Maize : मक्का की खेती रबी, खरीफ व जायद तीनों मौसम में की जाती है. खरीफ मौसम में मक्का (Maize) की बोआई मानसून की शुरुआत के साथ मई के अंत से जून के महीने तक की जाती है. बसंत ऋतु की फसलें फरवरी के अंत से मार्च के अंत तक बोई जाती हैं. बेबी कौर्न मक्का की बोआई दिसंबर और जनवरी को छोड़ कर पूरे साल की जा सकती है. स्वीट कौर्न की बोआई के लिए खरीफ और रबी सीजन सब से अच्छा है. मक्का से पापकौर्न, कौर्नफ्लेक्स, स्टार्च, एल्कोहल, सतुआ, भूजा, रोटी, भात, दर्रा, घुघनी, आदि अनेक व्यंजन बनाए जाते हैं. इस के डंठल और तना पशुओं को चारे के रूप में खिलाने में उपयोग किया जाता है.
कब करें बोआई
खरीफ मक्का की खेती के लिए बरसात के मौसम की शुरुआत में की जाती है. खरीफ मक्का की 70 फीसदी से अधिक खेती बारिश आधारित स्थिति में उगाई जाती है.
भूमि की तैयारी- मक्का की खेती के लिए जल निकास वाली बलुई दोमट भूमि सही रहती है. पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और 2-3 जुताई कल्टीवेटर या रोटावेटर द्वारा करनी चाहिए.
बोआई का समय – देर से पकने वाली प्रजाति की बोआई मई मध्य से मध्य जून तक पलेवा कर करनी चाहिए. जिस से बारिश होने से पहले खेत में पौधे भलीभांति जम जाएं. जल्दी पकने वाली मक्का की बोआई जून के अंत तक कर ली जानी चाहिए.
बीज की मात्रा और बोआई की विधि – देशी छोटे दाने वाली प्रजाति 16-18 किलोग्राम और संकर प्रजाति के लिए 20-22 किलोग्राम व संकुल के लिए 18-20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है.
अगैती किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 सैंटीमीटर, मध्यम व देर से पकने वाली प्रजातियों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 25 सैंटीमीटर रखनी चाहिए. बीज की 3.5 सैंटीमीटर गहराई रखनी चाहिए. मक्का की बोआई मेंड़ों पर करें. विरलीकरण द्वारा पौधों की उचित दूरी का भी ध्यान रखें.
खास प्रजातियां – संकर प्रजाति: गंगा-2, गंगा-11, प्रकाश, जे.एच.3459, पूसा अगैती संकर मक्का-2, पूसा अगैती संकर मक्का-3 आदि. इन की उपज क्षमता 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
संकुल प्रजाति: नवज्योति, नवीन, तरुण, श्वेता, आजाद उत्तम, गौरव, कंचन, सूर्या, शक्ति-11 आदि. इन की उपज क्षमता 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.
उर्वरकों का प्रयोग : खेत की मिट्टी जांच के आधार पर उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए. देर से पकने वाली संकर व संकुल प्रजातियों के लिए 120:60:60 जल्दी पकने वाली प्रजातियों के लिए 100:60:40 और देशी प्रजातियों के लिए 80:40:40 किलोग्राम नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश का प्रयोग करना चाहिए. गोबर की खाद प्रयोग करने पर 25 फीसदी नाइट्रोजन की मात्रा कम कर देना चाहिए. बोआई के समय एक चौथाई नाइट्रोजन, फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा कूंड़ों में बीज के नीचे डालना चाहिए. नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा को तीन बार में बराबरबराबर मात्रा में टौपड्रेसिंग के रुप में दें.
पहली टौपड्रेसिंग बोआई के 25-30 दिन बाद (निराई के तुरंत बाद) दूसरी नर मंजरी से आधा पराग गिरने के बाद, तीसरी संकर मक्का में बोआई के 50-60 दिन के बाद और संकुल में 40-45 दिन बाद की जाती है.
जल प्रबंधन : पौधों को शुरुआती दौर और सिल्किंग (मोचा) से दाना पड़ने की अवस्था में पर्याप्त नमी आवश्यक है. सिल्किंग के समय पानी न मिलने पर दाने कम बनते हैं.
विशेषज्ञ ध्यान देने योग्य बातें – फसल में दाने बनते समय चिड़ियों और जानवरों से बचाव बहुत जरूरी है.
कटाई व मड़ाई – खरीफ मक्का की कटाई सितंबरअक्टूबर के महीने में की जाती है. कच्चे भुट्टे भी उपयोग में लाए जाते हैं, जिन का बाजार भाव भी अच्छा मिलता है. फसल पकने पर भुट्टों को ढकने वाली पत्तियां जब 75 फीसदी सूख जाए व पीली पड़ने लगे तब कटाई कर लेनी चाहिए. इस प्रकार की तकनीकी अपना कर मक्का की अच्छी पैदावार ली जा सकती है.
(लेखक वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, निदेशक प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी भाटपार रानी देवरिया, उ.प्र.)