गौशालाओं के लिए तीन सौ करोड़ और ग्रीन कलर योजना

चंडीगढ़ : मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि पशुपालन एवं डेयरी और विकास एवं पंचायत विभाग, सामाजिक संस्थाएं व गौ सेवा आयोग नई गौशालाएं खोलने के लिए एक त्रिपक्षीय समझौता करे. जहांजहां पंचायती विभाग की जमीन उपलब्ध है, वहां पर नई गौशालाएं खोली जाएं. आधारभूत ढांचा उपलब्ध करवाया जाएगा और सामाजिक संस्थाओं को गौशालाएं संचालित करने के लिए आगे आना होगा.

उन्होंने कहा कि गौ वंश के संरक्षण व गौ धन की देखभाल के लिए गौ सेवा आयोग का बजट 40 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 400 करोड़ रुपए है. इस में 300 करोड़ रुपए नई गौशालाएं स्थापित करने के लिए आवंटित किया गया है.

उन्होंने कहा कि सांझी डेयरी अवधारणा के तहत भी पशुपालक डेयरी व्यापार करने के लिए आगे आएं.

ग्रीन कवर योजना

मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा कि राज्य सरकार ने ग्रीन कवर को बढ़ावा देने के लिए भी योजना बनाई है, जिस के तहत स्थानीय युवा 3 वर्ष तक वन विभाग द्वारा लगाए गए पौधे की देखभाल करेगा. इन्हें वन मित्र कहा जाएगा. इस के लिए विभाग हर गांव में 500 से 700 पेड़ों को चिह्नित कर वन मित्रों को सौंपे. हर पेड़ की देखभाल के लिए वन मित्र को 10 रुपए प्रति पेड़ प्रोत्साहन स्वरूप दिया जाएगा.

उन्होंने निर्देश दिए कि वन विभाग के अधिकारी वन मित्र के लिए एसओपी भी तैयार करे.

बैठक में मुख्य सचिव संजीव कौशल, राजस्व एवं आपदा प्रबंधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव और वित्त आयुक्त, राजस्व टीवीएसएन प्रसाद, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुधीर राजपाल, पशुपालन एवं डेयरी विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अंकुर गुप्ता, उद्योग एवं वाणिज्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव आनंद मोहन शरण, सहकारिता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव राजा शेखर वुंडरू, पर्यावरण, वन एवं वन्य जीव विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव विनीत गर्ग, विकास एवं पंचायत विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अनिल मलिक और मुख्यमंत्री की अतिरिक्त प्रधान सचिव आशिमा बराड़ सहित वर्किंग ग्रुप के सदस्य उपस्थित रहे.

किसान मेले में आधी से अधिक महिलाएं

आणंद : कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग (डीएआरई) के सचिव और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक ने 22 जनवरी, 2024 को गुजरात के आणंद में किसान मेले का उद्घाटन किया. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-औषधीय और सुगंधित पौधे अनुसंधान निदेशालय (आईसीएआर-डीएमएपीआर), आणंद, गुजरात ने 22 से 24 जनवरी, 2024 के दौरान तीनदिवसीय किसान मेला, हर्बल ऐक्सपो, किसान प्रशिक्षण और अवसर प्रदान करने वाली यात्रा का आयोजन किया.

डा. हिमांशु पाठक ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती किसानों की आय को दोगुना करने के लिए सब से अच्छे विकल्पों में से एक होगी, क्योंकि आधुनिक चिकित्सा और फार्मास्युटिकल उद्योग में प्रगति के बावजूद औषधीय और सुगंधित पौधों की मानव की प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका है.

उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि देश में जड़ीबूटी आधारित उद्योग तेजी से बढ़ रहा है, जिस के परिणामस्वरूप औषधीय और सुगंधित पौधों की मांग बढ़ रही है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि औषधीय पौधों की उत्पादकता और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए आईसीएआर-डीएमएपीआर द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों, किस्मों को अपना सकते हैं.

किसान मेले में 2000 से अधिक किसानों की भारी उपस्थिति की सराहना की और मेले के सफल आयोजन के लिए निदेशालय को बधाई दी.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-औषधीय और सुगंधित पौधे अनुसंधान निदेशालय (आईसीएआर-डीएमएपीआर) के निदेशक डा. मनीष दास ने किसान मेले और अनुसंधान गतिविधियों और निदेशालय द्वारा विकसित प्रौद्योगिकियों के महत्व के बारे में जानकारी दी, जिन्हें किसानों के लाभ के लिए प्रदर्शनों और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से बढ़ावा दिया गया है.

किसान मेले के दौरान, वडोदरा के मैसर्स वासु रिसर्च सैंटर एंड हेल्थकेयर के साथ 2 समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर किए गए और सेंट जेवियर्स कालेज (एसएक्ससीए)-लोयोला सैंटर औफ रिसर्च एंड डेवलपमेंट-जेवियर रिसर्च फाउंडेशन, अहमदाबाद के साथ एक त्रिपक्षीय समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों, राज्य कृषि विश्वविद्यालय (एसएयू), कृषि विज्ञान केंद्र और हर्बल उद्योगों के कुल 30 प्रदर्शनी स्टाल इस किसान मेले में तीन दिनों यानी 22 से 24 जनवरी, 2024 तक प्रदर्शित किए गए.

Kisan Melaइस तीनदिवसीय मेले के दौरान 2,000 से अधिक किसानों ने भाग लिया, जिन में से आधी महिला किसान थीं. किसान मेले में 500 से अधिक स्कूली बच्चे भी आए. 30 स्टालों में से 3 सर्वश्रेष्ठ स्टाल को पुरस्कार भी दिया गया.

मेले के दौरान मोनोअमोनियम फास्फेट (एमएपी) के उत्पादन, सुरक्षा, सुधार, संरक्षण और फसल कटाई के बाद प्रबंधन के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किए गए. 24 जनवरी को किसानों के लिए एक अवसर प्रदान करने के लिए एक दौरे का भी आयोजन किया गया था, जहां खेती और मोनोअमोनियम फास्फेट के संरक्षण को सजीव दिखाया गया था.

मेले में महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, केरल, बिहार, झारखंड और गुजरात जैसे राज्यों के किसानों ने भाग लिया. किसानों के लाभ के लिए ड्रोन प्रदर्शन का एक विशेष कार्यक्रम भी आयोजित किया गया.

कार्यक्रम में महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात के तीन-तीन किसानों को सम्मानित किया गया. तीन दिवसीय मेले के दौरान लगभग 5,000 पर्यटक आए.

इस अवसर पर आणंद कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति, डा. केबी कथीरिया और अपर महानिदेशक (एफवीएसएम), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) डा. सुधाकर पांडे सम्मानित अतिथि थे. उन्होंने मोनोअमोनियम फास्फेट के महत्व के बारे में जानकारी दी और बताया कि यह किसानों को लंबी अवधि में उन की आय दोगुनी करने में कैसे मदद करेगा.

Kisan Melaक्यूआरटी अध्यक्ष, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-औषधीय और सुगंधित पौधे अनुसंधान निदेशालय (आईसीएआर-डीएमएपीआर), आणंद प्रोफेसर एनसी गौतम और अपर महानिदेशक (एनएएसएफ), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) डा. जितेंद्र कुमार विशेष अतिथि थे. इन्होंने किसानों द्वारा खेती के लिए मोनोअमोनियम फास्फेट की भूमिका और इस के संरक्षण पर प्रकाश डाला.

गणमान्य व्यक्तियों ने किसानों से औषधीय पौधों की खेती, प्रसंस्करण, व्यापार और विपणन का लाभ उठाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर)-औषधीय और सुगंधित पौधे अनुसंधान निदेशालय (आईसीएआर-डीएमएपीआर) से जुड़े रहने का आग्रह किया. साथ ही, उन्होंने कहा कि किसानों की आय बढ़ाने के लिए औषधीय और सुगंधित पौधों को पारंपरिक फसलों के साथसाथ खेती की जानी चाहिए.

छह करोड़ की कृषि की आधुनिक प्रयोगशाला से किसानों को फायदा

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बायोटैक्नोलौजी महाविद्यालय में सैंटर फौर माइक्रोप्रोपेगेशन एंड डबल हेपलोड उत्पादन की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की अत्याधुनिक प्रयोगशाला का उद्घाटन हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने वर्चुअल माध्यम से किया.

विश्वविद्यालय में मुख्य अतिथि के रूप में हरियाणा विधानसभा के डिप्टी स्पीकर रणबीर सिंह गंगवा रहे व विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अध्यक्षता की.

हरियाणा के डिप्टी स्पीकर रणबीर सिंह गंगवा ने कहा कि इस विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रयोगशाला का स्थापित होना खुशी की बात है. इस के लिए उन्होंने मुख्यमंत्री मनोहर लाल का आभार प्रकट किया.

उन्होंने कहा कि इस प्रयोगशाला से किसानों को सीधे रूप से फायदा होगा, जहां से तैयार किए पौधे हरियाणा ही नहीं, अपितु उत्तर भारत के किसानों को उपलब्ध करवाए जा सकेंगे.

विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि वे किसानों के हित में शोध कर कृषि क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि इस प्रयोगशाला का कृषि क्षेत्र में बहुत योगदान रहेगा. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल, जो कि किसानों की सेवा के लिए हमेशा से तत्पर रहते हैं. इसी दिशा में विश्वविद्यालय में माइक्रोप्रोपेगेशन एंड डबल हेपलोड उत्पादन की अत्याधुनिक प्रयोगशाला स्थापित की गई है.

उन्होंने बताया कि यह प्रयोगशाला तकरीबन 6 करोड़ रुपए में तैयार किया गया है. इस प्रयोगशाला में टिशू कल्चर विधि से विभिन्न पौध तैयार करने की विधियां विकसित की गई हैं, जहां तकरीबन 20 लाख उच्च गुणवत्ता, रोगरहित एवं आनुवांशिक रूप से एकजैसे पौधे हर साल तैयार किए जा सकेंगे.

उन्होंने आगे बताया कि इस प्रयोगशाला में गन्ना, केला, ब्रह्मी, एलोविरा, औषधीय पौधे एवं अन्य कृषि उपयोगी पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध करवाया जाएगा. भविष्य में भी हमारी कोशिश यह रहेगी कि हम ज्यादा से ज्यादा पौधे तैयार कर किसानों को उपलब्ध करवा सकें.

Farming

बायोटैक्नोलौजी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. सुधीर शर्मा ने कहा कि यह प्रयोगशाला ढाई एकड़ में फैली हुई है, जोकि 3 भागों में विभाजित है. पहला भाग प्रयोगशाला है, जो कि 6500 स्क्वायर फीट में है, जिस में पौधे परखनलियों में प्रयोगशाला में नियंत्रित तापमान एवं प्रकाश के अंदर विकसित किए जाते हैं. दूसरा भाग ग्रीनहाउस है, जो कि 1041 स्क्वायर फीट में बना हुआ है, जहां पर पौधों को नियंत्रित तापमान एवं आर्द्रता में विकसित किया जाता है. इस ग्रीनहाउस में टिशू कल्चर विधि का इस्तेमाल कर 5 लाख पौध को रखने की क्षमता होगी.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि तीसरा भाग नेटहाउस है, जोकि एक एकड़ में बना हुआ है, जिस में पौधों को रख कर किसानों को उपलब्ध करवाए जाएंगे.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के अधिकारियो सहित इस से जुड़े समस्त महाविद्यालयों के अधिष्ठाता, निदेशक, विभागाध्यक्ष, शिक्षक एवं गैर-शिक्षक भी उपस्थित रहे.

गणतंत्र दिवस परेड को देखने के लिए 1500 से अधिक किसान आमंत्रित

नई दिल्ली : भारत के 76वें गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित अतिथि गणतंत्र दिवस परेड देखने के लिए कर्तव्य पथ पर एकत्र होंगे. केंद्र सरकार की योजनाओं के कई लाभार्थियों को इस महत्वपूर्ण परेड को देखने के लिए आमंत्रित कर के सम्मानित करने की सरकार की योजना है.

सम्मानित अतिथि की सूची में एक उल्लेखनीय वृद्धि के रूप में, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय 1500 से अधिक किसानों को गणतंत्र दिवस परेड को देखने के लिए आमंत्रित कर रहा है, जो विभिन्न केंद्र सरकार की योजनाओं जैसे कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना आदि के लाभार्थी हैं.

इस उत्सव के एक भाग के रूप में 25 जनवरी, 2024 को किसानों के लिए एआईएफ, एमएंडटी, राष्ट्रीय बीज सहयोग और प्रति बूंद अधिक फसल जैसी प्रमुख सरकारी पहलों पर एक व्यापक प्रशिक्षण सत्र के साथ ही पूसा परिसर के एक क्षेत्र के दौरे का आयोजन किया जाएगा. वहीं 26 जनवरी, 2024 को विशेष आमंत्रित लोग कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस परेड देखेंगे.

परेड के बाद किसान केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा की उपस्थिति में एक विशेष कार्यक्रम के लिए सुब्रमण्यम हाल, पूसा में एकत्र होंगे, जो किसानों को उन की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और विभिन्न योजनाओं के माध्यम से उन्हें समर्थन देने की सरकार की प्रतिबद्धता को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका के लिए आभार व्यक्त करेंगे.

संबोधन के बाद किसानों को मंत्रियों और गणमान्य व्यक्तियों के साथ एक फोटो सत्र का अवसर मिलेगा और दोपहर के भोजन के साथ दिन का समापन होगा.

यह उत्सव कृषि समुदाय के अथक प्रयासों को पहचानने और सराहना करने, विकास के प्रति कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के समर्पण को उजागर करने के लिए आयोजित किया गया है.

प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) के अध्यक्ष और उन के परिजन भी बनेंगे साक्षी देशभर के 24 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों के तकरीबन 250 लाभार्थी प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (पीएसीएस) के अध्यक्ष और उन के परिजन भारत सरकार के “विशेष अतिथि” के रूप में इस बार कर्तव्य पथ पर गणतंत्र दिवस परेड के साक्षी बनेंगे. रक्षा मंत्रालय के सहयोग से सहकारिता मंत्रालय गणतंत्र दिवस परेड में विशेष अतिथियों की मेजबानी करेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की “सहकार से समृद्धि” की परिकल्पना को साकार करने के लिए गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह के कुशल मार्गदर्शन में सहकारिता मंत्रालय ने बहुत ही कम समय में 54 से अधिक महत्वपूर्ण पहल की हैं. “पीएसीएस का कंप्यूटरीकरण” इन में से एक प्रमुख पहल है, जिस के तहत 2,516 करोड़ रुपए के कुल वित्तीय परिव्यय के साथ 63,000 पीएसीएस को कंप्यूटरीकृत किया जा रहा है. अब तक 28 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के 12,000 से अधिक पैक्स को कंप्यूटरीकृत किया जा चुका है और वे राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक यानी नाबार्ड द्वारा विकसित ईआरपी यानीएंटरप्राइज रिसोर्स प्लानिंग सौफ्टवेयर पर औनबोर्ड किए जा चुके हैं.

राजधानी नई दिल्ली में अपने प्रवास के दौरान विशेष अतिथि 25 जनवरी को सहकारिता राज्य मंत्री बीएल वर्मा के साथ मुलाकात और रात्रि भोज करेंगे. 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस परेड देखने के बाद शाम को वे “भारत पर्व” में शामिल होंगे.

सहकारिता मंत्रालय गणतंत्र दिवस पर आमंत्रित इन विशेष अतिथियों के दिल्ली प्रवास को एक यादगार अनुभव बनाने और पीएसीएस कंप्यूटरीकरण परियोजना की सफलता को प्रदर्शित करने के लिए प्रतिबद्ध है. यह आयोजन सहभागी पैक्स को ‘सहकार से समृद्धि’ की परिकल्पना को साकार करने की दिशा में एक नए जोश के साथ काम करने के लिए प्रेरित करेगा.

फसल बीमा क्लेम का होगा तुरंत भुगतान

जयपुर: 23 जनवरी, 2024. कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत किसानों को बीमा कंपनी के माध्यम से मुआवजे के भुगतान के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा समान अनुपात में राशि वहन किए जाने का प्रावधान है.

मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने बताया कि योजना के तहत मेड़ता विधानसभा में 7 किसानों को क्लेम के लिए राज्य सरकार द्वारा राशि जारी की जा चुकी है, लेकिन केंद्र की राशि प्रकियाधीन है.

उन्होंने सदन में आश्वस्त किया कि जैसे ही इस संबंध में कंेद्र सरकार द्वारा प्रकिया पूरी हो जाएगी, लंबित बीमा क्लेमों का भुगतान कर दिया जाएगा.

कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा प्रश्नकाल के दौरान सदस्य द्वारा इस संबंध में पूछे गए पूरक प्रश्नों पर जवाब दे रहे थे. इस से पहले विधायक लक्ष्मण राम के मूल प्रश्न के लिखित जवाब में कृषि मंत्री ने बताया कि विधानसभा क्षेत्र मेड़ता में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमित किसानों की फसलों का बीमा किया गया है. उन्होंने खरीफ 2020 से रबी 2022-23 तक रिलांयस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड द्वारा किसानों की संख्या में फसलों के बीमे का वर्षवार विवरण सदन के पटल पर रखा.

उन्होंने बताया कि वर्ष 2020-21 में 29 हजार, 992 किसान, वर्ष 2021-22 में 27 हजार, 454 और वर्ष 2022-23 में 32 हजार, 164 किसानों की फसलों का बीमा दिया गया है.
कृषि मंत्री किरोड़ी लाल मीणा ने बताया कि मेड़ता विधानसभा क्षेत्र में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के प्रावधानों के अनुसार दर्ज की गई उपज नुकसान के आधार पर खरीफ 2020 से रबी 2022-23 तक पात्र बीमित फसल के किसानों को 85.98 करोड रुपए के बीमा क्लेम बीमा कंपनी द्वारा जारी किए गए हैं एवं 7 किसानों के फसल बीमा क्लेम लंबित हैं. लंबित बीमा क्लेमों का भुगतान प्रक्रियाधीन है.

किसान ने मोटे अनाज की खेती से कमाया भारी मुनाफा

बस्ती : देश के अनेक किसान कम लागत, कम उर्वरक और कम पानी से पैदा होने वाले मोटे अनाज की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं. ऐसे ही एक किसान हैं राममूर्ति मिश्र. बस्ती जिले के सदर ब्लाक, गांव गौरा के बाशिंदे नैशनल अवार्डी किसान राममूर्ति मिश्र ने महज 12 हजार रुपए की लागत से मडुआ और सांवा की खेती कर के तकरीबन 78 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त की है.

प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्र द्वारा की जा रही मोटे अनाज की खेती पूरे इलाके में किसानों को आकर्षित करने में कामयाब रही है.

 

Mota Anaj

 

कृषि विभाग ने मुफ्त में मुहैया कराया था बीज

प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्र ने बताया कि उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि महकमे की तरफ से मुफ्त में सांवा और रागी यानी मडुआ का बीज उपलब्ध कराया गया था, जिसे उन्होंने तकरीबन 3 एकड़ खेत में बोआई की थी. इस से उन्हें तकरीबन 20 क्विंटल उपज प्राप्त हुई थी.

उन्होंने आगे बताया कि मोटे अनाज की खेती में उन्हें एक बार भी सिंचाई नहीं करनी पड़ी है और न ही उन्होंने फसल में किसी तरह को खाद व उर्वरक का प्रयोग किया था.

प्रगतिशील किसान राममूर्ति मिश्र ने बताया कि मोटे अनाज की फसल में किसी तरह का कीट व बीमारियों का प्रकोप नहीं होता है. इस से जुताई और मेहनत को छोड़ दिया जाए, तो लागत न के बराबर आती है. ऐसे में किसान को कम पूंजी में अधिक मुनाफा प्राप्त होता है.

कृषि मंत्री ने किया प्रोत्साहित

किसान राममूर्ति मिश्र ने बताया कि सूबे के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही के प्रोत्साहन से प्रेरित हो कर मोटे आनाज की पहली बार खेती की थी. इस के पहले वह खरीफ सीजन में केवल सुगंधित धान काला नमक और बासमती की खेती करते थे, जिस में खाद एवं उर्वरक के साथ ही मेहनत पर अधिक लागत आती है. इस से मुनाफा कम मिलता था.

उन्होंने बताया कि धान की खेती में अधिक पानी की जरूरत होती है, जबकि मोटे अनाजों को सूखे की दशा में भी आसानी से उगाया जा सकता सकता.

राममूर्ति मिश्र ने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से कम बारिश हो रही है, जिस के चलते किसानों के लिए मोटे आनाज की खेती काफी फायदेमंद हो सकती है.

सेहत के लिए लाभदायक है मोटा अनाज

किसान राममूर्ति मिश्र ने बताया कि मोटे अनाज का सेवन करना शरीर के लिए फायदेमंद है. यह बुढ़ापे के लक्षण को कम करता है. डायबिटीज सहित कई बीमारियों के खतरे को कम करता है. यह अनाज लौह और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर होता है, इसलिए शरीर में यह खून की कमी व कुपोषण को दूर करने में सहायता करता है. वहीं ज्वार शरीर की हड्‌डियों के लिए अच्छी मात्रा में कैल्शियम, खून के लिए फौलिक एसिड के अलावा कई अन्य पोषक तत्व प्रदान करता है. इसी तरह से रागी एकमात्र ऐसा मोटा अनाज है, जिस में कैल्शियम की मात्रा भरपूर पाई जाती है.

आकर्षक मटके वाली पैकिंग

किसान राममूर्ति मिश्र मोटे सांवा और मडुआ के चावल को पारंपरिक रूप से खूबसूरत मटकों में पैक कर के बेचते हैं, जो देखने में काफी आकर्षक होने के साथ ही उस के मूल गुणों को बनाए रखने में भी काफी कारगर है.

राममूर्ति मिश्र द्वारा मटके में की जा रही मोटे अनाजों की पैकिंग की काफी मांग बनी हुई है. उन्होंने इस साल जितना मोटा अनाज पैदा किया था, उसे बेच कर उन्होंने तकरीबन 78 हजार रुपए की आमदनी प्राप्त की.

समन्वित खेती को दें बढ़ावा – डा. किरोड़ी लाल मीणा

जयपुर : 23 जनवरी,2024. कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने कहा कि किसान मेला एक महत्वपूर्ण अवसर है, जहां किसान नवीनतम कृषि तकनीकी उपकरणों और योजनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं. वे कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर में आयोजित तीनदिवसीय किसान मेले के समापन समारोह को संबोधित कर रहे थे.

उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि किसान मेलों से हमें अपनी खेती को बेहतर बनाने और उन्नति के मार्ग पर बढ़ने मे मदद मिलती है.

जैविक खेती की तरफ बढ़े किसान

खेती में कैमिकल छिड़काव के उपयोग को कम करने के लिए किसानों को जैविक एवं प्राकृतिक खेती की ओर अग्रसर होना चाहिए. साथ ही किसानों की आय बढ़ाने के लिए उन्होंने समन्वित खेती प्रणाली को बढ़ावा देने की आवश्यकता जताई.

कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने विश्वविद्यालय द्वारा वर्षा जल संरक्षण हेतु किए जा रहे कामों की प्रशंसा करते हुए पूरे देश में अनुकरणीय बताया.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि जोबनेर विश्वविद्यालय ने कृषि क्षेत्र में विभिन्न गतिविधियों एवं नवाचारों के माध्यम से प्रदेश के कृषि विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

डा. किरोडी लाल मीणा ने किसानों को विश्वास दिलाया कि वे कृषि में विकास हेतु हर संभव प्रयास करेंगे. राजस्थान को इजराइल के समकक्ष मरू प्रदेश बताते हुए उन्होंने इजराइल की नव तकनीकी को अपनाने के लिए किसानों, वैज्ञानिकों और कृषि अधिकारियों को इजराइल के किसानों के फार्म पर अवलोकन व प्रशिक्षण के लिए योजना बनाने का आह्वान किया.

कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा ने किसान मेले में कृषि प्रदर्शनियों का अवलोकन किया. उन्होंने सभी स्टाल के अवलोकन के दौरान वैज्ञानिकों, अधिकारियों और प्रदर्शनी आयोजकों से किसान के रूप में नवीन तकनीकी जानकारी प्राप्त की.

उन्होंने किसान मेले की प्रशंसा करते हुए कहा कि किसान मेला किसानों एवं कृषि वैज्ञानिकों को एक मंच पर लाने का काम करता है. विश्विद्यालय द्वारा तीनदिवसीय कृषि मेले का आयोजन करना एक अनूठी पहल है. इस मेले से किसानों को कृषि वैज्ञानिकों द्वारा कृषि से संबंधित महत्पूर्ण जानकारियां प्राप्त करने का मौका मिलता है.

कुलपति डा. बलराज सिंह ने विश्विद्यालय द्वारा कृषि अनुसंधान, प्रसार एवं शिक्षा के लिए किए जा रहे कामों की जानकारी देते हुए कृषि नवाचारों को किसानों तक त्वरित पहुंचाने के उद्देश्य से किसान मेले की उपयोगिता बताई.

कुलपति डा. बलराज सिंह ने कृषि मंत्री डा. किरोड़ी लाल मीणा को राजस्थान में कृषि के साथ उद्यानिकी में उज्ज्वल भविष्य की संभावनाओं को ध्यान में रखते हुए दुर्गापुरा में उद्यानिकी महाविद्यालय को शीघ्र विकसित करने का विश्वास दिलाया.

उन्होंने आगे यह भी बताया कि इस तीनदिवसीय किसान मेले में 15,000 से अधिक किसानों ने भागीदारी निभाई, जिस में बड़ी तादाद में महिला किसान भी शामिल हैं. इस के अलावा विभिन्न विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालय के छात्रछात्राओं ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया और नवाचारों से रूबरू हुए. किसान मेले में तकरीबन सौ से अधिक कृषि प्रदर्शनियां लगाई गईं.

कार्यक्रम के दौरान प्रसार शिक्षा निदेशालय की फार्म टैक एशिया कृषि स्मारिका 2024 का विमोचन भी किया गया.

किसानों के लिए हितकारी योजनाएं

बस्ती: उपकृषि निदेशक, बस्ती की अध्यक्षता में ‘किसान दिवस’ बैठक का आयोजन विकास भवन सभागार में किया गया, जिस में जनपद के विभिन्न विभागों के अधिकारियों एवं उन के प्रतिनिधियों के साथ ही प्रगतिशील किसानों ने प्रतिभाग किया.

सब से पहले उपकृषि निदेशक, बस्ती द्वारा ‘किसान दिवस’ बैठक की कार्यवाही शुरू की गई, जिस में पिछले ‘किसान दिवस’ में आई शिकायतों के निस्तारण की स्थिति संबंधित अधिकारियों द्वारा किसानों को विस्तार से बताई गई.

गेहूंसरसों फसल पर दी जानकारी

कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया के वैज्ञानिक डा. वीबी सिंह ने बताया कि सरसों के बीज का शोधन डीएपी0से यदि की गई है, तो वह फसल अच्छी होती है.

उन्होंने बताया कि किसान अपने फसलों में पोटाश/नैनो यूरिया/डीएपी यदि संभव हो, तो इफको का ही प्रयोग करें. गेहूं व सरसों में जल विलेय उर्वरक 18:18:18 या 19:19:19 प्रति एकड़ में 2 किलोग्राम छिड़काव पानी में मिला कर करें और जब गेहूं रेड़े या दाने आना शुरू हों, तब 0-0-50-0 डालना चाहिए.

वैज्ञानिक डा. वीबी सिंह ने बताया कि गेहूं सामान्य मिट्टी में कम से कम 3 बार सिंचाई अवश्य करनी चाहिए और सरसों में हर 65 दिन पर सिंचाई करने से पैदावार बढ़ती है.

समय पर गन्ना भुगतान

मुंडेरवा चीनी मिल के मुख्य गन्ना प्रबंधक कुलदीप द्विवेदी ने बताया कि पिछले वर्ष का समस्त गन्ना मूल्य भुगतान मिल द्वारा कर दिया गया है. वर्तमान वित्तीय वर्ष में 31 दिसंबर, 2023 तक का भी भुगतान कर दिया गया है एवं 10 जनवरी, 2024 तक का गन्ना मूल्य भुगतान 22 जनवरी, 2024 तक कर दिया जाएगा.

समय पर करें बिजली बिल का भुगतान

अधिशाषी अभियंता, विद्युत वितरण खंड-3 के महेंद्र कुमार मिश्रा ने बताया कि ऐसे जो एकमुश्त समाधान योजना का लाभ नहीं ले सके हैं और उन का बिल 10000 रुपए से अधिक है, वह बिना देरी किए अपने बकाया बिल का भुगतान कर दें, अन्यथा की स्थिति में प्रर्वतन दल द्वारा अभियान चलाया जा रहा है, जिस में लाइन का विच्छेदन भी किया जा सकता है. वर्तमान में कुल 1,42,000 घरेलू उपभाक्ताओं का बिजली बिल 10000 रुपए से ज्यादा है.

रेशम कीट उत्पादन पर जानकारी

सहायक निदेशक, रेशम नीतेश सिंह ने बताया कि रेशम कीट उत्पादन की साल में 4 फसलें ली जा सकती हैं, जिस से किसान कम से कम 40-45 हजार शून्य लागत में अतिरक्ति आमदनी कर सकते हैं.

उन्होंने आगे बताया कि सहतूत के पौधे फ्री में मिलते हैं और इन्हें खेतों के चारों तरफ मेंड़ों पर लगा कर अच्छी आमदनी की जा सकती है. वर्तमान में ’’सिल्क समग्र’’ योजना संचालित है, जिस में जो किसान अधिक उत्पादन करते हैं, उन्हें विभाग द्वारा प्रोत्साहन के रूप में शेरी कल्चर गृह बनाने पर अनुदान दिया जाता है और बंगाल एवं मैसूर में प्रशिक्षण भी कराया जाता है. रेशम कीटपालन करने से बिना लागत के अतिरिक्त आय अर्जित की जा सकती है.

’’प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’’ पर दी जानकारी

अधिकारी,मत्स्य संदीप कुमार वर्मा ने बताया कि यदि मछलीपालन का कार्य व्यावसायिक रूप से किया जाए, तो इस से अच्छी आमदनी की जा सकती है. वर्तमान समय में ’’प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना’’ संचालित है, जिस में तालाब निर्माण के लिए 1/2 हेक्टेयर से ले कर 2 हेक्टेयर तक किया जा सकता है. 11 लाख रुपए की परियोजना लागत पर महिला/ अनुसूचित जाति को 60 फीसदी एवं अन्य को 40 फीसदी अनुदान देय है. इस समय मछलीपालन नई तकनीक से सीमेंटेड टैंक बनवा कर किया जाता है, जिस पर साढ़े 7 लाख से ले कर 50 लाख रुपए तक की परियोजना लागत पर विभाग द्वारा अनुदान दिया जाता है. साथ ही, इस के विपणन के लिए छोटे से ले कर बड़े किसानों को साइकिल/मोटरसाइकिल/3 व्हीलर एवं रेफ्रिजरेटर वैन विभाग द्वारा दिया जाता है.

पाले से करें फसल बचाव

जिला कृषि रक्षा अधिकारी ने बताया कि इस समय शीतलहर चल रही है एवं फसलों में पाला लगने की संभावना बनी हुई है, इस से बचने के लिए शाम के समय बोरिंग से सिंचाई की जाए, तो जमीन का तापमान 3 से 4 डिगरी बढ़ जाता है, क्योंकि ओस की बूंदें जम कर बर्फ में बदल जाती हैं. इस से बचाव के लिए खेत के उत्तरपश्चिम दिशा में आग जलाने से तापमान में वृद्धि की जा सकती है. खेतों में सल्फ्यूरिक एसिड का छिड़काव प्रति लिटर 1,000 लिटर पानी में मिला कर किया जा सकता है.

माहू की करें रोकथाम

उन्होंने आगे यह भी बताया कि जब धूप निकलना शुरू हो, तो माहू का प्रकोप फसलों पर होना शुरू हो जाएगा और धूप के कारण माहू सीधे बच्चे देना शुरू कर देते हैं, जिस से 2-3 दिन में ही कीड़े फसलों का रस चूस लेते हैं, इस से बचाव के लिए सामान्य कीटनाशक का प्रयोग किया जा सकता है.

यदि कीटनाशक का प्रयोग न करना हो, तो काली मिर्च एवं लाल मिर्च पाउडर पानी में घोल कर या नीम तेल का छिड़काव किया जा सकता है. यदि खेत में पाला लग गया है, तो यूरिया एवं डीएपी का छिड़काव किया जा सकता है.

जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने किसानों से अपील की कि रसायनों का कम से कम प्रयोग करें. यदि खेती से संबंधित कोई समस्या आती है, तो कृषि विभाग द्वारा संचालित सहभागी फसल निगरानी या निदान प्रणाली भी कहते हैं, पर फोन/व्हाट्सअप/मैसेज द्वारा समस्या का समाधान 24 से 48 घंटे के भीतर कर दिया जाता है, जिस का नंबर 9452257111 या 9452247111 है.

कृषि यंत्र खरीदने वाले किसानों के लिए जानकारी

उपसंभागीय कृषि प्रसार अधिकारी हरेंद्र प्रसाद ने बताया कि जिन किसानों के यंत्रों का टोकन कंफर्म हो गया है, वह अपने बिल/वाउचर पोर्टल पर अपलोड कर दें. 17 जनवरी, 2024 का सोलर पंप के लक्ष्य के अंदर समस्त टोकन कंफर्म कर दिए गए हैं. किसान बाकी की धनराशि टोकन जनरेट कर के औनलाइन/औफलाइन जमा कर सकते हैं.

अन्त में उप एलकृषि निदेशक ने द्वारा उपस्थित सदस्यों/किसानों को ‘किसान दिवस’ में प्रतिभाग करने के लिए धन्यवाद ज्ञापित कर किसान दिवस का समापन की घोषणा की गई.

स्पिरुलिना की व्यावसायिक खेती

हमारे देश के ज्यादातर किसान पारंपरिक खेती पर निर्भर हैं, जिस से उन्हें अपेक्षा के अनुरूप फायदा नहीं मिल पाता है. पारंपरिक खेती पर निर्भर रहने वाले किसानों के लिए मौसम की अनिश्चितता भी बड़ी समस्या है. खादबीज की समय से उपलब्धता न हो पाना भी किसानों के लिए खेती में नुकसान की एक बड़ी वजह बन जाता है. पारंपरिक फसलों का मूल्य भी व्यावसायिक की अपेक्षा बहुत कम होता है, जिस से किसान निराशा का शिकार हो कर खेती से धीरेधीरे दूर होते जा रहे हैं. ऐसे में किसानों को पारंपरिक फसलों के साथ ही कुछ ऐसी फसलों की खेती की तरफ कदम बढ़ाना होगा, जिस का बाजार मूल्य और मांग दोनों अच्छे हों.

ऐसी ही एक व्यावसायिक फसल की खेती कर किसान अच्छीखासी आमदनी हासिल कर सकते हैं, जिसे स्पिरुलिना के नाम से जाना जाता है. यह एक तरह का जीवाणु है, जिसे साइनोबैक्टीरियम के नाम से भी जाना जाता है.

आमतौर पर इसे हम ‘शैवाल’ भी कह सकते हैं. यह एक प्रकार की जलीय वनस्पति है, जो  झीलों,  झरनों और खारे पानी में आसानी से पैदा होती है. प्राकृतिक रूप से यह समुद्र में पाई जाती है. इस का रंग हरा व नीला होता है.

व्यावसायिक लेवल पर इस की खेती प्लास्टिक या सीमेंट के टैंक बना कर भी की जा सकती है. यह पोषण के सब से महत्त्वपूर्ण तत्त्वों में शामिल किया जा सकता है, क्योंकि इस में ऐसे कई महत्त्वपूर्ण तत्त्व मौजूद होते हैं, जो हमें बीमारियों से बचाते हैं. साथ ही, इस में कई तरह के विटामिंस, खनिज और पोषक तत्त्व के साथसाथ प्रोटीन की भरपूर मात्रा पाई जाती है. यह पोटैशियम, कैल्शियम सेलेनियम और जिंक का भी महत्त्वपूर्ण स्रोत है. कई देशों में इसे ‘सुपर फूड’ के नाम से भी जाना जाता है.

सेहत के लिए फायदेमंद : स्पिरुलिना की खेती किसानों के लिए इसलिए ज्यादा फायदेमंद मानी जा सकती है, क्योंकि यह सेहत और पोषण के लिए सब से मुफीद माना जाता है. इस का खाने में उपयोग करने से रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है, साथ ही, शरीर में कोलेस्ट्रौल की मात्रा को संतुलित रखता है. इस का उपयोग दिल के लिए भी अच्छा होता है.

अगर स्पिरुलिना का सेवन नियमित रूप से किया जाए तो यह सांस संबंधी बीमारी और एलर्जी से भी बचाता है. इस का उपयोग कैंसर की संभावनाओं को भी कम करता है. यह पाचन तंत्र और दिमागको भी मजूबत बनाता है.

स्पिरुलिना का खाने में उपयोग शरीर में खून की कमी को दूर करता है. यह मांसपेशियों को मजबूती देने के साथ शरीर में शुगर की मात्रा को भी नियंत्रित करता है. इसीलिए ढेर सारे गुणों को समेटे स्पिरुलिना की मांग न केवल देश में, बल्कि विदेशों में भी खूब है. इस नजरिए से कोई भी किसान अगर इस की खेती करता है, तो उसे मार्केटिंग के लिए परेशान नहीं होना पड़ता है.

स्पिरुलिना को खाने के लिए पाउडर के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. इस में आयरन,  ओमेगा 6 , ओमेगा 3 फैटी एसिड, प्रोटीन, विटामिन बी 1, विटामिन बी 2, विटामिन बी 3, कौपर,  मैंगनीज, पोटैशियम और मैगनीशियम जैसे महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्वों की प्रचुर मात्रा उपलब्ध होती है.

खेती के लिए अनुकूल दशा : स्पिरुलिना की व्यावसायिक खेती के लिए गरम मौसम का होना जरूरी है. भारत में ठंड के मौसम में इस की खेती नहीं की जा सकती.

अगर किसान चाहते हैं कि स्पिरुलिना की फसल में ज्यादा प्रोटीन की मात्रा हासिल करें, तो उस के लिए सामान्य धूप होना जरूरी है यानी तापमान 30 से 35 डिगरी सैल्सियस के बीच हो.

आजकल तापमान का पता लगाने के लिए कई तरह के मोबाइल ऐप उपलब्ध हैं, जिन्हें हम अपने मोबाइल फोन में आसानी से इंस्टौल कर जानकारी ले सकते हैं. कम तापमान की दशा में स्पिरुलिना की क्वालिटी और उत्पादन दोनों प्रभावित हो सकते हैं.

Sprilunaखेती के लिए पानी का टैंक या तालाब तैयार करना : स्पिरुलिना शैवाल की खेती को खुले तालाबों में करना न केवल कठिन होता है, बल्कि इस से क्वालिटी और उत्पादन दोनों ही प्रभावित होते हैं. इस के लिए किसान कंकरीट या प्लास्टिक की पन्नियों से टैंक तैयार कर सकते हैं.

शुरुआती दौर में कम लागत से स्पिरुलिना शैवाल की खेती शुरू करने के लिए पौलीथिन का गड्ढा भी तैयार किया जा सकता है. कंकरीट या पौलीथिन से तैयार किए गए गड्ढे का उत्तम आकार लंबाईचौड़ाई 10×20 फुट का हो सकता है और गहराई 2-3 फुट तक हो सकती है. गड्ढों को प्रदूषण के प्रभाव से बचाने के लिए पौली पैक में भी बनाया जा सकता है.

खेती शुरू करना : कंकरीट या पौलीथिन से तैयार गड्ढे यानी टैंक में 20 से 30 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक पानी भर दिया जाता है. गड्ढे में पानी भरते समय यह ध्यान रखें कि उस में भरा जाने वाला पानी गंदा न हो. चूंकि गरम तापमान में इस की खेती की जाती है. ऐसे में गड्ढा खुले होने के चलते पानी का वाष्पीकरण भी होता रहता है, जिस से गड्ढे में पानी की मात्रा कम हो सकती है, इसलिए गड्ढे में 20 से 30 सैंटीमीटर की ऊंचाई तक पानी की भराई करते रहना चाहिए.

पानी के गड्ढे में स्पिरुलिना के बीज व कल्चर डालने के पहले पानी में पीएच मान की संतुलित मात्रा का निर्धारण किया जाता है.

पीएच का मतलब होता है पानी में हाइड्रोजन की क्षमता या पोटैंशियल हाइड्रोजन. इस से पानी की गुणवत्ता का निर्धारण भी किया जाता है. पानी में स्पिरुलिना बीज डालने के पहले पानी में पीएच की आदर्श मात्रा 9 से 11 के बीच होना जरूरी है. इस की जांच के लिए बाजार में मामूली कीमत पर पीएच पेपर मुहैया होता है. इस के जरीए पानी में पीएच की मात्रा का निर्धारण किया जा सकता है.

इस के अलावा गड्ढे में उपलब्ध पानी की मात्रा के अनुसार प्रति लिटर पानी में 8 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट यानी खाने वाले सोडे़ का घोल मिलाते हैं. पानी में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों का घोल या कल्चर भी मिलाया जाता है. इस में एक किलोग्राम स्पिरुलिना के बीज के साथ 8 ग्राम सोडियम बाई कार्बोनेट, 5 ग्राम सोडियम, 0.2 ग्राम यूरिया, 0.5 ग्राम पोटैशियम सल्फेट, 0.16 मैगनीशियम सल्फेट, 0.052 मिलीलिटर फास्फोरिक एसिड और 0.05 मिलीलिटर फेरस सल्फेट पानी से भरे टैंक में मिलाए जाते हैं. इस पानी को डंडे की मदद से रोज हिलाया जाना चाहिए. इसे तैयार करने में एक हफ्ते का समय लगता है.

किसान उक्त रसायनों के घोल की मात्रा के निर्धारण में आने वाली परेशानियों से बचने के लिए औनलाइन भी संतुलित मात्रा का पैकेट खरीद सकते हैं. जब गड्ढे में स्पिरुलिना की खेती योग्य पानी तैयार हो जाए, तो इस में स्पिरुलिना कल्चर और 10 लिटर पानी के हिसाब से 30 ग्राम शुष्क स्पिरुलिना का बीज डाला जाता है.

स्पिरुलिना की  खेती के लिए व्यावसायिक लेवल पर इस के बीज को किसानों को खुद ही अलग गड्ढे में तैयार करते रहना चाहिए. इस से बीज के ऊपर आने वाली लागत को कम किया जा सकता है.

पानी को क्रियाशील बनाना : जिस गड्ढे में स्पिरुलिना की खेती की जाती है, उस का क्रियाशील होना जरूरी है, इसलिए पानी को क्रियाशील बनाए रखने के लिए उस में बिजली या सोलर से चलने वाले आटोमैटिक पैडल या डंडे द्वारा पानी को फेंटते रहना चाहिए. इस से स्पिरुलिना जीवाणु कल्चर के साथ क्रियाशील हो कर अच्छा उत्पादन देता है. पानी के फेंटने के चलते स्पिरुलिना की फसल को पर्याप्त मात्रा में धूप भी मिलती  है.

फसल को सुखाना : स्पिरुलिना के गीले कल्चर को प्रतिदिन साफ कपडे़ से छान लिया जाता है. इस के बाद इस में उच्च गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए इसे किसी छायादार बंद कमरे में फैला कर सुखाया जाता है. सूखा होने पर स्पिरुलिना कई महीनों तक चल जाएगी और इस में पोषक तत्त्व भी संरक्षित किया जा सकता है. इस की तैयार फसल को नैचुरल तरीके से सुखाने के लिए मशीनें भी उपलब्ध हैं. इस का उपयोग कर फसल को सुखाया जा सकता है.

जब स्पिरुलिना पर्याप्त मात्रा में सूख जाती है, तो इसे पीस कर चूर्ण या कैप्सूल के लिए तैयार कर लिया जाता है. इस तरह स्पिरुलिना के तैयार उत्पाद को वायुरोधी पैकिंग में पैक कर 3 से 4 साल तक पौष्टिक गुणों के साथ महफूज रखा जा सकता है.

Sprilunaलागत, उत्पादन व लाभ : स्पिरुलिना की खेती के लिए अगर कंकरीट का गड्ढा तैयार किया जाता है, तो 10×20 फुट आकार के गड्ढे पर तकरीबन 20,000 से 30,000 रुपए की लागत आती है. इस के अलावा प्लांट के लिए मशीनरी, कैमिकल वगैरह पर 20 गड्ढों कीलागत समेत एक बार में लगभग 7 से 8 लाख रुपए की लागत आती है.

एक बार पूंजी लगाने के बाद प्रत्येक गड्ढों से औसतन 2 किलोग्राम गीली कल्चर हर दिन पैदा होता है. इस तरह एक किलोग्राम गीले स्पिरुलिना के लगभग 100 ग्राम शुष्क पाउडर मिल जाता है. इस के आधार पर औसतन 20 टैंक स्पिरुलिना फार्मिंग से प्रतिदिन 4-5 किलोग्राम सूखा स्पिरुलिना पाउडर मिलता है.

इस तरह से एक महीने में स्पिरुलिना का उत्पादन 100 से 130 किलोग्राम तक हासिल होता है. इस तरह से अगर सूखे स्पिरुलिना की बिक्री थोक दर पर लगभग 600 रुपए प्रति किलोग्राम होती है, तो आसानी से एक किसान हर माह तकरीबन 40-45 हजार रुपए  की आमदनी हासिल कर सकता है.

हाईब्रिड मोड में मत्स्यपालन और ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस

नई दिल्ली: मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री परषोत्तम रूपाला ने पूसा, नई दिल्ली में हाईब्रिड मोड (Hybrid Mode)  में मत्स्यपालन ( Fisheries ) और ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस (Aquaculture Insurance)  पर राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता की. केंद्रीय मंत्री परषोत्तम रूपाला ने कुछ लाभार्थियों को समूह दुर्घटना बीमा योजना (जीएआईएस) ( Group Accident Insurance Scheme) के चैक भी बांटे. इस अवसर पर मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी, संयुक्त सचिव सागर मेहरा और नीतू कुमारी प्रसाद भी उपस्थित थे.

अपने संबोधन में मंत्री परषोत्तम रूपाला ने सभी हितधारकों से वेसल्स इंश्योरैंस योजनाओं के लिए दिशानिर्देश तैयार करने के लिए अपने सुझाव और इनपुट के साथ आगे आने का आह्वान किया. साथ ही, उन्होंने कहा कि ग्रुप ऐक्सीडेंट इंश्योरैंस स्कीम (जीएआईएस) काफी सफल रही है और इसी तरह की सफलता को मछुआरा समुदाय के बीच फसल बीमा और वेसल्स बीमा के लिए भी इस्तेमाल होना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि नई योजनाएं बनाते समय जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न मुद्दों को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

उन्होंने सम्मेलन के आयोजन के लिए विभाग की सराहना की, जो सभी हितधारकों को संवेदनशील बनाने में काफी मददगार साबित होगा. मंत्री परषोत्तम रूपाला ने बीमा लाभार्थियों से भी बात की और उन की प्रतिक्रिया ली.

मत्स्यपालन विभाग के सचिव डा. अभिलक्ष लिखी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि विभाग जापान और फिलीपींस जैसे अन्य देशों में मछुआरों के लिए सफल बीमा मौडल का अध्ययन करेगा और उन के अनुभवों को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार अनुकूलित किया जाएगा.

डा. अभिलक्ष लिखी ने यह भी रेखांकित किया कि सरकार कंपनियों से वेसल्स बीमा योजनाओं को बढ़ावा दे रही है और ऐसी योजनाओं के लिए सामान्य मापदंडों पर काम करने के लिए एक समिति बनाई गई है. उन्होंने आगे यह भी कहा कि मछुआरा समुदाय के साथ विश्वास की कमी को दूर करने के लिए फसल बीमा के तहत योजनाओं की समीक्षा की जा रही है.

सचिव अभिलक्ष लिखी ने उल्लेख किया कि ग्रुप ऐक्सीडैंट इंश्योरैंस स्कीम (जीएआईएस) ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना‘ (पीएमएमएसवाई) के तहत सब से पुरानी और सब से कामयाब योजना है.

ऐक्वाकल्चर और वेसल्स बीमा सम्मेलन में बीमा के साथसाथ मत्स्यपालन क्षेत्र के विभिन्न हितधारकों को शामिल किया गया. कार्यक्रम का उद्देश्य मत्स्यपालन बीमा से संबंधित सभी हितधारकों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना, सहयोगी पहल, सर्वोत्तम प्रथाओं और इनोवेशंस को प्रोत्साहित करना, अनुसंधान और विकास में लक्ष्य निर्धारित करना, किसानों और मछुआरों को प्रभावशाली अनुभवों एवं सफलता की कहानियों के माध्यम से बीमा कवरेज अपनाने के लिए प्रेरित करना और जागरूकता बढ़ा कर मत्स्य समुदाय के भीतर ऐक्वाकल्चर बीमा अपनाने की दर को बढ़ावा देना है.

मछुआरों और मछलीपालन करने वाले किसानों के हितों की सुरक्षा के बारे में जागरूकता पैदा करने और मत्स्यपालन क्षेत्र, बीमा कंपनियों, बीमा मध्यस्थों और वित्तीय संस्थानों में विभिन्न हितधारकों के साथ उत्पादक विचारविमर्श करने की आवश्यकता को पहचानते हुए मत्स्यपालन विभाग ने इस राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया. कार्यक्रम में विचारविमर्श एक व्यापक कार्यान्वयन ढांचे, सहयोगात्मक प्रयास और अभिनव समाधान (प्रोत्साहन, उत्पाद नवाचार इत्यादि) विकसित करने में सहायता करेगा, जो मछुआरों और जलीय कृषि किसानों के लिए बीमा पैकेज को अधिक किफायती और आकर्षक बना सकता है.
एफएओ के अधिकारियों, सीएमएफआरआई और सीआईबीए के वैज्ञानिकों, आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, ओरिएंटल इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड, मत्स्यफेड, केरल और द न्यू इंडिया इंश्योरैंस कंपनी लिमिटेड के प्रतिनिधियों सहित उद्योग विशेषज्ञों और शोधकर्ताओं के साथ भी विचारविमर्श किया गया. किसानों और मत्स्य संघों ने ऐक्वाकल्चर इंश्योरैंस का लाभ उठाने में आने वाली चुनौतियों से संबंधित अपने अनुभव साझा किए.

 

Fisheries

 

सम्मेलन में इन मुद्दों पर हुई चर्चा

– मत्स्यपालन में बीमा के माध्यम से जोखिम को न्यूनतम करना.
– भारत में जलीय कृषि और वेसल्स बीमा की कमियां, चुनौतियां और संभावनाएं.
– विभिन्न बीमा उत्पाद और उन की विशेषताएं, जिन्हें मत्स्यपालन क्षेत्र में लागू किया जा सकता है.
– मत्स्यपालन के लिए फसल बीमा में क्षतिपूर्ति आधारित और सूचकांक आधारित बीमा अवसर.
– मत्स्यपालन में पुनर्बीमा की भूमिका.
– मत्स्यपालन क्षेत्र में सूक्ष्म बीमा की भूमिका.
– न्यूनतम परेशानी में त्वरित दावा निबटान प्रक्रिया के लिए सर्वोत्तम अभ्यास.

सम्मेलन में भाग लेने वालों में मछली किसान और मछुआरे, मत्स्यपालन सहकारी समितियां और उत्पादक कंपनियां, मत्स्यपालन प्रबंधन में शामिल राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के सरकारी अधिकारी, शोधकर्ता और शिक्षाविद, केवीके, बीमा कंपनियां और वित्तीय संस्थान, ट्रेसेबिलिटी और प्रमाणन सेवा प्रदाता आदि शामिल थे. इस के अलावा संबंधित ग्राम पंचायतों, कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके), मत्स्यपालन विश्वविद्यालयों और कालेजों, राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के डीओएफ अधिकारियों ने भी वीसी (वीडियो कौंफ्रैंसिंग) के माध्यम से इस में भाग लिया. सम्मेलन में कुल 300 (फिजिकल-100 एवं वर्चुअल-200) प्रतिभागी शामिल हुए.

मत्स्यपालन और जलीय कृषि भोजन, पोषण, रोजगार, आय और विदेशी मुद्रा के महत्वपूर्ण स्रोत हैं. यह क्षेत्र प्राथमिक स्तर पर 3 करोड़ से अधिक मछुआरों और मछली किसानों और मूल्य श्रंखला के साथ कई लाख से अधिक मछुआरों और मछली किसानों को आजीविका, रोजगार एवं उद्यमशीलता प्रदान करता है. वैश्विक मछली उत्पादन में तकरीबन 8 फीसदी हिस्सेदारी के साथ भारत तीसरा सब से बड़ा मछली उत्पादक देश है. पिछले 9 वर्षों के दौरान भारत सरकार ने देश में मत्स्यपालन और जलीय कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए परिवर्तनकारी पहल की है.

भारत की अर्थव्यवस्था में मत्स्यपालन क्षेत्र एक महत्वपूर्ण योगदान करने वाला है, जो लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है. इस क्षेत्र में सतत और जिम्मेदार विकास को बढ़ाने के लिए, भारत सरकार ने मई, 2020 में ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना‘ (पीएमएमएसवाई) की शुरुआत की. इस पहल का उद्देश्य मछली उत्पादन, बाद के बुनियादी ढांचे, ट्रेसेबिलिटी में महत्वपूर्ण अंतराल को संबोधित कर के और मछुआरों का कल्याण सुनिश्चित कर के एक ब्लू रैवोल्यूशन को उत्प्रेरित करना है.

राष्ट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड (एनएफडीबी) को बीमा योजनाओं सहित पीएमएमएसवाई कार्यान्वयन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में नामित किया गया है. इस के महत्व के बावजूद मत्स्यपालन क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं और बाजार में उतारचढ़ाव जैसी कमजोरियों का सामना करना पड़ता है, जो इस में शामिल लोगों की भलाई पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.

पारंपरिक मछुआरों को प्राकृतिक आपदाओं के दौरान मछली पकड़ने से जुड़े जोखिमों से बचाने की जरूरत है. इस दिशा में पीएमएमएसवाई के तहत मछली पकड़ने वाले जहाजों और समुद्री मछुआरों के बीमा कवर के लिए सहायता का प्रावधान किया गया है. हालांकि मैरीन संबंधी खतरे, पुराना बेड़ा और रखरखाव के मुद्दे, विनाशकारी घटनाएं आदि चुनौतियां भी सामने हैं.

भारत में जलीय कृषि विभिन्न जोखिमों जैसे बीमारियों, पीक सीजन की घटनाओं और बाजार में उतारचढ़ाव से भी घिरी रहती है. जलीय कृषि उद्योग की गतिशील प्रकृति के कारण इन जोखिमों का आकलन और प्रबंधन चुनौती भरा हो सकता है. किसानों ने पायलट ऐक्वाकल्चर फसल बीमा योजना में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई, क्योंकि यह केवल बुनियादी कवरेज प्रदान करती थी और बीमारियों सहित व्यापक कवरेज प्रदान नहीं करती थी.

बीमा कंपनियों के पास जलीय कृषि फसल के नुकसान पर लिगेसी डेटा नहीं है. हालांकि बीमा कंपनियां ऐक्वा फसलों के व्यापक कवरेज की उम्मीद करती हैं, लेकिन उत्पाद अधिक महंगा होने के कारण इस की स्वीकार्यता फिलहाल कम है. कई जल कृषि संचालकों को बीमा के लाभों के बारे में जानकारी नहीं हो सकती है या उपलब्ध उत्पादों के बारे में समझ की कमी हो सकती है. बीमा कंपनियों को पुनर्बीमा सहायता की बहुत जरूरत है.