Poultry Farming : पशुपालन के क्षेत्र में अनेक ऐसे काम हैं, जिन्हें कर के अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. इन में मुरगीपालन (Poultry Farming) भी एक ऐसा व्यवसाय है, जिस की शुरुआत कम पूंजी, कम समय, कम मेहनत और कम जगह में की जा सकती है.

मुरगीपालन (Poultry Farming) का काम खासकर अंडे व मांस के लिए किया जाता है. मुरगीपालन (Poultry Farming)  व्यवसाय को फायदेमंद बनाने के लिए निम्नलिखित मुलभूत बातों की जानकारी होनी अति आवश्यक है. इस काम को शुरू करने से पहले मुरगीपालन में प्रशिक्षण लेना निश्चित ही फायदेमंद रहता है.

इस के लिए अपनी नजदीकी कृषि संसथा, कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क करना चाहिए.

हरियाणा के लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विश्वविद्यालय में भी पशु फार्म कौम्प्लैक्स विभाग है. वहां से भी आप पशुपालन, मुरगीपालन (Poultry Farming) आदि की जानकारी और ट्रेनिंग ले सकते हैं.

उत्तम नस्ल का चयन

मुरगीपालन (Poultry Farming) के लिए अगर अच्छा मुनाफा लेना है तो उत्तम नस्ल का चयन करें. अंडा उत्पादन के लिए मुख्यतः वाइट लेगहोर्न नस्ल की मुरगियां उत्तम रहती है. अपने भोगौलिक क्षेत्र व जलवायु के हिसाब से हरले (अंडा उत्पादन), असील, कड़कनाथ, धनराजा (मांस उत्पादन) इत्यादि नस्लें उपयुक्त हैं. आजकल बाजार में संकर नस्ल की मुरगियां भी उपलब्ध हैं जो अंडा व मांस के लिए काफी लाभदायक हैं.

जगह का चयन

मुरगी फार्म की जगह समतल हो और कुछ ऊंचाई पर हो, जिस से कि बारिश का पानी फार्म में जमा न हो सके. इस के साथसाथ बिजली और पानी की सुविधा सही रूप से उपलब्ध होनी चाहिए. शैड (छप्पर) हमेशा पूर्वपश्चिम दिशा में होना चाहिए और शैड की जाली वाला साइड़ उत्तर-दक्षिण में होना चाहिए, जिस से कि हवा सही रूप से शैड के अंदर से बह सके और धूप अंदर ज्यादा न लगे.

Poultry Farming

आहार प्रबंधन

अच्छा उत्पादन व लाभ प्राप्त करने के लिए मुरगियों के आहार पर ध्यान देना आवश्यक है. मुरगीपालन (Poultry Farming) में आहार सब से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि सब से ज्यादा खर्च इसी में होता है और आहार अंडा उत्पादन को भी प्रभावित करता है.

मुरगियों के भोजन में मक्का, गेहूं चोकर, चावल की पौलिश, सोयाबीन खल, फिश मील, मूंगफली की खल तथा लवण मिश्रण और नमक होना चाहिए.

प्रजनन प्रबंधन

आमतौर पर ऐसा देखा जाता है कि एक बार मुरगी खरीदने के बाद एक झुंड में उन्हीं से बारबार प्रजनन करवाया जाता है, जिन से इन ब्रीडिंग (अतः प्रजनन) के दुष्प्रभाव सामने आते हैं. इस से अंडों की संख्या और मांस वृद्धि में कमी आती है और चूजों की मृत्युदर बढ़ती है. लिहाजा, इन्हें प्रतिवर्ष बदल देना चाहिए. मुरगी फार्म पर प्रजनन के लिए नर और मादा का अनुपात 1:10-12 से अधिक नहीं होना चाहिए.

बरतनों की जानकारी

प्रत्येक 100 चूजों के लिए कम से कम 2×5 लिटर क्षमता वाले पानी के बरतन और 2×5 किलोग्राम क्षमता वाले दाने के बरतन होने आवश्यक हैं.

बिछावना व ब्रूडिंग से जुड़ी जानकारी

बिछावनों के लिए आप लकड़ी का बुरादा, मूंगफली का छिल्का, गेहूं/जई की तूड़ी या धान का छिलका उपयोग कर सकते हैं. बिछावन नया होना चाहिए और उस में किसी भी प्रकार का संक्रमण न हो. बिछावन की मोटाई 2-3 इंच होनी चाहिए.

ब्रूडिंग कई प्रकार से की जाती है जैसे बिजली के बल्ब या अंगीठी/सिगड़ी से, इसलिए आप को अपनी सुविधा के अनुसार इस का चुनाव करना होगा.

बीमारियों से रोकथाम

मुरगियों को विभिन्न प्रकार के संक्रामक रोग जैसे कि मेरेक्स, रानीखेत, गुंबोरो व फाउल पावक्स आदि हो सकते हैं. इन से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण अवश्य करा लें. मुरगी फार्म में समयसमय पर कीटनाशक धुआं और चूने का प्रयोग करना चाहिए. बीमार मुरगियों को अलग कर देना चाहिए. यदि कोई मुरगी बीमार हो कर मर गई हो तो उसे स्वस्थ मुरगियों से तुरंत अलग कर देना चाहिए और पशु डाक्टर से संपर्क करें. मरी मुरगी का पोस्टमार्टम करवा कर मृत्यु के संभावित कारणों का पता लगाना चाहिए.

मुरगीपालन में सामान्य प्रबंधन

मुरगी आवास का आकार बड़ा होना चाहिए, ताकि पर्याप्त शुद्ध हवा पहुंच सके और नमी न रहे. मुर्गी संख्या 5-7 प्रति वर्गमीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए.

एक मुरगी फार्म से दूसरे मुरगी फार्म में उचित दूरी रहनी चाहिए.

मुरगियों का कुत्ते, गीदड़, बिलाव, चील आदि से बचाव करना चाहिए.

मुरगियां खरीदते समय उन का उचित डाक्टरी परिक्षण करा लेना चाहिए और नई मुरगियों को कुछ दिनों तक अलग रख कर यह निश्चय कर लेना चाहिए कि वे किसी रोग से ग्रस्त तो नहीं हैं न. पूरी सावधानी बरतने पर भी कुछ रोग हो जाए, तो रोगानुसार इलाज कराएं.

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