इन दिनों वैशाली जिले के हाजीपुर चकवारा के रहने वाले राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित युवा किसान संतोष कुमार अपने किचन गार्डन में प्रयोगात्मक रूप से लाल भिंडी उपजा कर किसानों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं.

युवा किसान संजीव कुमार का कहना है कि लाल भिंडी की खेती से न सिर्फ फसल अच्छी मिलती है, बल्कि धरती की उर्वराशक्ति भी पहले से बेहतर होती है. लाल भिंडी इम्यूनिटी बूस्टर के तौर पर काम करती है.

कृषि विज्ञान केंद्र, हरिहरपुर, वैशाली की वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. सुनीता कुशवाहा के दिशानिर्देशन पर उद्यान वैज्ञानिक स्वप्निल भारती की देखरेख में हाजीपुर नगर के चकवारा गांव निवासी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित युवा किसान संजीव कुमार को लाल भिंडी का बीज परीक्षण के लिए उपलब्ध कराया गया था,  जिस का नतीजा बेहद अच्छा रहा.

60 दिन में तैयार फसल

लाल भिंडी की बोआई 15 फरवरी से 15 मार्च एवं 15 जून से 15 जुलाई तक की जाती है. इसे दोनों ही मौसमों में बोया जा सकता है. खरीफ और रबी सीजन में इस की बोआई का काम किया जा सकता है.

उन्होंने बताया कि तैयार फसल को प्रत्येक 2 दिन पर तुड़ाई की जाती है. किसानों को लाल भिंडी की खेती के लिए ऊंची एवं जल निकास वाले खेत का चयन करना चाहिए. इस की खेती दोमट मिट्टी में करने से फसल बहुत ही अच्छी होती है. भिंडी की खेती में लाइन से लाइन की दूरी 45 से 60 सैंटीमीटर और पौधे से पौधे के बीच की दूरी 25 से 30 सैंटीमीटर पर बोआई करनी चाहिए.

गुणों से भरपूर लाल भिंडी

किसान संजीव कुमार का कहना है कि काशी लालिमा प्रजाति की लाल भिंडी का प्रयोग वैशाली जिले की मिट्टी एवं आबोहवा में अच्छी फसल मिलती है. हरे रंग की भिंडी की अपेक्षा लाल भिंडी में आयरन, पोटैशियम, प्रोटीन, कैल्शियम और फाइबर पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है.

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