Women Farmers : दिल्ली के पूसा संस्थान में किसान मेला लगा था. उस में देशभर के किसान, कृषि वैज्ञानिक, मशीन बनाने वाले और दर्शक आए थे. वहां के एक पांडाल में एक बैनर टंगा था, जिसमें महात्मा गांधी की किसानों को लेकर कही एक बात कुछ यों लिखी थी, ‘हमारे कार्यक्षेत्र में पधारने वालों में कृषक एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति है.
वह हम पर निर्भर नहीं, वरन हम उस पर निर्भर हैं. वह हमारे कार्य में बाधक नहीं, अपितु वह हमारे कार्य का उद्देश्य है. वह हमारे कार्यकलापों से असंबंधित नहीं, वरन उसका एक भाग है. उसकी सेवा कर हम अनुग्रह नहीं करते, वरन वह सेवा का अवसर प्रदान कर हम को उपकृत करता है.’
किसानों की तरक्की, समाज की तरक्की
महात्मा गांधी ने यह बात कई साल पहले कही थी और यह उनकी दूर की सोच ही थी कि, भारत जैसे कृषि प्रधान देश में किसानों की अनदेखी करना समाज की तरक्की में सबसे बड़ी बाधा है. यह अनदेखी किसानों को भी समझ लेनी चाहिए, क्योंकि आज के दौर में खेती के माने बदल गए हैं.
फसल उगाकर मंडी में बेच देना ही खेती-किसानी नहीं रह गया है, बल्कि अपनी उपज की सही कीमत मिलना भी किसानों के लिए बेहद जरूरी है. अब पूसा संस्थान के उस किसान मेले के एक और पांडाल की बात करते हैं. वहां कुछ औरतें अचार, आर्गेनिक दालें, शहद, कचरी, पापड़ वगैरह बेच रही थीं.
तरक्की करती महिलाएं
पुष्पा कौशिक और मनीषा सिंह जैसी जागरूक और कामयाब महिला किसानों (Women Farmers) ने साबित कर दिया है कि खेती-किसानी महज मर्दों की जागीर नहीं है. अब किसान महिलाएं भी किसी से कम नहीं हैं. जिज्ञासा बढ़ी तो वहां बैठी एक महिला किसान पुष्पा कौशिक से बातचीत की. वे उत्तर प्रदेश के हापुड़ इलाके के लालपुर गांव से आई थीं. उन्होंने अपना एक स्वयं सहायता समूह महिला किसान विकास संस्थान बना रखा है.
दरअसल, एग्री बिजनेस सिस्टम के हिमांशु मंगल पांडे ने उन्हें ऐसे समूह बनाने के लिए सलाह दी थी और इस बात से प्रेरणा लेकर उन्होंने अपने गांव के आसपास के 7 गांवों में 7-7 समूह बनाए,जिनसे 1500 महिला किसान (Women Farmers) जुड़ी हुई हैं.
कैसे कार्य करता है स्वयं सहायता समूह
ऐसे समूहों में औरतों को सिलाई-कढ़ाई की ट्रेनिंग दी जाती है. अचार बनाना, आर्गेनिक दालें उगाना और दलिया वगैरह की प्रोससिंग का काम भी वहां होता है. पुष्पा कौशिक अपने समूह की सचिव हैं. उन्होंने आगे बताया कि, उनके इलाके में सब्जियां खूब उगाई जाती हैं, इसलिए उन्होंने सब्जियों के अचार बनाने की ट्रेनिंग पूसा से ली थी.
इससे उन्हें अपनी मेहनत के दाम काफी अच्छे मिलने लगे थे. उन्हें आज भी पूसा की वरिष्ठ वैज्ञानिक रश्मि सिंह की कही बात याद है कि, थोड़ा सा दिमाग लगाने और सही दिशा में मेहनत करने से किसान अपने सामान की उचित कीमत पा सकते हैं.
कैसे की सब्जियों की प्रोसेसिंग
पुष्पा कौशिक को पहले मंडी में अपनी सब्जियों के दाम कम मिलते थे, लेकिन सब्जियों की ग्रेडिंग करने से अच्छे दाम मिलने लगे. उन्होंने यह भी बताया कि, वे अपनी उपज में रासायनिक खाद नहीं डालती हैं. दालों व दलिया वगैरह की प्रोसेसिंग हाथ की चक्की से की जाती है. मसाले भी इमामदस्ते में कूटे जाते हैं. बिल्कुल घरेलू तरीके से कार्य किया जाता है.
समूह के जरिए अच्छी कमाई
क्या अपने बनाए सामान की मार्केटिंग करने की समस्या नहीं आती है? इस सवाल पर पुष्पा कौशिक ने कहा कि, बिल्कुल आती है. ज्यादातर समूह सामान तो बना लेते हैं, लेकिन उस सामान को उचित कीमत पर बेचने की समस्या तो बनी रहती है. हमें पूसा के बिक्री केंद्र में दुकान मिली हुई है, जहां हमारे समूहों का बनाया सामान अच्छी कीमत पर बिकता है.
मनीषा सिंह ने भी बनाया समूह
जब कचरी व पापड़ बनाने के बारे में जानकारी लेनी चाही, तो पुष्पा कौशिक ने एक और महिला किसान मनीषा सिंह से हमें मिलवाया. वे हापुड़ के नजदीक कुचेसर रोड चोपला गांव से आई थीं. उन्होंने भी एक स्वयं सहायता समूह ‘सोसाइटी फॉर रूरल एंड एग्रीकल्चर डेवलपमेंट’ बनाया हुआ है, जो 3 साल पुरानी संस्था है.
उनके समूह में मूंग दाल, उड़द दाल, चावल, आलू वगैरह से पापड़ व कचरी बनाई जाती है. ऐसा करके महिला किसानों (Women Farmers) को अच्छा मुनाफा होता है और उनकी साथी औरतें इतनी मेहनत व लगन से ये सब चीजें बनाती हैं कि आज तक किसी ग्राहक ने कोई शिकायत नहीं की है.
अपनी संस्था की अध्यक्ष मनीषा सिंह ने आगे बताया कि, वे ज्यादातर चीजें खुद ही उगाती हैं. कुछ सामान बाजार से भी खरीदती हैं. यह सब करने के लिए ज्यादा पूंजी की जरूरत नहीं होती है. बस, अपने काम के प्रति ईमानदार होना चाहिए.
इन दोनों महिला किसानों (Women Farmers) से बातचीत करके यह अनुभव हुआ कि, जागरूकता व तकनीक का सही इस्तेमाल ही तरक्की का रास्ता है. दोनों महिला किसान (Women Farmers) किसी मंझे हुए मार्केटिंग एक्जीक्यूटिव की तरह बात कर रही थीं. उनका पहनावा भी सलीके वाला था.
मनीषा सिंह के तो पति भी उन के काम में मदद करते हैं, जो एक प्राइवेट कंपनी में सिविल इंजीनियर हैं. इस तरह की महिला किसानों (Women Farmers) के बारे में जानकर यह लगता है कि, अगर किसान सही दिशा में अपना दिमाग लगाएं तो खेती-किसानी से अच्छी कमाई कर सकते हैं.





