MGNREGA Scheme : किसान मजदूरों के लिए सालों से चल रही मनरेगा योजना का नाम बदलकर अब विकसित भारत जी राम जी योजना कर दिया गया है. सरकार के इस कदम से क्या बदलेंगे किसान मजदूरों के हालात?

MGNREGA योजना

2 फरवरी 2006 को देशभर के किसान मजदूरों के लिए कांग्रेस सरकार ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम / मनरेगा (MGNREGA) योजना की शुरुआत की थी, जिसका फायदा देश-भर के गांव-देहात में रहने वाले बेरोजगार लोगों को मिल रहा था. इसके तहत बेरोजगार लोगों को साल में 100 दिन रोजगार मिलने की गारंटी थी.

लेकिन हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा इस योजना का नाम बदलकर ‘विकसित भारत जी राम जी योजना ‘(VB G RAM G) कर दिया गया है. क्या नाम बदल देने से यह योजना अधिक लाभकारी बनेगी या इसके पीछे है सरकार का कुछ खास मकसद?

क्या मनरेगा नहीं थी लाभकारी

मनरेगा योजना के बारे में सरकार का पहलू रहा है कि मनरेगा योजना के तहत भले ही कानून में 100 दिनों के काम की गारंटी है, लेकिन लोगों को पूरे 100 दिन रोजगार ही नहीं मिल रह था. साल 2024 -25 में भी औसत रोजगार लगभग 50 दिन रहा, इसलिए इस योजना को कहीं अधिक लाभकारी बनाया जा सके, मजदूरों को अधिक दिन रोजगार मिल सके, इसलिए इस योजना में सुधार के साथ बदलाव की जरूरत थी.

‘विकसित भारत जी राम जी योजना’ में मिलेगा अधिक दिन रोजगार

इस योजना का नाम बदलने का सबसे बड़ा पहलू यह है कि अब नए प्रावधान के तहत मनरेगा में 100 दिनों के काम की गारंटी को बढ़ाकर अब 125 दिन कर दिया गया है. इस फैसले से अब गांव-देहात के लोगों को अधिक दिन रोजगार मिल सकेगा, क्योंकि मनरेगा कानून के तहत अभी तक एक साल में ‘कम से कम एक सौ दिन’ के काम का प्रावधान था. लेकिन अब रोजगार के दिनों में बढोत्तरी से लोगों को अधिक आमदनी होगी.

अब केंद्र सरकार की अधिक जिम्मेदारी

देश के अनेक राज्यों में 100 दिन के रोजगार को बढ़ाने को लेकर मांग थी, जिसमें कई बार पैसे का इंतजाम राज्य सरकारों को खुद भी करना पड़ता था, जो बहुत कम राज्य ही कर पाते थे. लेकिन अब इस नए बदलाव से नई योजना (VB G RAM G) में 125 दिन के काम की गारंटी मिलेगी, जिसकी अधिक जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होगी.

नए बिल में प्रस्ताव है कि इसके तहत होने वाले कुल खर्च का 60 प्रतिशत केंद्र सरकार वहन करेगी जबकि 40 प्रतिशत खर्च राज्य सरकार उठाएगी, जबकि पूर्वोत्तर के राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार इसके तहत होने वाले ख़र्च का 90 फीसदी खर्चा खुद उठाएगी.

देश के मजदूर हों या किसान, उनका इस्तेमाल हर सरकार अपने तरीके से करती आई है, क्योंकि यह एक बहुत बड़ा वर्ग है, जो सरकार का पक्का वोट बैंक भी है, जिसके लिए हर सरकार अपने अधिक फायदे के लिए, कुछ उनके फायदे वाली योजनाएं भी बनाती है, पर इस योजना का लाभ कितने लोगों को मिल पाता है, यह तो योजना लागू होने पर ही पता चलेगा.

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