Exploitation of Farmers: चुनाव वाले समय में किसानों से कर्ज माफी जैसे तमाम वादे कर दिए जाते हैं. पर जब वादे निभाने का समय आता है, तब तमाम तरह की शर्तें लगा दी जाती हैं, जिन का फायदा जरूरतमंद किसानों तक नहीं पहुंच पाता और उन की उम्मीदों पर पानी फिर जाता है. किसानों का शोषण आढ़ती, व्यापारी से ले कर सरकार तक करती आई है.
किसानों को व्यापारी समयसमय पर मदद करते रहते हैं, पर उस के बदले 3 फीसदी की दर से ब्याज भी वसूलते हैं. फसल आने पर व्यापारी अपना पैसा ब्याज सहित काट लेते हैं. किसान पहले ही व्यापारी का कर्जदार होता है, इसलिए वह दूसरे बाजार या आढ़ती को माल नहीं बेच पाता, जिस का लाभ व्यापारी उठाते हैं.
किसानों के बीच यह भी सोच है कि उन के पुरखे भी व्यापारियों से लेनदेन करते आए थे, लिहाजा वे भी उन्हीं के जाल में फंसे रहते हैं.
इस के अलावा दुकानदार खाद, बीज व कीटनाशक आदि सामान भी बेचते हैं. कुछ दुकानदार तय कीमत से भी कम पर किसानों को सामान बेचते हैं, लेकिन उस के साथ दूसरा सामान ऐसा देते हैं, जिस से वे 40 फीसदी तक मुनाफा कमाते हैं. यहां भी किसान का शोषण होता है, जिस का उन को पता ही नहीं चल पाता है.

लुभावना पैकेज
हर प्रदेश में जगहजगह कृषि गोदाम, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि रक्षा इकाई जैसे केंद्र हैं, जहां से किसानों को बीज व कीटनाशक मिलते हैं और सलाह भी मिलती है. ये केंद्र किसानों को उपकरणों, बीजों व दवा पर छूट के बारे में भी जानकारी देते हैं. यही काम अगर सरकारी कर्मचारी करें, तो किसान ज्यादा फायदे में रहेगा. छूट वाले बीज महज 3-5 फीसदी किसान ही ले पाते हैं. सब्सिडी वाले बीज कुछ लोगों द्वारा पहले ही खरीद लिए जाते हैं, जिन्हें बाद में किसानों को मनचाहे दामों पर बेचा जाता है.
तहसील स्तर पर कर्मचारी
सरकारी तबका भी किसानों का शोषण करने में पीछे नहीं है. किसान का सब से नजदीकी संबंध लेखपाल के साथ होता है. लेखपाल किसान के घर आता है, तो किसान उसे दूध, घी, फलसब्जियां और दालें आदि देते हैं, लेकिन अगर किसान खसरा या कोई और जरूरी कागज लेने लेखपाल के पास जाए, तो वह कम से कम 50 रुपए जरूर लेगा. कृषि से संबंधित कोई भी काम कराना हो, तो बिना घूस दिए किसानों का काम नहीं होता. कोई डाक्यूमेंट बनवाना हो तब भी पैसे लगते हैं. अगर कोई राहत का चैक बनना है, तो तहसीलदार या डीएम का बहाना बना कर लेखपाल 10 फीसदी तक रकम नकद लेता है.
कृषि क्षेत्र से जुड़े नेता
आज किसानों की बातें एसी में बैठे नेता या कृषि अधिकारी अकसर करते हैं. वे किसानों को समयसमय पर बरगलाते हैं, जिस से किसान समय से केसीसी, लगान व सिंचाई का पैसा नहीं देते, नतीजतन उन का ब्याज बढ़ जाता है. मजबूरन किसान कर्ज चुकाने के लिए तरहतरह के तरीके इस्तेमाल करते हैं. कई दफा वे फर्जी दस्तावेज भी बनवा लेते हैं, जिस से भविष्य में अकसर उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है.




 
        
    
