Dairy Farming : भारत में बड़े पैमाने पर दूध का कारोबार होता है. किसान खेती के साथसाथ पशुपालन भी करता आया है, ताकि उसे दोहरा लाभ हो. पशुपालन करने से उसे दूध उत्पादन के अलावा खेती में काम आने वाली गोबर की खाद भी मिलती है. अगर चाहे तो वह उस के गोबर से गोबर गैस प्लांट भी लगा सकता है.

भारत में छोटाबड़ा हर तबके का किसान है और डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) भारत में छोटे व बड़े दोनों स्तर पर सब से ज्यादा विस्तार से फैला हुआ व्यवसाय है, इसलिए डेयरी व्यवसायी वैज्ञानिक विधि से पशुपालन कर अधिक मुनाफा ले सकते हैं.

डेयरी व्यवसाय को फायदेमंद बनाने के लिए लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय हिसार द्वारा दी गई बहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी बड़े ही आसान तरीके से यहां बताई गई है, जिस का लाभ निश्चित ही पशुपालकों को मिलेगा.

करें उत्तम नस्ल का चयन

डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming ) में अधिक दूध उत्पादन के लिए अच्छी नस्ल के पशुओं का चयन करना चाहिए. देशी नस्लों में साहीवाल, रैड सिंधी, गिर, थारपारकर जबकि विदेशी नस्लों में होलस्टीन फ्रीजीयन व जर्सी अच्छी दुधारु नस्लें हैं. संकर नस्लों में हरधेनु व फ्रीजवाल अच्छी नस्लें हैं और हरियाणा नस्ल की गाय भी अपने क्षेत्र की उत्तम नस्ल है. भैसों में मुर्राह नस्ल सब से अच्छी दुधारु नस्ल है. यह सभी नस्ल अच्छा दूध उत्पादन देती हैं और पशुपालक अपनी पहुंच के हिसाब से किस्म का चयन डेयरी फार्मिंग का काम कर सकता है

पशुओं का आवास प्रबंधन

यदि पशु का आवास स्वच्छ व आरामदायक होगा तो निश्चिततौर पर पशु का स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा और वह अपनी क्षमता अनुसार अधिक दूध का उत्पादन करेगा, इसलिए पशु के लिए स्वच्छ और आरामदायक आवास की व्यवस्था करें.

प्रजनन प्रबंधन

गाय/भैंसों का कृत्रिम गर्भाधान अथवा अच्छी नस्ल के प्रमाणित सांड से उचित समय पर गर्भाधान कराएं. गरमी में आने के 10-12 घंटे बाद ही पशुओं में गर्भाधान करवाएं. 2 ब्यांतों में उचित अंतराल के लिए ब्याने के 40 से 90 दिन के अंदर कृत्रिम गर्भाधान कराएं.

पशुओं का आहार प्रबंधन

पशु के कुल आहार में सूखे पदार्थ के आधार पर दोतिहाई भाग चारा और एकतिहाई भाग दाने का मिश्रण मिला कर देना चाहिए. मोटेतौर पर एक वयस्क गाय को प्रतिदिन 30-35 किलो हरा चारा, 5-6 किलो सूखा चारा (तूड़ा) व 1-1.5 किलो दाना पर्याप्त रहता है. इस के अलावा दुधारु पशुओं में गाय को प्रति 2.5 किलो दूध के लिए 1 किलो व भैंस को प्रति 2 किलो दूध के लिए 1 किलो अतिरिक्त दाना देना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान गाय को 1.25 किलो तथा भैस को 1.75 किलो अतिरिक्त दाना देना चाहिए.

स्वच्छ दुग्ध उत्पादन

सामान्यतः हानिकारक जीवाणुओं और गंदगी रहित दूध को स्वच्छ दूध कहते हैं. इस के लिए पशुघर में साफसफाई रखनी चाहिए और अच्छी तरह से धोए हुए बरतनों का ही उपयोग करना चाहिए. दूध साफ व शांत वातावरण में निकालना चाहिए. ज्यादा पशुओं के लिए दूध निकालने की मशीन (मिल्किंग मशीन) का उपयोग भी किया जा सकता है. मिल्किंग मशीन से काम समय में अच्छी क्वालिटी का शुद्ध दूध प्राप्त होता है.

नवजात की देखभाल

नवजात बछड़ा/बछड़ी को जन्म के 20 से 30 मिनट के अंदर खीस पिलानी चाहिए. खीस नवजात पशु को रोग निरोधक शक्ति प्रदान करता है. खीस सामान्यतः नवजात के भार के 1/10 भाग के बराबर पिलाएं. साधारणतः नाल अपनेआप टूट जाती है, अगर जुड़ी रहे तो नए ब्लेड से 2.5 इंच छोड़ कर काट दें व 3 से 4 दिन तक टिंक्चर आयोडीन लगाएं.

बीमारियों से रोकथाम

संक्रामक रोगों (गलघोंटू व मुंह खुर इत्यादि) की रोकथाम के लिए नियमित टीकाकरण करवाएं. दुधारु पशुओं में होने वाले थनैला रोग से बचाव के उपाय करने चाहिए. इस के लिए पशुघर की नियमित सफाई करें व थनों और लेवटी को लाल दवा के घोल से धोएं. हर 3 से 4 महीने में पशुओं को पेट के कीड़ों से मुक्त करने की दवा दें.

इस के अलावा पशु अगर सुस्त दिखाई दे या किसी बीमारी की आशंका हो तो पशु डाक्टर को जरूर दिखाएं और पशुओं का समय पर टीकाकरण करवाएं.

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