Rooftop Farming : ताजा सब्जियों के लिए करें रूफटौप फार्मिंग

Rooftop Farming : अगर आप के पास खाली छत है तो आप भी रूफटौप फार्मिंग (Rooftop Farming) आसानी से कर सकते हैं. इस की शुरुआत के लिए कुछ जरूरी चीजों की आवश्यकता पड़ती है. छत पर खेती के लिए यदि आप प्लांट अनुकूल ग्रो बैग चुनते हैं, तो इस से पौधों की ग्रोथ अच्छी होगी. इस के अलावा बड़े गमले, ड्रम की कटिंग आदि का इस्तेमाल कर सकते हैं.

इतना करने के बाद आप को सब्जी उगाने के लिए अच्छा पौटिंग मिक्स तैयार करना होगा. इस में सब से पहले इस बात का खयाल रखें कि सब्जी उगाने के लिए जो मिक्स बनाने जा रहे हैं वह ज्यादा वजनी न हो, क्योंकि ज्यादा वजन आप की छत को नुकसान पहुंचा सकता है. इस लिए छत पर की जाने वाली खेती में और्गैनिक खाद पदार्थ, जैसे कोकोपीट वर्मी यानी नारियल के छिलके का बुरादा, कंपोस्ट, पर्लाइट, गोबर की खाद और किचन वेस्ट कंपोस्ट का उपयोग कर सकते हैं.

इस मिक्स में सब से अधिक मात्रा कोकोपीट की रखी जाती है, क्योंकि यह हलकी होने के साथ ही ज्यादा दिनों तक नमी बनाए रखने में भी मददगार साबित होती है. कोकोपीट का इस्तेमाल करने से पहले उसे 24 घंटे के लिए पानी में भिगो कर निकाल लें. इस से कोकोपीट से नमक अलग हो जाता है. जब आप सब्जी उगाने के लिए मिक्स तैयार कर लें तो आप इस तैयार मिक्स को गमले या ग्रो बैग में भरें.

इन सावधानियों का रखें खयाल

जब आप गमलों या ग्रो बैग्स की भराई कर लें, तो यह सुनिश्चित कर लें कि इन्हें उसी जगह पर रखें जहां सूरज की रौशनी यानी धूप आसानी से पहुंच रही हो. गमलों या ग्रो बैग का चयन करते समय यह जरूर ध्यान रखें कि ग्रो बैग या गमले के नीचे पानी की निकासी के लिए छेद हो, जिस से की पानी गमलों में एक जगह इकट्ठा न हो.

इस से बचने के लिए ड्रिप सिस्टम ज्यादा कारगर होता है. इस से पानी की बचत भी होती है और पौधे को जितना पानी की जरूरत होती है उतना ही उपयोग में आता है. छत के ऊपर वे सभी पौधे लगाए जा सकते हैं, जिन की ऊंचाई बहुत ज्यादा न हो. छत की गरमी पौधों को नुकसान पहुंचा सकती है. ऐसे में गमले के नीचे ईंट या गमलों के स्टैंड का उपयोग कर सकते हैं.

सब्जियों का चुनाव

आप छत पर ऐसी सभी सब्जियां उगा सकते हैं जिस की ऊंचाई ज्यादा न होती हो. इस में आप रबी, जायद और खरीफ सीजन के अनुसार सब्जियों का चुनाव कर सकते हैं. इन में चप्पन कद्दू, टमाटर, ब्रोकोली, रंगीन गोभी, रंगीन शिमला मिर्च, पालक, गाजर, मूली तमाम सब्जियां शामिल हैं.

इस के अलावा खरीफ सीजन की सब्जियों में भिंडी, लौकी, करेला, मिर्च, लोबिया, टमाटर, तोरई, बैगन, अरबी, ग्वार आदि की खेती की जा सकती है.

रबी सीजन में पौधों की रोपाई या बीज की बोआई का समय सितंबर से दिसंबर तक होता है. इस दौरान बैगन, फूलगोभी, पत्तागोभी, सलाद, मटर, प्याज, लहसुन, आलू, टमाटर, शलजम, मूली, पालक आदि की खेती की जा सकती है.

जायद मौसम की सब्जियों की बोआई फरवरीमार्च में की जाती है. इस मौसम में भिंडी, खीरा, ककड़ी, तरबूज, खरबूजा, लौकी, टिंडा, तोरई, चौलाई आदि सब्जियों की खेती की जाती है.

गमलों में उगाए जाने वाले बीज व पौध अच्छी गुणवत्ता वाले और स्वस्थ होने चाहिए. बेल वाली सब्जियों को रस्सी या लकड़ी से सहारा दें. ग्वारपाठा और तुलसी जैसे गुणकारी पौधों को गमले में अवश्य लगाएं.

जो लोग रूफटौप फार्मिंग करना चाहते हैं वे नया घर बनाते समय घर की छत को मजबूत बनवाएं. वहीं जिस के घर पहले से बने हुए है वे पौधे लगाने के लिए कम वजन वाली वस्तु का इस्तेमाल करें.

कहां से खरीदें बीज या पौध

आप पहले कोशिश करें कि सब्जियों के बीज किसी विश्वसनीय दुकान से ही खरीदें. आप के जिले में कृषि विज्ञान केंद्र या उद्यान महकमा भी कई उन्नत किस्मों की सब्जियों के पौध तैयार कर के देता है, जिन्हें आप सीधे ग्रो बैग या गमलों में रोप सकते हैं. फिर भी कुछ सब्जियां ऐसी होती हैं, जिन्हें नर्सरी में न तैयार कर सीधे बोआई करनी पड़ती है.

अगर वे पास में नहीं मिलती है तो ग्रो बैग और सब्जियों के बीज विश्वसनीय औनलाइन माध्यमों के जरीए भी मिल जाते हैं, वर्मी कंपोस्ट, कोकोपीट हर जगह मिल जाता है.

अपनी अच्छी सेहत को  दें लिफ्ट वर्टिकल गार्डनिंग (Vertical Gardening) के साथ

कहते हैं कि स्वच्छ वातावरण, साफ हवा और खुश मन, ये तीनों ही जरूरी होते हैं एक स्वस्थ शरीर के लिए, लेकिन, आज बड़ेबड़े शहरों में छोटेछोटे फ्लैट्स में रहने का चलन तेजी से बढ़ता नजर आ रहा है. और शायद यही एक वजह है, जिस के चलते आज हम शुद्ध वातावरण और साफ हवा से कहीं दूर होते जा रहे हैं, जो सीधा हमारी सेहत पर असर डाल रहे हैं. ऐसे में वर्टिकल गार्डनिंग का चलन तेजी से देखा जा सकता है.

तो क्या है यह वर्टिकल गार्डनिंग का कौंसेप्ट, बता रहे हैं यहां :

क्या है वर्टिकल गार्डनिंग?

यह एक ऐसी व्यवस्था है, जिस के द्वारा आप फ्लैट्स के अंदर कम जगह में ही अपनी सेहत के लिए जरूरी पौधों और फूलों को दीवार या जमीन पर एक सपोर्ट देते हुए पंक्तिबद्ध तरीके से लगवा सकती हैं.

इन पौधों और फूलों की सहायता से आप अपने घर के अंदर और आसपास के वातावरण में मौजूद कार्बनडाईऔक्साइड जैसे हानिकारक तत्त्वों को दूर कर खुद और अपने परिवार के सदस्यों को स्वच्छ हवा देने के साथसाथ अपने इंटीरियर को भी दे सकती हैं एक नया और स्टाइलिश लुक.

कैसे काम करता है वर्टिकल गार्डनिंग का ढांचा?

आप के फ्लैट्स के अनुसार वर्टिकल गार्डन के लिए मैटल के स्टैंडनुमा ढांचे बाजार में अब हर साइज और शेप में उपलब्ध हैं. इन के अंदर छोटेछोटे गमलों को एक कतार में उन की साइज और शेप के अनुसार उचित दूरी पर स्टैपल कर के रखा जाता है.

इस के बाद पौधों में आवश्यक मिट्टी और खाद इत्यादि मिलाने के बाद उन्हें पानी देने के लिए इस पूरे स्ट्रक्चर में पाइप का एक पैटर्न बनाया जाता है. इस में एक ही साइज के कई छेद होते हैं, जिन के द्वारा सभी पौधों या फूलों को सही और उपयुक्त मात्रा में पानी दिया जाता है.

घर में रहेगा खुशी का माहौल

स्वस्थ रहने के लिए खुश रहना जरूरी होता है. कहा भी गया है कि हरियाली है जहां, खुशहाली है वहां. पेड़पौधों में से निकलने वाली औक्सीजन आप के मूड को अच्छा रखने में काफी कारगर होती है. इस के

चलते सभी प्रकार की चिंताओं और समस्याओं को भूल कर मन अपनेआप ही खुश हो उठता है.

तो, क्यों ना आप भी वर्टिकल गार्डन के द्वारा अपने परिवार के सदस्यों को दें एक स्ट्रैस फ्री और हैल्दी वातावरण.

बोल उठेंगी पुरानी दीवारें

इस के द्वारा आप अपने घर की दीवारों को भी दे सकते हैं एक नया और स्टाइलिश लुक. यों तो अमूमन लोग अपने घर की दीवारों पर नया पेंट करवाते हैं, लेकिन आप अपने घर की पुरानी दीवारों पर वर्टिकल गार्डनिंग के कौंसेप्ट से नई जान डाल सकते हैं.

इस के लिए आप फर्न्स और मौस के पौधों को एक वुडन फ्रेम में लगा सकते हैं. इसे थोड़ा सा स्टाइलिश बनाने के लिए वुडन फ्रेम को डायनिंग या लिविंग रूम की दीवार पर एक पेंटिंग की तरह टांग सकते हैं. इस से आप की पुरानी दीवारों को एक नया और क्रिएटिव लुक मिल जाएगा.

पौधों के चयन का रखें खास खयाल

एक सही और अच्छे वर्टिकल गार्डन के लिए जगह के अनुसार पौधों का चयन बहुत महत्त्वपूर्ण होता है. इन पौधों के चयन में उस जगह के लोकल क्लाइमेट जैसे- न्यूनतम तापमान, सूरज की किरणों की दिशा और अवधि, हवा की रफ्तार और रुख इत्यादि एक अहम भूमिका निभाते हैं.

अपने वर्टिकल गार्डन के लिए पौधों का चयन करते समय निम्न बिंदुओं का खास खयाल रखें :

* एक परफैक्ट वर्टिकल गार्डन के लिए ज्यादातर लताओं वाले, ऊपर की ओर बढ़ने वाले और गूदेदार पौधों का ही चयन किया जाता है.

* चयनित पौधे सूखे, छाया और धूप तीनों ही अवस्था में खिलने वाले हों.

* अच्छी बढ़वार वाले पौधे या फूलों का चयन करें.

* पौधे कम लंबाई वाले हों.

कितनी डैंसिटी होनी चाहिए पौधों की?

ध्यान रखें कि पौधों की डैंसिटी 30 पौधे प्रति स्क्वायर मीटर होनी चाहिए. साथ ही, आप के इस वर्टिकल गार्डन के पौधों और फ्रेम इत्यादि को मिला कर कुल वजन 30 किलोग्राम/मीटर2 होना चाहिए.

घर के अंदर लगाए जाने वाले पौधे

अगर आप अपने घर के अंदर डायनिंग रूम या लिविंग रूम की दीवारों पर वर्टिकल गार्डन बनवाना चाहते हैं, तो आप फिलोडेन्ड्रान और एपीप्रेम्नम या गेस्नेरियाड्स के पौधे जैसे : एकाइनेन्थस, कालमिया और सेंटपौलिया के पौधों के अलावा पेपेरोमिया और बेगानिया या नेफ्रोलेपिस और टेरिस जैसे विभिन्न प्रकार के फर्न्स भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

साथ ही, क्लोरोफाइटम के पौधे घर के वातावरण में मौजूद नुकसानदेह कार्बनमोनोऔक्साइड, फार्माल्डीहाइड और जाइलिन जैसे हानिकारक प्रदूषित तत्त्वों को दूर कर के स्वच्छ हवा के साथसाथ सेहत के लिए जरूरी पोषक तत्त्व भी मुहैया कराते हैं.

लाइट और पानी का रखें खास खयाल

वर्टिकल गार्डन में लगने वाले पौधों और फूलों की अच्छी सेहत के लिए सही मात्रा में सूरज की किरणें और पानी आवश्यक होते हैं, इसीलिए यह सुनिश्चित करें कि उन्हें ऐसी जगह पर लगाएं, जहां सूरज की किरणें सही तरीके से आती हों. साथ ही, एक ही प्रकार के पौधों को एक ही स्थान पर लगाएं, ताकि उन्हें उपयुक्त मात्रा में पानी एकसाथ मिल जाए.

आटोमैटिक सिंचाई का विकल्प है बैस्ट

अपने वर्टिकल गार्डन में लगे पौधों को पानी देने के लिए हार्डवर्क न कर स्मार्टवर्क कर के लगा सकती हैं थोड़ा युनीक स्टाइल का तड़का. जहां एक ओर पौधों को पानी देने के लिए और लोग हाथ से चलाने वाले स्प्रेयर का इस्तेमाल करते हैं, वहीं आप आटोमैटिक आपरेटेड वर्टिकल गार्डनिंग का ढांचा लगवा सकती हैं.

आटोमैटिक ढांचे के अंदर पाइप के एक पैटर्न को पानी की टंकी के साथ जोड़ कर पूरे ढांचे में लगे पौधों और फूलों को एकसाथ बराबर और पर्याप्त मात्रा में पानी पहुंचाने की व्यवस्था की जाती है और वह भी कुछ ही मिनटों में.

इस तरह की व्यवस्था से आप पौधों और फूलों को कम समय में पानी देने के साथसाथ उन की अच्छी सेहत और लंबी आयु सुनिश्चित कर सकते हैं.

दे सकती हैं अपनी कलात्मक सोच को उड़ान

किसी भी वर्टिकल गार्डन के लिए यह जरूरी नहीं है कि आप पौधे या फूल सिर्फ गमलों में ही लगाएं. इस के लिए आप अपने घर में बेकार पड़े हुए पुराने प्लास्टिक के डब्बे, कौफी मग, जार, बोतल इत्यादि में भी पौधों और फूलों को लगा कर एक नया स्टाइलिश लुक दे सकते हैं.

पौधों की सेहत के लिए कुछ जरूरी बातें

* इंडोर प्लांट्स को ज्यादा एयरकंडीशनर वाले कमरे में रखने से बचाएं. ऐसे कमरों में पौधों को ज्यादा लंबे समय तक रखने से उन की नमी सूख जाती है. इस वजह से पौधों को सही तरह से बढ़ने में परेशानी होती है.

* खाद और सही मात्रा में कीटनाशक का इस्तेमाल जरूरी है. इस से पौधों में लगने वाले विभिन्न प्रकार के कीट और कीटाणुओं को नियंत्रण करने में मदद मिलेगी.

* पौधों की अच्छी सेहत के लिए गमलों में मिट्टी, कोकोपीट इत्यादि जैसी जरूरी चीजें डालें. इस से पौधों को उन की अच्छी सेहत के लिए आवश्यक पोषक तत्त्व मिल सकेंगे.

* नियमित रूप से पौधों की लंबाई को नियंत्रित करें. ऐसा करने से पौधों की लंबी उम्र को सुनिश्चित किया जा सकता है.

* पौधों और फूलों की किस्म के अनुसार उचित मिट्टी का चयन जरूरी है .

गृह वाटिका में लगे पौधों को रखे हरा भरा

आज हमारे चारों ओर बड़ेबड़े भवनों का निर्माण होता जा रहा है, तो उन्हीं बिल्डिंगों के आसपास छोटेबड़े लौन, फुलवारी, बालकौनियों, यहां तक कि छतों पर भी कुछ न कुछ उपाय कर के कुछ फूलों, फलों, सब्जियों, सजावटी लताओं के पौधों को भी लगाया जा रहा है.

कहींकहीं जिन के पास बड़े आवास हैं, वे लोग अपने आवास के चारों ओर की चारदीवारी के अंदर बची हुई जगहों को गृह वाटिका में बदल कर दैनिक उपयोग के लिए सब्जियों, फूलों और फलों को उगा रहे हैं.

यह हकीकत है कि हम कितने भी आधुनिक क्यों न हो जाएं, हमारा पौधों के प्रति लगाव या कहें कि आकर्षण कम नहीं हो सकता है. मनुष्य की आवश्यकता और पेड़पौधों के आसपास रहने की आदत ने ही बागबानी की शुरुआत की है.

आजकल छोटे या बड़े कार्यालयों के बरामदे में रखने वाले और कम धूप में उग सकने वाले पौधे आसानी से मिल जाएंगे. मगर जितना ये पौधे हमें देखने में अच्छे लगते हैं, उतनी ही उन की देखरेख करने की भी आवश्यकता होती है. किसी भी गृह वाटिका में पौधों की वृद्धि, उत्पादन व सुंदरता पूरी तरह से वाटिका के प्रबंधन पर निर्भर करती है.

यदि दैनिक आवश्यकतानुसार फूल, फल व सब्जियां प्राप्त करने के लिए गृह वाटिका को बनाया गया है, तो हमें इस का प्रबंधन इस तरह करना चाहिए, जिस से कि कम लागत व कम से कम समय लगा कर अधिकतम उत्पादन को प्राप्त कर सकें. साथ ही, वे सुंदर व स्वच्छ भी बनी रहें. सुनियोजित रूप से गृह वाटिका का प्रबंधन कर के हम उस को हमेशा हराभरा बनाए रख सकते हैं, जिस के लिए हमें निम्नलिखित सुझावों को अपनाने की आवश्यकता है :

मृदा का शुद्धीकरण

सब से पहले जो भी मृदा हम उपयोग के लिए ले रहे हैं, उस का शुद्धीकरण करने की आवश्यकता होती है, अन्यथा मृदा में रहने वाले अनेक प्रकार के हानिकारक कीट या कवक पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं. जैसा कि देखा गया है कि गमलों, क्यारियों और नर्सरी के पौधों में सब से खतरनाक कवकजनित रोग तना सड़ने लगता है, जो पौधों की बढ़वार पूरी तरह से रोक देता है और पौधे सूख कर नष्ट हो जाते हैं.

इस रोग से बचने के लिए कैप्टान या थिरम को 5 ग्राम प्रति लिटर पानी के घोल का प्रयोग कवकनाशी के रूप में किया जा सकता है. यदि दीमक आदि का प्रकोप है, तो 2 से 4 मिलीलिटर क्लोरोपायरीफास को एक लिटर पानी में घोल कर लगभग 5 सैंटीमीटर गहराई तक की मिट्टी को तरबतर कर देने से दीमक नष्ट हो जाते हैं और हमारी पौधशाला कीटों व रोगों से सुरक्षित रहती है.

ऐसे करें बीजों की बोआई

गृह वाटिका में फूलों को सीधे बीज बो कर या पौधों की रोपाई द्वारा लगाया जाता है. हमेशा सीजन के अनुसार उगाने के लिए चयनित बीजों को किसी विश्वसनीय दुकान से ही लेना चाहिए. कुछ सब्जियां जैसे मटर, गाजर, मूली, शलजम, पालक, मेथी, बाकला, आलू, अदरक, हलदी और कुछ फूल जैसे हाली हार्ट, स्वीट पी आदि को निर्धारित समय पर तय दूरी पर बीज बो कर उगाया जाता है.

टमाटर, बैगन, मिर्च, गांठ गोभी, प्याज, फूलगोभी, पत्तागोभी आदि सब्जियों और अधिकांश मौसमी फूलों के बीज को पहले पौधशाला में उगाया जाता है, जिन में से बाद में स्वस्थ पौधों को क्यारियों में रोपा जाता है. इसलिए हो सके, तो उन के बीजों का उपचार भी कर लें.

कुछ पौधे ऐसे भी होते हैं, जो बरसात में खरपतवार की तरह हमें यहांवहां देखने को मिल जाते हैं, जैसे मकोय, भूमिआंवला, दूधीघास, अश्वगंधा, शतावर, तुलसी, दवनामरुआ, नागदोन, शंखपुष्पी आदि. इन की देखभाल के लिए कोई विशेष प्रबंध भी नहीं करना पड़ता. इसी तरह फलदार पेड़ों में भी पहले बीज या कलम से पौध तैयार करते हैं. बाद में उसे रोपण विधि से क्यारियों या वांछित स्थानों पर लगा देते हैं.

पौध प्रतिरोपण एक ऐसा उद्यान कार्य है, जिस में यदि पूरी सावधानी नहीं बरती गई, तो कभीकभी रोपे गए सारे पौधे नष्ट हो जाते हैं. पौध लगाते समय हम सभी को निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए :

* पौध लगाते समय यह जानकारी अवश्य रखनी चाहिए कि पौधे वांछित किस्म के ही हों.

* पौधे स्वस्थ व निरोगी होने चाहिए.

* उखाड़े गए पौधे की जड़ें ढक कर रखनी चाहिए. उखाड़ने के बाद उन की यथाशीघ्र रोपाई कर देनी चाहिए.

* पौधो को निर्धारित दूरी पर ही लगाया जाना चाहिए.

* पौध रोपाई करते समय कुछ पत्तियां तोड़ देनी चाहिए और यदि शाखाएं अधिक हों, तो कुछ शाखाएं भी तोड़ देनी चाहिए.

* रोपण सायंकाल के समय करना उत्तम रहता है. इस से पौधों को रात के ठंडे तापमान में स्थापित होने का समय मिल जाता है.

* लगाते समय पौधे की जड़ों के पास अधिक उर्वरक नहीं देना चाहिए और उर्वरकों को पानी में घोल कर मिट्टी में मिलाया जाना अधिक उपयोगी रहता है.

* रोपण के तुरंत बाद उस की जड़ों के आसपास की मिट्टी को अच्छी तरह से दबा देना चाहिए, ताकि जड़ क्षेत्र में हवा न रहे.

* रोपण के तुरंत बाद सिंचाई अवश्य करनी चाहिए, जिस से पौधों की जड़ें मिट्टी के संपर्क में आ जाएं और वे तुरंत भोजन प्राप्त करना आरंभ कर दें.

* पेड़ों के लिए गड्ढा आवश्यकता से अधिक गहरा नहीं बनाना चाहिए.

* रोपण के समय पौधा सीधा खड़ा रहना चाहिए और उस का पर्याप्त भाग मिट्टी में दबा रहना चाहिए.

गृह वाटिका में लगाए गए पौधों को सहारा देना

लता वाली फसलों जैसे लौकी, तोरई, खीरा, करेला, अंगूर को सहारा देने की आवश्यकता होती है, क्योंकि यदि उन्हें सहारा न दिया जाए, तो वे भूमि पर फैल जाती हैं और उन पर लगने वाली सब्जियां भूमि के संपर्क में आने के कारण पूर्णाकार तक पहुंचने से पहले ही सड़ने लगती हैं, खासकर लौकी, जो लता वाली सब्जियों में काफी लंबी होती है. इस में यह देखा गया है कि यदि पौधों को सुचारु ढंग से सहारा दिया जाए और फलों को लटकने का अवसर मिल जाए, तो वे फल लंबे, चिकने व सुंदर होते हैं. यदि इन पौधों को सहारा नहीं दिया जाता है, तो इन में जो फल लगते हैं, वे आकार में टेढ़ेमेढ़े होते हैं.

इसी तरह कुछ लता वाले पुष्प भी होते हैं, जैसे मनी प्लांट, अपराजिता, रंगून क्रीपर, माधवी लता आदि, जिन को सुचारु रूप से सहारा दिया जाना आवश्यक होता है. थोड़ा सा ही सहारा मिलने पर उन की बढ़वार भी सही होती है और फूलों की गुणवत्ता भी बनी रहती है. ज्यादातर इस तरह के पौधों को बागड़ के पास उगाया जाता है, जिस से कि यह बाद में बागड़ पर चढ़ जाए और अच्छी तरह से फैल जाए. डहेलिया, ग्लेडियोलस, गुलदाउदी आदि में फूलों को सीधा रखने के लिए भी सहारा देना जरूरी होता है.

सहारा देने के लिए लकड़ी व बांस की बल्लियां, तार, डंडे, दीवार आदि प्रयोग किए जा सकते हैं. जहां जैसी सामग्री उपलब्ध हो, उसी के अनुसार प्रयोग किया जा सकता है. फूलों के लिए सुंदर दिखने वाले सहारे इस्तेमाल करने चाहिए. बांस को छील कर चिकनी बनाई हुई रंगरोगन लगी फट्टियां उपयुक्त रहती हैं.

फौर्मल पौधों के लिए सरकंडे की लकडि़यां अच्छी रहती हैं. डहेलिया व ग्लेडियोलस के लिए एक मजबूत लकड़ी पर्याप्त रहती है, जिस से पौधे के निकट जड़ों को बचाते हुए मिट्टी में गाड़ देना चाहिए. गुलदाउदी के पौधों को चारों ओर से कई लकडि़यां लगा कर एक घेरा सा बना दिया जाता है.

गृह वाटिका में लगे पौधों की कटाइछंटाई

गृह वाटिका में कुछ बहुवर्षीय पौधे भी लगाए जाते हैं, जिन्हें समयसमय पर कटाईछंटाई की आवश्यकता होती है. शोभाकारी झाड़ियों, फलदार पेड़ों, फूलों (जैसे आम, नीबू, संतरा, अनार, अमरूद, कटहल, गुड़हल, गुलाब, मोंगरा आदि) और कुछ बहुवर्षीय सब्जियों (जैसे परवल, कुंदरू आदि) में कटाईछंटाई की आवश्यकता पड़ती है.

ज्यादातर पर्णपाती पौधों में कटाईछंटाई दिसंबर से मार्च माह तक की जाती है और सदाबहार पौधों में जूनजुलाई व फरवरीमार्च, दोनों मौसमों में की जाती है. गुलाब में कटाईछंटाई अक्तूबर माह के पहले सप्ताह में की जाती है. रोगग्रस्त, सूखी और अनावश्यक शाखाओं को देखते ही निकाल देना चाहिए. ऐसी शाखाओं को काटने के लिए तेज चाकू या सिकेटियर का प्रयोग किया जाना चाहिए.

गृह वाटिका के पौधों की सुरक्षा

गृह वाटिका की सुरक्षा भी उतनी ही जरूरी है, जितनी कि उसे बनाना. अवांछित पशुपक्षियों के अलावा राहगीरों और छोटे बच्चों से भी गृह वाटिका के पौधों का बचाव करना पड़ता है.

यदि घर के चारों ओर पक्की चारदीवारी नहीं है, तो कांटेदार तार या उपयुक्त पौधों की बाढ़ की रोक लगा देनी चाहिए. बाढ़ कंटीले तारों के अलावा कुछ पेड़पौधों से भी की जाती है, जो कि देखने में सुंदर और फूल वाली भी होती हैं.

छोटी बाड़ के लिए नागदोन, कनेर, करौंदा आदि का प्रयोग किया जा सकता है. नागदोन के पौधे गहरे हरे, हलके हरे रंगों में आते हैं. कुछ पौधे थोड़ा हरापन लिए सफेद पत्ती के होते हैं, जो देखने में भी बहुत आकर्षक लगते हैं. इस का प्रयोग बवासीर, पेट की कृमि (कीड़े) को दूर करने के लिए भी किया जाता है.

इस बाड़ के बाहर की तरफ और बड़े कंटीले पौधे लगाए जा सकते हैं जैसे कि बौगैन्वेलिया. यह विभिन्न रंगों में तो आता ही है, कंटीला भी होता है. इसे लगाने से 3 काम होते हैं, एक तो बगीचा सुंदर लगता है, रोजाना फूल भी मिल जाते हैं और कंटीली बाड़ भी बनी रहती है.

बौगैन्वेलिया कई रंगों वाली पाई जाती है और काफी जगह को घेरती है और घनी भी होती है. यह यदि बेल की तरह चढ़ा दी जाए, तो 2-3 मंजिल तक भी फैल जाती है यदि यह काटछांट कर के रखी जाए, तो बाड़ की तरह भी काम करती है.

इसी तरह फल के मौसम में तोते आदि पक्षियों को भगाने के लिए किसी पेड़ से टिन आदि बांध कर घर के भीतर से ही उसे बीचबीच में हिला कर, ध्वनि उत्पन्न करने की व्यवस्था करनी चाहिए, जिस से इस प्रकार के नुकसान पहुंचाने वाले पक्षियों से बचा जा सके. यदि आवश्यक हो, तो जालीदार नैट का भी उपयोग किया जा सकता है, जिस से पक्षियों के आने की संभावना न के बराबर हो जाती है.

अपने प्रतिदिन के कार्यों में से यदि थोड़ा सा समय निकाल कर हम सभी अपनी गृह वाटिका में दे सकें, उस की उचित देखभाल करें, तो आप को खुशी के साथसाथ एक स्वस्थ वातावरण, रंगबिरंगे फूल, ताजा सब्जियां और मौसमी फल भी प्राप्त किए जा सकते हैं. सुनियोजित रूप से गृह वाटिका का प्रबंधन कर के हम उस को हमेशा हराभरा बनाए रख सकते हैं.

घरआँगन में सब्जियां

अच्छी सेहत के लिए खाने में रोजाना ताजा फलसब्जियां खानी चाहिए, पर तेजी से बढ़ती महंगाई की वजह से फल और सब्जियों के दाम भी आसमान छूने लगे हैं. इस के चलते हमारी खुराक में रोज फलसब्जियों की कमी होती जा रही है. बाजार में मिलने वाली सब्जियों व फलों में खतरनाक कैमिकलों व रंगों के इस्तेमाल की कहानी भी हमें आएदिन सुनने को मिलती है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक, हमें पर्याप्त पोषण के लिए रोजाना 300 ग्राम सब्जियां खानी चाहिए, जबकि अभी हम महज 50 ग्राम सब्जियां ही ले पा रहे हैं. इस से बचने का सब से अच्छा उपाय है कि हम अपनी जरूरतों के मुताबिक कुछ फलसब्जियां खुद उगाएं. इस से न केवल सेहत सुधरेगी, बल्कि हमें बाजार के मुकाबले अच्छी और साफसुथरी फलसब्जियां भी खाने को मिलेंगी. तजरबों से यह बात साबित हो चुकी है कि पौधों के उगाने व उन की देखभाल करने से हमारा तनाव कम होता है और खुशी मिलती है.

बढ़ती हुई आबादी ने खेती की जमीन को काफी कम किया है. शहरों में तेजी से आबादी बढ़ी  है, जिस से लोगों के रहने की जगह में भी कमी होने लगी है. बहुमंजिला इमारतों व शहरी आवासों में फलसब्जियों को उगाने के लिए जरा भी जगह नहीं मिल पा रही है.

अब हमें गमलों, बालकनी, आंगन, बरामदा, लटकने वाली टोकरियों या घरों की छतों पर, जहां कहीं भी खुली धूप और हवा मिल सकती हो और पानी की सहूलियत हो, पौधे उगाने की तकनीक का सहारा लेना चाहिए. अगर आप ने थोड़ी सी भी सावधानी बरती, तो आसानी से कम जगह में पौधे उगा कर किचन गार्डन का आनंद उठा सकते हैं.

कैसी हो जगह : आप अपने घर या आसपास की कोई भी खाली जगह, जो खुली हो, का चुनाव कर सकते हैं. पौधों के लिए सुबह की धूप बहुत जरूरी होती है. साथ ही, उस जगह पर पानी देने और ज्यादा पानी को निकालने की सहूलियत होनी चाहिए. ऐसी जगहों में घर के आंगन, छत, बालकनी, खिड़कियों के किनारे वगैरह शामिल हो सकते हैं.

पौधे लगाने की तैयारी : अगर पौधों को छत पर सीधे लगाना है, तो मिट्टी की परत 25-30 सैंटीमीटर मोटी होनी चाहिए.

छत पर मिट्टी डालने से पहले नीचे पौलीथिन की मोटी तह बना कर चारों ओर ईंटों से दबा दें, ताकि पानी और सीलन से छत महफूज रहे. उपजाऊ मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद व बालू मिला कर अच्छी तरह तह बना दें.

Home Gardenगमलों में पौधे लगाने के लिए : पौधों के आकार व फसल के मुताबिक ही गमलों के आकार का चुनाव किया जाना चाहिए. पपीते जैसे बड़े पौधों के लिए कम से कम 75 सैंटीमीटर ऊंचे और 45 सैंटीमीटर चौड़े ड्रम को इस्तेमाल में लाना चाहिए. टमाटर, मिर्च जैसे पौधों के लिए 30×45 सैंटीमीटर आकार वाले मिट्टी के गमले अच्छे होते हैं.

सीमेंट या प्लास्टिक के गमलों से बचना चाहिए. गमलों के अलावा लकड़ी या स्टील के चौड़े बौक्स, ड्रम, प्लास्टिक के बड़े डब्बे या जूट की छोटी बोरियों में मिट्टी भर कर भी पौधों को लगाया जा सकता है.

मिट्टी डालने से पहले गमले या डब्बों में नीचे की सतह पर छेद बना कर पत्थर के टुकड़ों से ढक देना चाहिए. पौध लगाने से पहले हमें मिट्टी में सड़ी गोबर की खाद व बालू, मिट्टी के बराबर अनुपात में मिला कर भर लेना चाहिए. नीम की खली, पत्ती व जानवरों की खाद या वर्मी कंपोस्ट का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

पौधों का चुनाव : छत पर बगिया में पौधे लगाते समय मौसम, धूप व जगह वगैरह पर खासा ध्यान दिया जाना चाहिए. कम धूप वाली जगह या छायादार जगह पर पत्तीदार व जड़ वाली सब्जियां जैसे पालक, धनिया, पुदीना, मेथी, मूली वगैरह लगाई जा सकती है, जबकि फल देने वाले पौधे जैसे टमाटर, बैगन, मिर्च, शिमला मिर्च, सेम, स्ट्राबेरी, पपीता, केला, रसभरी और नीबू खुले व अच्छी धूप वाली जगह में लगाए जाने चाहिए. छत या गमलों के लिए फसलों की खास किस्मों का चुनाव करना चाहिए.

देखभाल : शुरू में पौधों को एकदूसरे के नजदीक लगाना चाहिए और बाद में घने पौधों में उचित दूरी बनाने के लिए बीच से कमजोर और बीमार पौधों को निकाल देना चाहिए.

बेल या फैलने वाले पौधों जैसे लौकी, तुरई, करेला, सेम वगैरह को सहारा दे कर ऊपर या दीवार पर चढ़ाना चाहिए. टमाटर, बैगन, मिर्च को भी सहारा दे कर ऊपर ले जाना चाहिए और पौधों को नीचे फैलने से रोकना चाहिए. समयसमय पर पौधों में हलका पानी देते रहना चाहिए.

छत पर व गमलों में पौधों का रंग पीला पड़ना एक आम समस्या है. अकसर धूप की कमी और पानी की अधिकता से पौधे पीले पड़ते हैं. अगर गमलों में उग रहे पौधों को पर्याप्त धूप न मिल रही हो, तो उन्हें दिन में खुली धूप में रखें. बाद में उन्हें अंदर करें.

पौधों की खुराक के लिए वर्मी कंपोस्ट, जैविक खाद, गोबर की खाद वगैरह को समयसमय पर पौधों में डालते रहें या फिर उसे मिट्टी में अच्छी तरह मिला दें. अच्छे पोषण के लिए पानी में घुलने वाले एनपीके की उचित मात्रा भी दी जा सकती है.

एक कदम हरित शहर की ओर : शहरियों को लुभा रही छत पर बागबानी

एक ताजा सर्वे में नई दिल्ली को विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा लगातार विश्व स्तर पर सब से प्रदूषित शहरों में शुमार किया गया है. भारतीय वन सर्वे की नई रिपोर्ट से पता चलता है कि दिल्ली का कुल हरित क्षेत्र केवल 23.06 फीसदी है, जो कि साल 1988 की राष्ट्रीय वन नीति के तहत एकतिहाई क्षेत्र की सिफारिश से काफी कम है.

रूफटौप बागबानी पौधों की खेती के लिए खाली छत का उपयोग कर के शहरी पर्यावरण को सुधारने का एक अनूठा अवसर है, जिस से जैव विविधता में वृद्धि, शहरी गरमी का प्रभाव को कम करना, हवा की क्वालिटी में सुधार और साथ ही साथ सतत शहरी जीवन को प्रोत्साहित किया जा सकता है.

कोरोना महामारी के बाद लोगों में सेहत और पर्यावरण को ले कर जागरूकता बढ़ी है. लोग भोजन में बिना कैमिकल, बिना कीटनाशक का प्रयोग किए फलसब्जियों का इस्तेमाल करना चाहते हैं.

छत पर बागबानी के लिए न बहुत ज्यादा मिट्टी और न ही बहुत ज्यादा पानी की जरूरत होती है. छत पर बागबानी में धनिया, पालक, मेथी के साथ टमाटर, लौकी या कोई बेल वाली सब्जी या फिर कोई फल उगाया जा सकता है. सुंदरता बढ़ाने के लिए और परागण के लिए फूलों के पौधे लगाना भी लाभकारी होता है.

मानूसन से प्रभावित और आर्द्र उपोष्ण कटिबंधीय और अर्धशुष्क है, जो विभिन्न प्रकार के पौधों एवं वनस्पतियों के लिए उपयुक्त है.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीएआर, 2016 के अध्ययन से पता चला है कि दिल्ली क्षेत्र में छतों का उपयोग बागबानी के लिए उपयुक्त है, जो हरित शहरीकरण की दिशा में एक बेहतरीन कदम हो सकता है. दिल्ली के विकास को नई दिशा देने के लिए मास्टर प्लान 2041 में रूफटौप बागबानी को बढ़ावा देने के लिए नागरिकों को बढ़ावा देते हुए सलाह देने का प्रावधान भी शामिल हैं.

छत पर बागबानी छाया और वाष्पीकरण के जरीए तापमान में कमी के साथसाथ पर्याप्त पर्यावरणीय फायदा भी है. शारदा विश्वविद्यालय और आईआईआईटी, दिल्ली द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन के अनुसार, छत के बगीचे गरमियों में 5-7 डिगरी सैल्सियस तक छत के तापमान को कम कर सकते हैं, जिस से निवासियों के लिए बिजली के बजट में संभावित बचत हो सकती है.

रूफटौप बागबानी प्रदूषकों और कार्बनडाईऔक्साइड को अवशोषित कर के हवा की क्वालिटी में सुधार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. साथ ही, जलवायु परिवर्तन और भोजन के कार्बन पदार्थ को कम करने में भी मदद करते हैं.

हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि बागबानी से न केवल सामुदायिक जुड़ाव की भावना को बढ़ावा देती है, बल्कि तनाव निवारक यानी स्ट्रेस बस्टर, एकाग्रता में सुधार और सकारात्मक ऊर्जा पैदा कर के निवासियों की भलाई को भी बढ़ावा देती है. जापान जैसे देशों में प्रकृति की सैर एक थैरेपी की तरह प्रयोग की जाती है. छत पर बागबानी एक व्यावहारिक समाधान है, जो प्रदूषण को कम करने में मददगार है.

सामुदायिक जुड़ाव और भागीदारी

छत पर बागबानी ने स्थानीय और और्गैनिक खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के साथ खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने का एक मूल्यवान अवसर दिया है. वर्तमान में दिल्ली अपने सब्जी और फलों की आपूर्ति के लिए पड़ोसी राज्यों पर अधिक निर्भर है.

छत पर बागबानी के जरीए एक शहरी आम आदमी को भी विभिन्न प्रकार की ताजा और स्वास्थ्यपूर्ण खाद्य जैसे सब्जियां, फल और जड़ीबूटियां उगाने का मौका मिलता है. साथ ही, बाहरी खाद्य स्रोतों की जरूरत को कम करने और आपूर्ति को सुनिश्चित करने में मदद करता है.

Terrace Garden
Terrace Garden

लोगों ने की शुरुआत

कोरोना महामारी के बीच विभिन्न औनलाइन मंचों पर बहुत सी सफलता की कहानियां सामने आई हैं, जिन में निवासियों की वे कहानियां भी शामिल थीं, जिन्होंने छत और बालकनी में बागबानी की शुरुआत की थी.

एक उदाहरण है कि नांगलोई के रहने वाले कृष्ण कुमार, जो कि सरकारी सेवा से रिटायर हैं, ने अपनी खाली छत पर बागबानी की और टमाटर, भिंडी और आलू जैसी सब्जियां उगाने लगे. उन्होंने कहा कि मैं ने यूट्यूब ट्यूटोरियल्स के माध्यम से बागबानी की तकनीक सीखी.

शहरी खेती स्वामित्व के रूप में ताजा और्गैनिक सब्जियों का एक स्रोत है और प्राकृतिकता और समुदाय से जुड़ने का एक स्थान हो सकता है.

नजफगढ़ की रहने वाली किरण, जो कि एक गृहिणी हैं, काफी सालों से छत पर बागबानी कर रही हैं. उन्होंने कहा कि अखबार और मीडिया के माध्यम से पता चला कि मार्केट में ज्यादातर फलसब्जियों में जहरीले पदार्थ होते हैं. मुझे यह महसूस हो गया कि मेरे छत पर बिना कीटनाशक के ताजगी वाली सब्जियां उगाने में बहुत सुरक्षित होगा, लेकिन जगह की कमी के कारण मैं केवल उन्हीं सब्जियों को उगा रही हूं, जो कम जगह में जिंदा रह सकती हैं.

मेरा मानना है कि छत पर बागबानी योजना को प्रोत्साहित करना चाहिए. एक आम व्यक्ति, छात्र, गृहिणी, बुजुर्ग सभी इस से जुड़ सकते हैं. स्वयं उपजाई हुई सब्जी या फल खाने से पोषण और स्वास्थ्य के साथ खुशी की भावना आती है और प्रकृति के समीप होने की सुखानुभूति भी होती है.

सरकारी पहल और नीतियां

सरकार अपनी नीतियों से शहरी क्षेत्र में छतों पर हरित जगहों के बनाने और समर्थन को प्रोत्साहित करने में अहम भूमिका निभाने का काम कर रही है. हाल ही में दिल्ली सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के सहयोग से ‘स्मार्ट शहरी खेती’ की शुरुआत की है. लोगों को उन के बालकनी और छतों पर सब्जियां उगाने के लिए प्रोत्साहित करना ही मुख्य उद्देश्य है.

दिल्ली सरकार की योजना है कि 10,000 डीआईवाई (डू इट योरसैल्फ यानी खुद करो) किट्स बांटी जाएंगी, जिन में फसल के बीज, जैव उर्वरक, खाद और बागबानी कैसे की जाती है, के बारे में जानकारी दी जाएगी.

बिहार और उत्तराखंड सरकारों के उद्यानिकी विभाग ने भी छत पर बागबानी योजना की शुरुआत की है. इस योजना के तहत आवेदन करने वाले इच्छुक व्यक्ति को लागत का 50 फीसदी या कम से कम 25,000 रुपए तक सब्सिडी सरकार के माध्यम से दी जाती है.

इस योजना का लाभ लेने के लिए छत पर 300 वर्गफुट का खुला स्थान होना जरूरी है. इस योजना के तहत राज्य सरकारें ट्रेनिंग

और छत पर बागबानी के विकास के लिए तकनीकी जानकारी और उद्यान के लिए तकनीकी और विकास के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है.

मुंबई में शुरुआत

‘बृहन्मुंबई नगरपालिका महामंडल’ यानी बीएमसी जिसे भारत की सब से धनी नगरपालिका के रूप में जाना जाता है, ने हाल ही में एक प्रस्ताव पेश किया है, जिस में मुंबई में सभी नई इमारतों को, जिन का प्लाट आकार 2,000 वर्गमीटर से अधिक है, उन्हें छत या टैरेस बगीचों को अनिवार्य सुविधा के रूप में शामिल करने की जरूरत होगी.

केंद्र सरकार द्वारा भी ‘छत पर बागबानी’ नामक कार्यक्रम दूरदर्शन ‘किसान टीवी चैनल’ पर प्रसारित किया जाता है, जिस में छत पर बागबानी की प्रदर्शनीय तकनीकों और विधियों की चर्चा की जाती है. सरकार को हरित बुनावट और लगातार बना रही प्रथाओं को प्रोत्साहित करने वाली नीतियों को प्राथमिकता देने की जरूरत है, यह अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है.

– डा. दीप्ति राय,  डा. अरुण यादव (मोबियस फाउंडेशन )

आदर्श पोषण वाटिका से स्वच्छ और संतुलित आहार

उस वाटिका को ‘पोषण वाटिका’ या ‘रसोईघर बाग’ या ‘गृहवाटिका’ कहा जाता है जो घर के अगलबगल में या घर के आंगन में ऐसी खुली जगह, जहां पारिवारिक श्रम से परिवार के इस्तेमाल के लिए विभिन्न मौसम में मौसमी फल और विभिन्न प्रकार की सब्जियां उगाई जाती हैं.

पोषण वाटिका का मुख्य मकसद ही रसोईघर का पानी व कूड़ाकरकट को पारिवारिक श्रम से उपयोग कर, घर की फल व सागसब्जियों की दैनिक जरूरतों की पूरा करने या आंशिक रूप से भरपाई करने की कोशिश करना व दैनिक आहार में उपयोग होने वाली सब्जी व फल शुद्ध, ताजा और जैविक उत्पाद रोजाना हासिल करना होता है.

आजकल बाजार में बिकने वाली ज्यादातर चमकदार फल और सागसब्जियों को रासायनिक उर्वरक का प्रयोग कर उगाया जाता है. इन फसल सुरक्षा पर तरहतरह के रसायनों का इस्तेमाल खरपतवार पर नियंत्रण, कीड़े और बीमारी को रोकने के लिए किया जाता है, परंतु इन रासायनिक दवाओं का कुछ अंश फल और सागसब्जी में बाद तक भी बना रहता है.

इस के चलते इन्हें इस्तेमाल करने वालों में बीमारियों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता कम होती जा रही है और आम आदमी तरहतरह की बीमारियों से ग्रसित होता जा रहा है.

इस के अलावा फल और सागसब्जियों के स्वाद में भी काफी अंतर देखने को मिल जाता है, इसलिए हमें अपने घर के आंगन या आसपास की खाली खुली जगह में छोटीछोटी क्यारियां बना कर जैविक खादों का इस्तेमाल कर के रसायनरहित फल और सागसब्जियों का उत्पादन करना चाहिए.

जगह का चुनाव

इस के लिए जगह चुनने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती, क्योंकि ज्यादातर यह जगह घर के पीछे या आसपास ही होती है. घर से मिले होने के कारण थोड़ा कम समय मिलने पर भी काम करने में सुविधा रहती है.

गृहवाटिका के लिए ऐसे स्थान का चुनाव करना चाहिए, जहां पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सके, जैसे नलकूप या कुएं का पानी, स्नान का पानी, रसोईघर का पानी आदि पोषण वाटिका तक पहुंच सके.

जगह खुली हो, जिस में सूरज की रोशनी मिल सके. ऐसी जगह, जो जानवरों से सुरक्षित हो और उस जगह की मिट्टी उपजाऊ हो, ऐसी जगह का चुनाव पोषण वाटिका के लिए करना चाहिए.

पोषण वाटिका का आकार

जहां तक पोषण वाटिका के आकार का संबंध है, वह जमीन की उपलब्धता, परिवार के सदस्यों की तादाद और समय की उपलब्धता पर निर्भर होता है.

लगातार फसल चक्र अपनाने, सघन बागबानी और अंत:फसल खेती को अपनाते हुए एक औसत परिवार, जिस में एक औरत, एक मर्द व 3 बच्चे यानी कुल 5 सदस्य हैं, ऐसे परिवार के लिए औसतन 25×10 वर्गमीटर जमीन काफी है. इसी से ज्यादा पैदावार ले कर पूरे साल अपने परिवार के लिए फल व सब्जियां हासिल की जा सकती हैं.

लेआउट करें तैयार

एक आदर्श पोषण वाटिका के लिए उत्तरी भारत खासकर उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा व दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में उपलब्ध तकरीबन 250 वर्गमीटर क्षेत्र में बहुवर्षीय पौधों को वाटिका के किसी एक तरफ  लगाना चाहिए, जिस से कि इन पौधों की दूसरे पौधों पर छाया न पड़ सके और साथ ही, एकवर्षीय सब्जियों के फसल चक्र व उन के पोषक तत्त्वों की मात्रा में बाधा न डाल सके. पूरे क्षेत्र को 8-10 वर्गमीटर की 15 क्यारियों में बांट लें.

* वाटिका के चारों तरफ बाड़ का इस्तेमाल करना चाहिए, जिस में 3 तरफ  गरमी और बरसात के समय कद्दूवर्गीय पौधों को चढ़ाना चाहिए और बची हुई चौथी तरफ सेम लगानी चाहिए.

* फसल चक्र, सघन फसल पद्धति और अंत:सस्य फसलों के उगाने के सिद्धांत को अपनाना चाहिए.

* 2 क्यारियों के बीच की मेंड़ों पर जड़ों वाली सब्जियों को उगाना चाहिए.

* रास्ते के एक तरफ  टमाटर व दूसरी तरफ चौलाई या दूसरी पत्ती वाली सब्जी उगानी चाहिए.

* वाटिका के 2 कोनों पर खाद के गड्ढे होने चाहिए, जिन में से एक तरफ वर्मी कंपोस्ट यूनिट व दूसरी ओर कंपोस्ट खाद का गड्ढा हो, जिस में घर का कूड़ाकरकट और फसल अवशेष डाल कर खाद तैयार कर सकें.

* इन गड्ढ़ों के ऊपर छाया के लिए सेम आदि की बेल चढ़ा कर छाया बनाए रखें. इस से पोषक तत्त्वों का नुकसान भी कम होगा व गड्ढा भी छिपा रहेगा.

पोषण वाटिका के फायदे

* जैविक उत्पाद (रसायनरहित) होने के कारण फल और सब्जियों में पर्याप्त मात्रा में पौषक तत्व मौजूद रहते हैं.

* बाजार में फल और सब्जियों की कीमत ज्यादा होती है, जिसे न खरीदने से लगाई गई पूंजी में कमी होती है.

* परिवार के लिए ताजा फलसब्जियां मिलती रहती हैं.

* उपलब्ध सब्जियां बाजार के बजाय अच्छे गुणों वाली होती हैं.

* गृहवाटिका लगा कर औरतें परिवार की माली हालत को मजबूत बना सकती हैं.

* पोषण वाटिका से मिलने वाले मौसमी फल व सब्जियों को परिरक्षित कर सालभर तक उपयोग किया जा सकता है.

* यह मनोरंजन व कसरत का भी एक अच्छा साधन है.

* बच्चों के लिए ट्रेनिंग का यह एक अच्छा साधन भी है.

* मनोवैज्ञानिक नजरिए से खुद के द्वारा उगाई गई फलसब्जियां, बाजार के मुकाबले ज्यादा स्वादिष्ठ लगती हैं.

Home Gardenफसल की व्यवस्था

पोषण वाटिका में बोआई करने से पहले योजना बना लेनी चाहिए, ताकि पूरे साल फल व सब्जियां मिलती रहें. इस में निम्न बातों का उल्लेख होना चाहिए :

* क्यारियों की स्थिति.

* उगाई जाने वाली फसल का नाम और प्रजाति.

* बोआई का समय.

* अंत:फसल का नाम और प्रजाति.

* बोनसाई तकनीक का इस्तेमाल.

* इन के अलावा दूसरी सब्जियों को भी जरूरत के मुताबिक उगा सकते हैं.

* मेंड़ों पर मूली, गाजर, शलजम, चुकंदर, बाकला, धनिया, पोदीना, प्याज, हरा साग जैसी सब्जियां लगानी चाहिए.

* बेल वाली सब्जियां जैसे लौकी, तोरई, छप्पनकद्दू, परवल, करेला, सीताफल आदि को बाड़ के रूप में किनारों पर ही लगानी चाहिए.

* वाटिका में फल वाले पौधों जैसे पपीता, अनार, नीबू, करौंदा, केला, अंगूर, अमरूद आदि के पौधों को सघन विधि से इस तरह किनारे की तरफ  लगाएं, जिस से कि सब्जियों पर छाया या पोषक तत्त्वों के लिए होड़ न हो.

* इस फसल चक्र में कुछ यूरोपियन सब्जियां भी रखी गई हैं, जो अधिक पोषणयुक्त और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता रखती हैं.

* पोषण वाटिका को और ज्यादा आकर्षक बनाने के लिए उस में कुछ सजावटी पौधे भी लगाए जा सकते हैं.

पोषण वाटिका में फसल चक्र अपनाने से ज्यादा फलसब्जियां

प्लाट नं. : सब्जियों व फल का नाम

प्लाट नं. 1 : आलू, लोबिया, अगेती फूलगोभी

प्लाट नं. 2 : पछेती फूलगोभी, लोबिया, लोबिया (वर्षा)

प्लाट नं. 3 : पत्तागोभी, ग्वार फ्रैंच बीन

प्लाट नं. 4 : मटर, भिंडी, टिंडा

प्लाट नं. 5 : फूलगोभी, गोठगोभी (मध्यवर्ती) मूली, प्याज

प्लाट नं. 6 : बैगन के साथ पालक, अंत: फसल के रूप में खीरा

प्लाट नं. 7 : गाजर, भिंडी, खीरा

प्लाट नं. 8 : मटर, टमाटर, अरवी

प्लाट नं. 9 : ब्रोकली, चौलाई, मूंगफली

प्लाट नं. 10 : स्प्राउट ब्रसेल्स बैंगन (लंबे वाले

प्लाट नं. 11 : लीक खीरा, प्याज

प्लाट नं. 12 : लहसुन, मिर्च, शिमला मिर्च

प्लाट नं. 13 : चाइनीज कैवेजलैट्रस-प्याज (खरीफ)

प्लाट नं. 14 : अश्वगंधा (सालभर) (शक्तिवर्धक व दर्द निवारक) अंत: फसल लहसुन

प्लाट नं. 15 : पौधशाला के लिए (सालभर)

पोषण वाटिका में पूरे साल सब्जियां

सब्जियां न केवल हमारे पोषण मूल्यों को बढ़ाती हैं, बल्कि शरीर को शक्ति, स्फूर्ति, वृद्धि और अनेक प्रकार के रोगों से बचाने के लिए महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व जैसे कार्बोहाइडे्रट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिजलवण इत्यादि प्रदान करती हैं. भारतीय मैडिकल अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार, प्रतिदिन प्रति व्यक्ति निम्न मात्रा (300 ग्राम) में सब्जी की आवश्यकता पड़ती है:

हरी पत्तेदार सब्जी 115 ग्राम, जड़/कंद वर्गीय सब्जी 115 ग्राम, अन्य सब्जी 70 ग्राम की जरूरत होती है.

उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक परिवार अपनी पोषण वाटिका में सब्जी का उत्पादन कर सकता है, जिस से उसे ताजा, सुरक्षित एवं पोषण से भरपूर सब्जियां मिल सकें. प्राय: एक परिवार को पूरे साल सब्जियां प्राप्त करने के लिए 200 से 250 वर्गमीटर का क्षेत्रफल प्रयाप्त होता है. इस में छोटीछोटी क्यारियां बना कर उस में महंगी एवं परिवार की पसंद की सब्जियों का फसलचक्र अपनाया जा सकता है.

अगर एक जगह पर इतनी भूमि नहीं हो, तो बिखरी हुई वाटिका का निर्माण किया जा सकता है. इस प्रकार पोषण वाटिका में सब्जियों के साथसाथ फलदार वृक्ष जैसे पपीता, नीबू, अनार व अमरूद आदि के अलावा दूसरे फूल वाले पौधे भी लगाए जा सकते हैं. पोषण वाटिका से उत्पादित सब्जियों स्वादिष्ठ, ताजा, कीट व बीमारियों से मुक्त होती है.

किसी एक सब्जी की उपलब्धता का समय बढ़ाने के लिए जल्दी, मध्य व देर से पकने वाली किस्मों को उगाना चाहिए. फलदार वृक्षों जैसे नीबू, अमरूद, केला व अनार को एक तरफ लगाना चाहिए, ताकि क्यारियों की जुताई में बाधा न हो सके. अधिक पानी चाहने वाली सब्जियां (पालक, चोलाई) मुख्य नाली के पास लगानी चाहिए. सब्जियों को हमेशा जगह बदलबदल कर लगाएं, ताकि अधिक उत्पादन के साथसाथ कीट एवं बीमारियों का प्रकोप कम हो सके.

स्थान का चयन

घर का पिछला हिस्सा जहां धूप पर्याप्त मात्रा एवं काफी समय तक रहती हो, उत्तम होता है. इस बात का ध्यान देना चाहिए कि बड़े पेड़ की छाया सब्जियों की पैदावार को प्रभावित न करने पाए. इस के लिए 1 या 2 कंपोस्ट के गड्ढे छाया या कम महत्त्व वाली जगह में बनाने चाहिए. यदि पर्याप्त जगह हो, तो पपीता, नीबू, अंगूर, केला इत्यादि को उत्तर दिशा में लगाया जा सकता है.

आवश्यक  कृषि क्रियाएं
* बीजों/पौधों को हमेशा किसी विश्वसनीय संस्थानों जैसे कृषि विज्ञान केंद्र व अन्य से ही खरीदना चाहिए.
* गोबर की सड़ी हुई अथवा कंपोस्ट खादों का ही ज्यादातर प्रयोग करना चाहिए.
* सिंचाई के लिए रसोईघर या घर के बेकार पानी का उपयोग करना चाहिए.

सब्जी फसल की सुरक्षा
* सब्जी फसल में जैविक कीट व व्याधिनाशियों का उपयोग करें.
* प्रकाश प्रपंच का प्रयोग करें.
* नीमयुक्त कीटनाशक के उपयोग को बढ़ावा दें.
* स्टिकी ट्रैप का उपयोग करें.
कुछ आवश्यक सुझाव
* पोषण वाटिका की कोई भी क्यारी खाली नहीं रखनी चाहिए.
* टमाटर, मटर, सेम, परवल आदि को सहारा दिया जाना चाहिए, ताकि ये फसलें कम से कम जगह घेरें एवं बेल/लत्तेदार सब्जियों जैसे लौकी, तुरई, केला, टिंडा इत्यादि को बाड़ के सहारे उगाना चाहिए.
* जल्दी तैयार होने वाली सब्जियों को देर से तैयार होने वाली सब्जियों के बीच कतारों में लगाते हैं.

पोषण वाटिका से लाभ
* परिवार के सभी सदस्यों के लिए मनोरंजन का एक उत्तम साधन है.
* घर के पास पड़ी खाली भूमि का समुचित उपयोग हो जाता है.
* हर समय ताजा, स्वादिष्ठ व विषरहित सब्जी मिल जाती है.
* पोषण वाटिका में सब्जियों को उगाने पर गृहिणी के बजट में अच्छी बचत हो जाती है.
* घर के फालतू पानी व कूड़ेकरकट का सदुपयोग हो जाता है.
* बच्चों में अच्छी आदतों का विकास होता है और वे श्रमजीवी बनते हैं.
* पोषण वाटिका देख कर आंखों को संतोष एवं आनंद मिलता है.
* खाली समय का सदुपयोग हो
जाता है.

सब्जी फसल और उन्नत प्रजातियां
* हरी मिर्च+सगिया मिर्च- एनपी46ए या पूसा ज्वाला भारत, कैलिफोर्निया वंडर
* प्याज- अर्ली ग्रेनो या वीएल प्याज-3
* प्याज- पूसा रैड
* भिंडी- पूसा सावनी या परभनी क्रांति
* बैगन (लंबा)- पूसा परपल लौंग या पंत सम्राट
* बैगन (गोल)- पूसा क्रांति या पंत ऋतुराज
* फूलगोभी- पूसा क्रांतिकी
* फूलगोभी- पूसा दीपाली
* फूलगोभी- स्नोवाल
* मूली लाल/सफेद- रैफ्ट रैड ह्वाइट, जैपनीज ह्वाइट, पूसा हिमानी, चायनीज पिंक
* आलू- कुफरी अलंकार, सिंदूरी, बहार, चंद्रमुखी
* लोबिया- पूसा फाल्गुनी या पूसा दोफसली
* पत्तागोभी- गोल्डन एंकर, रिया, वरुण, यस ड्रमहैड
* ग्वार- पूसा नवबहार
* फ्रैंचबींस- कंटैंडर या पूसा पार्वती
* गाजर, शलजम- उन्नत प्रबेध
* चुकंदर, गांठगोभी, लेट्यूस- ग्रेट लेकेस
* अरबी- अस्थानीय
* पालक (देशी)- अर्ली स्मूथ लीफ
* पालक (विलायती)- पूसा ज्योति
* चौलाई- कोई भी प्रजाति
* लौकी- पूसा मेघदूत या पूसा मंजरी
* कद्दू- लोकल प्रबेध
* स्पंज ग्राडसेनुआ- पूसा चिकनी
* ग्रिजगार्ड (तोरई)- पूसा नसदार
* खीरा- पौइंसैट, जैपनीज, लौंग ग्रीन
* मटर- अर्केल, पीयसयम-3
* सेम- लोकल प्रबेध
* टमाटर- पूसा-120, पूसा रूबी

प्रत्येक क्यारियों की सब्जियों के लिए फसलचक्र
* पत्तागोभी सहफसल लेट्यूस के साथ ग्वार एवं फ्रास्बीन- नवंबर से मार्च, मार्च से अक्तूबर
* फूलगोभी (पछेती) सहफसल गांठगोभी- सितंबर से फरवरी
* लोबिया (ग्रीष्म ऋतु)- मार्च से अगस्त
* लोबिया (वर्षा ऋतु), फूलगोभी (मध्य मौसमी किस्में)- जुलाई से नवंबर
* मूली- नवंबर से दिसंबर
* प्याज- दिसंबर से जून
* आलू- नवंबर से मार्च
* लोबिया- मार्च से जून
* फूलगोभी (अगेती)- जुलाई से अक्तूबर
* बैगन (लंबा) : फसल पालक के साथ- जुलाई से मार्च
* भिंडी सहफसल चौलाई के साथ- मार्च से जून
* बैगन (गोल) सहफसल पालक के साथ- अगस्त से अप्रैल
* भिंडी सहफसल चौलाई के साथ- मई से जुलाई
* मिर्च+सगिया मिर्च- सितंबर से मार्च
* भिंडी- जून से अगस्त
नोट : बोआई का समय जलवायु विशेष के अनुसार बदल सकता है.

पोषण वाटिका: कुपोषण दूर करने का उपाय

घर में लगी पोषण वाटिका या गृह वाटिका या फिर रसोईघर बाग पौष्टिक आाहार पाने का एक आसान साधन है, जिस में विविध प्रकार के मौसमी फल तथा विविध प्रकार की सब्जियों व फलों को एक सुनियोजित फसलचक्र और प्रबंधन विधि के द्वारा उगाया जाता है.

आमतौर पर पोषण वाटिका घर के आसपास बनाई गई एक ऐसी जगह होती है, जहां पारिवारिक श्रम से विविध प्रकार के मौसमी फल तथा विभिन्न सब्जियां उगाई जाती हैं, जिस से परिवार की वार्षिक पोषण आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके.

पोषण वाटिका का आकार

अलगअलग हालात, जैसे कि जगह, परिवार में सदस्यों की संख्या, रुचि व समय की उपलब्धता पर निर्भर करता है. लगातार फसलचक्र, सघन बागबानी और अंत:फसल खेती को अपनाते हुए एक औसत परिवार, जिस में कुल 5 सदस्य हों, के लिए औसतन 200 वर्गमीटर जमीन काफी है.

पोषण वाटिका के लिए उचित स्थान

* घर के निकट.

* सूरज की रोशनी अच्छी तरह से मिले.

* दोमट मिट्टी सही.

* पर्याप्त सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता.

पोषण वाटिका की बनावट

आदर्श गृह वाटिका के लिए 200 वर्गमीटर क्षेत्र में बहुवर्षीय पौधों को वाटिका के उस तरफ लगाना चाहिए, जिस से उन पौधों की अन्य दूसरे पौधों पर छाया न पड़ सके. इस के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि ये पौधे एकवर्षीय सब्जियों के फसलचक्र और उन के पोषक तत्त्वों की मात्रा में बाधा न डालें.

जमीन की तैयारी व क्यारी बनाना

* फावड़ा या कस्सी से मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा कर 4 से 5 फुट चौड़ी क्यारी बना लें. क्यारी पूरबपश्चिम दिशा में रखें.

* दोनों क्यारियों के बीच 1 फुट की दूरी रखें.

* प्रत्येक क्यारी में गोबर या केचुआं खाद डाल कर मिला लें.

* अतिरिक्त जल निकासी हेतु चारों तरफ से 1 फुट चौड़ी और 1 फुट गहरी नाली बना लें.

सब्जियों का चयन

सब्जियों का चयन करते समय फसलचक्र अपनाना चाहिए. सब्जियों की किस्मों का चुनाव करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वे उन्नत, स्वस्थ्य और प्रतिरोधी हों. किस्में अगर देशी हों तो हमें अगले मौसम में बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी. मौसम के अनुसार सब्जियों को निम्न प्रकार बांटा जा सकता है :

खरीफ : लौकी, तोरई, कद्दू, टिंडा, खीरा, करेला, भिंडी, टमाटर, बैगन, मिर्च, पालक, धनिया आदि.

रबी : गोभी, ब्रोकली, पत्तागोभी, टमाटर, बैगन, मिर्च, पालक, मूली, मेथी, सोया, चौलाई, धनिया, सेम, मटर, राजमा, चुकंदर, गाजर, लहसुन, शलजम, प्याज आदि.

जायद : लौकी, तोरई, कद्दू, खीरा, ककड़ी, करेला, टिंडा, भिंड़ी, टमाटर, बैगन, मिर्च, पालक, धनिया, चौलाई आदि. सब्जियों के साथ आम, अमरूद, सहजन, किन्नू, संतरा, पपीता, करौंदा, अनार, नीबू, आंवला, चीकू, ड्रैगनफ्रूट आदि फलदार पौधे लगाए जा सकते हैं.

भूमि की तैयारी

* जिस स्थान पर पोषण वाटिका लगानी हो, वहां की मृदा में जल व वायु का प्रवाह अच्छा होना चाहिए.

* मृदा जितनी भुरभुरी, कार्बनिक खाद व जीवाश्म तत्त्वों से भरपूर होगी, पैदावार भी उतनी ही अच्छी मिलेगी.

* गमले तैयार करते समय भी कस्सी या खुरपी से मृदा अच्छी तरह भुरभुरी कर ले गोबर की खाद मिला कर गमले तैयार कर लेने चाहिए.

* जिन लोगों के पास घर पर खुला स्थान नहीं है, वे अपनी छत पर सब्जियां उगा सकते हैं.

* आजकल बाजार में अलगअलग आकार के प्लास्टिक बैग, गमले, ट्रे उपलब्ध हैं जो इस काम में प्रयोग किए जा सकते हैं. सीमेंट व प्लास्टिक के गमले, कबाड़ में अनुपयोगी चीजें जैसे बालटी, प्लास्टिक के कट्टे, ट्रे, मटकियां, बोतल आदि का भी उपयोग कर सकते हैं. इन में बराबर मात्रा में मिट्टी व कंपोस्ट का मिश्रण भर कर सब्जियों का रोपण व बिजाई कर सकते हैं.

वाटिका में पौधों की सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण एवं खाद और उर्वरक प्रबंधन

* आमतौर सब्जियों की बोआई 2 तरीकों से की जा सकती है, पौधशाला तैयार कर के (टमाटर, बैगन, मिर्च, प्याज, गोभीवर्गीय सब्जियां, सलाद) व सीधी बोआई से (खीरावर्गीय सब्जियां, मूली, मटर, भिंडी, सेम, पालक, इत्यादि).

* कीट एवं रोग प्रबंध पोषण वाटिका से अस्वस्थ पौधों को तुरंत निकाल कर नष्ट कर दें. फसलचक्र अपनाना लाभदायक होता है. बोआई के लिए प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें. स्वस्थ पौधशाला तैयार करें.

* गार्डन को साफ रखें. खरपतवार निकालते रहें. जब भी पोषण वाटिका या गृह वाटिका में खरपतवार दिखें, तो हाथ से निकाल देना चाहिए. प्लास्टिक पलवार लगाने से भी खरपतवार की रोकथाम होती है और मृदा में नमी बराबर रहती है तथा अतिआवश्यक होने पर पौध संरक्षण रसायनों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों जैसे जीवामृत का ही प्रयोग करें.

* खाद व उर्वरक का अच्छी पौदावार प्राप्त करने में अधिक महत्व है. इस के लिए आवश्यक है कि मृदा में कार्बनिक खाद का प्रयोग हो. यह खाद मृदा की दशा सुधारती है व पौधों को आवश्यक पोषक तत्त्वों की पूर्ति भी करती है. इस के लिए गृहवाटिका के एक कोने में कंपोस्ट खाद का भी निर्माण भी किया जा सकता है.

* खाद में पोषक तत्त्वों की वृद्धि के लिए, संभव हो तो, केंचुओं द्वारा तैयार वर्मीकंपोस्ट इकाई की स्थापना कर वर्मीकंपोस्ट का उपयोग कर सकते हैं.

सब्जियों कर तुड़ाई

तुड़ाई की अवस्था फसल के स्वभाव पर निर्भर करती है. उदाहरण के लिए लौकी, करेला, टिंडा, भिंडी, तोरई आदि को कच्ची अवस्था पर तरबूज, खरबूजा, टमाटर आदि को पकने पर तोड़ा जाता है

पोषण वाटिका के मुख्य लाभ

पोषण वाटिका से परिवार, पड़ोसियों व रिश्तेदारों को तरोताजा हवा, प्रोटीन, खनिज और विटामिन से युक्त फल, फूल व सब्जियां प्राप्त होती हैं. इस के साथ ही परिवार के हर सदस्य द्वारा बगिया में काम करने से शारीरिक व्यायाम भी होता है. इस से परिवार के सदस्य स्वस्थ्य व प्रसन्न रहते हैं.

स्वयं की मेहनत एवं पसीने से उपजी हरीभरी तरोताजा सब्जियों को देख कर सभी का तन मन प्रफुल्लित होगा. इस के अलावा सब्जियां खरीदने के लिए बाजार में जाने का बहुमूल्य समय भी बच जाता है.

वास्तव में स्वयं की देखरेख व मेहनत से पैदा की गई सब्जियों का स्वाद और मजा कुछ और ही होता है. इस प्रकार पोषण वाटिका स्थापित करना परिवार के स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण कदम साबित होगा.