आज देश भर में पशुपालन बड़ी मात्रा में किया जाता है. खासकर गांवों की बड़ी आबादी पशुपालन से जुड़ी है. जिन किसानों के पास खेती कि कम जमीन है वे भी चारे की फसलों के बजाय नकदी फसलों की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं. जबकि ज्वार फसल को उगाना भी आसान है और आमदनी का जरीया भी.

हरा चारा खिलाने से पशुओं में भी काम करने की कूवत बढ़ती है, वहीं दूध देने वाले पशुओं के दूध देने की कूवत बढ़ती है, इसलिए उत्तम चारे का उत्पादन जरूरी है, क्योंकि चारा पशुओं को मुनासिब प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिज पदार्थों की भरपाई करते हैं.

हरे चारे का उत्पादन कुल जोत का तकरीबन 4.4 फीसदी जमीन पर ही किया जा रहा है. 60 के दशक में पशुओं की तादाद बढ़ने के बावजूद भी चारा उत्पादन रकबे में कोई खास फर्क नहीं हुआ है.

अच्छी क्वालिटी का हरा चारा हासिल करने के लिए ये तरीके अपनाए

जमीन : ज्वार की खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट और हलकी व औसत दर्जे वाली काली मिट्टी, जिस का पीएच मान 5.5 से 8.5 हो, बढि़या मानी गई है.

यदि मिट्टी ज्यादा अम्लीय या क्षारीय है, तो ऐसी जगहों पर ज्वार की खेती नहीं करनी चाहिए.

खेत और बीज:  पलेवा कर के पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें या हैरो से. उस के बाद 1-2 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से कर के पाटा जरूर लगा देना चाहिए.

एकल कटाई यानी एक कटाई वाली किस्मों के लिए 30-40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर और बहुकटान यानी बहुत सी कटाई वाली प्रजातियों के लिए 25-30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालना चाहिए.

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