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Baby Corn Farming : भुट्टे व आटे वाले मक्के की खेती तो पुराने जमाने से हो रही है, मगर बेबीकार्न नए जमाने की लोकप्रिय फसल है. किसी बेबी डॉल जैसा असर रखने वाली बेबीकार्न की फसल वैज्ञानिक खेती (Baby Corn Farming) के जरीए किसानों की जिंदगी बदल सकती है.

देश-विदेश में है मांग, मिले रोजगार

अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेबीकार्न (Baby Corn) की बहुत मांग है, लिहाजा इसे तथा इससे बने उत्पादों का निर्यात करके विदेशी मुद्रा भी हासिल की जा सकती है. सही जलवायु मिलने पर 1 साल में बेबीकार्न की 2 से 4 फसलें ली जा सकती हैं. इसकी खेती से नकदीकरण तथा व्यवसायीकरण को बढ़ावा मिलता है, साथ ही इसके उत्पादन, विपणन, प्रसंस्करण और निर्यात की प्रक्रिया से रोजगार के अवसर मिलते हैं.

कैसे करें बेबीकार्न की खेती

भारत में इसकी काफी संभावनाएं हैं. भारत इसका बड़ा उत्पादक व निर्यातक देश बन सकता है. बेबीकार्न (Baby Corn)  को उगाने की विधि वैसे तो मक्के से मिलती-जुलती है, पर प्रति इकाई पौध संख्या, खाद प्रबंध, तोड़ाई का समय व तरीका और प्रजातियां मक्के से अलग हैं.

किस्मों का चुनाव

बेबीकार्न (Baby Corn) की अधिक पैदावार के लिए वीएल 42, वीएल 76, एमईएस 114, पूसा संकर 1, पूसा संकर 2, वीएल बेबीकार्न 1 वगैरह खास किस्में हैं. एचएम 4 व प्रकाश संकर किस्में उच्च क्वालिटी व अच्छी उपज के लिए लोकप्रिय हैं.

कैसे करें खेत तैयार

वैसे तो इसकी खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन बलुई दोमट से दोमट मिट्टी जिस में जल निकास का सही इंतजाम हो तथा कार्बनिक पदार्थ पर्याप्त मात्रा में हों, अच्छी रहती है. बेबीकार्न (Baby Corn) की अच्छी बढ़वार के लिए फसल को बोने से पहले, खेत की 2-3 जुताई करके अच्छी तरह तैयार करना चाहिए तथा पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए. खेत की तैयारी के समय, खेत में पर्याप्त नमी की मात्रा होनी चाहिए. यदि खेत में नमी की कमी हो तो बोआई से पहले 1 बार सिंचाई करना ठीक रहता है.

कहां, कब, कैसे करें बोआई

दक्षिण भारत में बेबीकार्न की बोआई पूरे साल की जा सकती है, जबकि उत्तरी भारत में इसे फरवरी से नवंबर के बीच बोया जा सकता है. सिंचाई व अन्य उत्पादक कारकों की सही मौजूदगी होने पर, बेबीकार्न की 1 साल में 2 या 4 फसलें ली जा सकती हैं.

बेबीकार्न (Baby Corn) की बोआई समतल खेत में मेंड़ बनाकर की जा सकती है. बारिश के मौसम में जल भराव से बचने के लिए बोआई मेंड़ों पर ही करनी चाहिए.

सर्दियों में बोआई नालियों के अंदर करने पर सिंचाई के जल तथा पोषक तत्त्वों का फसल द्वारा अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जा सकता है.

यदि समतल भूमि में बोआई की गई है, तो बोआई के करीब 3 हफ्ते बाद पौधों पर मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए जिस से तेज हवा व आंधी में पौधे गिर न सकें.

खाद व उर्वरक प्रबंधन

बेबीकार्न (Baby Corn) की अधिक उपज लेने के लिए खेत में गोबर की अच्छी तरह सड़ी-गली खाद डालनी चाहिए. गोबर की खाद को लगभग 8-10 टन प्रति हेक्टेयर की दर से बोआई से लगभग 12-15 दिनों पहले खेत की तैयारी के समय डाल देना ठीक रहता है. इसके साथ-साथ मिट्टी की जांच के आधार पर 150-180 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटैशियम प्रति हेक्टेयर की दर से डालनी चाहिए. मिट्टी में जिंक की पूर्ति के लिए 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट डालना न भूलें.

नाइट्रोजन की आधी मात्रा और पोटेशियम, फास्फोरस व जिंक सल्फेट की पूरी-पूरी मात्राएं बोआई से पहले अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला दें.

नाइट्रोजन की बची मात्रा को 2 भागों में बांटकर पहली बोआई से 20-22 दिनों बाद 1 भाग डालें. दूसरा भाग नर मंजरी निकलने से पहले खड़ी फसल में डालें. नाइट्रोजन की यह मात्रा देने के बाद इसे मिट्टी में मिला दें और साथ ही साथ पौधों को सहारा देने के लिए मिट्टी भी चढ़ाएं. इस प्रकार पौधे नाइट्रोजन का पूरा व सही इस्तेमाल कर सकते हैं.

खरपतवार नियंत्रण जरूरी

बेबीकार्न की फसल में खरपतवार नियंत्रण का ध्यान शुरू से ही रखें. खरपतवारों के निकलने से पहले एट्राजीन का 1.0-1.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 500-600 लीटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. यह चौड़े पत्तीदार खरपतवारों तथा अधिकतर घासों को रोकने का एक प्रभावी तरीका है.

सिंचाई प्रबंधन

बेबीकार्न (Baby Corn) की फसल अगर बरसात के मौसम में लगाई है, तो बारिश न होने की स्थिति में 2-3 सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है. बसंत व शरद ऋतु में लगाई गई बेबीकार्न की फसल को मौसम के अनुसार अधिक सिंचाइयों की जरूरत पड़ती है.

पाले से बचाव

सर्दियों के दौरान विशेषरूप में मध्य दिसंबर से मध्य फरवरी के बीच में फसल को पाले से बचाने के लिए खेत में पर्याप्त नमी बनाकर रखनी चाहिए. बारिश ऋतु में अधिक बारिश होने पर खेत से जल निकास का भी ध्यान रखें. विशेषरूप से शुरू की अवस्था में जल भराव के प्रति सजग रहना जरूरी है.

नर मंजरी निकालना

बेबीकार्न (Baby Corn) की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए, नर मंजरी निकालना एक जरूरी काम है. पौधों में नर मंजरी निकलते ही तुरंत उसे हाथ द्वारा खींच कर निकाल देना चाहिए तथा उन को पशुओं को खिलाने के काम में लाना चाहिए.

कैसे करें फसल प्रबंधन

बसंत व सर्दियों में उगाई गई फसलों में बारिश के मौसम के मुकाबले न के बराबर ही बीमारियां आती हैं. बारिश के मौसम में लीफ ब्लाइट नामक बीमारी का प्रकोप दिखाई दे तो डाइथेन एम 45 नामक दवा की 2.5 किलोग्राम मात्रा को 500 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करना चाहिए.

बेबीकार्न (Baby Corn) किसी भी मौसम में उगाने पर पाए जाने वाले कीड़ों में तनाभेदक (काइलोपारटिलस), गुलाबी तनाभेदक (सीसेमिया इफरेस) तथा सोरधम मक्खी (एथेरिगोना स्पेसिज) खास कीट हैं. बीज जमने के 10 और 20 दिनों बाद कार्बोरिल या इंडोसल्फान का छिड़काव तनाभेदक की रोकथाम के लिए जरूरी है.

कब करें भुट्टों की तोड़ाई

भुट्टों की तोड़ाई बाल निकलने (सिल्क इमरजेंस) के बाद 1 से 3 दिनों के अंदर कर लेनी चाहिए. तोड़ाई सुबह या शाम के वक्त करें तथा भुट्टे तोड़ते समय ऊपर की पत्तियां न हटाएं. पत्तियां हटाने से भुट्टे जल्दी खराब होते हैं. खरीफ के मौसम में तोड़ाई 10-12 दिनों तथा सर्दियों में 20 दिनों के बीच होनी चाहिए.

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