Recommendations : चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय के सभागार में आयोजित 2 दिवसीय राज्य स्तरीय कृषि अधिकारी कार्यशाला रबी का समापन हुआ. इस कार्यशाला में प्रदेशभर के कृषि अधिकारियों और हकृवि के वैज्ञानिकों द्वारा रबी फसलों की समग्र सिफारिशों (Recommendations) के बारे में विस्तृत चर्चा करने के साथसाथ विभिन्न महत्त्वपूर्ण तकनीकी पहलुओं पर विचारविमर्श किया गया.
कार्यशाला के समापन अवसर पर हकृवि के अनुसंधान निदेशक व समापन सत्र के अध्यक्ष डा. राजबीर गर्ग ने बताया कि 2 दिवसीय कार्यशाला के दौरान अलगअलग फसलों के लिए 19 सिफारिशों (Recommendations) को स्वीकृति प्रदान की गई. उन्होंने हकृवि के वैज्ञानिकों तथा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों से कहा कि वे स्वीकृत सिफारिशों (Recommendations) को किसानों तक पहुंचाना सुनिश्चित करें ताकि किसान अपने उत्पादन के साथसाथ आय में भी बढ़ोतरी कर सकें. उन्होंने बीज एवं अनुसंधान कार्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता देने का आह्वान करते हुए कहा कि अधिकारी एवं वैज्ञानिक अधिक पैदावार देने वाली रोग प्रतिरोधी एवं क्षेत्र विशिष्ट किस्मों का विकास करना सुनिश्चित करें.
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त निदेशक व सह अध्यक्ष डा. आरएस सोलंकी ने कहा कि किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से प्रोसैसिंग यूनिट और कोल्ड स्टोरेज की स्थापना करना अत्यंत आवश्यक है. किसानों के लिए कस्टम हायरिंग सैंटर की स्थापना करने के साथसाथ ड्रोन, मोबाइल एप और सौर ऊर्जा आधारित यंत्रों के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए. उन्होंने किसान प्रशिक्षण और जागरूकता बढ़ाने के लिए किसान मेलों, फील्ड डैमो और प्रशिक्षण शिविर आयोजित करने का सुझाव दिया.
विस्तार शिक्षा निदेशक डा. बलवान सिंह मंडल ने कहा कि हकृवि द्वारा आयोजित कृषि वैज्ञानिकों व कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अधिकारियों की कार्यशाला में विभिन्न 6 सत्र आयोजित किए गए जिन में खरीफ फसलें, गेहूं एवं जौ, गन्नामक्का, दलहनी फसलें, चारा फसलें, तिलहन तथा एग्रोफोरैस्ट्री व ड्राईलैंड एग्रीकल्चर शामिल हैं.
इस अवसर पर कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. एसके पाहुजा सहित विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एवं कृषि तथा किसान कल्याण विभाग के अधिकारी मौजूद रहे. मंच का संचालन डा. सुनील ढांडा ने किया.
इस कार्यशाला में 19 सिफारिशें (Recommendations) स्वीकृत हुईं, जो इस तरह हैं :
1. पूसा बासमती 1718 : यह धान की एक अर्धबौनी बासमती किस्म है जो लगभग 120 सैंटीमीटर लंबी होती है. इस की बीज से बीज तक पकने की अवधि 140 दिन है. यह पारंपरिक बासमती किस्मों की तरह सुगंधित होती है. इस की औसत धान उपज 18-20 क्विंटल प्रति एकड़ है.
2. कोटा उड़द-6 : यह मध्यम पकाव वाली (76 दिन) भूरे रंग के दानों वाली किस्म है. यह किस्म क्रिंकल विषाणु रोग व श्यामवर्ण रोग की प्रतिरोधी एवं मोजेक, सर्कोस्पोरा धब्बा, पर्ण कुंचन विषाणु व चूर्णिल आसिता रोगों के प्रति माध्यम प्रतिरोधी है. इस में एफिड, फलिघुन कीट व फली मक्खी का प्रकोप कम होता है.
3. ज्वार चारा की फसल पर जस्ता व लौह तत्त्व की कमी के लक्षण प्रकट होने पर सिफारिश किए गए खाद के साथ 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट व 0.5 फीसदी फैरस सल्फेट का 2 फीसदी यूरिया के साथ फसल पर 15 दिन के अंतर पर 2 छिड़काव करें.
4. ग्वार की उत्पादकता बढ़ाने के लिए, पानी में घुलनशील उर्वरक एनपीके 19-19-19 का 1 फीसदी की दर से या पोटाशियम नाइट्रेट 0.5 फीसदी की दर से फूल आने और फली बनने की अवस्था में छिड़काव करना लाभदायक होता है.
5. धान में पत्ता लपेट सूंड़ी के प्रबंधन के लिए, रोपाई के 30 दिन से शुरू करके 10 दिनों के अंतराल पर ट्राइकोग्रामा कीलोनिस से परजीवीकृत 40,000-50,000 अंडे/एकड़ की दर से 4 बार छोड़ें.
6. धान में पीला तना छेदक सूंड़ी की रोकथाम के लिए आईसोसाईकलोसीरम 20 फीसदी डब्ल्यू/वीएससी (इन्सिपिओ) 120 मिलीलिटर 200 लिटर पानी में प्रति एकड़ की दर से रोपाई के 20 व 35 दिन पर छिड़काव करें.
7. कपास की फसल में हरा तेला की रोकथाम के लिए आइसोसायक्लोसेरम (सिमोडिस 9.2 फीसदी डीसी) की 80 मिलीलिटर मात्रा (20 ग्राम क्रियाशील तत्त्व) को 175-200 लिटर पानी में मिला कर आर्थिक कगार आने पर प्रति एकड़ छिड़काव करें.
8. नरमा की फसल में थ्रिप्स या चूरड़ा की रोकथाम के लिए आइसोसायक्लोसेरम (सिमोडिस 9.2 डीसी) की 240 मिलीलिटर मात्रा (60 ग्राम क्रियाशील तत्त्व) को 175-200 लिटर पानी में मिला कर आर्थिक कगार (10-12 थ्रिप्स प्रति पत्ता) आने पर प्रति एकड़ छिड़काव करें. यह छिड़काव थ्रिप्स के साथ पाए जाने वाले हरा तेला/जैसिड के प्रति भी प्रभावी है.
9. गेहूं में मिश्रित खरपतवारों के नियंत्रण के लिए बिजाई के तुरंत बाद उचित नमी में 800 मिलीलिटर प्रति एकड़ अक्लोनिफेन 36.89 फीसदी+डाइफ्लूफेनीकन 6.15 फीसदी+पाइरोक्ससल्फोन 4.10 फीसदी (रेडी मिक्सचर) का 200 लिटर पानी प्रति एकड़ में छिड़काव करें.
10. देर से बोई गई गेहूं की फसल की अच्छी पैदावार के लिए पोटाशियम नाइट्रेट (1 फीसदी घोल) के 2 छिड़काव बालियां निकलते समय और दाना भरने की अवस्था में किए जाने चाहिए.
11. गेहूं में बेहतर बीज उत्पादन और गुणवत्ता के लिए गरमी तनाव को कम करने हेतु वनस्पति और पुष्पन चरणों पर सैलिसिलिक एसिड 800 पीपीएम की दर से छिड़काव करें.
12. धान की पराली प्रबंधन के लिए एचएयू बायोडीकंपोजर तैयार किया है जिस के छिड़काव से धान की पराली को खेत में गलाने में मदद मिलेगी.
13. एचपीसी 4 : यह पौपकौर्न की हलके रंग की संकर किस्म है जो वसंतकाल में लगभग 115-120 दिन में पक कर तैयार हो जाती है. इस किस्म की सिफारिश सिंचित व उपजाऊ क्षेत्र के लिए की गई है. इस किस्म की औसत पैदावार 18 क्विंटल प्रति एकड़ है.
14. चारा जई की किस्म एचएफओ 917 : यह दोहरे उद्देश्य (हरे चारे के साथसाथ बीज) के लिए उपयुक्त है. इस की पहली कटाई से हरे चारे की औसत उपज 76.7 और दूसरी कटाई से बीज की उपज 9.5 क्विंटल प्रति एकड़ मिलती है.
15. चारा जई की किस्म एचएफओ 1014: यह दोहरे उद्देश्य (हरे चारे के साथसाथ बीज) के लिए उपयुक्त है. इस की पहली कटाई से हरे चारे की औसत उपज 74.1 और दूसरी कटाई से बीज की उपज 9.7 क्विंटल प्रति एकड़ मिलती है.
16. ग्रीष्मकालीन लोबिया से बीज की अधिक पैदावार लेने के लिए पानी में घुलनशील उर्वरक एनपीके 19-19-19 का 2 फीसदी की दर से घोल बना कर फूल आने व फली बनने की अवस्था में छिड़काव करें.
17. बीज के लिए बोई जाने वाली बरसीम की फसल में अमेंरिकन सूंड़ी की रोकथाम के लिए फूल आने की अवस्था (अप्रैल के चौथे सप्ताह) से शुरू कर के 7 दिनों के अंतराल पर कोरसायरा सेफेलोनिका के 50000 परिजीवीकृत अंडे (ट्राईकोग्रामा किलोनिस द्वारा परिजीवीकृत) प्रति एकड़ की दर से 3 बार छोड़ें.
18. धान की 3 पुरानी किस्मों को समग्र सिफारिशों (Recommendations) से हटाया गया है, जिन में एचकेआर 120, एचकेआर 126 व एचकेआर 46 शामिल हैं.
19. मूंग फसल की सत्या एवं बसंती किस्म को समग्र सिफारिशों (Recommendations) से हटाया गया है.