञानिक प्रसार शिक्षा, बि० ए० सी० सबौर ने कार्यक्रम का संचालन किया.

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे निदेशक अनुसंधान बि० ए० यु० सबौर डा.ए.के.सिंह का मानना है कि पोषक अनाज का उत्पादन कम उपजाऊ, असंचित क्षेत्र एवं बदलते जलवायु में असानी से किया जा रहा है, साथ ही विभिन्न बिमारीयों जैसे मोटापा, चीनी रोग, हृदय रोग, हड्डी रोग एवं बेहतर स्वास्थ के लिए इन को भोजन में शामिल करना आज की जरूरत हो गई है, जिस से श्री अन्न ब्रांडिग एवं मार्केटिंग से किसानों की आय और बढ़ेगी. डा. श्रीनिवास राय, प्राचार्य बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर, ने किसानो को भरोसा दिलाया की पोषक अनाज उत्पादन विपणन एवं ब्रांडिंग में विश्वद्यिालय, किसान भाईयों एवं उद्धमियों को पूर्ण सहयोग प्रदान करेगी.

Marketing and Branding

इस एक दिवसीय कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डा. रफी, वैज्ञानिक भारतीय श्री अन्न अनुसंधान संस्थान हैदराबाद ने पोषक अनाज के बाजार संर्पक स्थापित करने के बारे में विस्तार से चर्चा की. वहीँ दुसरे मुख्य वक्ता डा. रामदत्त सहायक प्रध्यापक, डा. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर ने पोषक अनाज को विकसित करने के बारे मे चर्चा की. कार्यक्रम के तीसरे मुख्य डा. सुधानन्द प्रसाद लाल ने पोषक अनाज के मुल्य श्रृंखला सुदृड करने के लिए विस्तार से चर्चा की एवं बिहार और भारत सरकार की मुख्य योजानओं के बारे में जानकारी दी. प्रधान अन्वेषक डा. महेश कुमार सिंह, ने पोषक अनाज का मानव स्वास्थ में महत्त्व एवं उत्पादन तकनीक पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम के अंत में डा. नेहा पाण्डेय ने किसानों को पोषक अनाज से उद्यमी बनाने और उन की आय बढ़ाने के लिए व्यापार की योजना पर विस्तार से चर्चा करी.

पशुधन स्वास्थ (Livestock Health) और उन के विकास के लिए संगोष्ठी

हिसार: लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय में कुलपति, डा. राजा शेखर वुंडरू, आईएएस, अतिरिक्त मुख्य सचिव, हरियाणा सरकार के दिशानिर्देशानुसार लुवास के 15वें स्थापना दिवस के उपलक्ष में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

लुवास की स्थापना वर्ष 2010 में शेर-ए-पंजाब, लाला लाजपत राय की स्मृति में की गई थी, जिस का उद्देश्य पशुधन, मुर्गी और पालतू पशुओं की महत्वपूर्ण बीमारियों के निदान, रोकथाम और नियंत्रण पर गहन शोध के माध्यम से पशुओं की पीड़ा को कम करना एवं पशुधन के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत रहना हैं.

यह दिन लुवास के लिए हर साल बहुत खास होता है क्योंकि आज के दिन लुवास विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी और यह लुवास में शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार में उत्कृष्टता की यात्रा की याद दिलाता है. इस अवसर पर पशु चिकित्सा महाविद्यालय हिसार के वर्ष 1969 के पास आउट बैच के पूर्व छात्रों ने भी अपने परिवार के साथ लुवास परिसर में पुनर्मिलन समारोह मनाया. इस कार्यक्रम का आयोजन पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता द्वारा संस्थागत नवाचार परिषद, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय के सहयोग से किया गया था.

पशुधन स्वास्थ संगोष्ठी (Livestock Health)
पशुधन स्वास्थ (Livestock Health seminar)

डा. नरेश जिंदल, ने कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में समारोह की अध्यक्षता की और डा. राजेश खुराना, निदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन और अध्यक्ष, संस्थागत नवाचार परिषद, लुवास ने सह-अध्यक्ष के रूप में भाग लिया. इस अवसर पर उपस्थित पशु चिकित्सा महाविद्यालय के वर्ष 1969 पासआउट बैच के पूर्व छात्रों ने लुवास स्थापना समारोह की सराहना करते हुए लुवास द्वारा पशु चिकित्सा, पशु विज्ञान शिक्षा तथा अनुसंधान के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए किये जा रहे कार्यो की तारीफ़ करी. पूर्व छात्रों ने अपने विचार साझा किए तथा छात्रों और विभाग के  सदस्यों को पशुधन एवं डेयरी उद्योग की वर्तमान जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान करने की सलाह दी, जिस से नवाचारों को बढ़ावा मिले.

स्थापना दिवस के अवसर पर कुलसचिव डा. एस. एस. ढाका ने लुवास में चल रही विभिन्न शैक्षिक, अनुसंधान एवं विस्तार कार्यक्रमों के बारे में अवगत कराया तथा लुवास की उपलब्धियों और विश्वविद्यालय के विभागीय सदस्यों और विद्यार्थियों द्वारा की जा रही विभिन्न गतिविधियों के साथ-साथ भविष्य के प्रयासों के बारे में भी विचार विमर्श किया.

कार्यक्रम के अंत लुवास के अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल ने पशुपालकों के लाभ के लिए विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे अनुसंधान पहलुओं पर भी विस्तार से चर्चा करी.

कृषि विश्वविद्यालय के लोगों को मिला ट्रेडमार्क (Trademark)

सबौर: बिहार कृषि विश्विद्यालय ने अपने लोगों और स्लोगन “Work is Worship, Work with Smile” पर पहला ट्रेडमार्क प्राप्त किया है, जो कुलपति प्रो. डी.आर. सिंह की परिकल्पना थी. कुलपति ने जनवरी 2023 में कार्य भार संभालने के बाद विश्वविद्यालय की शैक्षणिक, शोध, विस्तार और प्रशिक्षण गतिविधियों के विकास के लिए यह स्लोगन दिया था . यह ट्रेडमार्क भारत सरकार के ट्रेड मार्क्स रजिस्ट्र्री, ट्रेड मार्क्स अधिनियम, 1999 के अंतर्गत, ट्रेड मार्क पंजीकरण प्रमाणपत्र, धारा 23 (2), नियम 56 (1) के तहत 6 जून 2023 से प्रदान किया गया है.

यह विश्वविद्यालय के लिए ट्रेडमार्क के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ी मान्यता है. कुलपति के गतिशील नेतृत्व में विश्वविद्यालय शैक्षणिक, शोध, विस्तार और प्रशिक्षण के क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन कर रहा है. कुलपति ने इस उपलब्धि के लिए अनुसंधान निदेशक, डा. अनिल कुमार सिंह और आईटीएमयू प्रभारी अधिकारी, डा. नींटू मंडल को बधाई दी. उन्होंने आगे यह आशा व्यक्त की, कि विश्वविद्यालय भविष्य में और अधिक पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क प्राप्त करेगा.

Employment Opportunities: कृषि क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में राष्ट्रीय युवा पेशेवर विकास कार्यक्रमकृषि विस्तार में नई दक्षता, करियर के अवसर और अनुसंधान विषय पर 5 दिवसीय कार्यक्रम हुआ. कृषि महाविद्यालय के विस्तार शिक्षा विभाग तथा राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की जब कि राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद के निदेशक (कृषि विस्तार) डा. श्रवणन राज विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहे. कार्यक्रम में राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश पूसा संस्थान दिल्ली सहित विभिन्न प्रदेशों के 65 शोधकर्ताओं ने भाग लिया.

कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम कृषि विस्तार के क्षेत्र में नवाचार कौशल विकास और अनुसंधान उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है. विश्व में हो रहे तकनीकी विकास,अनुसंधान और सूचना प्रौद्योगिकी के प्रचारप्रसार के कारण कृषि विस्तार की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है जो अनुसंधान संस्थानों और कृषक समुदाय के बीच पुल का काम कर रही है.

उन्होंने बताया कि कृषि में रोजगार की बहुत संभावनाएं हैं. युवाओं को आधुनिक तरीकों से कृषि के विस्तार से जुडऩा होगा. सूचना प्रौद्योगिकी तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआई) को इस्तेमाल करके विस्तार शिक्षा को बढ़ावा देना होगा, जो वर्तमान समय की मांग है. उन्होंने कहा कि आज हमें कृषि विस्तार और कृषि क्षेत्र में नवीनतम तकनीक के प्रचारप्रसार करने में कृषक उत्पादक समूह (एफपीओ) के सहयोग की भी आवश्यकता है.

युवा पेशेवरों ,शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाकर उन्हें सीखने और नवाचार के लिए प्रेरित करना होगा. प्रतिभागियों को कृषि विस्तार के मार्गदर्शक बताते हुए उन्होंने कहा कि कृषि परिदृश्य में एक ठोस बदलाव लाने के लिए और अधिक बेहतर ढंग से कार्य करने की आवश्यकता है ताकि इस क्षेत्र को लाभकारी एवं आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद के संस्थान निदेशक एवं विशिष्ट अतिथि डा. श्रवणन राज ने कृषि क्षेत्र में युवाओं के लिए रोजगार की अपार संभावनाओं के संदर्भ में कहा कि कहा कि कृषि के क्षेत्र में युवाओं को आगे लाने के लिए प्रेरित एवं प्रशिक्षित करने के साथसाथ आधुनिक तरीकों से कृषि के विस्तार की भी आवश्यकता है.

विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षणों (Vocational Trainings) के लिए करें तुरंत आवेदन

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय स्थित सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में हरियाणा के अनुसूचित जाति /जनजाति के उम्मीदवारों को विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक प्रशिक्षण दिए जाएंगे. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि संस्थान में समय-समय पर अनुसूचित जाति/जनजाति के बेरोजगार और जरूरतमंद विशेष कर ग्रामीण युवक एवं युवतियों को प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे स्वयं का रोजगार स्थापित कर आत्मनिर्भर बन सके.

इसी कड़ी में अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्तियों के लिए 5 दिवसीय व्यवसायिक प्रशिक्षण का आयोजन भी किया जाएगा. जिस के अंतर्गत दूध से मूल्य संवर्धित उत्पाद तैयार करना, आचार और परिरक्षित पदार्थ बनाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण, बेकरी में मिलेट्स के उपयोग पर प्रशिक्षण दिया जाएगा. अनुसूचित जाति/ जनजाति के बेरोजगार और जरूरतमंद विशेष कर ग्रामीण युवक एवं युवतियां जो यह प्रशिक्षण लेना चाहते हैं वो गेट नंबर 3, लुद्दास रोड़ के नजदीक सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय हिसार मे आकर आवेदन कर सकते हैं. इन प्रशिक्षणों के लिए आवेदक की उम्र प्रमाणपत्र के अनुसार 18 से कम नहीं होनी चाहिए और वो किसी स्कूल मे अध्ययनरत नहीं होना चाहिए .विकलांग, विधवा, तलाकशुदा इत्यादि उम्मीदवारों को चयनित कमेटी द्वारा वरीयता दी जाएगी.

संस्थान के सहनिदेशक डा. अशोक गोदारा ने बताया कि आवेदन फौर्म 16 दिसम्बर 2024 तक किसी भी कार्य दिवस को सुबह 9 बजे से शाम 4.30 तक जमा करवा सकते है. चयनित प्रतिभागियों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद स्कीम के तहत खुद का रोजगार शुरू करने के लिए सहायता सामग्री देने का भी प्रावधान है.

फौर्म में सही विवरण न भरने या अधूरा छोड़ने या कोई आवश्यक दस्तावेज न लगाने की अवस्था में आवेदन रद्द कर दिया जाएगा. आवेदन फौर्म के साथ स्वयं सत्यापित दस्तावेजों की कौपी को संलग्न करना अति आवश्यक है जैसे शैक्षणिक योग्यता के प्रमाणपत्र, आयु के लिए कोई भी हरियाणा सरकार द्वारा प्रमाणित प्रमाणपत्र, हरियाणा सरकार द्वारा जारी अनुसूचित-जाति/जनजाति प्रमाणपत्र, आधारकार्ड, स्वयं सत्यापित नवीनतम रंगीन फोटो, सक्रिय बैंक अकाउंट की कौपी के पहले पृष्ठ की प्रति जिस पर खाताधारक और बैंक का विवरण दिया हो इत्यादि.

फौर्म भरने से पहले ध्यान दिया जाए कि परिवार पहचान पत्र के अनुसार किसी भी सदस्य ने इस से पहले इस विश्वविद्यालय या इस के संबंधित हरियाणा के किसी भी कृषि विज्ञान केन्द्रों/संस्थानों से अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों के लिए सहायता प्राप्त स्कीम के तहत किसी भी तरह का प्रशिक्षण न लिया हुआ हो और इस संबंध में उम्मीदवार को एक अंडरटेकिंग इस संस्थान में देनी होगी. आवेदक को निर्धारित फौर्म भर कर ही खुद के हस्ताक्षर करने होंगे वरना उम्मीदवार का फौर्म रद्द कर दिया जाएगा.

मृदा स्वास्थ्य (Soil Health) अच्छा तो खेती से पैदावार अच्छी

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग द्वारा विश्व मृदा दिवस पर सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में मिट्टी की देखभाल: माप, निगरानी व प्रबंधन पर विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी.आर. काम्बोज ने कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी. आर. काम्बोज ने कहा कि भूमि की उर्वरक क्षमता बनाएं रखने के लिए मिट्टी की जांच, फसल चक्र में बदलाव, जैविक प्रबंधन और कम भूजल दोहन वाली फ़सलें व तकनीकें अपनाना बहुत जरुरी है. उन्होंने कहा कि मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो पैदावार भी बढ़ेगी. इस लिए किसान नियमित रुप से मिट्टी की जांच करवाते रहें और उस के अनुसार ही फसलों का चयन करें. क्योंकि अधिक रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से किसान की लागत भी बढ़ती है और मिट्टी के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचता है.

विश्व मृदा दिवस का उद्देश्य मिट्टी के संरक्षण, महत्व और उस के टिकाऊ उपयोग के प्रति जागरूकता को बढ़ाना है. मिट्टी पृथ्वी पर जीवन का आधार है क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन में मुख्य भूमिका निभाती है. विश्व में लगभग 95 फीसदी  खाद्य पदार्थ मिट्टी पर निर्भर है. उन्होंने कहा कि मृदा की उपजाऊ क्षमता को बनाए रखना खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए बहुत जरूरी है.

उन्होंने कहा कि किसानों को अपने खेत की मिट्टी की जांच बिलकुल करवानी चाहिए. इससे किसान कम मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करके अधिक पैदावार ले सकते हैं. किसानों की मिट्टी की जांच के लिए विश्वविद्यालय द्वारा उचित प्रबंध किए गए हैं. किसानों को परंपरागत फसलों के स्थान पर दलहनी एवं तिलहनी फसलों की खेती करने के लिए आगे आने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि इस से उनकी आर्थिक स्थिति और अधिक मजबूत होगी. किसान फसल अवशेष ना जलाएं क्योंकि इस से भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले जीवाणु खत्म हो जाते हैं.

मृदा के क्षेत्र में वैज्ञानिकों की बहुत बड़ी भूमिका रही है. वैज्ञानिकों के द्वारा किए जा रहे शोध कार्यों, सरकार द्वारा प्रदत्त कि जा रही सुविधाओं तथा किसानों के द्वारा की जा रही मेहनत राष्ट्र की प्रगति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने विभाग की शोध संबंधी प्राथमिकताओं के बारे में बताते हुए मृदा उर्वरता के जिला स्तरीय मानचित्र बनाने पर भी सुझाव दिया. कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने बताया कि विभाग द्वारा साल 2024 में मिट्टी के 3000 तथा पानी के 2800 नमूनों की जांच की गई. उन्होंने कुलपति द्वारा 5 कृषि विज्ञान केंद्रों में नई मिट्टी प्रयोगशाला बनाने के लिए दिए गए बजट पर उनका धन्यवाद किया.