देश में पशुओं के लिए पौष्टिक चारे की किल्लत दिनोंदिन विकट रूप धारण करती जा रही है. ऐसे में वर्षभर हरे चारे की उपलब्धता भी संभव नहीं हो पाती है. पशुपालकों को वर्ष के अधिकांश महीनों में सूखे चारे के रूप में भूसा, बाजरा व पुआल से बना चारा ही खिलाना पड़ता है. जिस के साथ पशुपालकों को पौष्टिक चारे के रूप में पोषक आहार सरसों की खली, दड़ा, दलिया इत्यादि भी देना पड़ता है, जिस पर 15 से 30 रुपए प्रति किलोग्राम का खर्च आता है.

ऐसे में अगर पशुपालक दुधारू पशुओं का पालन कर रहा है, तो उस के पोषण का विशेष खयाल रखना पडता है. इस के लिए पोषण तत्वों से भरपूर चारे के ऊपर अत्यधिक खर्च करना पडता है. कभीकभी पोषक चारे व आहार देने के बावजूद भी दुधारू पशुओं से अपेक्षित दुग्ध उत्पादन नहीं मिल पाता है, जिस की वजह से पशुपालकों को कभीकभी नुकसान भी उठाना पड़ता है.

इस नजरिए से पोषक तत्वों से भरपूर माना जाने वाला अजोला फर्न न केवल पोषक तत्वों से भरपूर है, बल्कि इस से दुग्ध उत्पादन को बढ़ा कर उत्पादन लागत में कमी लाई जा सकती है. अजोला फर्न खिलाने से गाय के दूध में 15 फीसदी तक की वृद्धि दर्ज की गई है.

वैसे भी देश में हरे चारे का मुख्य स्रोत माने जाने वाले चारागाहों, वन क्षेत्रों व कृषि योग्य भूमि का क्षेत्रफल तेजी से सिमट गया है, जिस की वजह से पशुओं के लिए हरे चारे का संकट भी बढ़ा है. इस की पूर्ति के लिए पशुपालक को दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए चारे दाने पर अतिरिक्त खर्च करना पड़ रहा है.

ऐसी स्थिति में अजोला सस्ता सुपाच्य व पौष्टिक आहार के रूप में एक बेहतर चारा साबित हो रहा है, जिस पर महज 2 रुपए से कम प्रति किलोग्राम की लागत आती है.

मगर इस का व्यवसायिक उत्पादन फायदे का सौदा साबित हो रहा है.

अजोला किसी भी अन्य चारे से ज्यादा पौष्टिक होता है, जिस को खिलाने से दुधारू पशुओं के दूध की गुणवत्ता पहले से बेहतर हो जाती है.

अजोला में पशुओं के पोषण के लिए प्रमुख माने जाने वाले प्रोटीन, एमीनो एसिड, विटामिन ए, विटामिन बी12, बीटा कैरोटीन, विकासवर्धक सहायक तत्व फास्फोरस,पोटैशियम व मैग्नेशियम प्रचुर मात्रा में पाई जाती है. इस में शुष्क वजन के आधार पर 25-35 फीसदी प्रोटीन, 10-15 फीसदी खनिज व 7-10 फीसदी एमीनो एसिड के साथ वायो सक्रिय पदार्थ पाए जाते हैं, जिस की वजह से पशुओं में आयरन व कैल्शियम की आपूर्ति आसानी हो पाती है. इस में कार्बोहाइड्रेड व वसा की मात्रा बहुत कम होती है, जिस की वजह से पशु इसे आसानी से पचा सकते हैं. इसलिए इसे दुधारू पशुओं के साथसाथ मुरगियों, भेड़बकरियों, सूअर व खरगोशों को भी पौष्टिक चारों के रूप में दिया जा सकता है.

दुधारू पशुओं को प्रतिदिन सूखे चारे के साथ अजोला की खुराक दैनिक आहार के रूप में प्रतिदिन डेढ़ से 2 किलोग्राम की मात्रा में दिया जा सकता है. इस में हरे चारे नेपियर घास, लोबिया इत्यादि की अपेक्षा प्रोटीन की मात्रा 20 गुना से ज्यादा पाई गई है.

एक हेक्टेयर खेत से संकर नेपियर घास 250 टन, लोबिया 35 टन, ज्वार 40 टन, रिजिका 80 टन के रूप में वार्षिक का उत्पादन मिलता है, जबकि अजोला का प्रति हेक्टेयर उत्पादन 750 टन वार्षिक है.

अजोला उत्पादन की विधि

अजोला का उत्पादन भी बहुत ही आसान है. इसे किसान अपनी खाली परती जमीन, घरों की छत, धान के खेतों इत्यादि में आसानी से उगा सकते हैं.

व्यावसायिक स्तर पर उगाने के लिए किसी छायादार का स्थान का चयन करना चाहिए. उस के उपरांत 2 मीटर लंबाई व 2 मीटर की चौड़ाई के साथ 30 सैंटीमीटर गहरे गड्ढे बनाने चाहिए. जिस में से पानी रोकने के लिए पराबैगनी किरणरोधी प्लास्टिक सीट से ढकाई की जाती है. धान के खेतों में इसे सीधेतौर पर उगाया जा सकता है.

सीमेंटयुक्त गड्ढे इस के लिए ज्यादा उपयुक्त होते हैं, क्योंकि इस में पानी रिसाव नहीं होता है. अगर 2×2 मीटर का गड्ढा बना कर अजोला का उत्पादन किया जा रहा है, तो प्रति गड्ढा 10-15 किलोग्राम मिट्टी की परत फैला कर उस में 10 लिटर पानी में 2 किलोग्राम गोबर व 30 ग्राम सुपर फास्फेट से बना घोल बेडसीट पर डाला जाता है. इस के उपरांत 10-12 सैंटीमीटर तक पानी भर दिया जाता है.

अजोला बीज के लिए अजोला कल्चर का निर्माण किया जाता है, जो किसी भी प्रतिष्ठित कृषि विश्वविद्यालय के मृदा, सूक्ष्म व जीव विज्ञान विभाग या कृषि संबंधी बड़ी दुकानों से खरीद जा सकता है.

किसान प्रति गड्ढे में आधा किलोग्राम से एक किलोग्राम अजोला कल्चर डाल सकते हैं, जो बहुत तेजी से पनपता है और 10-15 दिनों के भीतर पूरे गड्ढे को भर लेता है. इस गड्ढे से प्रत्येक दिन एक से दो किलोग्राम अजोला निकाल कर पशुओं को पौष्टिक चारे के रूप में खिलाया जा सकता है. गड्ढे से निकाले गए अजोला को पशुओं को खिलाने से पहले साफ पानी से धो लेना चाहिए, जिस से उस में से गोबर की दुर्गंध को दूर किया जा सकें.

अजोला का अच्छा उत्पादन लेने के लिए प्रत्येक हफ्ते प्रत्येक गड्ढे में एक किलोग्राम गोबर के साथ 200 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट डालते रहना चाहिए, जिस से अजोला का उत्पादन अच्छा मिलता रहता है.

अधिक उत्पादन के लिए इन बातों पर दें ध्यान

अजोला की खेती के लिए यह जरूर ध्यान दें कि जहां उस का उत्पादन किया जा रहा हो, वहां का तापमान 20-28 डिगरी सैल्सियस हो, क्योंकि यह तापमान इस की वृद्धि के लिए सब से उपयुक्त माना जाता है.

चूंकि यह तेजी से बढ़ने वाला फर्न है, इसलिए प्रत्येक दिन 1-2 किलोग्राम अजोला की निकासी सुनिश्चित होनी चाहिए. कृषि विज्ञान केंद्र, बंजरिया, जनपद बस्ती में वरिष्ठ पशु विज्ञानी डा. डीके श्रीवास्तव का कहना है कि पशुओं की चारा समस्या से निबटने के लिए अजोला एक बेहतर उपाय साबित हो रहा है. ऐसे में कोई भी किसान इस की खेती के लिए कल्चर या बीज के लिए अपने नजदीकी कृषि विश्वविद्यालयों से संपर्क कर सकता है या केंद्रीय चारा उत्पादन फार्म बेंगलुरु, कर्नाटक के जरीए संपर्क कर खरीदा जा सकता है.

अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें...