शतावर का पौधा 3-5 फुट ऊंचा होता है और यह लता के समान बढ़ता है. इस की शाखाएं पतली होती हैं. पत्तियां बारीक सूई के समान होती हैं, जो 1.0-2.5 सैंटीमीटर तक लंबी होती हैं. पुराने जमाने में गांव वाले इसे ‘नाहरकांटा’ नाम से पुकारते थे, क्योंकि इस की बेल की शाखाओं के हर पोर पर शेर के पंजे में मुडे़ हुए नाखून की तरह का कांटा रहता है.

शतावर लिलिएसी कुल का बहुवर्षीय पौधा है. इस का वानस्पतिक नाम एस्पेरेगस रैसीमोसस है. यह पौधा भारत के उष्ण व समशीतोष्ण राज्यों में 1200-1500 मीटर की ऊंचाई वाले इलाकों में पाया जाता है.

यह पौधा मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ राज्यों में साल के मिश्रित वनों में पाया जाता है. बाजार की बढ़ती मांग की वजह से मध्य प्रदेश व उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में खासकर कुमाऊं इलाकों में इस की खेती बड़े पैमाने पर की जा रही है.

Shatawarऔषधीय उपयोग : शतावर की जड़े मीठी और रस से भरी होती हैं. यह शीत वीर्य यानी ठंडक प्रदान करने वाली है. इस के अलावा कामोद्दीपक यानी सैक्स पावर बढ़ाने वाली होने के साथसाथ मेधाकारक यानी दिमाग को तेज करने वाली, जठराग्निवर्धक, पौष्टिकदायक यानी जल्दी पचने वाली है. अग्निदीपक, रुधिर विकार, गुल्म सूजन, स्निग्ध, आंखों के लिए फायदा पहुंचाने वाली, शुक्राणुवर्धक यानी शुक्राणु बढ़ाने वाली, दूध बढ़ाने वाली, बलकारक यानी मजबूती लाने वाली और अतिसार, वात, पित्तरक्त और शोध दूर करने वाली होती है.

सक्रिय घटक : इस की जड़ों में 1 व 4 शतावरिन कैमिकल पाया जाता है. शतावरिन 1 सार्सपोजिनिन का ग्लूकोसाइड होता है. इस के अलावा कंदीय जड़ों में म्यूसिलेज और काफी मात्रा में शर्करा पाई जाती है.

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