ग्रामीण महिलाएं (Rural Women): सहकारिता क्षेत्र में कितनी हिस्सेदारी और क्या हैं योजनाएं

नई दिल्ली : राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के अनुसार, 28 नवंबर, 2024 तक देश में 25,385 महिला कल्याण सहकारी समितियां पंजीकृत हैं. इस के अलावा देश में 1,44,396 डेयरी सहकारी समितियां हैं, जहां काफी तादाद में ग्रामीण महिलाएं इस क्षेत्र में कार्यरत हैं.

सरकार ने सहकारी समितियों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहल की हैं, जिस में बहुराज्य सहकारी समितियां (एमएससीएस) अधिनियम, 2002 को एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के माध्यम से संशोधित किया गया, जिस में एमएससीएस के बोर्ड में महिलाओं के लिए 2 सीटों के आरक्षण के लिए एक विशिष्ट प्रावधान किया गया, जिसे अनिवार्य कर दिया गया है. इस से सहकारी क्षेत्र में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने का रास्ता साफ होगा.

वहीँ सहकारिता मंत्रालय द्वारा पैक्स के लिए मौडल उपनियम तैयार किए गए हैं और देशभर के राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों द्वारा अपनाए गए हैं. इस में पैक्स के बोर्ड में महिला निदेशकों की जरूरत को अनिवार्य किया गया है. इस से 1 लाख से अधिक पैक्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व और उन के द्वारा निर्णय लेना सुनिश्चित हो रहा है.

राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (एनसीडीसी), सहकारिता मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक सांविधिक निगम है, जो पिछले कई सालों से महिला सहकारी समितियों की सामाजिकआर्थिक स्थिति को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जिस से उन्हें व्यवसाय मौडल आधारित गतिविधियां अपनाने में सक्षम बनाया जा सके.

एनसीडीसी विशेष रूप से महिला सहकारी समितियों के लिए निम्नलिखित योजनाओं को लागू कर रहा है :

स्वयंशक्ति सहकारी योजना : इस योजना के अंतर्गत महिला स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) को सामान्य/सामूहिक सामाजिकआर्थिक गतिविधियों के लिए पर्याप्त बैंक ऋण की सुविधा के लिए 3 साल तक के लिए कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान किया जाता है.

नंदिनी सहकार : इस योजना के तहत महिला सहकारी समितियों को 5-8 साल तक की अवधि के लिए सावधि ऋण प्रदान किया जाता है, जिस में सावधि ऋण पर 2 फीसदी तक की ब्याज छूट दी जाती है. इस योजना के तहत वित्तीय सहायता एनसीडीसी को सौंपे गए व्यवसाय योजना आधारित गतिविधि/सेवा के लिए प्रदान की जाती है.

इस के अलावा सहकारिता मंत्रालय, नाबार्ड, एनडीडीबी, एनएफडीबी और राज्य सरकारों के साथ मिल कर भारत में सहकारिता आंदोलन को मजबूत करने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहा है. इस में सभी पंचायतों/गांवों में नई बहुद्देशीय पैक्स, डेयरी और मत्स्य सहकारी समितियों की स्थापना करना शामिल है. प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए, एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) शुरू की गई है. एनडीडीबी को 1,03,000 से अधिक डेयरी सहकारी समितियों के गठन/मजबूतीकरण का काम सौंपा गया है.

इस के अतिरिक्त गुजरात में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” पायलट परियोजना का उद्देश्य प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बना कर और सदस्यों को रुपे केसीसी प्रदान कर के उन्हें सशक्त बनाना है. इस पहल का उद्देश्य डेयरी सहकारी समितियों में काफी संख्या में ग्रामीण महिलाओं को शामिल कर के उन की बाजार तक पहुंच को बढ़ाना और उन के वित्तीय व सामाजिक सशक्तीकरण में योगदान देना है.

एमएससीएस (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत सहकारी चुनाव प्राधिकरण की स्थापना की गई है और इस ने बहुराज्य सहकारी समितियों के 70 चुनाव आयोजित किए हैं और बोर्ड में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की है.

एनसीडीसी ने 31 मार्च, 2024 तक विशेष रूप से महिलाओं द्वारा प्रवर्तित सहकारी समितियों के विकास के लिए क्रमशः 7,708.09 करोड़ रुपए और 6,426.36 करोड़ रुपए की संचयी वित्तीय सहायता स्वीकृत और वितरित की है.

भारत सरकार ने गुजरात राज्य के पंचमहल और बनासकांठा जिलों में “सहकारी समितियों के बीच सहयोग” नामक एक पायलट परियोजना लागू की है, जिस के तहत प्राथमिक डेयरी सहकारी समितियों को जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) का बिजनैस कौरेसपोंडेंट/बैंक मित्र बनाया गया है और सदस्यों को माइक्रोएटीएम प्रदान किए गए हैं.

इस के अलावा डेयरी सहकारी समितियों के सदस्यों (विशेष रूप से महिला सदस्यों) को उन की तत्काल वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए डीसीसीबी द्वारा रुपे केसीसी प्रदान किया जा रहा है. पायलट प्रोजैक्ट के दौरान दोनों जिलों में डीसीसीबी ने अपने सदस्यों को 22,344 रुपे केसीसी जारी किए हैं, जिन में 6,382 पशुपालन केसीसी शामिल हैं, जिस का लाभ ज्यादातर महिलाओं को मिला है. मंत्रालय ने ग्रामीण महिलाओं के सशक्तीकरण पर इन पहलों के प्रभाव के लिए कोई विशेष अध्ययन नहीं किया है.

Marketing and Branding: क्या है किसानों की आय बढ़ाने का तरीका

सबौर: बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर में सेंटर औफ़ एकसीलेन्स मिलेट्स वैल्यू चैन परियोजना के अंतर्गत बिहार राज्य में पोषक अनाज की मार्केटिंग और ब्राडंगि (Branding) रणनीतियों पर ब्रेनस्ट्रोमिंग सेशन का आयोजन 6 दिशम्बर 2024 को किया गया. इस कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में बि० ए० यु० के निदेशक अनुसंधान, डा. श्रीनिवास राय, प्राचार्य बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर, प्रधान अन्वेषक डा.महेश कुमार सिंह, उप अन्वेषक डा. बीरेंद्र सिंह, एवं डा. धर्मेंदर वर्मा, मौजूद थे. डा. नेहा पाण्डेय सहायक प्रध्यापक सह कैनिय वैज्ञानिक प्रसार शिक्षा, बि० ए० सी० सबौर ने कार्यक्रम का संचालन किया.

इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे निदेशक अनुसंधान बि० ए० यु० सबौर डा.ए.के.सिंह का मानना है कि पोषक अनाज का उत्पादन कम उपजाऊ, असंचित क्षेत्र एवं बदलते जलवायु में असानी से किया जा रहा है, साथ ही विभिन्न बिमारीयों जैसे मोटापा, चीनी रोग, हृदय रोग, हड्डी रोग एवं बेहतर स्वास्थ के लिए इन को भोजन में शामिल करना आज की जरूरत हो गई है, जिस से श्री अन्न ब्रांडिग एवं मार्केटिंग से किसानों की आय और बढ़ेगी. डा. श्रीनिवास राय, प्राचार्य बिहार कृषि महाविद्यालय सबौर, ने किसानो को भरोसा दिलाया की पोषक अनाज उत्पादन विपणन एवं ब्रांडिंग में विश्वद्यिालय, किसान भाईयों एवं उद्धमियों को पूर्ण सहयोग प्रदान करेगी.

Marketing and Branding

इस एक दिवसीय कार्यक्रम के मुख्य वक्ता डा. रफी, वैज्ञानिक भारतीय श्री अन्न अनुसंधान संस्थान हैदराबाद ने पोषक अनाज के बाजार संर्पक स्थापित करने के बारे में विस्तार से चर्चा की. वहीँ दुसरे मुख्य वक्ता डा. रामदत्त सहायक प्रध्यापक, डा. राजेन्द्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा, समस्तीपुर ने पोषक अनाज को विकसित करने के बारे मे चर्चा की. कार्यक्रम के तीसरे मुख्य डा. सुधानन्द प्रसाद लाल ने पोषक अनाज के मुल्य श्रृंखला सुदृड करने के लिए विस्तार से चर्चा की एवं बिहार और भारत सरकार की मुख्य योजानओं के बारे में जानकारी दी. प्रधान अन्वेषक डा. महेश कुमार सिंह, ने पोषक अनाज का मानव स्वास्थ में महत्त्व एवं उत्पादन तकनीक पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम के अंत में डा. नेहा पाण्डेय ने किसानों को पोषक अनाज से उद्यमी बनाने और उन की आय बढ़ाने के लिए व्यापार की योजना पर विस्तार से चर्चा करी.

पशुधन स्वास्थ (Livestock Health) और उन के विकास के लिए संगोष्ठी

हिसार: लाला लाजपत राय पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान विश्वविद्यालय में कुलपति, डा. राजा शेखर वुंडरू, आईएएस, अतिरिक्त मुख्य सचिव, हरियाणा सरकार के दिशानिर्देशानुसार लुवास के 15वें स्थापना दिवस के उपलक्ष में एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

लुवास की स्थापना वर्ष 2010 में शेर-ए-पंजाब, लाला लाजपत राय की स्मृति में की गई थी, जिस का उद्देश्य पशुधन, मुर्गी और पालतू पशुओं की महत्वपूर्ण बीमारियों के निदान, रोकथाम और नियंत्रण पर गहन शोध के माध्यम से पशुओं की पीड़ा को कम करना एवं पशुधन के विकास के लिए निरंतर प्रयासरत रहना हैं.

यह दिन लुवास के लिए हर साल बहुत खास होता है क्योंकि आज के दिन लुवास विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी और यह लुवास में शिक्षण, अनुसंधान और विस्तार में उत्कृष्टता की यात्रा की याद दिलाता है. इस अवसर पर पशु चिकित्सा महाविद्यालय हिसार के वर्ष 1969 के पास आउट बैच के पूर्व छात्रों ने भी अपने परिवार के साथ लुवास परिसर में पुनर्मिलन समारोह मनाया. इस कार्यक्रम का आयोजन पशु चिकित्सा महाविद्यालय के अधिष्ठाता द्वारा संस्थागत नवाचार परिषद, मानव संसाधन प्रबंधन निदेशालय के सहयोग से किया गया था.

पशुधन स्वास्थ संगोष्ठी (Livestock Health)
पशुधन स्वास्थ (Livestock Health seminar)

डा. नरेश जिंदल, ने कार्यक्रम अध्यक्ष के रूप में समारोह की अध्यक्षता की और डा. राजेश खुराना, निदेशक, मानव संसाधन प्रबंधन और अध्यक्ष, संस्थागत नवाचार परिषद, लुवास ने सह-अध्यक्ष के रूप में भाग लिया. इस अवसर पर उपस्थित पशु चिकित्सा महाविद्यालय के वर्ष 1969 पासआउट बैच के पूर्व छात्रों ने लुवास स्थापना समारोह की सराहना करते हुए लुवास द्वारा पशु चिकित्सा, पशु विज्ञान शिक्षा तथा अनुसंधान के स्तर को ऊंचा उठाने के लिए किये जा रहे कार्यो की तारीफ़ करी. पूर्व छात्रों ने अपने विचार साझा किए तथा छात्रों और विभाग के  सदस्यों को पशुधन एवं डेयरी उद्योग की वर्तमान जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अनुसंधान करने की सलाह दी, जिस से नवाचारों को बढ़ावा मिले.

स्थापना दिवस के अवसर पर कुलसचिव डा. एस. एस. ढाका ने लुवास में चल रही विभिन्न शैक्षिक, अनुसंधान एवं विस्तार कार्यक्रमों के बारे में अवगत कराया तथा लुवास की उपलब्धियों और विश्वविद्यालय के विभागीय सदस्यों और विद्यार्थियों द्वारा की जा रही विभिन्न गतिविधियों के साथ-साथ भविष्य के प्रयासों के बारे में भी विचार विमर्श किया.

कार्यक्रम के अंत लुवास के अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल ने पशुपालकों के लाभ के लिए विश्वविद्यालय द्वारा किए जा रहे अनुसंधान पहलुओं पर भी विस्तार से चर्चा करी.

कृषि विश्वविद्यालय के लोगों को मिला ट्रेडमार्क (Trademark)

सबौर: बिहार कृषि विश्विद्यालय ने अपने लोगों और स्लोगन “Work is Worship, Work with Smile” पर पहला ट्रेडमार्क प्राप्त किया है, जो कुलपति प्रो. डी.आर. सिंह की परिकल्पना थी. कुलपति ने जनवरी 2023 में कार्य भार संभालने के बाद विश्वविद्यालय की शैक्षणिक, शोध, विस्तार और प्रशिक्षण गतिविधियों के विकास के लिए यह स्लोगन दिया था . यह ट्रेडमार्क भारत सरकार के ट्रेड मार्क्स रजिस्ट्र्री, ट्रेड मार्क्स अधिनियम, 1999 के अंतर्गत, ट्रेड मार्क पंजीकरण प्रमाणपत्र, धारा 23 (2), नियम 56 (1) के तहत 6 जून 2023 से प्रदान किया गया है.

यह विश्वविद्यालय के लिए ट्रेडमार्क के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर बहुत बड़ी मान्यता है. कुलपति के गतिशील नेतृत्व में विश्वविद्यालय शैक्षणिक, शोध, विस्तार और प्रशिक्षण के क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन कर रहा है. कुलपति ने इस उपलब्धि के लिए अनुसंधान निदेशक, डा. अनिल कुमार सिंह और आईटीएमयू प्रभारी अधिकारी, डा. नींटू मंडल को बधाई दी. उन्होंने आगे यह आशा व्यक्त की, कि विश्वविद्यालय भविष्य में और अधिक पेटेंट, डिजाइन और ट्रेडमार्क प्राप्त करेगा.

Employment Opportunities: कृषि क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में राष्ट्रीय युवा पेशेवर विकास कार्यक्रमकृषि विस्तार में नई दक्षता, करियर के अवसर और अनुसंधान विषय पर 5 दिवसीय कार्यक्रम हुआ. कृषि महाविद्यालय के विस्तार शिक्षा विभाग तथा राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की जब कि राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद के निदेशक (कृषि विस्तार) डा. श्रवणन राज विशिष्ट अतिथि के तौर पर मौजूद रहे. कार्यक्रम में राजस्थान, पंजाब, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश पूसा संस्थान दिल्ली सहित विभिन्न प्रदेशों के 65 शोधकर्ताओं ने भाग लिया.

कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने कहा कि यह प्रशिक्षण कार्यक्रम कृषि विस्तार के क्षेत्र में नवाचार कौशल विकास और अनुसंधान उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए सामूहिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है. विश्व में हो रहे तकनीकी विकास,अनुसंधान और सूचना प्रौद्योगिकी के प्रचारप्रसार के कारण कृषि विस्तार की भूमिका पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है जो अनुसंधान संस्थानों और कृषक समुदाय के बीच पुल का काम कर रही है.

उन्होंने बताया कि कृषि में रोजगार की बहुत संभावनाएं हैं. युवाओं को आधुनिक तरीकों से कृषि के विस्तार से जुडऩा होगा. सूचना प्रौद्योगिकी तकनीकों जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआई) को इस्तेमाल करके विस्तार शिक्षा को बढ़ावा देना होगा, जो वर्तमान समय की मांग है. उन्होंने कहा कि आज हमें कृषि विस्तार और कृषि क्षेत्र में नवीनतम तकनीक के प्रचारप्रसार करने में कृषक उत्पादक समूह (एफपीओ) के सहयोग की भी आवश्यकता है.

युवा पेशेवरों ,शिक्षाविदों और नीति निर्माताओं को एक मंच पर लाकर उन्हें सीखने और नवाचार के लिए प्रेरित करना होगा. प्रतिभागियों को कृषि विस्तार के मार्गदर्शक बताते हुए उन्होंने कहा कि कृषि परिदृश्य में एक ठोस बदलाव लाने के लिए और अधिक बेहतर ढंग से कार्य करने की आवश्यकता है ताकि इस क्षेत्र को लाभकारी एवं आत्मनिर्भर बनाया जा सके.

राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान हैदराबाद के संस्थान निदेशक एवं विशिष्ट अतिथि डा. श्रवणन राज ने कृषि क्षेत्र में युवाओं के लिए रोजगार की अपार संभावनाओं के संदर्भ में कहा कि कहा कि कृषि के क्षेत्र में युवाओं को आगे लाने के लिए प्रेरित एवं प्रशिक्षित करने के साथसाथ आधुनिक तरीकों से कृषि के विस्तार की भी आवश्यकता है.

विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षणों (Vocational Trainings) के लिए करें तुरंत आवेदन

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय स्थित सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में हरियाणा के अनुसूचित जाति /जनजाति के उम्मीदवारों को विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक प्रशिक्षण दिए जाएंगे. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने यह जानकारी देते हुए बताया कि संस्थान में समय-समय पर अनुसूचित जाति/जनजाति के बेरोजगार और जरूरतमंद विशेष कर ग्रामीण युवक एवं युवतियों को प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे स्वयं का रोजगार स्थापित कर आत्मनिर्भर बन सके.

इसी कड़ी में अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्तियों के लिए 5 दिवसीय व्यवसायिक प्रशिक्षण का आयोजन भी किया जाएगा. जिस के अंतर्गत दूध से मूल्य संवर्धित उत्पाद तैयार करना, आचार और परिरक्षित पदार्थ बनाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण, बेकरी में मिलेट्स के उपयोग पर प्रशिक्षण दिया जाएगा. अनुसूचित जाति/ जनजाति के बेरोजगार और जरूरतमंद विशेष कर ग्रामीण युवक एवं युवतियां जो यह प्रशिक्षण लेना चाहते हैं वो गेट नंबर 3, लुद्दास रोड़ के नजदीक सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी, प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविधालय हिसार मे आकर आवेदन कर सकते हैं. इन प्रशिक्षणों के लिए आवेदक की उम्र प्रमाणपत्र के अनुसार 18 से कम नहीं होनी चाहिए और वो किसी स्कूल मे अध्ययनरत नहीं होना चाहिए .विकलांग, विधवा, तलाकशुदा इत्यादि उम्मीदवारों को चयनित कमेटी द्वारा वरीयता दी जाएगी.

संस्थान के सहनिदेशक डा. अशोक गोदारा ने बताया कि आवेदन फौर्म 16 दिसम्बर 2024 तक किसी भी कार्य दिवस को सुबह 9 बजे से शाम 4.30 तक जमा करवा सकते है. चयनित प्रतिभागियों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद स्कीम के तहत खुद का रोजगार शुरू करने के लिए सहायता सामग्री देने का भी प्रावधान है.

फौर्म में सही विवरण न भरने या अधूरा छोड़ने या कोई आवश्यक दस्तावेज न लगाने की अवस्था में आवेदन रद्द कर दिया जाएगा. आवेदन फौर्म के साथ स्वयं सत्यापित दस्तावेजों की कौपी को संलग्न करना अति आवश्यक है जैसे शैक्षणिक योग्यता के प्रमाणपत्र, आयु के लिए कोई भी हरियाणा सरकार द्वारा प्रमाणित प्रमाणपत्र, हरियाणा सरकार द्वारा जारी अनुसूचित-जाति/जनजाति प्रमाणपत्र, आधारकार्ड, स्वयं सत्यापित नवीनतम रंगीन फोटो, सक्रिय बैंक अकाउंट की कौपी के पहले पृष्ठ की प्रति जिस पर खाताधारक और बैंक का विवरण दिया हो इत्यादि.

फौर्म भरने से पहले ध्यान दिया जाए कि परिवार पहचान पत्र के अनुसार किसी भी सदस्य ने इस से पहले इस विश्वविद्यालय या इस के संबंधित हरियाणा के किसी भी कृषि विज्ञान केन्द्रों/संस्थानों से अनुसूचित जाति/जनजाति के लोगों के लिए सहायता प्राप्त स्कीम के तहत किसी भी तरह का प्रशिक्षण न लिया हुआ हो और इस संबंध में उम्मीदवार को एक अंडरटेकिंग इस संस्थान में देनी होगी. आवेदक को निर्धारित फौर्म भर कर ही खुद के हस्ताक्षर करने होंगे वरना उम्मीदवार का फौर्म रद्द कर दिया जाएगा.

मृदा स्वास्थ्य (Soil Health) अच्छा तो खेती से पैदावार अच्छी

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग द्वारा विश्व मृदा दिवस पर सायना नेहवाल कृषि प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण एवं शिक्षा संस्थान में मिट्टी की देखभाल: माप, निगरानी व प्रबंधन पर विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी.आर. काम्बोज ने कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो बी. आर. काम्बोज ने कहा कि भूमि की उर्वरक क्षमता बनाएं रखने के लिए मिट्टी की जांच, फसल चक्र में बदलाव, जैविक प्रबंधन और कम भूजल दोहन वाली फ़सलें व तकनीकें अपनाना बहुत जरुरी है. उन्होंने कहा कि मिट्टी का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा तो पैदावार भी बढ़ेगी. इस लिए किसान नियमित रुप से मिट्टी की जांच करवाते रहें और उस के अनुसार ही फसलों का चयन करें. क्योंकि अधिक रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से किसान की लागत भी बढ़ती है और मिट्टी के स्वास्थ्य को भी नुकसान पहुँचता है.

विश्व मृदा दिवस का उद्देश्य मिट्टी के संरक्षण, महत्व और उस के टिकाऊ उपयोग के प्रति जागरूकता को बढ़ाना है. मिट्टी पृथ्वी पर जीवन का आधार है क्योंकि यह खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता और पर्यावरण संतुलन में मुख्य भूमिका निभाती है. विश्व में लगभग 95 फीसदी  खाद्य पदार्थ मिट्टी पर निर्भर है. उन्होंने कहा कि मृदा की उपजाऊ क्षमता को बनाए रखना खाद्य सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए बहुत जरूरी है.

उन्होंने कहा कि किसानों को अपने खेत की मिट्टी की जांच बिलकुल करवानी चाहिए. इससे किसान कम मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करके अधिक पैदावार ले सकते हैं. किसानों की मिट्टी की जांच के लिए विश्वविद्यालय द्वारा उचित प्रबंध किए गए हैं. किसानों को परंपरागत फसलों के स्थान पर दलहनी एवं तिलहनी फसलों की खेती करने के लिए आगे आने का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा कि इस से उनकी आर्थिक स्थिति और अधिक मजबूत होगी. किसान फसल अवशेष ना जलाएं क्योंकि इस से भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने वाले जीवाणु खत्म हो जाते हैं.

मृदा के क्षेत्र में वैज्ञानिकों की बहुत बड़ी भूमिका रही है. वैज्ञानिकों के द्वारा किए जा रहे शोध कार्यों, सरकार द्वारा प्रदत्त कि जा रही सुविधाओं तथा किसानों के द्वारा की जा रही मेहनत राष्ट्र की प्रगति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.

अनुसंधान निदेशक डा. राजबीर गर्ग ने विभाग की शोध संबंधी प्राथमिकताओं के बारे में बताते हुए मृदा उर्वरता के जिला स्तरीय मानचित्र बनाने पर भी सुझाव दिया. कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा ने बताया कि विभाग द्वारा साल 2024 में मिट्टी के 3000 तथा पानी के 2800 नमूनों की जांच की गई. उन्होंने कुलपति द्वारा 5 कृषि विज्ञान केंद्रों में नई मिट्टी प्रयोगशाला बनाने के लिए दिए गए बजट पर उनका धन्यवाद किया.

किसानों को सब्सिडी (Subsidy) के साथ मिलेगी पूरी खाद

नई दिल्ली: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य सभा में फसलों पर एमएसपी, किसानों की कर्जमाफी समेत कई विषयों पर सवालों के जवाब देते हुए कहा कि कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए किसानों को एमएसपी देने से इंकार कर दिया था, जब कि‍ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार पिछले 10 वर्षों से एमएसपी में लगातार बढ़ोतरी कर रही है, वहीं शिवराज सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार उपज एमएसपी पर खरीदती रहेगी. चौहान ने कहा कि हमारी सरकार 50% से ज्यादा का एमएसपी तय करने के साथ ही किसानों से उपज भी खरीदेगी. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार किसानों को लाभकारी मूल्य देने के लिए प्रतिबद्ध है. उन्होंने कहा कि साल 2015 में इस मंत्रालय का नाम कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय रखा गया, इस से पहले किसान कल्याण का कोई संबंध ही नहीं था.

राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान को नया नाम “किसानों के लाड़ले” दिया है. शिवराज सिंह चौहान राज्य सभा में प्रश्नकाल के दौरान कृषि संबंधी सवालों के जवाब दे रहे थे, इसी दौरान सभापति धनखड़ ने कहा कि जिस आदमी की पहचान देश में लाड़ली बहनों के भैया के नाम से है, अब वो किसान का लाड़ला भाई भी होगा, मैं पूरी तरह आशावान हूं कि ऊर्जावान मंत्री अपने नाम ‘शिवराज’ के अनुरूप ये करके दिखाएंगे. सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि आज से मैंने आपका नामकरण कर दिया- “किसानों के लाड़ले”.

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मैं आश्वस्त करना चाहता हूं कि किसानों की उपज मिनिमम सपोर्ट प्राइस पर खरीदी जाएगी. हमारी सरकार 50% से ज्यादा का एमएसपी तय भी करेगी और उपज भी खरीदेगी. उन्होंने कहा कि यह नरेंद्र मोदी की सरकार है, मोदी की गारंटी वादा पूरा करने की गारंटी है. शिवराज सिंह ने कहा कि जब कांग्रेस सत्ता में थी तो उन्होंने कहा था कि वो एम.एस. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार नहीं कर सकते हैं.

साल 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ही ये फैसला किया कि लागत पर 50% मुनाफा जोड़कर एमएसपी की दरें तय की जाएगी. जब कांग्रेस सरकार थी, तब कभी भी 50% से ज्यादा लागत पर इन्होंने किसानों को लाभ नहीं दिया, लेकिन हम कटिबद्ध हैं, प्रतिबद्ध हैं कि कम से कम 50% से ज्यादा लाभ देकर किसानों की फसलें खरीदेंगे.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मोदी की सरकार बहुत दूरदर्शिता से काम करती है. किसानों का कल्याण और विकास प्रधानमंत्री मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकता है. कृषि के लिए बजट आवंटन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है. साल 2013-14 तक ये केवल 21,900 करोड़ रुपए था, जो अब बढ़कर 1,22,528 करोड़ रुपए हो गया है. किसान कल्याण के लिए हमारी 6 प्राथमिकताएं हैं- हम उत्पादन बढ़ाएंगे, उत्पादन की लागत घटाएंगे, उत्पादन का उचित मूल्य देंगे, फसल में अगर नुकसान हो तो उसकी भरपाई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के द्वारा करेंगे, हम कृषि का विविधीकरण करेंगे और प्राकृतिक खेती की तरफ ले जाकर किसानों की आय इतनी बढ़ाएंगे कि बार-बार किसान कर्ज माफी के लिए मांग करने की स्थिति में नहीं होगा.

हम आय बढ़ाने पर विश्वास रखते हैं. मेरी कोशिश रहेगी कि पूरी सामर्थ्य और क्षमता झोंक कर काम कर के अपने किसानों की सेवा कर सकूं और कृषि के परिदृश्य को हम और बेहतर बना सकें. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकसित भारत का संकल्प लिया है उसी का एक रोडमैप हमने बनाया है, जिसे पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे.

शिवराज सिंह ने कहा कि हम न केवल फर्टिलाइजर उपलब्ध करवा रहे हैं, बल्कि सब्सिडी भी दे रहे हैं. पिछली बार किसानों को 1,94,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी है. तब जाकर यूरिया की बोरी हो, डीएपी की बोरी हो, ये किसानों को सस्ती मिलती है. 2100 रुपए की एक बोरी पर सब्सिडी देने का चमत्कार नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है और सारे भारत के किसानों को सब्सिडी देकर हम फर्टिलाइजर समय पर उपलब्ध कराने का काम कर भी रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे. कैमिकल फर्टिलाइजर के असंतुलित और अंधाधुंध प्रयोग के कारण जो नुकसान होते हैं, उसके लिए भी हम जागरूकता पैदा कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उस के लिए भी चिंतित हैं. इस के लिए जैविक खेती और प्राकृतिक खेती की तरफ हम ध्यान दे रहे हैं, लेकिन मैं फिर पूरी जिम्मेदारी के साथ कहना चाहूंगा कि, किसानों को सब्सिडी के साथ पूरा खाद देने में सरकार ने ना तो कोताही बरती है, ना ही आगे कभी बरतेगी पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध कराया जाएगा.

बीएयू मेँ विश्व मृदा दिवस (World Soil Day) 2024 का हुआ आयोजन

बीएयू , सबौर ने 5 दिसंबर 2024 को विश्व मृदा दिवस 2024 बड़े जोश के साथ मनाया. इस वर्ष का विषय, ‘ मिट्टी का खयाल: मापें, निगरानी करें, प्रबंधित करें’ , स्थायी प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने, वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और पर्यावरणीय स्थिरता को मजबूत करने के लिए सटीक मृदा डेटा की आवश्यकता को रेखांकित करता है.

इस अवसर पर, बीएयू सबौर के कुलपति, डा. डी. आर. सिंह ने अपने संदेश में आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित करने के लिए मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन के महत्त्व पर जोर दिया. उन्होंने मृदा संरक्षण के लिए सामूहिक प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए इस तरह की जागरूकता पहलों के आयोजन के महत्व पर प्रकाश डाला.

भागलपुर के छात्रों ने विश्वविद्यालय परिसर में मृदा स्वास्थ्य जागरूकता को बढ़ावा देने के लिए उत्साहपूर्वक भाग लिया. इस अवसर पर भारतीय मृदा विज्ञान सोसाइटी, सबौर चैप्टर द्वारा ई-न्यूजलैटर के चौथे अंक का विमोचन भी किया गया.

इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण प्रोफैसर गौतम कुमार घोष (विश्वभारती, श्रीनिकेतन, पश्चिम बंगाल) का आमंत्रित व्याख्यान था. उन के विचार “समेकित पोषक प्रबंधन (INM)” के माध्यम से फसल उत्पादकता और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाए रखने की रणनीतियों पर केंद्रित थे.

छात्रकेंद्रित गतिविधियों, जैसे “KNOW YOUR SOIL” क्विज़ और जस्ट-ए-मिनट (JAM) प्रतियोगिता ने प्रतिभागियों की भागीदारी और मृदा संरक्षण की गहरी समझ को प्रोत्साहित किया. विजेताओं को भारतीय मृदा संरक्षण सोसाइटी, सबौर चैप्टर द्वारा पुरस्कार प्रदान किए गए.

हाथोंहाथ सीखने के अनुभव को जोड़ते हुए, मृदा परीक्षण किट पर एक प्रशिक्षण सत्र आयोजित किया गया, जिस में स्कूल के छात्रों को मृदा स्वास्थ्य मूल्यांकन की व्यावहारिक जानकारी दी गई.  पूरे दिन, पीजी लैब-1 के पास पौधारोपण क्षेत्र में मृदा संरक्षण के तरीकों को प्रदर्शित करने वाले शैक्षिक पोस्टर प्रदर्शित किए गए.
विभागाध्यक्ष डा. अंशुमान कोहली ने भी भविष्य में इस तरह के आयोजन के लिए संकाय सदस्यों और छात्रों को प्रोत्साहित किया. नवोदय विद्यालय, नगरपारा, भागलपुर के 100 छात्रों और विभाग के 60 स्नातकोत्तर छात्रों ने कार्यक्रम में भाग लिया.

कार्यक्रम का समापन इस संदेश के साथ हुआ कि मिट्टी के सेहत को बनाए रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है, जो स्थायी कृषि और पर्यावरणीय स्थिरता को प्राप्त करने में इस की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करती है.

कृषि के लिए डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (Digital Public Infrastructure)

नई दिल्ली: भारत सरकार ने 2 सितंबर, 2024 को घोषित डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (डीपीआई) का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए एक ऐतिहासिक उपलब्धि प्राप्त की है. गुजरात राज्य 5 दिसंबर, 2024 को किसानों की लक्षित संख्या का 25 फीसदी किसान आईडी बनाने वाला देश का पहला राज्य बन चुका है. यह सफलता भारत सरकार की ‘एग्री स्टैक पहल’ के एक भाग के रूप में एक व्यापक मानकसंचालित डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर ने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम का प्रदर्शन करता है.

किसान आईडी, आधारकार्ड पर आधारित किसानों की एक अनूठी डिजिटल पहचान है, जो राज्य की भूमि रिकौर्ड प्रणाली से सक्रिय रूप से जुड़ी हुई है, जिस का मतलब है कि किसान आईडी एक व्यक्तिगत किसान के भूमि रिकौर्ड विवरण में बदलाव के साथसाथ स्वचालित रूप से अपडेट होती है. डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत डिजिटल रूप से प्राप्त फसल आंकड़े प्राप्त करने के साथ किसान आईडी का उद्देश्य केंद्रित लाभ प्रदान करना है

डिजिटल पहचान, कार्यवाही योग्य अंतर्दृष्टि एवं सूचित नीतिनिर्माण के लिए एक परिवर्तनकारी उपकरण के रूप में भी कार्य करेगा, जिससे अभिनव किसानकेंद्रित समाधान विकसित किए जा सके, कुशल कृषि सेवा वितरण सुनिश्चित किया जा सके और कृषि परिवर्तन के लिए एक डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सके, जिस का लक्ष्य चिरस्थायी कृषि पर ध्यान केंद्रित करते हुए किसानों की आय में बढ़ोतरी करना है.

किसान आईडी निर्माण के लिए व्यापक कवरेज सुनिश्चित करने के लिए, भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने राज्यों के लिए एक बहु-आयामी रणनीति विकसित की है.

ये मोड किसान पहचान पत्र तैयार करने वाले चैनल हैं जैसे कि सेल्फ मोड (मोबाइल का उपयोग कर के किसानों द्वारा स्वपंजीकरण), सहायक मोड (प्रशिक्षित जमीनी कार्यकर्ता/स्वयंसेवकों द्वारा सहायता प्राप्त पंजीकरण), कैंप मोड (ग्रामीण क्षेत्रों में समर्पित पंजीकरण शिविर), सीएससी मोड (सामान्य सेवा केंद्रों के माध्यम से पंजीकरण) आदि.

डिजिटल कृषि मिशन ने किसान रजिस्ट्री बनाने के लिए प्रोत्साहन के रूप में कृषि के लिए डीपीआई एवं पूंजीगत परियोजनाओं हेतु विशेष केंद्रीय सहायता पर समझौता ज्ञापन के माध्यम से कृषि क्षेत्र के लिए डीपीआई निर्माण के लिए राज्यों और केंद्र सरकार के बीच एक सहयोगी प्रयास को सक्षम बनाया है.

इस के अलावा, डिजिटल कृषि मिशन के अंतर्गत, केंद्र सरकार तकनीकी दिशानिर्देश, संदर्भ अनुप्रयोग एवं कंप्यूटिंग क्षमता प्रदान कर, क्षमता बढ़ाकर एवं प्रशिक्षण प्रदान कर राज्यों को सक्षम बना रही है. भारत सरकार पंजीकरण शिविरों का आयोजन करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन एवं किसान आईडी तैयार करने में शामिल राज्य के कार्यकर्ताओं को प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन भी प्रदान करती है.

राज्य स्तर पर, पहल के मुख्य आकर्षणों में अंतर्विभागिय समन्वय एवं सहयोग, विशेष रूप से राजस्व और कृषि विभागों के बीच सहयोग शामिल हैं. राज्यों ने कृषि क्षेत्र में डीपीआई विकसित करने के लिए प्रक्रिया सुधारों सहित प्रशासनिक एवं तकनीकी परिवर्तनों को सक्षम बनाया है. राज्यों ने प्रगति की निगरानी करने, स्थानीय सहायता प्रदान करने और उत्पन्न डेटा की गुणवत्ता एवं सटीकता सुनिश्चित करने के लिए परियोजना प्रबंधन इकाइयों (पीएमयू) और समन्वय टीमों का भी गठन किया है.

गुजरात 25 फीसदी किसान आईडी (पीएम किसान में राज्य के कुल किसानों के बीच) के साथ अग्रणी है जब कि दुसरे राज्य भी अच्छी प्रगति कर रहे हैं. मध्य प्रदेश ने कम समय में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, जो 9 फीसदी तक पहुंच गया है जब कि महाराष्ट्र 2 फीसदी  पर है और उत्तर प्रदेश, असम, छत्तीसगढ़, ओडिशा और राजस्थान जैसे दुसरे राज्यों ने भी किसान आईडी बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय इस परिवर्तनकारी यात्रा में राज्यों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है और यह सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक किसान डिजिटल कृषि क्रांति से लाभान्वित हों.