Kala Namak Rice : कालानमक धान अपनी महक व गुणवत्ता की वजह से काफी महंगा होता है. इसीलिए कम पैदावार के बावजूद किसानों द्वारा इस की खेती की जाती है. कालानमक धान की पुरानी प्रजातियों में ज्यादा समय में कम पैदावार होती थी. इन के पौधे लंबे होने की वजह से अकसर गिर जाते थे और इन्हें पानी की भी ज्यादा जरूरत होती थी. इन्हीं वजहों से इस की खेती के रकबे में काफी कमी आ गई.
इन समस्याओं को देखते हुए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों ने शोध कर के कालानमक 101, कालानमक 102 व कालानमक 103 नाम की बौनी सुगंधित व अधिक उपज देने वाली प्रजातियां विकसित की हैं. ये प्रजातियां न केवल अधिक उपज देंगी, बल्कि कम समय में तैयार भी हो जाएंगी. कालानमक की इन प्रजातियों में कुपोषण को दूर करने वाले तमाम सूक्ष्म पोषक तत्त्व मौजूद हैं, जो कुपोषण को दूर करने में बेहद कारगर सिद्ध होंगे. इन प्रजातियों में निम्नलिखित खूबियां पाई गई हैं:
* इन में आयरन 29.09 फीसदी व जिंक 31.01 फीसदी पाया जाता है, जो पहले से मौजूद खुशबूदार प्रजातियों से ज्यादा है.
* कालानमक की इन प्रजातियों में कुपोषण से लड़ने की कूवत ज्यादा होती है.
* इन का चावल सफेद व खुशबूदार होता है.
* इन की पैदावार कालानमक की पुरानी किस्मों से डेढ़ गुना ज्यादा है. इन में 20 अक्तूबर के करीब बाली आती है और नवंबर के अंत तक फसल पक कर तैयार हो जाती है. इस तरह ये पुराने कालानमक की प्रजातियों से 2 हफ्ते तक का कम समय लेती हैं.
* इन के पौधों की ऊंचाई 100 से 110 सेंटीमीटर होती है और बालियां 20-25 सेंटीमीटर तक लंबी होती हैं.
* इन्हें किसी भी साधारण कुटाई मशीन से कुटाई कर के चावल निकाला जा सकता है.
* इस चावल का औसत बाजार भाव 55-60 रुपए प्रति किलोग्राम है और इस में कुपोषण से लड़ने की कूवत होती है.
जमीन का चयन : कालानमक की इन प्रजातियों की खेती उन सभी प्रकार की जमीनों में की जा सकती है, जहां सिंचाई के साधन मौजूद हों. वैसे इन प्रजातियों के लिए दोमट, मटियार व काली मिट्टी ज्यादा मुफीद मानी जाती है.
बीज दर व नर्सरी : कालानमक की इन उन्नत प्रजातियों की 1 हेक्टेयर खेत में रोपाई के लिए 25-30 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है. इन प्रजातियों की नर्सरी को अन्य प्रजातियों के मुकाबले देर से यानी जून के आखिरी हफ्ते से जुलाई के दूसरे हफ्ते तक डालना अच्छा रहता है. 1 हेक्टेयर रकबे के लिए 800 से 1000 वर्गमीटर में नर्सरी डालना सही होता है. नर्सरी की बोआई से पहले तैयार किए गए खेत में 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस व 50 किलोग्राम पोटाश की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से डाली जाती है. अगर नर्सरी में जिंक या लोहे की कमी दिखाई पड़े तो 0.5 फीसदी जिंक सल्फेट व 0.2 फीसदी फेरस सल्फेट के घोल का छिड़काव करना अच्छा होता है.
प्रजातियां : भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (फिलीपींस) द्वारा विकसित की गई कालानमक की बौनी व अधिक उत्पादन देने वाली प्रजातियों में कालानमक 101, कालानमक 102 व कालानमक 103 को सब से ज्यादा मुफीद माना गया है. इन प्रजातियों में सब से अच्छा नतीजा कालानमक 101 का रहा है. ये तीनों प्रजातियां खुशबू से भरपूर होती हैं.
बीज शोधन : कालानमक की इन प्रजातियों को रोगों व कीड़ों से बचाने के लिए बीजों को शोधित किया जाना जरूरी होता है. जिस खेत में जीवाणु झुलसा या जीवाणु धारी रोग की समस्या पाई जाती है, वहां 25 किलोग्राम बीजों के लिए 4 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन को पानी में मिला कर उस में बीजों को रात भर भिगो देना चाहिए. दूसरे दिन नर्सरी में डालने से पहले भिगोए गए बीजों को छाया में सुखा लेना चाहिए. अगर पौधों में झुलसा की समस्या नहीं आती हो तो 25 किलोग्राम बीजों को रात भर पानी में भिगोने के बाद दूसरे दिन पानी से छान लें. इस के बाद 75 ग्राम थीरम या 50 ग्राम कार्बेंडाजिम को 8-10 लीटर पानी में घोल कर बीजों में मिला दें. इस के बाद भिगोए गए बीजों को छाया में अंकुरित कर के नर्सरी में डालें.
नर्सरी में बीजों को डालने के 21-25 दिनों के बाद अच्छी तरह से पलेवा किए गए खेत में इस की रोपाई करनी चाहिए. कालानमक की ये प्रजातियां बौनी होने की वजह से गिरती नहीं हैं. पौधों की रोपाई 3-4 सेंटीमीटर से ज्यादा गहराई पर नहीं करनी चाहिए, वरना कल्ले कम निकलते हैं और उपज कम हो जाती है. पौधों से पौधों की दूरी 2×10 सेंटीमीटर व एक स्थान पर पौधों की संख्या 2-3 रखनी चाहिए.
खाद व उर्वरक : इन प्रजातियों के लिए 1 हेक्टेयर खेत में 100-120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस व 60 किलोग्राम पोटाश की जरूरत होती है. खेत की जुताई के दौरान ही प्रति हेक्टेयर की दर से 10-15 टन गोबर की सड़ी खाद का इस्तेमाल करना उत्पादन के लिए अच्छा होता है. इसी दौरान 20-25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना अच्छा होता है.
सिंचाई : कालानमक की इन प्रजातियों को सही मात्रा में नमी की जरूरत होती है. कम बारिश की हालत में नियमित अंतरात पर सिंचाई करते रहें, ताकि खेत की नमी न सूखने पाए. वैसे कालानमक की इन प्रजातियों में 30-60 सेंटीमीटर अस्थायी पानी भी पैदावार के लिए अच्छा माना जाता है. खेत में ज्यादा पानी न लगने पाए इसलिए जलनिकासी का इंतजाम अच्छा होना चाहिए. रोपाई के 1 हफ्ते बाद कल्ले फूटने, बाली निकलने, फूल खिलने और दाना बनते समय खेत में सही मात्रा में पानी होना चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण : धान की फसल के लिए खरपतवार नियंत्रण बेहद जरूरी होता है, क्योंकि फसल में खरपतवार उग आने से पैदावार घट जाती है. धान की फसल पर रसायनों का असर कम करने के लिए खरपतवार नियंत्रण के लिए बिना रसायनों का प्रयोग किए ही यांत्रिक विधि से खरपतवार नियंत्रण किया जाना ज्यादा सही माना जाता है. इस के लिए खुरपी या पैडीवीयर का इस्तेमाल किया जा सकता है.
अगर रासायनिक विधि से खरपतवार का नियंत्रण करना है, तो चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिए ब्यूटाक्लोर 5 फीसदी ग्रेन्यूल, 30-40 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या बेंथ्योकार्ब 10 फीसदी ग्रेन्यूल 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. इस के अलावा विस्पाइरीबैक सोडियम या एनीलोफास का इस्तेमाल भी खरपतवार नियंत्रण के लिए रोपाई के 3-4 दिनों के अंदर करना चाहिए. अगर दानेदार रसायनों का इस्तेमाल किया जा रहा है, तो यह ध्यान रखना चाहिए कि खेत में काफी मात्रा में पानी भरा हो.
बीमारियां व कीट नियंत्रण : अगर धान की नर्सरी डालते समय बीजशोधन किया गया है, तो फसल में बीमारियों के लगने की संभावना नहीं होती है. धान की फसल में जिन कीटों का प्रकोप पाया जाता है, उन में दीमक, पत्ती लपेटक कीट, गंधीबग, बाली काटने वाला कीट, गोभगिडार, हरा फुदका, भूरा फुदका, सफेद पीठ वाला फुदका, हिस्पा व नरई कीट खास हैं, लेकिन कालानमक की इन प्रजातियों में इन कीटों का प्रकोप बहुत कम देखा गया है.
अगर ऊपर बताए गए कीटों का प्रकोप दिखाई पड़ता है, तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के कीट रोग नियंत्रण विशेषज्ञ से संपर्क कर के कीटों पर काबू पाया जा सकता है.
उत्पादन : कालानमक की इन प्रजातियों की फसल की कटाई 85-90 फीसदी दानों के पक जाने के बाद की जाती है. काटी गई फसल की मड़ाई के लिए छायादार व हवादार जगह का चुनाव करें. इस से कुटाई के दौरान चावल के टूटने की संभावना नहीं होती है. कालानमक की इन प्रजातियों की औसत उपज 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पाई गई है. ज्यादा जानकारी के लिए किसान कृषि विज्ञान केंद्र बंजरिया, बस्ती के विषय वस्तु विशेषज्ञ, राघवेंद्र सिंह के मोबाइल नंबर 9415670596 या 9838070596 पर संपर्क कर सकते हैं.