Placement Drive : पशुपालकों के लिए प्लेसमेंट ड्राइव

Placement Drive : कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव का आयोजन सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डा. केके सिंह के दिशानिर्देशन में किया गया. इस अवसर पर माई एनिमल कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट संदीप दत्ता ने कहा कि भारत में माई एनिमल कंपनी द्वारा कुत्तों, ऊंटों, घोड़ों और अन्य जानवरों के लिए स्वास्थ्यवर्धक एवं गुणकारी प्रोडक्ट बनाया जा रहा है, जिस से भारत के पशुपालक लाभान्वित हो सकें.

माई एनिमल कंपनी जूनियर के वाइस प्रेसिडेंट आदित्य पांडे ने कहा कि आज राष्ट्रीय स्तर पर कई कंपनियां हैं, जो अपने विभिन्न उत्पादों को बना कर मार्केटिंग कर रही हैं, लेकिन पशुपालन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए पहली कंपनी माई एनिमल है, जो पशुपालन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काम कर रही है.

उन्होंने कहा कि उन का प्रयास है कि गुणवत्तायुक्त उत्पादों से हर गांव के पशुपालक परिचित हों और पशुओं की सुरक्षा को ध्यान में रख कर पशुपालन का एक अच्छा व्यवसाय कर सकें, इस के लिए कंपनी पेरावेट और वेटरनरी डाक्टर के सहयोग से भारत के ग्रामीण इलाकों तक पहुंच कर पशुपालकों का सहयोग कर रही है. इसी को विस्तार देने के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के छात्रछात्राओं का इंटरव्यू लिया गया. इस के बाद  उन को प्लेसमेंट दे कर कंपनी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन को विभिन्न जिलों में पोस्टिंग दी जाएगी, जिस से पशुपालक नए उत्पाद और तकनीक की सहायता से अपने पशुओं की जिंदगी को एक नई दिशा दे सकें.

इस अवसर पर 38 छात्रछात्राओं ने कंपनी के प्लेसमेंट ड्राइव में हिस्सा लिया और इन में से कंपनी ने 15 छात्रों का चयन किया. कंपनी इन छात्रों को देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी काम करने का मौका देगी, क्योंकि यह कंपनी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार बढ़ती जा रही है.

इस कार्यक्रम में निदेशक ट्रेनिंग औफ प्लेसमेंट प्रो. आरएस सेंगर ने कहा कि कुलपति प्रो. केके सिंह के मार्गदर्शन में कृषि विश्वविद्यालय के छात्रों का प्लेसमेंट सौ फीसदी हो सके, इस के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि आने वाले दिनों में कृषि विश्वविद्यालय में रोजगार मेला भी लगाया जाएगा, जिस से छात्र रोजगार पा सकें. इस कार्यक्रम का संचालन जौइंट डायरेक्टर प्रो. सत्य प्रकाश ने किया.

Lac Insect : ‘राष्ट्रीय लाख कीट दिवस’ का आयोजन

Lac Insect : राजस्थान कृषि महाविद्यालय, उदयपुर के कीट विज्ञान विभाग में लाख कीट आनुवंशिक संरक्षण पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा प्रायोजित नेटवर्क परियोजना के तहत चौथा ‘राष्ट्रीय लाख कीट दिवस’ मनाया गया. इस मौके पर लाख संसाधन उत्पादन पर ‘एकदिवसीय छात्र संवाद सहप्रशिक्षण कार्यशाला’ का आयोजन किया गया और इस में कृषि संकाय के स्नातक, स्नातकोत्तर और पीएचडी के 125 से अधिक छात्रों ने हिस्सा लिया.

इस मौके पर परियोजना अधिकारी डा. हेमंत स्वामी ने लाख कीट के जीवनचक्र एवं उन के पोषक वृक्ष लाख की खेती कैसे की जाए व किसान अपनी आय को कैसे बढ़ा सकते हैं, के बारे में जानकारी दी.

इस कार्यशाला में डा.एमके महला, प्रोफैसर, कीट विज्ञान ने सौंदर्य प्रसाधन, भोजन, फार्मास्यूटिकल्स, इत्र, वार्निश, पेंट, पौलिश, आभूषण और कपड़ा रंगाई जैसे उद्योगों में लाख और इस के उपउत्पादों यानी राल, मोम और डाई के उपयोग के बारे में बताया. साथ ही, उन्होंने विभिन्न मेजबान पौधों पर लाख कीट की वैज्ञानिक खेती के लिए उन्नत तकनीकों के बारे में भी जानकारी दी.

16 मई से 22 मई तक ‘उत्पादक कीट संरक्षण सप्ताह’ और ‘राष्ट्रीय लाख कीट दिवस’ के अवसर पर डा. अमित त्रिवेदी, क्षेत्रीय निदेशक अनुसंधान, डा. वीरेंद्र सिंह, प्रोफैसर, उद्यान विभाग और डा. रमेश बाबू, विभागाध्यक्ष, कीट विज्ञान विभाग ने इन उत्पादक कीड़ों के संरक्षण, परागणकों, भौतिक डीकंपोजर, जैव नियंत्रण एजेंटों आदि के रूप में प्राकृतिक जैव विविधता की सुरक्षा में उन की भूमिका पर प्रकाश डाला. साथ ही, यह भी बताया कि कैसे स्थानीय किसानों के बीच लाख की खेती को लोकप्रिय बनाना है और प्रोत्साहित करना है, क्योंकि जहां लाख की खेती छोड़ दी गई है, वहां निवास स्थान नष्ट हो गए हैं, वहां लाख के कीट और संबंधित जीवजंतु लुप्त हो गए हैं.

इस आयोजन के दौरान कीट पर निबंध प्रतियोगिता व प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया व विजेताओं को प्रमाणपत्र वितरित किए गए.

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान राष्ट्रीय विस्तार कार्यक्रम कार्यशाला

नई दिल्ली : भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) द्वारा खरीफ 2024 की ट्रांसफर औफ टैक्नोलौजी (ToT) गतिविधियों की समीक्षा कार्यशाला का सफल आयोजन 16, मई 2025 को वर्चुअल माध्यम से किया गया.

इस कार्यशाला की अध्यक्षता आईएआरआई के निदेशक डा. सीएच श्रीनिवास राव ने की. इस अवसर पर आईसीएआर संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों, झांसी स्थित केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय और 16 स्वयंसेवी संगठनों सहित विभिन्न हितधारकों ने हिस्सा लिया.

यह पहल आईएआरआई का प्रमुख साझेदारी कार्यक्रम है, जिस का उद्देश्य प्रगतिशील कृषि अनुसंधान और जमीनी स्तर पर उस के कार्यान्वयन के बीच की खाई को पाटना है. उल्लेखनीय है कि इस साल 3 नए स्वयंसेवी संगठनों को कार्यक्रम में शामिल किया गया, जो विभिन्न जलवायु क्षेत्रों और सामाजिक व आर्थिक परिस्थितियों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इस से कार्यक्रम की पहुंच और समावेशिता को और अधिक बल मिला है.

इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए डा. सीएच श्रीनिवास राव ने कहा कि तकनीकी जानकारी के प्रसार के जरीए भारत के किसानों को मजबूत बनाया जा सकता है, जिस से कृषि का सतत विकास संभव है. उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अनुसंधान संस्थानों, कृषि विश्वविद्यालयों और स्वयंसेवी संगठनों की यह अनोखी साझेदारी ही किसानों तक सही समय पर सही तकनीक पहुंचाने का मूलमंत्र है.

उन्होंने सभी सहभागियों की सक्रिय भागीदारी और योगदान की सराहना की और बताया कि कार्यशाला में 28 विस्तृत प्रस्तुतियां दी गईं, जिन में पूर्व सीजन की उपलब्धियां और आगामी सीजन की योजनाएं शामिल थीं. डा. सीएच श्रीनिवास राव ने सभी हितधारकों से इस गति को बनाए रखने और आईएआरआई की नवीनतम किस्मों एवं तकनीकों के प्रभावी हस्तांतरण को सुनिश्चित करने का आग्रह किया.

उन्होंने यह भी कहा कि स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार तकनीकों को ढालने के लिए मजबूत फीडबैक तंत्र और सहभागी दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है. उन्होंने आगे कहा कि भारतीय कृषि का भविष्य साझेदारी आधारित नवाचार और खेतस्तर की सहभागिता में शामिल है. आईएआरआई इस आंदोलन का नेतृत्व वैज्ञानिक उत्कृष्टता और जमीनी भागीदारी के साथ करता रहेगा.

इस कार्यक्रम की शुरुआत में डा. एके सिंह, प्रभारी, कैटैट, आईएआरआई ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और डा. आरएन पडारिया, संयुक्त निदेशक (प्रसार), आईएआरआई ने कार्यक्रम की रूपरेखा एवं रणनीतिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया.

इस कार्यशाला के अंतर्गत एक विशेष संवाद सत्र भी आयोजित किया गया, जिस में प्रतिभागियों ने अपने अनुभव और सुझाव साझा किए. कार्यशाला का समापन तकनीकी हस्तांतरण में कार्यक्षमता, समावेशिता और नवाचार को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी, के साथ हुआ, जिस से आईएआरआई की कृषि विकास और विस्तार क्षेत्र में लीडरशिप की भूमिका और मजबूत होगी.

Biological Technology : जैविक तकनीक को मिला वैश्विक पुरस्कार

Biological Technology : ब्राजील की अग्रणी कृषि वैज्ञानिक डा. मारियांगेला हुंग्रिया दा कुन्हा को साल 2025 का प्रतिष्ठित ‘विश्व खाद्य पुरस्कार’ दिए जाने की घोषणा वैश्विक जैविक कृषि जगत के लिए एक प्रेरणास्पद क्षण है. इस अवार्ड को “कृषि का नोबेल पुरस्कार” भी कहा जाता है.

जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण पर उन के काम ने ब्राजील को हर साल तकरीबन 25 अरब अमेरिकी डालर की रासायनिक उर्वरक लागत से छुटकारा दिलाया है.

इस अवसर पर जहां हम ब्राजील की इस वैज्ञानिक को हार्दिक बधाई देते हैं, वहीं यह तथ्य भी सामने लाना जरूरी है कि भारत में इस दिशा में व्यावहारिक और पूरी तरह से सफल मौडल पिछले 3 दशकों से विकसित किया जा चुका है.

मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर, कोंडागांव, छत्तीसगढ़ में हम ने सालों की मेहनत और शोध से एक ऐसी तकनीक को मूर्त रूप दिया है, जिस में बहुवर्षीय पेड़ विशेष रूप से आस्ट्रेलियाई मूल के “अकेशिया” प्रजाति के पौधों को विशेष पद्धति से विकसित कर के उस की जड़ों में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को प्राकृतिक रूप से स्थिर कर मिट्टी में लगाया जाता है. इस की पत्तियों से बनने वाला ग्रीन कंपोस्ट अतिरिक्त लाभ प्रदान करता है, जिस से कि स्पीडो के साथ लगाए जाने वाली तकरीबन सभी प्रकार की अंतर्वत्ति फसलों को कुछ समय बाद पचासों साल तक किसी भी प्रकार की रासायनिक अथवा प्राकृतिक खाद अलग से देने की जरूरत ही नहीं पड़ती.

“नेचुरल ग्रीनहाउस मौडल” के नाम से चर्चित यह तकनीक आज देश के 16 से अधिक राज्यों के प्रगतिशील किसान अपने खेतों में अपना चुके हैं. इस से न केवल रासायनिक नाइट्रोजन खाद पर निर्भरता खत्म हो रही है, बल्कि भारत सरकार द्वारा हर साल दी जाने वाली 45 से 50 हजार करोड़ की नाइट्रोजन उर्वरक सब्सिडी पर भी बड़ी बचत संभव हो रही है. भारत जैसे देश, जो रासायनिक उर्वरकों के लिए कच्चा माल आयात करता है, के लिए यह विदेशी मुद्रा की सीधी बचत करता है.

हमारा मानना है कि जिस तकनीक पर अब वैश्विक स्तर पर पुरस्कार मिल रहा है, उस पर भारत पहले ही काम कर चुका है और एक प्रमाणित, व्यावहारिक मौडल अपने देश में ही उपलब्ध है. भारत सरकार यदि समय रहते इस तकनीक को समर्थन देती, तो आज यह पुरस्कार भारत को भी मिल सकता था.

हमें यह पुरस्कार न मिलने का कोई अफसोस नहीं है, किंतु अब जबकि इस तकनीक को वैश्विक मान्यता मिल चुकी है, भारत सरकार और नीति बनाने वालों से हमारी अपेक्षा है कि वे इस देशज तकनीक को प्राथमिकता दें, इस का प्रसार करें और किसानों को रासायनिक उर्वरकों के जाल से नजात दिलाएं. यह न केवल किसानों की आत्मनिर्भरता, बल्कि राष्ट्र की आर्थिक सुरक्षा और पर्यावरणीय संरक्षण के लिए भी जरूरी है.

Brinjal : बैगन की खेती

Brinjal : मजाक में अकसर लोग बैगन को बेगुन कह देते हैं, मगर हकीकत में ऐसा नहीं है. तमाम तरकारियों की तरह बैगन की भी अपनी खूबियां हैं.

यह स्वादिष्ठ सब्जी सेहत के लिहाज से भी खासी कारगर होती है. महिलाएं अपनी रसोई में बैगन को पूरीपूरी अहमियत देती हैं.

वे इस की सूखी व रसेदार तरकारी बनाने के साथसाथ इस का भरता भी बनाती हैं. भरवां बैगन व बैगनी यानी बैगन के पकौड़ों की भी भारतीय घरों में खूब मांग रहती है. कुल मिला कर हर उम्र के लोग हमेशा बैगन के पकवानों को चाव से खाते हैं, इसी वजह से बाजार में हमेशा बैगन की मांग बनी रहती है.

सब्जी के व्यापारी बैगन की बिक्री से खूब कमाई करते हैं, लिहाजा बैगन की खेती करना हमेशा फायदे का सौदा रहता है. इस लेख में संकर बैगन उगाने के बारे में जानकारी दी जा रही है.

आबोहवा:  संकर बैगन की खेती करने के लिए औसत तापमान 22 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड के बीच होना मुनासिब होता है. इस तापमान में बैगन की फसल की बढ़वार सही तरीके से होती है और फल भी भरपूर तादाद में हासिल होते हैं.

बैगन की फसल ज्यादा गरम और सूखा मौसम नहीं सह पाती है. ज्यादा गरम आबोहवा में फलों की तादाद घट जाती है. जमीन बैगन की खेती के लिहाज से दोमट मिट्टी ज्यादा मुनासिब होती है.

अलबत्ता मिट्टी पानी की सही निकासी वाली होनी चाहिए. जमीन का पीएच मान 5.5 से 6.0 होना चाहिए. मिट्टी सही किस्म की होने से पैदावार पर बहुत ज्यादा माकूल असर पड़ता है. बीज की मात्रा बैगन की खेती के लिए 125 से 150 ग्राम बीजों की प्रति हेक्टेयर के हिसाब से दरकार रहती है.

बहुत ज्यादा या कम मात्रा में बीजों का इस्तेमाल करना ठीक नहीं रहता है. पौधे उगाना बैगन के पौधे उगाने के लिए 3 मीटर लंबी, 1 मीटर चौड़ी और 0.15 मीटर ऊंची क्यारियां बनानी चाहिए. इस साइज की 20-25 क्यारियों में इतने पौध तैयार हो जाते हैं, जो 1 हेक्टेयर खेत के लिहाज से काफी होते हैं. हर क्यारी में 25 किलोग्राम अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद मिलाएं.

इस के अलावा 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 10 ग्राम फुराडान डाल कर मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं. तैयार क्यारी में बीजों को 5 सेंटीमीटर गहराई में बोएं. बोआई के बाद बीजों को आधी मिट्टी और आधी सड़ी गोबर की खाद के मिश्रण से ढक दें.

इस के बाद क्यारी को घास से ढकें. जब अंकुरण होने लगे तो घास हटा दें.

शुरुआत में फुहारे से पानी दें और कुछ दिनों बाद सामान्य तरीके से सिंचाई करें.

बोआई के 2 दिनों बाद से हर 5 दिनों के अंतराल पर 3 मिलीलीटर एकोमिन या 2 ग्राम केपटाफ 50 डब्ल्यू पाउडर का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर क्यारियों को भिगोएं. बोआई के 15 दिनों बाद और पौधे उखाड़ने से 3-4 दिनों पहले 1 मिलीलीटर थायोडान का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें.

खाद व उर्वरक खेत तैयार करते वक्त 25-30 टन अच्छी तरह से सड़ीगली गोबर की खाद या कंपोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में मिलाएं. इस के अलावा 7.50 क्विंटल नीम की खली भी प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में मिलाएं. इन के अलावा 200 किलोग्राम नाइट्रोजन, 100 किलोग्राम फास्फोरस और 100 किलोग्राम पोटाश का भी प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. खेत की तैयारी के वक्त नाइट्रोजन की आधी मात्रा और पोटाश व फास्फोरस की पूरी मात्रा जमीन में मिलाएं. नाइट्रोजन की बची मात्रा का आधा भाग रोपाई के 25 दिनों बाद और बाकी भाग रोपाई के 50 दिनों बाद खेत में इस्तेमाल करें.

रोपाई बोआई के 4 से 6 हफ्तों के दौरान पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं. जब रोपाई के लिए पौधे उखाड़ने हों, उस से 2-3 घंटे पहले क्यारियों में भरपूर पानी डालें ताकि वे आसानी से निकल सकें. पौधों को 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बनी मेंड़ों के बाजू में 60 सेंटीमीटर के फासले पर लगाएं. रोपाई के बाद फौरन हलकी सिंचाई करें.

खयाल रखें कि पौधों की रोपाई का काम शाम के वक्त करना बेहतर रहता है.

खास बीमारियां व बचाव

फाइटोपथोरा फलसड़न रोग : इस से बचाव के लिए रिडोमिल एमजेड या इंडोफिल एम 45 की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. जरूरत के मुताबिक 10 दिनों बाद दोबारा छिड़काव करें.

फायोप्सिस सड़न और ब्लाइट : इस से बचाव के लिए इंडोफिल एम 45 की 2.5 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 7-8 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

डैंपिंग आफ (पौधविगलन) : इस से बचाव के लिए सेरेसान दवा की 2 ग्राम मात्रा से प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करें. पौधों को 3 फीसदी फाइटोलान या डाइथेन एम 45 द्वारा अच्छी तरह भिगोएं. नर्सरी में ज्यादा पासपास पौधे न रखें और बहुत ज्यादा सिंचाई भी न करें.

लिटिल लीफ रोग : इस रोग की चपेट में आने वाले पौधों को उखाड़ कर जला दें. इस के अलावा रोगोर 0.03 फीसदी का 10 से 15 दिनों के अंतराल पर फल आने तक छिड़काव करें. रोपाई के वक्त पौधों की जड़ों को टैट्रासाइक्लिन 1000 पीपीएम में भिगोने के बाद रोपाई करें.

खास कीट व बचाव

तनाछेदक व फलछेदक : कीड़े लगे भागों को सूंडि़यों सहित पौधों से अलग कर के जला दें. फसल की छोटी अवस्था में दानेदार सिस्टेमिक कीटनाशक का इस्तेमाल करें. इंडोसल्फान या मेटासिस्टाक्स की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

हरा मच्छर (जैसिड) : 10 ग्राम थायमेट का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें. मेटासिस्टाक्स या मोनोक्रोटोफास की 2 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

माहू (एफिड) : इस से बचाव के लिए इंडोसल्फान या मोनोक्रोटोफास के 0.05 फीसदी घोल का छिड़काव करें. लाल मकड़ी : लाल मकड़ी से बचाव के लिए मैलाथियान के 0.02 फीसदी घोल का छिड़काव करें. इस के अलावा फसल पर सल्फर धूल का बुरकाव करें या बैटेवल सल्फर के 0.05 फीसदी घोल का छिड़काव करें.

इस प्रकार कीड़ों व रोगों से बैगन की फसल की हिफाजत करते हुए भरपूर पैदावार हासिल की जा सकती है. उम्दा नस्ल के बैगनों की मांग हमेशा बनी रहती है, लिहाजा इस की खेती करना बेहद फायदे का सौदा होता है.

कीटों व रोगों की रोकथाम के लिए दवाओं का इस्तेमाल करते वक्त दवाओं में चिपटाक या सेंडोविट जैसे चिपकने वाले पदार्थ जरूर मिलाएं. दवाओं का छिड़काव करते वक्त इस बात का खयाल रखें कि पूरा पौधा दवा से भीग जाना चाहिए.

Arvi Crop : अरवी की फसल का कीड़ों व रोगों से बचाव

Arvi crop :  अरवी (कोलोकेसिया) यानी घुइयां एक कंदीय पौधा है. इस की खेती खासकर कंदों के लिए की जाती है.

अरवी की पैदावार काफी अच्छी यानी 30-40 टन प्रति हेक्टेयर तक होती है. अरवी के मूल स्थान के बारे में लोगों की राय अलगअलग है.

भारत में इस की खेती कब और कहां शुरू हुई, इस का किसी को पक्का पता नहीं है. उत्तरी भारत में इसे खासतौर से उगाते हैं. अन्य प्रदेशों में भी इस का उत्पादन बढ़ रहा है.

इस में कार्बोहाइड्रेट की उच्च मात्रा के अलावा अन्य कंदों वाली सब्जियोें के मुकाबले ज्यादा मात्रा में प्रोटीन, खनिज लवण, फास्फोरस व लोहा पाया जाता है.

अरवी पर लगने वाले कीट व रोग इस की पैदावार को प्रभावित करते हैं. अन्य सब्जियों की तरह अरवी की फसल पर भी कीटों का हमला होता है, जिन में तंबाकू का इल्ली कीट और लाही खास हैं.

अरवी के खास हानिकारक कीड़े

तंबाकू की सूंड़ी : इस के पतंगे भूरे रंग के 15-18 मिलीमीटर लंबे होते हैं. इन का अगला पंख कत्थई रंग का होता है, जिस पर सफेद लहरदार धारियां होती हैं, जबकि पिछले पंख सफेद रंग के होते हैं. पूरी तरह विकसित पिल्लू 35-40 मिलीमीटर लंबा पीलापन लिए हुए हरा भूरा होता है. इस के निचले हिस्से में दोनों ओर पीली धारी होती है.

मादा कीड़ा पत्तियों की निचली सतह पर 200 से 300 अंडे झुंड में देती है, जो भूरे रंग के बालों से ढके रहते हैं. 3 से 5 दिनों में अंडों से पिल्लू निकल कर झुंड में पत्तियों को खाते हैं. 20 से 30 दिनों में पिल्लू पूरी तरह बड़े हो कर मिट्टी के अंदर प्यूपा में बदल जाते हैं. प्यूपा काल गरमी व जाड़ों में क्रमश: 7-9 और 25-30 दिनों का होता है. इस के बाद प्यूपा से बड़े कीट बन जाते हैं. अंडे से बड़े होने में इस कीट को 30 से 56 दिनों का समय लगता है. 1 साल में इस की 8 पीढि़यां होती हैं.

अरवी के पौधों पर इस कीट का हमला जून से सितंबर तक होता है.

इस कीड़े के पिल्लू ही पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. शुरू में अंडों से निकले पिल्लू अरवी की कोमल पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में हमला कर के हरे भाग को खाते हैं. बाद में जवान पिल्लू अलगअलग पौधों पर हमला कर के पत्तियों को खा कर नुकसान पहुंचाते हैं. बहुत ज्यादा प्रकोप होने पर ये पूरे पौधों की पत्तियों को खा जाते हैं, जिस से पौधे ठूंठ हो जाते हैं और कंद पर रोग लग जाता है. इस कीट का हमला रात के समय ज्यादा होता है.

रोकथाम

* फसल की कटाई के बाद खेत की अच्छी जुताई कर देनी चाहिए.

* अंडों के गुच्छों व पिल्लुओं को पत्तियों समेत तोड़ कर नष्ट कर दें.

* रोशनी द्वारा जवान कीड़ों को जमा कर के नष्ट कर दें.

* ज्यादा हमला होने पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल या डायमिथोएट (30 ईसी) दवा का 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से पौधों पर 15 दिनों के अंतर पर 2 बार छिड़काव करना फायदेमंद होता है.

* मिश्रीकंद के बीज के घोल का 5 फीसदी की दर से छिड़काव करने पर इस कीड़े से बचा जा सकता है.

अरवी के लाही कीट : लाही कीट 2 से 3 मिलीमीटर लंबा हरेपीले रंग का होता है. जवान कीड़े पंखदार व बिना पंख दोनों प्रकार के होते हैं. लेकिन इस कीट के बच्चे बिना पंख के होते हैं.

मादा कीट अपने जीवन काल में 32 से 50 अंडे पैदा करती है. 7 से 8 दिनों में 3 से 4 निर्मोचन के बाद ये पूरी तरह जवान हो जाते हैं. इन का जीवनकाल 23 से 28 दिनों में पूरा हो जाता है.

इस कीट के जवान व बच्चे दोनों ही पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. ये झुंड में अरवी की पत्तियों की निचली सतह और नई निकलती पत्तियों के बीच में रह कर लगातार रस चूसते हैं. इसलिए पत्तियां पीली पड़ कर सूख जाती हैं, जिस से पौधे बड़े नहीं हो पाते व कमजोर हो जाते हैं.

कंद अच्छी तरह बढ़ नहीं पाते जिस से पैदावार में भारी कमी आ जाती है.

रोकथाम

* माहू का प्रकोप होने पर पीले चिपचिपे ट्रैप का इस्तेमाल करें ताकि माहू ट्रैप पर चिपक कर मर जाएं.

* परभक्षी काक्सीनेलिड्स या सिरफिड या क्राइसोपरला कार्निया का संरक्षण कर 50,000 से 10,0000 अंडे या सूंड़ी प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें.

* नीम का अर्क 5 फीसदी या 1.25 लीटर नीम का तेल 100 लीटर पानी में मिला कर छिड़कें.

* बीटी का 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए.

* यदि पौधे पर लाही कीट लगा हो तो किसी एक तरल कीटनाशी दवा जैसे डाइमिथोएट (30 ईसी) का 1.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से या मिश्रीकंद बीज के घोल के 5 फीसदी का छिड़काव 15 दिनों के अंतर पर 2 बार करें.

अरवी के खास रोग

अरवी का झुलसा रोग : इस रोग का प्रकोप फाइटोफ्थोरा कोलोकेसियाई नाम के कवक से होता है. यदि रात का तापमान 20-22 डिगरी सेंटीग्रेड व दिन का तापमान 25-27 डिगरी सेंटीग्रेड के बीच हो, नमी दिन में 65 फीसदी और रात में 100 फीसदी हो व आकाश में बादल छाए हों और बीचबीच में बारिश होती रहे तो इस रोग का फैलाव और भी तेजी से होता है.

पूरी फसल 5-7 दिनों के अंदर इस रोग से झुलस जाती है. यदि तापमान 20 डिगरी सेंटीग्रेड से कम या 28 डिगरी सेंटीग्रेड से ज्यादा हो तो यह रोग ज्यादा नहीं बढ़ पाता है.

यह अरवी का एक भंयकर रोग है, जो पत्तियों पर छोटेछोटे हलके भूरे रंग के धब्बों के रूप में शुरू होता है. जल्दी ही ये छोटेछोटे धब्बे आकार में बड़े और भूरे रंग के हो जाते हैं व अगलबगल के पौधों को भी प्रभावित कर देते हैं. यदि समय पर रोकथाम नहीं की जाए तो 1 हफ्ते के अंदर पूरी की पूरी फसल झुलस कर बरबाद हो जाती है.

खोज से यह साबित हो गया है कि रोग की तेजी व पैदावार में होने वाली कमी का आपस में सीधा संबंध है.

बिहार में इस रोग का प्रकोप अगस्त व सितंबर महीनों में होता है. रोकथाम भारत में अरवी की कई रोग न लगने वाली किस्में मौजूद हैं, जिन में जाखड़ी, टोपी व मुक्ताकेशी कुछ खास किस्में हैं.

रोग न लगने वाली किस्मों में रोग लगने वाली किस्मों की तुलना में रोग की शुरुआत देर से होती है और उस का फैलाव भी धीमा होता है. लिहाजा जहां यह बीमारी हर साल होती है, वहां मुक्ताकेशी वगैरह रोग न लगने वाली किस्मों का लगाना ठीक रहता है.

कंदों की रोपाई के समय में इस तरह बदलाव करें, जिस से कंद को रोग न लगे. इस तरह इस से होने वाले नुकसान से बचा जा सकता है. लिहाजा जिस इलाके में इस बीमारी का असर ज्यादा या हमेशा होता है, वहां अरवी की रोपाई फरवरी से मार्च के बीच करें ताकि फसल पूरी तरह से बढ़ सके व उपज पर इस का कोई बुरा असर न पड़े.

रोपाई के बाद कंदों को शीशम की पत्तियों या काले पौलीथिन या सूखी घासफूस से ढक देने पर इस रोग का असर कम होता है व खेतों में नमी बनी रहती है. इस से खरपतवारों की संख्या में भी कमी होती है.

ताम्रयुक्त कवकनाशी दवा डाइथेन एम 45 (0.2 फीसदी) के 4-5 छिड़काव 1 हफ्ते के अंतर पर करने से रोग की काफी हद तक रोकथाम हो जाती है. मटलैक्सिल (0.05 फीसदी) का छिड़काव करने पर पैदावार 50 फीसदी तक बढ़ सकती है.

Workshop : प्याज एवं लहसुन पर अनुसंधान परियोजना की कार्यशाला

Workshop : भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, हवालबाग, अल्मोड़ा में प्याज एवं लहसुन पर अखिल भारतीय नैटवर्क अनुसंधान परियोजना की 16वीं सालाना कार्यशाला का शुभारंभ अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईओनआरपीओजी) के अंतर्गत किया गया. इस कार्यशाला के मुख्‍य अतिथि अजय टम्‍टा, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्य मंत्री ने अपने संबोधन में संस्थान के निदेशक एवं सभी वैज्ञानिकों को कृषि क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धियों के लिए बधाई दी. उन्होंने कहा कि इस कार्यशाला में देश के विभिन्न क्षेत्रों से आए वैज्ञानिक अपने अनुभवों को साझा करेंगे.

मंत्री अजय टम्टा ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के निर्देशन में 29 मई से 12 जून, 2025 तक चलने वाली ‘विकसित कृषि संकल्प अभियान : अनुसंधान किसान के द्वार’ कार्यक्रम में किसानों से अधिक से अधिक संख्या में भागीदारी कर कार्यक्रम को सफल बनाने का आह्वान किया.

इस कार्यशाला के अध्यक्ष डा. संजय कुमार सिंह, उपमहानिदेशक (बागबानी विज्ञान), भाकृअनुप ने बताया कि कार्यशाला के दौरान 3 साल के लिए बनाए जाने वाले इस कार्यक्रम में ‘किसानों को कैसे आगे बढ़ाया जाए’ विषय पर गहन चर्चा की जाएगी. उन के मुताबिक, देवभूमि में ऐसी क्षमता है कि यहां बेमौसमी एवं दुर्लभ सब्‍जी उत्‍पादन कर अत्यधिक लाभ लिया जा सकता है.

उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि हमारा देश आज प्याज एवं लहसुन की उत्पादकता में दूसरे स्थान पर है. यदि युवा तबका इस की खेती अच्छी क्वालिटी के बीज, तकनीकी एवं आधुनिक तरीका अपना कर करें, तो कम लागत पर अधिक मुनाफा ले सकते हैं.

इस से पूर्व संस्थान के निदेशक डा. लक्ष्‍मी कांत ने संस्थान की उपलब्धियां भी बताईं. उन्होंने कहा कि संस्थान द्वारा ही प्याज की पहली संकर किस्म वीएल प्‍याज 67 का विकास किया गया. उन्होंने बताया कि संस्थान द्वारा प्याज की 2 एवं लहसुन की 2 किस्मों का विकास कर उन्हें अधिसूचित किया गया और प्याज की 1 व लहसुन की 2 किस्मों का व्यावसायीकरण भी किया गया है.

इस दौरान डा. विजय महाजन, निदेशक, प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय, पुणे ने अखिल भारतीय प्याज एवं लहसुन परियोजना की सालाना उपलब्धियों से सभी को अवगत कराया.

इस संस्थान के 3 प्रकाशनों बुलबिल ऐज प्लांटिंग मैटिरियल: नोवल अप्रोच टू कल्‍टीवेट लौग डे गार्लिक इन नौर्थ वैस्‍टर्न हिमालयाज, पर्वतीय क्षेत्रों में प्‍याज का बीजोत्‍पादन एवं पर्वतीय इलाकों में लहसुन का बीज उत्पादन और प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय की पुस्तिका गाइडलाइंस फौर आइडेंटिफिकेशन औफ औनियन एंड गार्लिक वैरायटी/हाइब्रिड इवैल्‍यूएटेड अंडर एआईएनपीओआरजी फौर रिलीज का भी विमोचन किया गया.

प्रगतिशील किसानों को कार्यशाला के दौरान किया गया सम्मानित

इस अवसर पर अजय वर्मा, महापौर, अल्‍मोड़ा, डा. सुधाकर पांडे, सहायक महानिदेशक (बागबानी संभाग), भाकृअप, डा. केई लवांडे, पूर्व कुलपति, डा. बीएसकेकेवी, जलगांव एवं पूर्व निदेशक डीओजीआर, पुणे, डा. प्रवीण मलिक, सीईओ, एग्रीइनोवेट, नई दिल्‍ली, डा. संजय कुमार, डा. बीएस पाल, डा. विक्रमादित्य पांडे, डा. बीएस तोमर, डा. पीके गुप्ता एवं देश के विभिन्‍न संस्‍थानों और कृषि विश्वविद्यालयों के 70 से भी अधिक लोग उपस्थित रहे.

Mizoram’s Flower : मिजोरम की फूलों की खेती की सुगंध सारी दुनिया में

Mizoram’s Flower: केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पिछले दिनों पूर्वोत्तर दौरे के पहले दिन मिजोरम, इंफाल के थेनजोल स्थित बागबानी महाविद्यालय के दो नए भवनों का वर्चुअल माध्यम से उद्घाटन किया. बागवानी महाविद्यालय, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय का ही हिस्सा है, जिस के प्रशासनिक सह अकादमिक और भवन का केंद्रीय मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा उद्घाटन किया गया.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि मिजोरम अद्भुत प्रदेश है. पूर्वोत्तर को आगे बढ़ाना हमारा संकल्प है. विकसित भारत के लिए विकसित मिजोरम और विकसित मिजोरम के लिए, विकसित खेती और समृद्ध किसान जरूरी है.

उन्होंने कहा कि चाहे मिजोरम की फसलें हो, चाहे फल, पैशन फ्रूट्स, अदरक, हल्दी, गोभी, बैंगन, टमाटर इत्यादि सब का बहुत महत्व है. यहां के फूल की सुगंध सारी दुनिया को आकर्षित करती है. अब हमारा लक्ष्य है कि इन फसलों को केवल मिजोरम तक ही सीमित नहीं रहने देना है बल्कि, इन की मार्किटिंग, ब्राडिंग कर के देश और दुनिया में भेजना है. इस में हम कोई कमी नहीं छोड़ेंगे. हमें किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है.

केंद्रीय मंत्री श्री चौहान ने सभी से मिजोरम राज्य को विकसित बनाने में सहयोग करने का आह्वान भी किया.

इस अवसर पर मिजोरम के राज्यपाल जनरल डा. वीके सिंह, मुख्यमंत्री पु. लालदुहोमा और विश्वविद्यालय कुलपति डा. अनुपम मिश्रा भी उपस्थित रहे.

इस कार्यक्रम में किसानों और केवीके की भागीदारी के साथ नवीनतम बागबानी विकास को प्रदर्शित करने वाली एक प्रदर्शनी भी लगाई गई. जिस में 1,500 से अधिक किसानों ने भाग लिया.

Depot Darpan : डिपो दर्पण से मिलेगा खाद्यान्न का लेखाजोखा

Depot Darpan : डीएफपीडी अब डिपो दर्पण (Depot Darpan) पोर्टल और मोबाइल एप्लीकेशन की कल्पना कर रहा है, जिस का उद्देश्य है कि खाद्य भंडारण डिपो उच्चतम गुणवत्ता और प्रदर्शन मानकों को पूरा करते हैं. यह डिपो प्रबंधकों को लगभग वास्तविक समय के आधार पर बुनियादी ढांचे, परिचालन और वित्तीय प्रदर्शन का मूल्यांकन करने में सक्षम बनाता है.

डिपो प्रबंधक अपने डिपो में उपलब्ध बुनियादी ढांचे के जियो टैग किए गए इनपुट अपलोड करते हैं, जिस से समय पर सुधार के लिए स्वचालित रेटिंग और एक्शन पाइंट तैयार होते हैं. यह प्रणाली निगरानी रखने वाले अधिकारियों और तीसरे पक्ष औडिट द्वारा सौ फीसदी सत्यापन की गारंटी देती है.

गोदामों का मूल्यांकन 2 मुख्य श्रेणियों के आधार पर किया जाता है:

पहला, अवसंरचना संबंधी पहलू, जिन में सुरक्षा मानक, भंडारण की स्थिति, पर्यावरण, प्रौद्योगिकी अपनाना और वैधानिक मापदंड शामिल हैं.

दूसरा परिचालन दक्षता पहलू, जिस में स्टाक टर्नओवर, घाटा, स्थान उपयोग, जनशक्ति व्यय और लाभप्रदता शामिल हैं.

प्रत्येक श्रेणी का मूल्यांकन स्वतंत्र रूप से किया जाता है. गोदाम को दोनों मापदंडों के समग्र स्कोरिंग के आधार पर स्टार रेटिंग मिलती है.

डिपो दर्पण को स्मार्ट वेयरहाउसिंग प्रौद्योगिकियों के साथ मुख्य रूप से जोड़ा गया है, जिस से एक बेरोक डिजिटल निगरानी पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हुआ है, जिस में शामिल हैं: सीसीटीवी निगरानी और आईओटी सैंसर, जो सीओ2 और फौस्फीन के स्तर, आग के खतरों, आर्द्रता, अवैध प्रवेश और तापमान जैसे प्रमुख मापदंडों की वास्तविक समय में निगरानी करते हैं, जिस से खाद्यान्न भंडारण में सुरक्षा और दक्षता पूरी तरह से हो सके.

आईओटी सक्षम निगरानी में शामिल हैं:

परिवेश सैंसर – अनाज की नमी और तापमान की निगरानी के लिए तापमान और सापेक्ष आर्द्रता

कार्बन डाईऔक्साइड (सीओ2) – संभावित अनाज संक्रमण की निगरानी और संकेत करने के लिए फौस्फीन गैस सैंसर जहरीली गैस के स्तर के संपर्क को रोकने के लिए पूर्व चेतावनी के माध्यम से श्रमिकों के लिए व्यावसायिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है, धुएं के रिसाव का पता लगाता है, जिस से उपचार की प्रभावशीलता बढ़ जाती है.

गेट शटर सैंसर – अवैध दरवाजे के प्रवेश का पता लगाना. निर्धारित घंटों के बाहर अवैध दरवाजे के खुलने पर अलर्ट. धुएं जैसी घटनाओं के दौरान दरवाजे की स्थिति पर नजर रखता है. आवश्यकतानुसार दरवाजे के खुलने पर नजर रख कर उचित वेंटिलेशन भी सुनिश्चित करता है.

आग/धुआं सैंसर – आग से संबंधित नुकसान को रोकने और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पूर्व चेतावनी प्रदान करता है.

इस के अलावा, बैग गिनने के लिए एआई आधारित तकनीक, वाहन की पहचान और ट्रैकिंग के लिए एएनपीआर (स्वचालित नंबर प्लेट पहचान) और प्रवेश नियंत्रण और सुरक्षा के लिए फेस रिकौग्निशन तकनीक (एफआरएस) को भी पायलट आधार पर गोदामों में तैनात किया गया है.

एफसीआई और सीडब्ल्यूसी के स्वामित्व वाले और राज्य एजेंसियों/निजी से किराए पर लिए गए गोदामों सहित कुल लगभग 2,278 गोदाम इस डिजिटल पहल में शामिल किए जाएंगे.

डिपो दर्पण मोबाइल एप जांच करने वाले अधिकारियों को किसी भी समय, कहीं भी भंडार के प्रदर्शन को ट्रैक करने की अनुमति देता है, जिस से बेहतर निर्णय लेने में सहायता मिलती है. स्वचालित रिपोर्ट का उपयोग नियमित समीक्षाओं में किया जाता है, जिस से बुनियादी ढांचे और दक्षता में निरंतर और बिना रुकावट के सुधार होता है.

डिपो दर्पण भंडारण उत्कृष्टता का दर्पण है, जो सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बेहतर भंडारण और अधिक परिचालन दक्षता सुनिश्चित करता है और वैज्ञानिक रूप से भंडारित प्रत्येक अनाज के साथ राष्ट्र की खाद्य सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारी को और अधिक मजबूत करता है.

केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री डिपो दर्पण पोर्टल और मोबाइल एप्लीकेशन का 20 मई, 2025 को औपचारिक उद्घाटन करेंगे.

Lakhpati Didi : शिवराज सिंह चौहान ने किया लखपति दीदियों से संवाद

Lakhpati Didi : केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान पिछले दिनों 2 दिवसीय उत्तराखंड दौरे पर थे, जहां दूसरे दिन उन्होंने ऋषिकेश के आईडीपीएल मैदान में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अंतर्गत लखपति दीदी एवं प्रगतिशील किसानों के साथ आयोजित संवाद कार्यक्रम में हिस्सा लिया.

इस से पहले उन्होंने महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों, कृषि और उद्यान विभाग द्वारा लगाए गए स्टालों का भी अवलोकन किया. उन के साथ राज्य के मुख्यमंत्री और प्रदेश के कृषि मंत्री गणेश जोशी भी मौजूद रहे.

इस संवाद कार्यक्रम में स्वयं सहायता समूहों की कई महिलाएं और प्रगतिशील किसान भी मौजूद रहे. इस दौरान केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लखपति दीदी रीना रावत से बात की.

रीना रावत स्वयं सहायता समूह चलाती हैं और प्रदेश में चल रही ‘लखपति दीदी योजना’ की लाभार्थी हैं. मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रीना रावत से पूछा कि ‘लखपति दीदी योजना’ ने कैसे उन की जिंदगी में बदलाव लाया है.

जवाब में रीना रावत ने कहा कि उन के समूह में 8 से 10 महिलाएं हैं, जो ‘लखपति दीदी योजना’ की लाभार्थी हैं. वे फूड प्रोसैसिंग के क्षेत्र में आज आत्मनिर्भर हैं. पहले उन्हें उन के पति के नाम से जाना जाता था, लेकिन अब वे अपने नाम और काम से जानीपहचानी जाती हैं. उन्होंने बताया कि आज उन के समूह में हर महिला तकरीबन 10 से 15 हजार रुपए तक की आमदनी हासिल कर रही हैं.

Lakhpati Didiहरिद्वार के प्रगतिशील किसान और मशरूमपालक मनमोहन ने कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से बातचीत के दौरान बताया कि साल 2017 में उन्होंने सरकार की योजनाओं का लाभ ले कर मशरूम उत्पादन शुरू किया था और लोगों को रोजगार भी दिया था. साथ ही, उन की खुद की आमदनी भी कई गुना बढ़ गई थी. बीते 4-5 सालों में उन्होंने मशरूम उत्पादन में 12 से 15 करोड़ रुपए का कारोबार किया. आज पूरे उत्तराखंड में वे मशरूम सप्लाई करते हैं और डोमिनोज जैसे बड़े ब्रांड्स भी उन से व्यापार कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन के फार्म का नाम भी ‘मामाभांजा फार्म’ है.

कार्यक्रम में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘लखपति दीदी योजना’ के लाभार्थियों और किसानों को संबोधित भी किया. उन्होंने कहा कि यदि धरती पर कहीं स्वर्ग है, तो उत्तराखंड में है. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड प्रगति की ओर बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा कि भारत सरकार महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए प्रतिबद्ध है और इसीलिए सरकार संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को आरक्षण देगी. उन्होंने कहा कि आज तक उत्तराखंड में सवा लाख बहनें ‘लखपति दीदी’ बन गई हैं.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ब्रांड हाउस औफ हिमालयाज की सरहाना करते हुए कहा कि उत्तराखंड में हाउस औफ हिमालयाज के तहत कई बेहतरीन उत्पाद बन रहे हैं. यदि इन उत्पादों की बेहतरीन तरीके से मार्केटिंग और प्रचारप्रसार हो जाए, तो ये उत्पाद पूरी दुनिया में प्रसिद्ध होंगे.

उन्होंने मंच से घोषणा करते हुए कहा कि हाउस औफ हिमालयाज के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय उत्तराखंड में सैंटर औफ एक्सीलैंस खोलेगा, ताकि हाउस औफ हिमालयाज का ब्रांडिंग में, मार्केटिंग में और रिसर्च में विकास व्यापक तौर पर हो सके.

Lakhpati Didi

इस अवसर पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यह देख कर काफी खुशी होती है कि आज हमारी बहनें अपने सपनों को साकार कर समाज को एक नई दिशा दे रही हैं. आज राज्य में 67 हजार स्वयं सहायता समूह बना कर लगभग 5 लाख ग्रामीण परिवारों की महिलाएं संगठित हो कर अपना व्यवसाय कर रही हैं. 7 हजार से अधिक गांव संगठन और 500 से अधिक क्लस्टर संगठन बना कर राज्य की महिलाएं सामूहिक नेतृत्व की एक बेहतरीन मिसाल पेश कर रही हैं.

उन्होंने आगे कहा कि हमारी सरकार का उद्देश्य केवल ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देना ही नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि हमारी माताएं, बहनें और बेटियां आत्मनिर्भर बनें, परिवार और समाज को माली रूप से मजबूत कर सकें. आज इन सभी आंकड़ों को रखने के बाद मैं यह विश्वास के साथ कह सकता हूं कि हमारे देवभूमि उत्तराखंड की महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में काम करते हुए समाज के सामने महिला सशक्तीकरण का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं.