Agricultural Innovation : जमीनी कृषि नवाचार का अनोखा मौडल

Agricultural Innovation : 5 अगस्त, 2025 को ‘भारत निर्माण यात्रा ‘ के अंतर्गत देश के 11 अनेक राज्यों से आए 25 उच्च शिक्षित युवाओं ने ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर,’ चिकलपुटी (कोंडागांव) का दौरा किया.

यह यात्रा उन उभरते प्रोफैशनलों के लिए है, जो इंजीनियरिंग, स्थापत्य कला, पत्रकारिता, फिल्म निर्माण, सामाजिक विज्ञान और प्रबंधन जैसे विविध क्षेत्रों में विशेषज्ञता रखते हैं और अब देश के जमीनी परिवर्तन में सहभागी बनने के लिए प्रतिबद्ध हैं.

प्राकृतिक ग्रीनहाउस एक मजबूत, स्वदेशी विकल्प

इस यात्रा का प्रमुख आकर्षण रहा प्राकृतिक ग्रीनहाउस मौडल, जिसे मां दंतेश्वरी हर्बल फार्मस और रिसर्च सैंटर ने पौलीहाउस के महंगे और प्लास्टिक आधारित विकल्प के स्थान पर विकसित किया है. यह नवाचार प्लास्टिक के 40 लाख रुपए की लागत में तैयार होने वाले एक एकड़ के पौलीहाउस की तुलना में मात्र 2 लाख रुपए  प्रति एकड़ की लागत से तैयार होता है और पारिस्थितिकीय संतुलन, कम जल उपयोग और दीर्घकालिक टिकाऊ खेती की दृष्टि से उत्कृष्ट माना जा रहा है.

इस यात्रा दल का नेतृत्व कर रहे अनुराग ने उन्हें आस्ट्रेलियन टीक (MDAT-16) के साथ अंतरवर्तीय काली मिर्च की जैविक खेती, हल्दी, इंसुलिन प्लांट और टीक वृक्षों के माध्यम से होने वाली प्राकृतिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण प्रक्रिया से अवगत कराया.

ईथनो मैडिको फारेस्ट और 340 दुर्लभ औषधीय प्रजातियों का संरक्षण

इस फार्म के निदेशक अनुराग त्रिपाठी और एमडी बोटैनिकल्स की निदेशक अपूर्वा त्रिपाठी ने सभी प्रतिभागियों को फार्म के भीतर विकसित “मैडिको फारेस्ट” का अवलोकन कराया. जहां 22 दुर्लभ, विलुप्तप्राय औषधीय वनस्पतियों का उन के प्राकृतिक रहवास में संरक्षण और संवर्धन कर उन के विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है.

इस के अतिरिक्त, उन्होंने बताया कि यहां 340 से अधिक औषधीय व सुगंधित पौधों की प्रजातियों की खेती की जाती है, जिस से बस्तर के सैकड़ों आदिवासी परिवारों को सतत आजीविका प्राप्त हो रही है. यह फार्म परंपरागत ज्ञान, जैविक खेती, विज्ञान और सामाजिक उत्तरदायित्व का जीताजागता संगम बन चुका है.

महिला किसानों की खास भूमिका

इस अवसर पर यात्रियों ने फार्म से जुड़े महिला स्वयं सहायता समूहों की प्रमुख जसमती नेताम से बातचीत की, जिन्होंने महिला किसानों की भूमिका और स्थानीय हर्बल अर्थव्यवस्था, हर्बल इकौनोमी  में उन के योगदान की विस्तार से जानकारी दी. साथ ही, बस्तर के स्थानीय आदिवासी किसान प्रतिनिधियों कृष्णा नेताम, शंकर नाग, समली बाई, बिलची बाई आदि से हुई बातचीत ने युवाओं को जमीनी नवाचार, परंपरागत खेती और स्थानीय नेतृत्व की वास्तविकताओं से परिचित कराया.

दिन भर की यह यात्रा पारंपरिक सादे बस्तरिया भोजन के साथ संपन हुई. जो स्वयं खेतों के मध्य प्रकृति की गोद में दोना पत्तल पर परोसा गया. इस ने यात्रा के अनुभव को न केवल जानकारीपूर्ण बल्कि, आत्मिक रूप से भी समृद्ध किया. इस संपूर्ण आयोजन को सफल बनाने में फार्म की समर्पित टीम शिप्रा, केविन, ऋषिराज, बलई और माधुरी का योगदान सराहनीय रहा.

एक यात्रा, जो आशा और नवाचार का सेतु बनी

भारत निर्माण यात्रा के आयोजनकर्ताओं प्रियांक पटेल, आलोक साहू, तुपेश चंद्राकर, रचना एवं आशीष को मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता है, जिन के प्रयासों से देश के युवा नवचिंतकों को बस्तर की धरती से जोड़ने और ‘स्वदेशी नवाचार’ का प्रत्यक्ष अनुभव कराने का यह अवसर संभव हुआ. यह यात्रा न केवल एक शैक्षणिक खोज थी, बल्कि यह भविष्य के भारत निर्माण की नींव रखने वाले विचारों, सिद्धांतों और लोगों के साथ सीधा संवाद भी सिद्ध हुई.

Agricultural Partnership : भारत रूस कृषि साझेदारी का नया सेतु बनेंगे

Agricultural Partnership : भारत के कृषि जगत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को नई ऊंचाइयों पर ले जाने वाले बस्तर के गौरव डा. राजाराम त्रिपाठी 28 जुलाई से 7 अगस्त 2025 तक रूस की ऐतिहासिक यात्रा पर जा रहे हैं. इस विशेष यात्रा के दौरान रूस के अग्रणी कृषि विशेषज्ञ, उद्यमी और और्गैनिक उत्पादों से जुड़े दिग्गज, डा. राजाराम त्रिपाठी के साथ संवाद स्थापित कर परस्पर सहयोग की रणनीति बनाएंगे. बस्तर जैसे अंचल से वैश्विक मंच पर पहुंचने वाले डा. राजाराम त्रिपाठी की यह यात्रा न केवल भारत बल्कि रूस के कृषि जगत के लिए भी नई संभावनाओं का द्वार खोलेगी.

इस अवसर पर डाक्टर राजाराम त्रिपाठी ने कहा कि भारत अपने उन्नत खेती के जरीए ही अतीत में सोने की चिड़िया कहलाता था. तमाम समस्याओं के बावजूद भारत के कृषि क्षेत्र में देश के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए अपार संभावनाएं निहित हैं.

कृषि जागरण समूह की विशेष पहल पर मौस्को और सेंट पीटर्सबर्ग में रूस के शीर्ष कृषि विशेषज्ञों और उद्यमियों के साथ होने वाली यह बैठकें  भारत-रूस के बीच सतत कृषि, और्गैनिक  हर्बल निर्यात और नवाचार सहयोग के नए अवसर खोलेगी.

बस्तर के पिछड़े अंचल में जन्मे डा. राजाराम त्रिपाठी आज वैश्विक मंच पर भारतीय कृषि की एक सशक्त आवाज हैं. वे भारत के पहले अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणित और्गैनिक हर्बल फार्म “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म” के संस्थापक हैं. उन्होंने विश्वस्तरीय काली मिर्च प्रजाति एमडीबीपी-16 विकसित कर कृषि उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया है. सफेद मूसली उत्पादन व गुणवत्ता में उन का फार्म वैश्विक स्तर पर नंबर एक पर माना जाता है.

सिर्फ कुछ महीने पहले ही ब्राजील सरकार ने उन्हें कृषि भ्रमण हेतु आमंत्रित किया था और अब रूस का यह सम्मान भारत और बस्तर दोनों के लिए गर्व का क्षण है. स्टीविया की विशेष ‘बिटर फ्री’ किस्म, आयुर्वेदिक उत्पादों में शोध व नवाचार और 7 बार राष्ट्रीय स्तर पर कृषि मंत्रियों द्वारा सम्मानित होने का उन का रिकौर्ड उन्हें देश का सब से विशिष्ट और बहुश्रुत किसान नेता बनाता है.

डा. राजाराम त्रिपाठी की यह रूस यात्रा न केवल भारत रूस कृषि संबंधों को गहरा करेगी, बल्कि छत्तीसगढ़ और बस्तर की धरती के गौरव को भी वैश्विक मानचित्र पर उजागर करेगी.

युवा अपनाएंगे बहुस्तरीय खेती का ‘कोंडागांव मौडल’

बस्तर: देशके अग्रणी ‘कलिंगा विश्वविद्यालय‘ के प्रोफेसरों और छात्रछात्राओं का 50 सदस्यीय दल 15 मार्च को ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर‘‘ कोंडागांव पहुंचा. इस दल  का नेतृत्व डा. आर. जय कुमार, विभागाध्यक्ष विज्ञान संकाय, डा. सुषमा दुबे, एचओडी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, बिदिशा रौय, सहायक प्रोफैसर जैव प्रौद्योगिकी विभाग, इंद्राणी सरकार, सहायक प्रोफैसर, जैव सूचना विज्ञान विभाग, प्रियेश कुमार मिश्रा, प्रयोगशाला सहायक, जैव प्रौद्योगिकी विभाग कर रहे थे.

‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह‘ के निदेशक अनुराग कुमार और जसमती नेताम, शंकर नाग रमेश पंडा, मैंगो नेताम के द्वारा ग्राम चिखलपुटी स्थित आस्ट्रेलिया टीक के पेड़ों पर सौसौ फीट ऊंचाई तक काली मिर्च के फलों से लदी फसल से रूबरू कराया गया और विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों की जैविक खेती की जानकारी दी गई.

प्राध्यापकों और छात्रों के दल ने डा. राजाराम त्रिपाठी द्वारा विकसित किए गए बहुचर्चित ‘‘नैचुरल ग्रीनहाउस‘‘ के सफल व लोकप्रिय मौडल के अंतर्गत अन्य पौधों की तुलना में धरती को 300 गुना ज्यादा नाइट्रोजन देने वाले और महज 7-8 सालों में ही हर पेड़ से लाखों रुपए की बहुमूल्य इमारती लकड़ी भी देने वाले व आस्ट्रेलियन टीक के प्लांटेशन और आस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों पर चढ़ाई गई काली मिर्च की लताओं की लगी हुई फसल का निरीक्षण किया.

उल्लेखनीय है कि नैचुरल ग्रीनहाउस का यह एक एकड़ का मौडल महज 2 लाख रुपए में तैयार हो जाता है, जबकि एक एकड़ के वर्तमान प्रचलित ‘पौलीहाउस‘ की लागत 40 लाख रुपए है. 40 लाख वाला पौलीहाउस का जीवन महज 7 साल होता है. उस के बाद यह कबाड़ के भाव में बिकता है, जबकि एक एकड़ नैचुरल ग्रीनहाउस से 8-10 साल में लगभग ढाई करोड़ रुपए की लकड़ी मिलती है. इसीलिए इस कोंडागांव मौडल देश की खेती का गेम चेंजर माना जा रहा है.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि इस ‘नैचुरल ग्रीनहाउस मौडल‘ को अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट के लिए भी स्वीकार लिया गया है, जो कि बस्तर, छत्तीसगढ़ ही नहीं, पूरे देश के लिए गर्व का विषय है.
यहां आस्ट्रेलियन टीक और काली मिर्च के पेड़ों के बीच खाली बची जगह पर अंतर्वती फसलों के रूप में हलदी, सफेद मूसली, अदरक, इंसुलिन प्लांट की उच्च लाभदायक खेती का भी निरीक्षणपरीक्षण किया गया.

शक्कर से 25 गुना मीठा स्टीविया

हर्बल फार्म पर लगे स्टीविया के पौधों की शक्कर से लगभग 25 गुना ज्यादा मीठी पत्तियों को चख कर छात्र चैंक गए. उन्हें बताया गया कि ये पत्तियां इतनी ज्यादा मीठी होने के बावजूद जीरो कैलोरी होती हैं. इसलिए डायबिटीज के मरीज भी इसे बड़े आराम से शक्कर की जगह उपयोग कर सकते हैं और भरपूर मात्रा में खा सकते हैं. भ्रमण के पश्चात इस दल को ‘बईठका हाल‘  में समूह के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि युवा अपनी तरक्की का रास्ता स्वयं ढूंढें़ एवं ‘‘अप्प दीपो भव‘‘ को चरितार्थ करें.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने आगे बताया कि कैसे छत्तीसगढ़ के ज्यादातर युवा किसानों के परिवार के हैं. वे सरकारी व गैरसरकारी नौकरियों का मोह छोड़ कर उच्च लाभदायक बहुस्तरीय खेती अपना कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं. डा. आर. जय कुमार, विभागाध्यक्ष विज्ञान, डा. सुषमा दुबे, एचओडी, जैव प्रौद्योगिकी ने कहा कि हम सब यहां हो रहे विभिन्न कृषि व शोध कार्यों को देख कर चकित हैं और हम वापस जा कर कुलपति महोदय से चर्चा कर ’मां दंतेश्वरी हर्बल फाम्र्स एवं रिसर्च सैंटर‘ के साथ जुड़ कर जैविक कृषि और हर्बल कृषि व प्रसंस्करण में जैव प्रौद्योगिकी के सकारात्मक उपयोग के लिए काम किया जाएगा.

इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह‘ की ओर से सभी अतिथियों का अंगवस्त्रम से सम्मान किया गया. सभी अतिथियों को ‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह‘ के पेड़ों पर पकी हुई, विश्व की नंबर वन जैविक ‘काली मिर्च‘ भी भेंट की गई.

‘कोंडागांव मौडल’ को अपनाएंगे प्रदेश के किसान

हाल ही में छत्तीसगढ़ के अलगअलग क्षेत्रों के तकरीबन 2 दर्जन अग्रणी किसान नेताओं का एक दल पिछले दिनों ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर’ कोंडागांव पहुंचा. इस दल में तेजराम साहू, मदनलाल साहू, रुद्रसेन सिंहा, श्रवण यादव,उत्तम, मनोज, बृज, हरख राम,छन्नूराम सोनकर, काशीराम, नवली, गेंदूराम पटेल,रमेश सोनकर, राजकुमार बांधे, सुरेश सिंहा, सागर सेन आदि किसान नेता और प्रगतिशील किसान सम्मिलित थे.

‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह’ के निदेशक अनुराग कुमार और जसमती नेताम के द्वारा इस दल को आस्ट्रेलिया टीक के पेड़ों पर सौसौ फुट की ऊंचाई तक काली मिर्च के फलों से लदी फसल से रूबरू कराया गया और विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों की जैविक खेती की जानकारी दी गई. हर्बल फार्म पर लगे स्टीविया के पौधों की शक्कर से लगभग 25 गुना ज्यादा मीठी पत्तियों को चख कर किसान आश्चर्यचकित रह गए. उन्हें बताया गया कि ये पत्तियां इतनी ज्यादा मीठी होने के बावजूद जीरो कैलोरी होती हैं, इसलिए डायबिटीज के मरीज भी इसे बड़े आराम से शक्कर की जगह उपयोग कर सकते हैं और भरपूर मात्रा में खा सकते हैं.

भ्रमण के पश्चात किसान नेताओं के दल को “बईठका हाल” में समूह के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी ने संबोधित किया.

उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि किसान केवल सरकार की जिंदाबाद अथवा मुरदाबाद करने के बजाय अपनी तरक्की का रास्ता खुद ढूंढें.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने जानकारी देते हुए बताया कि कैसे छत्तीसगढ़ के किसान उच्च लाभदायक बहुस्तरीय खेती अपना कर अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं. इस के साथ ही नईनई फसलों की महत्वपूर्ण जानकारी और मार्केटिंग के कारगर टिप्स भी दिए.

Kondagaonडा. राजाराम त्रिपाठी की उपस्थिति में प्रगतिशील किसान नेताओं के दल के सभी किसानों ने अपने खेतों पर भी ‘ काली मिर्च- 16’ आस्ट्रेलियन टीक, औषधीय पौधों की जैविक खेती अपनाने का संकल्प लिया.

इस अवसर पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” की ओर से किसानों के मुद्दे पर सदैव मुखर रहने वाले अग्रणी किसान नेता तेजराम, मदन साहू और दूसरे प्रदेश के अन्य अग्रणी किसान साथियों का अंगवस्त्रम से सम्मानित किया गया. सभी किसान नेताओं और प्रगतिशील किसानों को “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह” के पेड़ों पर पकी हुई विश्व की नंबर वन जैविक “काली मिर्च” भी भेंट की गई.

बैठक के अंत में बैठक में सभी प्रगतिशील किसानों ने एक सुर में कहा कि “मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर” के भ्रमण के लिए इस बार उन्हें पर्याप्त समय नहीं मिल पाया, जिस के कारण बहुत सी चीजें भलीभांति अभी नहीं देख पाए, जिस का उन्हें खेद है. शीघ्र ही अपने अंचल के प्रगतिशील किसानों के एक बड़े दल के साथ कोंडागांव आएंगे और 1-2 दिन रुक कर खेती की जानकारी विस्तार से प्राप्त करेंगे और उच्च लाभदायक बहुस्तरीय खेती की इस पद्धति को पूरे प्रदेश में आगे बढ़ाएंगे.

7 करोड़ रुपए की लागत से 7 लाख पौध लगाने का लक्ष्य

छत्तीसगढ़ : बस्तर में इन दिनों एक खामोश क्रांति करवट ले रही है. प्रायः नक्सली हिंसा के लिए कुख्यात बस्तर इन दिनों ‘मिशन ब्लैक गोल्ड’ और ‘मिशन केसरिया’ के लिए चर्चित है. पहली नजर में इन सुर्खियों को पढ़ने पर ऐसा लग सकता है कि शायद यह किसी सरकारी मिशन, अभियान या योजना से संबंधित होगा, पर हकीकत यह है कि इन मिशन का सरकारी योजनाओं से कोई लेनादेना नहीं है.

दरअसल, यह अनूठी पहल बस्तर के जनजातीय समुदायों के उत्थान के लिए पिछले 3 दशकों से लगातार काम कर रही जैविक किसानों की संस्था “मां दंतेश्वरी हर्बल समूह”, समाजसेवी संस्थान “संपदा” एवं स्थानीय मीडियासंगठनों के संयुक्त तत्वावधान में की गई है.

इस समूह के संस्थापक डा. राजाराम त्रिपाठी ने इस महत्वाकांक्षी अभियान में स्थानीय मीडिया को भी शामिल करते हुए विगत 23 अगस्त को बैठक भी की थी.

उक्त बैठक के एक महीने पूरे होने पर डा. राजाराम त्रिपाठी ने प्रैस वार्त्ता में बताया कि इस बीच संस्था के द्वारा इस एक महीने में 17 गांवों में तकरीबन 500 किसानों की बाड़ी और खेतों में तकरीबन 7 हजार काली मिर्च एवं अनाटो के पौध लगा दिए गए हैं.

कोंडागांव जिले के चयनित गांव

1. चलका, 2. मालगांव, 3. सुआ डोंगरी, 4. सोना बाल, 5. कबोंगा, 6. मालाकोट, 7. बूढ़ा कशा, 8. कुमारपारा, 9. बुना गांव, 10 उमरगांव, 11. दाढिया,12 केंवटी,13. जोबा,14. सोहंगा,15. बंजोड़ा,16. लभा ,17. कनेरा आदि में ये पौध लगवाए गए हैं.

उन्होंने मिशन के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि “मिशन बस्तरिया ब्लैक गोल्ड” के तहत ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर’, कोंडागांव द्वारा पूरी तरह से बस्तर में ही विकसित की गई और देश की अन्य प्रजातियों की तुलना में तिगुना तक ज्यादा उत्पादन देने वाली और बेहतरीन गुणवत्ता के कारण पूरे देश में नंबर वन मानी जा रही काली मिर्च की वैरायटी “मां दंतेश्वरी काली मिर्च- 16 (एमडीबीपी -16)” के पौधे एवं “मिशन केसरिया” के तहत इसी संस्थान द्वारा विकसित केवल 2 सालों में बहुपयोगी फल देने वाले और दूसरी वैरायटी की तुलना में दोगुना उत्पादन देने वाले “अनाटो (सिंदूरी) की वैरायटी “एमडीएबी -16” के पौधे, जिन की लागत सौ रुपए प्रति पौधा है. आसपास के गांवों में चयनित किसानों को निःशुल्क उपलब्ध कराया जा रहा है और उन्हें इसे लगाने की ट्रेनिंग भी दी जा रही है.

Mission Black Goldहमारा लक्ष्य है कि गांवों में “हर पेड़ पर काली मिर्च चढ़ाएं – खेतीबारी की खाली जगहों में अनाटो लगाएं”. एक बार ये पौधे लगा लेंगे, तो 2-3 साल में अतिरिक्त आमदनी होनी शुरू हो जाएगी और कम से कम 50 साल तक आमदनी बढ़ते क्रम में प्राप्त करेंगे और घर बैठे बस्तर के सभी परिवारों को समृद्ध बनाएंगे. इस से बस्तर के हमारे आदिवासी भाइयोंबहनों को और उन की आगे आने वाली पीढ़ियों को भी बिना अपना गांव, घर और जंगलजमीन को छोड़े, घर पर ही बिना किसी अतिरिक्त खर्च के पर्याप्त आमदनी वाला रोजगार मिल जाएगा. इस से पेड़ों का कत्ल भी रुक जाएगा और पर्यावरण की रक्षा भी होगी.

इस अभियान की सब से खास बात यह है कि ये पौध मुफ्त दिए जा रहे हैं. इस को लगाने की ट्रेनिंग भी मुफ्त दी जाती है और इस के उत्पादन की शतप्रतिशत मार्केटिंग सुविधा भी दी जा रही है.

इस के अलावा इच्छुक किसानों को जड़ीबूटियों की खेती की जानकारी, बीज और विपणन भी उपलब्ध कराया जा रहा है.

औषधीय पौधों के साथ ही “काली मिर्च” की खेती कोंडागांव में धीरेधीरे परवान चढ़ रही है. लगभग 3 दशक पूर्व यहां के स्वप्नद्रष्टा किसान वैज्ञानिक डा. राजाराम त्रिपाठी ने जैविक खेती व हर्बल खेती के जो नएनए प्रयोग शुरू किए थे, तभी से उन का सपना था कि छत्तीसगढ़ की जलवायु के लिए उपयुक्त ‘काली मिर्च’ की नई प्रजाति का विकास और उसे छत्तीसगढ़ के किसानों के खेतों पर और बचेखुचे जंगलों में सफल कर के दिखाना.

डाक्टर राजाराम त्रिपाठी की 25 सालों की मेहनत अब धीरेधीरे रंग दिखाने लगी है. आज क्षेत्र के कई छोटेछोटे आदिवासी किसान अपने घरों की बाड़ियों में खड़े पेड़ों पर सफलतापूर्वक काली मिर्च की फसल ले रहे हैं और नियमित अतिरिक्त कमाई करने में सफल हुए हैं.

इस मिशन के बारे में डा. राजाराम त्रिपाठी ने आगे बताया कि इसे क्रमशः उत्तरोत्तर बढ़ते क्रम में लगभग 7 करोड़ रुपए के यह पौध आगामी 7 वर्षों में सभी गांवों में किसानों के यहां निःशुल्क लगवाया जाएगा. अगर सबकुछ सही रहा, तो इन 7 वर्षों में कोंडागांव क्षेत्र कालीमिर्च, मसालों व हर्बल्स का देश का एक बड़ा हब बन कर उभरेगा. इस से पर्यावरण भी सुधरेगा.

कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन के लिए समूह में मिशन लीडर अनुराग कुमार, जसमती नेताम, शंकर नाग, कृष्णा नेताम और बलई चक्रवर्ती का सम्मापत्रकार संगठन के अध्यक्ष इसरार खान और पत्रकार संगठनों के अन्य पदाधिकारी विश्वप्रकाश शर्मा, नीरज उइके, अंजय यादव, मिलन राय, मनोज कुमार, गिरीश जोशी, हरीश देवांगन के करकमलों से किया गया.

इस अवसर पर सभी प्रमुख समाचारपत्रों और इलेक्ट्रानिक मीडिया के पत्रकारों की गौरवशाली उपस्थिति रही.

हैलीकौप्टर वाले देश के पहले किसान डा. राजाराम त्रिपाठी

कोंडागांव : औषधीय पौधों की और्गेनिक खेती में अपनी एक विशेष पहचान देशविदेश में बना चुके इलाके के किसान डा. राजाराम त्रिपाठी ने अब खेतीकिसानी में एक और बड़ा नवाचार करने का निर्णय ले लिया है.

उन्होंने हाल ही में मूलतः कैलिफोर्निया की एक कंपनी से हैलीकौप्टर खरीदी का अनुबंध किया है. हैलीकौप्टर की खरीद, आयात अनुमति, लाइसेंस, रखरखाव आदि के लिए उन्होंने दिल्ली की एक विशेषज्ञ कंपनी की सेवाएं ली है. यह हैलीकौप्टर आने वाले तकरीबन 25 माह में उन्हें उपलब्ध हो जाएगा, जिसे वे केवल सैरसपाटा के लिए उपयोग नहीं करेंगे, बल्कि मुख्य रूप से खेतीकिसानी में इस के महत्वपूर्ण उपयोग होने की बात डा. राजाराम त्रिपाठी ने कही है.

उन्होंने बताया कि औषधीय पौधों में काली मिर्च, हलदी, सफेद मूसली, स्टीविया, इंसुलिन पौधा सहित वे अन्य देशीविदेशी विभिन्न प्रजातियों के पौधों की खेती बस्तर इलाके में पिछले ढाई दशक से करते आ रहे हैं. इस में उन्हें कभी फायदा तो कभी नुकसान भी झेलना पड़ा है, लेकिन मिश्रित खेती करने से फायदे व सफलता दोनों हाथ लगी है.

आसमान से करेंगे खाद व दवा का छिड़काव

डा. राजाराम त्रिपाठी अब काली मिर्च, आस्ट्रेलियन टीक जैसे पौधों की खेती की सुरक्षा के लिए अब ड्रोन की जगह हैलीकौप्टर के माध्यम से खाद व दवा का छिड़काव करने की तैयारी कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन के व आसपास के मित्रों के साथ ही गांव वालों के मिला कर तकरीबन 1,100 एकड़ खेत हैं. काला धान और अन्य ज्यादा लाभ देने वाली फसलों के साथ ही परंपरागत जैविक धान की खेती भी सैकड़ों किसान उन के साथ मिल कर पिछले कुछ सालों से जैविक पद्धति से करते आ रहे हैं, और धीरेधीरे उन से अब अन्य किसान भी जुड़ते चले जा रहे हैं. उन की काली मिर्च 70-80 फुट की ऊंचाई पर लगी हुई है, इतनी ऊंचाई पर जरूरी जैविक दवा का नीचे जमीन से छिड़काव करना मुश्किल है.

उन्होंने बताया कि वह अपने खेतों में हैलीकौप्टर का उपयोग तो करेंगे ही, साथ ही आसपास के अन्य सागसब्जी की खेती व धान के किसानों में भी जागरूकता फैला कर सहकारिता के आधार पर उन की फसलों में भी हैलीकौप्टर के माध्यम से ही जैविक खाद व दवा का छिड़काव करेंगे. इस से लागत कम होने के साथ ही उत्पादन में भी बहुत अच्छी बढ़ोतरी होगी. इस से निश्चित रूप से किसानों की आमदनी बढ़ेगी.

यूरोपीय, अमेरिकी देशों में देखी यह तकनीक

डा. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि वे यूरोपीय देशों, अमेरिका आदि में हैलीकौप्टर से खेतीकिसानी करने का तौरतरीका देखने के साथ ही इसे समझ भी चुके हैं. इसलिए उन्होंने भी अपने खेतों में इस पद्धति को अपनाने की सोच बना ली और उन्होंने कैलिफोर्निया की एक कंपनी रौबिंसन से हैलीकौप्टर बुक करवा लिया है. बुकिंग लाइसेंस और हैलीकौप्टर के रखरखाव के लिए उन्होंने दिल्ली की एक एविएशन कंपनी से अनुबंध भी किया है.

उन्होंने बताया कि हम हमेशा सोचते हैं कि विदेशों में कम क्षेत्रफल में भी हम से ज्यादा उत्पादन आखिर क्यों होता है? इस के पीछे वहां की उन्नत सस्ती तकनीकें हैं, पर हम यहां पारंपरिक तरीके से खेती करते आ रहे हैं. जिस का हमें लाभ उतना नहीं मिल पाता, जितना मिलना चाहिए, क्योंकि हमारे यहां दवा व खाद सही मात्रा में और सही समय पर पौधों को नहीं मिल पाते. यदि यह समय पर मिल जाए, तो इस का फायदा उत्पादन व गुणवत्ता में देखने को मिलता है. आप को यह जान कर हैरानी होगी कि यदि सारे गांव वाले किसान मिलजुल कर अपने खेतों में हैलीकौप्टर से जैविक दवाई, जैविक खाद, बीज आदि का छिड़काव करवाना चाहते हैं, तो इस का खर्च वर्तमान में लगने वाले खर्च का केवल आधा ही होगा. इस के साथ ही पूरे गांव की फसलों की सारी बीमारियां एकसाथ, एकमुश्त ही नियंत्रित हो जाएंगी और इस से उत्पादन में भी 15 से 20 फीसदी तक वृद्धि होगी. कुलमिला कर अंचल के किसानों के लिए भी यह फायदे का सौदा है.

बस्तर के जंगलों में लगने वाली आग को बुझाना भी होगा आसान

डा. राजाराम त्रिपाठी का कहना है कि हर साल बस्तर के जंगलों में लगने वाली आग से हजारों एकड़ के बहुमूल्य जंगल जल जाते हैं. साथ ही, कई अनमोल जैव विविधता भी विलुप्त होती जा रही है. घने जंगलों की आग को बुझाने के लिए वहां तत्काल किसी भी साधन का पहुंचना कठिन होता है, इसलिए आग जल्द ही बड़े क्षेत्र में फैल जाती है. जबकि हैलीकौप्टर के द्वारा त्वरित कार्यवाही कर आग फैलने के पहले ही उस पर सफलतापूर्वक नियंत्रण कर जंगलों को बचाया जा सकता है.

हैलीकौप्टर भी होगा मौडिफाई

किसान डा. राजाराम त्रिपाठी ने बताया कि वे हैलीकौप्टर में कृषि कार्य के उपयोग को ध्यान में रखते हुए अपनी इस सोच के मुताबिक कुछ बदलाव भी करवा रहे हैं, जिस से कि इलाके के किसान भी खेतीकिसानी में इस का भरपूर उपयोग कर सकें.

काली मिर्च उत्पादन में बस्तर ने देश में बनाया नया कीर्तिमान

छत्तीसगढ़ में बस्तर के ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर’, कोंडागांव द्वारा विकसित काली मिर्च को उत्पादन, गुणवत्ता और सभी मापदंडों पर देश की सर्वश्रेष्ठ काली मिर्च के रूप में भारत सरकार के शीर्ष मसाला अनुसंधान संस्थान में दर्ज किया गया है.

उल्लेखनीय है कि केरल और देश के अन्य भागों में काली मिर्च के एक पेड़ से अधिकतम औसत उत्पादन 5 किलोग्राम रहा है, जबकि कोंडागांव की मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16 में यह औसत उत्पादन मात्रा 8-10 किलोग्राम पाई गई है. उत्पादन की मात्रा के साथसाथ गुणवत्ता में भी यह काली मिर्च अन्य काली मिर्च से बेहतर है.

उल्लेखनीय है कि स्पाइस बोर्ड औफ इंडिया, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान ( ICAR- IISR) के वरिष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर, कोंडागांव के लगातार दौरे और प्रत्यक्ष निरीक्षण के बाद, भारत सरकार के ‘स्पाइस बोर्ड औफ इंडिया’ के आधिकारिक प्रकाशन “स्पाइस इंडिया” पत्रिका के नवीनतम अंक में प्रकाशित हुआ है.

Black Pepperयह लेख मुख्य रूप से कोंडागांव के ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर’ द्वारा विकसित काली मिर्च की नई किस्म ‘मां दंतेश्वरी काली मिर्च- 16’ यानी एमडीबीपी-16 पर केंद्रित है.

जानकारी के लिए बता दें कि कृषि क्षेत्र में नवाचारों के लिए अलग पहचान बनाने वाले और 5 बार देश के सर्वश्रेष्ठ किसान का अवार्ड प्राप्त करने वाले बस्तर के किसान डा. राजाराम त्रिपाठी विगत 2 दशकों से गरम और सूखी जलवायु क्षेत्रों के लिए काली मिर्च की प्रजाति विकसित करने में लगे हुए थे, जिन्हें साल 2016 में सफलता मिली. आज इस किसान के द्वारा विकसित की गई काली मिर्च की प्रजाति मां दंतेश्वरी काली मिर्च-16 केवल बस्तर के किसानों में ही नहीं, बल्कि देश के अन्य सभी भागों में भी सफलतापूर्वक उगाई जा रही है. इस काली मिर्च की क्वालिटी के सामने बाकी सभी देशीविदेशी वैरायटी उन्नीस साबित हुई हैं. काली मिर्च के साथ ही हर्बल चाय, सफेद मूसली, स्टीविया, इंसुलिन पौधा, आस्ट्रेलियन टीक लकड़ी, काला नमक धान, हलदी और अनेक हर्बल उत्पादों ने भी देशविदेश में अपनी अलग पहचान बनाई है.

डा. राजाराम त्रिपाठी ने इस सफलता का श्रेय बस्तर की माटी, मां दंतेश्वरी हर्बल समूह के सभी सदस्यों, परिजनों, मीडिया के साथियों और प्रशासन के सभी विभागों को देते हुए इंकृविवि रायपुर के डा. दीपक शर्मा के साथ ही स्पाइस बोर्ड औफ इंडिया के वैज्ञानिक डा. केवी साजी, डा. शिवकुमार एमएस और डा. शैरोन अरविंद को बहुमूल्य मार्गदर्शन के लिए विशेष धन्यवाद दिया है. इन के फार्म की अधिक जानकारी के लिए आप संबंधित सूत्र पर संपर्क कर सकते हैं.

विवेक कुमार,
मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सेंटर, कोंडागांव
www.mdhherbals.com