चीकू के पौधे गरम, उष्णकटिबंधीय जलवायु और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी पसंद करते हैं. इन्हें पनपने के लिए भरपूर धूप और नियमित पानी की भी जरूरत होती है. बीज से रोपण के अलावा चीकू के पौधों को सौफ्टवुड कटिंग या एयर लेयरिंग द्वारा भी लगाया जा सकता है या फिर आप इसे नर्सरी से पौधा खरीद कर भी लगा सकते हैं.

चीकू का सदाबहार पेड़ बहुत सुंदर दिखाई पड़ता है. इस का तना चिकना होता है और उस में चारों ओर तकरीबन समान अंतर से शाखाएं निकलती हैं, जो भूमि के समानांतर चारों ओर फैल जाती हैं. प्रत्येक शाखा में अनेक छोटेछोटे प्ररोह होते हैं, जिन पर फल लगते हैं. ये फल पैदा करने वाले प्ररोह प्राकृतिक रूप से ही उचित अंतर पर पैदा होते हैं और उन के रूप एवं आकार में इतनी सुडौलता होती है कि उन को काटछांट की जरूरत नहीं होती.

पौधा तैयार करने का सब से उपयुक्त समय मार्चअप्रैल माह का है. बिजाई मुख्यतः फरवरी से मार्च माह और अगस्त से अक्तूबर माह में की जाती है. इसे मिट्टी की कई किस्मों में उगाया जा सकता है, लेकिन इस के लिए अच्छी जल निकासी वाली गहरी जलोढ़, रेतली दोमट और काली मिट्टी बढ़िया रहती है. चीकू की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान 6-8 उपयुक्त होता है. चिकनी मिट्टी और कैल्शियम की उच्च मात्रा वाली मिट्टी में इस की खेती न करें. इसे लगाने के लिए ऐसी जगह चुनें, जहां भरपूर धूप हो, प्रतिदिन कम से कम 6 से 8 घंटे धूप पौधे के लिए जरूरी है.

चीकू बीज को लगभग एक इंच गहरी मिट्टी में डालें और पानी दें. एक बार जब पेड़ अंकुरित हो जाता है, तो चीकू के पेड़ को फल लगने में 5 से 8 साल का समय लगता है. वानस्पतिक विधि द्वारा तैयार चीकू के पौधों में 2 सालों के बाद फूल एवं फल आना शुरू हो जाता है. इस में फल साल में 2 बार आता है, पहला फरवरी से जून माह तक और दूसरा सितंबर से अक्तूबर माह तक. फूल लगने से ले कर फल पक कर तैयार होने में तकरीबन 4 माह लग जाते हैं.

चीकू में फल गिरने की भी एक गंभीर समस्या है. फल गिरने से रोकने के लिए पुष्पन के समय फूलों पर जिबरेलिक अम्ल के 50 से 100 पीपीएम अथवा फल लगने के तुरंत बाद प्लैनोफिक्स 4 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के घोल का छिड़काव करने से फलन में वृद्धि एवं फल गिरने में कमी आती है.

चीकू का पेड़ 30 मीटर यानी तकरीबन 100 फीट की ऊंचाई तक बढ़ सकता है. चीकू का पेड़ धीमी गति से बढ़ता है, लेकिन एक बार जब यह फल देना शुरू कर देता है, तो यह कई सालों तक फल देना जारी रखता है. चीकू पर फल इस बात पर निर्भर करता है कि पौधों का प्रचारप्रसार कैसे किया जाता है.

चीकू के पेड़ पर खाद हर साल जरूरत के मुताबिक डालते रहना चाहिए, जिस से उन की बढ़वार अच्छी हो और उन में फलन अच्छी रहे. रोपाई के एक साल बाद से प्रति पेड़ 4-5 टोकरी गोबर की खाद, 2-3 किलोग्राम अरंडी या करंज की खली प्रति पौधा हर साल डालते रहना चाहिण्. खाद देने का उचित समय जूनजुलाई माह है. खाद को पेड़ के फैलाव की परिधि के नीचे 50-60 सैंटीमीटर चैड़ी व 15 सैंटीमीटर गहरी नाली बना कर डालने से अधिक फायदा होता है.

चीकू के पौधे को शुरुआत में 2-3 साल तक विशेष रखरखाव की जरूरत होती है. उस के बाद सालों तक इस की फसल मिलती रहती है. सर्दी एवं ग्रीष्म ऋतु में उचित सिंचाई एवं पाले से बचाव के लिए उचित प्रबंध करना चाहिए. छोटे पौधों को पाले से बचाने के लिए पुआल या घास के छप्पर से इस प्रकार ढक दिया जाता है कि वे 3 तरफ से ढके रहते हैं और दक्षिणपूर्व दिशा में धूप एवं रोशनी के लिए खुला रहता है.

पौधों की रोपाई करते समय मूलवृंत पर निकली हुई टहनियों को काट कर साफ कर देना चाहिए. पेड़ का क्षत्रक भूमि से एक मीटर ऊंचाई पर बनने देना चाहिए. जब पेड़ बड़ा होता जाता है, तब उस की निचली शाखाएं झुकती चली जाती हैं और अंत में भूमि को छूने लगती हैं व पेड़ की ऊपर की शाखाओं से ढक जाती हैं. इन शाखाओं में फल लगने भी बंद हो जाते हैं. इस अवस्था में इन शाखाओं को छांट कर निकाल देना चाहिए.

चीकू के पौधों पर रोग एवं कीटों का हमला कम होता है, लेकिन कभीकभी उपेक्षित बागों में पर्ण दाग रोग और कली बेधक, तना बेधक, पत्ती लपेटक एवं मिली बग आदि कीटों का प्रभाव देखा जाता है. इस के नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लिटर और मोनोक्रोटोफास 1.5 मिलीलिटर प्रति लिटर के घोल का छिड़काव करना चाहिए.

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