दलहनी फसलों में अरहर की खेती खास फसल है और यह लोगों की पसंदीदा भी है. अरहर की फसल अन्य कई फसलों के अपेक्षा कुछ अधिक समय में तैयार होती है, लेकिन मुनाफे में कम नहीं. लेकिन आजकल अरहर की अनेक उन्नत प्रजातियां है जो कम समय में उत्पादन देती है.
अरहर की फसल की खासियत यह भी है कि यह इस की खेती से जमीन की उर्वरकता बढ़ती है और अरहर की खेती को असिंचित व शुष्क क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है.
लेकिन अरहर की खेती के लिए ऐसे खेत का चुनाव करें जिस में पानी का ठहराव न हो. अन्यथा अधिक पानी व बरसात में खेत में पानी का ठहराव होने पर पौधे खराब हो सकते है.
खरीफ मौसम के समय अरहर की बोआई जून माह तक जरूर कर देनी चाहिए. देरी होने पर जुलाई के पहले पखवाड़े तक भी बोआई कर सकते है.
अरहर ‘कुदरत ललिता’
अरहर में ‘कुदरत ललिता’ नाम की प्रजाति विकसित करने में प्रकाश सिंह रघुवंशी, ग्राम-टडि़या, पोस्ट-जक्खिनी, जिला-वाराणसी, उत्तर प्रदेश ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने बताया कि यह प्रजाति भारत के विभिन्न प्रदेशों के किसानों के लिए जैसे पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात एवं आंध्र प्रदेश के लिए बेहतर साबित होगी. इस प्रजाति से 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है और दाल की मात्रा 80 फीसदी से ज्यादा है.
इस के अलावा इस प्रजाति में लगने वाले सभी कीड़े व बीमारियों से मुक्त है. इस में फली छेदक और फल मक्खी कीड़ों का कोई प्रकोप नहीं होता है.
यह प्रजाति जैविक खेती में भी अधिकतम उपज दे सकती है और इस का दाना गोल होता है. इस के चलते दाल बनाते समय बहुत कम टूटती है. इस की दाल बहुत मीठी व स्वादिष्ठ होती है.