Gaddi Breed of Sheep : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के संस्थान केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान अविकानगर के उत्तरी शीतोष्ण क्षेत्रीय केंद्र गड्सा, जिला कुल्लू, हिमाचल प्रदेश ने हिमाचल प्रदेश में गद्दी नस्ल की भेड़ लुप्त हो रही हैं, इसलिए गद्दी भेड़ की नस्ल के संरक्षण के लिए उन को नैटवर्क प्रोजैक्ट औन शीप इंप्रूवमैंट में निदेशक डा. अरुण कुमार के प्रयास से शामिल कर वैज्ञानिक शोध कार्य शुरू किए हैं.

निदेशक डा. अरुण कुमार ने बताया कि हिमाचल प्रदेश की गद्दी भेड़ (Gaddi Breed of Sheep) जो पहले राज्य के बहुत से जिलों में पाई जाती थी, वर्तमान में इस की आबादी बहुत ही कम हो गई है और सिमट कर कुछ ही इलाकों में रह गई है, के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए और इस के उत्पादन में सुधार करने के लिए अविकानगर संस्थान ने इस की भेड़पालन इकाई की स्थापना अपने क्षेत्रीय केंद्र गडसा पर निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर के मार्गदर्शन और अथक प्रयास में नैटवर्क प्रोजैक्ट के अंतर्गत शुरू की गई है.

क्षेत्रीय केंद्र के प्रभारी डा. आर. पुरुषोत्तम ने बताया कि हिमाचल प्रदेश की गद्दी भेड़ (Gaddi Breed of Sheep) ठंडे और पहाड़ी पर्वतीय इलाकों के वातावरण में पालन हेतु उपयुक्त है, जो विषम परिस्थिति और ठंडी जलवायु में भी अपनी उत्तरजीविता के साथ उत्पादन को बनाए रखती है. वर्तमान में विभिन्न विदेशी भेड़ मेरिनो आदि के क्रॉस के कारण गद्दी भेड़ की आबादी दिन ब दिन घटती जा रही है, जिस को वर्तमान मे संरक्षण एवं आनुवांशिक सुधार के लिए ध्यान देने की सख्त आवश्यकता है.

अविकानगर के निदेशक डा. अरुण कुमार तोमर के मार्गदर्शन एवं नेतृत्व में क्षेत्रीय केंद्र के वैज्ञानिक डा. अब्दुल रहीम चौधरी, डा. रजनी चौधरी, डा. पल्लवी चौहान द्वारा गद्दी भेड़ (Gaddi Breed of Sheep) की नस्ल पर पिछले 2-3 सालों से राज्य के अलगअलग जिले के किसानों के द्वारा सर्वे किया जा रहा है. उन्होंने पाया कि चंबा जिले के पांगी घाटी में इस नस्ल के शुद्ध पशु पाए गए हैं. वहां से क्षेत्रीय केंद्र मे चल रही डीबीटी परियोजना मे 80 गद्दी भेड़ के पशु खरीद कर केंद्र पर लाए गए हैं, जिन में निदेशक के मार्गदर्शन में गद्दी भेड़ पर नस्ल सुधार नैटवर्क प्रोजैक्ट के तहत गद्दी भेड़ के संरक्षण, आनुवांशिक सुधार एवं विभिन्न पहलुओं पर कार्य किया जाएगा और इस से जुड़े किसानों को इस सुधार का फायदा पहुंचाया जाएगा. साथ में गद्दी भेड़ के पालन से जुड़े किसानों को सीधे संस्थान की इकाई से जोड़ कर आनुवांशिक सुधार के साथ विभिन्न वैज्ञानिक पालन पर सलाह भी केंद्र के वैज्ञानिकों की टीम द्वारा दी जाएगी.

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