कृषि में डिप्लोमा (Diploma in Agriculture) कर किसानों तक पहुंचा रहे जानकारी

शाजापुर: कृषि आदान विक्रेताओं के लिए संचालित देशी डिप्लोमा के अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र, शाजापुर और आत्मा परियोजना किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि प्रसार संस्थान, हैदराबाद, राज्य कृषि विस्तार एवं प्रशिक्षण संस्थान, भोपाल के वित्तीय सहयोग से कृषि आदान विक्रेताओं के लिए एकवर्षीय डिप्लोमा कोर्स के प्रमाणपत्र का वितरण समारोह का आयोजन कृषि विज्ञान केंद्र में विधायक शाजापुर अरुण भीमावद के मुख्य आतिथ्य में आयोजित किया गया.

इस कार्यक्रम में प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. जीआर अंबावतिया, उपसंचालक, कृषि, केएस यादव, वैज्ञानिक एवं फेसिलटेटर डा. एसएस धाकड, आत्मा परियोजना संचालक मती स्मृति व्यास, अनुविभागीय अधिकारी, कृषि, राजेश चौहान, डा. गायत्री वर्मा, डा. मुकेश सिंह, रत्नेष विश्वकर्मा, निकिता नंद, गंगाराम राठौर उपस्थिति थे.

इसी दौरान देशी डिप्लोमा के 48 सप्ताह के इस कार्यक्रम में परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले प्रशिक्षणार्थियों को राष्ट्रीय कृषि विस्तार प्रबंधन संस्थान, हैदराबाद द्वारा डिप्लोमा सर्टिफिकेट के प्रमाणपत्रों का वितरण किया गया. इस देशी डिप्लोमा का गोल्ड मैडल प्रकाशचंद्र चौधरी, सिल्वर मैडल माखन सिंह पाटीदार और ब्रांज मैडल सुनील हावड़िया को प्रदान किया गया.

आयोजित कार्यक्रम में शाजापुर के विधायक अरुण भीमावद ने बताया कि खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए जिले के सभी कृषि आदान विक्रेताओं को प्रशिक्षित होना जरूरी है, जिस से उन्नत कृषि तकनीक की जानकारी कृषि आदान विक्रेताओं के माध्यम से किसानों तक पहुंच सके. साथ ही, उन्होंने जैविक खेती एवं प्राकृतिक खेती की उन्नत तकनीक अपनाने की सलाह दी, जिस से खेती की लागत कम हो सके.

इस दौरान उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र के सभी वैज्ञानिकों को बधाई दी कि उन्होंने उन्नत कृषि तकनीक की जानकारी सभी किसानों एवं कृषि आदान विक्रेताओं को हिंदी में उपलब्ध कराई. सभी कृषि आदान विक्रेताओं को सलाह दी गई कि वे कृषि विज्ञान केंद्र के समस्त वैज्ञानिकों के निरंतर संपर्क में रह कर उन्नत कृषि तकनीक की जानकारी किसानों तक पहुंचाते रहें.

कार्यक्रम के प्रारंभ में केंद्र प्रमुख डा. जीआर अंबावतिया के द्वारा आए हुए सभी अतिथियों का स्वागत किया एवं खेती को लाभ का धंधा बनाने के लिए केंद्र द्वारा किए जा रहे कार्यों की जानकारी दी. इस दौरान उपस्थित सभी कृषि आदान विक्रेताओं को सलाह दी कि उद्यानिकी एवं औषधीय फसलों की उन्नत कृषि तकनीक किसानों तक पहुंचाएं, जिस से उन की आय में वृद्धि हो सके.

इस दौरान उपसंचालक, कृषि, केएस यादव ने प्राकृतिक खेती एवं जैविक खेती की उन्नत तकनीक अपनाने की सलाह दी. सभी कृषि आदान विक्रेताओं को सलाह दी कि वे कृषि विज्ञान केंद्र की उन्नत कृषि तकनीक किसानों तक पहुंचाएं. व्यापारियों के लिए कृषि आदानों से संबंधित विभिन्न अधिनियमों, नियमों और विनियमों के लाभ के बारे में विस्तार से बताया गया.

देशी डिप्लोमा कोर्स के प्रभारी एवं केंद्र के वैज्ञानिक डा. एसएस धाकड़ ने बताया कि इस एकवर्षीय डिप्लोमा कोर्स के दौरान हर सप्ताह कृषि विज्ञान केंद्र में प्रति शनिवार 40 कक्षाएं आयोजित की गईं. इस डिप्लोमा कोर्स के दौरान केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थान, भोपाल एवं कृषि महाविद्यालय, सिहोर सहित प्रगतिशील किसानों के प्रक्षेत्र पर कुल 8 दिवसीय भ्रमण कार्यक्रम आयोजित किए गए.

इस डिप्लोमा कोर्स में आधुनिक कृषि तकनीक, उन्नत किस्म, एकीकृत उर्वरक प्रबंधन, कीट प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, जल प्रबंधन, संरक्षित खेती, जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन, उन्नत कृषि यंत्रों के साथ जैविक खेती के विभिन्न विषयों की तकनीकी जानकारी कृषि महाविद्यालय, इंदौर, राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान, भोपाल, इंदौर, ग्वालियर व कृषि विज्ञान केंद्र, शाजापुर, उज्जैन, देवास, राजगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा उपलब्ध कराई गई.

कार्यक्रम के आयोजन में रत्नेष विश्वकर्मा, निकिता नंद एवं गंगाराम राठौड़ का खासा योगदान रहा. आभार प्रदर्शन डा. गायत्री वर्मा द्वारा किया गया.

इस दौरान देशी कोर्स के बारे में विभिन्न प्रशिक्षणर्थियों ने अपने अनुभव आतिथ्यों के सामने रखे :

 

संजय जैन : कृषि विज्ञान केंद्र में एकवर्षीय देशी डिप्लोमा कोर्स के दौरान एकीकृत खरपतवार प्रबंधन, पौलीथिन लाइनिंग, तालाब, मछलीपालन एवं जल प्रबंधन की उन्नत तकनीक सीख कर ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचा रहे हैं, जिस से मेरे कृषि व्यापार में वृद्धि हो रही है एवं किसानों को सही सलाह मिल रही है. वह अच्छा उत्पादन ले रहे हैं.

ओमप्रकाश गोठी : कृषि विज्ञान केंद्र में नए कृषि यंत्रों का प्रयोग एवं विभिन्न फसलों के लिए इन का उपयोग और जल संरक्षण एवं संवर्धन की उन्नत तकनीक सीखी एवं इन तकनीकों का किसानों के बीच प्रचारप्रसार कर रहे हैं.

परमानंद पाटीदार : उन्नत तकनीक देशी डिप्लोमा कोर्स के माध्यम से सीखने के बाद मेरे कृषि संबंधी व्यापार में वृद्धि हो रही है एवं किसानों को वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई जल संरक्षण संवर्धन की उन्नत तकनीक को ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचा रहे हैं, जिस से सिंचाई जल की पूर्ति हो सके.

सुनील हावड़िया : कृषि विज्ञान केंद्र के फसल संग्रहालय में विभिन्न फसलों की उन्नत किस्मों एवं फार्म प्रबंधन तकनीक सीखी, जिस से खेतीबाड़ी में किसानों को लाभ हो रहा है एवं वैज्ञानिकों की सलाहों को हम ज्यादा से ज्यादा किसानों तक पहुंचा रहे हैं.

राजेश पाटीदार : कृषि विज्ञान केंद्र में सोयाबीन की उन्नत तकनीक की जानकारी जैसे उन्नत किस्म, रेज्डबेड से बोआई एवं पौध संरक्षण उपाय की विषेष जानकारी मिली, जिस को अपनी फर्म के माध्यम से किसानों तक पहुंचा रहा हूं.

माखनसिंह पाटीदार : मिट्टी परीक्षण एवं उर्वरक प्रबंधन से संबंधित जानकारी के साथसाथ सोयाबीन के विकल्प के बारे में सीखा एवं किसानों को उड़द, मूंग, ज्वार, मक्का की तकनीकी सलाहें वैज्ञानिकों के माध्यम से पहुंचाई गईं.

इस दौरान केंद्र प्रदर्शन इकाई का उपस्थित अतिथियों एवं प्रशिक्षणार्थियों द्वारा भम्रण किया गया और तकनीकी जानकारी दी गई.

ड्रोन तकनीकी (Drone Technology) पर बूटकैंप का आयोजन

भागलपुर : बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर, भागलपुर में 11 मार्च से 16 मार्च तक ड्रोन तकनीकी के ऊपर बूटकैंप का आयोजन किया गया. बीएयू, सबौर और सी-डैक पटना संयुक्त रूप से इलैक्ट्रौनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित परियोजना “यूएएस (ड्रोन और संबंधित प्रौद्योगिकी) में मानव संसाधन विकास के लिए क्षमता निर्माण” के तहत ड्रोन और संबद्ध प्रौद्योगिकी पर 6 दिवसीय बूटकैंप का आयोजन किया गया.

यह बूटकैंप प्रतिभागियों को ड्रोन उद्योग और संबंधित प्रौद्योगिकियों की समझ में सुधार करने के लिए व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ व्यापक ज्ञान प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

ड्रोन और संबंधित प्रौद्योगिकी के क्षेत्र के ज्ञान का विस्तार करने के लिए सी-डैक द्वारा वैज्ञानिकों और स्टार्टअप को सत्र विशेषज्ञों के रूप में एक मंच पर लाया गया है. इस बूटकैंप कार्यक्रम द्वारा ड्रोन डिजाइन, सिमुलेशन और उड़ान यांत्रिकी के लिए इंटरैक्टिव मंच प्रदान किया गया. इस कार्यक्रम में हुए मंथन से ड्रोन प्रौद्योगिकी के प्रमुख पहलुओं की व्यापक समझ विकसित होने की संभावना है.

इस 6 दिवसीय कैंप के समापन समारोह मे बोलते हुए बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि बीएयू कृषि क्षेत्र में उच्च तकनीक के प्रयोग मे अग्रणी रहा है. ड्रोन तकनीक का खेती में प्रचालन को बढ़ाना उसी कड़ी का हिस्सा है. हमारे प्रयासों में जल्द ही बिहार में ड्रोन आधारित खेती एक क्रांति के रूप में सामने आएगी.

कार्यक्रम में जानकारी देते हुए सी-डैक पटना के वरिष्ठ निदेशक आदित्य कुमार सिन्हा ने बताया कि यह बूटकैंप कार्यक्रम इलैक्ट्रौनिक्स और प्रोद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार के सौजन्य से किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य छात्रों को ड्रोन तकनीकी के विभिन्न पहलुओं के बारे में अवगत कराना है, ताकि वर्ष 2030 तक भारत ड्रोन तकनीकी के क्षेत्र में वैश्विक केंद्र बन सके.

नवीन हस्तक्षेपों के माध्यम से छात्र समुदाय के बीच उद्यमशीलता मानसिकता को बढ़ावा देना और तकनीकी प्रतिभा का पोषण करना है. इस बूटकैंप के आयोजन से कृषि में ड्रोन और संबद्ध प्रौद्योगिकियों के विविध अनुप्रयोगों का पता लगाना. साथ ही, AI यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता, कंप्यूटर जैसी प्रौद्योगिकियों के साथ ड्रोन के संभावित एकीकरण को प्रदर्शित करना.

प्राकृतिक खेती (Natural farming) है जैविक खेती से अलग

भिंड : कृषि विज्ञान केंद्र, लहार, भिंड द्वारा भिंड जिले में ग्राम मगदपुरा में 2 दिवसीय प्राकृतिक खेती पर प्रशिक्षण हुआ. कृषि विज्ञान केंद्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं प्रमुख डा. एसपी सिंह के निर्देशन में कार्यक्रम कराया गया, जिस में डा. एसपी सिंह ने बताया कि प्राकृतिक खेती जैविक खेती से भिन्न है, क्योकि जैविक खेती में खादों एवं जैविक कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है, जबकि प्राकृतिक खेती में प्रकृति प्रदत्त उत्पादों एवं साधनों का उपयोग किया जाता है. इस में उत्पादन को प्रकृति की शक्ति माना जाता है और कृषि कर्षण क्रियाएं कम से कम की जाती है.

इसी कम में प्राकृतिक खेती के नोडल अधिकारी डा. बीपीएस रघुवंशी ने बताया कि इस पद्धति में रासायनिक खाद, गोबर खाद, जैविक खाद, केंचुआ खाद एवं जहरीले कीटनाशक, रासायनिक खरपतवारनाशक, रासायनिक फफूंदनाशक नहीं डालना है, केवल एक देशी गाय की सहायता से इस खेती को कर सकते है. किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उन के उर्वरक, खाद, कीट एवं रोगनाशकों में चला जाता है. यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा या फायदा कमाना चाहता है, तो उसे प्राकृतिक खेती की तरफ आना चाहिए.
उन्होंने प्राकृतिक खेती के उत्पाद जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत के बारे में विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि बीजामृत से बीजोपचारित करने से बीजों की अंकुरण क्षमता एवं अंकुरण फीसदी बढ़ती है, बीजों में एकसमान अंकुरण, फंगस एवं वायरस को रोकता है. वहीं जीवामृत गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन एवं पीपल एवं बरगद के पेड़ के नीचे की मिट्टी से बनाते हैं. यह जीवामृत जब सिंचाई के साथ खेत में प्रयोग किया जाता है, तो भूमि जीवाणुओं की संख्या तीव्र गति से बढ़ती है एवं भूमि के भौतिक, रासायनिक व जैविक गुणों में सुधार होता है.

इसी क्रम में केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक उद्यानिकी डा. कर्णवीर सिंह ने मल्चिंग के बारे में बताया कि इस में जुताई के स्थान पर फसल के अवशेषों को भूमि पर आच्छादित कर दिया जाता है.
कृषि वैज्ञानिक डा. एनएस भदौरिया ने बताया कि ब्रहारवा अग्निस्त्र और नीमास्त्र के बारे में बताया. डा. रूपेंद्र कुमार और डा. सुनील शाक्य ने अपने विषय से संबंधित किसानों से चर्चा किया. कार्यक्रम में पूर्व अध्यक्ष खनिज विकास निगम कोक सिंह नरवरिया ने भी चर्चा किया. किसानों के यहां जीवामृत, बीजामृत आदि उत्पाद को बना कर बताया.

किसान ने बागबानी (Gardening) से की बंपर कमाई

भिंड : सरकार किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए उद्यानिकी फसलों के लिए प्रोत्साहित कर रही है. इस की महत्ता को समझ कर कई किसान परंपरागत खेती को छोड़ कर बागबानी कर रहे हैं. ऐसे ही भिंड जिले के विकासखंड अटेर के ग्राम ऐंतहार के प्रगतिशील किसान डीपी शर्मा ने परंपरागत खेती को छोड़ बागबानी शुरू की और अब वे इस से अच्छी आमदनी कर रहे हैं.

किसान डीपी शर्मा ने बताया कि कृषि विज्ञान केंद्र और उद्यानिकी विभाग से परामर्श ले कर 8 अगस्त, 2020 को वीएनआर अमरूद का बगीचा लगाया गया, जिस में 550 पौधे अमरूद के और 50 पौधे नीबू, 100 पौधे करौंदा और  11 पौधे कटहल का रोपण किया गया.

उन्होंने बताया कि उद्यानिकी विभाग भिंड की तरफ से उन के बगीचे में ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगवाया गया है. ड्रिप के माध्यम से सभी पौधों को पर्याप्त मात्रा में पानी और खाद दिया जा रहा है. वर्तमान में पौधे में लगभग 18 महीने में फल आने लगे हैं, जिस में एक फल लगभग 400 ग्राम से ले कर 650 ग्राम तक का अमरूद का उत्पादन होने लगा है.

किसान डीपी शर्मा ने किसानों को संदेश दिया है कि धान व गेहूं की खेती में पानी ज्यादा लगता है, जलस्तर को बचाने के लिए बागबानी की तरफ रुझान बढ़ाएं. अमरूद का बाग लगा कर अन्य किसान भी अच्छी आमदनी कर सकते हैं. पानी की बचत में बागबानी खेती सब से बेहतर है.

फ्रूट फौरेस्ट (Fruit Forest) महिलाओं को बना रहा आत्मनिर्भर

छतरपुर : छतरपुर जिले की बात करें, तो महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त और आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने के लिए कलक्टर संदीप जीआर द्वारा महिला सशक्तीकरण की दिशा में कई प्रयास किए जा रहे हैं.

इसी क्रम में जिला मुख्यालय छतरपुर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम खोंप में कलक्टर संदीप जीआर के प्रयास से 6 एकड़ की भूमि पर मियावाकी पद्धति से फ्रूट फौरेस्ट लगाया गया है, जिस का संचालन और देखरेख ग्राम के ही 12 सदस्यीय महिला स्वसहायता समूह हरि बगिया द्वारा की जा रही है.
फ्रूट फौरेस्ट में अमरूद, जामुन, नीबू, कटहल, मुनगा इत्यादि पौधे को रोपा गया है, जिस में अब फल भी आना शुरू हो गए हैं.

समूह की अध्यक्ष कौशल्या रजक ने बताया कि वे फ्रूट फौरेस्ट के पौधो की अच्छी ग्रोथ के लिए देशी खाद जीवामृत का प्रयोग किया जाता है, जिसे समूह की ही महिलाओं द्वारा तैयार किया जाता है. इस के अलावा पांच पत्ती खाद एवं वर्मी कंपोस्ट भी बनाया जाता है.

पौधों की सिंचाई अटल भूजल योजना के अंतर्गत ड्रिप इरीगेशन सिस्टम से की जाती है. ग्राम की महिलाओं के लिए आर्थिक रूप से सशक्त बनने के दिशा में फ्रूट फौरेस्ट सार्थक सिद्ध हो रहा है. जिले में फ्रूट फौरेस्ट की संख्या निरंतर बढ़ रही है, जो हमारे पर्यावरण की अनुकूलता का भी पर्याय बन रहा है और हमें प्रकृति को करीब से जानने का मौका दे रहा है.

पशु चिकित्सा तकनीक पर कार्यशाला

हिसार : लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, हिसार के पशु चिकित्सा जनस्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान विभाग में क्रोमैटोग्राफी तकनीकों के प्रयोग द्वारा खाद्य एवं पर्यावरण संबंधी नमूनों में दूषित पदार्थों (संदुष्कों) की जांच विषय पर तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. डा. विनोद कुमार वर्मा के दिशा निर्देशन में किया गया.

इस कार्यशाला के समापन समारोह में डा. सज्जन सिहाग, अधिष्ठाता, डेयरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय, बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए.

इस अवसर पर डा. सज्जन सिहाग ने कहा कि इस कार्यशाला में सभी प्रतिभागी निश्चित रूप से लाभान्वित हुए होंगे और इन क्रोमैटोग्राफी तकनीकों को अपनेअपने कार्यक्षेत्रों में प्रयोग करने के लिए सभी प्रतिभागियों को प्रेरित किया.

डा. सज्जन सिहाग ने इन क्रोमैटोग्राफी आधारित तकनीकों से संबंधित कार्यशालाओं को भविष्य में आयोजन करने और इन के प्रयोग द्वारा खाद्य व पशुओं के खाद्य पदार्थों में विभिन्न टौक्सिकनों की जांच के लिए तकनीकों के प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया.

सभी प्रतिभागियों को दिए गए मुख्य अतिथि द्वारा प्रमाणपत्र

प्रशिक्षण के सफल आयोजन के बारे में जानकारी देते हुए पशु चिकित्सा जनस्वास्थ्य एवं महामारी विज्ञान के विभागाध्यक्ष एवं निदेशक मानव संसाधन एवं प्रबंधन डा. राजेश खुराना ने बताया कि इस तीनदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में प्रदेश के विभिन्न संस्थानों के 20 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया.

उन्होंने बताया कि भविष्य में भी क्रोमैटोग्राफी तकनीकों से संबंधित अन्य तरीकों एवं उन के उपयोग पर भी कार्यशालाओं एवं प्रशिक्षण का आयोजन किया जाएगा.

इस कार्यक्रम का संचालन विभाग के प्राध्यापक एवं प्रशिक्षक संयोजक डा. विजय जाधव द्वारा किया गया. डा. विजय जाधव ने प्रतिभागियों से इस कार्यशाला से हुए फायदे व भविष्य में इस को अधिक प्रभावी तरीके से आयोजन करने के लिए फीडबैक लिया.

इस अवसर पर विभाग के अन्य संकाय सदस्य डा. दिनेश मित्तल, डा. रेनू गुप्ता, डा. पल्लवी मुदगिल एवं डा. मनेश कुमार भी उपस्थित रहे. कार्य्रकम के अंत में धन्यवाद प्रस्ताव डा. विजय जाधव द्वारा प्रस्तुत किया गया.

अश्वगंधा की खेती में रोजगार की अपार संभावनाएं

हिसार : अश्वगंधा प्रकृति का बहुमूल्य उपहार है. शक्तिवर्धक एवं रोग प्रतिरोधी क्षमता जैसे विलक्षण गुणों से भरपूर होने के कारण इसे ‘शाही जड़ीबूटी’ की संज्ञा भी दी गई है. आधुनिक युग में इस औषधीय पौधे की बढ़ती मांग को देखते हुए वैज्ञानिकों को अश्वंगधा पर अधिक से अधिक शोध कर इस की नई किस्में ईजाद करें. साथ ही, किसानों को अश्वगंधा की खेती कर दूसरों को भी इस के लिए जागरूक करने की आवश्यकता है.

ये विचार चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने रखे. वे  विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में ‘अश्वगंधा अभियान’ विषय पर आयोजित कार्यशाला में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे. यह कार्यशाला भारत सरकार के आयुष मंत्रालय में राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड के द्वारा विश्वविद्यालय के अनुवांशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के औषधीय, संगध एवं क्षमतावान फसल अनुभाग द्वारा आयोजित की गई थी.

2 लाख पौधे किसानों को उपलब्ध करवाए जाएंगे

मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि यूनानी व आयुर्वेद पद्धति में औषधीय पौधों का अति महत्वपूर्ण योगदान है. उन्होंने अश्वंगधा की विशेषताएं बताते हुए कहा कि इस जड़ीबूटी का इस्तेमाल एंटीऔक्सीडेंट, चिंतानाशक, याददाश्त बढ़ाने वाला, कैंसररोधी, सूजनरोधी सहित अन्य बीमारियों से राहत पाने के लिए किया जाता है. साथ ही, यौन रोग के इलाज व शरीर को बलवर्धक बनाने में भी अश्वगंधा का प्रयोग किया जाता है.

उन्होंने कहा कि देश की 65 फीसदी आबादी प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल व आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आयुर्वेद व औषधीय जड़ीबूटियों का उपयोग करती है. वर्तमान समय में अश्वगंधा की जड़ों का उत्पादन तकरीबन 1123.6 टन है, जबकि आवश्यकता 3222.4 टन है, इसलिए इस में उद्यमिता की अपार संभावनाएं हैं.

उन्होंने कहा कि अश्वगंधा की विशेषताओं व बढ़ती मांग को देखते हुए विश्वविद्यालय ने आयुष विश्वविद्यालय के साथ अनुबंध किया है, ताकि विद्यार्थियों को इस क्षेत्र में अपना कैरियर संवारने के लिए बेहतर विकल्प मिल सकें.

मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने आगे कहा कि आगामी सीजन में विश्वविद्यालय द्वारा अश्वगंधा की खेती को बढ़ावा देने के लिए अश्वगंधा की उन्नत किस्मों के 2 लाख पौधे किसानों को उपलब्ध करवाए जाएंगे. साथ ही, वर्तमान समय में पाठ्यक्रम के अंदर अश्वगंधा के गुणों को शामिल करना चाहिए.

औषधीय, संगध एवं क्षमतावान फसल अनुभाग के प्रभारी डा. पवन कुमार ने अश्वगंधा अभियान के तहत विभिन्न प्रतियोगिताएं, कार्यक्रमों व क्रियाकलापों पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की.

वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. राजेश आर्य ने कविता के माध्यम से अश्वगंधा के गुणों का उल्लेख किया. इस के अलावा छात्र सुलेंद्र व छात्रा हिमांशी ने अश्वगंधा की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हुए इस के फायदे व गुणों को सभी से साझा किया.

सेवानिवृत प्रधान वैज्ञानिक डा. ओपी नेहरा ने भी अश्वगंधा के गुणों को विस्तार से बताया. मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने अश्वगंधा इम्यूनिटी बूस्टर मैडिकल प्लांट व अश्वगंधा की खेती नामक पुस्तकों का विमोचन किया. मंच संचालन सहायक वैज्ञानिक डा. रवि बैनीवाल ने किया.

स्कूलों व कालेजों में विजेता रहे विद्यार्थियों व किसानों को किया सम्मानित

पोस्टर मेकिंग में प्रथम स्थान पर मुस्कान रही, जबकि रितिक यादव दूसरे व तीसरे स्थान पर दीक्षा रही. कालेज औफ कम्यूनिटी साइंस में पहले स्थान पर मुस्कान सिंधू, दूसरे स्थान पर गरिमा व तीसरे स्थान पर शशि किरण रही. हकृवि स्थित राजकीय उच्च विद्यालय में पहले स्थान पर कक्षा छठी की रितिका, दूसरे स्थान पर कक्षा 7वीं की आंचल व तीसरे स्थान पर कक्षा 8वीं की प्रिया रही.

विश्वविद्यालय के कैंपस स्कूल में प्रथम स्थान पर 11वीं कक्षा की छात्रा कीर्ति, दूसरे स्थान पर 8वीं कक्षा की छात्रा सूर्या व तीसरे स्थान पर कक्षा 8वीं की छात्रा प्रज्ञा रही. भाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर हिमांशी व दूसरे स्थान पर सुलेंद्र रहे.

साथ ही, भाषण प्रतियोगिता में कैंपस स्कूल के प्रथम स्थान पर ज्योति, दूसरे स्थान पर तनिष्का व तीसरे स्थान पर स्मृति रही. कार्यशाला में अश्वगंधा पौध की खेती करने वाले व दूसरों को इस के लिए प्रेरित करने वाले किसानों को भी मुख्य अतिथि प्रो. बीआर कंबोज ने सम्मानित किया, जिन में गांव नंगथला निवासी रविंद्र कुमार, गांव भोडिया निवासी धर्मपाल, गांव टोकस निवासी अभिजीत, गांव कोहली निवासी ओम प्रकाश, गांव रावलवास निवासी कृष्ण कुमार व गांव सरसौद निवासी सुंदर शामिल थे.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के तमाम अधिकारियों सहित इस से जुड़े समस्त महाविद्यालय के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक, शोधार्थी सहित सेवानिवृत वैज्ञानिक डा. पीके वर्मा, डा. ईश्वर सिंह यादव और काफी संख्या में किसान व विभिन्न स्कूलों व महाविद्यालयों के विद्यार्थी उपस्थित रहे. अश्वगंधा अभियान कार्यशाला के दौरान अश्वगंधा की खेती एवं उद्यमिता की अपार संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा की गई.

किसानों को न्यूट्री गार्डन में दिया प्रशिक्षण

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशालय द्वारा फार्मर फर्स्ट प्रोग्राम के तहत गांव पायल व चिड़ोद में ‘फलफूल एवं सब्जी उत्पादन’ विषय पर एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिस में किसानों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया.

फार्मर फर्स्ट प्रोग्राम के प्रमुख अन्वेषक डा. अशोक गोदारा ने बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य किसानों को पोषण एवं गुणवत्तायुक्त खानपान बढ़ाने के लिए न्यूट्री गार्डन विकसित कर स्वास्थ्य लाभ लेने के बारे में जागरूक करना था. किसान परिवारों के घरआंगन में, आंगनवाड़ी केंद्र व स्कूलों में न्यूट्री गार्डन स्थापित करने से जहां एक तरफ फल व सब्जियों की जरूरतें पूरी की जा सकती हैं, वहीं दूसरी ओर उच्च गुणवत्ता के फल व सब्जियां स्वास्थ्य लाभ के लिए भी जरूरी हैं.

उन्होंने बताया कि एक अच्छी व पोषण से भरपूर डाइट लेना हर व्यक्ति का अधिकार है. इस मुहिम से आम लोगों को जोड़ने के लिए लगातार प्रयास चल रहे हैं, ताकि कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सके.

बागबानी विभाग के वैज्ञानिक डा. प्रिंस ने किसानों को अमरूद, किन्नू, नीबू व आडू के फलदार पौधे लगाने व उन के पोषक तत्त्व प्रबंधन की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि नए कलमी पौधों की देखभाल अच्छी तरह से करें. जैसे उन को सर्दीगरमी से बचाने के लिए पराली से ढकना चाहिए व हलकी सिंचाई करते रहें. यह भी ध्यान रखें कि कलमी पौधों में कलम की गई टहनी से नीचे कोई भी बढ़वार आती है, तो उसे साथसाथ काटते रहंे. साथ ही, उन्होंने किचन गार्डन में गरमी के मौसम में आसानी से उगाई जाने वाली सब्जियां जैसे घीया, तोरई, करेला, भिंडी, ग्वार व लोबिया आदि के बारे में बताया.

चारा अनुभाग के सस्य वैज्ञानिक डा. सतपाल ने किसानों को अमरूद व अन्य फलदार पौधों के लाइनों के बीच में बची हुई जगह में चारा फसल उगाने व अन्य छाया सहनशील सब्जियां जैसे हलदी, प्याज, लहसुन आदि उगाने की संभावनाओं के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने चारे की फसल बरसीम के बीज उत्पादन लेने के लिए इस की आखिरी कटाई मार्च माह के दूसरे सप्ताह तक करने व बाद में बीज के लिए फसल को छोड़ने, कटाई के बाद व बीज बनते समय फसल में सिंचाई करने के बारे में जानकारी दी.

इस अवसर पर किसानों को फलदार पौधे, जिन में अमरूद, नीबू, किन्नू, आडू आदि के पौधे निःशुल्क वितरित किए गए. साथ ही, गरमी के मौसम में उगाई जाने वाली सब्जियों के बीजों की किट भी बांटी गई. इस के अलावा फलसब्जी उगाने व प्रोसैसिंग करने की तकनीकी पुस्तिकाएं किसानों को दी र्गइं.

संस्थान ने किया मशरूम की अच्छी प्रजातियों का विकास

सोनीपत: महाराणा प्रताप उद्यान विश्वविद्यालय, करनाल के कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र, मुरथल, सोनीपत का औचक निरीक्षण किया.

निरीक्षण के दौरान उन्होंने पौलीहाउस, नेटहाउस और ओपन में लगी सब्जियों की फसल को देखा और प्रगति के बारे में पूछा.

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र से जानकारी हासिल की कि केंद्र में कौनकौन सी फसलों के बीज किसानों को दिए जा रहे हैं.

कुलपति डा. संजीव कुमार मल्होत्रा को अनुसंधान केंद्र द्वारा किसानों को दिए जाने वाले बीज व मशरूम के बीज और पौध के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

कुलपति डा. संजीव कुमार मल्होत्रा ने अनुसंधान केंद्र द्वारा उत्कृष्ट कार्य किए जाने की सराहना की और सुझाव दिया कि इस केंद्र ने ओस्टर मशरूम और बटन मशरूम की बहुत अच्छी प्रजातियों का विकास किया है. इन सभी प्रजातियों के नामाकंन करने की आवश्यकता है. संरक्षित खेती की अवसंरचनाओं में केंद्र द्वारा शिमला मिर्च, टमाटर या बंदगोभी की जो किस्में लगाई जा रही हैं, उन पर रिसर्च कर इस क्षेत्र की कृषि जलवायु के लिए प्रजनन का काम शुरू हो, ताकि किसानों को एमएचयू की किस्मों से ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचे.

उन्होंने वैज्ञानिकों से कहा कि जिस उद्देश्य के लिए यूनिवर्सिटी की स्थापना की है, उस पर सभी को तेजी से आगे बढ़ना है, ताकि किसानों को विश्वविद्यालय से उच्च गुणवत्ता के बीज व पौध मिलें. साथ ही, नईनई तकनीकों का विकास कर के किसानों को उपलब्ध कराई जाए. उन्होंने वैज्ञानिकों से यह भी आग्रह किया कि ज्यादा से ज्यादा संख्या में किसानों को बागबानी विश्वविद्यालय के साथ जोड़ा जाए.

मोटे अनाज के बेकरी उत्पादों को बनाएं रोजगार

उदयपुर: 18 मार्च. कभी मोटे अनाज (श्रीअन्न) जैसे बाजरा, ज्वार, रागी, कांगणी, सांवा, चीना आदि को गरीबों का भोजन माना जाता था, लेकिन आज अमीर आदमी मोटे अनाज के पीछे भाग रहा है. दरअसल, मोटे अनाज में ढेर सारी बीमारियों को रोकने संबंधी पोषक तत्वों की भरमार है, इसलिए लोग श्रीअन्न को अपने भोजन में शामिल करने लगे हैं.

यह बात प्रसार शिक्षा निदेशालय के निदेशक डा. आरए कौशिक ने कही. वे निदेशालय सभागार में पिछले दिनों ‘मोटे अनाज के बेकरी उत्पादों से कुपोषण उन्मूलन’ विषय पर 8 दिवसीय प्रशिक्षण के समांपन समारोह को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि जलवायु परिर्वतन के दौर में मोटे अनाज की खेती का रकबा बढ़ा है. लोगों ने भी उस का महत्व समझा तो मांग भी बढ़ी है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अतंर्गत राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरो क्षेत्रीय केंद्र, उदयपुर की ओर से अनुसूचित जाति उपयोजना के अतंर्गत जीविकोपार्जन के लिए आयोजित इस प्रशिक्षण में सलूंबर, उदयपुर जिले के चयनित 30 युवकयुवतियों ने भाग लिया.

प्रसार शिक्षा निदेशालय के सहयोग से प्रतिभागियों को मोटे अनाज से जैसे ज्वार पपड़ी, कांगणी पकोड़े, रागी केक, बाजरा लड्डू, बाजरा ब्राउनी, सांवा फ्राईम्स, कांगणी कप केक, ज्वार डोनट, ओट्स कुकीज जैसे दर्जनों व्यंजन बनाना सिखाया गया. यही नहीं, प्रतिभागियों को शहर की बड़ी बेकरियों का एवं राजस्थान महिला विद्यालय में अचार, पापड़ के व्यावसायिक निर्माण इकाई का भ्रमण भी कराया गया.

समारोह अध्यक्ष क्षेत्रीय केंद्र प्रमुख डा. बीएल मीणा ने कहा कि प्रशिक्षण का ध्येय यही है कि सुदूर गांवों के समाज के कमजोर तबके के युवाओं का आत्मविश्वास बढ़े और वे अपने क्षेत्र में एक नया स्टार्टअप शुरू कर माली नजरिए से न केवल मजबूत बन सकें, बल्कि गांव के अन्य युवाओं को भी प्रेरित कर सकें.

डा. बीएल मीणा ने प्रतिभागियों का आह्वान किया कि प्रसार शिक्षा निदेशालय की ओर से पूरे मनोयोग से प्रशिक्षण लेने के बाद घर पर न बैंठें, बल्कि अपने घर से ही उत्पाद बना कर नए व्यवसाय की शुरुआत करें. जब लगे कि इसे व्यावसायिक शक्ल दी जा सकती है, टीम बना कर काम करें. बेकरी व्यवसाय में 40-50 फीसदी तक मुनाफा है. आरंभ में क्षेत्रीय केंद्र के प्रिसिंपल साइंटिस्ट डा. आरपी शर्मा, रोशन लाल मीणा ने अतिथियों का मेवाड़ी पाग व उपरणा पहना कर स्वागत किया.

इस मौके पर अतिथियों ने मोटे अनाज के विविध व्यंजन, उत्पाद बनाने की विधि व सामग्री संबंधी बुकलेट का विमोचन भी किया. साथ ही, उपरोक्त उत्पादों की प्रदर्शनी का अवलोकन किया. प्रत्येक प्रतिभागी को बुकलेट के अलावा पूड़ी मेकर, सेंडविच मेकर, सेव चिप्स बनाने की मशीन, छाछ बिलोने की मशीन का पूरा किट दिया गया, ताकि गांव पहुंचने पर बिना समय गंवाए वे अपना व्यवसाय शुरू कर सकें. प्रतिभागियों ने अपने अनुभव भी साझा किए. प्रशिक्षणार्थी प्रिया मेघवाल ने राजस्थानी नृत्य प्रस्तुत दी. संचालन प्रसार शिक्षा निदेशालय की प्रोफैसर डा. लतिका व्यास ने किया