Leafy Vegetable: पोई एक प्रकार का साग है, जो मालाबार स्पिनच के नाम से भी जाना जाता है. पोई को साग, सब्जी या अचार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. पोई में आयरन, कैल्शियम और विटामिन सी जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं. इस की वैज्ञानिक खेती के लिए कम तापमान पर सितंबर से जनवरी के बीच रोपाई करना सब से अच्छा होता है.

खेत की मिट्टी और तैयारी – पोई की खेती के लिए दोमट या बलुई मिट्टी अच्छी होती है. जिस का पीएच मान 6.0 से 6.8 तक हो. जैविक और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी आदर्श मानी जाती है. पोई की रोपाई, खेतों में करने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करें और मिट्टी में सड़े गोबर की खाद, नाडेप या वर्मी कंपोस्ट मिलाएं.

खास प्रजातियां – पोई की दो मुख्य स्थानीय प्रजातियां होती हैं लाल पोई और हरी पोई.

लाल पोई – इसे लाल पोई या लाल पालक के नाम से भी जाना जाता है. इस के तने और पत्तियां लाल रंग की होती हैं और यह हरी पोई की तुलना में थोड़ी अधिक कठोर होती है.

हरी पोई – हरी पोई को हरी पालक के नाम से भी जाना जाता है. इस के तने और पत्तियां हरे रंग की होती हैं और यह लाल पोई की तुलना में थोड़ी अधिक नरम होती है. दोनों तरह की पोई पोषक तत्वों से भरपूर होती हैं.

उन्नतशील प्रजातियां

काशी पोई –2 : यह एक उच्च उपज देने वाली झाड़ीनुमा जीनोटाइप है, जो 63.5 टन प्रति हेक्टेयर की उपज प्रदान करती है. इस की पहली तुड़ाई, रोपाई के 38-40 दिन बाद शुरू होती है और 20-30 दिनों के अंतराल पर 140-150 दिनों तक जारी रहती है.

काशी पोई-3: यह भी एक उच्च उपज देने वाली किस्म है, जो 61.3 टन प्रति हेक्टेयर की उपज प्रदान करती है. इस की पहली तुड़ाई, रोपाई के 40 दिन बाद शुरू होती है और 20-25 दिनों के अंतराल पर 240-250 दिनों तक जारी रहती है. काशी पोई-3 की बोआई, रोपाई से तकरीबन 40 दिन पहले प्लग ट्रे में करनी चाहिए.

बोआई का समय

पोई की बोआई सितंबर से जनवरी माह के बीच करनी चाहिए.

बीज की मात्रा व बोआई

पोई को बीज या कटिंग से उगाया जा सकता है. प्रति हेक्टेयर के लिए 6-8 किलोग्राम बीज की जरूरत होती है. पोई के बीजों को पानी में भिगोकर रखने से अंकुरण में तेजी आती है, यदि कटिंग से उगाते हैं, तो 40 से 50 हजार कटिंग की जरूरत होती है. इस के पौधों को लगाने के लिए, पौधे से पौधे की दूरी कम से कम 15-20 सैंटीमीटर और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सैंटीमीटर होनी चाहिए.

अगर बीज से बोआई करनी है, तो बीज को 1-2 सैंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. इस से पौधे को पर्याप्त धूप और हवा मिलेगी और उन की अच्छी तरह से बढ़वार होगी. छोटे पौधों को अधिक जगह चाहिए ताकि, वे अच्छी तरह से बढ़ सकें. अधिक दूरी से पौधे एकदूसरे को छाया नहीं करेंगे और उन्हें पर्याप्त सूर्य प्रकाश मिलेगा. पंक्ति से पंक्ति की दूरी पौधे की वृद्धि के लिए पर्याप्त जगह सुनिश्चित करती है. इस से निराईगुड़ाई और खाद देना भी आसान हो जाता है.

खाद व उर्वरक का प्रयोग

पोई (मालाबार स्पिनच) की खेती में, मिट्टी को स्वस्थ रखने और फसल को पोषक तत्व देने के लिए उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है. आमतौर पर, जैविक खाद, जैसे गोबर की खाद, और रासायनिक उर्वरक (जैसे यूरिया, डीएपी, और पोटाश) का उपयोग किया जाता है.

उर्वरकों के प्रकार और उपयोग:

जैविक खाद

पोई की खेती के लिए 25-30 टन गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर खेत की तैयारी के समय मिलाई जाती है. यह मिट्टी को उपजाऊ बनाता है और पौधों को आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करता है.

रासायनिक उर्वरक

नाइट्रोजन : यूरिया का उपयोग किया जा सकता है. बोआई के पहले 50 ग्राम यूरिया प्रति गड्ढे में और फिर मई से जुलाई में 80 ग्राम यूरिया प्रति पौधा डाला जा सकता है.

फास्फोरस :  डीएपी (डाई अमोनियम फास्फेट) का उपयोग किया जा सकता है. बोआई के पहले 100 ग्राम डीएपी प्रति गड्ढे में डाला जा सकता है.

पोटाश: म्यूरेट औफ पोटाश का उपयोग किया जा सकता है. बोआई के पहले 80 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश प्रति गड्ढे में डाला जा सकता है.

बीज उपचार : बीज उपचार के लिए राइजोबियम कल्चर का उपयोग किया जा सकता है, जिस से पौधों को नाइट्रोजन प्राप्त करने में मदद मिलती है.

उर्वरक देने का तरीका :

मिट्टी की तैयारी के समय खाद को खेत में मिलाया जाता है. उर्वरक को बीजों के पास या पौधों के पास डाला जाता है, ताकि पौधे को पोषक तत्त्व आसानी से मिल सकें . आवश्यकतानुसार, टौपड्रेसिंग के रूप में उर्वरक को बाद में भी दिया जा सकता है.

सिंचाई : पोई की फसल को 15 दिनों में एक बार पानी देना चाहिए, लेकिन गर्मियों में यह अंतराल 5 से 10 दिन का हो सकता है.

कीटप्रबंधन : जरूरत पड़ने पर जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें. नीम औयल का प्रयोग लाभकारी है.

फसल चक्र :

पोई की खेती को अन्य फसलों के साथ फसल चक्र में शामिल करने से मिट्टी की उर्वरता में सुधार होता है.

गमलें में पोई उगाने का तरीका

गमलें या बगीचे में पोई उगाने के लिए गोबर की खाद मिला कर मिट्टी को गमले में भर दें. इस के पौधे की रोपाई के लिए मिट्टी में नमी रहनी चाहिए. पोई को गमले में उगाना आसान है. इस के लिए, गमले में दोमट या बलुई मिट्टी का प्रयोग करें, जिस में गोबर की खाद या कंपोस्ट मिलाया गया हो. सितंबर से जनवरी के बीच रोपाई करें, और नियमित रूप से पानी दें.

गमले को ऐसी जगह रखें जहां उसे धूप मिल सके, लेकिन सीधे धूप से बचाएं.

कटाई : पोई को 2-3 महीने में काटा जा सकता है. पत्तों को धीरेधीरे काट लें और तने को छोड़ दें. उपज 500-600 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

लेखक- सेवानिवृत्त प्रोफैसर/वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष हैं. वर्तमान में निदेशक/अध्यक्ष, प्रोफैसर रवि सुमन कृषि एवं ग्रामीण विकास (प्रसार्ड)ट्रस्ट मल्हनी भाटपार रानी देवरिया, उत्तर प्रदेश में कार्यरत.

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