Vegetables : बैगन (Brinjal) एक ऐसी भारतीय सब्जी जो हमेशा अपने लाजवाब स्वाद के लिए जानी जाती है. किसी को बैगन (Brinjal) का भरता पसंद है, तो किसी को भरवां बैगन (Brinjal) पसंद है.खास कर बिहार में तो बैगन (Brinjal) की खासी मांग है, क्योंकि वहां का एक खास व्यंजन है, लिट्टी चोखा. जिस का स्वाद बैगन के बिना अधूरा है.
पिछले दोनों बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की टीम ने 7 साल के शोध के बाद इस नए किस्म के बैगन (Brinjal) की खोज की है, जिस का नाम ‘सबौर कृष्णकली’ रखा गया है. बैगन की इस प्रजाति का बड़ा ही सुंदर नाम है. जैसा नाम से ही पता चलता है कि यह कोई बड़ी ही गुणकारी और स्वादिष्ट चीज होगी. जी हां, यहां ऐसी ही है. बैगन (Brinjal) की इस ‘कृष्णकली’ वैरायटी में नुकसान पहुंचाने वाले बीटी के लक्षण नहीं हैं.
इस के अलावा बैगन (Brinjal) को सड़ाने वाली फिमोसिस बीमारी भी इस में कम होती है. इस की खास बात यह है कि बीजों की संख्या कम होने के कारण बैगन (Brinjal) से एलर्जी वाले व्यक्ति भी इस का सेवन कर सकते हैं. हम लोगों की ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा बीज वाले बैगन को अकसर बिजारे बैगन भी कह देते हैं, जिसे लोग कम पसंद करते हैं. लेकिन ये वैरायटी सभी को पसंद आएगी, क्योंकि इस में गुण ही ऐसे हैं.
‘सबौर कृष्णकली’ बैगन न सिर्फ स्वाद और गुणवत्ता में बेहतर है बल्कि, इस की उत्पादकता भी अब तक प्रचलित बैगन की प्रजातियों से काफी अधिक है.
मिलेगी अधिक उपज
अगर इस की खेती वैज्ञानिक तरीके से की जाए तो इस की उत्पादकता 430 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होगी. आमतौर पर सामान्य किस्म के बैगन की उत्पादकता 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर ही होती है. इस किस्म की खासियत यह है कि इस के 170 से 180 ग्राम साइज के फल में बीजों की अधिकतम संख्या 50 से 60 ही होती है. वहीं दूसरी प्रजाति के बैगनों में 200 से 500 की संख्या तक बीज होते हैं.
वैज्ञानिकों के अनुसार बैगन से आमतौर पर कई लोगों को एलर्जी होती है. क्योंकि कुछ लोगों को यह एलर्जी बैगन के बीजों के कारण ही होती है. ऐसे में यह कम बीज वाला बैगन उन के लिए भी उपयुक्त होगा, जिन को बैगन खाने से एलर्जी होती है.
इस की खेती सामान्य बैगन की तरह खरीफ से ठंड के मौसम तक यानी 8 महीने तक की जा सकती है. ‘कृष्णकली बैगन’ स्वाद में मजेदार और अधिक पैदावार देने वाली फसल के साथ ही गुणवत्ता के साथ एक बार लगाने पर लंबे समय तक उपज भी देती है.