Livestock : पशु पालकों और किसानों की एक बड़ी परेशानी छोटीमोटी बीमारियों में मवेशियों (Livestock) के इलाज के लिए पशु अस्पताल भागना है. अभी भी हमारे देश में सिर्फ बड़े गांवों, तहसीलों व मुख्यालयों में ही पशु अस्पताल हैं. छोटे गांवों में पशु अस्पताल खोलना सरकार के लिए आसान नहीं है. वैसे भी ज्यादातर पशु पालकों में जागरूकता की कमी है.
पशुओं की गंभीर और जानलेवा बीमारियों के इलाज के लिए तो पशु पालक अस्पतालों तक पहुंच जाते हैं, लेकिन छोटीमोटी बीमारियों और घावचोट व मोच वगैरह में उन्हें लगता है कि क्यों जरा से इलाज के लिए भागें, जानवर है यों ही ठीक हो जाएगा. लेकिन कई दफा यह सोच पशु पालकों को महंगी पड़ जाती है, जब उन्हें इस आलस और लापरवाही के चलते अच्छाखासा मवेशी गंवाना पड़ता है. बाद में वे पछताते हैं और सोचते हैं कि काश घर पर ही कुछ कर पाते.
पशु पालकों और किसानों के लिए यहां कुछ ऐसी जानकारियां दी जा रही हैं, जिन्हें अमल में ला कर बगैर अस्पताल जाए मवेशी का इलाज किया जा सकता है.
घाव का इलाज
मवेशी दिन भर बाहर रहते हैं, लिहाजा अकसर चोट का शिकार हो कर लंगड़ाते चलते नजर आते हैं. कई बार चोट से बना घाव काफी गहरा होता है, लिहाजा वे लंबे अरसे तक काम नहीं कर पाते. घाव से दुधारू पशुओं का दूध कम हो जाता है. घाव शरीर में कहीं भी हो सकता है, लेकिन आमतौर पर पैरों यानी खुरों में ज्यादा होता है, क्योंकि गांव की जमीनें, खेत और चारागाह में छोटेछोटे कंकड़पत्थरों की भरमार होती है. घाव से खून बहता है, तो पशु की परेशानी और बढ़ जाती है और तुंरत इलाज न मिलने पर संक्रमण का डर बना रहता है.
पशु के शरीर पर घाव दिखते ही उस का इलाज घर पर करना आसान है. रुई के टुकड़े में फिनायल या फिर 1 फीसदी फिटकरी मिला कर रुई को निचोड़ कर घाव पर दबाए रखना चाहिए. फिटकरी और फिनायल दोनों ही एंटीसेप्टिक होते हैं. 15-20 मिनट तक रुई के इस टुकड़े को घाव पर दबाए रखने से न केवल खून का बहना बंद होता है, बल्कि घाव का बढ़ना भी रुक जाता है. जब तक घाव ठीक न हो तब तक रोज यह इलाज करने से घाव वक्त रहते सूख जाता है और मवेशी को राहत मिलती है.
खून बंद हो जाने के बाद 1 हिस्सा फिनाइल में 8 हिस्सा सरसों या अलसी का तेल मिला कर लेप बना लेना चाहिए. इस लेप को घाव पर लगाने से घाव जल्द ठीक हो जाता है.
घाव अगर खुर में हो, तो 1 फीसदी तूतिया (नीला थोथा) के घोल से खुर को धोना चाहिए. बेहतर तो यह होता है कि खुर को आधा घंटे तक इसी घोल में डुबो कर रखा जाए, इस से जल्द और ज्यादा आराम मिलता है.
दुधारू पशुओं के थनों पर कहीं घाव दिखे तो थन को पोटाश से धो कर उस पर बोरिक एसिड पाउडर रोजाना लगाना चाहिए.
पशु अगर आग से जल जाए तो चूने के पानी और अलसी के तेल को बराबर मात्रा में ले कर घाव पर लगाने से पशु को आराम मिलता है और घाव जल्द ठीक होता है.
खुजली का इलाज
मवेशियों (Livestock) में खुजली का होना आम बात है. वे खुजला नहीं सकते इसलिए परेशान रहते हैं. वक्त रहते खुजली का इलाज न किया जाए, तो यह दूसरे मवेशियों में भी फैल सकती है.
मवेशियों (Livestock) को खुजली से नजात दिलाने के लिए सब से पहले खुजली वाली जगह के बाल काट देने चाहिए. इस के बाद खुजली वाली जगह को नहाने के साबुन से धोना चाहिए. फिर 1 भाग कोलतार, 2 भाग सल्फर (गंधक) और 8 भाग अलसी का तेल ले कर तीनों को अच्छी तरह मिलाना चाहिए. इस लेप को खुजली वाली जगह पर दिन में 2 दफा लगाने से खुजली जल्द ठीक हो जाती है.
मोच का इलाज
मवेशी अकसर मोच की चपेट में आ जाते हैं, पर कह नहीं सकते. लिहाजा खुद पशु पालकों को रोज देखते रहना चाहिए कि कोई पशु लंगड़ा कर तो नहीं चल रहा या शरीर का कोई हिस्सा सूजा तो नहीं दिख रहा.
मोच का पता चलने पर मोच वाली जगह की सेंक ठंडे पानी या बर्फ से करनी चाहिए. मोच अगर देर से दिखे या सम?ा आए यानी पुरानी हो तो उसे गरम पानी में नमक मिला कर सेंकना चाहिए. आधा घंटे सिंकाई करने के बाद 400 मिलीलीटर अलसी के तेल में 20 ग्राम कपूर मिला कर उस में 40 मिलीलीटर तारपीन का तेल भी डाल देना चाहिए. इस लेप से हलके से मोच वाली जगह पर मालिश करनी चाहिए और 5-10 मिनट बाद रुई की पट्टी बांध देना चाहिए. इस घोल से मोच जल्द ठीक होती है और मवेशी को राहत भी मिलती है.
फ्रेक्चर का इलाज
हड्डी टूटने यानी फ्रेक्चर होने पर मवेशियों (Livestock) को भी काफी दर्द होता है. फ्रेक्चर होने पर उसे अस्पताल तक ले जाना दिक्कत वाला काम हो जाता है. बैलगाड़ी या ट्रैक्टर में पशु को चढ़ाने में ही किसानों को पसीने आ जाते हैं. हालांकि फ्रेक्चर का सही इलाज अस्पताल में डाक्टर ही कर सकता है, क्योंकि टूटी हड्डी प्लास्टर से ही जुड़ पाती है. लेकिन फ्रेक्चर होने पर फौरी तौर पर फ्रेक्चर वाली जगह को ठीक तरह से जोड़ते हुए बांस की खपच्चियां लगा कर ऊपर से पट्टी बांधना चाहिए. मवेशी को इस से आराम मिलता है. इस के बाद अपनी सहूलियत के मुताबिक उसे अस्पताल ले जा कर प्लास्टर बंधवाना चाहिए.
टूटे सींग का इलाज
अकसर मवेशी (Livestock) या तो अपने आपसी ?ागड़े में या फिर दीवार या किसी दूसरी सख्त जगह में मार कर सींग तुड़वा बैठते हैं. टूटे सींग का इलाज तुरंत न किया जाए, तो मवेशी कराहता रहता है, बेचैन रहता है और काम नहीं करता.
सींग अगर पूरी तरह से टूट गया हो, तो लोहे का दाग दे कर खून का बहना रोकना चाहिए. इस के बाद उस पर डिटोल, बोरिक एसिड या दूसरी कोई कीटाणुनाशक दवा लगानी चाहिए. अगर सींग का बाहरी हिस्सा ही टूटा हो तो टिंचर आयोडीन की पट्टी बना कर बांधने से खून का बहना रुक जाता है. लेकिन अगर सींग का भीतरी हिस्सा भी टूटा हो तो सींग को काट कर एक सा करने के बाद उस पर टिंचर बेंजाइन या टिंचर फेरीनक्लोर लगा कर पट्टी बांधने से सींग जल्द ठीक होता है.
नाक से खून बहना
मवेशियों (Livestock) की नाक से खून कई वजहों से आ सकता है. कई दफा भीतरी चोट इस की जिम्मेदार होती है, तो कई बार जोंक जैसे कीड़े नाक में घुस कर इस की वजह बनते हैं. वजह कुछ भी हो नाक से खून बहता दिखे तो तुरंत 5 फीसदी फिटकरी का घोल पानी या सिरके में बनाना चाहिए. इसे नथुनों में इस तरह डालना चाहिए कि यह घोल गले में न पहुंचे. नाक पर बर्फ या ठंडा पानी लगा कर मवेशी को आराम करने देना चाहिए.
अगर नाक में जोंक या दूसरा कोई कीड़ा चिपका दिखे तो नाक में नमक का घोल डालने से वह बाहर आने की कोशिश करता है. ऐसे में कीड़े को तुरंत चिमटी से पकड़ कर निकाल देना चाहिए.
आंखों के दर्द का इलाज
मवेशी (Livestock) की आंखों में अनाज घुस जाने, छोटे कीड़े लग जाने या फिर चोट लगने से उस की आंखें दर्द करने लगती है. मवेशी की हालत से इस का अंदाजा लग जाता है. मवेशी की आंखों का लाल पड़ना, दर्द का बड़ा लक्षण है. कई बार तेज दर्द में मवेशी की पलकें सूज जाती हैं, आंखों से पानी आने लगता है और कई दफा क्रीम जैसा पानी निकलता दिखता है.
मवेशी को आंखों के दर्द से राहत दिलाने के लिए उस की आंखों को बोरिक एसिड के हलके गरम लोशन से दिन में 3-4 दफे धोना चाहिए और हर बार टैरामाइसिन मलहम आंखों में लगाना चाहिए.
गांव में बनाएं क्लीनिक
मवेशियों (Livestock) के इलाज की तमाम चीजें हर जगह सहूलियत से मिल जाती हैं, लेकिन 4-6 किसान चाहें तो मिल कर गांव में खुद का क्लीनिक बना सकते हैं. चंदा इकट्ठा कर के बाजार से या फिर नजदीकी पशु चिकित्सालय या दवाखाने से ये आइटम ले कर किसी एक किसान के घर पर रखे जा सकते हैं, जिस की खबर सभी को दी जा सकती है ताकि जरूरतमंद किसान और मवेशी पालक अपने मवेशियों का इलाज करा सकें.
खेतीकिसानी महकमे को भी चाहिए कि वह अपने मुलाजिमों को मवेशियों (Livestock) की इन छोटीमोटी बीमारियों और परेशानियों के इलाज की ट्रेनिंग दे. जागरूक किसानों को भी इस में शामिल किया जाना चाहिए, जिस से वे वक्तबेवक्त किसी के मुहताज न रहें.