बस्तर: देशके अग्रणी ‘कलिंगा विश्वविद्यालय‘ के प्रोफेसरों और छात्रछात्राओं का 50 सदस्यीय दल 15 मार्च को ‘मां दंतेश्वरी हर्बल फार्म एवं रिसर्च सैंटर‘‘ कोंडागांव पहुंचा. इस दल  का नेतृत्व डा. आर. जय कुमार, विभागाध्यक्ष विज्ञान संकाय, डा. सुषमा दुबे, एचओडी, जैव प्रौद्योगिकी विभाग, बिदिशा रौय, सहायक प्रोफैसर जैव प्रौद्योगिकी विभाग, इंद्राणी सरकार, सहायक प्रोफैसर, जैव सूचना विज्ञान विभाग, प्रियेश कुमार मिश्रा, प्रयोगशाला सहायक, जैव प्रौद्योगिकी विभाग कर रहे थे.

‘मां दंतेश्वरी हर्बल समूह‘ के निदेशक अनुराग कुमार और जसमती नेताम, शंकर नाग रमेश पंडा, मैंगो नेताम के द्वारा ग्राम चिखलपुटी स्थित आस्ट्रेलिया टीक के पेड़ों पर सौसौ फीट ऊंचाई तक काली मिर्च के फलों से लदी फसल से रूबरू कराया गया और विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधों की जैविक खेती की जानकारी दी गई.

प्राध्यापकों और छात्रों के दल ने डा. राजाराम त्रिपाठी द्वारा विकसित किए गए बहुचर्चित ‘‘नैचुरल ग्रीनहाउस‘‘ के सफल व लोकप्रिय मौडल के अंतर्गत अन्य पौधों की तुलना में धरती को 300 गुना ज्यादा नाइट्रोजन देने वाले और महज 7-8 सालों में ही हर पेड़ से लाखों रुपए की बहुमूल्य इमारती लकड़ी भी देने वाले व आस्ट्रेलियन टीक के प्लांटेशन और आस्ट्रेलियन टीक के पेड़ों पर चढ़ाई गई काली मिर्च की लताओं की लगी हुई फसल का निरीक्षण किया.

उल्लेखनीय है कि नैचुरल ग्रीनहाउस का यह एक एकड़ का मौडल महज 2 लाख रुपए में तैयार हो जाता है, जबकि एक एकड़ के वर्तमान प्रचलित ‘पौलीहाउस‘ की लागत 40 लाख रुपए है. 40 लाख वाला पौलीहाउस का जीवन महज 7 साल होता है. उस के बाद यह कबाड़ के भाव में बिकता है, जबकि एक एकड़ नैचुरल ग्रीनहाउस से 8-10 साल में लगभग ढाई करोड़ रुपए की लकड़ी मिलती है. इसीलिए इस कोंडागांव मौडल देश की खेती का गेम चेंजर माना जा रहा है.

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