Agricultural Innovation : 5 अगस्त, 2025 को ‘भारत निर्माण यात्रा ‘ के अंतर्गत देश के 11 अनेक राज्यों से आए 25 उच्च शिक्षित युवाओं ने ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर,’ चिकलपुटी (कोंडागांव) का दौरा किया.
यह यात्रा उन उभरते प्रोफैशनलों के लिए है, जो इंजीनियरिंग, स्थापत्य कला, पत्रकारिता, फिल्म निर्माण, सामाजिक विज्ञान और प्रबंधन जैसे विविध क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखते हैं और अब देश के जमीनी परिवर्तन में सहभागी बनने के लिए प्रतिबद्ध हैं.
प्राकृतिक ग्रीनहाउस एक मजबूत, स्वदेशी विकल्प
इस यात्रा का प्रमुख आकर्षण रहा प्राकृतिक ग्रीनहाउस मौडल, जिसे मां दंतेश्वरी हर्बल फार्मस और रिसर्च सैंटर ने पौलीहाउस के महंगे और प्लास्टिक आधारित विकल्प के स्थान पर विकसित किया है. यह नवाचार प्लास्टिक के 40 लाख रुपए की लागत में तैयार होने वाले एक एकड़ के पौलीहाउस की तुलना में मात्र 2 लाख रुपए प्रति एकड़ की लागत से तैयार होता है और पारिस्थितिकीय संतुलन, कम जल उपयोग और दीर्घकालिक टिकाऊ खेती की दृष्टि से उत्कृष्ट माना जा रहा है.
इस यात्रा दल का नेतृत्व कर रहे अनुराग ने उन्हें आस्ट्रेलियन टीक (MDAT-16) के साथ अंतरवर्तीय काली मिर्च की जैविक खेती, हल्दी, इंसुलिन प्लांट और टीक वृक्षों के माध्यम से होने वाली प्राकृतिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण प्रक्रिया से अवगत कराया.
ईथनो मैडिको फारेस्ट और 340 दुर्लभ औषधीय प्रजातियों का संरक्षण
इस फार्म के निदेशक अनुराग त्रिपाठी और एमडी बोटैनिकल्स की निदेशक अपूर्वा त्रिपाठी ने सभी प्रतिभागियों को फार्म के भीतर विकसित “मैडिको फारेस्ट” का अवलोकन कराया. जहां 22 दुर्लभ, विलुप्तप्राय औषधीय वनस्पतियों का उन के प्राकृतिक रहवास में संरक्षण और संवर्धन कर उन के विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है.
इस के अतिरिक्त, उन्होंने बताया कि यहां 340 से अधिक औषधीय व सुगंधित पौधों की प्रजातियों की खेती की जाती है, जिस से बस्तर के सैकड़ों आदिवासी परिवारों को सतत आजीविका प्राप्त हो रही है. यह फार्म परंपरागत ज्ञान, जैविक खेती, विज्ञान और सामाजिक उत्तरदायित्व का जीताजागता संगम बन चुका है.
महिला किसानों की खास भूमिका
इस अवसर पर यात्रियों ने फार्म से जुड़े महिला स्वयं सहायता समूहों की प्रमुख जसमती नेताम से बातचीत की, जिन्होंने महिला किसानों की भूमिका और स्थानीय हर्बल अर्थव्यवस्था, हर्बल इकौनोमी में उन के योगदान की विस्तार से जानकारी दी. साथ ही, बस्तर के स्थानीय आदिवासी किसान प्रतिनिधियों कृष्णा नेताम, शंकर नाग, समली बाई, बिलची बाई आदि से हुई बातचीत ने युवाओं को जमीनी नवाचार, परंपरागत खेती और स्थानीय नेतृत्व की वास्तविकताओं से परिचित कराया.
दिन भर की यह यात्रा पारंपरिक सादे बस्तरिया भोजन के साथ संपन हुई. जो स्वयं खेतों के मध्य प्रकृति की गोद में दोना पत्तल पर परोसा गया. इस ने यात्रा के अनुभव को न केवल जानकारीपूर्ण बल्कि, आत्मिक रूप से भी समृद्ध किया. इस संपूर्ण आयोजन को सफल बनाने में फार्म की समर्पित टीम शिप्रा, केविन, ऋषिराज, बलई और माधुरी का योगदान सराहनीय रहा.
एक यात्रा, जो आशा और नवाचार का सेतु बनी
भारत निर्माण यात्रा के आयोजनकर्ताओं प्रियांक पटेल, आलोक साहू, तुपेश चंद्राकर, रचना एवं आशीष को मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता है, जिन के प्रयासों से देश के युवा नवचिंतकों को बस्तर की धरती से जोड़ने और ‘स्वदेशी नवाचार’ का प्रत्यक्ष अनुभव कराने का यह अवसर संभव हुआ. यह यात्रा न केवल एक शैक्षणिक खोज थी, बल्कि यह भविष्य के भारत निर्माण की नींव रखने वाले विचारों, सिद्धांतों और लोगों के साथ सीधा संवाद भी सिद्ध हुई.