Guava Farming : प्रकृति प्रेम ने शिक्षक को बनाया किसान, आधे एकड़ में तैयार किया अमरूद का बगीचा, एक सीजन के मुनाफा 70 से 75 हजार
मध्य प्रदेश की राजधानी से करीब 500 किलोमीटर दूर सतना जिला का छोटा सा गांव है किटहा, जहां पहाड़ों की हरियाली और पवित्रता भगवान श्री राम की तपोस्थली चित्रकूट से जुड़ती है, वहां 42 वर्षीय मनोज कुमार पांडेय ने अपने जीवन को शिक्षा और खेती के दो पहलुओं में साकार किया है. मनोज न केवल एक समर्पित शिक्षक हैं, बल्कि एक संघर्षशील किसान भी हैं, जिन्होंने अपने परिश्रम और दूर दृष्टि से अमरूद की खेती (Guava Farming) के माध्यम से अपनी पहचान बनाई है.
अमरूद की खेती (Guava Farming) की नई शुरुआत
प्याज की खेती में नुकसान के बाद, मनोज ने 2022 में अमरूद की खेती (Guava Farming) शुरू करने का निर्णय लिया. यह कदम आसान नहीं था, लेकिन उनकी दूरदृष्टि और मेहनत ने इसे संभव बनाया. उन्होंने शुरुआत में 50 पेड़ लगाए, जिन्हें संजय निकुंज उद्यान अमिलपुर से 40-50 रुपये प्रति पेड़ की कीमत पर खरीदा. इसके बाद, 250 पेड़ मझगवां की गहिरा नर्सरी से मात्र 10-12 रुपये प्रति पेड़ की दर पर लाए और करीब 0.5 एकड़ जमीन पर 300 अमरूद के पेड़ों का बगीचा तैयार करने में उन्होंने लगभग 90,000 रुपये खर्च किए. पेड़ों की देखभाल, खाद, बीज, पानी, और मजदूरी में यह लागत आई.
मनोज बताते हैं,
“पहले साल केवल तैयारी और देखभाल में वक्त लगा. लेकिन मुझे पता था कि यह मेहनत रंग लाएगी. खेती धैर्य का खेल है.”
अमरूद के बगीचे की सफलता
आज, उनके बगीचे में रायपुर और इलाहाबाद की किस्म के अमरूद के पेड़ हैं, जो 10 फीट से भी ऊंचे हो गए हैं. हर पेड़ से 20-25 किलो अमरूद का उत्पादन हो रहा है. उन्होंने इस साल 50-60 क्विंटल अमरूद की उपज प्राप्त की, जो लोकल बाजार में 2000-2500 रुपये प्रतिदिन बिक रही है.
मनोज गर्व से बताते हैं,
“इस साल का मुनाफा 70 से 75 हजार रुपये तक होगा. पिछले साल की लागत निकालने के बाद यह सीधा लाभ है. यह मेरी मेहनत और धैर्य का फल है.”
शिक्षक से किसान बनने की यात्रा
मनोज कुमार पांडेय पेशे से प्राथमिक शिक्षक हैं. वह अपने गांव से 5 किमी दूर जैतवारा के शासकीय उच्चतर माध्यमिक कन्या विद्यालय के प्राथमिक विभाग में कार्यरत हैं. शिक्षा के प्रति उनकी निष्ठा और बच्चों को बेहतर भविष्य देने की लगन अद्वितीय है. मनोज बताते हैं,
“गांव में शिक्षक होना सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है. बच्चों को बेहतर शिक्षा देना मेरी प्राथमिकता है, लेकिन खेती से जुड़ाव मुझे अपने पूर्वजों की धरती से जोड़ता है.”
मनोज के पिता विद्याधर पांडेय, जो पेशे से जिला एवं सत्र न्यायालय में शपथ आयुक्त थे, ने भी उन्हें मेहनत और लगन की शिक्षा दी. यही कारण है कि अपने व्यस्त शैक्षणिक कार्यक्रम के बावजूद, मनोज ने अपनी खाली समय का उपयोग खेती के लिए किया.

प्याज की खेती में असफलता से मिली प्रेरणा
साल 2010 से 2012 के बीच, मनोज ने प्याज की खेती में अपनी किस्मत आजमाई. दो एकड़ जमीन पर प्याज की खेती करने में तीन सालों में करीब तीन लाख रुपये की लागत आई. हालांकि, असमय बारिश और बाजार में उचित मूल्य न मिलने के कारण, उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा. मनोज उस समय को याद करते हुए कहते हैं,
“प्याज की खेती ने मुझे सिखाया कि खेती सिर्फ मेहनत नहीं, बल्कि समझदारी और सही योजना का खेल है. तब मैंने सीखा कि हमें हमेशा विकल्प तैयार रखना चाहिए.”
खेती और जीवन का संतुलन
मनोज के जीवन में शिक्षा और खेती का अनूठा संतुलन देखने को मिलता है. वह सुबह बच्चों को पढ़ाने जाते हैं और शाम को अपने बगीचे की देखभाल करते हैं. उनके इस समर्पण ने गांव के अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है.
मनोज का मानना है कि खेती को आधुनिक तकनीक और परंपरागत ज्ञान के साथ जोड़ा जाए तो सफलता सुनिश्चित है. उनका कहना है,
“खेती में जोखिम जरूर है, लेकिन सही प्लानिंग और मेहनत से इसे फायदेमंद बनाया जा सकता है. अगर मैं शिक्षक होते हुए ऐसा कर सकता हूं, तो बाकी किसान भी कर सकते हैं.”
भविष्य की योजना
मनोज अब अपनी खेती का विस्तार करना चाहते हैं. उनकी योजना है कि वह अन्य फलों जैसे आम और नींबू की खेती भी शुरू करें. साथ ही, वह किसानों को प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का सपना देखते हैं.
उनका मानना है कि सतना जिले के किसान अगर मिल-जुलकर काम करें तो इसे फलों की खेती का हब बनाया जा सकता है.
एक प्रेरणादायक कहानी
मनोज कुमार पांडेय की कहानी सिर्फ एक किसान की नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्ति की है जिसने संघर्षों से लड़कर अपने जीवन को बेहतर बनाया. यह कहानी हमें सिखाती है कि मेहनत, लगन, और धैर्य से कोई भी चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है.
“मेरे लिए हर अमरूद सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि मेरी मेहनत और सपनों का प्रतीक है. जब लोग मेरे बगीचे में आकर मेरी तारीफ करते हैं, तो मुझे लगता है कि मेरी मेहनत सार्थक हुई.”
मनोज की यह यात्रा हर उस व्यक्ति के लिए प्रेरणा है जो हार मानने की बजाय नए रास्ते तलाशने का साहस रखता है.





