सितंबर माह में खेती से जुड़े काम

समय पर खेतीबारी से जुड़े सभी जरूरी काम निबटा लेने चाहिए. अगर ऐसा नहीं किया जाता है, तो उत्पादन घटने के साथ ही नुकसान होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है. ऐसे में सितंबर माह में खेती, बागबानी, पशुपालन, मत्स्यपालन, भंडारण और प्रोसैसिंग से जुड़े इन कामों को निबटाएं.

जिन किसानों ने धान की खेती की है, वे फसल में नाइट्रोजन की दूसरी व अंतिम टौप ड्रैसिंग बाली बनने की प्रारंभिक अवस्था यानी रोपाई के 50-55 दिन बाद कर दें. वहीं अधिक उपज वाली धान की प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नाइट्रोजन यानी 65 किलोग्राम यूरिया और सुगंधित प्रजातियों में प्रति हेक्टेयर 15 किलोग्राम नाइट्रोजन यानी 33 किलोग्राम यूरिया का प्रयोग करें.

धान में बालियां फूटने और फूल निकलने के दौरान यह सुनिश्चित करें कि खेत में पर्याप्त नमी हो.

धान की फसल को भूरा फुदका से बचाने के लिए खेत से पानी निकाल दें. इस कीट का प्रकोप पाए जाने पर नीम औयल 1.5 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें.

किसान धान की अगेती किस्मों की कटाई के पहले ही उस के उचित भंडारण की व्यवस्था कर लें. इस के लिए यह सुनिश्चित करें कि मड़ाई के बाद धान के दानों को अच्छी तरह सुखा कर ही भंडारण किया जाए, इसलिए दानों को 10 प्रतिशत नमी तक सुखा लेते हैं.

धान का भंडारण जहां किया जाना है, उस कमरे और जूट के बोरों को विसंक्रमित कर देना चाहिए.

धान के भंडारण में कीड़ों से बचाव के लिए स्टौक को तरपोलीन या प्लास्टिक की चादरें ढकने से भी राहत मिलती है.

सरसों की अगेती किस्मों जो खरीफ और रबी के मध्य में बोई जाती हैं, इस की बोआई 15 से 30 सितंबर के बीच अवश्य कर दें. साथ ही, बीजजनित रोगों से बचाव व सुरक्षा के लिए प्रमाणित बीज ही बोएं.

बीजशोधन के लिए थीरम व कार वैक्सिन का मिश्रण 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के अनुसार उपचारित करें. मैंकोजेब की बावस्टीन का 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से भी उपचारित किया जा सकता है.

सरसों की फसल में खरपतवार नियंत्रण के लिए बोआई से पहले 2.2 लिटर प्रति हेक्टेयर फ्लूक्लोरोलिन का 600-800 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

यदि बोआई से पहले खरपतवार नियंत्रण नहीं किया गया है, तो 3.3 लिटर पेंडीमिथेलीन (30 ईसी ) को 600-800 लिटर पानी में घोल कर बोआई के 1-2 दिन बाद छिड़काव करें.

सरसों की अगेती किस्मों पूसा सरसों-25, पूसा सरसों-26, पूसा सरसों-27, पूसा सरसों- 28, पूसा अगर्णी, पूसा तारक व पूसा महक की बोआई की जा सकती है.

रबी के सीजन में गेहूं की खेती करने वाले किसान आलू की अगेती किस्मों की बोआई सितंबर महीने में कर के ज्यादा फायदा ले सकते हैं. इन किस्मों में कुफरी बादशाह, कुफरी सूर्या, कुफरी चंद्रमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफरी ख्याती, कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर शामिल हैं. इन के पकने की अवधि 80 से 100 दिन है.

आलू के इस किस्म की खेती करने वाले किसान इस माह पछेती गेहूं की खेती कर सकते हैं. आलू की बोआई 25 सितंबर से शुरू की जा सकती है.

मटर की अगेती किस्मों की खेती कर किसान अतिरिक्त लाभ ले सकते हैं, क्योंकि ये किस्में 50 से ले कर 60 दिनों में तैयार हो जाती हैं. इसलिए इस के बाद दूसरी फसल आसानी से ली जा सकती है.

अगर किसान मटर की अगेती खेती करना चाहते हैं, तो इस की बोआई 15 सितंबर से 15 अक्तूबर के बीच कर सकते हैं. किसान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई मटर की आजाद मटर-3, काशी नंदिनी, काशी मुक्ति, काशी उदय और काशी अगेती की बोआई कर सकते हैं.

टमाटर, विशेषकर संकर प्रजातियों व गांठगोभी के बीज की बोआई नर्सरी में करें. इस के अलावा सब्जियों की खेती करने वाले किसान फूलगोभी की पूसा सुक्ति, पूसा पौषिजा प्रजातियों की नर्सरी डालने के साथ ही मध्यवर्गीय फूलगोभी जैसे इंप्रूव्ड जापानी, पूसा दीपाली, पूसा कार्तिक की रोपाई के लिए पूरा महीना ही मुफीद है. वहीं पत्तागोभी की किस्मों में  गोल्डन एकर, पूसा कैबेज हाइब्रिड-1 की नर्सरी डाली जा सकती है.

पत्तागोभी की अगेती किस्में जैसे-पूसा हाइब्रिड-2, गोल्डन एकर की बोआई 15 सितंबर तक माध्यम व पछेती किस्में जैसे पूसा ड्रमहेड, संकर क्विस्टो की बोआई 15 सितंबर के बाद शुरू की जा सकती है.

शिमला मिर्च की रोपाई पौध के 30 दिन के होने पर 50-60-40 सैंटीमीटर की दूरी पर करें. मूली की एशियाई किस्मों जैसे जापानी ह्वाइट, पूसा चेतकी, हिसार मूली नं. 1, कल्याणपुर-1 की बोआई इसी माह में शुरू की जा सकती है.

मेथी की अगेती फसल लेने के लिए मध्य सितंबर से बोआई शुरू की जा सकती है. इस के लिए प्रति हेक्टेयर 25-30 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होगी.

अगर बरसात कम या समाप्त हो गई हो तो हरी पत्ती के लिए धनिया की प्रजाति पंत हरीतिमा, आजाद धनिया-1 की इस माह बोआई कर सकते हैं.

पालक की उन्नत किस्म पूसा भारती की बोआई इस माह की जा सकती है.

गाजर की पूसा वृष्टि किस्म की बोआई इसी माह में शुरू करें. इस के अलावा जिन सब्जियों की खेती की जा सकती है, उस में शलगम, सौंफ के बीज, सलाद, ब्रोकली को भी शामिल किया जा सकता है.

सितंबर माह में तैयार बैगन, मिर्च, खीरा व भिंडी की फसल लेने वाले किसान फसल की जरूरत के मुताबिक निराईगुड़ाई व सिंचाई करें और तैयार फलों को तोड़ कर बाजार भेजें.

जिन किसानों ने मक्के की फसल ले रखी है, वह अधिक बरसात होने पर अतिरिक्त जलनिकासी की पुख्ता व्यवस्था करें. फसल में नरमंजरी निकलने की अवस्था में और दाने की दूधियावस्था सिंचाई की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. यदि पिछले दिनों में बरसात न हुई हो या नमी की कमी हो तो सिंचाई अवश्य करें.

ज्वार की खेती करने वाले किसान अच्छी उपज हासिल करने के लिए बरसात नहीं होने या नमी की कमी होने पर बाली निकलने के समय व दाना भरते समय सिंचाई जरूर करें. वहीं बाजरा की उन्नत और संकर प्रजातियों में 87-108 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया की टौप ड्रैसिंग बोआई के 25-30 दिन बाद करें.

जिन किसानों ने मूंग और उड़द की खेती की है, वे बरसात न होने पर कलियां बनते समय पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए सिंचाई करें.

अगर मूंग और उड़द की फसल में फली छेदक कीट की सूंडि़यों का प्रकोप है, तो उस की रोकथाम के लिए निबौली का 5 प्रतिशत 1.25 लिटर मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

सोयाबीन की फसल लेने वाले किसान सितंबर माह में बरसात न होने पर फूल व फली बनते समय सिंचाई जरूर करें.

सूरजमुखी की खेती करने वाले किसान यह ध्यान दें कि सूरजमुखी के फूल में नर भाग पहले पकने के कारण परपरागण का काम मधुमक्खियों द्वारा होता है, इसलिए खेत या मेंड़ों पर बक्सों में मधुमक्खीपालन किया जाए. अधिक बीज बनने से उपज में बढ़वार होगी और अतिरिक्त आय भी होगी.

फलों की बागबानी से जुड़े किसान सितंबर में वयस्क आम के पौधों में उर्वरक की 500 ग्राम नाइट्रोजन, 250 ग्राम फास्फोरस, 500 ग्राम पोटाश को प्रति पौधे की दर से डालें.

आम में एंथ्रेक्नोज रोग से बचाव के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण की 3 ग्राम मात्रा एक लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करें.

आंवले में फल सड़न रोग की रोकथाम के लिए कौपर औक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लिटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. वहीं नीबूवर्गीय फलों में यदि डाईबे, स्केब व सूटी मोल्ड बीमारी का प्रकोप पाए जाने पर कौपर औक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लिटर पानी) की दर से छिड़काव करें.

केले और पपीते की खेती करने वाले किसान पौधों की रोपाई का काम इस महीने जरूर पूरा कर लें. जिन लोगों ने केले के पौधों को पहले ही रोप दिया है, वे केले में प्रति पौधा 55 ग्राम यूरिया पौधे से 50 सैंटीमीटर दूर घेरे में प्रयोग कर हलकी गुड़ाई कर के जमीन में मिला दें. वहीं इस माह के शुरू में अमरूद की बरसाती फसल को तोड़ कर बाजार भेजें.

स्ट्राबेरी के पौधों की रोपाई 10 सितंबर से शुरू की जा सकती है. अगर उस समय तापमान अधिक हो, तो 20 सितंबर के बाद रोपाई शुरू करें.

रोपण करते समय यह ध्यान रहे कि पौधे स्वस्थ यानी कीट व रोगों से रहित होने चाहिए. इस की उन्नतशील किस्में चांडलर, फैस्टिवल, विंटर डौन, फ्लोरिना, कैमा रोजा, ओसो ग्रांड, ओफरा, स्वीट चार्ली, गुरिल्ला, टियोगा, सीस्कैप, डाना, टोरे, सेल्वा, बेलवी, फर्न, पजारो हैं.

फूलों की खेती में रुचि रखने वाले किसान रजनीगंधा के स्पाइक की कटाईछंटाई का काम इस माह पूरा करें.

जो लोग ग्लैडियोलस की खेती करना चाहते हैं, वे रोपाई की तैयारी पूरी कर लें. इस के लिए प्रति वर्गमीटर 10 किग्रा गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद को 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 200 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश के साथ मिला कर रोपाई के 15 दिन पहले अच्छी तरह मिला दें.

गेंदे की शरद ऋतु वाली किस्मों की रोपाई इसी माह में शुरू कर दें. इस की नर्सरी डालने का उचित समय 10-15 सितंबर है.

इस के अलावा किसान इसी माह मशरूम उत्पादन से जुड़ी तैयारियां शुरू कर दें. उस में काम आने वाले उपकरण, कंपोस्ट आदि के लिए आवश्यक सामग्री जुटाना समय से काम शुरू किए जाने में मददगार होगा.

Animalअगर आप पशुपालक हैं, तो पशुओं को जानलेवा खुरपका व मुंहपका रोग से बचाव के लिए उन का टीकाकरण कराएं. अगर आप का पशु इस रोग से ग्रसित हो गया है, तो पशुओं के घाव को पोटैशियम परमैग्नेट से धोएं और बीमार पशु को तत्काल स्वस्थ पशुओं से दूर रखें. उन का दानापानी भी अलग दें. साथ ही, बीमार पशु को बांध कर रखें और उन्हें घूमनेफिरने न दें.

यह सुनिश्चित करें कि पशु को सूखे स्थान पर ही बांधा जाए. उसे  कीचड़, गीली मिट्टी व गंदगी से दूर रखें. जहां पशु की लार गिरती है, वहां पर कपड़े धोने का सोडा व चूने का छिड़काव करें. पशुओं के नवजात बच्चों को खीस यानी पैदा होने के बाद उस की मां का गाढ़ा दूध जरूर पिलाएं.

जो लोग मुरगीपालन के व्यवसाय से जुड़े हैं, वे सुनिश्चित करें कि दाने में सीप का चूरा अवश्य मिलाया जा रहा हो. इस से मुरगियों में कैल्शियम की मात्रा बढ़ती है. इस के अलावा मुरगियों के पेट के कीड़ों को मारने के लिए दवा दें. पोल्ट्री फार्म में कम से कम 14-16 घंटे रोशनी बनी रहे. पोल्ट्री फार्म के बिछावन, जिसे डीप लिटर कहते हैं, को नियमित रूप से उलटतेपलटते रहें.

जो लोग मछलीपालन के व्यवसाय से जुड़े हैं, वे तालाब में पानी की पर्याप्त मात्रा बनाए रखने के लिए उस की गहराई कम से कम 1 मीटर तक जरूर रखें. गोबर की खाद व अकार्बनिक खादों का तालाबों में प्राकृतिक भोजन की उर्वरता बढ़ाने के लिए प्रयोग करें. साथ ही, तालाब में प्राकृतिक भोजन की जांच करें और जरूरत के मुताबिक पूरक आहार संचित मछलियों को प्रतिदिन देते रहें. इस के अलावा मछलीपालक समयसमय पर जाल डाल कर तालाब में पल रही मछलियों की बढ़वार की जांच करते रहें.

(कीटनाशकों के नाम कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती के वैज्ञानिक फसल सुरक्षा डा. प्रेम शंकर द्वारा सुझाए गए हैं. साथ ही, पशुपालन से जुड़ी जानकारी पशुपालन विशेषज्ञ डा. डीके श्रीवास्तव द्वारा सुझाई गई है.)

मछलीपालन के लिए अनुदान

सीहोर : मध्य प्रदेश के सीहोर जिले में प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना का क्रियान्वयन किया जा रहा है. योजनान्तर्गत मत्स्यपालन से जुड़े किसानों अथवा मात्स्यिकी से जुड़ने के लिए इच्छुक व्यक्तियों से आवेदन आमंत्रित किए गए हैं.

इस संबंध में सहायक संचालक मत्स्योद्योग ने विभाग के मत्स्य निरीक्षकों को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि योजना के क्रियान्वयन के लिए जिले में व्यापक प्रचारप्रसार किया जाना सुनिश्चित करें और योजना का अपने प्रभार के विकासखंडों में आवेदन प्राप्त कर कार्यालय में प्रस्तुत करें. आवेदनकर्ताओं को यह भी सूचित करें कि जिला स्तर की समिति के प्रशासनिक अनुमोदन के पश्चात ही इसे अंतिम रूप दिया जाएगा.

भारत सरकार के मात्स्यिकी विभाग के लिए प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना क्रियान्वित की जा रही है. योजना का मुख्य ध्येय मछली उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि, गुणवत्ता, तकनीकी, आधारभूत संरचना एवं प्रबंधन के अंतर को कम करना, मूल्य श्रृंखला का आधुनिकीकरण एवं सुदृढीकरण, मजबूत मत्स्यपालन-प्रबंधन ढांचा की स्थापना एवं मछुआरों का कल्याण, जिस से मछुआरों एवं मत्स्य किसानों की आय दोगुनी होगी और इस प्रकार यह सामाजिक, भौतिक एवं आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने में सहायक होगा.

इन चीजों के लिए मिलेगा अनुदान

सहाय‍क संचालक मत्स्योद्योग विभाग ने बताया कि योजना के अंतर्गत मत्स्य बीज उत्पादन के लिए नए मत्स्य हैचरी की स्थापना, नवीन मत्स्य बीज संवर्धन के लिए रियरिंग पोखर, तालाब का निर्माण, नवीन तालाब का निर्माण, मिश्रित मत्स्यपालन, पंगेशियस, तिलापिया मछली पालने के लिए इनपुट्स की व्यवस्था, जलाशय में मत्स्य अंगुलिकाओं का संचयन, रंगीन मछली की ब्रीडिंग एवं रियरिंग के लिए इकाई की स्थापना, आरएएस की स्थापना, बायोफ्लाक्स की स्थापना, जलाशयों में केज कल्चर की स्थापना कर मत्स्यपालन पर, पेन कल्चर पर अनुदान, मत्स्य कोल्ड स्टोरेज/आइस प्लांट का निर्माण अथवा आधुनिकीकरण पर, रेफ्रिजेरेटेड वाहन खरीद पर, इंसुलेटेड वाहन खरीद पर, आइस बौक्सयुक्त मोटरसाइकिल खरीद पर, मछली बिक्री हेतु ई-रिक्शा खरीद पर अनुदान किया जा रहा है.

विभाग ने बताया कि फिश फीड मिल/प्लांट पर, खुदरा मछली बाजार का निर्माण पर, मछली कियोस्क के निर्माण पर, फिश वैल्यू एड एंटरप्राइज यूनिट पर, फिश की ई-ट्रेडिंग और फिश से जुड़े उत्पाद के लिए ई – प्लेटफार्म पर, परंपरागत मछुआरों के लिए नाव एवं जाल का प्रावधान पर, ब्रूड बैंक की स्थापना पर, थोक मछली बाजार का निर्माण पर, डायग्नोस्टिक डिसीज और क्वालिटी लेवल/क्लिनिक्स पर अनुदान देय होगा.

योजना में सम्मिलित गतिविधियों से लाभ लेने के लिए मत्स्य किसान अथवा मात्स्यिकी से जुड़ने के लिए इच्छुक व्यक्तियों से गत वर्ष की भांति आवेदन आमंत्रित किए जाते हैं.

मछली पकड़ने की तकनीक

उदयपुर : 26, अगस्त. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक मात्स्यकी महाविद्यालय में बीएफएससी तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम के तहत इंटरनेशनल डवलपमेंट प्रोग्राम/राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (आईडीपी/एनएएचईपी) के अंतर्गत 6 दिवसीय कौशल विकास प्रशिक्षण मछली पकड़ने की तकनीक पर आयोजित किया गया.

महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. बीके शर्मा ने बताया कि आजादी के अमृत महोत्सव के तहत नीली क्रांति को बढ़ावा एवं छात्रों के कौशल विकास हेतु 6 दिवसीय प्रशिक्षण का आयोजन 21 अगस्त से 26 अगस्त तक किया गया.

प्रशिक्षण हेतु भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय मात्स्यकी प्रौद्योगिकी संस्थान की पूर्व निदेशक डा. लीला एडवीन ने विषय विशेषज्ञ के रूप में छात्रों को संबंधित विषय पर गहन प्रशिक्षण प्रदान किया.

इस प्रायोगिक प्रशिक्षण के दौरान छात्रों को समुद्री एवं मीठे पानी में मछलियों के पकड़ने की विभिन्न कलाओं एवं उन में काम में आने वाले विभिन्न प्रकार के जालों, इन के निर्माण एवं उन से संबंधित आवश्यक सामग्री और पारंपरिक नौकाओं के साथसाथ आधुनिक एवं यांत्रिक नौकाओं के अलावा सूर्य के प्रकाश से चालित आधुनिक नौकाओं एवं उन में काम आने वाली विभिन्न प्रकार की सामग्री एवं उपकरणों एवं समुद्र में मछली पकड़ने के दौरान होने वाली दुर्घटनाओं से बचने एवं सुरक्षित नौका संचालन से संबंधित विस्तृत जानकारी चलचित्र एवं पावर प्वाइंट प्रदर्शन के द्वारा प्रदान की गई.

डा. बीके शर्मा, अधिष्ठाता, मात्स्यकी महाविद्यालय एवं सहायक प्राध्यापक डा. सुमन ताकर ने छात्रों को मत्स्य प्रौद्योगिकी से संबंधित प्रायोगिक कामों का प्रशिक्षण दिया.

Fishingप्रशिक्षण के समापन अवसर पर प्रोफैसर वीएस दुर्वे, पूर्व विभागाध्यक्ष, सरोवर विज्ञान विभाग में छात्रों को इस तरह के कौशल विकास से संबंधित प्रशिक्षण से प्राप्त की गई जानकारी से मात्स्यकी के क्षेत्र में होने वाले नवाचारों को अपनाते हुए मात्स्यकी के क्षेत्र में राजस्थान को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने के लिए अपना योगदान प्रदान करने का आह्वान किया एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केंद्रीय मात्स्यकी प्रौद्योगिकी संस्थान की पूर्व निदेशक डा. लीला एडवीन का गहन प्रशिक्षण देने हेतु आभार व्यक्त किया.

इस अवसर पर छात्र आशीष, रामजस, जय धाकड़, विकास एवं छात्राओं में कांता, राधिका एवं सीता ने अपने विचार व्यक्त किए.

डा. बीके शर्मा ने आईडीपी/एनएएचईपी के प्रोजैक्ट इंचार्ज एवं अधिष्ठाता कृषि एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय डा. पीके सिंह का आभार व्यक्त किया, जिन के सहयोग से छात्रों का यह कार्यक्रम संभव हो पाया.

उपरोक्त प्रशिक्षण का खर्च (आईडीपी/एनएएचईपी) के द्वारा वहन किया जाएगा.
प्रशिक्षण के समापन समारोह के अवसर पर महाविद्यालय की सहायक प्राध्यापक डा. सुमन ताकर ने मंच का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन दिया.

मात्स्यिकी महाविद्यालय में मनाया मत्स्य कृषक दिवस

उदयपुर : 10 जुलाई, 2023. महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संघटक मात्स्यकी महाविद्यालय, उदयपुर में 23वां भारतीय मत्स्य कृषक दिवस मनाया गया. इस अवसर पर मात्स्यिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. बीके शर्मा, पूर्व अधिष्ठाता डा. एसके शर्मा व सहप्राध्यापक डा. एमएल ओझा, महाविद्यालय केे कर्मचारी व छात्रछात्राएं उपस्थित रहे.

इस अवसर पर अधिष्ठाता डा. बीके शर्मा ने बताया कि देश में पहली बार 10 जुलाई ,1957 को मत्स्य वैज्ञानिक प्रोफैसर हीरालाल चौधरी व सहयोगी डा. केएच अलीकुन्ही ने ओडिशा के अंगुल में भारतीय प्रमुख कार्प मछली को पिट्युटरी हार्मोन की मदद से सफल प्रेरित प्रजनन करवाया था.

उन्होंने कहा कि डा. हीरालाल चौधरी व डा. केएच अलीकुन्ही के इस महत्वपूर्ण सहयोग की याद में हर साल भारत में मत्स्य किसान दिवस मनाया जाता है. सब से पहले भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने राष्ट्रीय मत्स्य किसान दिवस 10 जुलाई, 2001 को मनाया था एवं आज हम 23वां मत्स्य किसान दिवस मना रहे हैं. साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि मत्स्यपालन में किसानों के योगदान, मत्स्यपालन में रोजगार व भविष्य के बारे मे भी छात्रछात्राओं को इस क्षेत्र के अवसरों के बारे में अवगत कराया.

पूर्व अधिष्ठाता डा. एसके शर्मा ने कहा कि मत्स्य किसान दिवस का उद्देश्य एक्वाकल्चर में शामिल लोगों जैसे मछुआरे भाईबहन, मत्स्य कृषक, मत्स्य वैज्ञानिक, विषय विशेषज्ञ और अन्य हितधारकों के प्रति सम्मान व्यक्त करना है. साथ ही, डा. एसके शर्मा ने मत्स्यपालन में छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के अवसरों और आर्थिक क्षेत्र में प्रगति के बारे में बताया गया.

डा. एमएल ओझा ने प्रजनन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि किस प्रकार प्रेरित प्रजनन से हमारे देश में मछलीपालन में क्रांति आई व उस की वजह से आज विश्व में मत्स्य उत्पादन में भारत दूसरे स्थान पर है.

उन्होंने प्रेेरित प्रजनन के इतिहास और वैज्ञानिक पद्धति पर जानकारी प्रदान की. इस अवसर पर महाविद्यालय के विद्यार्थियों रामजस चौधरी, विकास कुमार और लक्ष्य ने अपने विचार व्यक्त किए. काव्य ने समाचार संकलन में सराहनीय सहयोग दिया.

‘रिपोर्ट फिश डिजीज’ एप लौंच

नई दिल्ली : मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री पुरषोत्तम रूपाला ने नई दिल्ली में मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी राज्य मंत्री डा. एल. मुरुगन की उपस्थिति में ‘रिपोर्ट फिश डिजीज’ नाम से एक एंड्रायड आधारित मोबाइल एप लौंच किया.

इस दौरान जेएन स्वैन, सचिव, मत्स्यपालन विभाग, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय, डा. अभिलक्ष लिखी, ओएसडी, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय और डा. हिमांशु पाठक, सचिव, डीएआरई एवं महानिदेशक, आईसीएआर, नई दिल्ली भी मौजूद थे.

“डिजिटल इंडिया” के दृष्टिकोण में योगदान करते हुए, ‘रिपोर्ट फिश डिजीज’ को आईसीएआर-नेशनल ब्यूरो औफ फिश जेनेटिक रिसोर्सेज (एनबीएफजीआर), लखनऊ द्वारा विकसित किया गया है, इसीलिए जलीय पशु रोगों के लिए राष्ट्रीय निगरानी कार्यक्रम के तहत लौंच किया गया है.

मत्स्यपालन विभाग ने पीएमएमएसवाई योजना के तहत एनएसपीएएडी के दूसरे चरण के कार्यान्वयन के लिए 3 साल की अवधि के लिए 33.78 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं. इस एप के लौंच के साथ एनएसपीएएडी पारदर्शी रिपोर्टिंग के माध्यम से राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने में सक्षम हो गया. एप कनेक्ट करने के लिए एक सेंट्रल मंच होगा और मछली किसानों, क्षेत्रस्तरीय अधिकारियों और मछली स्वास्थ्य विशेषज्ञों को निर्बाध रूप से एकीकृत करेगा. किसानों के सामने आने वाली बीमारी की समस्या, जिस पर पहले ध्यान नहीं दिया जाता था या रिपोर्ट नहीं की जाती थी, वह विशेषज्ञों तक पहुंच जाएगी और कम समय में समस्या का समाधान कुशल तरीके से किया जाएगा.

यह होगा लाभ

इस एप का उपयोग करने वाले किसान सीधे जिला मत्स्य अधिकारियों और वैज्ञानिकों से जुड़ सकेंगे. किसान और हितधारक इस एप के माध्यम से अपने खेतों पर फिनफिश, झींगा और मोलस्क की बीमारियों की स्वयं रिपोर्टिंग कर सकते हैं, जिस के लिए हमारे वैज्ञानिकों/विशेषज्ञों द्वारा किसानों को उसी एप के माध्यम से वैज्ञानिक तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी.

किसानों को प्रदान की जा रही प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली और वैज्ञानिक सलाह से बीमारियों के कारण होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी और देश में मछली किसानों द्वारा बीमारी की रिपोर्टिंग को और मजबूत किया जाएगा.

मात्स्यिकी महाविद्यालय में छात्रसंघ कार्यालय का उद्घाटन

उदयपुर : महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के संगठक, मात्स्यिकी महाविद्यालय में छात्रसंघ कार्यालय का उद्घाटन मुख्य अतिथि डा. अजीत कुमार कर्नाटक, कुलपति, एमपीयूएटी ने एवं कालेज के डीन डा. बीके शर्मा एवं छात्र प्रतिनिधियों की उपस्थिति में किया.

इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश सचिव एनएसयूआई, सत्येंद्र यादव, छात्रसंघ अध्यक्ष, एमपीयूएटी, महासचिव मनीष बुनकर, रिसर्च रिप्रेजेंटेटिव मनोज मीणा, दीपेंद्र सिंह, अध्यक्ष, आरसीए, प्रदीप मेहरा महासचिव, सीसीएएस, एवं अन्य महाविद्यालयों के अनेक छात्रछात्राएं उपस्थित थे.

महाविद्यालय के पूर्व अधिष्ठाता डा. सुबोध शर्मा एवं प्रशासनिक अधिकारी डा. एमएल ओझा एवं कालेज के सभी अध्यापक और स्टाफ सदस्य उपस्थित थे.

छात्रसंघ कार्यालय के उद्घाटन के अवसर पर महाविद्यालय के निर्विरोध चुने गए महासचिव जयराम जाट एवं संयुक्त सचिव सौरभ मीणा को आपसी सहयोग व भाईचारे की मिसाल कायम करने पर बधाई दी.

इस अवसर पर कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने विद्यार्थियों को मात्स्यिकी सेवाओं और उच्च अध्ययन में उज्ज्वल भविष्य के बारे में बताते हुए अपने स्वयं के, प्रदेश के और राष्ट्र के निर्माण में जुट जाने का आह्वान किया. उन्होंने राज्य के एकमात्र महाविद्यालय के विकास एवं यहां फैकल्टी लाने का आश्वासन भी दिया. साथ ही, उन्होंने महाविद्यालय के दो विद्यार्थियों का आईसीएआर की राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना में संस्थागत विकास कार्यक्रम के अंतर्गत चयन होने एवं उन्हें उच्चस्तरीय मात्स्यिकी संस्थान में थाईलैंड में प्रशिक्षण के लिए भेजने के लिए अधिष्ठाता को बधाई दी.

मात्स्यिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. बीके शर्मा ने छात्रसंघ के पदाधिकारियों को महाविद्यालय के विकास में सक्रिय भूमिका निभाने, शिक्षण सुविधाओं का लाभ उठाने एवं लक्ष्य निर्धारित कर उसे प्राप्त करने में अपनी पूरी शक्ति से जुट जाने का आह्वान किया.

मछुआरों का उत्थान, उन का आर्थिक और सामाजिक विकास यात्रा का प्रमुख मिशन: परशोत्तम रूपाला

भारत के दक्षिणी तटीय राज्य केरल में 590 किलोमीटर की विस्तृत तटरेखा है. देश में मछली उत्पादन में केरल का अहम योगदान है. केरल, समुद्री मत्स्यपालन के अतिरिक्त, अंतर्देशीय मछली पकड़ने की गतिविधियों के लिए भी लोकप्रिय है. सागर परिक्रमा यात्रा सातवां चरण, जो 8 जून 2023 से मडक्करा, केरल से शुरू हुआ और पल्लीकारा, बेकल, कन्हांगडु, कासरगोड जैसे स्थानों से हो कर गुजरा, 9, जून, 2023 को माहे (पुड्डुचेरी), कोझिकोड जिले से होता हुआ 10 जून को केरल के त्रिशूर जिले में पहुंचा और कोचीन और त्रिवेंद्रम होते हुए केरल के पूरे तटीय क्षेत्रों की ओर बढ़ेगा.

केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री पुरुशोत्तम रूपाला, केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी राज्य मंत्री, डा. एल. मुरुगन, मत्स्यपालन मंत्री केरल सरकार, साजी चेरियान की उपस्थिति में भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी, अभिलक्ष लिखी, ओएसडी (मत्स्य), भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी केएस श्रीनिवास, प्रमुख सचिव (मत्स्य), केरल सरकार, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड डा. सुवर्ण चंद्रपरागरी और अन्य सरकारी अधिकारी त्रिशूर के नत्तिका में एसएन सभागार आए और इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई.

सागर परिक्रमा के तीसरे दिन के कार्यक्रम की शुरुआत त्रिशूर के नत्तिका में परशोत्तम रूपाला और अन्य गणमान्य व्यक्तियों के गर्मजोशी से स्वागत के साथ हुई.

राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. सुवर्णा चंद्रपरागरी ने सभी मेहमानों का परिचय दिया. उन्होंने केरल में सागर परिक्रमा के सातवें चरण की यात्रा पर प्रकाश डाला.

इस कार्यक्रम में उपस्थित मछुआरे इस दौरान काफी खुश नजर आए. वे यात्रा के प्रभाव और महत्व से परिचित हुए जो उन के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाएगा.

इस दौरान विभिन्न योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) आदि के संबंध में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की गई.

मंत्री पुरुशोत्तम रूपाला ने अपने संबोधन में कहा कि मछुआरों का उत्थान, उन की आवश्यकताओं को समझ कर उन का आर्थिक और सामाजिक विकास इस यात्रा का प्रमुख मिशन है.

इस दौरान यह भी बताया गया कि तटीय राज्यों के दौरे का उद्देश्य मत्स्यपालन क्षेत्र में काम कर रहे अन्य हितधारकों के मुद्दे को समझना भी है.

इस के अलावा उन्होंने मछुआरों, महिला मछुआरों, मछली किसानों और तटीय क्षेत्र के प्रतिनिधियों जैसे लाभार्थियों के साथ बातचीत की. मछुआरों ने भी अपने मुद्दों को उजागर करने में गहरी दिलचस्पी दिखाई और प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), एफआईडीएफ और किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) आदि जैसी योजनाओं और कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए गणमान्य व्यक्तियों को धन्यवाद दिया.

मंत्री पुरुशोत्तम रूपाला, डा. एल. मुरुगन, साजी चेरियान, केरल के विधायक सीसी मुकुंदन, भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अभिलक्ष लिखी, ओएसडी (मत्स्य), भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी केएस श्रीनिवास, प्रधान सचिव (मत्स्य), केरल सरकार, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड डा. सुवर्ण चंद्रपरागरी और अन्य सरकारी अधिकारियों ने थिप्परयार के टीएसजीए इंडोर स्टेडियम का दौरा किया. उन्होंने सागर परिक्रमा लाभार्थी के लिए केरल सरकार के एक कार्यक्रम ‘थीरा सदासु’ पहल की सराहना की.

कार्यक्रम के प्रारंभ में मुख्य कार्यकारी, राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड, भारत सरकार डा. सुवर्णा चंद्रपरागरी ने एक स्वागत भाषण दिया. उन्होंने यह बताया कि ‘एक्वा किसान’ आगे आए हैं और तटीय समुदाय की स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं.

भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी अभिलक्ष लिखी, ओएसडी (मत्स्य), ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मत्स्य क्षेत्र को दिए गए महत्व पर प्रकाश डाला और बताया कि मत्स्य क्षेत्र के लिए विशेष धनराशि आवंटित की गई है.

उन्होंने यह भी बताया कि केसीसी शिविर शुरू करने, शिकायत निवारण के लिए टीम गठित करने, विभिन्न बुनियादी सुविधाओं के निरीक्षण के लिए तकनीकी अधिकारियों की टीम गठित करने जैसी प्रमुख पहल की गई हैं, साथ ही, 62 केसीसी शिविर आयोजित किए गए, जिन में से 744 केसीसी कार्ड जारी किए गए हैं और 178 पोस्ट हार्वेस्टिंग सुविधाएं स्वीकृत की गई हैं.

साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि मछली पकड़ने के बंदरगाह के विस्तार, बायोफ्लाक इकाई के उन्नयन, सजावटी मछली पकड़ने, गहरे समुद्र में मछली पकड़ने के जहाज, केज वाटर कल्चर जैसी कई परियोजनाओं के साथसाथ आजीविका में सुधार और मत्स्य इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए अर्थुल मछली पकड़ने के बंदरगाह का शुभारंभ किया गया है.

उन्होंने सागर परिक्रमा कार्यक्रम यात्रा, सातवें चरण में समर्थन के लिए तट रक्षकों और केरल सरकार को धन्यवाद दिया.

डा. एल. मुरुगन ने बढ़ती मांग को पूरा करने में मछली किसानों की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया और उन्होंने मछुआरों और मछली किसानों के अमूल्य योगदान को भी रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि मछुआरे भोजन और जीविका प्रदान करने के लिए अथक प्रयास करते हैं. दीर्घकालिक मछली पकड़ने का तरीका न केवल उत्पादकता बढ़ाता है, बल्कि पर्यावरणीय प्रभावों को भी कम करता है.

केरल के मत्स्यपालन मंत्री साजी चेरियान ने राज्य की मात्स्यिकी के बारे में प्रकाश डाला, जो देश में समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्यपालन दोनों के लिए अच्छी क्षमता रखता है.

उन्होंने मत्स्यपालन क्षेत्र के विकास को बढ़ाने के लिए अपने सुझाव साझा करने के लिए मछुआरों, मछली किसानों, लाभार्थियों, तट रक्षक अधिकारियों को धन्यवाद दिया.

परशोत्तम रूपाला ने स्थानीय जनप्रतिनिधियों के साथ मुद्दों और इस के विकास के अवसरों की चर्चा की.

उन्होंने कहा कि मत्स्य इकोसिस्टम को मजबूत करने के लिए लाभार्थियों से विभिन्न आवेदन प्राप्त हुए हैं. उन्होंने अपनी राय भी साझा की है कि पीएमएमएसवाई योजना की गतिविधियों को संचालित करने से भारत में मत्स्यपालन क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. इस का उद्देश्य मछली पकड़ने और जलीय कृषि की आधुनिक तकनीक और वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर मछली के उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाना है. इस पहल से न केवल मछुआरों और मछली किसानों की आय में वृद्धि होगी, बल्कि बाजार में मछली की उपलब्धता भी बढ़ेगी, जिस का खाद्य सुरक्षा और पोषण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि सागर परिक्रमा यात्रा तटीय समुदायों और मछुआरों को सरकार द्वारा क्रियान्वित मत्स्य संबंधी योजनाओं/कार्यक्रमों के बारे में जानकारी का प्रसार कर के, सर्वोत्तम प्रथाओं का प्रदर्शन, मत्स्यपालन को बढ़ावा देने और सभी मछुआरों और संबंधित हितधारकों के साथ एकजुटता प्रदर्शित कर के सशक्त बनाएगी.

मंत्री परशोत्तम रूपाला ने भास्करीयम कन्वेंशन सेंटर, एलमक्करा, एर्नाकुलम में एफपीओ की बिजनैस मीट -2023 का उद्घाटन किया और वहां उपस्थित लोगों को संबोधित किया. उन्होंने सूचित किया कि देशभर के मछुआरों की आजीविका में सुधार के लिए उन की सहायता करने की उच्च मांग के कारण, प्रधानमंत्री ने मत्स्यपालन के लिए अलग विभाग की स्थापना की.

उन्होंने यह भी कहा कि स्वतंत्रता के बाद से वर्ष 2014 तक, मत्स्य क्षेत्र में निवेश लगभग 3,681 करोड़ रुपए था. वर्ष 2014 से केंद्र सरकार ने मत्स्यपालन क्षेत्र में जमीनी हकीकत को समझ कर पीएमएमएसवाई, एफआईडीएफ और अन्य योजनाओं की शुरुआत की है और लगभग 32,000 करोड़ रुपए की योजनाएं बनाई गई हैं.

सागर परिक्रमा सातवें चरण में विभिन्न स्थानों से लगभग 4,000 मछुआरे, विभिन्न मत्स्य हितधारकों ने भाग लिया, जिन में से लगभग 1300 महिला मछुआरों ने भाग लिया. कार्यक्रमों को यूट्यूब, ट्विटर और फेसबुक जैसे विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर लाइव स्ट्रीम किया गया.

सागर परिक्रमा ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों के जीवन की गुणवत्ता और आर्थिक भलाई में सुधार लाने में प्रभाव डालेगी और आजीविका के अधिक अवसर पैदा करेगी. सागर परिक्रमा मछुआरों, अन्य हितधारकों के मुद्दों को हल करने में सहायता करेगी और विभिन्न मत्स्य योजनाओं जैसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) और भारत सरकार द्वारा कार्यान्वित कार्यक्रम के माध्यम से उन के आर्थिक उत्थान की सुविधा प्रदान करेगी. सागर परिक्रमा का सातवां चरण अगले 2 दिनों तक केरल के पूरे तटीय क्षेत्र को कवर करता रहेगा.

आधुनिक बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों के विकास के लिए 7,500 करोड़ रुपए स्‍वीकृत

कोच्चि : केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री परशोत्तम रूपाला एवं पत्तन, पोत परिवहन और जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने पिछले दिनों केरल के कोचिन पोर्ट अथा एमरिटी विलिंगडन द्वीप थोप्पुमपडी के समुद्रिका हाल में कोचिन फिशिंग हार्बर के आधुनिकीकरण और उन्नयन की परियोजना की आधारशिला रखी.

इस कार्यक्रम में एर्नाकुलम लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के सांसद हिबी ईडन, कोच्चि निर्वाचन क्षेत्र के विधानसभा सदस्य केजे मक्सी, एर्नाकुलम निर्वाचन क्षेत्र के विधानसभा सदस्य टीजे विनोद, कोच्चि नगरनिगम के महापौर, एडवोकेट अनिल कुमार, मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्रालय के विशेष कार्य अधिकारी डा. अभिलक्ष लि‍खी, राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड की मुख्य कार्यकारी अधिकारी डा. सुवर्णा चंद्रपरागरी, केरल सरकार के मत्स्यपालन विभाग के प्रमुख सचिव केएस श्रीनिवास और कोचिन बंदरगाह प्राधिकरण की अध्‍यक्ष डा. एम. बीना उपस्थित रहे.

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्रालय के मत्स्यपालन विभाग ने मार्च, 2022 में सागरमाला योजना के अंतर्गत बंदरगाह नौवहन और जलमार्ग मंत्रालय के साथ कन्वर्जन्स में प्रधानमंत्री मत्‍स्‍य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत थोप्पुमपडी में कोचिन फि‍शिंग हार्बर के आधुनिकीकरण और उन्‍नयन के लिए कोचिन पोर्ट ट्रस्‍ट के प्रस्‍ताव को स्‍वीकृति दी थी. उन्होंने कुल 169.17 करोड़ रुपए की परियोजना के लिए 100 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता प्रदान की थी.

700 मछली पकड़ने वाली नौकाओं के नाविकों को मिलेगा सीधा लाभ

इस परियोजना का लाभ कोचिन मछली पकड़ने के बंदरगाह पर 700 मछली पकड़ने वाली नौकाओं के नाविकों को होगा. इन नौकाओं से लगभग 10,000 मछुआरों को प्रत्यक्ष आजीविका मिलेगी और लगभग 30,000 मछुआरों को अप्रत्यक्ष रूप से आजीविका अर्जित करने में सहायता मिलेगी. आधुनिकीकरण परियोजना से इस क्षेत्र में स्वच्छता की स्थितियों में पर्याप्त सुधार होगा और मछली और मत्‍स्‍य उत्पादों के निर्यात से आय में वृद्धि में होगी.

आधुनिकीकरण पर होगा जोर

आधुनिकीकरण के अंतर्गत शुरू की गई मुख्य गतिविधियों में वातानुकूलित नीलामी हाल, मछली ड्रेसिंग इकाई, पैकेजिंग इकाई, आंतरिक सड़कें, लोडिंग और अनलोडिंग प्लेटफार्म, कार्यालय, डारमेट्री और फूड कोर्ट की स्थापना शामिल है.

इस परियोजना में सार्वज‍निक निजी भागीदारी के तहत 55.85 करोड़ रुपए के कोल्ड स्टोरेज, स्लरी और ट्यूब आइस प्लांट, मल्टीलेवल कार पार्किंग सुविधा, रिवर्स औस्मोसिस प्लांट, फूड कोर्ट, खुदरा बाजार आदि की स्थापना की जाएगी.

मत्स्यपालन, पशुपालन और डेरी मंत्री परशोत्तम रूपाला ने कहा कि सरकार ने मस्‍त्‍यपालन और जलीय कृषि अवसंरचना विकास कोष (एफआईडीएफ), सागरमाला योजना और प्रधानमंत्री मत्‍स्‍य संपदा योजना के तहत मछली पकड़ने के आधुनिक बंदरगाहों और मछली लैंडिंग केंद्रों के विकास के लिए सरकार ने 7,500 करोड़ रुपए से अधिक की परियोजनाओं की स्‍वीकृति दी है.

‘मछुआरों की आजीविका’ विषय पर राष्ट्रीय वैबिनार का आयोजन

नई दिल्ली : भारत सरकार के मत्स्यपालन, पशुपालन एवं डेरी मंत्रालय के अंतर्गत मत्स्य विभाग ने आजादी का अमृत महोत्‍सव के तहत ‘सस्‍टेनेबिलिटी औफ फिश मील इंडस्‍ट्री एंड द लाइवलीहुड्स औफ फिशरमैन’ यानी ‘फिश मील उद्योग की निरंतरता एवं मछुआरों की आजीविका’ विषय पर एक राष्ट्रीय वैबिनार का आयोजन किया. इस कार्यक्रम की सहअध्यक्षता मत्‍स्‍यपालन विभाग में संयुक्त सचिव (आईएफ) सागर मेहरा और भारत सरकार के मत्‍स्‍यपालन विभाग में संयुक्त सचिव (एमएफ) डा. जे. बालाजी ने की.

कार्यक्रम में मछुआरा समुदाय के प्रतिनिधियों, निर्यातकों, उद्यमियों, मत्स्य संघों, मत्स्य विभाग के अधिकारियों, भारत सरकार के अधिकारियों और विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के मत्स्य विभाग के अधिकारियों, राज्य कृषि, पशु चिकित्सा एवं मत्स्यपालन विश्वविद्यालयों के शिक्षकों, मत्स्य अनुसंधान संस्थानों के संकायों, मत्स्य सहकारी समितियों के अधिकारियों, वैज्ञानिकों, छात्रों और मत्स्‍यपालन से जुड़े देशभर के हितधारकों ने भाग लिया.

वैबिनार की शुरुआत भारत सरकार के मत्‍स्‍यपालन विभाग में संयुक्‍त सचिव सागर मेहरा के स्वागत भाषण से हुई. उन्होंने बताया कि एक्वाकल्चर के जरीए पैदा होन वाली तकरीबन 70 फीसदी मछलियों और क्रस्टेशियन को प्रोटीनयुक्त भोजन खिलाया जाता है, जिस में फिश मील प्रमुख रूप से शामिल होता है. फिश मील उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन, आवश्यक एमीनो एसिड, विटामिन, आवश्यक खनिज (जैसे फास्फोरस, कैल्शियम एवं आयरन) और मछलियों के विकास के लिए आवश्‍यक अन्य तत्‍वों से भरपूर एक पूरक पौष्टिक आहार है. बेहतरीन पोषण मूल्य के कारण इसे पालतू पशुओं के आहार के लिए पूरक प्रोटीन के तौर पर पसंद किया जाता है.

आमतौर पर यह मछली और झींगा के आहार में प्रोटीन का प्रमुख स्रोत होता है. हर साल लगभग 2 करोड़ टन कच्चे माल के उपयोग से फिश मील एवं फिश औयल का उत्पादन किया जा रहा है. उन्‍होंने तकनीकी चर्चा शुरू करने के लिए सभी पैनलिस्टों का स्वागत किया.

उच्च गुणवत्ता वाले फिश मील के उत्पादन पर जोर

तकनीकी सत्र की शुरुआत सीएलएफएमए के प्रबंध समिति के सदस्‍य निसार एफ. मोहम्मद द्वारा ‘ओवरव्‍यू औफ फिश मील इंडस्‍ट्री’ यानी ‘फिश मील उद्योग का संक्षिप्‍त परिचय’ विषय पर परिचर्चा के साथ हुई. उन्होंने फिश मील के महत्व को उजागर किया और बताया कि उच्च गुणवत्ता वाले फिश मील का उत्पादन कैसे किया जा सकता है.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि फिश मील में मछली के कचरे का उपयोग किए जाने से जल प्रदूषण कम होता है. यह पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है और मेमनों, सूअरों आदि में मृत्यु दर को कम करता है.

दूसरे वक्ता बेंगलुरु के इंडियन मैरीन इनग्रेडिएंट्स एसोसिएशन के अध्‍यक्ष मोहम्मद दाऊद सैत ने फिश मील उद्योग की समस्‍याओं एवं चुनौतियों के बारे में बात की.

उन्होंने मत्स्यपालन उद्योग की उन्नति एवं कल्याण को बढ़ावा देने के उद्देश्‍य से भारत के फिश मील एवं फिश औयल उत्पादकों को साथ लाने के लिए निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में बताया.

फिश मील-फीड उद्योग पर हुई चर्चा

अवंति फीड प्रा. लिमिटेड के अध्‍यक्ष एवं प्रबंध निदेशक ए. इंद्र कुमार ने फिश मील और श्रिंप फीड उद्योग के बारे में बात की, जो साल दर साल लगातार बढ़ रहा है. एक्‍वाकल्‍चर के जरीए उत्‍पादन तकरीबन 95 फीसदी झींगा का निर्यात किया जाता है. इसलिए सभी आयातकों की मांग टिकाऊ एक्‍वाकल्‍चर एवं मैरीटाइम ट्रस्ट से उत्‍पादित मछलियों के लिए होती है.

वरिष्‍ठ वैज्ञानिक एवं वेरावल-आईसीएआर सैंट्रल इंस्टीट्यूट औफ फिशरीज टैक्नोलौजी के प्रभावी वैज्ञानिक डा. आशीष कुमार झा ने ‘फिश मील एंड इट्स अल्‍टरनेटिव टु एक्वा फीड इडस्‍ट्री’ यानी ‘एक्‍वा फीड उद्योग में फिश मील एवं उस का विकल्प’ विषय पर चर्चा की.

उन्‍होंने ओवरफिशिंग, बायकैच और प्रदूषण के 3 मुद्दों के बारे में जानकारी दी. साथ ही, उन्होंने यह भी बताया कि कीट, पत्ते, फल, बीज आदि को फिश मील के विकल्प के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है.

आईसीएआर- सीएमएफआरआई के प्रधान वैज्ञानिक डा. एपी दिनेश बाबू ने भारतीय समुद्री मत्‍स्‍य उद्योग में किशोर मछलियों को न पकड़ने के बारे में बात की. उन्‍होंने मेश साइज रेग्यूलेशन, जुवेनाइल बाइकैच रिडक्शन डिवाइस (जेबीआरडी) और न्यूनतम कानूनी दायरे (एमएलएस) को लागू करने का सुझाव दिया.

मछलियों की बरबादी को रोकने पर दिया जोर

कर्नाटक सरकार के मत्‍स्‍य निदेशक रामाचार्य ने आग्रह किया कि तरीबन 12 से 18 फीसदी मछलियां बरबाद हो रही हैं, इसलिए उद्योग को मदद दी जानी चाहिए.

उन्होंने माना कि सही नीतिगत उपायों और विनियमन जैसे विभिन्‍न मुद्दों के बारे में तमाम प्‍ लेटफार्म के जरीए जागरूकता पैदा की जा रही है. कर्नाटक सरकार ने बिना नियमन के मछली पकड़ने पर लगाम लगाने के लिए नियम बनाए हैं.

संयुक्त सचिव (एमएफ) डा. जे. बालाजी ने जागरूकता पैदा करने और किशोर मछलियों को पकड़े जाने के कारणों पर ध्यान दिए जाने के महत्व के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि मछलियों की दोबारा आूपर्ति में कृत्रिम रीफ स्‍थापित करना काफी महत्‍वपूर्ण होगा. इस से किशोर मछलियों के पकड़े जाने पर भी लगाम लगेगी.

उस के बाद मंच परिचर्चा के लिए खुला और उस का नेतृत्व संयुक्त सचिव (एमएफ) डा. जे. बालाजी ने किया. मत्‍स्‍य किसानों और उद्योग के प्रतिनिधियों द्वारा उठाए गए सवालों एवं शंकाओं पर चर्चा की गई और उन्हें आश्‍वस्‍त किया गया.

उपरोक्‍त व्यावहारिक चर्चाओं के साथसाथ क्षेत्रीय रणनीति एवं कार्ययोजना तैयार करने के उद्देश्‍य से बाद की कार्यवाही के लिए कई बिंदु तैयार किए गए.

वैबिनार का समापन मत्‍स्‍यपालन विभाग में सहायक आयुक्‍त (एफवाई) डा. एसके द्विवेदी द्वारा अध्यक्ष, प्रतिनिधियों, अतिथि वक्ताओं एवं प्रतिभागियों को धन्यवाद प्रस्ताव के किया गया.

उत्तर प्रदेश में मत्स्य विभाग की योजनाओं के लिए आवेदन शुरू

लखनऊ : मछुआ समाज व बेरोजगार युवाओं के लिए उत्तर प्रदेश मत्स्य विभाग द्वारा तमाम तरह की अनुदान योजनाएं चलाई जा जा रही हैं, जिस के लिए आवेदक को उत्तर प्रदेश के मत्स्य विभाग के पोर्टल से औनलाइन आवेदन करना अनिवार्य है. मत्स्य विभाग की तरफ से विभागीय योजनाओं के लिए लाभार्थियों के आवेदन की तारीख तय हो गई है. कोई भी व्यक्ति जो विभाग के अनुदान योजनाओं का लाभ लेना चाहता है, वह 30 मई, 2023 से विभागीय पोर्टल वैबसाइट http://fisheries.up.gov.in पर औनलाइन आवेदन कर सकता है.

इन योजनाओं में मिलेगा सहायता अनुदान

विभाग के औनलाइन पोर्टल का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के मत्स्य विकास विभाग के कैबिनेट मंत्री डा. संजय कुमार निषाद द्वारा किया गया.

इस अवसर पर उन्होंने मत्स्य विकास से संबंधित कार्यक्रमों की जानकारी देते हुए बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत निजी भूमि पर तालाब बनाने, मत्स्य बीज हैचरी बनाने, बायोफ्लाक पौंड, रियरिंग तालाब बनाने, रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम, इंसुलेटेड व्हीकल्स, मोटरसाइकिल विद आइसबौक्स, थ्रीव्हीलर विद आइसबौक्स, साइकिल विद आइसबौक्स, जिंदा मछली विक्रय केंद्र, मत्स्य आहार प्लांट, मत्स्य आहार मिल, केज संवर्धन, पेन संवर्धन, सजावटी मछली रियरिंग यूनिट, कियोस्क निर्माण, शीतगृह निर्माण, मनोरंजन मात्स्यिकी, डाइग्नोस्टिक मोबाइल लैब, मत्स्य सेवा केंद्र एवं सामूहिक दुर्घटना बीमा सहित कुल 30 योजनाओं के लिए औनलाइन आवेदन 30 मई से 15 जून, 2023 तक आमंत्रित किया जा सकेगा.

मछलीपालन पर होगा जोर

मंत्री डा. संजय निषाद ने बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त (अल्ट्रामौडर्न) फिश मार्केट की स्थापना की जा रही है. वर्तमान में जनपद चंदौली में अल्ट्रामौडर्न फिश मंडी निर्माणाधीन है.

उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मात्स्यिकी सैक्टर के संगठित विकास के लिए केंद्र प्रायोजित परियोजना के अंतर्गत जनपद गोरखपुर एवं मथुरा में इंटीग्रेटेड एक्वापार्क बनाए जाने की परियोजना का प्रावधान हैं, जिस की लागत प्रति इकाई सौ करोड़ रुपए है. वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिए जनपद गोरखपुर एवं मथुरा में इंटीग्रेटेड एक्वापार्क की स्थापना का प्रस्ताव राज्य स्तरीय अनुश्रवण एवं अनुमोदित समिति द्वारा अनुमोदित किया जा चुका है.

एक ट्रिलियन इकोनौमी में मत्स्य विभाग का होगा महत्वपूर्ण योगदान

मंत्री डा. संजय निषाद ने बताया कि उत्तर प्रदेश की एक ट्रिलियन इकोनौमी में मत्स्य विभाग का महत्वपूर्ण योगदान होगा. योजना की शुरुआत से ले कर अब तक 18,951.20 लाख रुपए का अनुदान लाभार्थियों को वितरित किया गया है. योजना के तहत 1,794 (क्षेत्रफल 1386.12 हेक्टेयर) निजी भूमि पर तालाबों, 59 (क्षेत्रफल 73.21 हेक्टेयर) खारे भूमि पर तालाबों, 176 (क्षेत्रफल 165.632 हेक्टेयर) रियरिंग यूनिट, 661 बायोफ्लाक, 32 मत्स्य बीज उत्पादन हैचरी, 660 रिसर्कुलेटरी एक्वाकल्चर सिस्टम, 19 इंसुलेटेड व्हीकल्स एवं मोबाइल लैब, 143 मोटरसाइकिल विद आइसबौक्स, 50 थ्रीव्हीलर विद आइसबौक्स, 1379 साइकिल विद आइसबौक्स, 34 जिंदा मछली विक्रय केंद्र, 45 मत्स्य आहार मिल, 29 कियोस्क, 1 बैकयार्ड आर्नामेंटल फिश रियरिंग यूनिट, 85 केज सहित कुल 6904 परियोजनाएं पूरी कराई गईं, जिस की कुल परियोजना लागत 33173.0425 लाख रुपए है. 11513 परियोजनाओं का कार्य प्रगति पर है, जिस की कुल परियोजना लागत 32050.517 लाख रुपए है.

मत्स्य विकास मंत्री डा. संजय निषाद ने कहा कि रिवर रैचिंग कार्यक्रम के तहत नदियों में मत्स्य संरक्षण के लिए 188.15 लाख बड़े आकार के मत्स्य बीज (मत्स्य अंगुलिकाएं) गंगा नदी प्रणाली में बहाई जा चुकी है, जिस पर 488.90 लाख रुपए की धनराशि खर्च हुई.

उन्होंने आगे कहा कि वित्तीय वर्ष 2023-24 के साथ प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत 107015.42 लाख रुपए की कार्ययोजना का अनुमोदन राज्य स्तरीय अनुमोदन एवं अनुश्रवण समिति से प्राप्त करते हुए उक्त कार्ययोजना का अनुमोदन राष्ट्रीय मात्स्यिकी विकास बोर्ड को प्रेषित करते हुए भारत सरकार से 44260.63 लाख रुपए का केंद्रांश अवमुक्त किए जाने के लिए अनुरोध किया गया है, जबकि सामूहिक दुर्घटना बीमा योजना के अंतर्गत अब तक 102840 मछुआरों/मत्स्यपालकों को आच्छादित किया गया है.

डा. संजय निषाद ने यह भी बताया कि मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत ग्राम समाज के पट्टे पर आवंटित तालाबों में मत्स्यपालन हेतु निवेश और मत्स्य बीज बैंक की स्थापना हेतु सुविधा प्रदान की जा रही है. परियोजना की इकाई लागत 4 लाख रुपए पर 40 फीसदी 1.60 लाख रुपए का अनुदान दिया जा रहा है.

उन्होंने आगे कहा कि मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत अब तक 849.78 लाख रुपए का अनुदान 648 लाभार्थियों को दिया गया है, जिस से 612.50 हेक्टेयर जलक्षेत्रों में मत्स्यपालन हेतु निवेश के लिए अनुदान की सुविधा उपलब्ध कराई गई है. योजना के अंतर्गत वित्तीय वर्ष 2023-24 में 10.00 करोड़ का बजट प्रावधान कराया गया है, जिस के अंतर्गत 625 हेक्टेयर जलक्षेत्रों में मत्स्यपालन निवेश एवं मत्स्य बीज बैंक की स्थापना के लिए लगभग 700 लाभार्थियों को लाभान्वित किया जाएगा.

मछली पकड़ने के साजोसामान पर मिलेगा अनुदान

मंत्री डा. संजय निषाद ने बताया कि निषादराज बोट सब्सिडी योजना के अंतर्गत मत्स्यपालकों/मछुआरों को मछली पकड़ने एवं नौकायन हेतु नाव, जाल, लाइफ जैकेट, आइसबौक्स आदि क्रय करने की सुविधा प्रदान करने हेतु आवेदनपत्र लिया जा रहा है. योजना की इकाई लागत 67,000 रुपए पर 40 फीसदी 26,800 रुपए का अनुदान दिया जाएगा. वित्तीय वर्ष 2023-24 में 5.00 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान कराया गया है, जिस के अंतर्गत नाव, जाल आदि खरीदने के लिए 1865 मछुआरों को लाभान्वित किया जाएगा.

ट्रेनिंग के साथ मिलेगी सुरक्षा

मत्स्य मंत्री डा. संजय निषाद ने कहा कि उत्तर प्रदेश मत्स्य पालक कल्याण कोष के अंतर्गत मत्स्यपालकों/मछुआरों के आर्थिक/सामाजिक उत्थान एवं स्वरोजगार हेतु मत्स्यपालक/मछुआरा बाहुल्य ग्रामों में अवसंरचनात्मक सुविधाओं का निर्माण, दैवीय आपदाओं से हुई किसी क्षति में वित्तीय सहायता, चिकित्सा सहायता, मछुआ आवास निर्माण सहायता, मत्स्यपालकों एवं मछुआरों के प्रशिक्षण, महिला सशक्तिकरण सहित कुल 6 योजनाएं चलाई जा रही हैं. योजना में वित्तीय वर्ष 2023-24 में 25 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान कराया गया है. योजना के अंतर्गत सामुदायिक भवन निर्माण, मछुआ आवास निर्माण, दैवीय आपदा में चिकित्सा सहायता, प्रशिक्षण एवं महिला सशक्तिकरण के माध्यम से मत्स्यपालकों एवं मछुआरों को लाभान्वित किया जाएगा.

मछुआरों को बिना जमानत के मिलेगा बैंक ऋण

इस अवसर पर मत्स्य विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव डा. रजनीश दुबे ने बताया कि मंत्री डा. संजय कुमार निषाद के दिशानिर्देशन में मत्स्य विकास विभाग द्वारा मत्स्यपालकों एवं मत्स्य गतिविधियों में लगे हुए व्यक्तियों को सभी सुविधाएं उपलब्ध कराते हुए योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है. बैंकों के माध्यम से किसान क्रेडिट कार्ड की सुविधा दिलाई जा रही है, जिस के अंतर्गत 1.60 लाख रुपए तक का बैंक ऋण बिना किसी जमानत के दिया जाता है. अब तक 13,788 मत्स्यपालकों को किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध कराया गया है.

कार्यक्रम में मत्स्य विकास विभाग के विशेष सचिव एवं निदेशक प्रशांत शर्मा ने मत्स्य विभाग की उपलब्धियों एवं आगामी योजनाओं के संबंध में प्रस्तुतीकरण दिया. इस अवसर पर उन्होंने कहा कि मत्स्यपालकों और मत्स्य गतिविधियों से जुड़े लोगों को विभाग द्वारा संचालित योजनाओं का लाभ पहुंचाने के लिए विभाग द्वारा हर संभव काम किया जा रहा है.