भारत की विकास गाथा के स्तंभ छोटे किसान, छोटे उद्योग और महिलाएं

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली के प्रगति मैदान स्थित भारत मंडपम में मेगा फूड इवेंट ‘वर्ल्ड फूड इंडिया 2023’ के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया. उन्होंने स्वयं सहायता समूहों को मजबूत करने के लिए एक लाख से अधिक एसएचजी सदस्यों को बीज के लिए आर्थिक सहायता का भी वितरण किया. इस अवसर पर नरेंद्र मोदी ने प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को ‘दुनिया के खाद्य केंद्र’ के रूप में प्रदर्शित करना और साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मनाना है.

इस अवसर पर सभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रदर्शित प्रौद्योगिकी और स्टार्टअप मंडप और फूड स्ट्रीट की सराहना करते हुए कहा कि प्रौद्योगिकी और स्वाद का मिश्रण भविष्य की अर्थव्यवस्था का मार्ग प्रशस्त करेगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज के बदलते परिप्रेक्ष्‍य में खाद्य सुरक्षा की प्रमुख चुनौतियों में से एक का उल्‍लेख करते हुए विश्व खाद्य भारत 2023 के महत्व को रेखांकित किया.

एग्री इंफ्रा फंड के तहत लगभग 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वर्ल्ड फूड इंडिया के परिणाम भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को ‘सूर्योदय क्षेत्र’ के रूप में पहचाने जाने का एक बड़ा उदाहरण हैं. पिछले 9 वर्षों में सरकार की उद्योग समर्थक और किसान समर्थक नीतियों के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र ने 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आकर्षित किया है.

Vikas Gathaप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में पीएलआई योजना का उल्‍लेख करते हुए कहा कि यह उद्योग में नए उद्यमियों को बड़ी सहायता प्रदान कर रही है. उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि फसल कटाई के बाद के बुनियादी ढांचे के लिए एग्री इंफ्रा फंड के तहत हजारों परियोजनाओं पर काम चल रहा है, जिस में लगभग 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश है, जबकि मत्स्यपालन और पशुपालन क्षेत्र में प्रसंस्करण बुनियादी ढांचे को भी हजारों करोड़ रुपए के निवेश के साथ प्रोत्साहित किया जा रहा है.

कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13 फीसदी से बढ़ कर 23 फीसदी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार की निवेशक अनुकूल नीतियां खाद्य क्षेत्र को नई ऊंचाइयों पर ले जा रही हैं. पिछले 9 वर्षों में भारत के कृषि निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की हिस्सेदारी 13 फीसदी से बढ़ कर 23 फीसदी हो गई है, जिस से निर्यातित प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में कुल मिला कर 150 फीसदी की वृद्धि हुई है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि आज भारत कृषि उपज में 50,000 मिलियन अमरीकी डालर से अधिक के कुल निर्यात मूल्य के साथ 7वें स्थान पर है. साथ ही, उन्होंने आगे कहा कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां भारत ने अभूतपूर्व वृद्धि नहीं की हो.

उन्‍होंने आगे कहा कि यह खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से जुड़ी हर कंपनी और स्टार्टअप के लिए यह एक स्‍वर्णिम अवसर है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देते हुए कहा कि भारत के खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में तीव्र वृद्धि का कारण सरकार के निरंतर और समर्पित प्रयास रहे हैं. भारत में पहली बार कृषि निर्यात नीति के निर्माण, राष्ट्रव्यापी लौजिस्टिक्स और बुनियादी ढांचे के विकास, जिले को वैश्विक बाजारों से जोड़ने वाले 100 से अधिक जिला स्तरीय केंद्रों के निर्माण, मेगा फूड पार्कों की संख्या में 2 से बढ़ कर 20 से अधिक और भारत की खाद्य प्रसंस्करण क्षमता 12 लाख मीट्रिक टन से बढ़ कर 200 लाख मीट्रिक टन से अधिक हो गई है, जो पिछले 9 वर्षों में 15 गुना वृद्धि को दर्शाती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत से पहली बार निर्यात किए जा रहे उन कृषि उत्पादों का उदाहरण दिया, जिन में हिमाचल प्रदेश से काला लहसुन, जम्मू और कश्मीर से ड्रैगन फ्रूट, मध्य प्रदेश से सोया दूध पाउडर, लद्दाख से कार्किचू सेब, पंजाब से कैवेंडिश केले, जम्मू से गुच्ची मशरूम और कर्नाटक से कच्चा शहद शामिल हैं.

भारत में तेजी से हो रहे शहरीकरण को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों, स्टार्टअप और छोटे उद्यमियों के लिए अनछुए अवसरों के सृजन का जिक्र करते हुए पैकेज्ड फूड की बढ़ती मांग की ओर ध्यान आकर्षित किया. उन्होंने इन संभावनाओं का पूरा उपयोग करने के लिए महत्वाकांक्षी योजना की आवश्यकता पर बल दिया.

‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ओडीओपी जैसी योजनाएं छोटे किसानों को दे रही नई पहचान

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में भारत की विकास गाथा के तीन मुख्य स्तंभों छोटे किसान, छोटे उद्योग और महिलाओं का उल्‍लेख किया. उन्होंने छोटे किसानों की भागीदारी और मुनाफा बढ़ाने के लिए एक मंच के रूप में किसान उत्पादन संगठनों या एफपीओ के प्रभावी उपयोग की भी जानकारी दी.

उन्होंने आगे कहा कि हम भारत में 10 हजार नए एफपीओ बना रहे हैं, जिन में से 7 हजार पहले ही बन चुके हैं. उन्होंने किसानों के लिए बढ़ती बाजार पहुंच और प्रसंस्करण सुविधाओं की उपलब्धता का उल्‍लेख करते हुए कहा कि लघु उद्योगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में लगभग 2 लाख सूक्ष्म उद्यमों का संगठित किया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि ‘एक जिला एक उत्पाद’ यानी ओडीओपी जैसी योजनाएं भी छोटे किसानों और छोटे उद्योगों को नई पहचान दे रही हैं.

Vikas Gathaभारत में 9 करोड़ से अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं

भारत में महिलाओं के नेतृत्व वाले विकास मार्ग का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अर्थव्यवस्था में महिलाओं के बढ़ते योगदान पर प्रकाश डाला, जिस से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को लाभ हुआ है.

उन्होंने कहा कि आज भारत में 9 करोड़ से अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी हैं. हजारों वर्षों से भारत में खाद्य विज्ञान में महिलाओं के नेतृत्व का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में भोजन की विविधता और खाद्य विविधता भारतीय महिलाओं के कौशल और ज्ञान का परिणाम है.

उन्होंने कहा कि महिलाएं अचार, पापड़, चिप्स, मुरब्बा आदि कई उत्पादों का बाजार अपने घर से ही चला रही हैं. भारतीय महिलाओं में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का नेतृत्व करने की नैसर्गिक क्षमता है. महिलाओं के लिए हर स्तर पर कुटीर उद्योगों और स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा दिया जा रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर एक लाख से ज्यादा महिलाओं को करोड़ों रुपये की प्रारंभिक वित्तीय सहायता प्रदान करने का उल्‍लेख किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत में जितनी सांस्कृतिक विविधता है, उतनी ही खानपान विविधता भी है.

भारत की खाद्य विविधता दुनिया के हर निवेशक के लिए एक लाभांश है. भारत के प्रति बढ़ती जिज्ञासा को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि दुनियाभर के खाद्य उद्योग को भारत की खाद्य परंपराओं से बहुतकुछ सीखना है.

उन्होंने कहा कि भारत की दीर्घकालिक खाद्य संस्कृति उस की हजारों वर्षों की विकास यात्रा का परिणाम है. हजारों वर्षों में भारत की स्थायी खाद्य संस्कृति के विकास का उल्‍लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि भारत के पूर्वजों ने भोजन की आदतों को आयुर्वेद से जोड़ा था. आयुर्वेद में कहा गया है कि ‘ऋत-भुक’ यानी मौसम के अनुसार भोजन, ‘मित भुक’ यानी संतुलित आहार, और ‘हित भुक’ यानी स्वस्थ भोजन जैसी परंपराएं भारत की वैज्ञानिक समझ को दर्शाती हैं.

उन्होंने दुनिया पर भारत से खाद्यान्न, विशेषकर मसालों के व्यापार के निरंतर प्रभाव का भी उल्लेख किया. वैश्विक खाद्य सुरक्षा के बारे में विचार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को दीर्घकालिक और स्वस्थ भोजन आदतों के प्राचीन ज्ञान को समझने और लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने स्वीकार किया कि दुनिया साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मना रही है.

बाजरा भारत के ‘सुपरफूड बकेट’ का हिस्सा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि बाजरा भारत के ‘सुपरफूड बकेट’ का हिस्सा है और सरकार ने इस की पहचान श्रीअन्न के रूप में की है. भले ही सदियों से अधिकांश सभ्यताओं में बाजरा को बहुत प्राथमिकता दी गई थी, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि यह पिछले कुछ दशकों में भारत सहित कई देशों में इसे भोजन से बाहर कर दिया गया, जिस से वैश्विक स्वास्थ्य, दीर्घकालिक खेती के साथ ही अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है.

Vikas Gathaप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के प्रभाव की तरह ही दुनिया के कोनेकोने में श्रीअन्‍न के पहुंचने का भरोसा जताते हुए कहा कि भारत की पहल पर दुनिया में श्रीअन्‍न को ले कर जागरुकता अभियान शुरू किया गया है.

उन्होंने हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान भारत आने वाले गणमान्य व्यक्तियों के लिए बाजरा से बने व्यंजनों का उल्लेख किया और साथ ही, बाजार में बाजरा से बने प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की उपलब्धता का भी उल्लेख किया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस अवसर पर गणमान्य व्यक्तियों से श्रीअन्न की हिस्सेदारी बढ़ाने के तरीकों पर चर्चा करने और उद्योग एवं किसानों के लाभ के लिए एक सामूहिक प्रारूप तैयार करने का आग्रह किया.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि जी-20 समूह ने दिल्ली घोषणापत्र में दीर्घकालिक कृषि, खाद्य सुरक्षा और पोषण सुरक्षा पर जोर दिया है और खाद्य प्रसंस्करण से जुड़े सभी भागीदारों की भूमिका का उल्‍लेख किया गया है.

उन्होंने खाद्य वितरण कार्यक्रम को विविध खाद्य केंद्र के रूप में स्‍थापित करने और अंततः फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने पर जोर दिया.

साथ ही, उन्होंने प्रौद्योगिकी का उपयोग कर के बरबादी को कम करने पर भी बल दिया. उन्होंने बर्बादी को कम करने के लिए उत्पादों के प्रसंस्करण को बढ़ाने का आग्रह किया, जिस से किसानों को लाभ हो और कीमतों में उतारचढ़ाव को रोका जा सके.

अपने संबोधन का समापन करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के हितों और उपभोक्ताओं की संतुष्टि के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया.

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यहां निकाले गए निष्कर्ष दुनिया के लिए एक स्‍थायी और खाद्य सुरक्षित भविष्य की नींव रखेंगे.

इस अवसर पर केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री पीयूष गोयल, केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री पशुपति कुमार पारस, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह, केंद्रीय पशुपालन, डेरी और मत्स्यपालन राज्य मंत्री परशोत्तम रूपाला और केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल के साथसाथ अन्‍य गणमान्‍य उपस्थित थे.

इस मौके पर स्वयं सहायता समूहों को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक लाख से अधिक एसएचजी सदस्यों के लिए प्रारंभिक पूंजी सहायता वितरित की. इस समर्थन से एसएचजी को बेहतर पैकेजिंग और गुणवत्तापूर्ण विनिर्माण के माध्यम से बाजार में बेहतर मूल्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ल्ड फूड इंडिया 2023 के हिस्से के रूप में फूड स्ट्रीट का भी उद्घाटन किया. इस में क्षेत्रीय व्यंजन और शाही पाक विरासत को दिखाया जाएगा, जिस में 200 से अधिक शेफ भाग लेंगे और पारंपरिक भारतीय व्यंजन पेश करेंगे, जिस से यहां एक अनूठा पाक अनुभव हासिल करने का अवसर मिलेगा.

इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को ‘दुनिया के खाद्य केंद्र’ के रूप में प्रदर्शित करना और साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में मनाना है. यह सरकारी निकायों, उद्योग के पेशेवरों, किसानों, उद्यमियों और अन्य हितधारकों को चर्चा में शामिल होने, साझेदारी स्थापित करने और कृषि खाद्य क्षेत्र में निवेश के अवसरों का पता लगाने के लिए एक नेटवर्किंग और व्यापार मंच प्रदान करेगा. सीईओ गोलमेज सम्मेलन निवेश और कारोबार में आसानी पर केंद्रित होगा.

भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के नवाचार और क्षमता को प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न मंडप स्थापित किए जाएंगे. यह कार्यक्रम खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हुए 48 सत्रों की मेजबानी करेगा, जिस में वित्तीय सशक्तीकरण, गुणवत्ता आश्वासन और मशीनरी और प्रौद्योगिकी में नवाचारों पर जोर दिया जाएगा.

यह आयोजन प्रमुख खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के मुख्‍य कार्यकारी अधिकारियों सहित 80 से अधिक देशों के प्रतिभागियों की मेजबानी करने के लिए तैयार है. इस में 80 से अधिक देशों के 1200 से अधिक विदेशी खरीदारों के साथ एक रिवर्स बायरसेलर मीट की भी सुविधा होगी. नीदरलैंड भागीदार देश के रूप में कार्य करेगा, जबकि जापान इस आयोजन का मुख्‍य देश होगा.

25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से प्याज

नई दिल्ली : सरकार ने उपभोक्ताओं को खरीफ फसल की आवक में देरी के चलते प्याज की कीमतों में हाल में आई वृद्धि से बचाने के लिए 25 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमत पर बफर से प्याज की उत्साहवर्धक खुदरा बिक्री आरंभ की है.

यह घरेलू उपभोक्ताओं के लिए प्याज की उपलब्धता और निम्न लागत सुनिश्चित करने के लिए किए गए उपायों के अतिरिक्त एक और उपाय है, जैसे 29 अक्तूबर, 2023 से 800 डालर प्रति मीट्रिक टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाना, पहले से ही खरीदे गए 5.06 लाख टन के अतिरिक्त बफर खरीद में 2 लाख टन की वृद्धि और अगस्त के दूसरे सप्ताह से खुदरा बिक्री, ई- नीलामी और थोक बाजारों में थोक बिक्री के माध्यम से प्याज का निरंतर निबटान.

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने एनसीसीएफ, नाफेड, केंद्रीय भंडार और अन्य राज्य नियंत्रित सहकारी समितियों द्वारा प्रचालित खुदरा दुकानों और मोबाइल वैन के माध्यम से 25 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमत पर प्याज का उत्साहवर्धक निबटान आरंभ कर दिया है.

2 नवंबर तक नाफेड ने 21 राज्यों के 55 शहरों में स्टेशनरी आउटलेट और मोबाइल वैन सहित 329 रिटेल प्वाइंट स्थापित किए हैं. इसी तरह एनसीसीएफ ने 20 राज्यों के 54 शहरों में 457 रिटेल प्वाइंट स्थापित किए हैं.

केंद्रीय भंडार ने भी 3 नवंबर, 2023 से दिल्ली व एनसीआर में अपने खुदरा दुकानों के माध्यम से प्याज की खुदरा आपूर्ति शुरू कर दी है और सफल मदर डेयरी इस सप्ताहांत से आरंभ करेगी. तेलंगाना और अन्य दक्षिणी राज्यों में उपभोक्ताओं को प्याज की खुदरा बिक्री हैदराबाद कृषि सहकारी संघ (एचएसीए) द्वारा की जा रही है.

रबी और खरीफ फसलों के बीच मौसमी मूल्य अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए, सरकार बाद में निर्धारित और लक्षित रिलीज के लिए रबी प्याज की खरीद कर के प्याज बफर बनाए रखती है.

इस वर्ष साल 2022-23 में बफर आकार को 2.5 एलएमटी से बढ़ा कर 7 एलएमटी कर दिया गया है. अब तक 5.06 एलएमटी प्याज की खरीद की जा चुकी है और शेष 2 एलएमटी की खरीद जारी है.

सरकार द्वारा उठाए गए सक्रिय कदमों ने परिणाम प्रदर्शित करना आरंभ कर दिया है, क्योंकि बेंचमार्क लासलगांव बाजार में प्याज की कीमतें 28 अक्तूबर, 2023 को 4,800 रुपए प्रति क्विंटल से घट कर 3 नवंबर, 2023 को 3,650 रुपए प्रति क्विंटल हो गई, जो 24 फीसदी की गिरावट है. आगामी सप्ताह में खुदरा कीमतों में इसी तरह की गिरावट की उम्मीद है.

स्मरणीय है कि जब मानसून की बारिश और सफेद मक्खी के संक्रमण से आपूर्ति में व्यवधान के कारण जून, 2023 के आखिरी सप्ताह से टमाटर की कीमतें बढ़ गईं, तो सरकार ने कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्पादक राज्यों से एनसीसीएफ और एनएएफईडी के माध्यम से टमाटर खरीद कर युक्तिसंगत कदम उठाए और महाराष्ट्र व प्रमुख उपभोग केंद्रों में उपभोक्ताओं को अत्यधिक रियायती दर पर आपूर्ति की.

खरीदे गए टमाटर खुदरा उपभोक्ताओं को रियायती कीमतों पर बेचे गए. शुरुआत 90 रुपए प्रति किलोग्राम से हुई और धीरेधीरे कम हो कर 40 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई. खुदरा युक्तियों के माध्यम से टमाटर की खुदरा कीमतों को अगस्त के पहले सप्ताह के शीर्ष, अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य 140 रुपए प्रति किलोग्राम से घटा कर सितंबर, 2023 के पहले सप्ताह तक लगभग 40 रुपए प्रति किलोग्राम तक ला दिया गया.

अधिकांश भारतीय परिवारों के लिए दलहन पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं. आम घरों में दाल की उपलब्धता और रियायती कीमत सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने 1 किलोग्राम पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमतों पर भारत दाल लौंच की है. भारत दाल उपभोक्ताओं को खुदरा बिक्री के लिए और नाफेड, एनसीसीएफ, केंद्रीय भंडार, सफल और तेलंगाना और महाराष्ट्र में राज्य नियंत्रित सहकारी समितियों के माध्यम से सेना, सीएपीएफ और कल्याणकारी योजनाओं के लिए आपूर्ति के लिए कृषि उपलब्ध कराया जाता है.

अब तक 3.2 एलएमटी चना स्टाक रूपांतरण के लिए आवंटित किया गया है, जिस में से 75,269 मीट्रिक टन की मिलिंग की गई है और 59,183 मीट्रिक टन का आवंटन 282 शहरों में 3010 खुदरा बिंदुओं (स्टेशनरी आउटलेट मोबाइल वैन) के माध्यम से किया गया है.

देशभर में उपभोक्ताओं को 4 लाख टन से अधिक भारत दाल उपलब्ध कराने के लिए आने वाले दिनों में भारत दाल की आपूर्ति बढ़ाई जा रही है.

‘‘मशरूम उत्पादन तकनीक’’ पर प्रशिक्षण

बस्ती : कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, बस्ती पर आर्या योजना के अंतर्गत बेरोजगार नवयुवकों/युवतियों को गांव स्तर पर स्वरोजगार सृजन के उद्देश्य से ‘‘मशरूम उत्पादन तकनीक’’ विषय पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया.

प्रशिक्षण के अंतिम दिन मुख्य अतिथि भूमि संरक्षण अधिकारी डा. राज मंगल चौधरी ने प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार की मंशा है कि गांव स्तर पर बेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को रोजगार उपलब्ध कराए जाएं, जिस से कि उन के शहरों की ओर बढ रहे पलायन को रोका जा सके.

इसी उद्देश्य के तहत आम लोगों को मशरूम उत्पादन तकनीक का प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान किया जा रहा है, क्योंकि यह भूमिहीन व गरीब किसानों की आमदनी का जरीया है, इसे अपना कर वे स्वरोजगार सृजन कर सकते हैं.

इस अवसर पर उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त 20 प्रशिक्षनार्थियों को प्रमाणपत्र प्रदान किया गया.

Mushroomकोर्स के कोआर्डिनेटर एवं पौध सुरक्षा वैज्ञानिक डा. प्रेम शंकर ने अवगत कराया कि इस योजना के अंतर्गत बकरीपालन एवं मधुमक्खीपालन पर भी स्वरोजगार सृजन हेतु बेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को प्रशिक्षित किया जाएगा. साथ ही साथ बटन मशरूम की खेती की तकनीक की विस्तार से चर्चा की.

केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक, पशुपालन, डा. डीके श्रीवास्तव ने अपने संबोधन के दौरान प्रशिक्षार्थियों को पशुपालन से संबंधित जैसे बकरीपालन, मुरगीपालन, दुग्ध उत्पादन एवं बटन मशरूम की खेती में कंपोस्ट बनाने की तकनीक के बारे में जानकारी दी.

वैज्ञानिक डा. वीबी सिंह ने प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों को बताया कि बेरोजगार नवयुवक एवं युवतियां मशरूम उत्पादन कर कम लागत एवं कम स्थान में आसानी से दोगुनी आय अर्जित कर सकते हैं. साथ ही, बटन मशरूम, दूधिया मशरूम, ढिंगरी मशरूम पर विस्तृत जानकारी प्रदान की.

इस अवसर पर केंद्र के कर्मचारी निखिल सिंह, जेपी शुक्ल, बनारसी लाल, प्रिंस यादव, सूर्य प्रकाश सिंह, रंजन, राजू प्रजापति, जहीर, जितेंद्र पाल, आदित्य प्रताप सिंह आदि उपस्थित रहे.

जलवायु परिवर्तन में उन्नत कृषि तकनीकें अपनाएं

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के इंदिरा गांधी सभागार में “21वीं शताब्दी में कृषि का भविष्य” विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिस में मुख्य वक्ता के रूप में यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस, यूएसए के चांसलर डा. रोबर्ट जे. जौंस रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

इस व्याख्यान का आयोजन चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस, यूएसए द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.

मुख्य वक्ता डा. रोबर्ट जे. जौंस ने जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा व सतत कृषि विकास जैसे मुद्दों को चुनौतीपूर्ण बताया.

उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर जोर देते हुए कहा कि विश्व में बढ़ती आबादी के लिए जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव चिंतनीय हो सकते हैं. जलवायु परिवर्तन से हो रहे दुष्प्रभावों से निबटने के लिए न केवल पौलिसी प्लानर, बल्कि किसानों व आम जनता को भी सतर्क रहने की जरूरत है. कृषि क्षेत्र में उपयुक्त फसल, किस्म का चुनाव, कृषि पद्धतियों का सही इस्तेमाल व नवीनतम तरीके जलवायु परिवर्तन से निबटने में बेहतर भूमिका निभा सकते है. जलवायु परिवर्तन के परिवेश में छोटी जोत वाले किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए खाद्यान्न एवं पोषण की सुरक्षा व स्थिरता को बनाए रखना जरूरी है.

Climate Changeउन्होंने आगे बताया कि जलवायु परिवर्तन किसानों व वैज्ञानिकों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है. जलवायु परिवर्तन अब ग्लोबल वार्मिंग तक सीमित नही रहा, इस के मौसम में आने वाले अप्रत्याशित बदलाव जैसे आंधी, तूफान, सूखापन, बाढ़ इत्यादि शामिल है. असमय तापमान का बढऩा कृषि उत्पादन में प्रभाव डालता है, इसलिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए अनुकूल रणनीतियों जैसे कि बढ़ते तापमान व सूखापन के अनुकूल किस्में, मिट्टी की नमी का संरक्षण, पानी की उपलब्धता, रोगरहित किस्में, फसल विविधीकरण, मौसम का भविष्य आकंलन, टिकाऊ फसल उत्पादन प्रबंधन को अपनाने की आवश्यकता है.

आधुनिक तकनीकों से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना प्राथमिकता

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि तीव्र गति से बढ़ रही जनसंख्या की भोजन और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाना 21वीं सदी की एक प्रमुख चुनौती है. वैश्विक जलवायु परिवर्तन के खतरे ने वैज्ञानिकों में चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि इस से फसल उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होता है.

उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश में कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाता है, क्योंकि यह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14.1 फीसदी का योगदान देता है. यह क्षेत्र राज्य की लगभग 51 फीसदी कामकाजी आबादी को रोजगार भी प्रदान करता है. कृषि क्षेत्र की इस स्थिति में हरियाणा सरकार की किसान हितैषी नीतियों, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से तकनीकी सहायता और नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रदेश के किसानों की इच्छा का बहुत बड़ा योगदान है.

उन्होंने कृषि विकास के लिए भविष्य की योजना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा दृष्टिकोण पर्यावरण को संरक्षित करते हुए प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादकता क्षमता को बढ़ाने का है.

उन्होंने आधुनिक तकनीकों एवं नवाचारों का प्रयोग करते हुए खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना विश्वविद्यालय की प्राथमिकता बताया.

यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस के कृषि उपभोक्ता एवं पर्यावरण विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता जर्मन बालेरो ने कृषि से जुड़ी चुनौतियों जैसे फसल विविधीकरण, सतत कृषि विकास, उत्पादन में वृद्धि व पर्यावरण परिवर्तन पर चर्चा करते हुए कहा कि इन समस्याओं को प्राकृतिक खेती, कृषि से जुड़ी उच्च स्तरीय तकनीकें, उन्नत किस्में व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर हल किया जा सकता है.

उन्होंने आगे कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय व यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस द्वारा संयुक्त रूप से शोध कार्य कर भविष्य में कृषि के क्षेत्र में बदलाव लाया जा सकता है.

Climate Changeकृषि एवं जैविक इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. विजय सिंह ने बताया कि विश्व के सतत विकास के लिए पौष्टिक अनाज व नवीनीकरणीय ऊर्जा पर काम करने की जरूरत है. वहीं स्नाकोत्तर शिक्षा के अधिष्ठाता एवं आईडीपी के प्रमुख अन्वेशक डा. केडी शर्मा ने सभी का स्वागत किया, जबकि मंच संचालन डा. जयंति टोकस ने किया.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता डा. रोबर्ट जे. जौंस के साथ शिष्टमंडल में यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस के वरिष्ठ कार्यकारी सहकुलपति शोध एवं नवाचार मेलैनी लूट्स, कारपोरेट एवं आर्थिक विकास मामलों के कार्यकारी सहकुलपति प्रदीप खन्ना, वाइस प्रोवोस्ट फौर ग्लोबल अफेयर एंड स्ट्रेटजी रिटूमेटसे, कृषि एवं उपभोक्ता अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. मधु खन्ना, कंप्यूटर विज्ञान विभाग के प्रोफेसर
एवं एसोसिएट हेड महेश विश्वनाथन और ग्लोबल रिलेशन, इलिनोईस इंटरनेशनल के निदेशक समर जौंस मौजूद रहे.

कृषि मेले में कृषि योजनाओं की जानकारी

वाराणसी : कृषि सूचना तंत्र सुदृढ़ीकरण एवं कृषक जागरूकता कार्यक्रम के अंतर्गत जनपद वाराणसी में विकासखंड स्तरीय कृषि निवेश मेला/गोष्ठी का आयोजन पिछले दिनों बलदेव इंटर कालेज, बड़ागांव पर किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पिंडरा विधानसभा के विधायक डा. अवधेश सिंह ने किसानों को सरकार के द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

विधायक डा. अवधेश सिंह ने बताया कि पीएम कुसुम योजना बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना है, जिस में किसान 10 फीसदी मार्जिन मनी देख कर सोलर पैनल लगवा सकते हैं, जिस से किसानों को फ्री में बिजली प्राप्त होगी.

Krishi Melaविधायक डा. अवधेश सिंह द्वारा किसानों को बताया गया कि खरीफ मौसम की धान की फसल की कटाई चालू हो गई है. किसान अपना धान सरकारी क्रय केंद्र पर ही बेचें, जिस से अधिक लाभ प्राप्त कर सकें. साथ में फसल बीमा करने का आह्वाहन भी किया.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जिला कृषि अधिकारी संगम सिंह मौर्य के द्वारा किसानों को रबी फसल गेहूं चना, मटर, सरसों की बोआई के बारे में विस्तार से बताया गया.

उन्होंने आगे कहा कि किसान बोआई करने से पहले बीज का उपचार अवश्य करें. उन्होंने 1.5 फीसदी प्रीमियम दे कर फसल बीमा कराने के लिए किसानों से आग्रह भी किया.

सहायक निदेशक मृदा परीक्षण, वाराणसी, राजेश कुमार राय के द्वारा किसानों को मिट्टी में जीवांश बढ़ाने के लिए आग्रह किया गया, जिस से मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें.

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक राहुल सिंह के द्वारा समसामयिक खेती की तकनीकी जानकारी दी गई. इस के साथ ही मत्स्य विभाग, पशुपालन विभाग, उद्यान विभाग, नेडा विभाग, जिला अग्रणी प्रबंधक, मंडी, निर्यात एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी द्वारा अपने विभाग की योजनाओं के बारे में विस्तृत चर्चा किया गया.

Krishi Melaकार्यक्रम के अंत में विधायक द्वारा ड्रोन से नैनो यूरिया के छिड़काव किए जाने की तकनीकी का आरंभ किया गया और लाभार्थियों को आयुष्मान कार्ड एवं सरसों की मिनीकिट वितरित की गई, जिस में किसान कृष्ण कुमार, तूफानी यादव, नंदलाल मिश्रा, सुरेश कुमार सभाजीत, कल्लू वर्मा, लाल बहादुर सिंह इत्यादि किसान उपस्थित रहे.

कार्यक्रम का संचालन सहायक विकास अधिकारी, कृषि, अशोक पाल के द्वारा किया गया, साथ में विभाग के सभी कर्मचारी उपस्थित रहे. गोष्ठी में कृषि विभाग, स्वास्थ्य विभाग, यूनियन बैंक औफ इंडिया, उद्यान विभाग, पशुपालन विभाग, मत्स्य विभाग, मंडी / निर्यात , इफको, कानपुर फर्टिलाइजर, कलश सीड, वीएनआर सीड, सौलिडेरिड, बायोशर्ट इंटरनेशनल एवं अन्य प्रमुख कंपनियों के द्वारा स्टाल का प्रदर्शन भी किया गया था.

कृषक समाज के सतत विकास राष्ट्रीय सम्मेलन

हिसार: चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग द्वारा राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (एनएएचईपी)-आईडीपी प्रोजैक्ट के तहत “कृषक समाज के सतत विकास एवं सामाजिकआर्थिक उत्थान” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन का पिछले दिनों समापन हुआ, जिस में बतौर मुख्यातिथि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज रहे.

मुख्यातिथि प्रो. बीआर कंबोज ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि परिवार समाज का सब से छोटा हिस्सा है, इसलिए उस के सतत विकास के लिए उन्हें नई जानकारियां, नवाचारों व प्रौद्योगिकियों के प्रति प्रोत्साहित करना अनिवार्य है. इसी प्रकार देश के उत्थान में कृषक समाज का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है, इसलिए देश को विकास की पटरी पर लगातार बनाए रखने के लिए इन का उत्थान बहुत जरूरी है, लेकिन नई तकनीकों कों किसानों व समाज की आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति तक पहुंचाना एक चुनौती भरा काम है. इस प्रक्रिया में समाजशास्त्र से जुड़े विशेषज्ञ महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं.

उन्होंने यह भी कहा कि यदि नई तकनीकों को ईजाद करने वाले विभाग और समाजशास्त्री एकसाथ मिल कर काम करेंगे, तो इस के बहुत ही सार्थक परिणाम प्राप्त होंगे.

मुख्यातिथि बीआर कंबोज ने आंकड़ा प्रबंधन व विश्लेषण को भी अहम बताते हुए कहा कि इस से हर जगह से मिल रही जानकारियों को दुरुस्त व त्रुटिरहित समाज तक पहुंचाया जा सकता है. इस के लिए सरकारी व गैरसरकारी शिक्षण शोध संस्थानों को एक मंच पर आ कर एकजुटता के साथ जानकारी साझा करनी चाहिए. वर्तमान समय में खेती पर जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम बढ़ रहे हैं. इन्हीं चुनौतियों से निबटने के लिए विभिन्न नवीनतम एवं उन्नत सस्य क्रियाएं मदद कर सकती हैं.

इस अवसर पर कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने सम्मेलन में प्रस्तुत की गई मौखिक व पोस्टर प्रस्तुतियों के विजेता रहे प्रतिभागियों को पुरस्कृत कर उन का उत्साहवर्धन किया.

समाजशास्त्र विभाग की अध्यक्ष डा. विनोद कुमारी, सम्मेलन की आयोजक सचिव डा. जतेश काठपालिया व डा. रश्मि त्यागी ने दोदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन की तमाम गतिविधियों की विस्तृत रिपोर्ट पेश की.

स्नातकोत्तर शिक्षा अधिष्ठाता व एनएएचईपी-आईडीपी प्रोजैक्ट के नोडल अधिकारी डा. केडी शर्मा ने सभी का स्वागत किया, जबकि मौलिक विज्ञान एवं मानविकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. नीरज कुमार ने धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया.

इस कार्यशाला में मंच का संचालन डा. रिजुल सिहाग ने किया. हकृवि में आयोजित दोदिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन दौरान हुई पोस्टर व मौखिक प्रस्तुतियों के पोस्टर प्रस्तुतीकरण में प्रथम पुरस्कार अन्नू, निशा, मोनिका, एकता, प्रियंका भाटी, रमेश चंद्र, व विक्रांत हुड्डा ने प्राप्त किया, जबकि द्वितीय पुरस्कार काव्या सहराव, हेमंत कुमार व अन्नू ने प्राप्त किया, वहीं तृतीय पुरस्कार के विजेता प्रीति रानी व प्रियंका रहे, जबकि ज्योति सिहाग, युगुम ढींगड़ा, स्वाति, कीर्ति, प्रियंका ने सांत्वना पुरस्कार जीता.

इसी प्रकार विभिन्न विषयों में आयोजित मौखिक प्रस्तुतियों में मंजु कुमार राठौर, सुनिधि पिलानियां, कोथा सरामाती, आयुशी, रितू छिकारा, इंदु, सीफती, प्रीति, जोन, मोनिका शर्मा, प्रीति नैन, गायत्री पिला व सुभाष ने बेहतरीन प्रदर्शन कर उत्कृष्ट स्थान प्राप्त किया.

हरियाणा दिवस आयोजन : फसल उत्पादन में अग्रणी

हिसार: प्रदेश में हरित क्रांति की सफलता व खाद्यान्न उत्पादन में अपार वृद्धि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा अधिक पैदावार वाली विभिन्न फसलों की किस्में विकसित करना, नईनई तकनीकें ईजाद करना और प्रदेश के किसानों की कड़ी मेहनत का परिणाम है.

हरियाणा प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि से अन्य प्रदेशों की तुलना में बहुत ही छोटा प्रदेश है, जबकि देश के खाद्यान्न भंडारण व फसल उत्पादन में अग्रणी प्रदेशों में शामिल है.

हकृवि के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने हरियाणा दिवस के मौके पर बोलते हुए प्रदेशवासियों को हरियाणा दिवस की हार्दिक बधाई दी और कहा कि यह बड़े गर्व का विषय है कि आज चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हरियाणा प्रदेश के साथ नए संकल्पों व लक्ष्यों के साथ नए वर्ष में प्रवेश कर रहा है.

उन्होंने यह भी कहा कि हरियाणा प्रदेश का 1 नवंबर, 1966 को जब अलग राज्य के रूप में गठन हुआ था, उस समय खाद्यान्न उत्पादन मात्र 25.92 लाख टन था, जोकि वर्ष 2022-23 में बढ़ कर 323 मिलियन टन होने की उम्मीद है.

उन्होंने आगे कहा कि आज हरियाणा की गेहूं की औसत पैदावार 46.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर एवं सरसों की औसत पैदावार 20.6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

60 प्रतिशत से अधिक बासमती चावल का निर्यात केवल हरियाणा से

खाद्यान्नों के अधिक उत्पादन के चलते हरियाणा राज्य केंद्रीय खाद्यान्न भंडार में योगदान देने वाला दूसरा सब से बड़ा राज्य है. उन्होंने कहा कि हरियाणा बासमती चावल के लिए भी विशेष रूप से विख्यात है और देश के 60 फीसदी से अधिक बासमती चावल का निर्यात केवल हरियाणा से ही होता है.

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने सम्मेलन में यह भी कहा कि यह विश्वविद्यालय आज सफलता से भरा वर्ष पीछे छोड़ रहा है. मैं इन सफलताओं के पीछे रीढ़ की तरह काम करने वाले अपने शिक्षक व गैरशिक्षक कर्मचारियों का धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने अधिकार व दायित्व में सामंजस्य बनाए रख कर विश्वविद्यालय के शिक्षा, अनुसंधान व विस्तार कार्यक्रमों में अनेक उपलब्धियां हासिल करने के साथ विश्वविद्यालय में विभिन्न कार्यक्रमों के सफल आयोजन में योगदान दिया.

सरसों की आरएच 1975, आरएच 1424 व आरएच 1706 नामक 3 नई उन्नत किस्में विकसित

प्रो. बीआर कंबोज ने कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के बाजरा और चारा अनुभागों को इन की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों के परिणामस्वरूप दूसरी बार राष्ट्रीय स्तर पर सर्वश्रेष्ठ अनुसंधान केंद्र अवार्ड प्रदान किया गया. इसी प्रकार, विश्वविद्यालय को सरसों में उत्कृष्ट अनुसंधानों के लिए सर्वश्रेष्ठ केंद्र अवार्ड से नवाजा गया. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सरसों की आरएच 1975, आरएच 1424 व आरएच 1706 नामक 3 नई उन्नत किस्में विकसित करने में सफलता प्राप्त की है.

कृषि शोध संस्थानों में 10वां स्थान

Haryana Diwas

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने जानकारी देते हुए कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने देशभर में केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा वर्ष 2023 के लिए जारी नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) में कृषि शोध संस्थानों में 10वां स्थान प्राप्त किया है. विश्वविद्यालय में संरचनात्मक सुविधाओं में विस्तार करते हुए प्रशासनिक भवन में आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित नया सम्मेलन कक्ष भी बनाया गया है.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय का नाम आज विश्वस्तरीय विश्वविद्यालयों में शुमार है. यहां के छात्रों का न केवल देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के लिए चयन हो रहा है अपितु विदेशों में भी फैलोशिप पर जा रहे हैं और दूसरे देशों के छात्र भी यहां पढ़ने आ रहे हैं.

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने बीते अप्रैल माह में 25वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया, जिस में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शिरकत कर विश्वविद्यालय का मान बढ़ाया. वहीं देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का भी हकृवि में आयोजित तीनदिवसीय कृषि विकास मेला-2023 के उद्घाटन अवसर पर बतौर मुख्यातिथि आगमन हुआ. इस कृषि विकास मेला में हरियाणा व पड़ोसी राज्यों से तकरीबन 2 लाख किसान शामिल हुए, जिन्होंने 2.02 करोड़ रुपए के रबी फसलों के बीज खरीदे.

उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए बताया कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने नूंह में खुलने वाले विश्वविद्यालय के नए कृषि विज्ञान केंद्र का शिलान्यास किया. यह विश्वविद्यालय भविष्य में भी तरक्की के नए मुकाम बनाता रहेगा और किसानों की इसी प्रकार से सेवा करता रहेगा.

उत्तराखंड की जमरानी परियोजना

नई दिल्ली : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति (सीसीईए) ने जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग के प्रधान मंत्री कृषि सिंचाई योजना-त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (पीएमकेएसवाई-एआईबीपी) के तहत उत्तराखंड की जमरानी बांध बहुद्देशीय परियोजना को शामिल करने की मंजूरी दे दी है.

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मार्च, 2028 तक 2,584.10 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत वाली परियोजना को पूरा करने के लिए उत्तराखंड को 1,557.18 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता को मंजूरी दी है. इस परियोजना में उत्तराखंड के नैनीताल जिले में राम गंगा नदी की सहायक नदी गोला नदी पर जमरानी गांव के पास एक बांध के निर्माण की परिकल्पना की गई है. यह बांध मौजूदा गोला बैराज को अपनी 40.5 किलोमीटर लंबी नहर प्रणाली और 244 किलोमीटर लंबी नहर प्रणाली के माध्यम से पानी देगा, जो वर्ष 1981 में पूरा हुआ था.

इस परियोजना में उत्तराखंड के नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों और उत्तर प्रदेश के रामपुर और बरेली जिलों में 57,065 हेक्टेयर (उत्तराखंड में 9,458 हेक्टेयर और उत्तर प्रदेश में 47,607 हेक्टेयर) की अतिरिक्त सिंचाई की परिकल्पना की गई है. 2 नई फीडर नहरों के निर्माण के अलावा 207 किलोमीटर मौजूदा नहरों का नवीनीकरण किया जाना है और परियोजना के तहत 278 किलोमीटर पक्के फील्ड चैनल भी क्रियान्वित किए जाने हैं. इस के अलावा इस परियोजना में 14 मेगावाट की जल विद्युत उत्पादन के साथसाथ हल्द्वानी और आसपास के क्षेत्रों में 42.70 मिलियन क्यूबिक मीटर (एमसीएम) पीने के पानी के प्रावधान की भी परिकल्पना की गई है, जिस से 10.65 लाख से अधिक आबादी लाभान्वित होगी.

परियोजना के सिंचाई लाभों का एक बड़ा हिस्सा पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश को भी होगा. दोनों राज्यों के बीच लागत/लाभ साझाकरण 2017 में हस्ताक्षरित एक समझौता ज्ञापन के अनुसार किया जाना है. हालांकि पीने का पानी और बिजली लाभ उपलब्ध होंगे. ये पूरी तरह से उत्तराखंड के लिए ही परिकल्पित हैं.

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) : यह सिंचाई योजना वर्ष 2015-16 के दौरान शुरू की गई थी, जिस का उद्देश्य खेत पर पानी की पहुंच को बढ़ाना और सुनिश्चित सिंचाई के तहत खेती योग्य क्षेत्र का विस्तार करना, खेत में पानी के उपयोग की दक्षता में सुधार करना, स्थायी जल संरक्षण पद्धतियों को लागू करना आदि है.

भारत सरकार ने दिसंबर, 2021 में वर्ष 2021-26 के दौरान पीएमकेएसवाई के कार्यान्वयन को 93,068.56 करोड़ रुपए (37,454 करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता) के समग्र परिव्यय के साथ मंजूरी दी थी.

पीएमकेएसवाई का त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (एआईबीपी) घटक प्रमुख और मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के माध्यम से
सिंचाई क्षमता के निर्माण से संबंधित है.
पीएमकेएसवाई-एआईबीपी के तहत अब तक 53 परियोजनाएं पूरी की जा चुकी हैं और 25.14 लाख हेक्टेयर अतिरिक्त सिंचाई क्षमता सृजित हुई है. वर्ष 2021-22 के बाद पीएमकेएसवाई के एआईबीपी घटक के अंतर्गत अब तक 6 परियोजनाओं को शामिल किया गया था. जमरानी बांध बहुद्देशीय परियोजना एआईबीपी के अंतर्गत शामिल होने वाली 7वीं परियोजना है.

भारतीय आमों का निर्यात बढ़ा

नई दिल्ली : भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत ने चालू वित्त वर्ष (2023-24) के पहले 5 महीनों के दौरान आम के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की है. इस अवधि में कुल 47.98 मिलियन अमेरिकी डालर मूल्य के आमों का निर्यात किया गया, जो कि पिछले वर्ष की इसी अवधि के 40.33 मिलियन अमेरिकी डालर के मूल्य से 19 फीसदी अधिक है.

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और एपीडा के सहयोग से भारत ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 48.53 मिलियन अमेरिकी डालर मूल्य के 22,963.78 मीट्रिक टन आमों का निर्यात किया था, जबकि चालू वित्तीय वर्ष 2023-24 (अप्रैल-अगस्त) के दौरान भारत ने 47.98 मिलियन अमेरिकी डालर मूल्य के 27,330.02 मीट्रिक टन आमों का निर्यात किया है.

सीजन 2023 में आम के निर्यात को बढ़ावा देने की अपनी पहल के एक हिस्से के रूप में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और एपीडा ने संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग (यूएसडीए) के पशु और पादप स्वास्थ्य निरीक्षण सेवा (एपीएचआईएस) निरीक्षक को वाशी, नासिक, बेंगलुरु और अहमदाबाद स्थित किरणन केंद्रों पर आम की पूर्व निकासी के लिए आमंत्रित किया.

भारत ने पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 19 फीसदी की वृद्धि दर्ज कर के संयुक्त राज्य अमेरिका को भारतीय आमों के निर्यात में शानदार सफलता अर्जित की है. चालू वित्तीय वर्ष के पहले 5 महीनों के दौरान भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका को 2043.60 मीट्रिक टन भारतीय आमों का निर्यात किया है.

संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा संबंधित अधिकारियों के निरंतर प्रयासों के परिणामस्वरूप भारत ने जापान को 43.08 मीट्रिक टन आम, न्यूजीलैंड को 110.99 मीट्रिक टन आम, आस्ट्रेलिया को 58.42 मीट्रिक टन आम और एक नए गंतव्य स्थल, दक्षिण अफ्रीका को 4.44 मीट्रिक टन आम का निर्यात किया है.

इस के अतिरिक्त कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और एपीडा ने संयुक्त रूप से दक्षिण कोरिया के निरीक्षकों को वहां निर्यात के लिए आम की पूर्व निकासी के लिए आमंत्रित किया. इस कदम ने भारत को पादप संरक्षण, संगरोध एवं भंडारण निदेशालय, भारत और पशु एवं पादप संगरोध एजेंसी, दक्षिण कोरिया की संयुक्त देखरेख में अधिकृत वाष्प ताप उपचार केंद्र में उपचारित किए जाने के बाद 18.43 मीट्रिक टन आम निर्यात करने की सुविधा दी है.

वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान आम के निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई. सीजन 2023 में, भारत ने ईरान, मारीशस, चेक गणराज्य और नाईजीरिया जैसे निर्यात के नए गंतव्य स्थलों की खोज कर के 41 देशों में आमों का निर्यात किया है.

एपीडा ने अपने निर्यात को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भारतीय आमों को प्रदर्शित करने के लिए सियोल फूड एंड होटल शो में भी भाग लिया है. भारत की आजादी के 75 वर्ष (आजादी का अमृत महोत्सव) मनाने के लिए, एपीडा ने आम की 75 पूर्वी किस्मों को बहरीन निर्यात करने की सुविधा प्रदान की. इस खेप में भारत के पूर्वी क्षेत्र की 5 जीआई टैग वाली किस्में शामिल थीं.

इस के अतिरिक्त एपीडा ने भारतीय आमों के निर्यात को प्रोत्साहित करने व बढ़ाने के लिए संबंधित देशों के भारतीय मिशनों के साथ सक्रिय सहयोग से एक आम संवर्धन कार्यक्रम या उत्सव का आयोजन किया.

एपीडा ने ब्रुसेल्स स्थित भारतीय दूतावास के सहयोग से भारतीय आमों को चखने का एक कार्यक्रम आयोजित किया. इस कार्यक्रम में आम्रपल्ली, बंगनपल्ली, केसर और हिमसागर जैसी 5 अलगअलग किस्मों का प्रदर्शन किया गया.

प्रतिभागियों को सभी प्रकार के आमों के साथसाथ उस से तैयार व्यंजनों को पेशकश किया गया, जिस में आम की लस्सी और आम का हलवा शामिल था.

इस के अलावा एपीडा ने विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारतीय आमों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 2023 में विभिन्न पहल की.

एपीडा द्वारा मलेशिया में कुआलालंपुर स्थित भारतीय उच्चायोग के सहयोग से एक आम प्रचार कार्यक्रम आयोजित किया गया था, जिस में केसर और बंगनपल्ली किस्म के आमों का प्रदर्शन किया गया था.
वहीं एपीडा ने अफगानिस्तान में आम को बढ़ावा देने के कार्यक्रम के लिए काबुल स्थित भारतीय दूतावास को आम की एक खेप की सुविधा प्रदान की. एपीडा द्वारा इसी तरह का एक और कार्यक्रम कुवैत स्थित भारतीय दूतावास के सहयोग से कुवैत में भी आयोजित किया गया था.

‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित हुए डा. राजाराम त्रिपाठी

पिछले 30 सालों से अधिक समय से हर्बल कृषि के क्षेत्र में नित नएनए शोध एवं प्रयोगों की वजह से हर्बल कृषि में वैश्विक स्तर पर लगातार कई कीर्तिमान स्थापित करते हुए कृषि को फायदे का सौदा बना कर उस से लाभ प्राप्त करने वाले बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले के प्रसिद्ध हर्बल किसान डा. राजाराम त्रिपाठी को थिंक मीडिया, बालाजी समूह ने उद्यानिकी विभाग, छत्तीसगढ़ शासन की सहभागिता में छत्तीसगढ़ व बस्तर की कृषि के ज्वलंत मुद्दों पर जीवंत चर्चापरिचर्चा आयोजित की एवं बस्तर के प्रगतिशील किसानों को मंच से सम्मानित किया.

इस आयोजन का प्रमुख आकर्षण था बस्तर के डा. राजाराम त्रिपाठी के द्वारा अंचल की खेतीकिसानी और मुख्य रूप से जनजातीय समुदाय की 30 वर्षों से की गई अनवरत सेवा के लिए ‘लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित करना. उन को यह सम्मान बस्तर के अंचल के लोकप्रिय जननायक केबिनेट मंत्री एवं पूर्व पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम और वरिष्ठ पत्रकार एएन द्विवेदी के द्वारा प्रदान किया गया.

इस कार्यक्रम में प्रदेश में सब से कम उम्र में मंत्री बनाए गए और 15 वर्षों तक लगातार मंत्री रहे कद्दावर नेता केदार कश्यप, शाकंभरी बोर्ड के सदस्य रितेश पटेल, जनप्रतिनिधि तरुण गोलछा, जिजप सदस्य बाल सिंह बघेल, उद्यानकी व कृषि विभाग के उच्चाधिकारी गौतम, ध्रुव, समाजसेवी यतीद्र छोटू सलाम, मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के निदेशक अनुराग कुमार, बलई चक्रवर्ती, शंकर नाग, कृष्णा नेताम, मेंगो नेताम और अनुज नाहरिया, अजय यादव सहित मीडिया जगत के साथियों की मौजूदगी रही.

इस आयोजन में सम्मानित होने वाले प्रगतिशील किसान महिला समूहों ने भी सैकड़ो की संख्या में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने उन्हें सम्मानित करने वाली संस्थाओं और स्थानीय जनप्रतिनिधियों, स्थानीय प्रशासन और स्थानीय मीडिया के साथियों को हमेशा सहयोग देने और हौसला बढ़ाने के लिए विशेष रूप से धन्यवाद दिया.

उन्होंने कहा कि यह सम्मान दरअसल उन का सम्मान नहीं है, यह तो बस्तर की माटी का सम्मान है और उन्होंने अपने सम्मान को मां दंतेश्वरी हर्बल समूह परिवार के सभी सदस्यों को सादर समर्पित किया.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि मां दंतेश्वरी, बस्तर की माटी के प्रताप एवं मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के साथियों के कठोर परिश्रम से उन्हें देशविदेश में सैकड़ों अवार्ड और पुरस्कार मिले हैं, किंतु अपनी कर्मभूमि में अपने क्षेत्र के जननायकों के हाथों सम्मानित होना मेरे जीवन का सब से बड़ा सम्मान है.

गौरतलब है कि डा. राजाराम त्रिपाठी द्वारा “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर” के जरीए विगत 3 दशकों से कई प्रकार के देशविदेश में भारी मांग वाली हर्बल फसलों जैसे सफेद मूसली, स्टीविया, काली मिर्च, आस्ट्रेलियन टीक आदि फसलों की गुणवत्ता, उत्पादकता और लाभदायकता बढ़ाने के दृष्टिकोण से इन पर निरंतर शोध का काम करते हुए कई हर्बल फसलों की उन्नत किस्में भी डा. राजाराम त्रिपाठी के द्वारा विकसित की गई हैं. इन नई किस्मों की अंकुरण दर और उन की उत्पादन क्षमता में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी दर्ज हुई है. इन के द्वारा विकसित की गई उन्नत किस्म की काली मिर्च “मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16” और ‘आस्ट्रेलियन टीक’ की सफल जुगलजोड़ी ने कृषि जगत में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय खबरों में भी धूम मचाई है. हाल में ही इन्हें 40 लाख रुपए में बनने वाले 1 एकड़ के “पौलीहाउस” का मात्र डेढ़ लाख रुपए में सस्ता टिकाऊ और ज्यादा लाभ देने वाला नैसर्गिक विकल्प “नेचुरल ग्रीनहाउस” के सफल मौडल के लिए देश के कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के हाथों देश के सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड भी प्रदान किया गया है.

बीएससी (गणित), एलएलबी, कार्पोरेट- ला एवं 5 अलगअलग विषयों में स्नातकोत्तर की डिगरियों और डाक्टरेट की उपाधि के साथ डा. राजाराम त्रिपाठी देश के सब से ज्यादा पढ़ेलिखे अग्रिम पंक्ति के किसान नेता के रूप में भी जाने जाते हैं.

सब से बड़ी बात यह है कि इन के इन रिसर्च एवं नवाचारों के फायदे बस्तर, छत्तीसगढ़ में ही नहीं, बल्कि पूरे देश के किसान उठाने लगे हैं.