Oilseeds and Pulses : उपमहानिदेशक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली डा. राजबीर सिंह ने पिछले दिनों आयोजित 23वीं प्रसार शिक्षा परिषद् की बैठक में बतौर मुख्य अतिथि के रूप में किसानों से बात करते हुए कहा कि यदि कृषि वैज्ञानिक, प्रसार और किसान एक साथ मिल कर काम करें तो कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है. सही माने में किसान ही देश का सच्चा व अच्छा वैज्ञानिक है क्योंकि खेत पर आने वाली दिक्कतों के समाधान के लिए वह दिनरात दिमाग लगा कर कोई न काई जुगाड़ कर ही लेता है. किसानों के इन नवाचारों को कैप्चर कर लैब में ला कर रिफाइंड करें और कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से देश भर में पहुंचाए, ताकि सभी किसानों को इस का लाभ मिल सके.

प्रसार शिक्षा निदेशालय, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय सभागार में आयेाजित इस सालाना बैठक में विश्वविद्यालय से संबंधित 8 कृषि विज्ञान केंद्र भीलवाड़ा प्रथम, द्वितीय, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़, उदयपुर-द्वितीय, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, राजसमंद के प्रभारी, इफ्को प्रतिनिधियों व किसानों ने भाग लिया था.

डीडीजी (प्रसार) डा. राजबीर सिंह ने कहा इस का सब से बड़ा प्रमाण 29 मई से 12 जून तक देशभर में चलाया गया विकसित कृषि संकल्प अभियान है. इस अभियान में देशभर में कार्यरत केंद्र व राज्य की कृषि में कार्यरत संस्थाएं, कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्रों ने सामूहिक प्रयासों से 1.35 करोड़ किसानों तक पहुंच बनाई और उन्हें किसान उपयोगी योजनाओं से अवगत कराया.

इस अभियान में राजस्थान का योगदान अकल्पनीय रहा. देश में 12 करोड़ किसान है. राजस्थान ने एक पखवाड़े के अभियान में 2 लाख महिलाओं सहित 8 लाख किसानों से न केवल संवाद किया, बल्कि योजनाओं की जानकारी भी दी.

उन्होंने कहा कि वर्तमान में देश में 731 केवीके कार्यरत हैं. सभी केवीके को आत्मवलोकन व अध्ययन करना होगा कि उन की उपस्थिति से किसान, उन के परिवार या बच्चों की जीवनचर्या में क्या बदलाव आए? भविष्य में हर कृषि विज्ञान केंद्र को मिनी विश्वविद्यालय के रूप में तैयार करने की दिशा में प्रयास करने होंगे. केवीके भविष्य में ‘हब औफ एक्टीविटी’ का केंद्र बने ताकि, किसानों को एक ही छत के नीचे सारी जानकारी और सुविधा मिल सके. जलवायु परिवर्तन के दौर में नवीन तकनीकों के साथसाथ कंटीजेंसी प्लान पर भी काम करना होगा.

उन्होंने कहा कि 1984 में कृषि मंत्रालय के अस्तित्व का विस्तार करते हुए 8 मंत्रालयों यथा जलशक्ति, फर्टिलाइजर, ग्रामीण विकास, पशुपालन, फूड प्रोसैसिंग में बांट दिया गया. जबकि ये सभी कृषि की ही शाखाएं हैं.

इस बैठक की अध्यक्षता करते हुए कुलपति एमपीयूएटी डा. अजीत कुमार कर्नाटक ने कहा कि खाद्यान्न उत्पादन पर खूब काम हो गया. अब तो भंडारण तक में परेशानी आने लगी है. कृषि वैज्ञानिकों व किसानों का ध्यान अब दलहनतिलहन उत्पादन की ओर होना चाहिए, ताकि खाद्य तेलों के मामले में हम आत्मनिर्भर बन सके.

उन्होंने कहा कि साल 2024-25 के तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार भारत का खाद्यान उत्पादन लगभग 354 मिलियन टन रहा, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 6.5-6.6 फीसदी अधिक है. उद्यानिकी उत्पादन 362 मिलियन टन, दूध उत्पादन रिकौर्ड 239.3 मिलियन टन व अंडा उत्पादन में रिकौर्ड स्थापित कर चुका है. कृषि में रसायनों के उपयोग को कम करने के लिए प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा देना होगा जो उत्पादन में निश्चितता ला सकती है.

उन्होंने कहा कि एमपीयूएटी को समग्र कार्य में उत्कृष्टता के लिए राजस्थान के राज्य वित्त पोषित विश्वविद्यालयों में से 24 जून, 2022 को “प्रथम कुलाधिपति पुरस्कार” प्राप्त हुआ. एमपीयूएटी को विश्वविद्यालय सामाजिक उत्तरदायित्व के निर्वहन के लिए राज्यपाल की “स्मार्ट विलेज पहल” के तहत भी समस्त राज्य वित्त पोषित विश्वविद्यालयों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया था.

बीते कुछ सालों में एमपीयूएटी ने अंतर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय व प्रादेशिक स्तर पर प्रतिष्ठित संस्थाओं की सहभागिता से शिक्षण और अनुसंधान में उत्कृष्टता लाने के लिए 81 समझौतों के ज्ञापन किए गए हैं. इन में से 33 पिछले ढाई साल में हुए हैं. खासकर वेस्टर्न सिडनी विश्वविद्यालय (आस्ट्रेलिया), सैंट्रल लुजौन विश्वविद्यालय (फिलीपींस), भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के अनेक राष्ट्रीय संस्थान, विश्वविद्यालय, औद्योगिक प्रतिष्ठान आदि सम्मिलित हैं.

हमारी भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की साल 2021 रैंकिंग 15 है और इस रैंकिंग में राजस्थान प्रदेश के 6 कृषि व पशु चिकित्सा विश्वविद्यालयों में एमपीयूएटी प्रथम स्थान पर हैं. वर्तमान में हमारा शोध तंत्र भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् की 27 अखिल भारतीय अनुसंधान परियोजनाओं, 3 नैटवर्किंग परियोजनाओं, 6 स्वैच्छिक केंद्रों, 11 अन्य प्रायोजित परियोजनाओं, 5 आरकेवीवाई और 45 निजी वित्त पोषित परियोजनाओं से युक्त है. हमारे शोध वैज्ञानिकों द्वारा बीते 3 सालों में किसान उपयोगी 280 सिफारिशों को कृषि विभाग द्वारा संभागीय पैकेज औफ प्रैक्टिसेज में सम्मिलित किया गया है.

 हाईटेक एग्रीकल्चर, कृषि पर्यटन पर जोर

विशिष्ट अतिथि प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक डा. चंदेशवर तिवारी ने कहा कि वर्तमान में सभी की निगाहें केवीके पर है. आदिवासी क्षेत्रों में इनोवेशन की अपार संभावनाएं है. उन्होंने राय दी कि प्रसार शिक्षा निदेशालयों को सर्टिफिकेट, डिप्लोमा कोर्स कराने चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा युवाओं को कृषि से जोड़ा जा सके.

निदेशक अटारी जोधपुर डा. जेपी मिश्रा ने कहा कि अब समय कम रसायन वाली खेती, प्राकृतिक खेती, जल संरक्षण पर ध्यान देने का है. केवीके इस में विशेष भूमिका निभा सकते हैं. कार्यक्रम की शुरुआत में प्रसार शिक्षा निदेशक डा. आरएल सोनी ने प्रसार शिक्षा परिषद् की बैठक 2024 में लिए गए निर्णयों की क्रियान्वयन रिपोर्ट प्रस्तुत की. साथ ही 2025 का प्रस्तावित ऐजेंडा साझा किया. डा.आरएल सोनी ने कहा कि विकसित भारत 2047 के परिप्रेक्ष्य में कृषि विज्ञान केंद्रों को और ज्यादा मजबूत करना होगा. संरक्षित खेती, हाईटैक एग्रीकल्चर, जलवायु रेजिलिएंट तकनीक, कृषि पर्यटन आदि क्षेत्र में कार्य करने की योजना है.

प्रकाशनों का विमोचन

इस मौके पर अतिथियों ने विश्वविद्यालयों के विभिन्न प्रकाशनों विकसित कृषि संकल्प अभियान, फलसब्जी प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन पर उद्यमिता विकास, प्राकृतिक खेती, किसानों की सेवा में प्रसार शिक्षा निदेशालय व राजस्थान खेती प्रताप के नवीन संस्करण का विमोचन किया.
इस कार्यक्रम में डा. अरविंद वर्मा, डा. आरबी दुबे, डा. सुनील जोशी, डा. आरए कौशिक, डा. लोकेश गुप्ता, डा. धृति सौलंकी, डा. मनोज कुमार महला, डा. एलएल पंवार और डा. आरपी मीना वरिष्ठ अधिकारी परिषद सदस्यों सहित केवीके प्रभारी मौजूद थे. इस कार्यक्रम का संचालन प्रो. डा. लतिका व्यास ने किया.

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