मिट्टीपानी की जांच कराएं अधिक मुनाफा पाएं

समयसमय पर किसानों को अपने खेत की मिट्टी की जांच जरूर करानी चाहिए, ताकि मिट्टी जांच से मिलने वाले नमूने के आधार पर अपनी खेती में जरूरी खाद, उर्वरक, बीज आदि की मात्रा तय कर सकें. ऐसा करने से किसानों को अपने खेत में अंधाधुंध खाद, उर्वरक देने से नजात तो मिलेगी ही, बल्कि खेत की मिट्टी को सही पोषक तत्त्व सही मात्रा में मिल सकेंगे.

मिट्टी का नमूना  लेने की विधि

* सब से पहले अपने खेत को उर्वराशक्ति के अनुसार 2 या 2 से ज्यादा भागों में बांट कर रैंडम आधार पर 8-10 स्थानों से मिट्टी का एकएक नमूना लें.

* मिट्टी का नमूना लेने से पहले ऊपर की सतह से घासफूस साफ कर लें और एक लंबी खुरपी से ‘ङ्क’ आकार का गड्ढा खोदने के बाद उस के एक तरफ से एक इंच मोटी मिट्टी की परत निकाल कर किसी बरतन में डालें.

* इस तरह से पूरे खेत के 8-10 स्थानों से मिट्टी ले कर अच्छी तरह से मिला कर उस का एक ढेर बनाएं और उस ढेर पर + का निशान बनाएं.

* अब इस के आमनेसामने के 2 भागों की मिट्टी को हटा दें और बची हुई मिट्टी को दोबारा इकट्ठा कर लें. यह प्रक्रिया तब तक करें, जब तक कि मिट्टी तकरीबन 500 ग्राम न रह जाए.

* इस 500 ग्राम मिट्टी को एक साफ कपड़े की थैली में भरें व कागज पर अपना नाम सहित पूरा पता, विगत में ली गई और भविष्य में ली जाने वाली फसलों के नाम अंकित कर के उस थैली में डाल दें. इसी प्रकार की एक परची थैली के ऊपर बांध कर मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में जांच के लिए भेजें.

सिंचाईपानी का नमूना लेने की विधि

किसान सिंचाई के लिए अपने खेत में जिस पानी का उपयोग करते हैं, उस पानी का नमूना लेने के लिए यदि नलकूप है, तो पंप को 8-10 मिनट चलाने के बाद व यदि खुला कुआं है, तो बालटी से पानी निकालते समय उसे 8-10 बार डुबो लें और पानी के नमूने को एक साफ बोतल में नलकूप या कुएं के पानी से अच्छी तरह धो कर पूरा भर लें और बोतल के ऊपर किसान अपना पूरा नाम व पता लिख कर प्रयोगशाला को जांच के लिए भिजवाएं.

अधिक जानकारी हासिल करने के लिए अपने निकटतम कृषि कार्यालय में संपर्क करें या फिर किसान काल सैंटर के नि:शुल्क दूरभाष नंबर 18001801551 पर बात कर के अपनी समस्या का समाधान करें.

पालक के पकवान 

पालक में मैग्नीशियम, पोटैशियम, फोलेट, विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन के, विटामिन बी2, विटामिन बी और विटामिन ई जैसे विटामिन और मंडल होते हैं, जो एंटीऔक्सीडैंट का काम करते हैं. साथ ही, शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाते हैं.

पालक में पाया जाने वाला विटामिन के हैल्दी हार्ट के लिए जरूरी होता है. हाईपोटैशियम इंटेक स्ट्रोक हौट के खतरे को कम कर के ब्लडप्रैशर नौर्मल रखता है. इस में अल्फा लिपाइसी एसिड नाम का एंटीऔक्सीडैंट होता है. इस का सेवन करने से ब्लड शुगर का लैवल कम होता है. साथ ही, यह शरीर में इंसुलिन सेंसिटिविटी को बढ़ाता है.

पालक का सेवन वजन घटाने में मदद करता है, क्योंकि इस में वजन घटाने से संबंधित गुण पाए जाते हैं. वजन घटाने के लिए जरूरी है कि कैलोरी की मात्रा का सेवन कम किया जाए. पालक कम कैलोरी वाला खाद्य पदार्थ है, जिसे आहार में शामिल कर के वजन को नियंत्रित किया जा सकता है.

100 ग्राम पालक में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व

कैलोरी             :  2.3 किलो कैलोरी

पानी               :   91 फीसदी

प्रोटीन             :   2.9 ग्राम

कार्बोहाइड्रेट    :  3.6 ग्राम

शुगर              :  0.4 ग्राम

फाइबर          :  2.2 ग्राम

फैट              :   0.41 ग्राम

कैल्शियम     :   30 मिलीग्राम

आयरन        :   0.81 ग्राम

मैग्नीशियम   :   24 मिलीग्राम

पोटैशियम   :   167 मिलीग्राम

किसान महिलाएं अपने खानपान में पालक से निम्न प्रकार की रैसिपी तैयार कर सकती हैं :

पालक के हरेभरे परांठे

पालक के परांठे एक पौष्टिक और स्वादिष्ठ व्यंजन है, जो पालक में गेहूं का आटा और दूसरे मसालों का उपयोग कर के बनाए जाते हैं. यह सुबह के नाश्ते में चाय के साथ देने के लिए बहुत ही पौष्टिक आहार है, क्योंकि यह झटपट बन जाता है और इसे बनाना बहुत ही आसान है. इस परांठे में पालक के साथ लहसुन व हरी मिर्च, अदरक, धनिया का इस्तेमाल होता है, जो इसे एक बढि़या स्वाद देता है.

पालक का परांठा बनाने के लिए जरूरी सामग्री

2 कप गेहूं का आटा

3/4 कप मोटा कटा हुआ पालक

आधा चम्मच कटा हुआ अदरक

3 लहसुन की कलियां

एक हरी मिर्च कटी हुई

एक चम्मच कटा हुआ हरा धनिया

3 चम्मच तेल

नमक स्वाद के अनुसार

पालक का परांठा बनाने की विधि

पालक और धनिए को पानी से धो कर साफ कर लें. उस के बाद पालक, हरा धनिया, अदरक, लहसुन और हरी मिर्च को मोटे टुकड़ों में काट लें. मिक्सी के जार में पालक, हरी मिर्च, लहसुन, अदरक, हरा धनिया डालें और पीस लें.

आटे में पिसी हुई सामग्री और नमक को मिला कर के आटा गूंद लें. जब तैयार हो जाए, तो गोलगोल परांठे तवे पर धीमी आंच पर सेंकने के बाद इस को लहसुन की चटनी या मट्ठे के साथ सुबह के समय अपने परिवार को दें, जिस से पूरे परिवार को पौष्टिक आयरनयुक्त आहार मिलना शुरू हो जाए.

ओट्स रवा पालक ढोकला

रवा पालक ढोकला बनाने की सामग्री : 50 ग्राम ओट्स पाउडर. 100 ग्राम रवा. 100 ग्राम दही. हरी मिर्च. नमक स्वाद के अनुसार.

रवा पालक ढोकला बनाने की विधि : आधा कप पानी डाल कर अच्छी तरह मिक्स कर लीजिए. उस के बाद 15 मिनट के लिए रख दीजिए. उस में पालक और 2 चम्मच पानी डाल कर अच्छी तरह से मिला लीजिए और इतना पानी मिलाइए कि मिश्रण गाढ़ा हो. स्टीम करने से तुरंत पहले बाउल में थोड़ा सा लगभग एक चुटकी ईनो पाउडर डाल दीजिए. जब यह फुल जाए, तो एक कड़ाही में या भगोने में थोड़ा पानी डालिए. उस के ऊपर कोई कटोरी रख कर एक छोटे से कटोरे में या किसी छोटे भगोने में तेल लगा कर इस मिश्रण को डाल दीजिए. 15 मिनट के बाद देखेंगे कि मिश्रण फूल कर डबल हो जाएगा और हमारा ढोकला तैयार हो जाएगा. ढोकले की पहचान करने के लिए उस में चाकू की सहायता से छेद कर के देखेंगे. अगर चाकू चिपकता नहीं है, तो समझें कि ढोकला तैयार हो गया है.

ढोकले को हरी मिर्च की चटनी के साथ सुबह के नाश्ते में सर्व करें. यह तेलरहित पोषक नाश्ता बहुत ही लाभकारी है.

Palakपालक पनीर बनाने के लिए जरूरी सामग्री

350 ग्राम पालक

मध्यम आहार का टमाटर

5 कली लहसुन की

2 लौंग

अदरक थोड़ी सी

हरी मिर्च स्वाद के अनुसार

एक बड़ा चम्मच तेल

प्याज कटा हुआ

गरम मसाला

हलदी पाउडर

मिर्च पाउडर

नमक स्वादानुसार

एक चम्मच मलाई

पालक पनीर

बनाने की विधि

सब से पहले पालक को गरम पानी में नमक डाल कर उबालें. जब पालक उबल जाएगा, तब उस को पानी से निकाल कर मिक्सी में महीन पीस लें. तत्पश्चात टमाटर, लहसुन, अदरक, लौंग, प्याज इत्यादि को पीस कर पेस्ट बना लें. जब पेस्ट तैयार हो जाएगा, तब मध्यम आंच पर पैन को चढ़ा कर गरम कर लें और उस में थोड़ा सा तेल डाल कर पकने दें. जब तेल गरम हो जाएगा तो इस में पिसा हुआ मसाला डाल दें. मसाला भुन जाने पर पालक को डाल दें.

जब पालक और मसाला तेल छोड़ने लगे, तब इस में नमक डाल दें. जब यह एकदम क्रीम टाइप का होने लगे, तब इस में पनीर के आधेआधे इंच के टुकड़े काट कर डाल दें.

5 मिनट तक पनीर के टुकड़ों को पालक के साथ पकने दें. और उस के बाद आंच पर से उतार कर मलाई को फेंट कर मिला दें. गरमागरम बेसन की रोटी, नान या मिक्स आटे की रोटी के साथ इस को खाएं.

पालक का जूस बनाने के लिए जरूरी सामग्री

पालक 100 ग्राम

खीरा एक

पुदीना 8-10 पत्तियां

काली मिर्च पाउडर एक चुटकी

नमक स्वाद के अनुसार

नीबू आधा

पालक का जूस बनाने की विधि

पालक को महीनमहीन काट लें और खीरे को भी महीनमहीन काट कर मिक्सी में पीसने के लिए डाल दें. इस में पुदीना भी मिला दें. जब यह फेस तैयार हो जाए, तो इस को जार से निकाल कर छान लें. इस पदार्थ में 2 गिलास पानी मिलाएं. नमक और काली मिर्च को सर्व करने के पहले मिला दें और ऊपर से नीबू स्वाद के अनुसार मिला लें. यह जूस रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए बहुत ही कारगर है.

जाड़े में अधिक वर्षा से खेती को नुकसान या फायदा

रबी की खेती किसानों के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होती है. इसी से उस के सारे काम व विकास निर्धारित होते हैं. इन दिनों अच्छीखासी ठंड होती है और अगर बारिश हो जाए तो कहीं तो ये फायदेमंद होती है, लेकिन कई दफा ओला गिरने आदि से फसल को बहुत ज्यादा नुकसान होता है. किसानों की मेहनत और कीमत दोनों ही जाया हो जाती हैं.

जाड़े की वर्षा को महावट कहा जाता था. फसल के लिए इसे अमृत वर्षा कहा जाता है, परंतु जब ये जाड़े की वर्षा इतनी अधिक हो जाए, जो खेत को नमी देने के बजाय उस में जलभराव हो जाए या ओला पड़ जाए, तो यह किसानों की फसल के लिए नुकसानदेह साबित होती है.

जिस खेत में जितनी अधिक लागत की खेती की गई है, उस में उतने नुकसान की संभावना होती है.

ऐसी बरसात से दलहनी व तिलहनी फसलें पूरी तरह से बाधित हो जाती हैं और अब तो सारी फसलें यहां तक गेहूं को भी नुकसान होने की संभावना हो जाती है.

जब ऐसी प्राकृतिक आपदा आती है, वास्तव में किसानों की सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है. चना, मटर, मसूर, अरहर, सरसों, आलू आदि में अधिक नुकसान होता है. कई जगहों पर तो सरसों व अरहर की जो फसलें गिर जाती हैं, उन्हें भी खासा नुकसान होता है.

ऐसे समय में ढालू भूमि जैसे यमुना, गंगा व नदियों के किनारे की खेती में जलभराव से नहीं जल बहाव से नुकसान होता है.

फूलों की खेती करने वाले किसानों को भी खासा नुकसान होता है. फूल की अवस्था की समस्त फसलों में फूल गिरने व क्षतिग्रस्त होने से उत्पादन गिर जाता है.

मौसम नम होने व कोहरा होने से रोग व कीटों का प्रकोप भी बढ़ जाता है, जिस से फसल को नुकसान होना तय है.

वर्षा के बाद के उपाय

* खेतों में जो पानी भरा है, उसे निकालने की तुरंत कोशिश की जाए.

* खेत की निगरानी नियमित करते हुए रोग व कीट नियंत्रण के लिए दवाओं का छिड़काव करें.

* झुलसा रोग का उपचार करें.

* माहू कीट का नियंत्रण करें.

* चना, मटर में फली छेदक कीट का निदान करें.

* गन्ना की फसल को विभिन्न तना छेदक कीटों से बचाव के उपाय अपनाएं.

* आलू बीज उत्पादन वाली फसल की बेल को काट दें.

* देरी से बोई जाने वाली गेहूं की प्रजातियों हलना, उन्नत हलना नैना की बोआई कर सकते हैं.

खाली खेतों के लिए फसल योजना

* अधिक वर्षा से फसलें क्षतिग्रस्त होने पर खेत को तैयार कर तुरंत गेहूं की बोआई की जा सकती है.

* टमाटर की ग्रीष्म ऋतु की फसल और प्याज की रोपाई कर सकते हैं.

* जायद की भिंडी व मिर्च के लिए खेत की तैयारी कर के फरवरी माह में बोआई व रोपाई कर सकते हैं.

* गन्ने की 2 कतारों के बीच मूंग व उड़द की बोआई कर सकते हैं.

* सब्जी की बोआई के लिए खेत को तैयार कर सकते हैं.

* आलू के खेत में गरमी की मूंगफली की बोआई कर क्षति पूर्ति कर सकते हैं.

दिए गए सुझाव के साथ  यदि इस विपरीत परिस्थिति में खेती का प्रबंधन करें तो कुछ हद तक नुकसान की भरपाई हो सकती है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की मीटिंग में किसानों का हित

अविकानगर : भाकृअनुप-केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली की क्षेत्रीय समिति-6 की 27वीं बैठक 3 नवंबर, 2023 को संस्थान के सभागार में सचिव डेयर (डिपार्टमेंट औफ एग्रीकल्चर एजुकेशन एंड रिसर्च) एवं महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल) डा. हिमांशु पाठक की अध्यक्षता में आयोजित किया गया.

क्षेत्रीय समिति-6 की बैठक में विशिष्ट अथिति डा. उमेशचंद गौतम, उपमहानिदेशक प्रसार, डा. धीर सिंह, निदेशक, एनडीआरआई, करनाल, जीपी शर्मा, सयुक्त सचिव, (वित्त) आईसीएआर, डा. अनिल कुमार, एडीजी, डा. पीएस बिरथाल, निदेशक, एनआईएपी नई दिल्ली व परिषद के विभिन्न विषय के एडीजी, राजस्थान, गुजरात राज्यों व केंद्र शासित प्रदेश दमन व दीव, दादर एवं नागर हवेली के सेक्रेटरी व कमिश्नर और कृषि वेटरनरी विश्वविद्यालय के कुलपति, गवर्निंग बौडी के सदस्यों, अधिकारी और वैज्ञानिक उपस्थिति रहे.

Rabbitकार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डा. हिमांशु पाठक अविकानगर में विभिन्न सुविधा जैसे देश के किसानों के लिए फार्मर होस्टल में नवीनीकृत प्रशिक्षण लेक्चर्स हाल, सेक्टर-9 पर नवीनीकृत भेड़ों के शेड, टैक्नोलौजी पार्क में राष्ट्रीय ध्वज उच्च स्तंभ, टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग व टेक्सटाइल कैमिस्ट्री विभाग में मोटी या अनुपयोगी भेड़ की ऊन से केरटिन प्रोटीन का विगलन, फार्म सेक्शन के लिए नया ट्रैक्टर और देश के भेड़बकरीपालकों, किसानों के लिए कृत्रिम गर्भाधान हेतु चलतीफिरती वैन/लैब आदि का उद्घाटन करते हुए मोटे पूंछ की डुंबा भेड़, खरगोश की विभिन्न नस्लें, सिरोही बकरी और संस्थान के पशु आनुवांशिकी व प्रजनन विभाग में स्थित विभिन्न भेड़ की नस्लों (अविशान, अविकालीन, मालपुरा, मगरा, चोकला, मारवाड़ी, गरोल और पाटनवाड़ी) के उन्नत पशुओं की प्रदर्शनी का अवलोकन किया.

डा. हिमांशु पाठक ने अविकानगर संस्थान की गतिविधियों की प्रशंसा की व ज्यादा से ज्यादा किसानों तक संस्थान की सेवा को बढ़ाने के लिए संस्थान निदेशक डा. तोमर से आग्रह किया.

डा. हिमांशु पाठक द्वारा क्षेत्रीय समिति के सभागार से पहले जोन के संस्थानों की प्रदर्शनी का अवलोकन करते हुए कृषि कार्य में ड्रोन की भूमिका प्रदर्शन का भी अवलोकन किया. डा. हिमांशु पाठक को गार्ड औफ ओनर के साथ केंद्रीय विद्यालय, अविकानगर के नन्हेमुन्ने बच्चों द्वारा उन का जोरदार स्वागतसत्कार किया गया.

सभागार में निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा महानिदेशक, उपमहानिदेशक, निदेशक और सभी डेलेगेट्स का स्वागतसत्कार राजस्थान परंपरा से किया गया.

Tractorकार्यक्रम में डा. पीएस बिरथाल द्वारा क्षेत्र की उत्पादन, समस्या और आने वाली चुनौती के बारे में विस्तार से लेक्चर्स दिया गया, जिस का पिछली मीटिंग की सिफारिश को पूरा करने की विस्तृत रिपोर्ट डा. अरुण कुमार तोमर द्वारा प्रस्तुत किया गया. इस के बाद गुजरात, राजस्थान, दमन, दीव, दादर एवं नागर हवेली की कृषि, पशुपालन, पोल्ट्री, फिशरीज, बागबानी, फोरस्ट्री, एजुकेशन, प्रसार गतिविधियों की समस्या, चुनौतियों आदि पर महानिदेशक की अध्यक्षता में एकएक कर के विस्तार से चर्चा की गई.

कार्यक्रम में भौतिक रूप से उपस्थित और औनलाइन माध्यम से जुड़े विषय विशेषज्ञों द्वारा उपलब्ध विकल्प को बताया गया. कुछ मुद्दे पर भविष्य के हिसाब से शोध चुनौती, एग्रीकल्चर उत्पादों के निर्यात की समस्या एवं भविष्य की अपार संभावना के ऊपर चर्चा की गई. पशुपालन, हार्टिकल्चर, राष्ट्रीय पशुधन मिशन, मार्केटिंग, और्गेनिक खेती, जैविक खाद, पोस्ट हार्वेस्टिंग प्रोसैसिंग, समस्या पर उपलब्ध हल के द्वारा जागरूकता कैंप आदि पर क्षेत्रीय मीटिंग में विस्तार से चर्चा की गई.

Sheep

मीटिंग के दौरान महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक एवं अन्य मंच पर विराजमान अतिथि ने अविकानगर संस्थान द्वारा भेड़ की महीन ऊन और ऊंट के फाइबर से निर्मित हलकी ऊनी जैकेट और विभिन्न प्रकाशन का विमोचन भी किया.

 

अंत में महानिदेशक डा. हिमांशु पाठक द्वारा संबोधन के क्रम में बताया गया कि जिन समस्या का समाधान यहां उपस्थिति किसी भी संस्थान पर उपलब्ध है, उस को 15 दिन के भीतर संबंधित को उपलब्ध करावा दिया जाए और जिस किसी समस्या का समाधान यदि देश की किसी संस्थान के पास हो, उस को भी एक महीने में संबंधित समस्याग्रस्त संस्थान को उपलब्ध करा दिया जाए. जिन समस्याओं का अभी समाधान नहीं है एवं वर्तमान में उबर रही भविष्य की चुनौती के हिसाब से हल करना है. उन का दोबारा परिषद के माध्यम से अलग से मीटिंग कर के संबंधित संस्थान को जिम्मेदारी देते हुए शोध प्रोजैक्ट तैयार करवा कर हल किया जाए.

इस मीटिंग को पूरा करने में डा. सीपी स्वर्णकार, डा. आरसी शर्मा, डा. अजय कुमार, डा. गणेश सोनावने, डा. रणधीर सिंह भट्ट, डा. एसके संख्यान, डा. अजित महला, डा. अरविंद सोनी, डा. लीलाराम गुर्जर, डा. सत्यवीर सिंह डांगी, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी इंद्रभूषण कुमार, राजकुमार मुख्य वित्त अधिकारी, भीम सिंह, तरुण कुमार जैन, सुनील सैनी, मीडिया प्रभारी डा. अमर सिंह मीना आदि संस्थान के सभी कर्मचारियों द्वारा पूरा सहयोग कार्यक्रम को समापन तक करने में दिया. साथ ही, महानिदेशक ने संस्थान के कर्मचारियों को अच्छा कार्य करने के लिए धन्यवाद देते हुए अपने संबोधन से लाभान्वित किया.

किसानों को हर सवाल का मिलेगा जवाब

सबौर : बिहार सरकार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने पिछले दिनों बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर में किसानों को समर्पित एक कार्यक्रम ‘सवालजवाब’ का उद्घाटन किया.

इस कार्यक्रम में पूरे राज्य के किसान विश्वविद्यालय के यूट्यूब और चैनल और वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जुड़े. यह कार्यक्रम हर माह के प्रथम शनिवार को किसानों के सवालों के जवाब को ले कर आता रहेगा. फसल अवशेष प्रबंधन की थीम पर कार्यक्रम में किसानों के जवाब देते हुए कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि फसल उपजने के उपरांत अवशेष को जलाना नहीं है, बल्कि गलाना है. मजबूरी में हमें ऐसे किसान भाइयों पर दंडात्मक कार्यवाही करनी पड़ती है, जो पराली को जलाते हैं.

इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. डीआर सिंह ने कहा कि हमारा प्रयास रहा है प्रयोगशाला से खेत तक एक बेहतर समन्वय हो और यह कार्यक्रम उसी लक्ष्य के साथ एक कड़ी के रूप में कार्य करेगा.

उन्होंने आगे यह भी कहा कि किसान समस्या में विश्वविद्यालय की ओर देखता है. हम से उम्मीद करता है कि हम उन्हें सही रास्ता दिखाएं. विश्वविद्यालय के प्रसार कार्यक्रम का यही लक्ष्य है कि अंतिम छोर पर खड़े किसानों तक हम सही समय पर तकनीक और वैज्ञानिक सलाह पहुंचा सकें.

इस अवसर पर भागलपुर के सांसद अजय मंडल और सुल्तानगंज के विधायक ललित नारायण मंडल ने भी हिस्सा लिया. कार्यक्रम का संचालन अन्नू ने किया.

मंत्री ने वैज्ञानिकों को किया सम्मानित

इस के उपरांत विश्वविद्यालय के मिनी औडिटोरियम में विश्वविद्यालय का ईमैनुअल तैयार करने वाले 17 वैज्ञानिकों को मंत्री द्वारा प्रमाणपत्र दे कर समान्नित किया गया. वैज्ञानिकों को सम्मानित करते हुए मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि यहां 17 युवा वैज्ञानिकों को सम्मानित करते हुए मुझे अति प्रसन्नता हो रही है. देश और दुनिया में विकसित देश के वैज्ञानिक उन्नत हथियार बना रहे हैं, जिस से बड़ी संख्या में इनसानों को खत्म किया जा सके. लेकिन हमें आप पर गर्व है कि आप सभी युवा वैज्ञनिक उन्नत खेती के लिए दिनरात एक कर के शोध कर रहे हैं, ताकि कोई भूखा न सोए.

गौरतलब है कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने देश में प्रतिभाओं को आकर्षित करने एवं उच्च कृषि शिक्षा को मजबूत करने के लिए राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (नाहेप) की शुरुआत की गई थी. इस परियोजना को विश्व बैंक और भारत सरकार द्वारा 50:50 यानी फिफ्टीफिफ्टी के आधार पर वित्तपोषित है. इस परियोजना के अंतर्गत स्नात्तक एवं स्नातकोतर विषयों के सभी पाठ्यक्रम को बनने के लिए देशभर के कृषि वैज्ञानिकों से आवेदन मांगे गए थे और इसी क्रम में बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर के 17 वैज्ञानिकों का चयन 31 पाठ्यक्रम बनाने के लिए आईसीएआर व नाहेप द्वारा किया गया था. इन्हीं वैज्ञानिकों ने इस मैनुअल को तैयार किया है. कुलपति ने मैनुअल तैयार करने वाले वैज्ञानिकों की तारीफ की.

इन वैज्ञानिकों को किया गया सम्मानित

Sawal Jawab

कार्यक्रम में डा. अंशुमान कोहली, डा. रूबी रानी, डा. श्वेता शांभवी, डा. राजीव रक्षित, डा. एच. मीर, डा. शशांक शेखर सोलंकी, डा. मृणालिनी कुमारी, डा. मैनाक घोष, डा. वसीम सिद्दीकी, डा. अनुपम दास, डा. तमोघना साहा, ई. विकास चंद्र वर्मा, डा. मनोज कुंडू, डा. प्रीतम गांगुली, डा. तुषार रंजन, डा. चंदन पांडा एवं डा. कल्मेश मंगवी को सम्मानित किया गया.

बिहार कृषि महाविद्यालय के सौ वर्षों के सफर पर वृत्तचित्र का हुआ लोकार्पण

मंत्री कुमार सर्वजीत ने बीएयू के मीडिया सेंटर द्वारा निर्मित ऐतिहासिक फिल्म का लोकार्पण किया. इस फिल्म में एक ब्रिटिश राज में सबौर में कृषि महाविद्यालय खोलने से ले कर विश्वविद्यालय बनाने तक के सफर को दिखाया गया.

लोकगीत पर आधारित जागरूकता कार्यक्रम का लोकार्पण

सामुदायिक रेडियो एफएम ग्रीन पर एक जागरूकता कार्यक्रम “फसल अवशेष मत जलाना, यह है खेती का गहना” का लोकार्पण मंत्री कुमार सर्वजीत ने किया. यह कार्यक्रम लोकगीत और नाटक के जरीए लोगों से फसल अवशेष और पुआल नहीं जलाने का संदेश देता है. मंत्री कुमार सर्वजीत के लोकार्पण के साथ ही रेडियो पर एक लोकगीत का प्रसारण हुआ, जिस के बोल थे “खेत में अगर जलाया पुआल, मिट्टी हो जाएगी बेहाल…” यह लोकगीत स्थानीय कलाकार ताराकांत ठाकुर ने गया है.

इस मौके पर मंत्री कुमार सर्वजीत ने कहा कि कृषि गीत आजकल लुप्त हो रहे हैं. अतः बीएयू का एक कृषि गीत संकलन करने का एक अच्छा प्रयास है.

गुड प्रैक्टिस एंड एक्स्टेंशन मौडल’ पुस्तक का हुआ विमोचन

Sawal Jawab

विश्वविद्यालय में किसानों के हितों में किए गए शोध और चलाए गए कार्यक्रमों का संकलन एक पुस्तक में किया गया है, जिस का नाम है, “गुड प्रैक्टिस एंड एक्स्टेंशन मौडल’. मंत्री एवं सभी गणमान्य व्यक्तियों ने पुस्तक का विमोचन किया.

 

इन कार्यक्रमों का स्वागत भाषण प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरके सोहाने ने किया, संचालन डा. स्वेता संभावी ने किया एवं धन्यवाद ज्ञापन अधिष्ठाता कृषि डा. एके साह ने किया. इस आशय की सूचना विश्वविद्यालय के पीआरओ डा. राजेश कुमार ने दी.

25 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से प्याज

नई दिल्ली : सरकार ने उपभोक्ताओं को खरीफ फसल की आवक में देरी के चलते प्याज की कीमतों में हाल में आई वृद्धि से बचाने के लिए 25 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमत पर बफर से प्याज की उत्साहवर्धक खुदरा बिक्री आरंभ की है.

यह घरेलू उपभोक्ताओं के लिए प्याज की उपलब्धता और निम्न लागत सुनिश्चित करने के लिए किए गए उपायों के अतिरिक्त एक और उपाय है, जैसे 29 अक्तूबर, 2023 से 800 डालर प्रति मीट्रिक टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) लगाना, पहले से ही खरीदे गए 5.06 लाख टन के अतिरिक्त बफर खरीद में 2 लाख टन की वृद्धि और अगस्त के दूसरे सप्ताह से खुदरा बिक्री, ई- नीलामी और थोक बाजारों में थोक बिक्री के माध्यम से प्याज का निरंतर निबटान.

उपभोक्ता मामलों के विभाग ने एनसीसीएफ, नाफेड, केंद्रीय भंडार और अन्य राज्य नियंत्रित सहकारी समितियों द्वारा प्रचालित खुदरा दुकानों और मोबाइल वैन के माध्यम से 25 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमत पर प्याज का उत्साहवर्धक निबटान आरंभ कर दिया है.

2 नवंबर तक नाफेड ने 21 राज्यों के 55 शहरों में स्टेशनरी आउटलेट और मोबाइल वैन सहित 329 रिटेल प्वाइंट स्थापित किए हैं. इसी तरह एनसीसीएफ ने 20 राज्यों के 54 शहरों में 457 रिटेल प्वाइंट स्थापित किए हैं.

केंद्रीय भंडार ने भी 3 नवंबर, 2023 से दिल्ली व एनसीआर में अपने खुदरा दुकानों के माध्यम से प्याज की खुदरा आपूर्ति शुरू कर दी है और सफल मदर डेयरी इस सप्ताहांत से आरंभ करेगी. तेलंगाना और अन्य दक्षिणी राज्यों में उपभोक्ताओं को प्याज की खुदरा बिक्री हैदराबाद कृषि सहकारी संघ (एचएसीए) द्वारा की जा रही है.

रबी और खरीफ फसलों के बीच मौसमी मूल्य अस्थिरता को नियंत्रित करने के लिए, सरकार बाद में निर्धारित और लक्षित रिलीज के लिए रबी प्याज की खरीद कर के प्याज बफर बनाए रखती है.

इस वर्ष साल 2022-23 में बफर आकार को 2.5 एलएमटी से बढ़ा कर 7 एलएमटी कर दिया गया है. अब तक 5.06 एलएमटी प्याज की खरीद की जा चुकी है और शेष 2 एलएमटी की खरीद जारी है.

सरकार द्वारा उठाए गए सक्रिय कदमों ने परिणाम प्रदर्शित करना आरंभ कर दिया है, क्योंकि बेंचमार्क लासलगांव बाजार में प्याज की कीमतें 28 अक्तूबर, 2023 को 4,800 रुपए प्रति क्विंटल से घट कर 3 नवंबर, 2023 को 3,650 रुपए प्रति क्विंटल हो गई, जो 24 फीसदी की गिरावट है. आगामी सप्ताह में खुदरा कीमतों में इसी तरह की गिरावट की उम्मीद है.

स्मरणीय है कि जब मानसून की बारिश और सफेद मक्खी के संक्रमण से आपूर्ति में व्यवधान के कारण जून, 2023 के आखिरी सप्ताह से टमाटर की कीमतें बढ़ गईं, तो सरकार ने कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उत्पादक राज्यों से एनसीसीएफ और एनएएफईडी के माध्यम से टमाटर खरीद कर युक्तिसंगत कदम उठाए और महाराष्ट्र व प्रमुख उपभोग केंद्रों में उपभोक्ताओं को अत्यधिक रियायती दर पर आपूर्ति की.

खरीदे गए टमाटर खुदरा उपभोक्ताओं को रियायती कीमतों पर बेचे गए. शुरुआत 90 रुपए प्रति किलोग्राम से हुई और धीरेधीरे कम हो कर 40 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई. खुदरा युक्तियों के माध्यम से टमाटर की खुदरा कीमतों को अगस्त के पहले सप्ताह के शीर्ष, अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य 140 रुपए प्रति किलोग्राम से घटा कर सितंबर, 2023 के पहले सप्ताह तक लगभग 40 रुपए प्रति किलोग्राम तक ला दिया गया.

अधिकांश भारतीय परिवारों के लिए दलहन पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं. आम घरों में दाल की उपलब्धता और रियायती कीमत सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने 1 किलोग्राम पैक के लिए 60 रुपए प्रति किलोग्राम और 30 किलोग्राम पैक के लिए 55 रुपए प्रति किलोग्राम की रियायती कीमतों पर भारत दाल लौंच की है. भारत दाल उपभोक्ताओं को खुदरा बिक्री के लिए और नाफेड, एनसीसीएफ, केंद्रीय भंडार, सफल और तेलंगाना और महाराष्ट्र में राज्य नियंत्रित सहकारी समितियों के माध्यम से सेना, सीएपीएफ और कल्याणकारी योजनाओं के लिए आपूर्ति के लिए कृषि उपलब्ध कराया जाता है.

अब तक 3.2 एलएमटी चना स्टाक रूपांतरण के लिए आवंटित किया गया है, जिस में से 75,269 मीट्रिक टन की मिलिंग की गई है और 59,183 मीट्रिक टन का आवंटन 282 शहरों में 3010 खुदरा बिंदुओं (स्टेशनरी आउटलेट मोबाइल वैन) के माध्यम से किया गया है.

देशभर में उपभोक्ताओं को 4 लाख टन से अधिक भारत दाल उपलब्ध कराने के लिए आने वाले दिनों में भारत दाल की आपूर्ति बढ़ाई जा रही है.

‘‘मशरूम उत्पादन तकनीक’’ पर प्रशिक्षण

बस्ती : कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, बस्ती पर आर्या योजना के अंतर्गत बेरोजगार नवयुवकों/युवतियों को गांव स्तर पर स्वरोजगार सृजन के उद्देश्य से ‘‘मशरूम उत्पादन तकनीक’’ विषय पर 5 दिवसीय प्रशिक्षण आयोजित किया गया.

प्रशिक्षण के अंतिम दिन मुख्य अतिथि भूमि संरक्षण अधिकारी डा. राज मंगल चौधरी ने प्रशिक्षणार्थियों को संबोधित करते हुए बताया कि भारत सरकार एवं उत्तर प्रदेश सरकार की मंशा है कि गांव स्तर पर बेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को रोजगार उपलब्ध कराए जाएं, जिस से कि उन के शहरों की ओर बढ रहे पलायन को रोका जा सके.

इसी उद्देश्य के तहत आम लोगों को मशरूम उत्पादन तकनीक का प्रशिक्षण कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा प्रदान किया जा रहा है, क्योंकि यह भूमिहीन व गरीब किसानों की आमदनी का जरीया है, इसे अपना कर वे स्वरोजगार सृजन कर सकते हैं.

इस अवसर पर उन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त 20 प्रशिक्षनार्थियों को प्रमाणपत्र प्रदान किया गया.

Mushroomकोर्स के कोआर्डिनेटर एवं पौध सुरक्षा वैज्ञानिक डा. प्रेम शंकर ने अवगत कराया कि इस योजना के अंतर्गत बकरीपालन एवं मधुमक्खीपालन पर भी स्वरोजगार सृजन हेतु बेरोजगार नवयुवकों एवं नवयुवतियों को प्रशिक्षित किया जाएगा. साथ ही साथ बटन मशरूम की खेती की तकनीक की विस्तार से चर्चा की.

केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक, पशुपालन, डा. डीके श्रीवास्तव ने अपने संबोधन के दौरान प्रशिक्षार्थियों को पशुपालन से संबंधित जैसे बकरीपालन, मुरगीपालन, दुग्ध उत्पादन एवं बटन मशरूम की खेती में कंपोस्ट बनाने की तकनीक के बारे में जानकारी दी.

वैज्ञानिक डा. वीबी सिंह ने प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षणार्थियों को बताया कि बेरोजगार नवयुवक एवं युवतियां मशरूम उत्पादन कर कम लागत एवं कम स्थान में आसानी से दोगुनी आय अर्जित कर सकते हैं. साथ ही, बटन मशरूम, दूधिया मशरूम, ढिंगरी मशरूम पर विस्तृत जानकारी प्रदान की.

इस अवसर पर केंद्र के कर्मचारी निखिल सिंह, जेपी शुक्ल, बनारसी लाल, प्रिंस यादव, सूर्य प्रकाश सिंह, रंजन, राजू प्रजापति, जहीर, जितेंद्र पाल, आदित्य प्रताप सिंह आदि उपस्थित रहे.

जलवायु परिवर्तन में उन्नत कृषि तकनीकें अपनाएं

हिसार : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के इंदिरा गांधी सभागार में “21वीं शताब्दी में कृषि का भविष्य” विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया, जिस में मुख्य वक्ता के रूप में यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस, यूएसए के चांसलर डा. रोबर्ट जे. जौंस रहे, जबकि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की.

इस व्याख्यान का आयोजन चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय और यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस, यूएसए द्वारा संयुक्त रूप से किया गया.

मुख्य वक्ता डा. रोबर्ट जे. जौंस ने जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा व सतत कृषि विकास जैसे मुद्दों को चुनौतीपूर्ण बताया.

उन्होंने जलवायु परिवर्तन पर जोर देते हुए कहा कि विश्व में बढ़ती आबादी के लिए जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव चिंतनीय हो सकते हैं. जलवायु परिवर्तन से हो रहे दुष्प्रभावों से निबटने के लिए न केवल पौलिसी प्लानर, बल्कि किसानों व आम जनता को भी सतर्क रहने की जरूरत है. कृषि क्षेत्र में उपयुक्त फसल, किस्म का चुनाव, कृषि पद्धतियों का सही इस्तेमाल व नवीनतम तरीके जलवायु परिवर्तन से निबटने में बेहतर भूमिका निभा सकते है. जलवायु परिवर्तन के परिवेश में छोटी जोत वाले किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए खाद्यान्न एवं पोषण की सुरक्षा व स्थिरता को बनाए रखना जरूरी है.

Climate Changeउन्होंने आगे बताया कि जलवायु परिवर्तन किसानों व वैज्ञानिकों के लिए एक चिंता का विषय बन गया है. जलवायु परिवर्तन अब ग्लोबल वार्मिंग तक सीमित नही रहा, इस के मौसम में आने वाले अप्रत्याशित बदलाव जैसे आंधी, तूफान, सूखापन, बाढ़ इत्यादि शामिल है. असमय तापमान का बढऩा कृषि उत्पादन में प्रभाव डालता है, इसलिए जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निबटने के लिए अनुकूल रणनीतियों जैसे कि बढ़ते तापमान व सूखापन के अनुकूल किस्में, मिट्टी की नमी का संरक्षण, पानी की उपलब्धता, रोगरहित किस्में, फसल विविधीकरण, मौसम का भविष्य आकंलन, टिकाऊ फसल उत्पादन प्रबंधन को अपनाने की आवश्यकता है.

आधुनिक तकनीकों से खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना प्राथमिकता

कुलपति प्रो. बीआर कंबोज ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि तीव्र गति से बढ़ रही जनसंख्या की भोजन और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कृषि उत्पादन बढ़ाना 21वीं सदी की एक प्रमुख चुनौती है. वैश्विक जलवायु परिवर्तन के खतरे ने वैज्ञानिकों में चिंता पैदा कर दी है, क्योंकि इस से फसल उत्पादन गंभीर रूप से प्रभावित होता है.

उन्होंने कहा कि हरियाणा प्रदेश में कृषि क्षेत्र अर्थव्यवस्था में प्रमुख भूमिका निभाता है, क्योंकि यह राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 14.1 फीसदी का योगदान देता है. यह क्षेत्र राज्य की लगभग 51 फीसदी कामकाजी आबादी को रोजगार भी प्रदान करता है. कृषि क्षेत्र की इस स्थिति में हरियाणा सरकार की किसान हितैषी नीतियों, हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से तकनीकी सहायता और नवीनतम कृषि प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए प्रदेश के किसानों की इच्छा का बहुत बड़ा योगदान है.

उन्होंने कृषि विकास के लिए भविष्य की योजना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमारा दृष्टिकोण पर्यावरण को संरक्षित करते हुए प्रति इकाई क्षेत्र में उत्पादकता क्षमता को बढ़ाने का है.

उन्होंने आधुनिक तकनीकों एवं नवाचारों का प्रयोग करते हुए खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना विश्वविद्यालय की प्राथमिकता बताया.

यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस के कृषि उपभोक्ता एवं पर्यावरण विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता जर्मन बालेरो ने कृषि से जुड़ी चुनौतियों जैसे फसल विविधीकरण, सतत कृषि विकास, उत्पादन में वृद्धि व पर्यावरण परिवर्तन पर चर्चा करते हुए कहा कि इन समस्याओं को प्राकृतिक खेती, कृषि से जुड़ी उच्च स्तरीय तकनीकें, उन्नत किस्में व आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल कर हल किया जा सकता है.

उन्होंने आगे कहा कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय व यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस द्वारा संयुक्त रूप से शोध कार्य कर भविष्य में कृषि के क्षेत्र में बदलाव लाया जा सकता है.

Climate Changeकृषि एवं जैविक इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. विजय सिंह ने बताया कि विश्व के सतत विकास के लिए पौष्टिक अनाज व नवीनीकरणीय ऊर्जा पर काम करने की जरूरत है. वहीं स्नाकोत्तर शिक्षा के अधिष्ठाता एवं आईडीपी के प्रमुख अन्वेशक डा. केडी शर्मा ने सभी का स्वागत किया, जबकि मंच संचालन डा. जयंति टोकस ने किया.

इस अवसर पर मुख्य वक्ता डा. रोबर्ट जे. जौंस के साथ शिष्टमंडल में यूनिवर्सिटी औफ इलिनोईस के वरिष्ठ कार्यकारी सहकुलपति शोध एवं नवाचार मेलैनी लूट्स, कारपोरेट एवं आर्थिक विकास मामलों के कार्यकारी सहकुलपति प्रदीप खन्ना, वाइस प्रोवोस्ट फौर ग्लोबल अफेयर एंड स्ट्रेटजी रिटूमेटसे, कृषि एवं उपभोक्ता अर्थशास्त्र विभाग के प्रो. मधु खन्ना, कंप्यूटर विज्ञान विभाग के प्रोफेसर
एवं एसोसिएट हेड महेश विश्वनाथन और ग्लोबल रिलेशन, इलिनोईस इंटरनेशनल के निदेशक समर जौंस मौजूद रहे.

कृषि मेले में कृषि योजनाओं की जानकारी

वाराणसी : कृषि सूचना तंत्र सुदृढ़ीकरण एवं कृषक जागरूकता कार्यक्रम के अंतर्गत जनपद वाराणसी में विकासखंड स्तरीय कृषि निवेश मेला/गोष्ठी का आयोजन पिछले दिनों बलदेव इंटर कालेज, बड़ागांव पर किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पिंडरा विधानसभा के विधायक डा. अवधेश सिंह ने किसानों को सरकार के द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

विधायक डा. अवधेश सिंह ने बताया कि पीएम कुसुम योजना बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना है, जिस में किसान 10 फीसदी मार्जिन मनी देख कर सोलर पैनल लगवा सकते हैं, जिस से किसानों को फ्री में बिजली प्राप्त होगी.

Krishi Melaविधायक डा. अवधेश सिंह द्वारा किसानों को बताया गया कि खरीफ मौसम की धान की फसल की कटाई चालू हो गई है. किसान अपना धान सरकारी क्रय केंद्र पर ही बेचें, जिस से अधिक लाभ प्राप्त कर सकें. साथ में फसल बीमा करने का आह्वाहन भी किया.

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे जिला कृषि अधिकारी संगम सिंह मौर्य के द्वारा किसानों को रबी फसल गेहूं चना, मटर, सरसों की बोआई के बारे में विस्तार से बताया गया.

उन्होंने आगे कहा कि किसान बोआई करने से पहले बीज का उपचार अवश्य करें. उन्होंने 1.5 फीसदी प्रीमियम दे कर फसल बीमा कराने के लिए किसानों से आग्रह भी किया.

सहायक निदेशक मृदा परीक्षण, वाराणसी, राजेश कुमार राय के द्वारा किसानों को मिट्टी में जीवांश बढ़ाने के लिए आग्रह किया गया, जिस से मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सकें.

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक राहुल सिंह के द्वारा समसामयिक खेती की तकनीकी जानकारी दी गई. इस के साथ ही मत्स्य विभाग, पशुपालन विभाग, उद्यान विभाग, नेडा विभाग, जिला अग्रणी प्रबंधक, मंडी, निर्यात एवं स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी द्वारा अपने विभाग की योजनाओं के बारे में विस्तृत चर्चा किया गया.

Krishi Melaकार्यक्रम के अंत में विधायक द्वारा ड्रोन से नैनो यूरिया के छिड़काव किए जाने की तकनीकी का आरंभ किया गया और लाभार्थियों को आयुष्मान कार्ड एवं सरसों की मिनीकिट वितरित की गई, जिस में किसान कृष्ण कुमार, तूफानी यादव, नंदलाल मिश्रा, सुरेश कुमार सभाजीत, कल्लू वर्मा, लाल बहादुर सिंह इत्यादि किसान उपस्थित रहे.

कार्यक्रम का संचालन सहायक विकास अधिकारी, कृषि, अशोक पाल के द्वारा किया गया, साथ में विभाग के सभी कर्मचारी उपस्थित रहे. गोष्ठी में कृषि विभाग, स्वास्थ्य विभाग, यूनियन बैंक औफ इंडिया, उद्यान विभाग, पशुपालन विभाग, मत्स्य विभाग, मंडी / निर्यात , इफको, कानपुर फर्टिलाइजर, कलश सीड, वीएनआर सीड, सौलिडेरिड, बायोशर्ट इंटरनेशनल एवं अन्य प्रमुख कंपनियों के द्वारा स्टाल का प्रदर्शन भी किया गया था.

क्या लाभकारी है काले गेहूं की खेती?

काले गेहूं के उत्पादन को ले कर देश के किसानों में आजकल होड़ लगी हुई है. न जाने कितने किसान काले गेहूं को बोने के लिए आगे आ रहे हैं और इस का बीज औनेपौने दामों में खरीद कर बोना चाहते हैं. कई किसानों ने तो जब फसल पक कर तैयार हुई थी, तभी अपने बीज बुक करा दिए थे. और अब वह बोने की तैयारी कर रहे हैं.

जिन लोगों को काले गेहूं का बीज उपलब्ध नहीं हो पाया है, वह कई गुना दामों में इस का बीज खरीद रहे हैं. कई किसान तो 3 से 4 गुना अधिक ऊंचे दाम चुका कर इस का बीज ले रहे हैं, जबकि सामान्य गेहूं बाजार में 1,600 से 1,800 रुपए प्रति क्विंटल के औसत भाव से बेचा जा रहा है.

लेकिन भेड़चाल के चलते काला गेहूं बाजार में 6,000 से 7,000 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से बिकने लगा है. यहां पर ध्यान देने की बात है कि पिछले कुछ 1-2 सालों से काले गेहूं का उत्पादन करने वाले किसान फूले नहीं समा रहे हैं. वहीं जानकारी के अभाव में काले गेहूं को पौष्टिक बता रहे हैं. साथ ही, किसानों की आय दोगुना करने की बातें भी कही जाने लगी हैं, जबकि गेहूं, जौ अनुसंधान निदेशालय, करनाल के वैज्ञानिकों की मानें, तो देश में काले गेहूं की कोई किस्म ही जारी नहीं हुई है.

Black Wheatजिस काले गेहूं का उत्पादन किसान कर रहे हैं, वह पीली भूरी रोली के साथसाथ कई बीमारियों का वाहक है. काले गेहूं की पौष्टिकता पर तो इस में सामान्य गेहूं की किस्मों की तुलना में न तो अधिक प्रोटीन है और न ही आयरन व जिंक की मात्रा अधिक है. इस की चपाती भी बेस्वाद कही जाती है. काले गेहूं की चपाती देखने में काली होने के कारण भी लोग इस को ज्यादा खाने में पसंद नहीं करते.

यहां पर ध्यान देने की बात यह भी है कि काले गेहूं की सचाई जानने के लिए गेहूं अनुसंधान निदेशालय के वैज्ञानिकों ने शोध किया है. संस्थान के इस शोध में सामान्य गेहूं किस्म की तुलना में काले गेहूं में कोई अधिक पौष्टिक गुण नहीं मिले हैं.

संस्थान के निदेशक डा. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने बताया कि काले गेहूं की उत्पादकता और गुणवत्ता सामान्य गेहूं से कमजोर है. उन का यह भी कहना है कि देश के किसी भी कृषि संस्थान के द्वारा काले गेहूं की कोई किस्म जारी नहीं की गई है.

ऐसे में सवाल यह उठता है कि काले गेहूं का बीज किसानों के पास आया तो आया कहां से? कौन इस को बायोफोर्टीफाइड बता कर लगातार बढ़ावा देने में जुटा हुआ है. अब इस बात पर भी ध्यान देना है कि इस गेहूं में अधिक गुणवत्ता न होने के कारण इस को इतना आगे कैसे बढ़ाया जा रहा है.

यहां पर ध्यान देने की बात है कि किसी भी नई किस्म का बीज भारत सरकार से अधिसूचित होने के बाद ही किसानों को उपलब्ध कराया जाता रहा है, जबकि अब तक के इतिहास में काले गेहूं की किसी भी किस्म को भारत सरकार ने अधिसूचित नहीं किया है और न ही सरकारी संस्थानों व मान्यताप्राप्त संस्थानों के द्वारा इस का बीज बेचा जा रहा है, इसलिए किसानों को सतर्क रहने की जरूरत है कि वह जब तक सरकार द्वारा अनुमोदित बीज उपलब्ध न कराया जाए, तब तक ऐसे बीजों और भ्रामक प्रचार से बचा जाना चाहिए.

काले गेहूं की सोशल मीडिया पर खूबियां

गेहूं को ले कर आई मीडिया रिपोर्ट के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के महानिदेशक के निर्देश पर गेहूं, जौ अनुसंधान निदेशालय ने वर्ष 2018 और 2019 से 2 साल तक काले गेहूं की किस्मों पर परीक्षण किया गया.

परीक्षण के दौरान काले गेहूं की उत्पादकता सामान्य गेहूं किस्म की तुलना में काफी कम पाई गई. साथ ही, कई रोगों का प्रकोप भी इस किस्म में देखने को मिला है.

काले गेहूं की ट्रायल के मुख्य अन्वेषक डा. ज्ञानेंद्र सिंह ने बताया कि इस गेहूं पर उन के संस्थान में शोध कार्य किए जा रहे हैं. मीडिया रिपोर्ट की मानें, तो काले गेहूं का विकास पंजाब के मोहाली स्थित राष्ट्रीय कृषि खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान, नाबी ने किया है. नाबी के पास इस का पेटेंट भी है.

अब सवाल यह उठता है कि भारत सरकार के अधिसूचित किए बिना इस संस्थान ने काले गेहूं की किस्म का बीज किसानों को कैसे पहुंचा दिया.

छोटे किसानों पर भी पड़ता है माली बोझ

आय बढ़ाने के फेर में लघु व सीमांत किसान काले गेहूं की खेती करने के लिए लालायित हैं, लेकिन किसानों को यह नहीं पता कि कृषि उपज मंडियों में काले गेहूं का कोई खरीदार नहीं है. ऐसे में लघु व सीमांत श्रेणी के किसानों को समझदारी से काम लेने की जरूरत है. हालात कहीं ऐसे न हो जाएं कि वे घर के रहें न घाट के.

गौरतलब है कि प्रदेश के लघु व सीमांत श्रेणी के किसानों के पास 4 से 5 बीघा कृषि जोत है. ऐसे में महंगा बीज खरीद कर किसानों ने काले गेहूं की खेती कर भी ली, लेकिन बाजार में नहीं बिकने के कारण उन को माली नुकसान हो सकता है. किसानों को इस बात पर ध्यान देना है कि वे ऐसे बीजों की ही बोआई करें, जिस की बाजार में मांग अच्छी हो और उचित कीमत मिल रही हो. वे ऐसी फसलों को न बोएं, जिस को बेचने में काफी दिक्कत होती हो.

Black Wheatआखिर कितनी है पौष्टिकता

लैब में चले शोध के उपरांत पाया गया है कि काले गेहूं की पौष्टिकता और गुणवत्ता पर भी गेहूं, जौ अनुसंधान निदेशालय, करनाल में संचालित किया गया है. संस्थान के वैज्ञानिक डाक्टर सेवाराम के अनुसार, काले गेहूं की गुणवत्ता जांच में कुछ ऐसे तत्त्व सामने नहीं आए हैं, जिस से कहा जा सके कि काले गेहूं में पौष्टिक तत्त्वों की भरपूर मात्रा उपलब्ध है. उन का मानना है कि काले गेहूं में प्रोटीन, आयरन व जिंक सहित दूसरे पोषक तत्त्वों की मात्रा सामान्य गेहूं की किस्मों की तुलना में काफी कम पाई गई है.

काले गेहूं को ले कर सोशल मीडिया पर प्रचार

गेहूं को ले कर पिछले साल से तरहतरह के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन यह दावे हकीकत से बहुत दूर हैं. इस से किसानों की लागत में इजाफा हो रहा है. साथ ही, जानकारी की कमी में उपभोक्ताओं को भी माली नुकसान उठाना पड़ रहा है.

ऐसे में प्रदेश के किसानों के साथसाथ मीडिया वालों और वक्ताओं को भी समझदारी से काम लेने की जरूरत है और हकीकत को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए मीडिया वालों को भी काम करना होगा.

काले गेहूं को ले कर किसानों को भ्रमित किया जा रहा है. काले गेहूं की कोई किस्म देश के किसानों के लिए अधिसूचित नहीं हुई है. इस में कोई विशेष प्रकार के पोषक तत्त्व भी नहीं पाए गए हैं.

इतना ही नहीं, काले गेहूं के बारे में आईआईटीडब्ल्यूबीआर, करनाल में रिसर्च हुई है, जिस में तीनों वैरायटी गुणवत्ता मानकों पर खरी नहीं उतर पाई है. इस पर अभी आगे भी रिसर्च जारी है.

यदि यह वैरायटी पौष्टिकता में अच्छी पाई गई, तो यकीनन किसानों तक इस की जानकारी भविष्य में दी जाएगी, लेकिन अभी तक के अनुसंधान में उसे सामान्य गेहूं की प्रजाति की तुलना में कोई अधिक पौष्टिकता के गुण नहीं पाए गए हैं.