अगर बीज सेहतमंद है तो फसल भी अच्छी होगी. किसी फसल की उन्नत प्रजाति का शुद्ध बीज इस्तेमाल करने से पैदावार अच्छी होती है, जबकि अशुद्ध बीज से उत्पादन में नुकसान होने की संभावना ज्यादा रहती है. खराब बीज, खरपतवार पर नियंत्रण, बीमारियों या कीड़ेमकोड़ों और खराब अंकुरण कूवत की वजह हो सकती है.

बोने से पहले यह जरूरी है कि किसान बीज की क्वालटी के बारे में जानें, बीज की शुद्धता या अंकुरण अच्छा होने की जानकारी लें और फिर बीजोपचार करें.

क्या है बीजोपचार

यह वह प्रक्रिया है, जिस में बीज को बीज से होने वाले मिट्टी रोगों और कीड़ों से बचाने के लिए भौतिक, रासायनिक (कवकनाशी या कीटनाशी) बायोएजेंट की एक निश्चित मात्रा से बीज शोधन यानी बीजों को साफ किया जाता है.

बीजों में किसी अच्छे कैमिकल या जैव खाद की निश्चित मात्रा को इस तरह से मिलाते हैं, जिस से बीजों के बाहर कैमिकल या जैव खाद की एक परत बन जाए जो बीज को बीज या मिट्टी रोग की वजहों से बचा सके.

बीजोपचार कैसे करें

बीज की शुद्धता व अंकुरण जांच के बाद बोने से पहले बीजोपचार करना बहुत जरूरी है. यह फसलों को रोगों से होने वाले नुकसान को रोक कर अंकुरण कूवत भी बढ़ाता है. बीज की बोआई के बाद रोगजनक अपनी प्रकृति के मुताबिक बीज को खेत में अंकुरण के पहले या उस के तुरंत बाद हमला कर नुकसान पहुंचाते हैं या बाद में पत्तियों पर पर्ण दाग यानी जड़ पर सड़न और बालियों पर कंडवा रोग पैदा करते हैं.

भौतिक उपचार

इस विधि में बीजों को कुछ समय के लिए स्टोर कर लिया जाता है. उस के बाद बीज बोया जाता है. कुछ बीजों में लगने वाले रोगों का जीवनचक्र छोटा होता है. अगर बीज की सही वायुमंडलीय दशाओं और कम तापमान, कम नमी में कुछ समय के लिए स्टोर करने के बाद बोएं तो रोग पैदा करने वाले कारक खुद ही खत्म हो जाते हैं.

उदाहरण के लिए हमारे देश में बाजरा का अर्गट रोगजनक 5-8 महीने में बोआई के समय से पहले खत्म हो जाता है इसलिए इस रोग द्वारा संक्रमित बीजों को सही भंडारण के बाद अगले साल निडर हो कर बोया जा सकता है.

अगर हम बीजोपचार द्वारा रोगजनक बीजों को खेत में जाने से रोक दें तो रोग से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम किया जा सकता है.

बीजोपचार में इस्तेमाल कारकों के आधार पर बीजोपचार के तरीकों को निम्न वर्गों में रखा जा सकता है:

भौतिक बीजोपचार

गरम पानी, सूर्य ऊर्जा और विकिरणों द्वारा बीजोपचार किया जाता है. बीज के अंदर रहने वाले रोगजनकों जैसे गेहूं में कंडवा रोग के लिए सूर्य के ताप यानी सूरज की गरमाहट से बीजों को उपचारित करते हैं. इस के लिए बीज को 4 घंटे पानी में भिगोने के बाद दोपहर की गरमी में पक्के फर्श या टिन की पतली चादर पर डाल कर सुखाते हैं.

रोग पृथक्करण विधि से बीज या पौध अवशेषों को बीज से अलग कर के खत्म करते हैं. इस के लिए बीज को 5 फीसदी नमक के घोल में डुबाते हैं, जिस से रोगी बीज ऊपर तैर आते हैं. इन को जाली की मदद से बाहर निकाल कर खत्म कर देते हैं और बाकी बचे बीज को साफ पानी से धो कर व सुखा कर बोने के काम में लेते हैं.

यह विधि ज्वार, बाजरा के अर्गट रोग और गेहूं के सेहू रोग को रोकने में मददगार होती है. विकिरण विधि में विभिन्न तीव्रता की ऐक्स किरणों या अल्ट्रावायलट किरणों को अलगअलग समय तक बीजों पर से गुजारा जाता है. इस से बीज की सतह या उस के अंदर पाए जाने वाले रोग खुद ही खत्म हो जाते हैं.

रासायनिक बीजोपचार

यह बीजजन्य रोगों की रोकथाम की सब से आसान, सस्ती और लाभकारी विधि है. फफूंदनाशी कैमिकल बीजजन्य रोगाणुओं को मार डालता है या उन्हें फैलने से रोकता है.

यह सुरक्षा कवच के रूप में बीज के चारों ओर एक घेरा बना लेता है, जिस से बीज को सड़ने से रोका जा सकता है.

साल 1968 में बेनोमिल की सर्वांगी फफूंदनाशक के रूप में खोज के बाद इस क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत हुई. इस के बाद कार्बोक्सिन, मेटालैक्सिन व दूसरे फफूंदनाशक बाजार में आए. अदैहिक फफूंदनाशक जैसे थायरम, कैप्टान, डायथेन एम-45 की 2.5 से 3 ग्राम मात्रा, जबकि दैहिक फफूंदनाशक जैसे कार्बंडाजिम, वीटावैक्स की 1.5 से 2 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज के उपचार के लिए सही होती है. इन के कंद व तना बीज के रूप में इस्तेमाल किए जाते हैं जैसे गन्ना, आलू, अदरक, हलदी, लहसुन, अरबी वगैरह. इन को लगाने के पहले दवा की निश्चित मात्रा वाले घोल में फसल और रोग की प्रकृति के मुताबिक 10 मिनट से 30 मिनट तक डुबा कर रखते हैं.

सीड ट्रीटिंग ड्रम से बीजोपचार

सीड ट्रीटिंग ड्रम एक बीज उपचारक उपकरण है. इस में बीज और कैमिकल दवाओं को यांत्रिक रूप से मिला कर बीज को साफ किया जाता है. यह उपकरण स्टैंड (फ्रेम), ड्रम शाफ्ट (रौड) और हैंडल (हत्थे) से मिला कर बना होता है.

इस उपकरण का सब से प्रमुख भाग ड्रम है. इसे एक खास तरह की गैल्वेनाइज्ड चादर से बनाया गया है. इस की ऊपरी सतह पर जंग नहीं लगती. साथ ही, ड्रम के अंदर एक विशेष प्रकार की कोटिंग होने के कारण वह पूरी तरह चिकना और सुरक्षित होता है. चिकना होने की वजह से बीज आसानी से दवा से मिल जाता है. बीज की मिलावट एकजैसी ही होती है व किसी तरह की कोई रुकावट बीज के शोधन में नहीं आती.

ड्रम को इस तरह से बनाया गया है कि बीज अंदर से सुरक्षित रहता है और टूटता भी नहीं. मूंगफली या किसी प्रकार का बीज भी इस में आसानी से शोधन किया जा सकता है.

ड्रम को स्टैंड (फ्रेम) के ऊपर सुरक्षित

ढंग से फिट किया गया है. ड्रम के अंदर शाफ्ट की ऐक्सिस तिरछी होने के कारण ड्रम अर्द्धगोलाई में घूमता है, इसलिए ड्रम में डाली हुई दवाएं आसानी से बीज से लग जाती हैं.

ड्रम के ऊपर लौक करने की सुविधा भी दी गई है. इस से बीज सुरक्षित रहते हैं, बीज नीचे भी नहीं गिरते हैं. इस उपकरण का स्टैंड भी काफी मजबूत बना होता है और स्टैंड के चारों निचले हिस्सों को गोलाई वाला आधार दिया गया है. इस के चलते उपकरण ऊबड़खाबड़ जमीन, बारिश में भी समतल आधार पर टिका रहता है.

सीड ट्रीटिंग ड्रम के छोटे आकार और हिस्से अलगअलग हो जाने के चलते इसे आसानी से बीजोपचार करने वाली जगह पर ले जाया जा सकता है.

इस उपकरण की कूवत मानव कूवत के ऊपर निर्भर करती है, पर आमतौर पर 75 से 100 किलोग्राम प्रति घंटा तक बीज का शोधन किया जा सकता है. एक ही बार में 15 से 20 किलोग्राम तक बीज का शोधन बहुत ही आसान तरीके से किया जा सकता है. यह उठाने में काफी हलका होता है और इस उपकरण की कीमत 2500 से 3000 रुपए तक है.

पादप रोगों के नियंत्रण के लिए जैविक बीजोपचार

जैविक पौध रोग नियंत्रण कवकीय या जीवाणुवीय उत्पत्ति के होते हैं जो फफूंद जैसे फ्यूजेरियम, राइजोक्टोनिया, स्क्लेरोशियम, मैक्रोफोमिना वगैरह के द्वारा होने वाले रोग जैसे जड़ सड़न, आर्द्रगलन, उकठा, बीज सड़न, अंगमारी वगैरह को नियंत्रित करते हैं.

ट्राइकोडर्मा विरिडी, ट्राइकोडर्मा हर्जियानम, पेनिसिलीन, ग्लोमस प्रजाति वगैरह प्रमुख कवकीय प्रकृति के रोग नियंत्रण हैं, जबकि बेसिलस सबटिलिस, स्यूडोमोनास, एग्रोबैक्टिरियम वगैरह जीवाणुवीय प्रकृति के जैव नियंत्रण हैं. इन्हें बीजोपचार के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है.

जैव नियंत्रक नुकसान पहुंचाने वाली फफूंदियों के लिए या तो स्थान पोषक पदार्थ, जल, हवा वगैरह की कमी कर देते हैं या फिर इन के द्वारा विभिन्न प्रकार के प्रतिजैविक पदार्थों का स्त्रावण होता है जो रोगजनक की बढ़वार को कम करते हैं या उसे नष्ट करते हैं, जबकि कुछ जैव नियंत्रक रोगकारक के शरीर से चिपक कर उस की बाहरी परत को गला कर उस के अंदर का सारा पदार्थ उपयोग कर लेते हैं, जिस से रोगकारक जीव नष्ट हो जाता है.

जैविक फफूंदनाशियों की 5-10 ग्राम मात्रा द्वारा प्रति किलोग्राम बीज का उपचार करने से नहीं होता. ऐसी स्थिति में मिट्टी उपचार ज्यादा कारगर रहता है.

मिट्टी के उपचार के लिए 50 किलोग्राम गोबर की पकी खाद में एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा या बेसिलस सबटिलस या स्यूडोमोनास को मिला कर छाया में 10 दिनों तक नम अवस्था में रखते हैं. इस के बाद एक एकड़ क्षेत्र में फैला कर जमीन में मिलाते हैं.

बीज अंकुरण (Seed Germination)

बीज अंकुरण जांच

सीड बौक्स विधि : इस विधि में लकड़ी के बौक्स में रेत बिछा कर उस पर दानों को लाइन में रखें और फिर भुरभुरी मिट्टी की 1.5 सैंटीमीटर की तह लगा दें.

रेत को नम बनाए रखने के लिए समयसमय पर पानी डालते रहें. 4-5 दिनों में मिट्टी की सतह पर अंकुर आ जाते हैं.

अंकुरित दानों की संख्या ×100

अंकुरण = अंकुरण के लिए रखे गए कुल दानों की संख्या

बीज अंकुरण की कूवत कम से कम 80-90 फीसदी होनी चाहिए. परीक्षण के समय तापमान फसल के मुताबिक होना चाहिए.

अंकुरण कूवत परीक्षण में पहले सामान्य पौधे, फिर असामान्य पौधे, फिर बीज, उस के बाद उन अंकुरित बीजों की गिनती की जाती है.

अंकुरित दानों की संख्या ×100

अंकुरण फीसदी के आधार पर=प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा

उत्तम बीज को स्रोत के आधार पर 3 समूहों में रखा गया है:

प्रजनक बीज, आधार बीज और प्रमाणित बीज.

प्रजनक बीज वह है जो आनुवांशिक रूप से शुद्ध रहता है और इस को प्रजनक यानी ब्रीडर की देखरेख में तैयार किया जाता है ताकि उस की क्वालिटी ठीक रहे. इन बीजों की थैलियों पर पीले रंग का टैग लगा होता है.

आधार बीज को बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा प्रजनक बीज से तैयार किया जाता है. इस बीज की थैलियों पर सफेद रंग का टैग लगा रहता है.

प्रमाणित बीज को भी बीज प्रमाणीकरण संस्था द्वारा आधार बीज से पैदा कराया जाता है. यह काम प्रत्येक राज्य बीज और फार्म विकास निगम या उन्नतशील किसानों द्वारा बीज पैदा करने की मानक विधियों के मुताबिक किया जाता है. प्रमाणित बीज के थैलों पर नीले रंग का टैग लगा रहता है. प्रमाणित बीज को किसानों द्वारा व्यावसायिक फसल उत्पादन के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है.

बीज की शुद्धता व अंकुरण जांच

अच्छे उत्पादन के लिए जरूरी है कि बीज शुद्ध हो और उस का अंकुरण फीसदी मानक स्तर से कम न हो. बोने के काम में लाने वाला बीज एक ही प्रजाति का हो. इस के लिए उपलब्ध बीज में से 4-5 अगलअलग जगह से नमूने ले कर यह सुनिश्चित करें कि इस में किसी दूसरी फसल के बीज घासचारा वगैरह न मिले हों. साथ ही, यह भी देखें कि उसी किस्म के अपरिपक्व, टूटे हुए बीज न हों.

बीजों की अंकुरण कूवत मानक स्तर की है या नहीं, इस के लिए जांच कराना जरूरी है. अंकुरण परीक्षण के लिए कम से कम 400 बीजों का 3-4 बार में जांच करनी चाहिए.

अंकुरण की जांच कुछ इस तरह की जा सकती है:

पेपर द्वारा : 3-4 पेपर एक के ऊपर एक रख कर सतह बनाएं और उन्हें पानी से भिगोएं. फिर सतह पर 100-100 बीज गिन कर लाइन में रखें और पेपर को मोड़ कर रख दें. पेपर को समयसमय पर पानी डाल कर नम बनाए रखें. 3-4 दिन बाद अंकुरित बीजों को गिन लें.

ध्यान रखने वाली बातें

* बीजोपचार के लिए खरीदी गई दवा की ऐक्सपायरी डेट यानी आखिरी तारीख जरूर देख लें.

* कैमिकल दवा का इस्तेमाल बताई गई मात्रा में ही करें, कम या ज्यादा मात्रा में नहीं.

* बीज शोधन के समय हाथ में दस्ताने और चेहरे पर साफ कपड़ा जरूर बांधें.

* बीज शोधन के बाद हाथपैर व चेहरा साबुन से भलीभांति साफ कर लें.

* बीजोपचार के बाद उपचारित बीज को 5 घंटे के अंदर बोआई कर दें.

* दवा के बरतन को बच्चों की पहुंच से दूर रखें.

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