जलवायु परिवर्तन, कार्बन संचयन और कृषि सहकारिता पर एकदिवसीय कार्यशाला

उदयपुर: महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन सीटीएई के सैमिनार हाल उदयपुर में किया गया, जिस में जलवायु परिवर्तन, कार्बन संचयन और कृषि सहकारिता पर किसानों व छात्रों को विस्तार से जानकारी दी गई.

अध्यक्षता करते हुए डा. पीएल गौतम, वाइस चांसलर, आरपीसीएयू ने मार्गदर्शन प्रदान करते हुए कहा कि हम सब को मिल कर काम करने की जरूरत है, तभी हम खेतों में नवाचार कर के अच्छी उपज ले सकते हैं. जलवायु परिवर्तन पर सब को मिल कर काम करने की बात कहीं. डा. अजीत कुमार कर्नाटक, वाइस चांसलर, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर ने संबोधित करते हुए कहा कि हमें खेतों में ऐसा काम करना है कि हम पैसों की तरफ न भागें, बल्कि पैसा हमारी तरफ भागे.

डा. जगदीश सिंह चैधरी ने जलवायु परिवर्तन पर प्रकाश डालते हुए खेती पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में विस्तार से जानकारी दे कर किसानों को लाभान्वित किया. डा. पीके सिंह डीन, सीटीएई, उदयपुर ने जल संरक्षण पर प्रकाश डालते हुए कार्बन संचयन के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

Climate Changeअर्पण सेवा संस्थान के अध्यक्ष डा. शुभ करण सिंह ने संस्थान द्वारा किए जा रहे कामों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि हम जलवायु परिवर्तन, कार्बन संचयन, कृषि सहभागिता पर काम करेंगे. डा. एनएल पवार  ने खेती में कार्बन का क्या महत्व है, के बारे में प्रकाश डाला.

इस शुभ अवसर पर अर्पण सेवा संस्थान के नए लोगों का विमोचन मंच पर बैठे अतिथियों व उपस्थित किसान समुदाय द्वारा किया गया.

राम अवतार चैधरी ने कृषि के साथसाथ पशुपालन की तकनीक पर जानकारी दी. मंच का संचालन रमेश चंद शर्मा ने किया और धन्यवाद डा. चंद्रशेखर मीणा ने किया. कार्यशाला में खेरवाड़ा के तकरीबन 107 किसानों ने भाग लिया.

मुलेठी (Liquorice) के सिल्वर नैनो कणों को बनाने की विधि पर मिला पेटेंट

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय को मुलेठी (Liquorice) (वैराइटी एचएम-1) का उपयोग कर के सिल्वर नैनो कण बनाने की विधि पर भारतीय पेटेंट कार्यालय द्वारा पेटेंट प्रदान किया गया है. इस विधि को विश्वविद्यालय के आणुविक जीव विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और जैव सूचना विज्ञान विभाग (एमबीबीएंडबी) की पूर्व विभागाध्यक्ष डा. पुष्पा खरब के नेतृत्व में उन के पीएचडी शोधार्थी डा. कनिका रानी और डा. निशा देवी ने विकसित किया है.

इस विधि को पेटेंट अधिनियम 1970 के अंतर्गत 20 वर्ष की अवधि के लिए 486872 संख्या से पेटेंट अनुदित किया गया है.

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने यह जानकारी देते हुए कहा कि पौलीहाउस, ग्रीनहाउस, बागबानी व सब्जियों में रूट नौट निमेटोड यानी जड़गांठ सूत्रकृमि के संक्रमण से बहुत अधिक नुकसान देखा गया है.

पौलीहाउस में नियंत्रित पर्यावरणीय परिस्थितियों के कारण निमेटोड की आबादी में वृद्धि हो जाती है और इन की अत्यधिक संक्रमण दर के कारण कोई फसल नहीं उग पाती है. इस वजह से किसानों को काफी ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए हम ने मुलेठी द्वारा निर्मित इन सिल्वर नैनो कणों को रूट नौट निमेटोड पर टैस्ट किया.

इस काम के लिए सूत्रकृमि विभाग के वैज्ञानिक डा. प्रकाश बानाकर का सहयोग लिया गया. शोधार्थियों ने यह जांच पहले लैब में, फिर स्क्रीनहाउस में की, दोनों ही केस में मुलेठी द्वारा निर्मित सिल्वर नैनो कण रूट नौट निमेटोड को मारने में सक्षम पाए गए, इस से संबंधित और भी शोध के काम जारी हैं.

प्रो. बीआर कंबोज ने बताया कि कमर्शियल कैमिकल नेमैटिसाइड (वाणिज्यिक रासायनिक सूत्र कृमिनाशक) की तुलना में मुलेठी द्वारा निर्मित सिल्वर नैनो कणों की बहुत कम मात्रा ही सूत्र कृमिनाशक के रूप में पाई गई है, इसलिए इन सिल्वर नैनो कणों को विभिन्न कृषि फसलों के लिए उपयोग किया जा सकता है.

विश्वविद्यालय द्वारा ईजाद की गई सिल्वर नैनो कण बनाने की यह विधि प्रभावी, किफायती और स्थिर है. यह सिल्वर नैनो कण एक साल से अधिक समय तक स्थिर पाए गए है.

विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने कहा कि यह पेटेंट मुलेठी (वैराइटी एचएम-1) के मूल अर्क का उपयोग कर के उसे सिल्वर नैनो कणों में परिवर्तित करने की बेहतर विधि है. यह सिल्वर नैनो कण एक साल से अधिक समय तक स्थिर पाए गए हैं. इन नैनो कणों में नेमैटिसाइड (सूत्र कृमिनाशक) क्षमता की जांच इन विट्रो व इन विवो स्थितियों में भी की गई थी.

मुलेठी द्वारा निर्मित सिल्वर नैनो कणों के फायदे

पौधों के इस्तेमाल से नैनो कणों को बनाने की विधि में कैमिकल्स का कम उपयोग होता है और कोई अतिरिक्त जहरीला अवशेष भी नहीं बनता है. मुलेठी के इस्तेमाल से बनाए गए हमारे सिल्वर नैनो कण निमेटोड को मारने में सक्षम पाए गए हैं. किसान मुलेठी आधारित इन सिल्वर नैनो कणों का उपयोग निमेटोड संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए कर सकता है, जिस की वजह से तकरीबन सभी खेती वाली फसलों की उपज और गुणवत्ता को गंभीर नुकसान पहुंचता है.

उर्वरकों (Fertilizers) के असली व नकली की पहचान है जरुरी

खेती में प्रयोग में लाए जाने वाले कृषि निवेशों में से सब से मंहगी सामग्री रासायनिक उर्वरक है. उर्वरकों के शीर्ष उपयोग की अवधि हेतु खरीफ एवं रबी के पूर्व उर्वरक विनिर्माता फैक्टरियों और विक्रेताओं द्वारा नकली एवं मिलावटी उर्वरक बनाने एवं बाजार में उतारने की कोशिश होती है. इस का सीधा असर किसानों पर पड़ता है.

नकली एवं मिलावटी उर्वरकों की समस्या से निबटने के लिए समयसमय पर विभागीय अभियान चला कर जांचपड़ताल की जाती है, फिर भी यह आवश्यक है कि खरीदारी करते समय किसान उर्वरकों की शुद्धता मोटेतौर पर उसी तरह से परख लें, जैसे बीजों की शुद्धता, बीज को दांतों से दबाने पर कट और किच्च की आवाज से, कपड़े की गुणवत्ता उसे छू कर या मसल कर और दूध की शुद्धता की जांच उसे उंगली से टपका कर लेते हैं.

किसानों के बीच प्रचलित उर्वरकों में से प्रायः डीएपी, जिंक सल्फेट, यूरिया और एमओपी नकली व मिलावटी रूप में बाजार में उतारे जाते हैं. खरीदारी करते समय किसान इस की प्रथमदृष्टया परख सरल विधि से कर सकते हैं और अगर उर्वरक नकली पाया जाए, तो इस की पुष्टि किसान सेवा केंद्रों पर उपलब्ध टेस्टिंग किट से की जा सकती है.

टेस्टिंग किट किसान सेवा केंद्रों पर उपलब्ध होती हैं. ऐसी स्थिति में कानूनी कार्यवाही किए जाने के लिए इस की सूचना जिले के उप कृषि निदेशक (प्रसार) या जिला कृषि अधिकारी एवं कृषि निदेशक, उत्तर प्रदेश को दी जा सकती है.

यूरिया पहचान विधि

यूरिया के असली होने की पहचान की उस के दाने सफेद चमकदार, लगभग समान आकार के होते हैं. इस के दाने पानी में डालने पर पूरी तरह घुल जाते हैं और घोल छूने पर ठंडी अनुभूति. जब यूरिया के दाने को गरम तवे पर रखा जाता है, तो यह पिघल जाता है.

एकचैथाई टेबल स्पून यूरिया में 8 से 10 बूंद सिल्वर नाइट्रेट मिलाने पर अगर यूरिया पूरी तरह घुल जाता है और बिलकुल पारदर्शी गोल प्राप्त होता है, तब यूरिया असली है. यदि सिल्वर नाइट्रेट मिलने पर घोल में दही जैसे थक्के बन जाते हैं, तब यूरिया नकली है.

डीएपी (डाई) पहचान विधि

असली डीएपी की पहचान है कि यह सख्त, दानेदार, भूरा, काला, बादामी रंग और नाखूनों से आसानी से नहीं टूटता है. डीएपी के कुछ दानों को ले कर तंबाकू की तरह उस में चूना मिला कर मलने पर तेज गंध निकलती है, जिसे सूंघना असहनीय हो जाता है. असली डीएपी को तवे पर धीमी आंच में गरम करने पर दाने फूल जाते हैं.

डीएपी के 4 से 5 दाने ले कर और उस में बुझा चूना मिलाने पर अत्यंत तीक्ष्ण गंध आती है. यदि तीक्ष्ण गंध नहीं निकलती है, तब डीएपी नकली हो सकती है

आधा चम्मच पिसा हुआ डीएपी लें. उस के ऊपर 10 मिलीलिटर आसुत जल और एक मिलीलिटर संद्रप्त नाइट्रिक एसिड डालें. यदि डीएपी पूरी तरह घुल जाती है और घोल का रंग पारदर्शी रहता है, तब डीएपी शुद्ध है. अगर डीएपी पूरी तरह नहीं घुलता है और घोल का रंग मटमैला रहता है, तब डीएपी अशुद्ध है.

सुपर फास्फेट पहचान विधि

यह सख्त दानेदार, भूरा काला, बादामी रंगों से युक्त और नाखूनों से आसानी से न टूटने वाला उर्वरक है. यह चूर्ण के रूप में भी उपलब्ध होता है. इस दानेदार उर्वरक की मिलावट बहुधा डीएपी एवं एनपी के मिक्सचर उर्वरकों के साथ की जाने की संभावना बनी रहती है.

परीक्षण

इस दानेदार उर्वरक को यदि गरम किया जाए, तो इस के दाने फूलते नहीं हैं, जबकि डीएपी व अन्य कम्प्लैक्स के दाने फूल जाते हैं. इस प्रकार इस की मिलावट की पहचान आसानी से कर सकते हैं.

जिंक सल्फेट पहचान विधि

जिंक सल्फेट में मैग्नीशियम सल्फेट प्रमुख मिलावटी रसायन हैं. भौतिक रूप में समानता के कारण नकलीअसली की पहचान कठिन होती है. अगर एक फीसदी जिंक सल्फेट के घोल में 10 फीसदी सोडियम हाईड्रौक्साइड का घोल मिलाया जाए, तो यह थक्केदार घना अवक्षेप बन जाता है. मैग्नीशियम सल्फेट के साथ ऐसा नहीं होता.

जिंक सल्फेट के घोल में पतला कास्टिक 10 फीसदी का घोल मिलाने पर सफेद, मटमैला माड़ जैसा अवक्षेप बनता है, जिस में गाढ़ा कास्टिक 40 फीसदी का घोल मिलाने पर अवक्षेप पूरी तरह घुल जाता है. यदि जिंक सल्फेट की जगह पर मैग्नीशियम सल्फेट है, तो अवशेष नहीं घुलेगा.

एमओपी (पोटाश खाद) पहचान विधि

यह सफेद कणाकार, पिसे नमक और लाल मिर्च जैसा मिश्रण होता है. इस के कण नम करने पर आपस में चिपकते नहीं हैं और पानी में घोलने पर खाद का लाल भाग पानी में ऊपर तैरता है.

प्राकृतिक खेती (Natural Farming) को सफल मौडल के रूप में अपनाएं किसान

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार के कृषि विज्ञान केंद्र, सदलपुर द्वारा ‘गौ आधारित प्राकृतिक खेती’ विषय पर जिलास्तरीय जागरूकता कार्यक्रम व कृषि विज्ञान मेले का आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

प्रो. बीआर कंबोज ने किसानों को जीवामृत, बीजामृत, नीमास्त्र अग्निस्त्र, दशप्रर्णी अर्क आदि का प्रयोग कर के प्राकृतिक खेती को एक सफल मौडल के रूप में विकसित कर के अपनी आय बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. गौ आधारित प्राकृतिक खेती से न केवल पर्यावरण को बेहतर बनाने में मदद मिलेगी, बल्कि मनुष्य के स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

उन्होंने किसानों को कृषि कार्यों में नई तकनीक अपनाने की सलाह दी. साथ ही, किसानों को अपने उत्पादों का प्रसंस्करण कर के मूल्य संवर्धन करने और अपने उत्पादों की खुद कीमत तय कर के विपणन कर के अधिक लाभ कमाया जा सकता है. उन्होंने फार्मर प्रोड्यूसर और्गैनाइजेशन के तौर पर समूह बना कर काम करने, जिस में शुद्ध अनाज, सब्जी, फल तैयार कर के अधिक उत्पादन लेने के लिए किसानों को जागरूक किया.

विश्वविद्यालय के कुलसचिव एवं विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने अपने अध्यक्षीय भाषण में किसानों को जैविक एवं प्राकृतिक खेती में अंतर को समझाते हुए, वर्तमान समय में प्राकृतिक खेती के महत्व पर विस्तार से जानकारी दी. उन्होंने बताया कि सरकार किसानों को प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए प्रोत्साहन दे रही है. किसान विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्रों से तकनीकी जानकारी ले कर सीमित क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की शुरुआत कर सकते हैं.

विश्वविद्यालय में परीक्षा नियंत्रक डा. पवन कुमार, वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. ओपी बिश्नोई, डा. राजेश आर्य व डा. सुनील ने किसानों को विश्वविद्यालय द्वारा ईजाद की गई विभिन्न किस्मों व तकनीकों की जानकारी दी.

सेवानिवृत वैज्ञानिक डा. ओपी नेहरा, डा. बीडी यादव ने विभिन्न फसलों में प्राकृतिक खेती की संभावनाओं के बारे में बताया. कृषि विज्ञान केंद्र के कोआर्डिनेटर डा. नरेंद्र कुमार ने किसानों को कृषि क्षेत्र में नवाचार द्वारा स्वरोजगार स्थापित कर के अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार की विभिन्न योजनाओं से जुड़ कर लागत कम कर के मुनाफा बढ़ाने की जानकारी दी.

कार्यक्रम के दौरान खेतीबारी से जुड़ी मशीनरी, उर्वरक, सिंचाई में काम आने वाली सिस्टम और अन्य इनपुट बनाने वाली कंपनियों की प्रदर्शनियां भी लगाई गईं, जिस में सब्जी उत्पादन में काम आने वाली मशीनें, शतप्रतिशत जल विलय उर्वरक और नैनो यूरिया व नैनो डीएपी इत्यादि उत्पादों के बारे में किसानों को जानकारी दी गई.

कार्यक्रम के दौरान प्रगतिशील किसान सरपंच नथूराम, श्रीरामेश्वर करिर, शिवशंकर, कृष्ण रावलवास, सरजीत, विक्रम खांडा खेड़ी, चिरिंजी और कार्तिक को सम्मानित किया गया. इन प्रगतिशील किसानों ने प्राकृतिक खेती के बारे में अपने अनुभव साझा कर के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया. इस अवसर पर केवीके के वैज्ञानिक डा. कुलदीप व डा. दिनेश भी उपस्थित रहे.

उन्नत किस्म और फसल विविधीकरण (Crop Diversification) से अधिक मुनाफा

सोनीपत: महाराणा प्रताप उद्यान विश्वविद्यालय, करनाल के कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने 2 मार्च को क्षेत्रीय मशरूम अनुसंधान केंद्र, मुरथल में वैज्ञानिक पद्धति से मधुमक्खीपालन विषय को ले कर सातदिवसीय कार्यशाला का शुभारंभ किया.

कार्यशाला के शुभारंभ के बाद कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने केंद्र का निरीक्षण कर केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही गतिविधियों के बारे में जानकारी हासिल की. केंद्र में पहुंचने पर केंद्र निदेशक व कुलसचिव डा. अजय सिंह ने मुख्य अतिथि कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा और विशिष्ट अतिथि, कृषि विभाग के पूर्व क्वालिटी कंट्रोल अधिकारी डा. जेके श्योरोण, जीत खादी ग्रामोद्योग के प्रधान देवव्रत बाल्यान, सिंधु ग्रामोद्योग समिति के प्रधान अनिल सिंह सिंधू, गोबिंद अतुल्य बी मास्टर प्रोड्यूस कंपनी लिमिटेड का स्वागत किया.

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि किसानों को फसल विविधीकरण की ओर तेजी से बढ़ना चाहिए. खेती में नई तकनीकों का प्रयोग करना चाहिए, जो उन के लिए सकारात्मक दूरगामी परिणाम देने वाली साबित होगी.

उन्होंने किसानों को खेती में उन्नत किस्मों का प्रयोग करने की सलाह दी, जिस से फसल की ज्यादा पैदावार के साथसाथ गुणवत्ता में सुधार होगा. किसान अपनी फसलों को अच्छे दामों पर बेच कर भारी मुनाफा कमा सकेंगे. किसानों, युवाओं, महिलाओं को मधुमक्खी और मशरूम को व्यवसाय के तौर पर अपनाना चाहिए.
कृषि विभाग के पूर्व क्वालिटी कंट्रोल अधिकारी व मधुमक्खीपालन के एडीओ डा. जेके श्योरोण ने मधुमक्खीपालन को ले कर विस्तार से जानकारी दी. ट्रेनिंग कोर्डिनेटर रविंद्र मलिक रहे.

कुलपति ने किया केंद्र का निरीक्षण

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने केंद्र का निरीक्षण किया. निरीक्षण के दौरान उन्होंने हाईटैक नर्सरी, पौलीहाउस, स्पान लैब व मशरूम यूनिट को देखा. इस बारे में केंद्र के निदेशक ने कुलपति को बताया कि केंद्र में किस प्रकार खाद व बीज बना कर किसानों को उपलब्ध करवाया जाता है.

इस पर कुलपति ने कहा कि किसानों को ज्यादा से ज्यादा उन्नत किस्म का बीज उपलब्ध करवाया जाए, ताकि किसानों को एमएचयू से ज्यादा फायदा पहुंचे.

प्रतिभागियों को वितरित किए सर्टिफिकेट

कुलपति डा. सुरेश कुमार मल्होत्रा ने मशरूम उत्पादन प्रसंस्करण एवं विपणन विषय पर पांचदिवसीय कार्यशाला समापन होने पर प्रतिभागियों को सर्टिफिकेट व मशरूम का बीज वितरित किया. कार्यशाला में प्रदेशभर के अलगअलग जिलों से आए 24 प्रतिभागियों ने शिरकत की.

उन्होंने कहा कि ट्रेनिंग का मकसद मशरूम उत्पादन के दौरान होने वाली परेशानियों को पहले ही दूर करना है, ताकि प्रतिभागी मशरूम का उत्पादन अच्छे से कर पाएं. ट्रेनिंग के माध्यम से किसानों को जागरूक करना है. ट्रेनिंग कोर्डिनेटर डा. मनीष कुमार रहे.

पूर्वोत्तर को मिला नया कृषि संस्थान (Agricultural Institute)

असम:केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा ने आईएआरआई, दिरपई चापोरी, गोगामुख, असम में प्रशासनिक सह शैक्षणिक भवन, मानस गैस्ट हाउस, सुबनसिरी गल्र्स होस्टल और ब्रह्मपुत्र बौयज होस्टल का वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चैधरी उद्घाटन समारोह में उपस्थित थे और उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, असम में प्रदर्शनी स्टाल का दौरा किया.

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी का पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास पर विशेष बल है. केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में कृषि के विकास की कमियों को दूर कर उन्हें मुख्यधारा में लाने का काम किया है. इस क्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास को एक नया आयाम दिया है. सरकार 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने के संकल्प के साथ काम कर रही है, जिस में कृषि की भूमिका बेहद अहम है.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि खाद्य तेल आयात का बोझ कम करने और तिलहन में आत्मनिर्भर बनने के लिए 11,000 करोड़ रुपए का मिशन चलाया जा रहा है. हमें इस सोच के साथ काम करना है कि आने वाले दिनों में हम आयात नहीं, बल्कि निर्यात करेंगे. उन्होंने कहा कि जब हम एक विजन के साथ काम करते हैं, तो हमें सफलता जरूर मिलती है.

अर्जुन मुंडा ने जलवायु अनुकूल फसल किस्मों के विकास पर भी बल दिया और कहा कि कृषि शिक्षा को आजीविका व रोजगार के अवसरों से जोड़ा जाना चाहिए. जैव विविधता अध्ययन पर भी विशेष ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने आशा व्यक्त की कि एक साल में यह संस्थान शोध के लिए सब से पसंदीदा विकल्प होगा.

कृषि संस्थान (Agricultural Institute)

उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि प्रौद्योगिकियों को जलवायु और लैंगिक स्तर पर तटस्थ होना चाहिए. वहीं राज्य मंत्री कैलाश चैधरी ने वैज्ञानिकों से उत्तरपूर्व क्षेत्र में मौजूद प्राकृतिक विविधता का दोहन करने का आग्रह किया.

उन्होंने प्रकृति के करीब प्रौद्योगिकियों के विकास पर भी बल दिया और कहा कि हमें जैविक और प्राकृतिक खेती से जुड़ना चाहिए. साथ ही, उन्होंने दलहन और तिलहन से संबंधित अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करने पर बल दिया, ताकि देश को दालों के निर्यात पर बहुत अधिक पैसा खर्च न करना पड़े.
उन्होंने कहा कि कृषि अनुसंधान को उद्यमिता से जोड़ना होगा और यह सब तभी संभव है, जब विभिन्न संगठनों के बीच विचारों का मुक्त आदानप्रदान हो.

असम सरकार के शिक्षा, सामान्य जनजाति और पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री डा. रनोज पेगु ने आईएआरआई, असम के प्रयासों की सराहना की. उन्होंने इस बात पर बल दिया कि आईएआरआई, असम द्वारा किया जाने वाला शोध कार्य पौधों, पशुओं और मत्स्य विविधता पर विचार करने के साथसाथ पर्यावरण के संरक्षण में भी सहायक होगा.

लखीमपुर के सांसद प्रदान बरुआ ने कहा कि यह हमारा सपना था कि असम में इस स्तर का एक संस्थान बने. हमें आशा है कि यह संस्थान पूरे उत्तरपूर्व भारत के युवा प्रतिभाओं की उम्मीदों पर खरा उतरेगा.
डीएआरई के सचिव और आईसीएआर, नई दिल्ली के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने वर्चुअल माध्यम से उपस्थित लोगों को संबोधित किया और आईएआरआई, असम के उद्देश्यों व दायित्वों के बारे में विस्तार से बताया.

उन्होंने इस बात पर बल दिया कि उत्तरपूर्व भारत में अपार संभावनाएं हैं, जिन्हें अनुसंधान और विकास के माध्यम से तलाशने की जरूरत है.

उन्होंने आश्वासन दिया कि आईसीएआर यह सुनिश्चित करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा कि संस्थान तेजी से प्रगति करता रहे. इस संस्थान का खुलना आईसीएआर के इतिहास में एक यादगार दिन है. उन्होंने संस्थान के विकास से जुड़े लोगों को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी. आईएआरआई के निदेशक डा. एके सिंह ने आईएआरआई, असम की श्रमिक समिति द्वारा किए गए सभी प्रयासों की सराहना की. इस अवसर पर डा. डीके सिंह, डा. अनिल सिरोही, डा. मनोज खन्ना, डा. अनुपम मिश्रा, भार्गव शर्मा, डा. वाईएल सिंह, डा. केबी पुन, अंकुर भराली और धेमाजी के जिला कमिश्नर भी उपस्थित थे.

पशुधन (livestock) का वैज्ञानिक प्रबंधन जरूरी

अविकानगर: केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर के सभागार में एनिमल फिजियोलौजिस्ट एसोसिएशन का चतुर्थ वार्षिक सम्मलेन एवं राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया.

आपाकौन-2024 के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि डा. अशोक कुमार तिवारी, निदेशक केंद्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, बरेली रहे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता अविकानगर संस्थान के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर व विशिष्ट अतिथि डा ज्ञानेंद्र कुमार, एनिमल फिजियोलौजिस्ट एसोसिएशन, आपा सोसाइटी के सचिव डा. विकास चंद्रा, कौंफ्रैंस आयोजक सचिव डा. सत्यवीर सिंह डांगी के साथ फिजियोलौजी विषय के रिटायर्ड वरिष्ठ वैज्ञानिक उपस्थित रहे.

उद्घाटन कार्यक्रम के संबोधन में मुख्य अतिथि डा. एके तिवारी द्वारा भारतीय पशुधन को विश्व में सर्वश्रेष्ठ बताते हुए उस के वैज्ञानिक प्रबंधन पर पूरा ध्यान देने की जरूरत पर बल दिया गया. उन्होंने बताया कि भारतीय नस्ल जैसे गिर गाय हमारे यहां की अपेक्षा विदेशों के प्रबंधन पर दोगुना और तिगुना उत्पादन दे रही है. इस का मतलब है कि हमारे पशुधन संपदा को अच्छे वातावरण के साथ सर्वोत्तम पोषण प्रबंधन की जरूरत है, जिस को हम भविष्य में फोकस कर के देश में पशुधन आधारित उत्पादन को बढ़ा कर देश की फूड सिक्योरिटी को निश्चित कर सकते हैं.

उन्होंने आगे कहा कि कौंफ्रैंस इस दिशा में वर्तमान व भविष्य की चुनौती के हिसाब से सही विषय पशु उत्पादन एवं प्रजनन पर हो रही है. भविष्य में हमारे देश को विश्व के मानक के हिसाब से वेटरनरी क्षेत्र मे पेशेवर लोगों की पशुओं की आबादी के अनुसार कमी को पूरा कर के ही पशुधन संपदा से ज्यादा से ज्यादा उत्पादन लिया जा सकता है.

अंत में डा. एके तिवारी द्वारा अविकानगर संस्थान की पशु संपदा के सैक्टर्स भ्रमण कराने के लिए निदेशक अरुण कुमार तोमर को धन्यवाद देते हुए संस्थान के किसान हित में किए जा रहे प्रयास की सराहना की गई.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा भी स्वागत संबोधन के साथ अविकानगर संस्थान द्वारा देश के छोटे पशु भेड़बकरी एवं खरगोशपालकों के लिए किए जा रहे कामों पर प्रकाश डाला गया.

इस मौके पर देश के विभिन्न हिस्सों से आए फिजियोलौजी विषय के शिक्षाविद, वैज्ञानिक और शोध स्टूडैंट्स को भविष्य के हिसाब से कांैफ्रैंस मे निर्देशित क्षेत्र मे काम करने का निवेदन किया गया.

निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा कौंफ्रैंस मे आए अतिथियों को संस्थान भ्रमण के लिए भी निवेदन किया गया और विश्वास दिलाया गया कि भविष्य मे संस्थान आप के साथ भी देश के किसान हित में काम करने के लिए हमेशा तत्पर रहेगा.

पशुधन (livestock)

इस दौरान आपकौन-2024 मे फिजियोलौजी के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान के लिए लाइफटाइम एचीवमैंट अवार्ड डा. जेपी मित्तल, डा. जेएस आर्य, आपा फैलो अवार्ड डा. सर्वाजीत यादव, डा.निनान जैकब, बैस्ट शोध पेपर अवार्ड के साथ स्टूडैंट्स को बैस्ट एमएससी एवं पीएचडी थीसिस अवार्ड से कार्यक्रम में उपस्थित अथितियों द्वारा पुरस्कृत किया गया.

आपकौन-2024 मे फिजियोलौजी सोसाइटी के अध्यक्ष डा. ज्ञानेंद्र कुमार एवं सचिव डा. विकास चंद्रा ने सोसाइटी की उपलब्धियों के साथ सालभर की जाने वाली गतिविधियों पर प्रकाश डाला.

आपकौन कौंफ्रैंस के आयोजक सचिव डा. सत्यवीर सिंह डांगी ने बताया कि उपरोक्त कौंफ्रैंस में 130 से ज्यादा प्रतिभागियों नें देशभर के विभिन्न संस्थानों और विश्वविधालय से भाग ले कर अपने शोध कार्य को ओरल और पोस्टर के माध्यम से डेलीगेट्स के साथ साझा किया. इस के अलावा भी देश एवं विदेश से भी फिजियोलौजी क्षेत्र के जानेमाने वैज्ञानिकों द्वारा भी औनलाइन माध्यम से अपने शोध अनुभव को ओरल प्रेजेंटेशन के साथ डेलीगेट्स के साथ संवाद किया.

आपकौन-2024 कौंफ्रैंस का संचालन डा. विजय कुमार, प्रधान वैज्ञानिक, अविकानगर द्वारा किया गया. कौंफ्रैंस में सफल संचालन के लिए डा. रणधीर सिंह भट्ट, आयोजक सह सचिव डा. अजित सिंह महला के साथ अविकानगर के विभिन्न वैज्ञानिकों, तकनीकी कर्मचारियों के साथ संविदा कर्मियों द्वारा सहयोग किया गया.

विकास के लिए स्मार्ट कृषि (Smart Agriculture) जरूरी

उदयपुर: 5 मार्च, 2024. डा. राजेंद्र प्रसाद सैंट्रल एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (आरपीसीएयू), समस्तीपुर, बिहार के वाइस चांसलर डा. पीएल गौतम ने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2047 में सब से बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में आना है. कृषि और ग्रामीण क्षेत्र सतत विकास के अभिन्न और आवश्यक घटक हैं.

इस में किसानों की आजीविका में सुधार, गरीबी कम करना, पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, ग्रामीण बुनियादी ढांचे को बढ़ाना व संसाधनों और अवसरों के समान वितरण को बढ़ावा देना शामिल है. ये लक्ष्य कृषि पद्धतियों के संदर्भ में आर्थिक विकास और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन बनाना चाहते हैं.

5 मार्च, 2024 को सोसायटी फौर कम्यूनिटी, मोबिलाइजेशन फौर सस्टेनेबल डवलपमैंट, नई दिल्ली व महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संयुक्त सहयोग से राजस्थान कृषि महाविद्यालय के नवीन सभागार में आयोजित ’परिवर्तनकारी कृषि और सतत विकास: बदलती दुनिया के लिए कृषि पर पुनर्विचार’ विषयक तीनदिवसीय 11वीं राष्ट्रीय सैमिनार के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने कहा कि भारत के कृषि क्षेत्र को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिस ने इस की वृद्धि और विकास को बाधित किया है. अमृतकाल में विकसित राष्ट्र बनने की चाह रखने वाला देश प्रतिदिन प्रयास में लगा हुआ है. एक मजबूत कृषि क्षेत्र आंतरिक ईंधन है, जो किसी राष्ट्र की समग्र अर्थव्यवस्था और खाद्य सुरक्षा को आगे बढ़ाता है.

मानवता को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और उन में से अधिकांश तेजी से बढ़ती आबादी की खाद्य सुरक्षा से जुड़ी हैं, जिस के वर्ष 2050 तक 9 बिलियन का आंकड़ा पार करने की उम्मीद है. अकेले भारत को अपने खाद्यान्न उत्पादन को बनाए रखने के लिए वर्ष 2050 तक अपने खाद्यान्न उत्पादन को दोगुना (लगभग 650 मिलियन टन) करने की आवश्यकता है.

स्मार्ट कृषि (Smart Agriculture

बढ़ती आबादी कम उत्पादकता, घटती मिट्टी की उर्वरता, पानी की कमी, खंडित भूमि जोत, जलवायु परिवर्तन और बाजारों व प्रौद्योगिकियों तक सीमित पहुंच कृषि के सामने बड़ी चुनौतियां हैं. बढ़ती वैश्विक आबादी को देखते हुए खाद्य उत्पादन की मात्रा, प्रभावशीलता और सुरक्षा के बारे में चिंताएं भी सामने आई हैं.

अध्यक्षता करते हुए एमपीयूएटी के कुलपति प्रो. अजीत कुमार कर्नाटक ने अतिथियों का विस्तृत परिचय देते हुए स्वागत किया और कहा कि हर वक्त जलवायु परिवर्तन का असर नकारात्मक नहीं होता, कभी इस के कृषि पर सकारात्मक प्रभाव भी होते हैं जैसे कि इस वर्ष जलवायु परिवर्तन की वजह से गेहूं की 20 फीसदी से अधिक उत्पादन का अनुमान है.

डा. जेपी शर्मा, पूर्व कुलपति शेर ए कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, जम्मू एवं अध्यक्ष मोबिलाइजेशन ने कहा कि भारत में कृषि के लिए 0.8 हेक्टेयर भूमि उपलब्ध रह गई है. खेती के लिए पानी, जमीन और किसान निरंतर कम होते जा रहे हैं. अब धीरेधीरे तीनों कम होने की कगार पर हैं. वर्ष 2050 तक हमारी आबादी बहुत अधिक हो जाएगी. इस के भरणपोषण का जिम्मा कृषि का ही है. इसलिए कृषि में जलवायु स्मार्ट कृषि की ओर कदम बढ़ाना जरूरी है.

जीरो हंगर जीरो वेस्टेज

हम अगर कृषि उत्पादन की बरबादी को बचा लें, तो हर भूखे व्यक्ति तक भोजन पहुंच पाएगा. आज का समय मार्केटिंग का है. किसानों को इस से रूबरू करना होगा.

दीनदयाल शोध संस्थान, नई दिल्ली के महासचिव अतुल जैन ने कहा कि दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म दर्शन और नानाजी देशमुख भी आनंद शब्द पर जोर देते रहे. विकास की सभी की अपनीअपनी सोच होती है. हमें कृषि को फिर से पुरानी कृषि से जोड़ना होगा. कल्चरल प्रैक्टिसैस, रीतिरिवाज, लोककथाएं आदि उस समय थीं, जिन्हें आज हम ने पोषण उत्सव के रूप में समेटा है.

पैसिफिक ग्रुप औफ ऐजुकेशन, उदयपुर के ग्रुप चेयरमैन और यूनैस्को (एमजीआईईपी) के अध्यक्ष डा. बीपी शर्मा ने कहा कि आज सस्टेनेबल और ट्रांसफार्मिंग एग्रीकल्चर की जरूरत है. खाद्य आवश्यकताओं की जरूरतें पूरी करने के लिए भारत को वरदान है. 20 करोड़ हेक्टेयर पानी नदी में बह जाता है. पहले 20 फुट नीचे पानी आ जाता था. एक हेक्टेयर में पहले अर्थ वर्म ऊपर से नीचे आनेजाने में 6 लाख छेद कर देते थे. पहले हर कालेज में मधुमक्खी के छत्ते दिखाई देते थे, जो अब नष्ट होते जा रहे हैं. सस्टेनेबल प्रैक्टिसैस के बारे में सोचने के लिए अर्थ वर्म, वाटर रिचार्ज, इनसैक्ट्स पर विचार जरूरी है.

कुलपति को नवाजा लाइफ टाइम एचीवमैंट अवार्ड से

सोसायटी की ओर से लाइफटाइम एचीवमैंट अवार्ड एमपीयूएटी के कुलपति डा. अजीत कुमार कर्नाटक को प्रदान किया गया. कृषि के क्षेत्र में 40 से भी अधिक वर्षांे तक उन के शिक्षण, अनुसंधान एवं प्रसार कार्यों में उत्कृष्ट योगदान के लिए दिया गया.

इस अवसर पर डा. धृति सोलंकी, डा. राजश्री, ऋषिका नेगी, डा. अरविंद वर्मा, अमित त्रिवेदी एवं डा. हेमु द्वारा लिखित 2 पुस्तकें, कौफी टेबल बुक, कलैंडर का विमोचन किया गया. संगोष्ठी में देशभर के 12 राज्यों से तकरीबन 300 कृषि वैज्ञानिक, अनुसंधानकर्ता और प्रगतिशील किसानों ने हिस्सा लिया.

उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण (Milk Product Processing) पर प्रशिक्षण

हिसार: लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय के डेयरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालय के अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत किसानों के लिए उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण पर एक व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम का शुभारंभ कुलपति लुवास डा. विनोद कुमार वर्मा द्वारा किया गया.

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने उपस्थित पशुपालक प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए बताया कि डेयरी उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में पशुपालकों की जीविका को बढ़ावा देने में अत्यधिक महत्त्व रखता है. यह लाखों किसानों के लिए आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत है, विशेष रूप से महिला किसानों के लिए, जो डेयरी उत्पादन और दूध प्रसंस्करण में मुख्य भूमिका निभाती हैं. डेयरी क्षेत्र का महत्त्व अत्यधिक है, क्योंकि यह न केवल रोजगार के अवसर प्रदान करता है, बल्कि खाद्य सुरक्षा और पोषण में भी महत्त्वपूर्ण योगदान देता है.

लुवास के कुलपति डा. विनोद कुमार वर्मा ने प्रशिक्षण कार्यक्रम के परिवर्तनात्मक संभावनाओं पर जोर दिया और इसे डेयरी क्षेत्र में उत्पादकता और गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में माना. उन्होंने किसानों को दूध प्रसंस्करण में उन्नत जानकारी और कौशल के साथ संपन्न करने की महत्त्वता को भी जाहिर किया, जिस से ऐसे सशक्तीकरण से उन के उद्यमी प्रयासों को मजबूती मिल सकती है और उन की सामाजिक व आर्थिक स्थिति को उन्नत किया जा सकता है.

इस अवसर पर मुख्य अतिथि व अन्य विशिष्ट अतिथियों द्वारा “किसानों के लिए उन्नत दूध और दूध उत्पाद प्रसंस्करण‘‘ नामक एक पुस्तिका का लोकार्पण भी किया गया .

कार्यक्रम की शुरुआत में डेयरी साइंस कालेज के अधिष्ठाता एवं पाठ्यक्रम निदेशक डा. सज्जन सिहाग ने अतिथियों का स्वागत करते हुए किसानों को व्यावसायिक कौशल और व्यावसायिक जानकारी के साथ उन्नत दूध प्रसंस्करण तकनीकों में सशक्त करने के लिए तैयार किए गए व्यापक पाठ्यक्रम के बारे में अवगत कराया.

निदेशक डा. सज्जन सिहाग ने नवीनतम तकनीक और दूरस्थ प्रथाओं को एकत्रित करने की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर दिया और डेयरी उत्पादन को अनुकूलित करने और उच्च गुणवत्ता परिणाम सुनिश्चित करने के लिए दूध प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों की आवश्यकता को उजागर किया.

उन्होंने आगे बताया कि यह तीनदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम 4 से 6 मार्च, 2024 तक चलने वाले इस कार्यक्रम का आयोजन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान, हिसार के साथ संयुक्त रूप से किया गया. इस पहल का उद्देश्य किसानों को दूध प्रसंस्करण में उन्नत जानकारी और कौशल प्रदान करना है. इस कार्यक्रम में विभिन्न क्षेत्रों से 30 प्रतिभागी हिस्सा ले रहे हैं.

कार्यक्रम समन्वयक के रूप में उपस्थित प्रधान वैज्ञानिक एवं टीओटी प्रभारी डा. नवनीत सक्सेना ने प्रोग्राम के उद्देश्यों को समझाया. उन्होंने बताया कि ये कार्यक्रम किसानों को सशक्त बनाने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और उन की उत्पादकता और आय स्तरों को बढ़ाने में मदद करते हैं.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अनुसंधान निदेशक डा. नरेश जिंदल, एचआरएम के निदेशक डा. राजेश खुराना, विस्तार शिक्षा निदेशक डा. वीएस पंवार, छात्र कल्याण निदेशक डा. पवन कुमार, स्नातकोत्तर अधिष्ठाता डा. मनोज रोज व अन्य अधिकारी व विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं संकाय सदस्य उपस्थित रहे. इस प्रशिक्षण के समन्वयक डा. शालिनी अरोडा, डा. गुरुराज एवं डा. रचना ने किया.

कैसा हो पशु आहार(Animal Feed)? हकृवि में प्रशिक्षण

हिसार: चैधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशालय के अंतर्गत चल रहे फार्मर फस्र्ट प्रोग्राम के तहत किसानों के लिए ‘‘पशुओं के आहार में खनिज मिश्रण की उपयोगिता’’ विषय पर एकदिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस कार्यक्रम में हिसार जिले के गांव पायल व चिड़ोद के किसानों ने भाग लिया.

फार्मर फस्र्ट प्रोग्राम के प्रमुख अन्वेषक डा. अशोक गोदारा ने बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य पशुपालकों को पशुओं को स्वस्थ बनाए रखने व दूध उत्पादन बढ़ाने की जानकारी देना है, ताकि किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकें. फार्मर फस्र्ट प्रोग्राम (एफएफपी) के तहत उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के अलावा किसानवैज्ञानिक इंटरफेस को बढ़ा कर छोटे किसानों की कृषि और अधिकांश किसानों की जटिल, विविध और जोखिम वाली वास्तविकताओं को महत्त्व देने के लिए आईसीएआर की एक पहल है.

उन्होंने बताया कि इस प्रोग्राम के अंतर्गत कृषि में संसाधन प्रबंधन, जलवायु लचीली कृषि, भंडारण, बाजार, आपूर्ति श्रंखला, मूल्य श्रंखला, नवाचार, सूचना प्रणाली आदि सहित उत्पादन प्रबंधन पर विशेष जोर दिया जाता है.

कार्यक्रम में पशु पोषण वैज्ञानिक डा. सज्जन सिहाग ने पशुओं को उन की अवस्था के अनुसार संतुलित आहार, जिस में हरा चारा, सूखा चारा, चोकर व मिनरल मिक्सचर खिलाने की सलाह दी.

उन्होंने कहा कि पशु के अंदर खनिज मिश्रण की कमी के कारण पशु जकड़न व नया दूध नहीं होता, पशु मूत्र पीते हैं, दीवार चाटते हैं, कपड़ा, गाभा व मिट्टी खाते हैं. इसलिए पशुओं को खनिज मिश्रण पूरे साल रोज देते रहें. इस से पशु को बहुत ही फायदा होगा.

चारा अनुभाग के सस्य वैज्ञानिक डा. सतपाल ने हरा चारा उत्पादन व पशुओं के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सालभर हरा चारा उपलब्ध करवाने के लिए फसल चक्रों के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कम खर्च पर अधिक दूध उत्पादन के लिए जरूरी है कि पशुओं को पौष्टिक व संतुलित मात्रा में हरा चारा पूरे साल मिलता रहे. साल के कुछ माह में जैसे अक्तूबरनवंबर व मईजून में हरे चारे की कमी आ जाने के कारण हम पशुओं को हरा चारा पूरी मात्रा में नहीे दे पाते हैं, जिस के फलस्वरूप पशुओं की सेहत खराब हो जाती है और दूध उत्पादन में कमी आ जाती है.

उन्होंने बताया कि मईजून माह में हरे चारे की कमी न हो, इस के लिए पशुपालक मार्च माह में ही ज्वार, मक्का, लोबिया आदि फसलों की बिजाई कर सकते हैं. मार्च माह में अनेक कटाई देने वाली ज्वार की किस्म जैसे एसएसजी 59-3 व सीएसवी 33 एमएफ (अनंत) व सीएसएच 24 एमएफ की बिजाई कर सकते हैं, जिस से 4 से 5 कटाई में नवंबर माह तक हरा चारा मिलता रहेगा.

कार्यक्रम के अंत में पशुपालकों को पशु स्वास्थ्य सुधार के लिए मिनरल मिक्सचर के 5-5 किलोग्राम के पैकेट महत्त्वपूर्ण इनपुट के तौर पर निःशुल्क वितरित किए गए. इस अवसर पर पौध रोग विशेषज्ञ डा. एचएस सहारण व एसआरएफ डा. बिट्टू राम भी मौजूद रहे.