अकसर यह देखा गया है कि पशुपालक अपने नवजात बछड़े व बछिया की सही तरीके से देखभाल नहीं कर पाते हैं, जिस से वे तमाम तरह की बीमारियों के शिकार हो जाते हैं और उन का शरीर कमजोर हो जाता है. इस के चलते पशुपालकों को ज्यादा नुकसान उठाना पड़ता है. अगर पशुपालक नीचे लिखी बातों को ध्यान में रखें तो बछड़े और बछिया की सेहत सुधारने के अलावा उन्हें कई बीमारियों से बचाया जा सकता है:

* बछड़े या बछिया के पैदा होने के तुरंत बाद उन की आंख, नाक व मुंह के अंदर से झिल्लियां उतार दें, ताकि वे सांस ले सकें. अगर सांस लेने में कोई कठिनाई दिखाई दे तो पिछले घुटने को पकड़ कर कुछ देर तक उलटा लटका दें ताकि झिल्लियां अपनेआप बाहर आ जाएं.

* गाय अपने बच्चे को चाट कर उसे साफ व सूखा कर देती है. अगर ऐसा न हो तो नवजात बच्चे को किसी मोटे कपड़े या बोरी से रगड़ कर साफ करें. ऐसा करने से उस के शरीर में खून का बहाव तेज हो जाता है.

* नवजात बछड़े या बछिया की नाल अगर अपनेआप न टूटे तो उसे साफ ब्लेड या कैंची से पेट से एक इंच की दूरी से काट दें और धागे से बांध कर उस पर टिंचर आयोडीन तब तक लगाते रहें जब तक वह पूरी तरह से ठीक न हो जाए.

* नवजात बच्चा अगर खुद न खड़ा हो सके तो उसे सहारा दे कर खड़ा करें और उसे उस की मां के पास छोड़ दें.

* बछड़े या बछिया को जन्म के आधे घंटे से ले कर 2 घंटे के भीतर खीस जरूर पिलाएं क्योंकि यही खीस उसे बीमारियों से जिंदगीभर लड़ने की ताकत देती है. खीस थोड़ीथोड़ी मात्रा में दिन में 5-7 बार उस के शरीर के वजन के 10वें भाग यानी 2-3 लिटर प्रतिदिन की दर से पिलाएं.

* खीस खत्म होने के बाद यानी ब्याने के 4-5 दिन बाद नवजात को शरीर के वजन के 10वें भाग के हिसाब से दूध पिलाएं. तीसरे हफ्ते से थोड़ाथोड़ा दाना और सूखा चारा देना शुरू कर दें. नांद में खनिज मिश्रण की ईंटें चाटने के लिए रखें.

* नवजात को ठंडी हवा व खराब मौसम से बचाएं. उन के रहने की जगह साफसुथरी, हवादार व फर्श पर बिछावन होना चाहिए.

* साफ पानी न मिलने और सफाई की कमी में नवजात पशु के पेट में कीड़े हो जाते हैं. इस वजह से उन्हें दस्त, कमजोरी व शरीर में खुजली हो जाती है, इसलिए जन्म के 10-15 दिन बाद बच्चों को पेट के कीड़े मारने की दवा पिलानी चाहिए.

* नवजात बच्चों को कई तरह की अंदरूनी और बाहरी परजीवी जैसे चिचड़ी या कुटकी, जूं, टिक, माइट वगैरह लग जाते हैं. इस की रोकथाम के लिए इवरमैक्टिन का इंजैक्शन, अल्बेंडाजोल की गोली या सुमिथियान बूटोक्स 0.5 फीसदी घोल बना कर उन के शरीर पर छिड़काव करें.

* नवजात पशुओं में  दस्त, निमोनिया, खुरपका, मुंहपका, टीबी यानी क्षय रोग, लंगड़ी, गलघोंटू, गिल्टी रोग वगैरह संक्रामक बीमारियों की रोकथाम के लिए उन्हें 4-6 महीने की उम्र में रोग अवरोधक टीके मानसून आने से पहले जरूर लगवाएं.

अगर पशुपालक इन बातों पर अमल करेंगे तो बछड़े व बछिया की सही देखभाल कर सकते हैं और उन्हें तमाम बीमारियों से बचा सकते हैं.

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