चावल-धान के स्टाक की जानकारी देना जरूरी

नई दिल्ली: समग्र खाद्य मुद्रा स्फीति को प्रबंधित करने और अनुचित अटकलों को रोकने के लिए सरकार ने निर्णय लिया है कि सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में व्यापारी व थोक, खुदरा विक्रेता, बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेता और प्रोसैसर व मिलर्स चावल व धान की स्टाक स्थिति अगले आदेश तक घोषित करें.

संबंधित कानूनी संस्थाओं यानी व्यापारियों व थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, बड़ी श्रंखला के खुदरा विक्रेताओं, प्रोसैसरों व मिलर्स को (i) टूटे चावल, (ii) गैरबासमती सफेद चावल, (iii) उबला चावल, (iv) बासमती चावल, (v) धान जैसी श्रेणियों में धान और चावल की स्टाक स्थिति घोषित करनी होगी.
संस्थाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे इसे हर शुक्रवार को खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के पोर्टल (https://evegoils.nic.in/rice/login.html) पर अपडेट करें. आदेश जारी होने के 7 दिनों के भीतर इन संस्थाओं द्वारा चावल की स्टॉक स्थिति घोषित की जाएगी.

इसके अलावा, खाद्य अर्थव्यवस्था में मुद्रा स्फीति के रुझान को रोकने के लिए आम उपभोक्ताओं के लिए ‘भारत चावल‘ की खुदरा बिक्री शुरू करने का निर्णय लिया गया है. पहले चरण में, 3 एजेंसियों अर्थात नैफेड, एनसीसीएफ और केंद्रीय भंडार के माध्यम से ‘भारत चावल‘ ब्रांड के अंतर्गत खुदरा बिक्री के लिए 5 लाख मीट्रिक टन चावल आवंटित किया गया है. आम उपभोक्ताओं के लिए ‘भारत चावल’ की बिक्री का खुदरा मूल्य 29 रुपए प्रति किलोग्राम होगा, जिसे 5 किलोग्राम और 10 किलोग्राम के बैग में बेचा जाएगा.

‘भारत चावल’ शुरुआत में खरीद के लिए मोबाइल वैनों और 3 केंद्रीय सहकारी एजेंसियों की दुकानों से खरीदने के लिए उपलब्ध होगा. यह बहुत जल्द ईकौमर्स प्लेटफार्म सहित अन्य खुदरा श्रंखलाओं के माध्यम से भी उपलब्ध होगा.

इस खरीफ में अच्छी फसल, एफसीआई के पास और पाइपलाइन में चावल का पर्याप्त स्टाक और निर्यात पर विभिन्न नियमों के बावजूद चावल की घरेलू कीमतें बढ़ रही हैं. पिछले वर्ष खुदरा कीमतों में 14.51 फीसदी की वृद्धि हुई है. चावल की कीमतों पर अंकुश लगाने के प्रयास में सरकार की ओर से पहले ही कई कदम उठाए जा चुके हैं.

एफसीआई के पास अच्छी क्वालिटी वाले चावल का पर्याप्त स्टाक है, जिसे व्यापारियों व थोक विक्रेताओं को ओएमएसएस के तहत 29 रुपए प्रति किलोग्राम के आरक्षित मूल्य पर दिया जा रहा है. खुले बाजार में चावल की बिक्री बढ़ाने के लिए सरकार ने चावल का आरक्षित मूल्य 3,100 रुपए प्रति क्विंटल से कम कर के 2,900 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया. वहीं चावल की न्यूनतम और अधिकतम मात्रा को क्रमशः 1 मीट्रिक टन और 2,000 मीट्रिक टन तक संशोधित किया गया.

इस के अलावा, व्यापक पहुंच के लिए एफसीआई क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा नियमित प्रचार किया गया है. परिणामस्वरूप, चावल की बिक्री धीरेधीरे बढ़ गई है. 31 जनवरी, 24 तक 1.66 एलएमटी चावल खुले बाजार में बेचा जा चुका है, जो ओएमएसएस (डी) के तहत किसी भी वर्ष में चावल की सब से अधिक बिक्री है.

टूटे हुए चावल की निर्यात नीति को 1 दिसंबर, 2017 से ‘‘मुक्त‘‘ से ‘‘निषिद्ध‘‘ में संशोधित किया गया है. 9 सितंबर, 2022 को गैरबासमती चावल के संबंध में, जो कुल चावल निर्यात का लगभग 25 फीसदी है, 20 फीसदी का निर्यात शुल्क लगाया गया है. 8 सितंबर, 2022 चावल की कीमतें कम करने के लिए. इस के बाद गैरबासमती सफेद चावल की निर्यात नीति को 20 जुलाई 2023 से संशोधित कर ‘निषिद्ध‘ कर दिया गया.

बासमती चावल में केवल 950 अमेरिकी डालर प्रति मीट्रिक टन और उस से अधिक मूल्य के बासमती निर्यात के अनुबंध जारी करने के लिए पंजीकृत किए जा रहे हैं. पंजीकरणसहआवंटन प्रमाणपत्र (आरसीएसी). उबले चावल पर 20 फीसदी निर्यात शुल्क लगाया गया है, जो 31 मार्च, 2024 तक लागू रहेगा. इन सभी उपायों ने घरेलू बाजार में चावल की कीमतों में वृद्धि की गति पर अंकुश लगाया है.

खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग भी कीमतों को नियंत्रित करने और देश में आसान उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए गेहूं के स्टाक की स्थिति पर कड़ी नजर रख रहा है. गेहूं की अखिल भारतीय औसत घरेलू थोक और खुदरा कीमत में एक महीने और साल के दौरान गिरावट का रुझान दिख रहा है. अखिल भारतीय औसत घरेलू थोक और खुदरा खंड में आटे (गेहूं) की कीमतों में भी सप्ताह, महीने और साल के दौरान गिरावट का रुझान दिख रहा है.

खुले बाजार में गेहूं की उपलब्धता बढ़ाने और गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए सरकार 28जून, 2023 से साप्ताहिक ईनीलामी के माध्यम से गेहूं को बाजार में उतार रही है. सरकार ने खुले बाजार बिक्री योजना (घरेलू) ओएमएसएस (डी), के तहत एफएक्यू के लिए 2,150 रुपए क्विंटल और यूआरएस के लिए 2,125 रुपए क्विंटल के आरक्षित मूल्य पर उतारने के लिए कुल 101.5 एलएमटी गेहूं आवंटित किया गया है.

गेहूं की उपलब्धता बढ़ाने और खुले बाजार में गेहूं की मांग को पूरा करने के लिए, ईनीलामी में गेहूं की साप्ताहिक पेशकश को धीरेधीरे शुरुआती 2 एलएमटी से बढ़ा कर वर्तमान साप्ताहिक पेशकश 4.5 एलएमटी तक किया जा रहा है. 31 जनवरी, 2024 तक ओएमएसएस (डी) के तहत 75.26 एलएमटी गेहूं बेचा जा चुका है. अब साप्ताहिक नीलामियों में ओएमएसएस के तहत पेश किए जाने वाले गेहूं की मात्रा को 5 एलएमटी तक बढ़ाने और उत्पादन की कुल मात्रा को 400 मीट्रिक टन तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है.

पेराई सत्र शुरू होने के बाद चीनी की एक्स मिल कीमतों में 3.5-4 फीसदी की कमी आई है और चीनी की अखिल भारतीय खुदरा और थोक कीमतें स्थिर हैं. चीनी मौसम 2022-23 में 99.9 फीसदी से अधिक गन्ना बकाए का भुगतान किया जा चुका है और चालू मौसम के लिए अब तक 80 फीसदी गन्ना बकाए का भुगतान किया जा चुका है.

भारत सरकार खाद्य तेलों की घरेलू खुदरा कीमतों पर भी बारीकी से नजर रख रही है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ अंतिम उपभोक्ताओं को मिले. सरकार ने घरेलू बाजार में खाद्य तेलों की कीमतों को नियंत्रित और कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय किए हैं –

  • कच्चे पाम तेल, कच्चे सोयाबीन तेल और कच्चे सूरजमुखी तेल पर मूल शुल्क 2.5 फीसदी से घटा कर शून्य कर दिया गया. इस के अलावा इन तेलों पर कृषि उपकर 20 फीसदी घटा कर 5 फीसदी कर दिया गया. इस शुल्क संरचना को 31 मार्च, 2025 तक बढ़ा दिया गया है.
  •  रिफाइंड सोयाबीन तेल, रिफाइंड सूरजमुखी तेल और रिफाइंड पाम तेल पर मूल शुल्क घटा कर 12.5 फीसदी कर दिया गया है. इस ड्यूटी को 31 मार्च, 2025 तक बढ़ा दिया गया है.

कच्चे सोयाबीन तेल, कच्चे सूरजमुखी तेल, कच्चे पाम तेल और रिफाइंड पाम तेल जैसे प्रमुख खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में पिछले साल से गिरावट देखी जा रही है. यह सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए निरंतर प्रयासों के कारण खाद्य तेलों की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में कमी का पूरा लाभ घरेलू बाजार में मिले, सरसों तेल, सोयाबीन तेल, सूरजमुखी तेल और आरबीडी पामोलीन की खुदरा कीमतों में एक वर्ष में 1 फरवरी, 2024 को क्रमशः 18.32 फीसदी, 17.07 फीसदी, 23.81 फीसदी और 12.01 फीसदी की कमी आई है. सरकार के सक्रिय कदमों के कारण देश में खाद्य तेलों की कीमतें 2 साल के निचले स्तर पर हैं.

उपरोक्त उपायों से देश में जरूरी चीजों की कीमतों में वृद्धि की गति को धीमा करने में मदद मिली है. खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग देश में जरूरी चीजों की कीमतों पर बारीकी से निगरानी और समीक्षा करता है. जब भी आहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने वाली इन चीजों की सामथ्र्य सुनिश्चित करने के लिए किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है, तो कदम उठाता है.

मत्स्यपालन (Fisheries) के लिए सब से अधिक आवंटन

नई दिल्लीः मत्स्यपालन (Fisheries) विभाग को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए 2,584.50 करोड़ रुपए की राशि आवंटित की गई है, जो मत्स्यपालन विभाग के लिए अब तक का सब से अधिक वार्षिक आवंटन है. बजटीय आवंटन चालू वित्तीय वर्ष की तुलना में 15 फीसदी ज्यादा है. आवंटित बजट विभाग के लिए अब तक की सब से अधिक वार्षिक बजटीय सहायता में से एक है.

पहली पंचवर्षीय योजना से 2013-14 तक मत्स्यपालन क्षेत्र पर केवल 3,680.93 करोड़ रुपए खर्च किए गए. हालांकि वर्ष 2014-15 से ले कर 2023-24 तक देश में विभिन्न मत्स्य विकास गतिविधियों के लिए 6,378 करोड़ रुपए पहले ही जारी किए जा चुके हैं. इस क्षेत्र में पिछले 9 वर्षों में लक्षित निवेश 38,572 करोड़ रुपए से अधिक है, जो इस उभरते क्षेत्र में अब तक का सब से अधिक निवेश है.

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने क्षेत्र के विकास पर प्रकाश डाला. अंतरिम बजट में अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने के लिए डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की स्थापना पर भी जोर दिया गया है. उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि मछुआरों की सहायता के महत्व को समझने के लिए एक अलग मत्स्यपालन विभाग की स्थापना की गई, जिस के परिणामस्वरूप वर्ष 2013-14 के बाद से अंतर्देशीय और जलीय कृषि उत्पादन और समुद्री खाद्य निर्यात दोगुना हो गया है.

प्रधानमंत्री मस्त्य संपदा योजना यानी पीएमएमएसवाई जैसी प्रमुख योजना को मौजूदा 3 से 5 टन प्रति हेक्टेयर तक जलीय कृषि उत्पादकता बढ़ाने, निर्यात को दोगुना कर के एक लाख करोड़ रुपए करने और 55 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने के साथसाथ 5 एकीकृत एक्वापार्क स्थापित करने के बड़े बुनियादी ढांचे में बदलाव के लिए आगे बढ़ाया जा रहा है. इस के अलावा जलवायु लचीली गतिविधियों, बहाली और अनुकूलन उपायों को बढ़ावा देने और एकीकृत और बहुक्षेत्रीय दृष्टिकोण के साथ तटीय जलीय कृषि और समुद्री कृषि के विकास पर ध्यान केंद्रित करने के लिए ब्लू इकोनौमी 2.0 लौंच किया जाएगा.

भारतीय अर्थव्यवस्था में मत्स्यपालन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह राष्ट्रीय आय, निर्यात, खाद्य और पोषण सुरक्षा के साथसाथ रोजगार सृजन में योगदान देता है. मत्स्यपालन क्षेत्र को ‘सनराइज सैक्टर‘ के रूप में मान्यता प्राप्त है. यह भारत में तकरीबन 30 मिलियन विशेष रूप से हाशिए पर रहने वाले और कमजोर समुदायों के लोगों की आजीविका को बनाए रखने में सहायक है.

वित्त वर्ष 2022-23 में 175.45 लाख टन के रिकौर्ड मछली उत्पादन के साथ भारत दुनिया का तीसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक देश है, जो वैश्विक उत्पादन का 8 फीसदी हिस्सा है. देश के सकल मूल्यवर्धित (जीवीए) में तकरीबन 1.09 फीसदी और 6.724 फीसदी से अधिक का योगदान कृषि जीवीए के लिए देता है. इस क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएं हैं, इसलिए टिकाऊ, जिम्मेदार, समावेशी और न्यायसंगत विकास के लिए नीति और वित्तीय सहायता के माध्यम से ध्यान देने की आवश्यकता है.

5 फरवरी, 2019 को पूर्ववर्ती पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन विभाग से मत्स्यपालन विभाग को अलग कर के मत्स्य पालन क्षेत्र को आवश्यक बढ़ावा दिया गया था और इसे प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई), मत्स्यपालन बुनियादी ढांचा विकास निधि (एफआईडीएफ) और किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी), जैसे गहन योजनाओं और कार्यक्रमों से सुसज्जित किया गया है. विभाग अब अमृतकाल में नई ऊंचाइयां हासिल करने के लिए तैयार है.

अंतरिम बजट (Interim Budget) : और अधिक सहारा चाहता है कृषि क्षेत्र

केंद्रीय वित्त एवं कारपोरेट कार्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने अंतरिम बजट (Interim Budget) 2024-25 में किसानों को ‘अन्नदाता’ बताते हुए उन के लिए शाब्दिक सम्मान में कोई कोताही नहीं की. लेकिन खेतीबारी के लिए जिन घोषणाओं का इंतजार था, उस पर बजट खरा नहीं उतरा. इस क्षेत्र को सीमित संसाधन मिलने के कारण कृषि क्षेत्र की चुनौतियां भविष्य में अधिक बनी रहेंगी.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय का बजट पिछले साल के 1.25 लाख करोड़ रुपए से बढा कर महज 1.27 लाख करोड़ रुपए किया गया. इस लिहाज से बजट में पहले जैसी स्थिति बरकरार है. कई क्षेत्रों में कृषि संकट पर अपेक्षित ध्यान न देने से कृषि विकास दर महज 1.8 फीसदी पर आ गई है.

वैसे तो अंतरिम बजट में किसी बड़ी घोषणाओं की परंपरा नहीं थी. पर साल 2019 में अंतरिम बजट में जिस तरह मोदी सरकार ने पीएम किसान योजना का तोहफा दिया था, उसे देखते हुए किसानों को भरोसा था कि योजना में धनराशि 6,000 रुपए से बढ़ा कर 10,000 से 12,000 रुपए तक हो जाएगी. साथ ही, एमएसपी गारंटी पर सरकार के फैसले का इंतजार किसानों को था और उम्मीद थी कि कृषि आदानो से जीएसटी कम होगी. लिहाजा, खेती की लागत घटेगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बजट को विकसित भारत के चार स्तंभों को ताकत देने वाला बताया, जिस में किसान भी शामिल हैं. आधुनिक भंडारण, पर्याप्त आपूर्ति श्रंखला, प्रोसैसिंग एवं मार्केटिंग और ब्रांडिंग सहित फसल कटाई के बाद की गतिविधियों में निजी और सार्वजनिक निवेश का को बढ़ावा देने का वादा भी बजट में किया गया है. 3 करोड़ ग्रामीण आवास के बाद अगले 5 साल में 2 करोड़ और घरों को बनाने की बात है.

लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में वे बातें ही दोहराई हैं, जो राष्ट्रपति के अभिभाषण में आ चुकी थीं. पर केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने अंतरिम बजट की तारीफ करते हुए कहा कि यह हमारे अन्नदाताओं का जीवनस्तर और ऊंचा उठाएगा. उन्होंने भी पीएम किसान का खास जिक्र करते हुए कहा कि इस से 11.80 करोड़ किसानों को अब तक तकरीबन 2.81 लाख करोड़ रुपए मिले हैं, जबकि किसानों के लाभ के लिए 1361 ईनाम मंडियां हुईं, जिस से 3 लाख करोड़ रुपए का व्यापार दर्ज हो चुका है.

आत्मनिर्भर तिलहन अभियान पर सरकार आगे बढ़ रही है. सभी कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों पर नैनो डीएपी (उर्वरक) का विस्तार करने के साथ कई दूसरे कदम उठ रहे हैं.

लेकिन भारतीय किसान यूनियन के नेता चैधरी राकेश टिकैत ने इस बजट को चुनावी ढकोसला बताया है, जिस में किसानों को केवल धोखा मिला है. उन्होंने कहा कि कि देश की मंडियों को राष्ट्रीय कृषि बाजार से जोड़ा जा रहा है. किसानों की आय दोगुनी करने के नाम पर पूर्व में नागार्जुन फर्टिलाइजर्स ऐंड कैमिकल्स लिमिटेड जैसी डिफाल्टर कंपनियां और कारपोरेट कंपनियां फसल खरीद के नाम पर जोड़ दी गईं, जिस का नुकसान देश के किसानों को होगा.

उन के मुताबिक, फसल बीमा और पीएम किसान दोनों योजनाएं सहायक नहीं हैं. 500 रुपए प्रतिमाह की धनराशि से देश के आमदनी के स्रोत से किसानों का भला नहीं कर सकती है. भला इस से होगा, अगर बजट में पैट्रोलडीजल के दामों में कटौती होती.

फिर भी बजट में सरकार ने सरसों, मूंगफली, तिल, सोयाबीन और सूरजमुखी जैसे तिलहनों के संबंध में ‘आत्मनिर्भरता’ प्राप्त करने के लिए कार्यनीति तैयार की बात कही है. इस पर क्या रणनीति बनती है, यह अभी देखना है. नैनो यूरिया को सफलतापूर्वक अपनाए जाने के बाद सभी कृषि जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों पर नैनो डीएपी को अपनाने की बात भी है, पर इस का असर अभी जांचा जाना है.

सरकार प्राकृतिक खेती पर जोर दे रही है, पर इस के लिए महज 366 करोड़ रुपए का प्रावधान है, जबकि रासायनिक उर्वरकों के लिए 1.64 लाख करोड़ रुपए का. फसल बीमा योजना के दायरे में अब तक महज 4 करोड़ किसान आ सके हैं. देश में तकरीबन 20 करोड़ किसान परिवारों में इतनी कम संख्या फसल बीमा से जुड़ी है, जो योजना की जमीनी हकीकत बताती है. योजना के लिए बजट पिछले बजट से भी कम और 14,600 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

राजस्थान के किसान नेता और किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी देशव्यापी ज्वलंत मुद्दा था, पर किसान उसे ले कर सरकार से निराश हैं. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय किसान आयोग ही नहीं खुद नरेंद्र मोदी गुजरात का मुख्यमंत्री रहने के दौरान इस की वकालत तब करते थे, लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल के आखिरी बजट में भी इस पर कोई चर्चा भी नहीं की.

जमीनी हकीकत यह है कि अभी एमएसपी के संबंध में दलहन और तिलहन जैसी 75 फीसदी फसलें खरीद की परिधि से बाहर हैं. ज्वार, बाजरा, मक्का और रागी जैसे श्रीअन्न या मोटे अनाजों की खरीद नहीं होती. सरकार ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित किया, पर खरीद नहीं बढ़ी.

बेशक बीते एक दशक में खेतीबारी और किसानों के हक में मोदी सरकार ने कई योजनाओं का आवंटन बढ़ाया, लेकिन कई क्षेत्रों में बढ़ते कृषि संकट और किसानों के असंतोष को देखते हुए जो कदम अपेक्षित थे, वे उठाए नहीं गए.

अहम बात है, जिस पर भारी बढ़ोतरी हुई, वह है कृषि ऋण. सरकार को लगता है कि कर्ज के सहारे किसान अपनी गाड़ी चला लेंगे. 2017-18 के आम बजट में कृषि ऋण का लक्ष्य 10 लाख करोड़ रुपए था, जो अब 20 लाख करोड़ रुपए तक पहुंचा दिया गया है. पर किसान पहले से ही कर्ज के बोझ तले दबे हैं.

आज हर किसान पर औसतन 74,000 रुपए से ज्यादा का कर्ज है और यही किसानों की आत्महत्याओं के प्रमुख कारणों में है. देश में बैकों के व्यापक विस्तार के बावजूद एकतिहाई से ज्यादा किसान साहूकारों से कर्ज लेते हैं. ऐसे में कर्ज के सहारे खेती बहुत कारगर नहीं हो सकती है.

पीएम किसान योजना जरूर किसानों के लिए अहमियत रखती है. इस का शुभारंभ 2019 के चुनाव के ठीक पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोरखपुर से किया था. इस का ऐलान हुआ तो इस के दायरे में 14.50 करोड़ किसानों के आने का अनुमान था. इस पर सालाना 87,217 करोड़ रुपए का आकलन था, पर 5 साल बाद भी इस का बजट 60,000 करोड़ से पार नहीं जा सका है.

साल 2019 में सरकार बनते ही संकल्पपत्र में किए गए वादों के तहत 3 साल में 5 करोड़ किसानों को पेंशन के दायरे में लाने की योजना बनाई, जो साकार नहीं हो सकी. इस योजना के तहत महज 100 करोड़ रुपए प्रतीकात्मक प्रावधान किया गया है.

इसी तरह देश के 22,000 ग्रामीण हाटों को जरूरी सुविधाओं से लैस करने की योजना साकार हो सकी. वर्ष 2022 तक प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के तहत सब को घर उपलब्ध कराने का वादा भी अधूरा ही है.

वर्ष 2014-15 में कृषि मंत्रालय का बजट 23,000 करोड़ रुपए होता था, जो अब तकरीबन 5 गुना अधिक 1.27 लाख करोड़ रुपए हो गया है. पर इस के तहत सब से अधिक आवंटन तो पीएम किसान में हुआ है. किसान मानधन योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य कार्ड से ले कर प्राकृतिक खेती जैसी कई नई पहलें सामाजिक व आर्थिक बदलाव में सहायक नहीं बन सकीं.

देश में कृषि भूमि 14.4 करोड़ हेक्टेयर से घटती जा रही है. तकरीबन 86 फीसदी छोटे और सीमांत किसानों की संख्या में बढ़ोतरी होती जा रही है. सीमांत किसानों की औसत जोत आकार 0.24 हेक्टेयर है, जिस पर जिंदा रहना भी आसान नहीं है. हमारे खेतिहर परिवारों में 14.2 फीसदी आदिवासी और 15.9 फीसदी दलित हैं, जो नाममात्र की जमीनों के सहारे अपने परिवारों का बस भरणपोषण कर रहे हैं.

यह उल्लेखनीय तथ्य है कि उपेक्षा के बाद भी खेतीबारी हमारी अर्थव्यवस्था का मेरुदंड बनी हुई है, जिस पर 58 फीसदी आबादी निर्भर है. वहीं 140 करोड़ आबादी को खाद्य सुरक्षा दे रही है. कृषि उत्पादन तकरीबन वर्ष 2022-23 में 351.91 मिलियन टन तक पहुंच गया है, पर खेतीबारी बेहद गहरी चुनौतियों से जूझ रही है.

हाल के सालों में देश के कई हिस्सों में बड़े किसान आंदोलन चले. पंजाब में उन की सब से अधिक संख्या है. कोरोना के दौरान दिल्ली में 378 दिनों तक किसान आंदोलन चला. उस में 3 कानून वापस हुए, पर एमएसपी के कानूनी अधिकार का मामला लंबित है.

एमएसपी पर सरकारी खरीद का काफी दावा है, पर 14.50 करोड़ किसानों की भूजोतों के लिहाज से एमएसपी पर मौजूदा खरीद केवल धानगेहूं और चंद राज्यों तक सीमित है.

बीते एक दशक में मोदी सरकार ने कृषि मंत्रालय का नाम बदल कर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय बनाया, सहकारिता, मात्सिकी और पशुपालन का अलग मंत्रालय बनाया. पर तसवीर बहुत अच्छी नहीं दिखती. इसलिए कृषि क्षेत्र के लिए अभी बहुतकुछ ठोस रणनीति बना कर आगे बढ़ने की दरकार है.

औषधीय पौधों की खेती से लाखों की कमाई

लखनऊ:  मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि आज अन्नदाता किसानों को परंपरागत खेती से दोगुना दाम तो मिल ही रहा है, लेकिन जिन किसानों ने सहफसली खेती के साथसाथ औषधि व सगंध औषधीय खेती, बागबानी को बढ़ावा दिया और हर्बल उत्पादों को प्रोत्साहित किया, ऐसे किसानों को लागत का कई गुना अधिक दाम प्राप्त हो रहा है. यह अन्नदाता किसानों के जीवन में परिवर्तन का एक बड़ा माध्यम बना है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लखनऊ में सीएसआईआर-सीमैप द्वारा आयोजित किसान मेले का उद्घाटन करने के पश्चात इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त कर रहे थे. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में देश की बागडोर संभालते समय किसानों की आमदनी को दोगुना करने के लक्ष्य साथ काम करने का निर्देश दिया था. उन के नेतृत्व में इस के दृष्टिगत जो कार्यक्रम चलाए गए हैं, वे हम सब के सामने हैं.

इन कार्यक्रमों में सौयल हेल्थ कार्ड, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, पीएम किसान सम्मान निधि योजना आदि सम्मिलित हैं. इन सभी योजनाओं के साथ जब हम वैज्ञानिक सोच और इनोवेशन को जोड़ते हैं, तो इस के अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं. देश में पहली बार वर्ष 2018 से अन्नदाता किसानों को लागत का डेढ़ गुना दाम मिलना प्रारंभ हुआ. अब इस में काफी वृद्धि हुई है.

संसद के प्रत्येक सत्र में किसानों की खुदकुशी का मुद्दा उठता था. किसानों की खुदकुशी की वजह उपज का उचित दाम, उत्तम बीज, उचित सलाह, सिंचाई की सुविधा, बाजार तक पहुंच न होना आदि थी.

यह अच्छा अवसर है, जब हम अपने अन्नदाता किसानों को सहफसली लेने, इन के द्वारा विकसित की गई प्रजाति को और अधिक प्रमोट करने के लिए उन का सहयोग ले सकते हैं. साथ ही, औषधीय पौधों और फसल विविधीकरण जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इन का सहयोग ले कर किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ाने का काम किया जा सकता है. यदि किसानों को समय पर उन्नत किस्म के बीज, तकनीक और वैज्ञानिक सलाह मिल जाए, तो वे प्रधानमंत्री के विजन के अनुरूप काम करने में कामयाब हो सकेंगे.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगे कहा कि बाजार से लिंक कर ईको सिस्टम कैसे तैयार होता है, यह यहां की प्रदर्शनी में देखने को मिला. यहां 15 राज्यों के तकरीबन 4,000 किसानों के अतिरिक्त, प्रदेश के बाराबंकी, संभल, अमरोहा आदि जिलों के किसानों के साथसाथ लखीमपुर खीरी के जनजाति समुदाय से जुड़े लोग भी आए हैं. ये लोग खेती की उन्नत किस्मों को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे रहे हैं.

प्रदेश में स्थित 89 कृषि विज्ञान केंद्रों, 4 राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (5वां भी स्थापित होने जा रहा है) कृषि, बागबानी, आयुष आदि क्षेत्रों से जुड़े वैज्ञानिकों और लोगों को समयसमय पर सीमैप, सीडीआरआई, एनबीआरआई और आईआईटीआर लैबोरेट्रीज की विजिट कराई जानी चाहिए, ताकि इन की क्षमताओं का बेहतर उपयोग कर, किसानों की आमदनी को कई गुना बढ़ाने का काम किया जा सके. इस दिशा में तेजी के साथ प्रयास किए जाने की आवश्यकता है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह भी कहा कि यदि किसान खुशहाल होगा, तो प्रदेश खुशहाल होगा. राज्य में पर्याप्त उर्वर भूमि, प्रचुर जल संसाधन हैं. प्रदेश में देश की कुल कृषि योग्य भूमि की महज 11 फीसदी कृषि भूमि है, इस के बावजूद देश के कुल खाद्यान्न उत्पादन का 22 फीसदी खाद्यान्न केवल उत्तर प्रदेश में उत्पादित होता है. यह यहां की भूमि की उर्वरता को प्रदर्शित करता है. इस क्षेत्र में हमें अभी बहुतकुछ करना है.

उन्होंने कहा कि सीमैप द्वारा उन्हें बताया गया कि संस्थान ने अलगअलग क्लस्टर विकसित किए हैं. हम प्रदेश के सभी 89 कृषि विज्ञान केंद्रों में क्लस्टर विकसित कर, नए तरीके से किसानों के समूह को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दे सकते हैं. यदि हम औषधीय पौधों की खेती, प्रोसैसिंग और मार्केटिंग को इस के साथ जोड़ लें, तो कई गुना अधिक लाभ किसानों को प्राप्त होगा.

यदि किसान परंपरागत खेती के अंतर्गत प्रति एकड़ प्रति वर्ष 20 से 25 हजार रुपए कमा रहा है, तो औषधीय पौधों की खेती में वही किसान सवा लाख से डेढ़ लाख रुपए प्रति एकड़ प्रतिवर्ष कमा सकता है. इस दिशा में सीमैप और अन्य केंद्रीय लैबोरेट्रीज द्वारा प्रयास प्रारंभ किया गया है. यदि सभी मिल कर इस काम को आगे बढ़ाएंगे, तो इस के बेहतर नतीजे आएंगे.

कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों को उन्नतशील प्रजातियों की पौध रोपण सामग्री का वितरण किया. उन्होंने किसान मेले की स्मारिका और कृषि की उन्नतशील प्रजातियों पर केंद्रित एक पुस्तिका का विमोचन भी किया. उन्होंने हर्बल उत्पाद, एलोवेरा जेल और वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एरोमा एप का शुभारंभ किया.

इस के पूर्व मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसान मेले में लगी प्रदर्शनी का अवलोकन किया और पौधरोपण भी किया. कार्यक्रम को कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने भी संबोधित किया.

इस अवसर पर अपर मुख्य सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी, मुख्यमंत्री के सलाहकार अवनीश कुमार अवस्थी, महानिदेशक सीएसआईआर एन. कलैसेल्वी, निदेशक सीमैप डा. प्रबोध कुमार त्रिवेदी, निदेशक एनबीआरआई डा. अजीत कुमार शासनी, निदेशक आईआईटीआर डा. भास्कर नारायण, निदेशक सीडीआरआई डा. राधा रंगराजन सहित अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे.

डिजिटलीकरण की मदद से गांवगांव तक पहुंचेगा सहकारिता मंत्रालय

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने नई दिल्ली में राज्यों के सहकारी समिति के रजिस्ट्रार कार्यालय और कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों के कंप्यूटरीकरण की योजना का काम शुरू किया. इस अवसर पर केंद्रीय सहकारिता राज्यमंत्री बीएल वर्मा और सचिव, सहकारिता मंत्रालय सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे.

अपने संबोधन में अमित शाह ने कहा कि सहकार से समृद्धि के विजन को साकार करने की दिशा में हम एक और कदम आगे बढ़ रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक स्वतंत्र सहकारिता मंत्रालय की स्थापना कर सहकारिता से जुड़े लोगों की बहुत पुरानी मांग को पूरा करने का काम किया है.

उन्होंने आगे कहा कि मोदी सरकार के 10 साल पूरे होने जा रहे हैं. इन 10 सालों में देश के गांव, गरीब और किसानों के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए हैं. उन्होंने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने सहकारिता के माध्यम से करोड़ों लोगों को स्वरोजगार के साथ जोड़ने का एक मजबूत तंत्र खड़ा किया है.

उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि एक विस्तृत विजन के साथ दोनों कामों को एकसाथ करते हुए मजबूत ग्रामीण विकास की नींव डालने का काम सरकार ने किया है. सरकार के 2 कदम डिजिटल इंडिया और सहकारिता मंत्रालय की स्थापना देश में समृद्ध गांवों की नींव डालने वाले और विकसित भारत की सोच को ग्रासरूट तक ले जाने वाले साबित होंगे.

सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज डिजिटल इंडिया के तहत सहकारिता भी डिजिटल माध्यम से गांवों तक पहुंचनी शुरू हो गई है. राज्यों के सहकारी समिति के रजिस्ट्रार कार्यालय और कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों के कंप्यूटराइजेशन के माध्यम से प्राथमिक कृषि ऋण समिति से ले कर पूरी सहकारिता व्यवस्था को आधुनिक बनाने का काम किया है.

अमित शाह ने कहा कि इन दोनों कामों में लगभग सवा दो सौ करोड़ रुपए की लागत आएगी, जिन में से एआरडीबी पर 120 करोड़ रूपए और आरसीएस पर 95 करोड़ रुपए की लागत आएगी. उन्होंने कहा कि इस से पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी. साथ ही, मध्यम और दीर्घकालीन ऋण लेने वाले किसानों के लिए एक सरल सुविधा की शुरुआत होगी.

मंत्री अमित शाह ने कहा कि पिछले 2 साल में सरकार ने सहकारिता में डिजिटल इकोसिस्टम को बढ़ाने के लिए चरणबद्ध तरीके से एक दूरगामी सोच के साथ काम किया है. सहकारिता मंत्रालय बनने के तुरंत बाद सब से पहले 65,000 पैक्स, केंद्रीय रजिस्ट्रार औफ कोआपरेटिव्स और फिर पैक्स के साथसाथ सभी जिलों और राज्य सहकारी बैंकों का कंप्यूटराइजेशन किया गया. इस के बाद राष्ट्रीय डेटाबेस बनाया गया और अब एआरडीबी और आरसीएस के कंप्यूटराइजेशन के साथ ही पूरा सहकारिता क्षेत्र आज डिजिटल दुनिया में प्रवेश कर रहा है.

उन्होंने कहा कि 65,000 पैक्स के कंप्यूटराइजेशन के लिए आधुनिक और लोगों के साथ संवाद करने योग्य सौफ्टवेयर को नाबार्ड द्वारा तैयार किया गया है. इसी के साथ ये सभी पैक्स इस से जुड़ जाएंगे. इसी प्रकार केंद्रीय पंजीयक कार्यालय के कंप्यूटराइजेशन का काम भी पूरा हो चुका है, जिस से इस कार्यालय के सभी काम एक ही सौफ्टवेयर से हो सकेंगे.

राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस के माध्यम से राज्यों, तहसील, जिला और ग्रामस्तर पर कोआपरेटिव्स की सही जानकारी सामने आ जाएगी, जिस से सहकारिता क्षेत्र के विकास के लिए एक रूपरेखा तैयार की जा सकेगी. उन्होंने कहा कि वैक्यूम को भरने के लिए राष्ट्रीय सहकारी डेटाबेस बहुत उपयोगी सिद्ध होने वाला है.

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज आरसीएस कार्यालय के कंप्यूटराइजेशन होने के साथ ही इस से राज्यों की स्थानीय भाषाओं में संवाद हो सकेगा. कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक पर उच्चतम स्तर पर ध्यान न देने के कारण ये अपनी भूमिका अच्छे तरीके से नहीं निभा पाए हैं. मध्यम और दीर्घकालीन ऋण के लिए यह एक बहुत उपयोगी व्यवस्था है, जो आधुनिक खेती की ओर जाने के लिए किसान को पूंजी मुहैया कराती है. अमित शाह ने यह भी कहा कि अगर हम खेती को आधुनिक नहीं बनाएंगे, तो न हम उपज बढ़ा पाएंगे और न ही किसानों को समृद्ध कर पाएंगे.

अमित शाह ने कहा कि एआरडीबी के कंप्यूटराइजेशन से इन की औपरेशनल एफिशिएंसी में काफी सुधार आएगा, एकाउंटिंग में एकरूपता आएगी और पारदर्शिता बढ़ने के साथसाथ भ्रष्टाचार पर भी रोक लगेगी.
उन्होंने आगे कहा कि सरकार, नाबार्ड द्वारा सभी प्राइमरी कोआपरेटिव एग्रीकल्चर और रूरल डवलपमैंट बैंक और स्टेट कोआपरेटिव रूरल डवलपमैंट बैंक को एक राष्ट्रीय सौफ्टवेयर से जोड़ने पर भी विचार किया जा रहा है. इस से सभी प्रकार के कृषि ऋण का लिंकेज मजबूत हो सकेगा.

अमित शाह ने कहा कि देश के 1851 एआरडीबी की शाखाओं का कंप्यूटराइजेशन होने से इन से जुड़े 1 करोड़, 20 लाख किसानों को बहुत फायदा होगा.

कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंकों की कंप्यूटरीकरण परियोजना के तहत 13 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में स्थित एआरडीबी की 1851 इकाइयों को कंप्यूटरीकृत करने और उन्हें एक कौमन नैशनल सौफ्टवेयर के माध्यम से नाबार्ड से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है.

सहकारिता मंत्रालय की यह पहल कौमन एकाउंटिंग सिस्टम यानी सीएएस और मैनेजमैंट इनफोरमेशन सिस्टम यानी एमआईएस के माध्यम से व्यावसायिक प्रक्रियाओं को स्टैंडर्डाइज्ड कर एआरडीबी के परिचालन, दक्षता, जवाबदेही और पारदर्शिता को बढ़ाने का काम करेगी. इस के अलावा इस पहल का उद्देश्य ट्रांजैक्शन कोस्ट को कम करना, किसानों को ऋण वितरण में सुविधा प्रदान करना और योजनाओं की बेहतर मोनीटरिंग और एसेसमैंट के लिए रीयल टाइम डेटा एसेस को अनेबल करना है.

हाईटैक नर्सरी से औद्योगिक फसलों के उत्पादन में तेजी

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में किसानो को विभिन्न प्रजातियों के उच्च क्वालिटी के पौधे उपलब्ध कराने के उद्देश्य से इजराइली तकनीक पर आधारित हाईटैक नर्सरी तैयार की जा रही है. यह काम मनरेगा अभिसरण के तहत उद्यान विभाग के सहयोग से कराया जा रहा है और राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गठित स्वयं सहायता समूहों की दीदियां भी इस में हांथ बंटा रही हैं. इस से स्वयं सहायता समूहों को काम मिल रहा है.

उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने बताया कि इस योजना के क्रियान्वयन से कृषि एवं औद्यानिक फसलों को नई ऊंचाई मिलेगी. विशेष तकनीक का प्रयोग कर के यह नर्सरी तैयार की जा रही है. सरकार की मंशा है कि प्रदेश का हर किसान समृद्ध बने और बदलते समय के साथ किसान हाईटैक भी बने.
सरकार पौधरोपण को बढ़ावा देने के साथ बागबानी से जुड़े किसानों को भी माली तौर पर मजबूत बनाने का काम कर रही है. मनरेगा योजना से 150 हाईटैक नर्सरी बनाने के लक्ष्य के साथ तेजी से काम किया जा रहा है.

ग्राम्य विकास विभाग ने इस को ले कर प्रस्ताव तैयार किया था, जिस को ले कर जमीनी स्तर पर युद्धस्तर पर काम हो रहा है. हाईटैक नर्सरी से किसानों की माली हालत भी मजबूत हो रही है.
प्रदेश में 150 हाईटैक नर्सरी बनाने का लक्ष्य रखा गया है. 44 जिलों की 56 साइटों पर हाईटैक नर्सरी बनाने का काम शुरू किया जा चुका है.

कन्नौज के उमर्दा में स्थित सैंटर औफ ऐक्सीलेंस फौर वेजिटेबल की तर्ज पर प्रदेश के सभी जिलों में 2-2 मिनी सैंटर (150) स्थापित करने की कार्यवाही जारी है. किसानों को उन्नत किस्म के पौध के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. बुलंदशहर, बागपत, वाराणसी, बरेली, मिर्जापुर और मेरठ की 7 हाईटैक नर्सरियों में सिडलिंग प्रोडक्शन का काम भी प्रारंभ हो चुका है.

समूह की दीदियों को रोजगार

नर्सरी की देखरेख करने के लिए स्वयं सहायता समूह को जिम्मेदारी दी गई है. समूह के सदस्य नर्सरी का काम देखते हैं, जो पौधों की सिंचाई, रोग, खादबीज आदि का जिम्मा संभालते हैं. इस के लिए स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है.

किसानों की आय में बढ़ोतरी

सरकार उच्च क्वालिटी व उन्नत किस्म के पौधों की नर्सरी को बढ़ावा देने के लिए तेजी से काम कर रही है. प्रत्येक जनपद में पौधशालाएं बनाने का काम किया जा रहा है. इन में किसानों को फूल और फल के साथ सर्पगंधा, अश्वगंधा, ब्राह्मी, कालमेघ, कौंच, सतावरी, तुलसी, एलोवेरा जैसे औषधीय पौधों को रोपने के लिए जागरूक किया जा रहा है. किसानों को कम लागत से अधिक फायदा दिलाने के लिए पौधरोपण की नई तकनीक से जोड़ा जा रहा है.

ग्राम्य विकास आयुक्त जीएस प्रियदर्शी ने बताया कि प्रदेश में 150 हाईटैक नर्सरी के निर्माण की कार्यवाही मनरेगा कन्वर्जेंस के अंतर्गत की जा रही है, जिस के सापेक्ष 125 हाईटैक नर्सरी की स्वीकृति जनपद स्तर पर की जा चुकी है. 56 साइटों पर काम जारी है, जबकि 7 हाईटैक नर्सरी में सिडलिंग प्रोडक्शन का काम प्रारंभ हो चुका है.

मत्स्य संपदा योजना के तहत 55 लाख रोजगार

नई दिल्लीः  साल 2024-25 में मत्स्य क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए 5 एकीकृत एक्वापार्कों की स्थापना की जाएगी. साथ ही, मछुआरों की सहायता करने के लिए मत्स्य क्षेत्र के लिए एक अलग विभाग की स्थापना भी होगी. इस का परिणाम अंतर्देशीय और एक्वाकल्चर उत्पादन दोनों ही दोगुना हुआ है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक, 2013-14 से सी फूड का निर्यात भी दोगुना हो गया है.

उन्होंने घोषणा की कि एक्वाकल्चर उत्पादकता को प्रति हेक्टेयर वर्तमान 3 से बढ़ा कर 5 टन करने, निर्यात को दोगुना कर 1 लाख करोड़ रुपए तक पहंुचाने और निकट भविष्य में 55 लाख रोजगार अवसरों का सृजन करने के लिए पीएम मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के कार्यान्वयन में तेजी लाई जाएगी.

ब्लू इकोनौमी 2.0

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि ब्लू इकोनौमी 2.0 के लिए जलवायु के अनुकूल कार्यकलापों को बढ़ावा देने के लिए एकीकृत और बहुविषयक दृष्टिकोण के साथ, पुनःस्थापन एवं अनुकूलन उपायों और तटीय एक्वाकल्चर और मारिकल्चर की एक योजना शुरू की जाएगी.

डेयरी विकास

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने यह भी घोषणा की कि डेयरी किसानों की सहायता के लिए व्यापक कार्यक्रम तैयार किया जाएगा. उन्होंने कहा कि खुरपका रोग को नियंत्रित करने के प्रयास पहले से चल रहे हैं. उन्होंने यह भी कहा कि भारत विश्व का सब से बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है, लेकिन देश में दुधारू पशुओं की दुग्ध उत्पादकता कम है.

यह कार्यक्रम राष्ट्रीय गोकुल मिशन, राष्ट्रीय पशुधन मिशन और डेयरी प्रोसैसिंग एवं पशुपालन के लिए अवसंरचना विकास निधि जैसी मौजूदा योजनाओं की सफलताओं पर आधारित होगा.

ईनीलामी के जरीए गेहूं और चावल की बिक्री

नई दिल्ली: खुले बाजार में गेहूंचावल की उपलब्धता बढ़ाने और इन की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए, भारत सरकार 28 जून, 2023 से साप्ताहिक ईनीलामी के माध्यम से गेहूं और चावल को बाजार में उपलब्ध करा रही है.

भारत सरकार द्वारा खुली बाजार बिक्री योजना (घरेलू) [ओएमएसएस (डी)] के तहत कुल 101.5 एलएमटी गेहूं और 25 एलएमटी चावल आवंटित किया गया है. गेहूं, एफएक्यू के लिए 2150 रुपए प्रति क्विंटल और यूआरएस के लिए 2125 रुपए प्रति क्विंटल के आरक्षित मूल्य पर दिया जा रहा है. चावल का आरक्षित मूल्य 2,900 रुपए प्रति क्विंटल रखा गया है.

इस मौजूदा चरण की पहली ईनीलामी 28 जून, 2023 को आयोजित की गई थी, जिस में 0.86 एलएमटी गेहूं खुले बाजार में बेचा गया.

हालांकि, गेहूं की उपलब्धता बढ़ाने और खुले बाजार में गेहूं की मांग को पूरा करने के लिए, ईनीलामी में गेहूं की साप्ताहिक पेशकश को धीरेधीरे शुरुआती 2 एलएमटी से बढ़ा कर वर्तमान साप्ताहिक पेशकश 4.5 एलएमटी तक किया गया है. परिणामस्वरूप, गेहूं की साप्ताहिक बिक्री बढ़ कर 4 लाख मीट्रिक टन से अधिक हो गई है. 24 जनवरी, 2024 तक ओएमएसएस(डी) के तहत 71.01 एलएमटी गेहूं बेचा जा चुका है.

वर्ष 2023-24 के लिए ओएमएसएस (डी) के तहत चावल की पहली ईनीलामी 5 जुलाई, 2023 को आयोजित की गई थी. खुले बाजार में चावल की बिक्री बढ़ाने के लिए भारत सरकार ने चावल का आरक्षित मूल्य 3,100 रुपए प्रति क्विंटल से घटा कर 2,900 रुपए प्रति क्विंटल कर दिया और चावल की न्यूनतम और अधिकतम मात्रा को क्रमशः 1 मीट्रिक टन और 2000 मीट्रिक टन तक संशोधित किया.

 

Rice

 

इस के अलावा व्यापक पहुंच के लिए एफसीआई के क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा नियमित विज्ञापन जारी किए गए, जिस के परिणामस्वरूप चावल की बिक्री में धीरेधीरे वृद्धि दर्ज की गई. 24 जनवरी, 2024 तक तकरीबन 1.62 एलएमटी चावल खुले बाजार में बेचा गया है, जो निजी व्यापारियों को चावल की बिक्री के संदर्भ में ओएमएसएस (डी) के तहत किसी भी वर्ष के लिए सब से अधिक बिक्री है. पिछला उच्चतम रिकौर्ड 42,000 मीट्रिक टन था.

केंद्र सरकार, भारत आटा योजना के तहत नेफेड/ एनसीसीएफ/केंद्रीय भंडार/एमएससीएमएफएल जैसी सहकारी एजेंसियों को भी गेहूं उपलब्ध करा रही है. भारत सरकार द्वारा इस योजना के तहत ओएमएसएस (डी) के कुल 101.5 एलएमटी में से 4 एलएमटी आवंटित किया गया है.

ओएमएसएस (डी) योजना के इस उपसमूह के तहत, अर्धसरकारी/सहकारी एजेंसियों को 21.50 रुपए प्रति पर गेहूं मिल रहा है, जिसे आटे में परिवर्तित करने और आम जनता को उच्चतम 27.50 रुपए प्रति किलोग्राम तक की कीमत पर बेचने के लिए 16 दिसंबर, 2023 को 17.15 रुपए प्रति किलोग्राम के रूप में संशोधित किया गया है. 29 जनवरी, 2024 तक इन एजेंसियों को 2,80,456 मीट्रिक टन गेहूं बेचा जा चुका है.

हमारे किसान आत्मनिर्भर व सशक्त बनें

नई दिल्ली : 31 जनवरी, 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई), पूसा, दिल्ली में कन्या छात्रावास “फाल्गुनी” व कृषि वैज्ञानिक चयन मंडल (एएसआरबी) के “चयन भवन” का लोकार्पण किया. इस अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे, केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, डेयर के सचिव एवं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक, एएसआरबी के चेयरमैन डा. संजय कुमार, आईएआईआर के निदेशक डा. एके सिंह भी उपस्थित थे.

समारोह में मुख्य अतिथि अर्जुन मुंडा ने कहा कि केंद्र सरकार, कृषि क्षेत्र एवं किसानों के विकास के लिए संकल्पबद्ध है और राज्य सरकारों के माध्यम से भी कृषि व संबद्ध क्षेत्रों और किसान हित में योजनाबद्ध ढंग से काम को आगे बढ़ाया जा रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी भी चाहते हैं कि हमारे किसान आत्मनिर्भर व सशक्त बनें और इतने सामर्थ्यवान हों कि देश के साथ ही दुनिया के बाजारों में भी पूर्ति कर सकें. इस के लिए एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने के साथ ही विभिन्न योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से काम किया जा रहा है.

किसान को कहीं भी पीछे नहीं रहना चाहिए, इस के लिए खेती को आधुनिक प्रौद्योगिकियों से भी जोड़ा जा रहा है. सैटेलाइट की मदद से भी कृषि क्षेत्र में काम करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी प्रोत्साहित कर रहे हैं.

आईसीएआर भी काफी अच्छा काम कर रहे हैं. किसानों को आय सहायता के लिए केंद्र सरकार द्वारा “प्रधानमंत्री किसान सम्मान” (पीएम किसान) योजना सहित कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. वर्ष 2047 तक देश को विकसित बनाने के संकल्प के साथ काम हो रहा है.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने समारोह में उपस्थित झारखंड के आदिवासी किसानों का आव्हान किया कि उन्होंने यहां जिन उन्नत तकनीकों का प्रशिक्षण प्राप्त किया व प्रक्षेत्र भ्रमण के दौरान जो श्रेष्ठ पद्धतियां सीखीसमझी, उन्हें सूदरवर्ती क्षेत्रों तक आगे बढ़ाने में योगदान दें.

कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने आगे कहा कि पूसा में दुर्लभ बीजों व पौधों के संरक्षण का काम भी किया जा रहा है. साथ ही, यहां पर गुणवत्ता व पौष्टिकता पर ध्यान देते हुए तेजी से शोध का काम किया जा रहा है.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने भारत के विश्व की 5वीं सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बनने, जी-20 की अध्यक्षता के माध्यम से विश्व मित्र बनने, कोरोना के संकटकाल का साहसपूर्वक सामना करने सहित अन्य उपलब्धियों का जिक्र भी किया. राज्य मंत्री कैलाश चौधरी, शोभा करंदलाजे एवं डीजी डा. हिमांशु पाठक व चेयरमैन डा. संजय कुमार ने भी विचार रखे.

आईएआरआई निदेशक डा. एके सिंह ने बताया कि “फाल्गुनी” में 500 कमरे हैं. फूड कोर्ट, सौर ऊर्जा प्रणाली, वर्षा जल संचयन प्रणाली, जनेरेटर आधारित पावर बैकअप, वाईफाई नैटवर्क, आरओ पेयजल, अग्निशमन व्यवस्था, पार्किंग, लिफ्ट सभी सुविधाएं प्रदत्त हैं, जिन से राष्ट्रीयअंतर्राष्ट्रीय छात्राओं का आकर्षण बढ़ेगा.

कार्यक्रम में आईसीएआर, आईएआईआर, एएसआरबी के अधिकारी, वैज्ञानिक, शिक्षक, छात्रछात्राएं और तमाम किसान भी मौजूद थे.

किसानों पर केंद्रित करें लाभ – अर्जुन मुंडा

नई दिल्ली: 29 जनवरी 2024. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने कृषि भवन, नई दिल्ली में कृषि क्षेत्र में स्वैच्छिक कार्बन बाजार के लिए फ्रेमवर्क एवं कृषि वानिकी नर्सरी के एक्रेडिटेशन प्रोटोकाल का विमोचन किया. इस अवसर पर कृषि सचिव मनोज आहुजा, डेयर के सचिव व भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक सहित केंद्र एवं राज्यों के मंत्रालयों व कृषि से संबद्ध विभिन्न संगठनों के वरिष्ठ पदाधिकारी उपस्थित थे, वहीं अनेक हितधारक वर्चुअल भी जुड़े थे.

इस मौके पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने छोटेमझोले किसानों को कार्बन क्रेडिट का लाभ उठाने के लिए प्रोत्साहित करने की दृष्टि से देश के कृषि क्षेत्र में स्वैच्छिक कार्बन बाजार (वीसीएम) को बढ़ावा देने का फ्रेमवर्क तैयार किया है. किसानों को कार्बन बाजार से परिचित कराने से उन्हें फायदा होने के साथ ही पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने में भी तेजी आएगी.

उन्होंने किसानों के हित में कार्बन बाजार को बढ़ावा देने के लिए केंद्र व राज्यों के संबंधित मंत्रालयों सहित अन्य संबद्ध संगठनों से सहयोग का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि सुदूरवर्ती क्षेत्रों के किसानों के साथ मिल कर उन के लिए सुविधाजनक ढंग से इस दिशा में काम किया जाना चाहिए व समाधान के साथ ही हमारे किसानों पर इस का लाभ केंद्रित करने की जरूरत है.

 

Farming

 

यह प्रथम सोपान है, जिस में कदम बढ़ाते हुए हम सब की सहभागिता सुनिश्चित करना चाहते हैं. ग्लोबल वार्मिंग जैसी वैश्विक चुनौतियां हम सब के सामने हैं, ऐसे में सावधानी से काम करते हुए आगे बढ़ना है. उन्होंने आईसीएआर से इस दिशा में सक्रिय भूमिका निभाने व अच्छा काम अच्छे ढंग से करने को कहा.

मंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि देश में कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था व करोड़ों लोगों की आजीविका में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है. देश के कार्यबल का 54.6 फीसदी कृषि व संबद्ध क्षेत्रों की गतिविधियों में लगा हुआ है. जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 18.6 फीसदी है, वहीं 139.3 मिलियन हेक्टेयर, देश के कुल भौगोलिक में से बोया गया क्षेत्र है. इस महत्व के मद्देनजर सतत विकास के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में मंत्रालय ने कई कदम उठाए हैं.

उन्होंने आगे कहा कि कृषि वानिकी नर्सरी के एक्रेडिटेशन प्रोटोकाल, देश में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर रोपण सामग्री के उत्पादन और प्रमाणीकरण के लिए संस्थागत व्यवस्था को मजबूत करेंगे.

उन्होंने सभी हितधारकों से कहा कि वे उसे अपनाएं, ताकि गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री से सुनिश्चित रिटर्न मिल सके व राष्ट्रीय कृषि वानिकी नीति के उद्देश्य व लक्ष्य प्राप्त किए जा सकें. साथ ही, प्राकृतिक संसाधनों का समुचित उपयोग करने का आग्रह किया.